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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 01 October, 2023 UPSC CNA in Hindi

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

भूगोल

  1. सितंबर की बारिश से भारत में मानसून की कमी दूर हो गई:

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन

  1. कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार के उपयोग पर चिंताएँ

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

  1. प्रथम क्षुद्रग्रह नमूना कितना महत्वपूर्ण है?

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

  1. एशिया का विवादित जल क्षेत्र

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. कज़ान बैठक में अफ़ग़ानिस्तान में समान अधिकारों को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई:
  2. प्राचीन ग्रंथों से ‘शासन कला की भारतीय विरासत’ को फिर से खोजने के लिए सेना का प्रोजेक्ट उद्भव :

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सितंबर की बारिश से भारत में मानसून की कमी दूर हो गई

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित

भूगोल

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं (जल-स्रोत और हिमावरण सहित) और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव।

प्रारंभिक परीक्षा: अल नीनो और हिंद महासागर द्विध्रुव अवधारणा।

मुख्य परीक्षा: अल नीनो और हिंद महासागर द्विध्रुव का भारतीय मानसून पर प्रभाव।

प्रसंग:

  • सदी में सबसे शुष्क अगस्त का अनुभव करने के बावजूद, भारत सितंबर में अप्रत्याशित रूप से भारी वर्षा के कारण इस वर्ष 2023 में सूखे से बचने में कामयाब रहा है। मानसून पैटर्न में इस बदलाव का देश की कृषि और जल संसाधनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

सितंबर की वर्षा का महत्व:

  • मानसून की कमी की पूर्ती करना: सितंबर में भारी बारिश ने भारत के मानसून की कमी की पूर्ती करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे किसानों और जलाशयों को राहत मिली है।
  • मानसून सीज़न का अवलोकन: 30 सितंबर तक, जो मानसून सीज़न के आधिकारिक अंत का प्रतीक है, भारत में जून से सितंबर तक अपेक्षित वर्षा का 94% प्राप्त हुआ। हालाँकि यह पूर्वानुमानित 96% से थोड़ा कम है, यह भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा निर्धारित स्वीकार्य त्रुटि मार्जिन के भीतर है। दीर्घकालिक औसत के 96% से 104% की सीमा में वर्षा को ‘सामान्य’ माना जाता है।
  • क्षेत्रीय विविधताएँ: मानसून वितरण में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय विविधताएँ प्रदर्शित हुईं। उत्तर-पश्चिम भारत में अपेक्षित वर्षा हुई, लेकिन पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में 18% की कमी देखी गई, जबकि दक्षिणी भारत में 8% की कमी रही। मध्य भारत अपने अपेक्षित कोटा के करीब पहुंच गया।
  • हर महीने बारिश में बदलाव: मानसून के महीनों में अनियमित उतार-चढ़ाव की सूचना मिलती है। जून में सामान्य से 9% कम वर्षा हुई, जुलाई में सामान्य से 13% अधिक बारिश हुई, अगस्त में 36% की भारी कमी दर्ज की गई और सितंबर 13% अधिशेष के साथ समाप्त हुआ। जुलाई और अगस्त में मानसून की कुल वर्षा में अधिकांश योगदान होता है, जिससे सितंबर की वर्षा विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है।
  • अल नीनो का प्रभाव: मानसून के मौसम की शुरुआत में, IMD ने अल नीनो के प्रभाव के कारण सामान्य से कम बारिश की आशंका जताई थी, अल नीनो भारत में कम वर्षा के साथ जुड़ा पूर्वी और मध्य प्रशांत क्षेत्र का चक्रीय तापन है।
  • सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव: हालाँकि, सितंबर में अप्रत्याशित अधिक बारिश का कारण हिंद महासागर में अनुकूल परिस्थितियाँ थीं, विशेष रूप से सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव। इसने अल नीनो प्रभाव का प्रतिकार किया, जो ऐतिहासिक रूप से सितंबर में कम वर्षा से संबद्ध था।

आईएमडी का मानसून पूर्वानुमान:

  • आगामी उत्तर-पूर्वी मानसून: आईएमडी ने अक्टूबर से दिसंबर तक ‘सामान्य’ उत्तर-पूर्वी मानसून की भविष्यवाणी की है, जो आमतौर पर इस मानसून चरण पर निर्भर क्षेत्रों के लिए एक आशाजनक अवधि का संकेत देता है।
  • वर्षा का अनुमान: इसके अतिरिक्त, IMD ने उत्तर-पश्चिम भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप के बड़े हिस्सों के लिए ‘सामान्य से लेकर सामान्य से अधिक वर्षा’ की भविष्यवाणी की है, जिससे पानी की कमी और कृषि उपज के बारे में चिंताएं कम हो जाती हैं।

सारांश:

  • सितंबर में अप्रत्याशित भारी वर्षा भारत के मानसून के लिए गेम-चेंजर रही है, जिसने देश को सूखे के कगार से बचाया है। सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव जैसे कारकों से प्रभावित यह आकस्मिक बदलाव, मानसून प्रणाली की जटिलता और परिवर्तनशीलता को उजागर करता है। जैसे-जैसे उत्तर-पूर्वी मानसून करीब आता है, ‘सामान्य’ स्थितियों का पूर्वानुमान आने वाले महीनों में कृषि उत्पादकता और पानी की उपलब्धता जारी रहने की उम्मीद जगाता है, जो भारत के कृषि क्षेत्र में मौसम संबंधी निगरानी और अनुकूलनशीलता के महत्व को रेखांकित करता है।

प्रथम क्षुद्रग्रह नमूना कितना महत्वपूर्ण है?

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में विकास

प्रारंभिक परीक्षा: क्षुद्रग्रहों की अवधारणा

मुख्य परीक्षा: प्रथम क्षुद्रग्रह नमूने का महत्व।

प्रसंग:

  • नासा के ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) अंतरिक्ष यान ने हाल ही में क्षुद्रग्रह 101955 बेन्नू से एकत्र किए गए चट्टानों और धूल के नमूनों वाले एक कैप्सूल को वापस लौटाकर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। इस उल्लेखनीय मिशन ने इन क्षुद्रग्रह नमूनों के महत्व और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए व्यापक निहितार्थों पर प्रकाश डाला है।

ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) मिशन अवलोकन:

  • मिशन का उद्देश्य: 2016 में शुरू किए गए ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) मिशन का उद्देश्य क्षुद्रग्रह बेन्नु से नमूने एकत्र करना था, जिसमें अंतरिक्ष यान को क्षुद्रग्रह के चारों ओर कक्षा में स्थापित करने के लिए जटिल मनुवर शामिल था।
  • चुनौतियाँ: मिशन को बेन्नू के कमजोर गुरुत्वाकर्षण के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जो इतना कमजोर है कि यह क्षुद्रग्रह की सतह पर पत्थर ऊपर की ओर गति करते हैं। इसके अतिरिक्त, क्षुद्रग्रह के ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र ने ओसीरिस-रेक्स के ऊंचाई मापने वाले उपकरण को अनुपयोगी बना दिया, जिससे उपयुक्त लैंडिंग साइट की पहचान करने के लिए एक जटिल होल्डिंग पैटर्न की आवश्यकता पड़ी।
  • नमूना संग्रह: 20 अक्टूबर, 2020 को, ओसीरिस-रेक्स चट्टानों और धूल को इकट्ठा करते हुए, बेन्नू पर सफलतापूर्वक उतरा। नमूना प्राप्त करने के दौरान संदूषण से बचने के लिए, इसने नाइट्रोजन गैस के विस्फोट का उपयोग किया।
  • पृथ्वी पर वापसी: नमूने एकत्र करने के बाद, ओसीरिस-रेक्स बेन्नू के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से निकल गया और अपने नमूना कैप्सूल को पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपर छोड़ दिया। अब यह 2029 में एक अन्य क्षुद्रग्रह, एपोफिस का अध्ययन करने के लिए एक नए मिशन पर जाने के लिए तैयार है।

बेन्नू के अध्ययन का महत्व:

  • पृथ्वी के निकट के क्षुद्रग्रहों (NEA) को समझना: मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित क्षुद्रग्रह मेखला में NEA सहित हजारों अंतरिक्ष चट्टानें हैं जो कभी-कभी पृथ्वी के करीब आ जाती हैं। ग्रहों की रक्षा के लिए इन क्षुद्रग्रहों को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन क्षुद्रग्रहों के हमारे ग्रह से टकराव की आशंका है।
  • ग्रहों की रक्षा: हालाँकि पृथ्वी के साथ एक विनाशकारी क्षुद्रग्रह के टकराव की आशंका कम है लेकिन, दीर्घकालिक जोखिम अन्य रोजमर्रा के खतरों के बराबर है। भले ही ये क्षुद्रग्रह तत्काल खतरा पैदा न करें लेकिन, गुरुत्वाकर्षण बल समय के साथ इनकी कक्षाएँ बदल सकता है, इसी कारण इनकी निगरानी की आवश्यकता है।
  • खनन क्षमता: बेन्नू जैसे क्षुद्रग्रहों का अध्ययन करने से क्षुद्रग्रह खनन की संभावना भी खुलती है। इन खगोलीय पिंडों में अक्सर धातु, जल बर्फ और खनिज जैसे मूल्यवान संसाधन होते हैं। भविष्य में खनन योग्य क्षुद्रग्रह आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो सकते हैं, जो अंतरिक्ष अभियानों के लिए संसाधन-समृद्ध पिट स्टॉप के रूप में काम करेंगे।
  • जीवन की उत्पत्ति: बेन्नू जैसे कार्बन युक्त क्षुद्रग्रह पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में साक्ष्य प्रदान कर सकते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं ने अरबों साल पहले हमारे युवा ग्रह पर जीवन के आधार का निर्माण किया होगा।

क्या हम क्षुद्रग्रहों का खनन कर सकते हैं?

  • संसाधन निष्कर्षण: धूल, चट्टानों, पानी की बर्फ तथा लोहा, निकल और कोबाल्ट जैसी मूल्यवान धातुओं से बने क्षुद्रग्रहों का संभावित रूप से संसाधनों के लिए खनन किया जा सकता है।
  • संसाधन चुनौतियाँ: क्षुद्रग्रहों के खनन को वास्तविकता बनाने से पहले निम्न गुरुत्वाकर्षण, वायुमंडल की अनुपस्थिति और अंतरिक्ष में विकिरण जोखिम जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिए।

डार्ट (DART) मिशन

  • डबल एस्टेरॉइड रिडायरेक्शन टेस्ट मिशन।
  • गतिज इम्पैक्ट की तुलना में क्षुद्रग्रह विक्षेपण का परीक्षण और प्रदर्शन करना।
  • लक्ष्य: क्षुद्रग्रह डिडिमोस (व्यास लगभग 0.5 मील) और इसका चंद्रमा डिमोर्फोस।
  • 26 सितंबर 2022 को इम्पैक्ट।​
  • इम्पैक्ट के कारण डिमोर्फोस की कक्षा 32 मिनट छोटी हो गई, जिससे एक सफल विक्षेपण हुआ।
  • हालाँकि, वर्तमान तकनीक के आधार पर, किसी भी पृथ्वी की ओर आने वाले खगोलीय पिंड पर ऐसे मिशनों को तैनात करने के लिए कुछ वर्षों (अधिमानतः एक दशक या अधिक) पूर्व की चेतावनी आवश्यक होगी।

सारांश:

  • ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) मिशन के माध्यम से क्षुद्रग्रह बेन्नु से नमूनों की वापसी अंतरिक्ष अन्वेषण में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि का प्रतिनिधित्व करती है। ये नमूने हमारे सौर मंडल की उत्पत्ति, क्षुद्रग्रह से उत्पन्न खतरों के खिलाफ ग्रहों की रक्षा की क्षमता और भविष्य के संसाधन के रूप में क्षुद्रग्रह खनन की व्यवहार्यता में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने की क्षमता रखते हैं। यह मिशन पृथ्वी से परे ज्ञान और संसाधनों की खोज का उदाहरण देता है और अंतरिक्ष अन्वेषण के लगातार बढ़ते क्षितिज पर प्रकाश डालता है।

कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार के उपयोग पर चिंताएँ

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित

शासन

विषय: सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप।

प्रारंभिक परीक्षा: आधार

मुख्य परीक्षा: कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार के उपयोग के मुद्दे।

