विषयसूची:

  1. भारत 2024 में प्रतिष्ठित 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक और पर्यावरण संरक्षण समिति की 26वीं बैठक की मेजबानी करने को तैयार:
  2. डीआरडीओ ने सुपरसोनिक मिसाइल-असिस्टेड रिलीज ऑफ टॉरपीडो प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया:
  3. पीवीटीजी एवं आदिवासी समुदाय:
  4. पद्म पुरस्‍कार:

01 May 2024 Hindi PIB
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1. भारत 2024 में प्रतिष्ठित 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक और पर्यावरण संरक्षण समिति की 26वीं बैठक की मेजबानी करने को तैयार:

सामान्य अध्ययन: 3

पर्यावरण:

विषय: पर्यावरण संरक्षण एवं क्षरण।

प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर),अंटार्कटिक संधि।

मुख्य परीक्षा: भारत के लिए अंटार्कटिक संधि एवं अंटार्कटिक का महत्व।

प्रसंग:

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) के माध्यम से केरल के कोच्चि में 20 से 30 मई, 2024 तक 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (एटीसीएम 46) और पर्यावरण संरक्षण समिति (सीईपी 26) की 26वीं बैठक की मेजबानी करेगा।

उद्देश्य:

  • यह अंटार्कटिका में पर्यावरणीय प्रबंधन, वैज्ञानिक सहकार्य और सहयोग पर रचनात्मक वैश्विक बातचीत को सुविधाजनक बनाने की भारत की इच्छा के अनुरूप है।
  • एटीसीएम और सीईपी की बैठकें अंटार्कटिका के नाजुक इकोसिस्टम की सुरक्षा और क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के चल रहे प्रयासों में महत्वपूर्ण हैं।

विवरण:

  • अंटार्कटिक संधि प्रणाली के तहत प्रतिवर्ष बुलाई जाने वाली ये बैठकें अंटार्कटिका के महत्वपूर्ण पर्यावरण, वैज्ञानिक और शासन संबंधी मुद्दों का हल निकालने के लिए अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री पक्षों और अन्य हितधारकों के लिए मंच के रूप में काम करती हैं।
  • 46वें एटीसीएम के एजेंडे के प्रमुख विषयों में अंटार्कटिका और उसके संसाधनों के स्थायी प्रबंधन के लिए रणनीतिक योजना; नीति, कानूनी और संस्थागत संचालन; जैव विविधता पूर्वेक्षण; सूचना व डेटा का निरीक्षण और आदान-प्रदान; अनुसंधान, सहकार्य, क्षमता निर्माण और सहयोग; जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना; पर्यटन ढांचे का विकास; और जागरूकता को बढ़ावा देना शामिल हैं।
  • 26वां सीईपी एजेंडा अंटार्कटिक पर्यावरण मूल्यांकन, प्रभाव मूल्यांकन, प्रबंधन तथा रिपोर्टिंग; जलवायु परिवर्तन को लेकर सचेतता; समुद्री स्थानिक संरक्षण सहित क्षेत्र संरक्षण और प्रबंधन योजनाएं; और अंटार्कटिक जैव विविधता के संरक्षण पर केंद्रित है।
  • 46वीं एटीसीएम और 26वीं सीईपी बैठक की मेजबानी भावी पीढ़ियों के लिए अंटार्कटिका को संरक्षित करने के प्रयासों में एक जिम्मेदार वैश्विक हितधारक के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाती है।
  • भारत अंटार्कटिक संधि के सिद्धांतों को खुली बातचीत, सहयोग और सर्वसम्मति निर्माण के माध्यम से बनाए रखने और पृथ्वी के अंतिम प्राचीन जंगली क्षेत्रों में से एक के स्थायी प्रबंधन में योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध है।

पृष्ठ्भूमि:

  • 1959 में हस्ताक्षरित और 1961 में लागू हुई अंटार्कटिक संधि ने अंटार्कटिका को शांतिपूर्ण उद्देश्यों, वैज्ञानिक सहयोग व पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित क्षेत्र के रूप में स्थापित किया।
  • पिछले कुछ वर्षों में इस संधि को व्यापक समर्थन मिला है और वर्तमान में 56 देश इसमें शामिल हैं।
  • सीईपी की स्थापना 1991 में अंटार्कटिक संधि (मैड्रिड प्रोटोकॉल) के पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल के तहत की गई थी। सीईपी अंटार्कटिका में पर्यावरण संरक्षा और संरक्षण पर एटीसीएम को सलाह देता है।
  • भारत 1983 से अंटार्कटिक संधि का एक सलाहकार सदस्य रहा है।

