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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 15 January, 2023 UPSC CNA in Hindi

15 जनवरी 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

  1. ऑस्ट्रेलिया के साथ अंतरिम मुक्त व्यापार समझौता
  2. वुल्फ वारियर कूटनीति

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

  1. भारत में सूक्ष्म वित्त संस्थाएँ

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

आपदा प्रबंधन:

  1. भोपाल गैस मामले में केंद्र क्या चाहता है?

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:

  1. प्रदूषित हवा के मामलों में भारतीय शहरों की स्थिति

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. सोल ऑफ स्टील एंड्यूरेन्स चैलेंज (Soul of Steel Endurance Challenge)

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. नीलकुरिंजी

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

ऑस्ट्रेलिया के साथ अंतरिम मुक्त व्यापार समझौता

विषय: भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

मुख्य परीक्षा: भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते के महत्वपूर्ण पहलू और भारत के लिए प्रमुख लाभ

संदर्भ:

  • भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (AI-ECTA) को हाल ही में नवंबर 2022 में ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा अनुमोदित किया गया था।

भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA):

  • भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता एक दशक से भी अधिक समय में किसी विकसित देश के साथ भारत का पहला व्यापार समझौता है।
  • समझौते में दो मित्र देशों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों के समग्र क्षेत्र को शामिल किया गया है।
  • आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते के तहत वस्तुओं में व्यापार, उत्पत्ति के नियम, सेवाओं में व्यापार, व्यापार में तकनीकी बाधाएं (TBT), स्वच्छता और पादप स्वच्छता (SPS) उपाय, विवाद समाधान, तटस्‍थ व्यक्तियों की आवाजाही, दूरसंचार, सीमा शुल्क प्रक्रियाएं, दवा उत्पाद और अन्य क्षेत्रों में सहयोग को शामिल किया गया है।

भारतीय फार्मा क्षेत्र के लिए आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते का महत्व:

  • इस समझौते से ऑस्ट्रेलिया में सरलीकृत नियामक प्रक्रियाओं के कारण भारतीय दवा उद्योग को लाभ होगा।
    • ऑस्ट्रेलियाई सरकार फार्मास्युटिकल उत्पादों पर एक अलग अनुबंध के लिए भी सहमत हो गई है। इससे उन सभी भारतीय दवा कंपनियों और दवाओं को लाभ होगा जिन्हें यूरोपीय संघ या कनाडा में FDA की मंजूरी मिली हुई है।
  • ऑस्ट्रेलिया $14.6 बिलियन का फार्मा बाजार है, जिसमें जेनरिक दवाओं की भागीदारी 12% और ओवर-द-काउंटर दवा(OTC) उत्पादों की भागीदारी 18% है।
  • दिसंबर 2022 में लागू हुआ यह द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता भारत के फार्मास्यूटिकल्स के लिए शुल्क-मुक्त पहुंच प्रदान करता है।
    • 2020-21 में, ऑस्ट्रेलिया को भारतीय फार्मा कंपनियों का निर्यात $387 मिलियन था।
  • यह समझौता बाजार पहुंच को सुविधाजनक बनाने के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान और कनाडा जैसे देशों की नियामक एजेंसियों से डेटा प्राप्त करके फार्मास्युटिकल उत्पादों के अनुमोदन में तेजी लाएगा।
  • यह समझौता तुलनीय नियामक प्राधिकरणों की गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज रिपोर्ट्स का उपयोग करके फैक्ट्री निरीक्षणों की पुनरावृत्ति को रोकेगा और अन्य विकसित देशों के साथ भारत की मुक्त व्यापार वार्ताओं के लिए फायदेमंद होगा।
    • चूंकि भारत में सबसे अधिक USFDA-अनुमोदित सुविधाएं हैं और यह अपने फार्मास्युटिकल उत्पादों का लगभग 55% अत्यधिक विनियमित बाजारों में निर्यात करता है, इसलिए फार्मास्युटिकल उद्योग और भारत सरकार अन्य देशों के साथ व्यापार वार्ता के दौरान तुलनीय उपचार (comparable treatment) का अनुरोध कर रहे हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया ओशिनिया क्षेत्र में एक प्रमुख बाजार है और यह न्यूजीलैंड, फिजी तथा पापुआ न्यू गिनी जैसे अन्य देशों को भारतीय उत्पादों के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रभावित कर सकता है।
  • ऑस्ट्रेलियाई सरकार अपने स्वास्थ्य देखभाल खर्चों को कम करने की योजना बना रही है जो भारत को ऑस्ट्रेलिया की सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री की जरूरतों के लिए एक वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता के रूप में बढ़ावा दे सकता है।

