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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 05 January, 2023 UPSC CNA in Hindi

05 जनवरी 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

  1. एक उच्चस्तरीय लद्दाख समिति का गठन क्यों किया गया है?

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण:

  1. जल्लीकट्टू: सांस्कृतिक प्रथा या क्रूरता?

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

राजव्यवस्था:

  1. स्थानीय स्वशासन:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. तलकावेरी दक्षिण भारत की शीर्ष ‘स्टार पार्टी’ गंतव्य है:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. केंद्र ने हरित हाइड्रोजन मिशन के लिए ₹19,744 करोड़ आवंटित किए:
  2. तेजाब हमले की पीड़िताएं एक सुसंगत कानून एवं कानूनी प्रक्रिया के अभाव में न्याय से वंचित रह गईं:
  3. ट्रेन टिकट प्लेटफॉर्म रेलयात्री डेटा लीक से प्रभावित:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

जल्लीकट्टू: सांस्कृतिक प्रथा या क्रूरता?

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण:

विषय: पर्यावरण संरक्षण

प्रारंभिक परीक्षा: जल्लीकट्टू से संबंधित तथ्य।

मुख्य परीक्षा: जल्लीकट्टू के अभ्यास के पक्ष और विपक्ष में दिए गए विभिन्न तर्कों का मूल्यांकन।

संदर्भ:

  • आने वाले हफ्तों में जल्लीकट्टू की रक्षा करने वाले तमिलनाडु के वर्ष 2017 के कानून को खत्म करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा अपना फैसला सुनाए जाने की उम्मीद है।

जल्लीकट्टू:

  • जल्लीकट्टू एक पारंपरिक खेल है जिसमें सांडों को वश में करना शामिल है।
  • जल्लीकट्टू सम्पूर्ण तमिलनाडु में जनवरी के महीने में मट्टू पोंगल (पोंगल त्योहार के तीसरे दिन) पर मनाया जाता है।
  • जल्लीकट्टू को मंजू विरत्तु (Manju Virattu) या इरु थजुवुथल (Eru Thazhuvuthal) के नाम से भी जाना जाता है।
  • जल्लीकट्टू में पुरुष खुले मैदान में छोड़े गए उत्तेजित सांडों के कूबड़ को पकड़ने के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं।

जल्लीकट्टू से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Jallikattu

पृष्ठभूमि:

  • मई 2014 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए.नागराजा मामले के फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि यह एक क्रूर खेल प्रथा है जो जानवर को अनावश्यक दर्द और पीड़ा देती है।
  • जनवरी 2017 में चेन्नई के मरीना बीच पर इस खेल पर प्रतिबन्ध का बड़े पैमाने पर विरोध किया गया जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों से एक कानून बनाने की मांग की गई, जो पारंपरिक खेल पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध को रद्द कर दे।
    • कई प्रमुख हस्तियों ने भी विरोध का समर्थन किया था।
  • इस संदर्भ में, तमिलनाडु सरकार जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अध्यादेश 2017 लेकर आई थी जो जल्लीकट्टू को जारी रखने की अनुमति देता है।
    • राज्य सरकार ने बाद में अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के लिए एक विधेयक पारित कराया, जिसके परिणामस्वरूप यह मामला अदालत में पहुँचा और मामला फरवरी 2018 में संवैधानिक पीठ को भेज दिया गया।

जल्लीकट्टू मामला:

  • इस मामले में अहम सवाल यह है कि क्या जल्लीकट्टू को संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत सामूहिक सांस्कृतिक अधिकार के रूप में अनुमति प्रदान कर उसे संरक्षण दिया जाना चाहिए।
    • संविधान के भाग III के तहत उल्लिखित अनुच्छेद 29 (1) एक मौलिक अधिकार है जिसका उद्देश्य नागरिकों के शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करना है।
    • अनुच्छेद 29 (1) भारत में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की संस्कृति, भाषा और लिपि को संरक्षण का अधिकार प्रदान करता है, जिनकी एक विशिष्ट संस्कृति, भाषा या लिपि है।
  • अदालत इस बात की जांच करेगी कि क्या पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (जल्लीकट्टू का संचालन) 2017 के नियम जानवरों के प्रति क्रूरता को बनाए रखते हैं या क्या वे वास्तव में सांडों की देशी नस्ल के अस्तित्व और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।
  • इस संदर्भ में यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वर्ष 2014 में उच्चतम न्यायालय ने जल्लीकट्टू अधिनियम, 2009 के तमिलनाडु विनियमन को रद्द कर दिया था, जिसने जल्लीकट्टू प्रथा की अनुमति दी थी।
    • उस समय अदालत ने इस तथ्य की जांच की थी कि क्या जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 48 के अनुरूप थे।
      • अनुच्छेद 48 भारतीय संविधान के भाग-IV के तहत राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का एक हिस्सा है।
      • अनुच्छेद 48 राज्य को गायों और बछड़ों और अन्य दुधारू पशुओं के वध पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास करने का निर्देश देता है और राज्य से कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर संगठित करने का प्रयास करने का भी आग्रह करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने भी सवालों या बहसों पर गौर किया कि क्या जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ (कर्नाटक और महाराष्ट्र में) जैसे पारंपरिक कार्यक्रमों को जारी रखने की अनुमति देने के लिए अधिनियमित विभिन्न कानून पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के उद्देश्यों का समर्थन करेंगे।

जल्लीकट्टू के पक्ष और विपक्ष में तर्क:

पक्ष:

  • जल्लीकट्टू खेल को तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम माना जाता है और इस खेल का प्रभाव जाति और पंथ की सीमाओं से परे है।
  • तमिलनाडु राज्य सरकार के अनुसार, जल्लीकट्टू जैसा एक आयोजन जो सदियों पुराना है और एक समुदाय की पहचान के प्रमुख प्रतीकों में से एक है, को कठोर प्रतिबंध लगाने के बजाय समय के साथ विनियमित और उसमें सुधार किया जाना चाहिए।
  • राज्य सरकार के अनुसार इस तरह के आयोजनों या प्रथाओं पर प्रतिबंध संस्कृति और समुदाय की संवेदनशीलता के खिलाफ होगा और तर्क दिया कि खेल करुणा और मानवता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है।
  • जल्लीकट्टू के समर्थकों का यह भी कहना है कि यह आयोजन पशुधन की स्वदेशी नस्ल के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

विपक्ष:

  • जल्लीकट्टू के आलोचकों का मुख्य तर्क यह है कि जानवरों का जीवन मनुष्यों के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है और जानवरों के प्रति किसी भी प्रकार की हिंसा और क्रूरता का मनुष्यों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
  • आलोचकों के अनुसार, पारंपरिक प्रथा के नाम पर जानवरों पर “अत्यधिक क्रूरता” की जाती है।
  • आलोचकों का यह भी मत है कि स्वतंत्रता प्रत्येक जीव में निहित है चाहे उसके जीवन का स्वरूप कुछ भी हो और इसलिए पशुओं को भी उसी स्तर की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए जो मनुष्यों को दी जाती है।
  • याचिकाकर्ताओं ने इस खेल के दौरान मनुष्यों के साथ-साथ सांडों की मृत्यु और चोटों के विभिन्न उदाहरणों और रिपोर्टों का भी उल्लेख किया है।
  • आलोचकों ने सती और दहेज जैसी प्रथाओं से भी इस पारंपरिक खेल की तुलना की है, जिन्हें कभी संस्कृति का हिस्सा माना जाता था और फिर कानून के माध्यम से इन्हे प्रतिबंधित कर दिया गया।

इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए 04 जनवरी 2023 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण का आलेख देखें।

सारांश:

  • परंपरा और संस्कृति परिवर्तन से अछूती नहीं है और इस संदर्भ में, न्यायालय के साथ-साथ केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारों को जल्लीकट्टू के अभ्यास से जुड़ी सांस्कृतिक और पारिस्थितिक चिंताओं को संतुलित करने वाली आम सहमति तक पहुंचने की दिशा में काम करना चाहिए।

एक उच्चस्तरीय लद्दाख समिति का गठन क्यों किया गया है?

