विषयसूची:
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प्रधानमंत्री ने सीएलईए- राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल सम्मेलन 2024 का उद्घाटन किया
सामान्य अध्ययन: 2
विषय: सामाजिक न्याय
मुख्य परीक्षा: न्याय प्रणाली को अधिक नागरिक-केंद्रित बनाए बिना सुधार नहीं हो सकता, क्योंकि न्याय सुगमता न्याय दिलाने का स्तंभ है।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 3 फ़रवरी को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रमंडल कानूनी शिक्षा संघ (सीएलईए)- राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल सम्मेलन (सीएएसजीसी) 2024 का उद्घाटन किया।
विवरण:
- इस सम्मेलन का विषय “न्याय दिलाने में सीमा पार चुनौतियां” है।
- इस सम्मेलन में अन्य मुद्दों के अलावा कानून और न्याय से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों जैसे न्यायिक परिवर्तन और वकालत के नैतिक आयामों, कार्यकारी जवाबदेही; और मौजूदा कानूनी शिक्षा में बदलाव पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
- सम्मेलन में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने सीएलईए- राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल सम्मेलन का उद्घाटन करने पर प्रसन्नता व्यक्त की। इसमें दुनिया भर के प्रमुख कानूनी पेशेवरों की भागीदारी देखी गई ।
- सम्मेलन में अफ्रीकी प्रतिनिधियों की उपस्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री ने अफ्रीकी संघ के साथ भारत के विशेष संबंधों पर प्रकाश डाला और गर्व व्यक्त किया कि अफ्रीकी संघ समूह भारत की अध्यक्षता के दौरान G-20 का हिस्सा बन गया। उन्होंने कहा कि इससे अफ्रीका के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में काफी मदद मिलेगी।
- प्रधानमंत्री ने भारतीय परंपरा में न्याय के महत्व पर जोर देते हुए एक प्राचीन भारतीय कहावत ‘न्यायमूलं स्वराज्यं स्यात्’ का उल्लेख किया, जिसका अर्थ है कि न्याय स्वतंत्र स्वशासन का मूल है और न्याय के बिना किसी राष्ट्र का अस्तित्व भी संभव नहीं है।
- इस सम्मेलन के विषय न्याय दिलाने में सीमा पार चुनौतियां पर बात करते हुए प्रधानमंत्री ने आज की तेजी से बदलती दुनिया में विषय की प्रासंगिकता पर जोर दिया और न्याय सुनिश्चित करने के लिए कई देशों को एक साथ आने की आवश्यकता का उल्लेख किया।
- प्रधानमंत्री ने हवाई और समुद्री यातायात नियंत्रण जैसी प्रणालियों के सहयोग और परस्पर निर्भरता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें जांच करने और न्याय दिलाने में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र का सम्मान करते हुए सहयोग किया जा सकता है, क्योंकि जब हम एक साथ काम करते हैं, तो अधिकार क्षेत्र बिना देरी किए न्याय देने का एक उपकरण बन जाता है।
- प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि न्याय प्रणाली को अधिक नागरिक-केंद्रित बनाए बिना सुधार नहीं हो सकता, क्योंकि न्याय सुगमता न्याय दिलाने का स्तंभ है। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने समय को याद करते हुए बताया कि शाम की अदालतों की शुरुआत से जनता को दिनभर के अपने कामकाज के बाद अदालती सुनवाई में भाग लेने में मदद मिली, यह एक ऐसी पहल रही जिससे लोगों को न्याय तो मिला ही, उनके समय और धन की भी बचत हुई। सैकड़ों लोगों ने इसका लाभ उठाया।
- प्रधानमंत्री ने लोक अदालत की प्रणाली के बारे में बताते हुए कहा कि इससे सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से जुड़े छोटे मामलों को सुलझाने का बेहतर तंत्र मिलता है। यह मुकदमेबाजी से पहले की ऐसी सेवा है, जहां न्याय दिलाने में आसानी सुनिश्चित करते हजारों मामलों का समाधान किया जाता है। उन्होंने ऐसी पहलों पर चर्चा करने का सुझाव दिया जिससे दुनिया भर में न्याय दिलाने में आसानी हो।
- प्रधानमंत्री ने कहा कि न्याय दिलाने को बढ़ावा देने में कानूनी शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है। उन्होंने बताया कि कानूनी शिक्षा के माध्यम से युवाओं में जुनून और पेशेवर क्षमता दोनों का विकास होता है।