सारांश:

  • ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता ऐसे समय में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है जब विकसित दुनिया अपनी आपूर्ति श्रृंखला निर्भरता को प्रतिरक्षित करना चाह रही है। भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता द्विपक्षीय संबंधों में एक ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि यह वस्तुओं और सेवाओं, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स उद्योगों में व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि करेगा।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

वुल्फ वारियर कूटनीति

विषय: भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

मुख्य परीक्षा: चीन की विदेश नीति

संदर्भ:

  • चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान, जिन्हें व्यापक रूप से “वुल्फ वारियर” राजनयिक माना जाता है, को मंत्रालय के सीमा और महासागर मामलों के विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया है।

भूमिका:

  • झाओ लिजियान की एक कम हाई-प्रोफाइल सीमा और महासागर मामलों के विभाग में तैनाती ने चीन की कूटनीति पर प्रकाश डाला है, साथ ही इसके पुनर्मूल्यांकन पर एक बहस को प्रज्वलित किया है।
  • झाओ मार्च 2020 में अमेरिकी सेना पर चीन में कोरोनावायरस फ़ैलाने का आरोप लगाने वाले अपने ट्वीट से सुर्खियों में आए थे।
  • चीनी कूटनीति और नीतियों को बढ़ावा देने के लिए चीनी राजनयिक बड़े पैमाने पर ट्विटर का उपयोग करते हैं, जो चीन में प्रतिबंधित है।

‘वुल्फ वारियर दृष्टिकोण’ क्या है?

  • यह चीन के अंदर विकसित हुआ एक नया दृष्टिकोण है, जो चीनी कूटनीति के रूढ़िवादी एवं निष्क्रिय दृष्टिकोण से मुखर तथा सक्रिय दृष्टिकोण में संक्रमण को संदर्भित करता है। इस कूटनीति के तहत चीन के हितों का उल्लंघन करने वाले लोगों या देशों से कड़ाई से निपटा जाता है।
  • यह दृष्टिकोण 1970-80 के दशक के डेंग शियाओपिंग की पूर्व चीनी राजनयिक प्रथाओं के विपरीत है, जिसमें निम्न पर जोर दिया गया था:
    • परदे के पीछे काम करना,
    • विवादों से बचना और
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की बयानबाजी का समर्थन करना।
  • वुल्फ वारियर और वुल्फ वॉरियर II चीनी एक्शन ब्लॉकबस्टर/ फिल्में हैं जिसमे चीन के विशेष ऑपरेशन बलों के एजेंटों का चित्रण किया गया है। इन फिल्मों ने चीनी दर्शकों के बीच राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति को बढ़ाया है।
  • इन फिल्मों के नाम पर ही इस कूटनीति का नाम ‘वुल्फ वारियर कूटनीति’ रखा गया है, जिसमें चीन के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए चीनी राजनयिकों द्वारा अपनायी जाने वाली आक्रामक शैली का वर्णन है।
  • कई चीनी को लगता है कि पश्चिमी मीडिया द्वारा चीन का चित्रण अत्यधिक पक्षपाती है, क्योंकि इसमें वैचारिक और जातिवादी रंग निहित हैं। वुल्फ वारियर कूटनीति चीनी सरकार के “चीन की कहानी बताने” (tell the China story) के प्रयास का हिस्सा है।
  • गौरतलब है कि चीन द्वारा वुल्फ वारियर कूटनीति का पिछले कुछ वर्षों में व्यापक रूप से उपयोग किया गया है, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से।
  • वुल्फ वारियर कूटनीति के प्रति प्रायः एक सशक्त प्रतिक्रिया देखने को मिली है और कुछ मामलों में इस नीति ने चीन के खिलाफ एक प्रतिक्रिया को उकसाया है। इसका अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

असफल नीति:

  • जिस तरह चीनी समाज अधिक विविध हो गया है, उसी तरह अब चीनी राजनयिक भी विविध विचार रखने वाले हो गए हैं। चीनी विदेश नीति प्रतिष्ठान के भीतर इस बात पर आम सहमति नहीं है कि टकराव वाली कूटनीति वांछनीय है या नहीं, और सभी चीनी राजनयिक वुल्फ वारियर नहीं हैं।
  • पारंपरिक मानसिकता वाले चीनी राजनयिकों ने लड़ाकू आवेग को कम करने की मांग की है और अमेरिकी सेना के बारे में झाओ के सिद्धांत को “कमजोर” कहकर खारिज कर दिया है।
  • चीन-भारत सीमा पर सैन्य मुखरता के साथ वुल्फ वारियर रणनीति ने भारत को अमेरिका के बहुत करीब कर दिया है, और एक अरब से अधिक व्यक्तियों वाली अर्थव्यवस्था को चीन से अलग कर दिया है।
  • पश्चिमी शक्तियों के साथ राजनीतिक, वैचारिक और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण राष्ट्रीय हितों की मजबूती से रक्षा करने और सॉफ्ट पावर बढ़ाने के बीच संतुलन बनाना वर्तमान चीनी कूटनीति की एक बड़ी चुनौती है।