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय: भारत का संविधान और संघीय ढांचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ।

प्रारंभिक परीक्षा: संविधान की छठी अनुसूची।

मुख्य परीक्षा: संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक क्षेत्र को शामिल करने का महत्व।

संदर्भ:

  • गृह मंत्रालय ने केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है।

विवरण:

  • राज्य मंत्री की अध्यक्षता वाली समिति क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और सामरिक महत्व को देखते हुए क्षेत्र की अनूठी संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए आवश्यक विभिन्न कार्यों पर चर्चा करेगी।
  • इसके अलावा, समिति को भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ लद्दाख के लोगों के लिए रोजगार सृजित करने के उपायों की सिफारिश करने का कार्य भी सौंपा गया है।
  • यह समिति समावेशी विकास की रणनीति बनाने में मदद करेगी तथा लेह और कारगिल के लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी जिला परिषदों के सशक्तिकरण जैसे मुद्दों का समाधान करेगी।

समिति के गठन की आवश्यकता:

  • अगस्त 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत संसद द्वारा तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को दिए गए विशेष दर्जे को हटाए जाने के बाद से लद्दाख में विभिन्न नागरिक समाज समूह भूमि, संसाधनों और रोजगार की सुरक्षा के लिए उपाय तैयार करने की मांग कर रहे हैं।
  • क्योंकि वहां इस तरह की चिंताएँ बढ़ रही हैं कि बड़े व्यवसाय और समूह स्थानीय लोगों से नौकरियां और ज़मीन छीन सकते हैं।
  • लद्दाख में नागरिक समाज समूहों ने इस क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की है।
  • वर्ष 2020 में, “छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा के लिए पीपुल्स मूवमेंट” जिसे “शीर्ष निकाय, लेह” (Apex Body, Leh) भी कहा जाता है, का गठन किया गया था।
    • इस निकाय ने घोषणा की है कि मांगें पूरी नहीं होने पर आगामी जिला स्वायत्त परिषद चुनाव का बहिष्कार किया जायेगा।
  • शीर्ष निकाय और कारगिल लोकतान्त्रिक गठबंधन (Kargil Democratic Alliance (KDA)) इस क्षेत्र के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों के लिए संयुक्त रूप से लड़ने के लिए एक साथ आए हैं और अगस्त 2022 से, दोनों संगठनों ने लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य की मांग को पुनर्जीवित किया है।

संविधान की छठी अनुसूची:

  • संविधान की छठी अनुसूची का उद्देश्य स्थानीय आबादी की भूमि, रोजगार और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करना है।
  • संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची स्वायत्त विकास परिषदों (ADCs) के निर्माण के माध्यम से स्थानीय और जनजातीय समुदायों की स्वायत्तता की रक्षा करती है जो भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि पर कानून बना सकती हैं।
  • वर्तमान में दस स्वायत्त विकास परिषदें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में मौजूद हैं।

संविधान की छठी अनुसूची के सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:

Sixth Schedule of the Constitution

सरकार का रुख:

  • गृह मंत्रालय ने यह कहकर लद्दाख को विशेष दर्जा देने पर अपना पक्ष दोहराया है कि छठी अनुसूची के तहत एक क्षेत्र को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य उनके समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना है, जो इस केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन इसके निर्माण के बाद से ही करता आ रहा है।
  • इसके अलावा, मंत्रालय ने लद्दाख को उसकी समग्र विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त धनराशि प्रदान की है।
  • MHA ने एक रिपोर्ट के माध्यम से यह भी कहा है कि UT के प्रशासन ने अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण को 10% से बढ़ाकर 45% कर दिया है और इससे आदिवासी आबादी को उनके विकास में मदद मिलेगी।