    • यह आज तक अंटार्कटिक संधि के अन्य 28 सलाहकार सदस्यों के साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेता है।
    • भारत का पहला अंटार्कटिक अनुसंधान केंद्र, दक्षिण गंगोत्री, 1983 में स्थापित किया गया था।
    • वर्तमान में, भारत दो अनुसंधान केंद्र मैत्री (1989) और भारती (2012) संचालित करता है।
    • स्थायी अनुसंधान केंद्र अंटार्कटिका में भारतीय वैज्ञानिक अभियानों की सुविधा प्रदान करते हैं, जो 1981 से प्रतिवर्ष चल रहे हैं।
    • वर्ष 2022 में, भारत ने अंटार्कटिक संधि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए अंटार्कटिक अधिनियम लागू किया।
  • अंटार्कटिक संधि सचिवालय (एटीएस) अंटार्कटिक संधि प्रणाली के लिए प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य करता है।

    • 2004 में स्थापित एटीएस, एटीसीएम और सीईपी बैठकों का समन्वय करता है, सूचनाओं को पुनः प्रस्तुत और प्रसारित करता है, और अंटार्कटिक शासन तथा प्रबंधन से संबंधित राजनयिक संचार, आदान-प्रदान और वार्ता की सुविधा प्रदान करता है।
    • यह अंटार्कटिक संधि प्रावधानों और समझौतों के अनुपालन की निगरानी भी करता है तथा संधि कार्यान्वयन और प्रवर्तन मामलों पर अंटार्कटिक संधि सदस्यों को सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करता है।

2. डीआरडीओ ने सुपरसोनिक मिसाइल-असिस्टेड रिलीज ऑफ टॉरपीडो प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया:

सामान्य अध्ययन: 3

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

विषय: विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी में भारत कि उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

प्रारंभिक परीक्षा: सुपरसोनिक मिसाइल-असिस्टेड रिलीज ऑफ टॉरपीडो प्रणाली।

प्रसंग:

  • सुपरसोनिक मिसाइल-असिस्टेड रिलीज ऑफ टॉरपीडो (स्मार्ट) प्रणाली का 01 मई, 2024 को सफलतापूर्वक उड़ान परीक्षण किया गया। यह पूरी प्रक्रिया ओडिशा के समुद्री तट पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से संपादित की गई।

उद्देश्य:

  • “स्मार्ट” नई पीढ़ी की मिसाइल-आधारित कम भार वाली एक आयुध प्रणाली है, जिसमें एक हल्का टॉरपीडो लगाया जाता है और इस टॉरपीडो का इस्तेमाल पेलोड की तरह होता है।
  • इसे भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता को सामान्य टॉरपीडो की पारंपरिक सीमा से कहीं अधिक बढ़ाने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा तैयार तथा विकसित किया गया है।

विवरण:

  • इस कनस्तर-आधारित मिसाइल प्रणाली में कई उन्नत उप-प्रणालियां समायोजित की गई हैं, जिनमें दो-चरण वाली ठोस प्रपल्शन प्रणाली, इलेक्ट्रोमैकेनिकल एक्चुएटर प्रणाली, सटीकता के साथ इनर्शियल नेविगेशन प्रणाली शामिल हैं।
  • सुपरसोनिक मिसाइल-असिस्टेड रिलीज ऑफ टॉरपीडो पैराशूट-आधारित रिलीज सुविधा के साथ पेलोड के रूप में उन्नत हल्के भार वाले टारपीडो को ले जाती है।
  • इस मिसाइल को ग्राउंड मोबाइल लॉन्चर से प्रक्षेपित किया गया था।
  • इस परीक्षण में संतुलित पृथक्करण, निष्कासन और वेग नियंत्रण जैसे कई अत्याधुनिक सुविधाओं को परखा गया है।
  • इस प्रणाली के विकास से देश की नौसेना की घातकता में और भी वृद्धि हुई है।

3.पीवीटीजी एवं आदिवासी समुदाय:

सामान्य अध्ययन: 1

भारतीय समाज:

विषय: भारतीय समाज,विरासत एवं संस्कृति।

प्रारंभिक परीक्षा: पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) समुदाय, अन्य जनजातीय समूह।