सारांश:

  • राष्ट्रपति शी जिनपिंग के तहत चीन की विदेश नीति स्वयं को संयुक्त राष्ट्र केंद्रित विश्व व्यवस्था और वैश्वीकरण के रक्षक के रूप में पेश करने और वैश्विक राजनीति के परिणामों से परे चीन के मूल हितों को और अधिक आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने के बीच उलझी हुई प्रतीत होती है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

भारत में सूक्ष्म वित्त संस्थाएँ

विषय: संसाधन संग्रहण

मुख्य परीक्षा: सूक्ष्म वित्त भारत के आर्थिक विकास में सहायता के लिए एक साधन के रूप में

संदर्भ:

  • हाल ही में, भारतीय सूक्ष्म वित्त उद्योग और भारत की आर्थिक वृद्धि में इसकी भूमिका पर एक अध्ययन किया गया था।

भूमिका:

  • हाल ही में एक प्रमुख कंसल्टेंसी, प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (PwC) और एसोसिएशन ऑफ माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस ऑफ इंडिया द्वारा भारतीय सूक्ष्म वित्त संस्थाओं (MFI) पर एक अध्ययन किया गया था।
  • अध्ययन के अनुसार, सूक्ष्म वित्त संस्थाओं ने पिछले कुछ वर्षों में छह करोड़ उधारकर्ताओं को ऋण की पेशकश करके कम आय वाले परिवारों के लिए वित्तीय सहायता प्रणाली के रूप में कार्य किया है, और ये संस्थाएं भारत की विकास प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभाएंगी।
  • फरवरी 2017 से जून 2022 तक, सूक्ष्म वित्त संस्था (MFI) क्षेत्र में समावेश और विस्तार के मामले में कई बदलाव हुए हैं।

सूक्ष्म वित्त उद्योग के विकास की संभावना:

  • सूक्ष्म वित्त परिदृश्य में कई संस्थाओं की उपस्थिति, सूक्ष्म ऋण के परिपक्व मॉडल और आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कम आय वाले बैंड में होने के बावजूद, भारत में सूक्ष्म वित्त क्षेत्र के लिए एक अपार अवसर मौजूद हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सूक्ष्म वित्त उद्योग का वैश्विक बाजार आकार 2021 से 2026 तक 11.61 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से 122.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • हालांकि सरकारी योजनाओं और स्थापित वित्तीय संस्थानों ने ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली लगभग 67% भारतीय आबादी के लिए सूक्ष्म ऋण तक पहुंच सुनिश्चित की है, लेकिन देश के कुछ जिलों में सूक्ष्म वित्त संस्थाओं की भौगोलिक संकेंद्रता (सूक्ष्म वित्त संस्थाओं की उपस्थिति वाले 34% जिले पोर्टफोलियो में 80% योगदान करते हैं) सूक्ष्म वित्त के विस्तार की क्षमता का संकेत देती है।
  • वर्ष 2017 से, भारतीय सूक्ष्म वित्त उद्योग ने ऑनलाइन वितरण चैनलों, मोबाइल बैंकिंग और ई-वॉलेट का उपयोग करके डिजिटल मार्ग को अपनाया है, जिससे इस क्षेत्र के लिए बड़े पैमाने पर डिजिटल स्वरुप को अपनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
  • इस उद्योग का भविष्य सूक्ष्म वित्त संस्थाओं की साझेदारी बनाने, नए उत्पादों और निवेश चैनलों को विकसित करने और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की क्षमता से निर्धारित होगा।

चुनौतियां:

  • सूक्ष्म वित्त क्षेत्र को जिन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, उनमें छोटे किसानों, विक्रेताओं और मजदूरों जैसे ग्राहक खंडों की विविध प्रकृति शामिल हैं।
    • विभिन्न ग्राहकों के लिए उपभोक्ता व्यवहार और ऋण आवश्यकताओं के लिए वित्तीय उत्पादों और डिजिटल साक्षरता के साथ विभिन्न स्तरों की सेवाओं की आवश्यकता हो सकती है।
  • संवाद के भौतिक तरीकों पर निर्भरता भी सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के सामने अंतिम उधारकर्ताओं तक पहुंचने के लिए एक प्रमुख चुनौती है, जो कि महामारी के दौरान स्पष्ट हो गया है जब सामूहिक सभाएं आयोजित नहीं की जा सकती थीं।
    • केवल तकनीकी एकीकरण ही सेवाओं को प्रदान करने के साथ-साथ ऋण संग्रह प्रक्रियाओं में सूक्ष्म वित्त संस्थाओं की सहायता कर सकेगा।
  • अपने ऋणों का प्रबंधन करने में लोगों की अक्षमता के कारण सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
    • सूक्ष्म वित्त संस्थाएँ संपार्श्विक के बिना ऋण देती हैं जो ऋण डिफ़ॉल्ट और खराब ऋणों के जोखिम को बढ़ाता है।