सारांश:

  • स्थानीय नागरिक समूहों की लगातार मांग के बाद सरकार ने लद्दाख के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है। हालांकि, नई समिति के सदस्यों को लगता है कि मंत्रालय के आदेश में स्पष्टता की कमी है क्योंकि इसमें संविधान की छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की प्रमुख मांग के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं है।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

स्थानीय स्वशासन:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय: स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।

मुख्य परीक्षा: स्थानीय स्वशासन के विचार का पुनःप्रवर्तन।

संदर्भ:

  • इस लेख में स्थानीय स्वशासन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है।

पृष्ठभूमि:

  • दिसंबर 1992 में संसद द्वारा 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन पारित किए गए जिनके माध्यम से क्रमशः पंचायतों और नगर पालिकाओं की स्थापना की गई।
  • इन संशोधनों में अनिवार्य किया गया है कि राज्य सरकारें हर क्षेत्र में पंचायतों ( panchayats) (गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर) और नगर पालिकाओं ( municipalities) (नगर निगमों, नगर परिषदों और नगर पंचायतों के रूप में) का गठन करें।
  • इन अधिनियमों में स्थानीय सरकारों को कार्यों, निधियों और कर्मियों के हस्तांतरण के माध्यम से संघीय ढांचे में शासन के तीसरे स्तर की स्थापना करने की मांग की गई है।
  • लेकिन इन सुधारों के बावजूद, नगरपालिका सरकारों को अक्सर नागरिकों की सबसे बुनियादी जरूरतों, जैसे विश्वसनीय जल आपूर्ति और चलने योग्य फुटपाथों को भी पूरा करने में अप्रभावी पाया जाता है।

स्थानीय स्वशासन का नियामक आधार:

  • स्थानीय स्वशासन सहायकता की अवधारणा से जुड़ा हुआ है और विशिष्ट रूप से दो व्यापक तर्कों पर आधारित है।
    • पहला, यह सार्वजनिक वस्तुओं की कुशल व्यवस्था का प्रावधान करता है क्योंकि छोटे अधिकार क्षेत्र वाली सरकारें अपने निवासियों की प्राथमिकताओं के अनुसार सेवाएं प्रदान कर सकती हैं।
    • दूसरा, यह जमीनी लोकतंत्र को बढ़ावा देता है क्योंकि जो सरकारें लोगों के करीब होती हैं, वे नागरिकों को सार्वजनिक मामलों से अधिक आसानी से जुड़ने का अवसर देती हैं।
  • स्थानीय लोकतंत्र को मजबूत करना और आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यों को सौंपना बुनियादी मूल्य हैं जिन्हें संशोधनों के माध्यम से प्राप्त करना है।
    • उपरोक्त संशोधनों की मांग है कि राज्य नगर पालिकाओं और पंचायतों को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं और कार्यक्रमों को बनाने और चलाने की क्षमता सहित “उन्हें स्व-शासन के संस्थानों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने” के लिए आवश्यक अधिकार प्रदान करें।
    • वे स्थानीय चुनावों के नियमित संचालन को भी अनिवार्य करते हैं, स्थानीय परिषदों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण प्रदान करते हैं, और पंचायतों में ग्राम सभाओं और नगर निगमों में वार्ड समितियों जैसे भागीदारी मंचों की स्थापना करते हैं।

इन संशोधनों की सीमाएं:

  • स्थानीय सरकारें, विशेष रूप से नगरपालिकाएं, मुख्य रूप से 74वें संशोधन की अंतर्निहित सीमाओं के कारण सीमित स्वायत्तता और अधिकार के साथ काम करती हैं, जैसे शक्तियों के हस्तांतरण और स्थानीय कर लगाने के संबंध में राज्यों को दिया गया विवेकाधिकार।
  • राज्य सरकारों और अदालतों की संशोधन को लागू करने और व्याख्या करने में विफलता भी स्थानीय सरकारों के अधिकार को सीमित करती है।
    • चूंकि शहर आर्थिक शक्ति के स्रोत हैं और शहरी भूमि को नियंत्रित करना राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए राज्य सरकारें 74वें संशोधन को लागू करने के लिए अनिच्छुक हैं।
    • अदालतों द्वारा 74वें संशोधन की संकीर्ण व्याख्या ने राज्य सरकारों को शहरों पर अपना नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति दी है।