- प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की क्षमता को समझने पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रत्येक क्षेत्र को शैक्षिक स्तर पर समावेशी बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि कानून शिक्षण संस्थानों में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी से कानूनी पेशे में महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी।
- प्रधानमंत्री ने कानूनी शिक्षा में विविध अनुभव वाले युवाओं की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि कानूनी शिक्षा को बदलते समय और प्रौद्योगिकियों के अनुकूल बनाने की जरूरत है।
- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने युवा कानूनी पेशेवरों को अधिक अंतर्राष्ट्रीय अनुभव प्राप्त करने में मदद करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कानून विश्वविद्यालयों से देशों के बीच विनिमय कार्यक्रमों को मजबूत करने का आह्वान किया।
- फोरेंसिक विज्ञान को समर्पित भारत में स्थित दुनिया के एकमात्र विश्वविद्यालय का उदाहरण देते हुए, प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि विभिन्न देशों के छात्रों, कानून संकाय और यहां तक कि न्यायाधीशों को इस विश्वविद्यालय में चल रहे लघु पाठ्यक्रमों का लाभ उठाना चाहिए।
- उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विकासशील देश न्याय दिलाने से संबंधित कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करें, साथ ही छात्रों को इंटर्नशिप दिलाने में सहायता करें, जिससे किसी भी देश की कानूनी प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने में मदद मिल सके।
- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि भारत की कानून व्यवस्था औपनिवेशिक काल से विरासत में मिली थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में रिकॉर्ड संख्या में सुधार किए गए हैं। उन्होंने औपनिवेशिक काल के हजारों अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने का उल्लेख किया, जिनमें से कुछ कानून लोगों को परेशान करने का साधन बन गए थे। उन्होंने बताया कि इससे जीवन में सुगमता आई और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा मिला।
- श्री मोदी ने कहा, “भारत मौजूदा वास्तविकताओं के अनुरूप कानून में बदलाव भी कर रहा है। 3 नए कानूनों ने 100 साल से अधिक पुराने औपनिवेशिक आपराधिक कानूनों की जगह ले ली है। पहले, ध्यान सज़ा और दंडात्मक पहलुओं पर था। अब, ध्यान न्याय सुनिश्चित करने पर है। इसलिए नागरिकों में डर के बजाय आश्वासन की भावना है।”
- यह बताते हुए कि प्रौद्योगिकी न्याय प्रणालियों पर भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने स्थानों का नक्शा बनाने और ग्रामीण लोगों को स्पष्ट संपत्ति कार्ड प्रदान करने के लिए ड्रोन का उपयोग किया है जिससे विवादों, मुकदमेबाजी की संभावना और न्याय प्रणाली पर बोझ में कमी आई है। प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से न्याय प्रणाली पहले से और अधिक कुशल हुई है। उन्होंने बताया कि डिजिटलीकरण ने देश की कई अदालतों को ऑनलाइन कार्यवाही करने में भी मदद की है, जिससे लोगों को दूर-दराज से भी न्याय तक पहुंचने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि भारत इस संबंध में अपनी सीख अन्य देशों के साथ साझा करने में प्रसन्न है और हम अन्य देशों में इसी तरह की पहल के बारे में जानने के इच्छुक भी हैं।
- अपने संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि यदि न्याय के लिए जुनून के साझा मूल्य को दूसरे राष्ट्रों से साझा किया जाए तो न्याय दिलाने में हर चुनौती का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “यह सम्मेलन इस भावना को मजबूत करेगा।
पृष्ठभूमि
- इस सम्मेलन में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों के साथ-साथ एशिया-प्रशांत, अफ्रीका और कैरेबियाई क्षेत्रों में फैले राष्ट्रमंडल देशों के अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल की भागीदारी देखी गई।
