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13 अप्रैल 2024 : PIB विश्लेषण

विषयसूची:

  1. ऑपरेशन मेघदूत में भारतीय वायुसेना
  2. बाबा साहेब अंबेडकर की यात्रा- जीवन, इतिहास और कार्य
  3. भारत ने क्वांटम विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नेतृत्व करने की इच्छा के साथ विश्व क्वांटम दिवस 2024 मनाया

13 April 2024 Hindi PIB
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ऑपरेशन मेघदूत में भारतीय वायुसेना

सामान्य अध्ययन: 3

सुरक्षा

विषय: विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश।

प्रारंभिक परीक्षा: ऑपरेशन मेघदूत से संबंधित तथ्य।

प्रसंग:

  • ऑपरेशन मेघदूत के 40 वर्ष पूर्ण।

विवरण:

  • ऑपरेशन मेघदूत को 13 अप्रैल, 1984 को उस समय शुरू किया गया था, जब भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) उत्तरी लद्दाख क्षेत्र के ऊंचाई वाले स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए सियाचिन ग्लेशियर की ओर बढ़ी थीं।
  • इस महत्वपूर्ण कार्रवाई में भारतीय वायुसेना द्वारा अपने विमानों के माध्यम से भारतीय थल सेना के जवानों को एयरलिफ्ट करना और उन्हें हिमनद वाली चोटियों तक ले जाना शामिल था।
  • हालांकि औपचारिक तौर पर यह ऑपरेशन 1984 में शुरू हुआ था, लेकिन भारतीय वायु सेना के कई हेलीकॉप्टर 1978 से ही सियाचिन ग्लेशियर में अपनी सेवाएं दे रहे थे। यहां पर चेतक हेलीकॉप्टर उड़ाए जा रहे थे और यह अक्टूबर 1978 में इस ग्लेशियर में उतरने वाला भारतीय वायुसेना का पहला हेलीकॉप्टर था।
  • वर्ष 1984 तक आते-आते, लद्दाख के अज्ञात क्षेत्र पर दावे संबंधी पाकिस्तान की तथ्यात्मक हेरफेर वाली आक्रामकता और सियाचिन में विदेशी पर्वतारोहण अभियानों को अनुमति देने की कवायद चिंता का कारण बन रहे थे। भारत ने इस क्षेत्र में चलने वाली पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के बारे में खुफिया जानकारी मिलने के बाद सियाचिन पर अपने दावे को वैध बनाने के पाकिस्तान के कुप्रयासों को विफल करने का फैसला किया।
  • इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारतीय सेना ने अपने सैनिकों की तैनाती के साथ ही सियाचिन पर रणनीतिक महत्व वाले ऊंचे स्थानों को सुरक्षित करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया।
  • इस महत्वपूर्ण प्रयास में भारतीय वायुसेना ने एक शानदार भूमिका निभाते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाई। उसके सामरिक और रणनीतिक महत्व के वायुयानों जैसे AN-12S, AN-32S एवं IL-76S ने आवश्यक रसद व सामान तथा सैनिकों को गंतव्य तक पहुंचाया और उच्च ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्रों में हवाई आपूर्ति सुनिश्चित की। इसके बाद वहां से Mi-17, Mi-8, चेतक और चीता हेलीकॉप्टरों ने लोगों तथा जरूरी सामग्रियों को ग्लेशियर की अत्यधिक ऊंचाई तक पहुंचाया, जो हेलीकॉप्टर निर्माताओं द्वारा निर्धारित की गई सीमा से भी कहीं अधिक था।
  • इस तरह से जल्द ही, लगभग 300 सैनिक ग्लेशियर की रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों व दर्रों पर तैनात हो गए। जब तक पाकिस्तानी सेना ने अपने सैनिकों को आगे बढ़ाकर इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की, तब तक भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इन पर्वत चोटियों और दर्रों पर अपना कब्जा जमा लिया था, जिससे उसे सामरिक लाभ प्राप्त हुआ।
