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वॉरेन हेस्टिंग्ज़ (1772-85)

भारतीय इतिहास में 2 व्यक्तियों को विशेष रूप से ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना का सूत्रधार माना जाता है -एक रॉबर्ट क्लाइव और दूसरा वॉरेन हेस्टिंग्ज़ । 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के तहत यह व्यवस्था की गई कि अब से बंगाल के गवर्नर को “गवर्नर जनरल” कहा जाएगा और शेष 2 प्रेसिडेंसी (बॉम्बे,मद्रास) के गवर्नर उसके अधीन होंगे | इस प्रकार वॉरेन हेस्टिंग्ज़ को, जो कि 1772 से बंगाल के गवर्नर थे , बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया | वॉरेन हेस्टिंग्ज़ की बंगाल के गवर्नर के रूप में नियुक्ति से ईस्ट इण्डिया कम्पनी के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू होता है । वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने ही अंग्रेजी शासन को मुगल प्रभुत्व से मुक्त करने का प्रयास किया। उसने कम्पनी को जो एक व्यापारिक इकाई थी और भारतीय रिति-रिवाजों से अनभिज्ञ थी, एक प्रशासनिक इकाई बनाने का कार्य योजनाबद्ध तरीके से शुरू किया । उसके कार्यकाल में किए गए सुधारों की चर्चा इस लेख में की गई है |

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वॉरेन हेस्टिंग्ज़ के प्रशासनिक सुधार

वॉरेन हेस्टिंग्ज़ का सबसे पहला मुख्य कार्य यह था कि उसने बंगाल की दोहरी शासन व्यवस्था (dual system) को समाप्त करने का निर्णय किया (यह 1765 में रॉबर्ट क्लाइव के द्वारा बनाई गई ऐसी व्यवस्था थी जिसमें राजस्व उगाही का अधिकार तो कम्पनी के पास था लेकिन सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था की देखरेख का जिम्मा नवाब के पास ही रहने दिया गया था) | वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने प्रशासन का पूरा जिम्मा कम्पनी के कार्यकर्ताओं को सौंप दिया तथा नवाब को अब इस कार्य का कोई अधिकार नहीं रहा। फिर हेस्टिंग्ज़ ने मुगल सम्राट को 1765 से दी जाने वाली 26 लाख रुपय की वार्षिक पेंशन भी बन्द कर दी । सम्राट को दिए हुए इलाहाबाद के क्षेत्र भी वापस ले लिए गए | इस प्रकार उसने ही अंग्रेजी शासन को मुगल प्रभुत्व से मुक्त करने का प्रथम प्रयास किया।

भूमि कर सुधार

वॉरेन हेस्टिंग्ज़ का विचार था कि शासक ही समस्त भूमि का मालिक होता है। उसने सभी पारंपरिक अधिकारों की अवहेलना कर के जमींदारों को केवल कर का संग्रहकर्त्ता माना, जिन्हें कृषकों से कर संग्रह कर ब्रिटिश सरकार को सौंप देना चाहिए | एक कुशल राजस्व व्यवस्था स्थापित करने के लिए उसने सुप्रसिद्ध परीक्षण तथा अशुद्धि (trial and error) का नियम अपनाया। वॉरेन हेस्टिंग्ज की व्यवस्था में, कर संग्रहण का अधिकार ऊंची बोली वाले को पांच वर्ष के लिए नीलाम कर दिया जाता था । भ्रष्ट तथा निजी व्यापार में लिप्त कलक्टरों का निरीक्षण करने के लिए 6 प्रान्तीय परिषद् नियुक्त की गईं। कृषकों से अधिकतम कर प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाने लगा । लेकिन यह पंचवर्षीय व्यवस्था असफल रही | अतः 1776 में पंचवर्षीय ठेके की समाप्ति पर पुनः एकवर्षीय प्रणाली अपनाई गई और कर संग्रहण के अधिकार नीलाम कर दिए गए। 1781 में पुनः इस व्यवस्था में सुधार किया गया तथा प्रान्तीय परिषदें समाप्त कर दी गई | जिलों में पुनः कलक्टर नियुक्त किए गए |