- यह सम्मेलन राष्ट्रमंडल कानूनी बिरादरी में विभिन्न हितधारकों के बीच बातचीत के लिए मंच प्रदान करके एक अद्वितीय माध्यम के रूप में कार्य करता है। इसमें कानूनी शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय न्याय वितरण में चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक व्यापक रोडमैप विकसित करने के उद्देश्य से अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल के लिए तैयार एक विशेष गोलमेज सम्मेलन भी शामिल है।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- 25T बोलार्ड पुल टग नौका महाबली की सुपुर्दगी :
- 25T बोलार्ड पुल (BP) टग नौका महाबली को 02 फरवरी 2024 को रियर एडमिरल सुबीर मुखर्जी, एनएम, एएसवाई (कोच्चि) की उपस्थिति में भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया है।
- यह बहुउद्देशीय नौका भारत सरकार की “मेक इन इंडिया” पहल की गौरवशाली ध्वजवाहक है।
- भारत सरकार की “आत्मनिर्भर भारत” पहल के अनुरूप तीन 25T बोलार्ड पुल टग नौकाओं के निर्माण और उन्हें नौसेना को सौंपने के लिए एक सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मेसर्स शॉफ्ट शिपयार्ड प्राइवेट लिमिटेड (एम/एस एसएसपीएल) के साथ अनुबंध किया गया था।
- इन विशेष प्रायोज्य नौकाओं का निर्माण भारतीय शिपिंग रजिस्टर (आईआरएस) के वर्गीकरण नियमों के अनुसार किया जा रहा है।
- इन नौकाओं की उपलब्धता से नौसेना के जहाजों एवं पनडुब्बियों को बर्थिंग और अन-बर्थिंग, मोड़ वाले स्थानों तथा कम गहरे पानी में आवश्यकता के अनुसार सहायता देने व अन्य सुविधाएं प्रदान करके भारतीय नौसेना की परिचालन प्रतिबद्धताओं को गति प्रदान की जाएगी।
- ये नौकाएं जहाजों के ठहरने के स्थान पर जहाजों को अग्निशमन सहायता भी प्रदान करेंगी और इनमें खोज एवं बचाव अभियान संचालित करने की क्षमता भी निहित है।
- प्रथम सर्वेक्षण विशाल मालवाहक जहाज, आईएनएस संध्याक को विशाखापत्तनम में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया :
- प्रथम सर्वेक्षण विशाल मालवाहक जहाज (एसवीएल), आईएनएस संध्याक (यार्ड 3025) 03 फरवरी, 2024 को नौसेना डॉकयार्ड, विशाखापत्तनम भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
- जहाज की प्राथमिक भूमिका सुरक्षित समुद्री नौवहन को सक्षम करने की दिशा में बंदरगाहों, नौवहन चैनलों/मार्गों, तटीय क्षेत्रों और गहरे समुद्रों का पूर्ण पैमाने पर जलमाप चित्रण संबधित जलीय सर्वेक्षण करना है। अपनी दूसरी भूमिका में, जहाज कई प्रकार के नौसैनिक अभियानों को पूर्ण करने में सक्षम होगा।
- श्री राजनाथ सिंह ने बताया कि आजादी के बाद, कई विषम चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करते हुए, भारत अपनी सुरक्षा के लिए आगे बढ़ता रहा और स्वयं को खतरों से बचाता रहा। उन्होंने कहा, आज देश विकास के पथ पर अग्रसर है, हमारी मजबूत नौसेना हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पहले से कहीं अधिक उत्तरदायित्व निभाते हुए सुरक्षा प्रदान कर रही है।
- रक्षा मंत्री ने हिंद महासागर को वैश्विक व्यापार के लिए हॉटस्पॉट बताया। उन्होंने अरब सागर में व्यापारिक जहाजों के अपहरण के प्रयासों और समुद्री डाकुओं से जहाजों की रक्षा करने के लिए भारतीय नौसेना के साहस और फुर्ती की बात करते हुए कहा “हिंद महासागर में अदन की खाड़ी, गिनी की खाड़ी आदि जैसे कई चोक पॉइंट स्थित हैं, जिनके माध्यम से विशाल स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होता है। इन अवरोध बिंदुओं पर कई खतरे विद्यमान हैं, जिनमें से सबसे बड़ा खतरा समुद्री डाकुओं से है”।
- रक्षा मंत्री ने आईएनएस संध्याक के जलावतरण समारोह के अवसर पर न केवल भारतीय जहाजों, बल्कि मित्र देशों के जहाजों को भी सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारतीय नौसेना की सराहना की।