सारांश:

  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है और सूक्ष्म वित्त उद्योग लाखों कम आय वाले परिवारों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और उन्हें देश के आर्थिक विकास में योगदान करने में सक्षम बनाने में अग्रणी भूमिका निभाएगा। इस उद्योग का भविष्य उपभोक्ताओं की मांगों को पूरा करने के लिए संस्थाओं की नई साझेदारी बनाने, नए उत्पादों को विकसित करने और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की क्षमता से निर्धारित होगा।

भारत में सूक्ष्म वित्त पर अधिक जानकारी के लिए, यहाँ क्लिक करें: Micro Finance in India

संपादकीय-द हिन्दू

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आपदा प्रबंधन:

भोपाल गैस मामले में केंद्र क्या चाहता है?

विषय:औद्योगिक आपदा

मुख्य परीक्षा: भोपाल गैस त्रासदी और मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए एक उपचारात्मक याचिका।

संदर्भ:

  • मुआवजा राशि बढ़ाने को लेकर सरकार की उपचारात्मक याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

पृष्ठभूमि विवरण:

  • भोपाल गैस रिसाव त्रासदी को दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदा कहा जाता है।
  • 2-3 दिसंबर, 1984 की दरमियानी रात को मध्य प्रदेश के भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ। इससे बड़ी संख्या में मौतें हुईं।
  • इस घटना के 39 साल बाद, उच्चतम न्यायालय की एक संविधान पीठ ने नवंबर 2010 में केंद्र द्वारा दायर एक उपचारात्मक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिका में, सरकार ने मुआवजे के रूप में इस कीटनाशक कंपनी से ₹675.96 करोड़ की अतिरिक्त राशि की मांग की है।
    • यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) के साथ 1989 के एक समझौते में लगभग $470 मिलियन (तत्कालीन विनिमय दर पर लगभग ₹725 करोड़) मुआवजा तय किया गया था।
    • यह समझौता (4 मई 1989 का) घटना में लगभग 3,000 मौत के मामलों पर आधारित था।
    • 2010 में, सरकार ने एक उपचारात्मक याचिका दायर की जिसमें दावा किया गया कि वास्तविक मृत्यु का आंकड़ा 5,295 था।
    • UCC अब डॉव केमिकल्स की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
  • UCC ने “अधिक पैसा” देने से इनकार कर दिया है। जबकि न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि वह उपचारात्मक याचिका को सामान्य मुकदमे की तरह नहीं देखेगा और सेटलमेंट अर्थात समझौते पर पुनः विचार किया जाएगा।
  • कल्याण आयुक्त, भोपाल गैस पीड़ित, द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 15 दिसंबर, 2022 तक मौतों की संख्या बढ़कर 5,479 हो गई है।
  • रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि कैंसर और गुर्दे की विफलता के मामलों की संख्या क्रमशः 16,739 और 6,711 थी।
  • इसी तरह, 1989 में रिपोर्ट की गई अस्थायी विकलांगता और मामूली चोट के मामले क्रमशः 20,000 और 50,000 थे। ये मामले बढ़कर 35,455 और 5,27,894 हो गए हैं।
  • सरकार ने इस याचिका में बताया है कि मौतों, विकलांगता, चोटों और संपत्ति तथा पशुधन की हानि के कुल मामलों की संख्या 4 मई, 1989 के “अनुमानित” संख्या 2,05,000 से बढ़कर 5,74,376 हो गई है।

भोपाल गैस त्रासदी के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें: Bhopal gas Tragedy Took Place on December 2, 1984 – This Day in History

इस मामले में पीड़ितों की राय:

  • दो संगठनों भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति ने न्यायालय को बताया है कि भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के पास 22 साल के 4.5 लाख से ज्यादा गैस पीड़ितों के मेडिकल रिकॉर्ड हैं।
  • औसतन हर दिन लगभग 2000 पीड़ितों का इस केंद्र में इलाज होता है और अन्य 4000 पीड़ितों का इलाज मध्य प्रदेश सरकार के गैस राहत विभाग द्वारा संचालित 6 अस्पतालों और 19 क्लीनिकों में होता है।