प्रसंग:

  • हाल ही में मूडीज इन्वेस्टर सर्विस की सितंबर 2023 की रिपोर्ट में आधार को लेकर सुरक्षा और गोपनीयता सुभेद्याताओं जैसी चिंताओं को उठाया गया था। इसमें यह बताया गया है कि भारत के आधार जैसी केंद्रीकृत बायोमेट्रिक प्रणालियों के बजाय, हमें कैसे विकेंद्रीकृत डिजिटल पहचान प्रणाली को अपनाना चाहिए, लेकिन भारत ने इन दावों का खंडन किया है।

आधार का इतिहास:

  • इसकी अवधारणा UIDAI द्वारा 2009 में पेश की गई थी।
  • पहला आधार नंबर सितंबर 2010 में महाराष्ट्र राज्य में जारी किया गया था। कार्यक्रम को धीरे-धीरे अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया।
  • 2016 में, आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था, जो आधार परियोजना के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
  • पुट्टास्वामी मामले में कानूनी चुनौतियों पर विराम लगा
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी संवैधानिकता बरकरार रखी।
    • आधार को लिंक करने की अनिवार्यता पर प्रतिबंध।
    • सरकारी सब्सिडी और कल्याणकारी कार्यक्रमों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए स्वैच्छिक आधार पर उपयोग किया जाना चाहिए।
    • धारा 57 को ख़त्म कर दिया गया (जो निजी कंपनियों को सत्यापन के लिए आधार का उपयोग करने की अनुमति देता था)।
    • आधार प्रमाणीकरण रिकॉर्ड के भंडारण को अधिकतम छह महीने तक सीमित कर दिया गया।

आधार पर सरकार का सकारात्मक रुख:

  • कल्याणकारी योजनाएं: सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसे कार्यक्रमों और मनरेगा में मजदूरी भुगतान जैसी सरकार-से-नागरिक नकद हस्तांतरण पहल के लिए आधार-आधारित प्रमाणीकरण की वकालत की है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य सिस्टम से आभासी लोगों (धोखाधड़ी से लाभ प्राप्त करने वाले) और फ़र्ज़ी लोगों (जो लाभ के हकदार नहीं हैं) को हटाना है।
  • बचत के दावे: सरकार ने आधार के उपयोग के माध्यम से डुप्लिकेट और अनधिकृत लाभार्थियों को हटा कर, रिसाव को कम करके और नकद हस्तांतरण की दक्षता में सुधार करके कल्याणकारी योजनाओं में महत्वपूर्ण बचत का दावा किया है।

चुनौतियाँ और चिंताएँ:

  • प्रमाणीकरण समस्याएँ: आलोचकों का कहना है कि आधार-आधारित प्रमाणीकरण कई समस्याएँ पैदा करता है। PDS के मामले में, मात्रा धोखाधड़ी (जहां लाभार्थियों को उनकी पात्रता से कम मिलता है) एक महत्वपूर्ण चिंता है, जिसे आधार संबोधित नहीं करता है।
  • प्रमाणीकरण विफलताएँ: प्रमाणीकरण विफलताएँ आम हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अविश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी और हाथ से काम करने वाले श्रमिकों के उंगलियों के निशान मिट जाते हैं। इन प्रमाणीकरण विफलताओं के परिणामस्वरूप लाभार्थियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है।
  • प्रमाणीकरण त्रुटियों पर डेटा: प्रमाणीकरण प्रयासों और त्रुटियों पर डेटा के संबंध में पारदर्शिता की कमी प्रणाली की प्रभावशीलता और जवाबदेही के बारे में चिंता पैदा करती है।
  • भुगतान विफलताएँ: नकद हस्तांतरण कार्यक्रमों में, कोई भी त्रुटि, जैसे गलत नाम या गलत आधार लिंक, भुगतान विफलताओं का कारण बन सकती है। श्रमिकों को अक्सर इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उनका आधार किस बैंक खाते से जुड़ा हुआ है, जिससे वेतन में गड़बड़ी होती है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) का उपयोग करने वाले बैंकिंग कोरेस्पोंडेंट उचित जवाबदेही के बिना काम करते हैं, जिससे संभावित रूप से व्यक्तियों के बैंक खातों की सुरक्षा से समझौता होता है। अनधिकृत निकासी और बिना सहमति के सरकारी कार्यक्रमों में नामांकन की सूचना मिली है।
  • भ्रामक बचत के दावे: शोधकर्ताओं ने मनरेगा में आधार के कारण पर्याप्त बचत के सरकार के दावों को चुनौती दी है, और अपर्याप्त धन को मजदूरी भुगतान में देरी का मुख्य कारण बताया है।
  • गोपनीयता भेद्यताएँ: हाल ही में मूडीज की एक रिपोर्ट में सुरक्षा और गोपनीयता भेद्यताओं का हवाला देते हुए आधार जैसी केंद्रीकृत पहचान प्रणालियों के बारे में चिंताओं पर प्रकाश डाला गया। इन चिंताओं ने अधिक विकेंद्रीकृत डिजिटल पहचान प्रणालियों की आवश्यकता के बारे में बहस छेड़ दी है।