- उन्होंने हाल ही में अदन की खाड़ी में एक ब्रिटिश जहाज पर ड्रोन हमले का हवाला देते हुए बताया, जिसके परिणामस्वरूप तेल टैंकरों में आग लग गई। उन्होंने आग बुझाने में त्वरित प्रतिक्रिया के लिए भारतीय नौसेना की सराहना करते हुए कहा कि इस प्रयास को विश्व ने पहचाना और सराहा।
- श्री राजनाथ सिंह ने विगत कुछ दिनों में पांच समुद्री डकैती के प्रयासों को विफल करने व ड्रोन और मिसाइलों से हमला किए गए जहाजों की सहायता करने के अलावा 80 मछुआरों/नौसैनिकों को बचाने के लिए भारतीय नौसेना के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा “हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय नौसेना शांति और समृद्धि सुनिश्चित करते हुए सुरक्षित व्यापार की सुविधा प्रदान कर रही है। कई रक्षा विशेषज्ञ इसे एक महाशक्ति का उदीयमान बता रहे हैं। यही हमारी संस्कृति है – हर किसी की रक्षा करना”।
- इस अवसर पर अपने संबोधन में, नौसेना स्टाफ के प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने कहा कि एसवीएल परियोजना सरकार और नौसेना द्वारा समुद्र में कार्य करने की सर्वोत्कृष्ट शर्त – महासागरों की अथाह गहराई के सर्वेक्षण – को दिए जा रहे बढ़ते महत्व को प्रदर्शित करती है।
- उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं और कार्यों को करने के लचीलेपन का लाभ उठाने के लिए नौसेना द्वारा स्वदेशी तौर पर अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म लॉन्च किए जा रहे है।
- उन्होंने कहा “चाहे वह शक्तिशाली विमानवाहक पोत विक्रांत हो, विशाखापत्तनम क्लास के घातक विध्वंसक, बहुमुखी नीलगिरि क्लास फ्रिगेट्स, गुप्त कलवरी क्लास पनडुब्बियां, फुर्तीला शैलो वॉटर एएसडब्ल्यू क्राफ्ट या विशेष डाइविंग सपोर्ट वेसल्स हों – हम सावधानीपूर्वक सशक्त भारत की सेवा में एक संतुलित ‘आत्मनिर्भर’ शक्तिबल का निर्माण कर रहे हैं”।
- एडमिरल आर हरि कुमार ने बताया कि 66 जहाजों और पनडुब्बियों के आर्डर में से 64 का निर्माण कार्य भारतीय शिपयार्ड में किया जा रहा है। इसका अर्थ है कि नौसेना इस क्षेत्र में हजारों करोड़ रुपये का निवेश करेगी, जिससे शिपयार्ड की क्षमता और श्रमिकों के साथ-साथ सहायक उद्योगों में कार्यरत लोगों की क्षमताओं में वृद्धि होगी।
- गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई), कोलकाता में निर्माणाधीन एसवीएल परियोजना के चार जहाजों में से पहले जहाज को जलावतरण समारोह में औपचारिक रूप से शामिल किया गया। इस परियोजना का संचालन भारतीय नौसेना के युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो द्वारा किया गया है।
- जहाज की आधारशिला 12 मार्च, 2019 को रखी गई थी और जहाज को 05 दिसंबर, 2021 को लॉन्च किया गया था। यह बंदरगाह और समुद्र में व्यापक परीक्षणों से गुजर चुका है, जिसके बाद इसे लॉन्च किया जाएगा। जहाज का विस्थापन 3,400 टन और कुल लंबाई 110 मीटर और बीम 16 मीटर है।
- आईएनएस संध्याक गहरे और उथले पानी के मल्टी-बीम इको-साउंडर्स, स्वायत्त अंडरवाटर वाहन, दूर से संचालित वाहन, साइड स्कैन सोनार, डेटा अधिग्रहण और प्रसंस्करण प्रणाली, उपग्रह-आधारित पोजिशनिंग सिस्टम सहित अत्याधुनिक जलमाप चित्रण संबंधी जलीय उपकरणों से सुसज्जित है।
- स्थलीय सर्वेक्षण उपकरण जहाज दो डीजल इंजनों द्वारा संचालित है और 18 समुद्री मील से अधिक की गति प्राप्त करने में सक्षम है। इसमें लागत के हिसाब से 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री लगी हुई है और यह एमएसएमई सहित भारतीय नौसेना और उद्योग के बीच सहयोगात्मक प्रयासों के लिए एक श्रद्धांजलि स्वरूप है। इसका शामिल होना राष्ट्र के बढ़ते समुद्री हितों और क्षमताओं को दर्शाता है।
- ‘संध्याक’ का अर्थ है विशेष खोज करने वाला। इसके शिखर पर स्थित शिखा एक नाविक के कम्पास के सोलह बिंदुओं को दर्शाती है, जिसमें समुद्र पर सवार एक ‘डिवाइडर’ और एक ‘लंगर’ शामिल है, जो महासागरों की स्थिति का दर्शाता है, यह सर्वेक्षण जहाज की मूल भूमिका है। संध्याक का जलावतरण युद्धपोत डिजाइनिंग और निर्माण में भारत की विशेषज्ञता का प्रतीक है।
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