बेहतर शासन के लिए 74वें संवैधानिक संशोधन पर पुनर्विचार:

  • बिहार नगरपालिका (संशोधन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने वाला पटना उच्च न्यायालय का हालिया आदेश पथ-प्रवर्तक है क्योंकि इसने 74वें की भावना के संदर्भ में राज्य नगरपालिका कानूनों का परीक्षण किया और यह भारत के संघीय ढांचे में स्थानीय सरकारों की स्थिति को संभावित रूप से पुनर्परिभाषित कर सकता है।
    • अदालत ने यह भी बताया कि हालांकि राज्य विधानमंडल के पास नगर निकायों से संबंधित मामलों पर कानून बनाने की शक्ति है, हालांकि, स्थानीय निकायों के कामकाज में इसकी भागीदारी कम से कम होनी चाहिए।
    • बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 में किए गए संशोधनों के आधार पर, अन्य बातों के साथ-साथ, ग्रेड-सी और डी के कर्मचारियों की नियुक्ति, चयन, पोस्टिंग और स्थानांतरण की सभी शक्तियां राज्य सरकार द्वारा ले ली गईं।
  • स्थानीय सरकारों को एक अनुल्लंघनीय और स्पष्ट रूप से परिभाषित विधायी और कार्यकारी क्षेत्राधिकार, स्थानीय नौकरशाही पर प्रभावी नियंत्रण तथा पर्याप्त और गैर-विवेकाधीन राजकोषीय विचलन, एवं हमारे बहुल लोकतंत्र में विकृतियों और असंतुलन को ठीक करने के लिए स्थानीय संस्थानों और सार्वजनिक सेवाओं पर हितधारकों का प्रत्यक्ष अधिकार के साथ सशक्त होना चाहिए।

सारांश:

  • जैसे-जैसे भारत अपनी राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में एक केंद्रीकृत बदलाव के दौर से गुजर रहा है, वैसे-वैसे संघवाद का एक नया रूप भी उदित हो रहा है। संघवाद पर बहस में केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर सरकारों के बीच शक्ति को कैसे विभाजित और साझा किया जाना चाहिए, इस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए क्योंकि स्थानीय सरकारें, मानक और संरचनात्मक रूप से, संविधान के संघीय ढांचे का एक अभिन्न अंग हैं।

प्रीलिम्स तथ्य:

1. तालकावेरी दक्षिण भारत की शीर्ष ‘स्टार पार्टी’ गंतव्य है:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं तकनीक:

विषय: अंतरिक्ष के क्षेत्र में जागरूकता।

प्रारंभिक परीक्षा: डार्क स्काई रिजर्व्स और बोर्टल स्केल से सम्बन्धित तथ्य।

विवरण:

  • कर्नाटक के कोडागु जिले में तलकावेरी, जिसे कावेरी नदी का उद्गम स्थल माना जाता है, दक्षिण भारत के हानले (Hanle) के रूप में उभरा है, क्योंकि खगोलविदों द्वारा इस क्षेत्र में “स्टार पार्टियों” की मेजबानी करते देखा जाता है।
  • हानले, जो लद्दाख में स्थित है, अपने स्वच्छ आकाश और न्यूनतम प्रकाश प्रदूषण के लिए प्रसिद्ध है।
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST)) ने हानले में भारत के पहले डार्क स्काई रिजर्व की स्थापना की घोषणा की है।
  • डार्क स्काई रिज़र्व्स उन क्षेत्रों को दिए गए पदनाम हैं जिनकी नीतियां यह सुनिश्चित करने के लिए होती हैं कि संबंधित भूमि या इस क्षेत्र के एक हिस्से में न्यूनतम कृत्रिम प्रकाश हस्तक्षेप हो।
  • भारत के दक्षिणी भागों में अधिकांश डार्क स्काई स्थल पश्चिमी घाटों के बीच स्थित हैं और तालकावेरी को आकाश का अवलोकन करने और निम्न प्रकाश प्रदूषण के कारण स्टार पार्टी के लिए सबसे आदर्श स्थान माना जाता है।
  • किसी स्थान में रात्रि के आकाश की चमक को मापने के लिए खगोलविद बोर्टल पैमाने का उपयोग करते हैं जो नौ स्तर का संख्यात्मक पैमाना है।
    • संख्यात्मक पैमाना जितना कम होगा डार्क स्काई स्थल उतना ही बेहतर होगा।
    • उदाहरण: हानले बोर्टल वन स्काई, तालाकावेरी बोर्टल टू और बेंगलुरु बोर्टल नाइन के रूप में क्वालीफाई करेगा।

डार्क स्काई रिजर्व्स के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:

Dark Sky Reserves

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. केंद्र ने हरित हाइड्रोजन मिशन के लिए ₹19,744 करोड़ आवंटित किए:

चित्र स्रोत:The Hindu

  • भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने के उद्देश्य से, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ₹19,744 करोड़ के प्रारंभिक परिव्यय के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी है।
  • सरकार का मानना है कि इस कदम से वर्ष 2030 तक वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 50 मिलियन टन (MT) तक कम करने में मदद मिलेगी साथ ही कुल जीवाश्म ईंधन आयात को कम करने में मदद मिलेगी, जिसकी कीमत ₹1 लाख करोड़ है।
  • सरकार का यह भी मानना है कि यह मिशन वर्ष 2030 तक लगभग 125 GW की संबद्ध नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के साथ प्रति वर्ष न्यूनतम 5 MMT की हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता के विकास की सुविधा प्रदान करेगा।
  • यह मिशन अनुसंधान और विकास (R&D) के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी ढांचे को सुविधाजनक बनाने में मददगार साबित होगा।
  • हाइड्रोजन अब सबसे अधिक मांग वाला ईंधन बन गया है क्योंकि इसके दहन से केवल भाप निकलती है।
  • सरकार ने वर्ष 2030 तक हाइड्रोजन की लागत को आधा करने के लिए विभिन्‍न प्रोत्‍साहनों की भी घोषणा की है, जैसे विनिर्माताओं के लिए प्राथमिक बिजली आपूर्ति, और वितरण तथा पारेषण लागत पर रियायतें और छूट प्रदान करना।
  1. तेजाब हमले की पीड़िताएं एक सुसंगत कानून एवं कानूनी प्रक्रिया के अभाव के कारण न्याय से वंचित रह गईं:
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, एसिड (तेजाब) हमलों की घटनाओं की संख्या वर्ष 2011 में 83 से बढ़कर वर्ष 2021 में 176 हो गई थी (जबकि वर्ष 2019 में 249 मामले दर्ज किए गए थे)।
  • पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में एसिड हमलों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई है, जो कि वार्षिक आधार पर देश में रिपोर्ट किए गए सभी मामलों का लगभग 50% है।
  • मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि एसिड (तेजाब) की बिक्री को विनियमित करने एवं इससे संबंधित सजा को सुनिश्चित करने के लिए एक सुसंगत कानून की कमी इस प्रकार की बढ़ती घटनाओं के प्रमुख कारण हैं।
  • वर्ष 2021 में इस अपराध के आरोप में 153 पुरुषों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किए गए थे जबकि इसमें केवल सात लोगों को इस अपराध का दोषी ठहराया गया था।
  • ऐसे अपराधों को कम करने के लिए विशेषज्ञ बांग्लादेश का उदाहरण देते हैं जहां सरकार द्वारा बांग्लादेश तेज़ाब नियंत्रण अधिनियम, 2002 और तेज़ाब अपराध रोकथाम अधिनियम, 2002 लागू करने के बाद तेज़ाब हमलों की संख्या में कमी देखी गई है।
  • भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग ( National Commission for Women) ने वर्ष 2008 में अपराधों की रोकथाम (तेजाब द्वारा) विधेयक का मसौदा तैयार किया था, लेकिन इसे अभी तक प्रकाश में नहीं लाया गया या सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं करवाया गया।
  • हालांकि वर्ष 2013 में निर्भया गैंगरेप मामले और जस्टिस वर्मा आयोग की रिपोर्ट के बाद, सरकार ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code (IPC)) में संशोधन किया और तेज़ाब हमलों को एक अलग अपराध के रूप में मान्यता दी, जिसमें न्यूनतम 10 साल की सजा और अधिकतम उम्रकैद की सजा थी।
  • साथ ही, भारत में एसिड की बिक्री और खरीद को विष अधिनियम, 1919 (Poison Act, 1919) के तहत विनियमित करने की मांग की गई है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के एक अधिवक्ता के अनुसार, एक अकेला कानून एसिड हमले के पीड़ितों को न्याय दिलाने में मदद कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि एसिड और इस प्रकार के हानिकारक केमिकल बाजार में आसानी से उपलब्ध न हों।
  1. ट्रेन टिकट प्लेटफॉर्म रेलयात्री डेटा लीक से प्रभावित:
  • ट्रेन टिकटिंग प्लेटफॉर्म रेलयात्री ने पुष्टि की है कि उसे 28 दिसंबर, 2022 को डेटा ब्रीच का सामना करना पड़ा था।
  • अधिकारियों के अनुसार रेलयात्री-पंजीकृत जानकारी जैसे उम्र, ईमेल और फोन नंबर इत्यादि में अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा सेंध लगाए जाने की आशंका है लेकिन किसी संवेदनशील जानकारी से छेड़छाड़ नहीं की गई थी।
  • ब्रीच के परिणामस्वरूप लगभग 30 मिलियन उपयोगकर्ताओं का रिकॉर्ड डार्क वेब पर बेचे जाने का अनुमान लगाया गया है।
  • एक फर्म इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (Indian Computer Emergency Response Team (CERT-in) ) के साथ ब्रीच की जांच करने और इसकी सुरक्षा प्रणालियों का ऑडिट करने के लिए काम कर रही है।
  • इस संदर्भ में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 ( Digital Personal Data Protection Bill, 2022 ) डेटा ब्रीच की स्थिति में दंड का प्रावधान करता है, लेकिन इस कानून का पारित होना अभी बाकी है।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. काला-अज़ार या काला बुखार के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. यह एशियाई बाघ मच्छरों के काटने से होने वाली एक परजीवी बीमारी है।
  2. यह पूरे देश में एक सूचनीय बीमारी है।
  3. हाल ही में भारत से इस बीमारी को विलोपित घोषित कर दिया गया है।

गलत कथनों का चयन कीजिए:

  1. केवल 1 और 2
  2. केवल 2 और 3
  3. केवल 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: काला-अज़ार या काला बुखार एक प्रोटोजोआ परजीवी रोग है, जो सेंडफ्लाई के काटने से फैलता है।
  • कथन 2 गलत है: काला-अज़ार या काला ज्वर रोग बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में स्थानिक है।
    • यह इन राज्यों में एक सूचनीय रोग है।
  • कथन 3 गलत है: भारत 2023 तक देश से काला-अज़ार को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है।
    • काला अजार के मामलों में 44,533 (2007) से 834 (2022) तक 98.7% की गिरावट आई है।
    • 99.8% स्थानिक ब्लॉक पहले ही उन्मूलन की स्थिति (<1 मामला/10,000) प्राप्त कर चुके हैं और केवल एक ब्लॉक यानी झारखंड के पाकुड़ जिले का लिट्टीपारा स्थानिक श्रेणी में है।

प्रश्न 2. आभा (ABHA) से आप क्या समझते हैं?