वर्तमान गतिरोध:

  • प्रतिरोध और विलोपन: मनरेगा में आधार-आधारित भुगतान को अनिवार्य बनाने के सरकार के प्रयासों को श्रमिकों और क्षेत्र के अधिकारियों के विरोध का सामना करना पड़ा है। अक्सर “आभासी व्यक्ति” होने के आधार पर जॉब कार्ड हटाए जाने से जवाबदेही संबंधी चिंताएं बढ़ जाती हैं।
  • मतदाता पहचान पत्र लिंकेज: आधार के कारण कल्याणकारी कार्यक्रमों में जवाबदेही में कथित कमी को देखते हुए, आलोचक आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने के सरकार के इरादे को लेकर चिंतित हैं।

सारांश:

  • कल्याणकारी कार्यक्रमों में आधार की भूमिका पर बहस एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करती है जो प्रणाली के संभावित लाभों को स्वीकार करते हुए चिंताओं को संबोधित करती है। आधार-आधारित प्रणालियों की दक्षता और लाभार्थियों के अधिकारों और गोपनीयता की सुरक्षा के बीच एक इष्टतम संतुलन हासिल करना नीति निर्माताओं और नियामकों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।

संपादकीय-द हिन्दू

एशिया का विवादित जल क्षेत्र

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव।

मुख्य परीक्षा: एशिया का विवादित जल क्षेत्र।

संदर्भ:​

  • दक्षिण चीन सागर विवाद ने एक बार फिर तनाव बढ़ा दिया है, जिससे इन जल क्षेत्रों के रणनीतिक महत्व और क्षेत्रीय दावों के जटिल जाल की ओर ध्यान आकर्षित हुआ है। 25 सितंबर को फिलीपींस तट रक्षक ने कहा कि उसने दक्षिण चीन सागर में स्कारबोरो शोल के लैगून के प्रवेश द्वार पर चीनी जहाजों द्वारा लगाई गई बाधाओं को हटा दिया है।

स्रोत: The hindu

​दक्षिण चीन सागर के बारे में:

  • व्यापारिक और आर्थिक महत्व: व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक व्यापार का मात्रा के हिसाब से 80% और मूल्य के हिसाब से 70% समुद्र के द्वारा परिवहन किया जाता है।
    • कुल मात्रा का 60% एशिया से होकर गुजरता है, जिसमें दक्षिण चीन सागर “वैश्विक शिपिंग का अनुमानित एक-तिहाई हिस्सा वहन करता है”।
    • चीन का 64% व्यापार समुद्र के माध्यम से होता है, जो किसी भी देश के लिए सबसे अधिक है। इसके विपरीत, अमेरिका का 14% व्यापार यहीं से होकर गुजरता है।
  • क्षेत्रीय दावे: विवाद का केंद्र द्वीपों, चट्टानों और उनके संबंधित क्षेत्रीय जल पर प्रतिस्पर्धी क्षेत्रीय दावों के इर्द-गिर्द घूमता है। संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) राज्यों को क्षेत्रीय समुद्र आधार रेखा से 12 समुद्री मील तक क्षेत्रीय समुद्र और 200 समुद्री मील तक विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) स्थापित करने की अनुमति देता है।
  • जटिल दावे और पुनर्ग्रहण गतिविधियाँ: लगभग 70 विवादित चट्टानें और टापू विवाद के अधीन हैं। चीन, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ताइवान ने इन स्थानों पर चौकियाँ स्थापित की हैं। चीन ने, विशेष रूप से, व्यापक पुनर्ग्रहण गतिविधियाँ शुरू की हैं, दक्षिण चीन सागर में नई भूमि का निर्माण किया है, जिससे क्षेत्रीय गतिकी बदल गई है।
  • नाइन-डैश लाइन: आधिकारिक मानचित्रों पर चीन की विवादास्पद “नाइन-डैश लाइन” लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करती है। स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने 2016 में फैसला सुनाया कि यह दावा UNCLOS के साथ असंगत है, लेकिन चीन ने जल क्षेत्र और द्वीपों पर “ऐतिहासिक अधिकारों” पर जोर देते हुए फैसले को खारिज कर दिया।