मुख्य परीक्षा: देश के विभिन्न पीवीटीजी एवं आदिवासी समुदायों पर एक लेख लिखिए।

प्रसंग:

  • चुनावी प्रक्रिया में पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) समुदायों और अन्य जनजातीय समूहों को शामिल करने के लिए पिछले दो वर्षों में निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने काफी प्रयास किये हैं।

उद्देश्य:

  • इन प्रयासों का ही नतीजा है कि आम चुनाव 2024 के पहले और दूसरे चरण में विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में जनजातीय समूहों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
  • इस बार ऐतिहासिक रूप से ग्रेट निकोबार की शोम्पेन जनजाति ने पहली बार आम चुनाव में मतदान किया।

विवरण:

  • भारत के निर्वाचन आयोग ने चुनावी प्रक्रिया में पीवीटीजी समुदायों को शामिल करने के प्रति सचेत रहते हुए मतदाताओं के रूप में उनके नामांकन और मतदान प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पिछले दो वर्षों में विशेष प्रयास किए हैं।

    • मतदाता सूची के अद्यतनीकरण के लिए विशेष सारांश पुनरीक्षण के दौरान, उन विशिष्ट राज्यों में जहां पीवीटीजी निवास करते हैं, मतदाता सूची में उन्हें शामिल करने के लिए विशेष आउटरीच शिविर आयोजित किए गए।
    • यह गौर करने वाली बात है कि नवंबर 2022 में पुणे में विशेष सारांश संशोधन 2023 के राष्ट्रीय स्तर के शुभारम्भ के अवसर पर, मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) श्री राजीव कुमार ने पीवीटीजी को देश के गौरवशाली मतदाताओं के रूप में नामांकित करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए आयोग के केंद्रित आउटरीच और हस्तक्षेप पर जोर दिया था।

पीवीटीजी- मध्य प्रदेश से बैगा जनजाति और ग्रेट निकोबार से शोम्पेन जनजाति

कुछ राज्यों से झलकियां:

  • मध्य प्रदेश:
    • मध्य प्रदेश में बैगा, भारिया और सहरिया नामक कुल तीन पीवीटीजी समुदाय हैं।
    • 23 जिलों की कुल 9,91,613 पीवीटीजी आबादी में से 6,37,681 नागरिक 18 साल से उम्र के हैं और ये सभी मतदाता सूची में पंजीकृत हैं।
  • मतदान केंद्रों पर जनजातीय समूहों के स्वागत के लिए जनजातीय थीम पर आधारित मतदान केंद्र भी बनाए गए थे।
  • कर्नाटक:
    • कर्नाटक के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्र पीवीटीजी जेनु कुरुबा और कोरागा समुदाय के आवास हैं।
    • पूरी आबादी में 55,815 पीवीटीजी हैं, उनमें से 39,498 लोग 18 से अधिक उम्र के हैं।
  • केरल:
    • केरल में, पांच आदिवासी समुदायों को पीवीटीजी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • वे कासरगोड जिले के कोरगा, नीलांबुर घाटी तथा मलप्पुरम जिले के चोलानायकन, अट्टापडी तथा पलक्कड़ जिले के कुरुंबर, परम्बिकुलम, पलक्कड़ और त्रिशूर जिले के कादर, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम तथा पलक्कड़ जिले के कट्टुनायकन हैं।
    • 31 मार्च, 2024 तक पीवीटीजी की कुल आबादी 4750 है, जिनमें से 3850 लोगों ने विशेष अभियानों और पंजीकरण शिविरों के माध्यम से सफलतापूर्वक मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराया है।
    • केरल के कुरुम्बा आदिवासी मतदाताओं ने एक प्रेरणादायक उपलब्धि हासिल की।