उपचारात्मक याचिका और इसके परिणाम:

  • उपचारात्मक याचिका की अवधारणा 2002 के अशोक हुर्रा बनाम रूपा हुर्रा मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा सामने लायी गई थी।
  • यह दुर्लभ से दुर्लभ उपाय है जिसका उपयोग तब किया जाता है जब “न्याय करने का कर्तव्य निर्णय की निश्चितता की नीति पर हावी हो तथा न्याय में गिरावट न्यायिक विवेक के लिए दमनकारी हो और एक अपरिवर्तनीय अन्याय वाली व्यवस्था को बढ़ाने वाली हो”।
  • पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद उच्चतम न्यायालय में यह आखिरी कानूनी उपाय है।
  • उपचारात्मक याचिका के दो सीमित आधार हैं:
    • पीड़ितों को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया
    • मामले के न्यायाधीश पक्षपाती थे
  • उपचारात्मक याचिका की सीमाओं के कारण संविधान पीठ 1989 के समझौते को फिर से खोलने के खिलाफ थी।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार ने समीक्षा (review) याचिका दायर नहीं की थी और सीधे उपचारात्मक याचिका का सहारा लिया था।
  • भारत के महान्यायवादी ने शीर्ष अदालत से उपचारात्मक क्षेत्राधिकार की सीमाओं से परे देखने और पीड़ितों को पूर्ण न्याय देने का आग्रह किया है।
  • UCC ने सरकार की याचिका का यह हवाला देते हुए प्रतिवाद किया है कि UCC की देनदारी कभी भी स्थापित नहीं की गई थी और निपटान या समझौते में पुनर्विचार का खंड नहीं है।

सुनवाई के दौरान न्यायालय का अवलोकन:

  • उच्चतम न्यायालय के 3 अक्टूबर, 1991 के आदेश का पैराग्राफ इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि सभी पीड़ितों के दावों को पूरा करने के लिए धनराशि अपर्याप्त थी।
  • भारत सरकार ने कहा है कि उसने UCC को मुआवजा बढ़ाने का निर्देश देने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर एक कल्याणकारी राज्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी पूरी की है।
  • न्यायालय का विचार है कि यदि एक कल्याणकारी राज्य के रूप में सरकार महसूस करती है कि घटना के पीड़ित अधिक मुआवजे के हकदार हैं, तो उसे उन्हें भुगतान करना चाहिए।
  • न्यायालय ने अपनी सीमा को स्पष्ट किया है और फैसला सुरक्षित रख लिया है।

संबंधित लिंक:

Review Petition v/s Curative Petition v/s Mercy Petition – Procedures and Grounds [UPSC Notes]

सारांश:

  • 1984 में घटित भोपाल गैस त्रासदी का प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है। सरकार ने इस संबंध में एक उपचारात्मक याचिका दायर की है जिसमें यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन से अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने कानून की बाधाओं को उजागर करते हुए इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:

प्रदूषित हवा के मामलों में भारतीय शहरों की स्थिति

विषय: पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

मुख्य परीक्षा: NCAP का विश्लेषण

विवरण:

  • विशेषज्ञों द्वारा प्रायः यह तर्क दिया जाता है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के लागू होने के चार साल बाद भी प्रगति धीमी रही है और अधिकांश शहरों में प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी नहीं आई है।
  • NCAP की शुरुआत सरकार द्वारा 10 जनवरी 2019 को भारत के 131 सबसे प्रदूषित शहरों को वित्त प्रदान करने और लक्ष्य निर्धारित करने के लिए की गई थी। इन शहरों को गैर-उपार्जित शहर (non-attainment city) कहा जाता है क्योंकि राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) के तहत 2011-15 की अवधि के लिए ये राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पूरा नहीं करते थे।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP):