  1. आयुष्मान भारत के तहत स्वास्थ्य कर्मियों की एक नई श्रेणी।
  2. अंत्योदय अन्न योजना के तहत लाभार्थियों को ट्रैक करने के लिए एक पोर्टल।
  3. आयुष्मान भारत योजना के तहत रोगियों की पहचान के लिए एक स्वास्थ्य खाता संख्या।
  4. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दिया गया नया पदनाम।

उत्तर: c

व्याख्या:

  • आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता (ABHA) राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण का एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य व्यूअर एप्लीकेशन है।
  • ABHA एक 14 अंकों की यूनिक संख्या है जिसका उपयोग आयुष्मान भारत योजना के तहत कई स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं में लोगों की पहचान करने, उन्हें प्रमाणित करने और उनके स्वास्थ्य रिकॉर्ड को थ्रेड करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 3. सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. इसमें राष्ट्रीय प्रजनन प्रौद्योगिकी और सरोगेसी बोर्ड के लिए प्रावधान किया गया है।
  2. अधिनियम भारत में सरोगेसी को भी नियंत्रित करता है।
  3. अधिनियम ने एआरटी के उपयोग के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए ऊपरी आयु सीमा निर्धारित की है।

कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 1 और 3
  3. केवल 2 और 3
  4. केवल 3

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है:सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 में राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी और सरोगेसी बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है।
  • कथन 2 गलत है: संसद ने दिसंबर 2021 में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम और सरोगेसी अधिनियम पारित किया।
    • सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम का उद्देश्य ART उद्योग को विनियमित करना है।
    • जबकि सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 भारत में सरोगेसी को नियंत्रित करता है।
  • कथन 3 सही है: सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम की धारा 21(g) के तहत, ART उपचार के लिए ऊपरी आयु सीमा पुरुषों के लिए 55 वर्ष और महिलाओं के लिए 50 वर्ष तय की गई है।

प्रश्न 4. सैटेलाइट टाउनशिप के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. वे मुख्य शहर की आबादी को कम करने के लिए बनाए गए हैं।
  2. वे मुख्य शहर के उपनगरों का हिस्सा हैं।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: एक सैटेलाइट टाउन या सैटेलाइट शहर शहरी नियोजन में एक अवधारणा है और इसे मुख्य शहरों या शहर के केंद्रों की आबादी को कम करने के लिए विकसित किया गया है।
  • कथन 2 गलत है: सैटेलाइट शहर उपनगरों से भिन्न होते हैं क्योंकि सैटेलाइट शहरों के अपने केंद्र होते हैं जबकि उपनगर केवल एक बड़े शहर का विस्तार होते हैं।

प्रश्न 5. प्रश्न 5. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः (PYQ 2019)

  1. फोटोवोल्टिक इकाइयों में प्रयुक्त सिलिकॉन वेफर्स के निर्माण में भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा देश है।
  2. सौर प्रशुल्क भारत के सौर ऊर्जा निगम द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: चीन सिलिकॉन का दुनिया का सबसे बड़ा निर्माता है, इसके बाद रूस, अमेरिका और ब्राजील का स्थान है।
    • भारत फोटोवोल्टिक इकाइयों में उपयोग किए जाने वाले सिलिकॉन और सिलिकॉन वेफर्स के शीर्ष उत्पादकों में से एक नहीं है।
  • कथन 2 गलत है: केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) भारत में सौर टैरिफ निर्धारित करता है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. समय और स्थान (Time and Space) के विरुद्ध भारत में महिलाओं के लिए निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस-2; सामाजिक न्याय)

प्रश्न 2. शहरी स्थानीय निकायों का सुदृढ़ीकरण भारत में सही मायने में संघीय राष्ट्र की नींव रख सकता है। क्या आप सहमत हैं? समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस-2; राजव्यवस्था)