      • वे केरल के साइलेंट घाटी के मुक्कली क्षेत्र में मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए पहले सुलभ वन क्षेत्र तक जाने के लिए घंटों पैदल चले फिर वहां से उनके परिवहन की सुविधा के लिए वाहन उपलब्ध कराए गए थे। 817 मतदाताओं में 417 महिलाएं थीं।
  • त्रिपुरा:
    • रियांग त्रिपुरा के उन जनजातीय समूहों में से एक है जो एकाकी भावना प्रदर्शित करता है।
    • वे राज्य के विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी संख्या में धलाई, उत्तर, गोमती और दक्षिण त्रिपुरा जिलों के विभिन्न स्थानों जैसे दूरदराज और पहाड़ी इलाकों में रहते हैं।
    • ब्रू समुदाय, जिसे रियांग समुदाय के नाम से भी जाना जाता है, मिजोरम राज्य से त्रिपुरा राज्य में चले गए और अब सरकार द्वारा प्रदान किए गए कई पुनर्वास स्थलों में रह रहे हैं।
  • ओडिशा:
    • ओडिशा में 13 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) रहते हैं।
    • इनके नाम हैं पौडी भुइया, जुआंग, सौरा, लांजिया सौरा, मनकिर्डिया, बिरहोर, कुटिया कोंधा, बोंडो, दिदाई, लोढ़ा, खारिया, चुकुटिया भुंजिया, डोंगोरिया खोंड।
    • ओडिशा में इनकी कुल आबादी 2,64,974 है।
    • महत्वपूर्ण प्रयासों और पंजीकरण अभियान के साथ, सभी 1,84,274 पात्र पीवीटीजी का मतदाता सूची में 100% नामांकन हासिल कर लिया गया है।
    • पाला और डस्कथिया जैसे सांस्कृतिक रूपों के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं में किए गए नुक्कड़ नाटकों ने मतदाता शिक्षा और जागरूकता के लिए शक्तिशाली मीडिया के रूप में काम किया है।
    • पीवीटीजी के क्षेत्रों में 666 थीम-आधारित मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो तार्किक बाधाओं को दूर कर रहे हैं और उनकी पहुंच के भीतर मतदान प्रक्रिया सुनिश्चित कर रहे हैं।
  • बिहार:
    • बिहार में, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, पहाड़िया, कोरवा और बिरहोर सहित पांच पीवीटीजी समुदाय हैं।
    • राज्य के दस जिलों में इनकी आबादी 7631 है।
    • इनमें से पात्र 3147 लोगों को मतदाताओं के रूप में उल्लेखनीय 100% नामांकन किया गया।
    • चल रहे चुनावों में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए ‘मतदाता अपील पत्र’ सहित एक व्यापक अभियान शुरू किया गया था।
  • झारखंड:
    • झारखंड में 32 आदिवासी समूह है।
    • इनमें से 9 अर्थात् असुर, बिरहोर, बिरजिया, कोरवा, माल पहाड़िया, पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, बैगा और सावर पीवीटीजी से संबंधित हैं।
    • एसएसआर 2024 के दौरान, झारखंड में पीवीटीजी के आवास क्षेत्रों में विशेष अभियान चलाए गए, जो ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्र हैं।
    • इसके परिणामस्वरूप 6,979 नामांकन हुए।
    • 18 साल से अधिक उम्र वाले 1,69,288 पात्र पीवीटीजी अब मतदाता सूची में पंजीकृत हैं। कुल पीवीटीजी जनसंख्या 2,58,266 है।
  • गुजरात:
    • गुजरात के 15 जिलों में कोलघा, कथोडी, कोटवालिया, पधार और सिद्दी आदिवासी समुदाय हैं जो पीवीटीजी से संबंधित आदिवासी समूह हैं।
    • राज्य में पात्र पीवीटीजी का 100% पंजीकरण सुनिश्चित किया गया है।
    • मतदाता सूची में कुल 86,755 पंजीकृत हैं। गुजरात में आम चुनाव 2024 के तीसरे चरण में मतदान हो रहा है।
  • तमिलनाडु:
    • तमिलनाडु में, छह पीवीटीजी अर्थात् कुट्टुनायकन, कोटा, कुरुम्बा, इरुलर, पनियान, टोडा हैं।
    • इनकी कुल आबादी 2,26,300 है। 18 साल से अधिक 1,62,049 पीवीटीजी में से 1,61,932 पंजीकृत मतदाता हैं।
    • 23 जिलों में फैले एक व्यापक अभियान में कोयंबटूर, नीलगिरी और तिरुपथुर जैसे क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण ध्यान देने के साथ पीवीटीजी समावेशन को प्राथमिकता दी गई है।
  • छत्तीसगढ़:
    • छत्तीसगढ़ में 1,86,918 की संयुक्त आबादी के साथ पांच पीवीटीजी पाए जाते हैं।
    • इनके नाम अबूझमाड़िया, बैगा, बिरहोर, कामार और पहाड़ी कोरवा हैं जो राज्य के 18 जिलों में फैले हुए हैं।
    • 18 साल से अधिक लोगों की संख्या 1,20,632 है और इन सभी को मतदाता सूची में पंजीकृत किया गया है।
  • एक उल्लेखनीय उपलब्धि में, 100% महाकाव्य कार्ड वितरण सुनिश्चित किया गया और महासमुंद जिले में “चुनाई मड़ई” त्योहार समारोह ने जनजातियों के साथ जुड़ाव स्थापित करने में मदद की।