  • PM2.5 और PM10 के लिए भारत की वार्षिक औसत निर्धारित सीमा क्रमशः 40 माइक्रोग्राम/प्रति घन मीटर (ug/m3) और 60 माइक्रोग्राम/प्रति घन मीटर है।
  • शुरुआत में, NCAP के तहत वर्ष 2024 में PM10 और PM2.5 को 20-30% तक कम करने (2017 के प्रदूषण के स्तर को आधार वर्ष के रूप में लेते हुए) का लक्ष्य निर्धारित किया था। हालांकि, सितंबर 2022 में इसमें संशोधन किया गया और वर्ष 2026 तक पार्टिकुलेट मैटर (PM) सघनता में 40% की कमी का लक्ष्य रखा गया था।
  • सरकार ने इस कार्यक्रम के लिए शहरों को लगभग 6,897.06 करोड़ रुपये वितरित किए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) इस कार्यक्रम का समन्वय करता है और PM10 स्तरों की निगरानी करता है।
  • आगे यह अनिवार्य किया गया कि शहरों को 2020-21 से सुधार की शुरुआत करनी चाहिए, जिसके लिए वार्षिक औसत PM10 सघनता में 15% और अधिक कमी और “अच्छी हवा” वाले दिनों में समवर्ती वृद्धि को कम से कम 200 दिन करने की आवश्यकता है। यदि ये लक्ष्य पूरे नहीं हो पाते हैं, तो केंद्र प्रदान किये जाने वाले वित्त में कटौती करेगा।
  • NCAP पर अधिक जानकारी के लिए, यहां पढ़ें: National Clean Air Programme – NCAP Full Form. Significance, Ministry, etc. for IAS.

NCAP का प्रभाव:

  • सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषण में पाया गया कि 131 शहरों में से केवल 38 शहरों ने FY21-22 के लक्ष्यों को पूरा किया।
  • हालांकि, ये विश्लेषण रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं और अध्ययनों के आधार पर कोई शहरी कार्य योजना अद्यतन नहीं की गई जैसा कि NCAP कार्यक्रम द्वारा अनिवार्य किया गया था।
  • CREA द्वारा आगे अनुमान लगाया गया कि भारत को वर्ष 2024 तक 1,500 निगरानी स्टेशन स्थापित करने के NCAP लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रति वर्ष 300 से अधिक मैनुअल वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पिछले चार वर्षों में केवल 180 स्टेशन स्थापित किए गए हैं।
  • NCAP ट्रैकर, जो क्लाइमेट ट्रेंड्स और रेस्पिरर लिविंग साइंसेज की एक संयुक्त परियोजना है, 2024 स्वच्छ वायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रगति की निगरानी करता है। इसके द्वारा निम्नलिखित निष्कर्ष दर्ज किए गए हैं:
    • राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 2022 में 99.71 ug/m3 की वार्षिक औसत PM2.5 सांद्रता के साथ सबसे प्रदूषित स्थान बताया गया था। हालांकि, 2019 की तुलना में इसमें 7% से अधिक का सुधार हुआ है।
    • 2022 की शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित सूची में अधिकांश शहर सिन्धु-गंगा के मैदान से संबंधित थे।
    • 2019 के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9 में PM2.5 और PM10 सांद्रता कम हो गई है। हालाँकि, ये CPCB की औसत वार्षिक सुरक्षित सीमा से अधिक हैं।
  • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा सितंबर 2022 में बताया गया था कि 43 में से केवल 14 (NCAP) शहरों में 2019 और 2021 के बीच PM2.5 स्तर में 10% या उससे अधिक की कमी दर्ज की गई है।
  • वहीं पर्याप्त डेटा वाले 46 गैर-NCAP शहरों में से 21 में 2019 और 2021 के बीच 5% या अधिक गिरावट के साथ वार्षिक PM2.5 मात्रा में काफी सुधार दर्ज किया गया था।
  • लगभग 16 NCAP और 15 गैर-NCAP शहरों के वार्षिक PM2.5 स्तरों में वृद्धि दर्ज की गई थी। इससे पता चलता है कि गैर-NCAP और NCAP दोनों शहरों के प्रदूषित होने की समान संभावना है और NCAP बहुत प्रभावी दृष्टिकोण नहीं है।

संबंधित लिंक:

Pollution measurement – Air Quality Index (AQI) Overview

सारांश:

  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के संबंध में किए गए विभिन्न विश्लेषणों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इसने पिछले चार वर्षों में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किए हैं। इस कार्यक्रम की समीक्षा करने और देश के सभी शहरों से प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम करने में सहायता की आवश्यकता है।

प्रीलिम्स तथ्य:

  1. सोल ऑफ स्टील एंड्यूरेन्स चैलेंज (Soul of Steel Endurance Challenge):

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विषय: अर्थव्यवस्था

प्रीलिम्स: साहसिक पर्यटन

संदर्भ:

  • ‘सोल ऑफ स्टील’ चैलेंज पहल की शुरुआत उत्तराखंड में 14 जनवरी, 2023 को की गई थी।

भूमिका:

  • 14 जनवरी, 2023 को सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस के अवसर पर उत्तराखंड के देहरादून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा ‘सोल ऑफ स्टील’ अल्पाइन चैलेंज का शुभारंभ किया गया।
  • यह सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने की एक पहल है।
  • इस अभियान के तहत ऊंचाई पर किसी व्यक्ति की सहनशक्ति का परीक्षण किया जाएगा। शुरुआत में, इसमें 18 से 30 आयु वर्ग के 12 भारतीय प्रतिभागियों और छह अंतरराष्ट्रीय टीमों को शामिल किया जाएगा।
    • यह चैलेंज लगभग 30 करोड़ रुपये की कुल लागत के साथ तीन महीने तक चलेगा।
    • प्रतिभागियों का चयन एक विस्तृत स्क्रीनिंग और प्रशिक्षण मॉडल के माध्यम से पारंपरिक और आधुनिक मानकों के तहत से किया जाएगा।
  • मंत्री ने भारतीय सेना और क्लॉ (CLAW) वैश्विक संगठन की संयुक्त पहल के तहत विभिन्न साहसिक गतिविधियों के लिए साइन अप करने हेतु स्वयंसेवकों के लिए एक वेबसाइट भी लॉन्च किया है।

‘सोल ऑफ स्टील चैलेंज क्या है?

  • चैलेंज क्लॉ ग्लोबल (CLAW Global) की एक पहल है और इसे भारतीय सेना द्वारा सहयोग दिया जा रहा है।
  • सोल ऑफ स्टील के पीछे का विचार कौशल का विकास और एक चुनौती पैदा करना है जो उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जीवित रहने, स्थिर होने और आगे बढ़ने की मानव क्षमता को सामने लाएगा।
  • यह ‘आयरनमैन ट्रायथलॉन’ की तर्ज पर आधारित है। आयरनमैन ट्रायथलॉन यूरोप में आयोजित एक लंबी दूरी की ट्रायथलॉन है जिसके तहत किसी व्यक्ति की शारीरिक क्षमताओं का परीक्षण किया जाता है।
  • इस पहल का उद्देश्य जीवन कौशल प्रशिक्षण और युवा विकास को सक्षम बनाना है। इससे उत्तराखंड में साहसिक पर्यटन के वैश्विक प्रचार-प्रसार को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

क्लॉ ग्लोबल (CLAW Global):

  • CLAW (Conquer Land Air Water) ग्लोबल का लक्ष्य क्षमता और स्वतंत्रता की एक शक्तिशाली धारणा विकसित करने के लिए आत्म-विश्वास और सामूहिक प्रयास की क्षमता को प्रदर्शित करना है।
    • इस टीम में विशेष बलों के दिग्गज और विभिन्न राष्ट्रीयताओं, धर्मों, क्षमताओं वाले विकलांग व्यक्ति शामिल हैं।
    • इसकी स्थापना वर्ष 2019 में मेजर विवेक जैकब ने की थी, जो एक पैरा स्पेशल फोर्स ऑफिसर थे, और स्काइडाइव करते समय चोट लगने के बाद 14 साल की सेवा पश्चात सेवानिवृत्त हुए थे।
  • क्लॉ ने वर्ष 2019 में ‘ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम’ की शुरुआत की थी। यह दिव्यांगजनों की ‘क्षमताओं’ को सामने लाने और उन्हें मुख्यधारा में लाने का एक वैश्विक मिशन था।

सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस:

  • सशस्त्र सेना पूर्व सैनिक दिवस हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।
  • 14 जनवरी, 2016 को भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ, फील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा की सेवानिवृत्ति के अवसर पर पहला सशस्त्र बल पूर्व सैनिक दिवस मनाया गया था।
  • वे भारतीय सेना के पहले भारतीय प्रमुख थे और 14 जनवरी 1953 को सेवानिवृत्त हुए थे।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. नीलकुरिंजी:
  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF) ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची III के तहत नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना) को संरक्षित पौधों की सूची में शामिल किया है।
  • आदेश के अनुसार, इस पौधे को उखाड़ने या नष्ट करने वालों पर तीन साल की कैद के साथ 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। नीलकुरिंजी की खेती और इस पर हक़ जताने की अनुमति नहीं है।
  • नीलकुरिंजी का खिलना पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण है, जो उन स्थानों पर आते हैं जहां यह खिलता है। हालाँकि, इससे पौधे का विनाश भी हुआ है, जो इस फूल के क्षेत्रों के लिए एक बड़ा खतरा है।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (स्तर-सरल)

  1. सेना दिवस हर साल 16 जनवरी को मनाया जाता है।
  2. इस दिन हमारी सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ के.एम. करियप्पा की उपलब्धियों का स्मरण किया जाता है।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या: 15 जनवरी 1949 को भारत के अंतिम ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ जनरल फ्रांसिस रॉय बुचर से भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ के रूप में पदभार ग्रहण करने वाले फील्ड मार्शल कोडंडेरा एम. करिअप्पा की याद में भारत में हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस मनाया जाता है।

  • यह हर साल करियप्पा और रक्षा बलों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है।
  • भारत 15 जनवरी 2023 को अपना 75वां वार्षिक सेना दिवस मना रहा है।

प्रश्न 2. दुर्लभ मृदा धातुओं के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-मध्यम)

  1. यह 17 धातुओं का समूह है।
  2. चीन दुर्लभ मृदा धातुओं का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  3. भारत के पास वैश्विक दुर्लभ मृदा धातु भंडार का 6% है।

उपर्युक्त कथनों में से कितना/कितने सही है/हैं ?