न्याय सुधार

न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की दृष्टि से वॉरेन हेस्टिंग्ज़ का काल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। भारत में ब्रिटिश न्याय प्रणाली की स्थापना इसी काल में हुई | कानून तथा न्यायपालिका की स्वतन्त्रता इस प्रणाली की विशेषताएँ थीं। इसके लिए वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने मुगल रूप-रेखा पर आधारित न्याय प्रणाली को अपनाने का प्रयत्न किया। 1772 ई. में प्रत्येक जिले में एक दीवानी और एक फौजदारी न्यायालय स्थापित कर दिया गया। 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के तहत कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायलय भी स्थापित किया गया | हिन्दुओं पर हिन्दू विधि तथा मुसलमानों पर मुस्लिम विधि लागू होती थी | दीवानी न्यायालय में ₹ 500 तक के मामलों को सुना जा सकता था, उससे ऊपर सदर दीवानी अदालत में अपील हो सकती थी, जिसके अध्यक्ष सर्वोच्च परिषद् के प्रधान तथा अन्य सदस्य होते थे। उनकी सहायता के लिए भारतीय अधिकारी होते थे। दीवानी न्यायालय कलेक्टरों के अधीन होता था। जिला फौजदारी अदालत एक भारतीय अधिकारी के अधीन होती थी, जिसकी सहायता के लिए एक मुफ्ती और एक काजी नियुक्त था। कलेक्टर को यह देखना होता था कि मामले को ठीक से लिया जाए और उस पर ठीक विचार किया जाए।

वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने हिन्दू और मुस्लिम विधियों को भी एक पुस्तक का रूप देने का प्रयत्न किया। प्रसिद्ध विधि ग्रन्थ ‘मनु स्मृति का अंग्रेजी अनुवाद ‘Code of Gentoo Laws’ (1776) के नाम से उसके ही कार्यकाल में हुआ। इसी प्रकार ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ का भी अंग्रेजी अनुवाद करने का प्रयत्न किया गया। इस तरह वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने अपने शासनकाल में विभिन्न भारतीय विधि ग्रन्थों को अनुवादित और प्रकाशित कराने का प्रयास किया ताकि भारतीय कानूनों को समझा जा सके। मुस्लिम समुदाय में शिक्षा के विकास के लिहाज से उसने 1781 में कोलकाता में प्रथम मदरसा की स्थापना भी की | (नोट : नन्द कुमार सेन का अभियोग वॉरेन हेस्टिंग्ज़ के कार्यकाल से ही सम्बन्धित है) |

व्यापार सुधार

वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने व्यापार के क्षेत्र में भी सुधार करने का प्रयत्न किया। जमींदारों के क्षेत्रों में स्थित शुल्क गृह बन्द कर दिए गए। अब केवल 5 शुल्क गृह, कलकत्ता, हुगली, मुर्शिदाबाद, ढाका तथा पटना में रह गए। यह शुल्क 2.5 % रह गया जो सभी को देना होता था। उसने कम्पनी के अधिकारियों द्वारा उनके अपने निजी व्यापार के लिए छूट देने के पत्र बन्द कर दिए । उसने तिब्बत तथा भूटान से व्यापार बढ़ाने का प्रयत्न भी किया ।

कुटनीतिक कार्य एवं साम्राज्य विस्तार

मराठों की बढ़ती शक्ति को भांप कर वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने यह अनुभव किया कि यदि अवध से ब्रिटिश संबंध सुदृढ़ नहीं किए गए तो संभव है अवध मराठों के अधीन आ जाए | इसलिए उसने 1773 में अवध के नवाब से बनारस की संधि की | इस संधि से कंपनी को वित्तीय लाभ तो हुआ ही, साथ ही उसकी सीमा भी सुदृढ़ हुई | इसके बाद 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने अवध के साथ मिलकर रूहेलो को परास्त किया | वॉरेन हेस्टिंग्ज़ के काल में दो अति महत्वपूर्ण युद्ध भी लड़े गए- 1.प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध (1775 -82) एवं 2.द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780 – 84) जिसमें हैदर अली की मृत्यु हुई |

बंगाल के सभी गवर्नर जनरल की सूचि

बंगाल के गवर्नर जनरल
व्यक्ति कार्यकाल
1.वॉरेन हेस्टिंग्ज़ 1774-85
2.सर जॉन मैक्फरसन (स्थानापन्न) 1785-86
3.कार्नवालिस 1786-93
4.सर जॉन शोर (स्थानापन्न) 1793-98
5.ए.क्लार्क 1798
6.रिचर्ड वैल्जली 1798-1805
7. कार्नवालिस (दूसरा शासन) 1805
8.सर जार्ज बारलो (स्थानापन्न) 1805-07
9.अर्ल ऑफ मिन्टो 1807-13
10.माक्विस ऑफ हेस्टिंग्स 1813-23
11.जॉन एडम्ज (स्थानापन्न) 1823
12.लार्ड एमहर्स्ट 1823-28
13.विलियम बटरवर्थ बेली (स्थानापन्न) 1828
14.लार्ड विलियम बैंटिंक (बंगाल के अंतिम एवं भारत के प्रथम गवर्नर जनरल) 1828-33
नोट : 1833 के चार्टर अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि बंगाल के गवर्नर जनरल को अब भारत के गवर्नर जनरल के नाम से जाना जाएगा.और इस प्रकार लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने.

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