पृष्ठ्भूमि:

  • भारत में 8.6 प्रतिशत जनजातीय आबादी है। इनमें आदिवासियों के 75 समूह शामिल हैं जो विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) हैं।
  • पहले के दुर्गम क्षेत्रों में नए मतदान केंद्रों के बनाए जाने से बड़े पैमाने पर पीवीटीजी को शामिल किया गया है।
  • पिछले 11 राज्य विधान सभाओं के चुनावों में, 14 पीवीटीजी समुदायों अर्थात् कमार, भुंजिया, बैगा, पहाड़ी कोरवा, अबूझमाड़िया, बिरहोर, सहरिया, भारिया, चेंचू, कोलम, थोटी, कोंडारेड्डी, जेनु कुरुबा और कोरगा से लगभग 9 लाख पात्र मतदाता थे।
  • निर्वाचन आयोग के विशेष प्रयासों ने इन राज्यों में पीवीटीजी का 100% नामांकन सुनिश्चित किया।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

1. पद्म पुरस्‍कार:

  • गणतंत्र दिवस, 2025 के अवसर पर घोषित किए जाने वाले पद्म पुरस्‍कार-2025 के लिए ऑनलाइन नामांकन/सिफारिशें शुरू हो गयी है। पद्म पुरस्‍कारों के नामांकन की अंतिम तारीख 15 सितंबर, 2024 है।
  • पद्म पुरस्‍कार, अर्थात पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मानों में शामिल हैं।

    • वर्ष 1954 में स्‍थापित, इन पुरस्‍कारों की घोषणा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है।
    • इन पुरस्‍कारों के अंतर्गत ‘उत्‍कृष्‍ट कार्य’ के लिए सम्‍मानित किया जाता है।
    • पद्म पुरस्‍कार कला, साहित्य एवं शिक्षा, खेल, चिकित्सा, समाज सेवा, विज्ञान एवं इंजीनियरी, लोक कार्य, सिविल सेवा, व्यापार एवं उद्योग आदि जैसे सभी क्षेत्रों/विषयों में विशिष्‍ट और असाधारण उपलब्धियों/सेवा के लिए प्रदान किए जाते हैं।
    • जाति, व्यवसाय, पद या लिंग के भेदभाव के बिना सभी व्यक्ति इन पुरस्कारों के लिए पात्र हैं।
    • चिकित्‍सकों और वैज्ञानिकों को छोड़कर अन्‍य सरकारी सेवक, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में काम करने वाले सरकारी सेवक भी शामिल है, पद्म पुरस्‍कारों के पात्र नहीं हैं।
  • सरकार पद्म पुरस्‍कारों को “पीपल्स पद्म” बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। अत:, सभी नागरिक पद्म पुरस्‍कारों के लिए नामांकन/सिफारिशें कर सकते हैं। नागरिक स्‍वयं को भी नामित कर सकते हैं।
  • महिलाओं, समाज के कमजोर वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, दिव्यांग व्यक्तियों और समाज के लिए निस्वार्थ सेवा कर रहे लोगों में से ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों की पहचान करने के ठोस प्रयास किए जा सकते हैं जिनकी उत्कृष्टता और उपलब्धियां वास्तव में पहचाने जाने योग्य हैं।
  • नामांकन और सिफारिशों के संदर्भ में, पोर्टल पर उपलब्ध प्रारूप में सभी महत्वपूर्ण विवरण शामिल होने चाहिए। इसमें एक उद्धरण (जो कम से कम 800 शब्दों में होना चाहिए) शामिल होना चाहिए, जो कि विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों या सेवाओं को स्पष्ट रूप से उजागर करता है। यह उद्धरण किसी भी संबंधित क्षेत्र या अनुशासन की अनुशंसित व्यक्ति के बारे में होना चाहिए, जो उनकी योगदान की विशेषता और विशेषता को प्रकट करता है।

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