राजनयिक प्रयास और मध्यस्थता:

  • आचार संहिता (CoC): आचार संहिता (CoC) की स्थापना सहित राजनयिक प्रयास जारी हैं। हालाँकि, विवादों की जटिलता और चीन के साथ बातचीत में एकजुट मोर्चा पेश करने में आसियान की असमर्थता को देखते हुए, CoC हासिल करना चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है।
  • मध्यस्थता और PCA निर्णय: 2013 में, फिलीपींस ने UNCLOS के तहत चीन के खिलाफ मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की, जिसके परिणामस्वरूप 2016 PCA के फैसले में चीन की “नाइन-डैश लाइन” को खारिज कर दिया गया और पुष्टि की गई कि ऐतिहासिक अधिकार UNCLOS के साथ असंगत हैं। चीन ने मध्यस्थता को खारिज कर दिया।
  • प्रवर्तन और जारी तनाव: दक्षिण चीन सागर में दावों को लागू करना एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है, जैसा कि स्कारबोरो शोल जैसे हालिया विवादों से पता चलता है। स्थिति लगातार उत्क्रांत हो रही है, क्षेत्रीय दावेदार और बाहरी शक्तियां घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं।

समुद्री कानून

  • समुद्र में सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून की शाखा।​
  • संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि, 10 दिसंबर 1982 को हस्ताक्षरित हुई।​
  • इसका उद्देश्य समुद्री मार्गों, क्षेत्रीय जल और समुद्री संसाधनों को नियंत्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय कानून को संहिताबद्ध करना है।​
  • 1994 में लागू हुआ।​
  • प्रत्येक राष्ट्र का संप्रभु क्षेत्रीय समुद्र उसके तट से 12 समुद्री मील (22 किमी) की दूरी तक सीमित है, लेकिन विदेशी जहाजों को इस क्षेत्र से होकर गुजरने का अधिकार है।
  • प्रत्येक तटीय राष्ट्र को एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) स्थापित करने का अधिकार है जो उसकी तटरेखा से 200 समुद्री मील (370 किमी) तक विस्तारित हो।
  • जहां पड़ोसी देशों के क्षेत्रीय जल, EEZ या महाद्वीपीय शेल्फ ओवरलैप होते हैं, वहां एक न्यायसंगत समाधान प्राप्त करने के लिए समझौते द्वारा एक सीमा रेखा खींची जानी चाहिए।
  • इसके पार आतंरिक समुद्र होते हैं।

सारांश:

  • दक्षिण चीन सागर विवाद क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा, व्यापार और आर्थिक स्थिरता पर प्रभाव डालने वाला एक जटिल और संभावित रूप से अस्थिर करने वाला मुद्दा बना हुआ है। वर्तमान तनाव और क्षेत्रीय दावे इन जल क्षेत्रों के माध्यम से व्यापार के महत्वपूर्ण प्रवाह को बाधित कर सकते हैं। भारत के, अन्य हिंद-प्रशांत देशों के साथ, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने में निहित स्वार्थ हैं।

प्रीलिम्स तथ्य:

  1. कज़ान बैठक में अफ़ग़ानिस्तान में समान अधिकारों को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई:
  2. प्रसंग:

    • रूस के कज़ान में हाल ही में हुई “मॉस्को प्रारूप” बैठक का उद्देश्य तालिबान के कब्ज़े के बाद अफगानिस्तान में चल रही चुनौतियों का समाधान करना था। बैठक में भारत सहित विभिन्न क्षेत्रीय हितधारकों को एक साथ लाया गया, जिसमें तालिबान से एक समावेशी सरकार स्थापित करने और समान अधिकारों, विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा को बनाए रखने का आग्रह करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

    प्रतिभागियों से मुलाकात और उद्देश्य:

    • प्रतिभागी: बैठक में भारत सहित नौ देशों के प्रतिनिधि, तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री और पाकिस्तान, रूस, चीन, ईरान और मध्य एशियाई राज्यों के विशेष दूत शामिल थे।
    • उद्देश्य: बैठक का प्राथमिक लक्ष्य एक समावेशी सरकार के गठन और सभी अफगानों, विशेषकर महिलाओं के लिए समान अधिकारों और स्वतंत्रता के आश्वासन के लिए तालिबान पर दबाव डालना था। इसके अतिरिक्त, बैठक में अफगानिस्तान के साथ मानवीय सहायता और आर्थिक सहयोग पर भी चर्चा हुई।

    परिणाम और चुनौतियाँ:

    • समावेशी सरकार पर प्रगति की कमी: बैठक में अफगानिस्तान में विभिन्न जातीय-राजनीतिक समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक समावेशी सरकार बनाने में प्रगति की कमी पर खेद व्यक्त किया गया।
    • समान अधिकार और स्वतंत्रता: प्रतिभागियों ने मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया, जिसमें लिंग, जातीयता या धर्म की परवाह किए बिना सभी अफगानों के लिए काम, शिक्षा और न्याय तक समान पहुंच शामिल है। महिलाओं के रोजगार और लड़कियों की शिक्षा पर लगाए गए प्रतिबंधों के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गईं।
    • मानवीय सहायता: प्रतिभागियों ने देश की चुनौतीपूर्ण मानवीय स्थिति के बीच सहायता की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए, अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करना जारी रखने का संकल्प लिया।
    • आर्थिक संबंध: देश की आर्थिक सुधार का समर्थन करने के साधन के रूप में अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय आर्थिक संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की गई।

    तालिबान की प्रतिक्रिया और कूटनीतिक सहभागिता:

    • तालिबान का रुख: तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने “सामान्य वैध हितों” के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ जुड़ने के लिए प्रशासन की तत्परता व्यक्त की। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पिछले दशकों में विदेशी हस्तक्षेपों से अफ़ग़ानिस्तान की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है।
    • मान्यता का अभाव: कोई भी देश आधिकारिक तौर पर तालिबान शासन को वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं देता है। हालाँकि, सभी मॉस्को प्रारूप देश और पर्यवेक्षक राष्ट्र काबुल में राजनयिक मिशन बनाए रखे हुए हैं।
    • भारत की भागीदारी: भारत, जिसने जून 2022 में “तकनीकी मिशन” के रूप में अफगानिस्तान में अपना दूतावास फिर से खोला, अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के संबंध में तालिबान के साथ चर्चा में शामिल रहा है।

    मॉस्को प्रारूप के बारे में:​

    • अफगानिस्तान पर एक संवाद मंच, 2017 में शुरू किया गया।
    • क्षेत्रीय शांति और सहयोग को बढ़ावा देना।
    • 6 संस्थापक सदस्य; अब 9 सदस्य: चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान।
  3. प्राचीन ग्रंथों से ‘शासन कला की भारतीय विरासत’ को फिर से खोजने के लिए सेना का प्रोजेक्ट उद्भव :
  4. प्रसंग: भारतीय सेना ने एक पहल शुरू की है, जिसका नाम प्रोजेक्ट उद्भव है।

    प्रोजेक्ट उद्भव:

    • भारतीय सेना द्वारा यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) के सहयोग से शुरू किया गया।​
    • “शासन कला, युद्धकला, कूटनीति और भव्य रणनीति” के प्राचीन भारतीय ग्रंथों से प्राप्त “शासन कला और रणनीतिक विचारों की गहन भारतीय विरासत” को फिर से खोजना।
    • इसके संबंध में, USI 21 और 22 अक्टूबर को एक सैन्य विरासत महोत्सव आयोजित करेगा।
    • दूसरा लक्ष्य “स्वदेशी रणनीतिक शब्दावली” विकसित करना है।
    • कुल मिलाकर इसका उद्देश्य सदियों पुराने ज्ञान को आधुनिक सैन्य शिक्षाशास्त्र के साथ एकीकृत करना है।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारकों पर विचार कीजिए:

  1. अंतरउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ)
  2. तिब्बती पठार पर गहन निम्न दबाव का निर्माण
  3. उपोष्णकटिबंधीय जेट धारा

उपर्युक्त कथनों में से कितने गलत है/हैं?

  1. केवल एक
  2. केवल दो
  3. सभी तीनों
  4. कोई नहीं

उत्तर: d

व्याख्या: सभी कथन सही हैं।

प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. मॉस्को प्रारूप अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया पर एक संवाद मंच है।
  2. भारत मास्को प्रारूप का पक्षकार नहीं है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: a

व्याख्या: मॉस्को प्रारूप रूस, अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत के विशेष प्रतिनिधियों के बीच परामर्श के लिए छह-पक्षीय तंत्र के आधार पर पेश किया गया था।

प्रश्न 3. हाल ही में समाचारों में देखी गई प्रोजेक्ट उद्भव पहल निम्नलिखित में से किस विकल्प से संबंधित है?

  1. जीवाश्मों का विश्लेषण
  2. वनस्पतियों और जीवों के विकास का अध्ययन
  3. गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए पहल
  4. प्राचीन ग्रंथों से ‘शासन कला की भारतीय विरासत’ की पुनः खोज

उत्तर: d

व्याख्या: प्रोजेक्ट उद्भव पहल का उद्देश्य प्राचीन ग्रंथों से ‘शासन कला की भारतीय विरासत’ को फिर से खोजना है।

प्रश्न 4. हाल ही में समाचारों में देखे गए ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) मिशन ने निम्नलिखित में से किस क्षुद्रग्रह से नमूने एकत्र किए?

  1. क्षुद्रग्रह रयुगु
  2. क्षुद्रग्रह बेन्नू
  3. क्षुद्रग्रह इटोकावा
  4. क्षुद्रग्रह एपोफिस

उत्तर: b

व्याख्या: ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) मिशन ने क्षुद्रग्रह 101955 बेन्नू से नमूना एकत्र किया।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से कौन-सा द्वीप दक्षिण चीन सागर में मौजूद नहीं है?

  1. स्प्रैटली द्वीप समूह
  2. पार्सल द्वीप समूह
  3. स्कारबोरो शोल
  4. रीयूनियन द्वीप

उत्तर: d

व्याख्या: रीयूनियन द्वीप हिंद महासागर में मौजूद है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

  1. अल नीनो और हिंद महासागर द्विध्रुव भारतीय मानसून को कैसे प्रभावित करते हैं? 2023 दक्षिण-पश्चिम मानसून सीज़न के विशेष संदर्भ में विश्लेषण कीजिए। (How do El Nino and Indian Ocean Dipole affect the Indian Monsoon? Analyze with a special reference to the 2023 South-West monsoon season.)
  2. (10 अंक 150 शब्द) (सामान्य अध्ययन – I, भूगोल)​

  3. ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) मिशन हमें न केवल पृथ्वी पर जीवन के निर्माण की अंतर्दृष्टि में मदद करेगा, बल्कि इसके विनाश को रोकने में भी मदद करेगा। विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। ऐसे मिशन से और क्या लाभ जुड़े हो सकते हैं? (The OSIRIS-Rex mission will help us not just with the insights into the creation of life on earth, but also with how to prevent its destruction. Elaborate. What other benefits can be associated with such a mission?)

(15 अंक 250 शब्द) (सामान्य अध्ययन – III, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)​

(नोट: मुख्य परीक्षा के अंग्रेजी भाषा के प्रश्नों पर क्लिक कर के आप अपने उत्तर BYJU’S की वेव साइट पर अपलोड कर सकते हैं।)