  1. केवल एक कथन
  2. केवल दो कथन
  3. सभी तीनों कथन
  4. इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: दुर्लभ मृदा धातुएं 17 धातु तत्वों का एक समूह है। इनमें स्कैंडियम और येट्रियम, जो लैंथेनाइड्स के समान भौतिक और रासायनिक गुण प्रदर्शित करती हैं, के अलावा आवर्त सारणी के पंद्रह लैंथेनाइड्स शामिल हैं।
  • कथन 2 सही है: वर्ष 2021 में, चीन ने कुल वैश्विक दुर्लभ मृदा खदान उत्पादन के आधे से अधिक का उत्पादन किया था। दूसरा स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका का था, जिसकी वैश्विक दुर्लभ मृदा धातुओं के उत्पादन में 15.5 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
  • कथन 3 सही है: भारत के पास दुनिया में दुर्लभ मृदा खनिजों का पांचवां सबसे बड़ा भंडार (कुल भंडार का 6%) है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर-सरल)

  1. पश्चिमी विक्षोभ पूरे भारत में सर्दियों की वर्षा लाता है।
  2. ये उत्तरी भारत में शीत लहर की स्थिति भी पैदा करते हैं।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला एक बहिरुष्ण कटिबंधीय तूफान है जो भारतीय उपमहाद्वीप, जो पूर्व में बांग्लादेश और दक्षिण पूर्वी नेपाल के उत्तरी भागों तक विस्तृत है, के उत्तरी भागों में अचानक सर्दियों की वर्षा लाता है।
  • कथन 2 सही है: सर्दियों के महीनों के दौरान, पश्चिमी विक्षोभ के कारण उत्तर और मध्य भारत में “शुष्क, ठंडी उत्तर-पश्चिमी हवाएँ” चलती हैं, जिससे इन क्षेत्रों में न्यूनतम तापमान गिर जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शीत-लहर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (स्तर-मध्यम)

  1. नीलकुरिंजी फूल 12 साल में सिर्फ एक बार खिलने के लिए जाने जाते हैं।
  2. ये पूर्वी हिमालय में पाए जाते हैं।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: a

व्याख्या: स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना, जिसे नीलकुरिंजी के नाम से जाना जाता है, एक झाड़ी है जो केवल केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में पश्चिमी घाट के शोला जंगलों में पाई जाती है। जामुनी रंग का यह फूल 12 साल में केवल एक बार खिलता है।

प्रश्न 5. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं? (स्तर-कठिन) (विगत वर्ष के प्रश्न 2019) (स्तर-कठिन)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मेथैन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल में मेथैन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिएः

  1. केवल 1 और 2
  2. केवल 2 और 3
  3. केवल 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 और 2 सही हैं: ‘मेथैन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं क्योंकि वहाँ मेथैन हाइड्रेट के निर्माण और स्थिरता के लिए ताप और दाब की उपयुक्त परिस्थिति होती है। भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मेथैन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
    • मेथैन हाइड्रेट एक क्रिस्टलीय ठोस है जिसमें एक मीथेन अणु होता है जो अन्तःपाशित जल के अणुओं से घिरा होता है। यह “बर्फ” है जो प्राकृतिक रूप से केवल उपसतह निक्षेप में पाई जाती है जहां ताप और दाब की परिस्थिति इसके निर्माण के लिए अनुकूल होती है।
  • कथन 3 सही है: मेथैन वातावरण में अपेक्षाकृत अल्पकालिक है; मीथेन का एक अणु लगभग एक दशक के भीतर अन्य ट्रेस गैसों के साथ अभिक्रिया करके जल और कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. “भोपाल गैस त्रासदी मामले में उपचारात्मक याचिका इस बात की गवाही है कि त्रासदी के पीड़ितों के लिए न्याय अधूरा है”। टिप्पणी कीजिए। (GSII-राजव्यवस्था) (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न 2. भारत में फार्मा क्षेत्र के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते के महत्व पर चर्चा कीजिए? (10 अंक, 150 शब्द) (GSIII-अर्थव्यवस्था/अंतर्राष्ट्रीय संबंध)