  • इस उजाड़ और एकाकी ग्लेशियर पर अप्रैल 1984 से अपना सैन्य प्रभुत्व बनाए रखने के लिए भारतीय थल सेना की लड़ाई में भारतीय वायुसेना ने बहुमूल्य सहयोग दिया।
  • यहां तापमान और ऊंचाई के चरम पर भारतीय वायुसेना का अविश्वसनीय प्रदर्शन दृढ़ता एवं कौशल की एक अतुलनीय गाथा बना हुआ है।
  • हालांकि प्रारंभिक अभियानों में वहां केवल सैनिकों तथा आवश्यक सामग्रियों को ले जाने वाले परिवहन एवं हेलीकॉप्टर विमानों का उपयोग किया जाता था, लेकिन भारतीय वायुसेना ने समय बीतने के साथ ही अपने लड़ाकू विमानों की तैनाती के अलावा इस क्षेत्र में अपनी भूमिका और उपस्थिति का विस्तार किया है।
  • भारतीय वायुसेना के हंटर विमान ने लेह में अधिकतम ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र से अपना लड़ाकू अभियान तब शुरू किया था, जब सितंबर 1984 में नंबर 27 स्क्वाड्रन से हंटर्स की एक टुकड़ी ने ऑपरेशन शुरू किया।
  • अगले कुछ वर्षों में, हंटर्स ने लेह से कुल 700 से अधिक उड़ानें भरीं। जैसे-जैसे बड़ी संख्या में सैनिक बढ़ते गए तो ग्लेशियर के ऊपर से ही वायु सेना द्वारा नकली हमले किए जाने लगे, जिसने ग्लेशियर पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए अंतिम मनोबल बढ़ाने का काम किया और क्षेत्र में किसी भी दुस्साहस से बचने के लिए प्रतिद्वंद्वी को एक सख्त संदेश भेजा।
  • बाद में, लेह के दक्षिण में कार त्सो में अधिकतम ऊंचाई वाली फायरिंग रेंज में वास्तविक आयुध उड़ानें भी भरी गईं। इसके बाद लड़ाकू विमानों की उड़ान के लिए जमीनी बुनियादी ढांचा अधिक अनुकूल होने के साथ ही मिग-23 और मिग-29 ने भी लेह तथा थोइस से अपना परिचालन शुरू कर दिया।
  • भारतीय वायुसेना ने साल 2009 में ग्लेशियर में अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए चीतल हेलीकॉप्टरों को भी शामिल किया। चीतल एक चीता हेलीकॉप्टर है, जिसे बेहतर विश्वसनीयता और अधिक से अधिक ऊंचाई पर भार ले जाने की क्षमता वाले टीएम 333 2एम2 इंजन के साथ फिर से तैयार किया गया है।
  • अभी सबसे हालिया गतिविधि में, 20 अगस्त 2013 को भारतीय वायुसेना द्वारा अपनी क्षमताओं के एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन में अपने नवीनतम अधिग्रहणों में से एक लॉकहीड मार्टिन सी-130जे सुपर हरक्यूलिस चार इंजन वाले परिवहन विमान को लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) पर उतारा था।
  • वर्तमान समय में राफेल, सुखोई-30एमकेआई, चिनूक, अपाचे, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) एमके III और एमके IV, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) प्रचंड, मिग-29, मिराज -2000, सी-17, सी-130 जे, आईएल-76 तथा एएन-32 ऑपरेशन मेघदूत के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
  • दुनिया के इस सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में, जो अपनी अत्यधिक कठिन जलवायु परिस्थितियों के लिए जाना जाता है, वहां पर भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर जीवन रेखा और बाहरी दुनिया के साथ भारतीय सैनिकों को जोड़ने की एकमात्र कड़ी हैं, जो चार दशक पुराने सैन्य अभियान को जारी रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं; इनके प्रमुख कार्य आपात स्थिति में कार्रवाई करना, आवश्यक रसद की आपूर्ति करना तथा 78 किलोमीटर लंबे ग्लेशियर से बीमारों एवं घायलों को बाहर निकालना है। भारतीय वायुसेना द्वारा ऐसे क्रूर इलाके में उड़ान भरते हुए लगभग हर दिन मानव सहनशक्ति, उड़ान तथा तकनीकी दक्षता के रिकॉर्ड स्थापित किए जा रहे हैं।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. बाबा साहेब अंबेडकर की यात्रा- जीवन, इतिहास और कार्य
    • बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था, वह अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे।
    • डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल थे। वह ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे। बाबासाहेब के पिता संत कबीर के अनुयायी थे और वे बेहद सुविज्ञ भी थे।
    • डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर लगभग दो वर्ष के थे, जब उनके पिता सेवानिवृत्त हो गये। जब वह केवल छह वर्ष के थे तब उनकी माताजी की मृत्यु हो गई। बाबासाहेब की प्रारंभिक शिक्षा बम्बई में हुई। अपने स्कूली दिनों में ही उन्हें गहरे सदमे के साथ इस बात का एहसास हो गया था कि भारत में अस्‍पृश्‍य होना क्या होता है।
    • डॉ. अंबेडकर अपनी स्कूली शिक्षा सतारा में ग्रहण कर रहे थे। दुर्भाग्यवश, डॉ. अंबेडकर की माताजी का निधन हो गया। चाची ने उनकी देखभाल की। बाद में वह बम्बई चले गये। अपनी पूरी स्कूली शिक्षा के दौरान वह अस्पृश्यता के अभिशाप का दंश झेलते रहे। उनके मैट्रिक करने के बाद 1907 में उनकी शादी बाजार के एक खुले शेड के नीचे हुई।
    • डॉ. अंबेडकर ने अपनी स्नातक की पढ़ाई एल्फिन्स्टन कॉलेज, बम्बई से पूरी की, जिसके लिए उन्हें बड़ौदा के महामहिम सयाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति प्राप्‍त हुई थी। स्नातक की शिक्षा अर्जित करने के बाद उन्हें अनुबंध के अनुसार बड़ौदा संस्थान में शामिल होना पड़ा। जब वह बड़ौदा में थे, तभी उन्होंने अपने पिता को खो दिया। वर्ष 1913 में डॉ. अंबेडकर को उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका जाने वाले अध्‍येयता के रूप में चुना गया। यह उनके शैक्षिक जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
    • उन्होंने क्रमशः 1915 और 1916 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन चले गए। वकालत की पढ़ाई के लिए वह ग्रेज़ इन में भर्ती हुए और उन्‍हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में डी.एससी. की तैयारी करने की भी अनुमति दी गई, लेकिन बड़ौदा के दीवान ने उन्हें भारत वापस बुला लिया। बाद में, उन्होंने बार-एट-लॉ और डी.एससी. की डिग्री भी प्राप्त की। उन्होंने कुछ समय तक जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया।
    • 1916 में उन्होंने ‘कास्‍ट्स इन इंडिया–देअर मैकनिज्‍म, जीनेसिज एंड डेवेलपमेंट’ विषय पर एक निबंध पढ़ा। 1916 में, उन्होंने ‘नेशनल डिविडेंड फॉर इंडिया- अ हिस्‍टोरिक एंड एनालिटिकल स्‍टडी’ पर अपनी थीसिस लिखी और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। इसे आठ वर्ष बाद “इवोल्‍यूशन ऑफ प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया” शीर्षक से प्रकाशित किया गया। इस सर्वोच्‍च डिग्री को प्राप्त करने के बाद, बाबासाहेब भारत लौट आए और उन्हें बड़ौदा के महाराजा का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, ताकि आगे चलकर उन्हें वित्त मंत्री के रूप में तैयार किया जा सके।
    • सितंबर, 1917 में अपनी छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त होने पर बाबासाहेब शहर लौट आए और नौकरी करने लगे। लेकिन शहर में थोड़े ही समय नवंबर, 1917 तक रहने के बाद वह बम्बई रवाना हो गए। अस्पृश्यता के कारण अपने साथ हुए दुर्व्यवहार ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए विवश कर दिया था।
    • डॉ. अंबेडकर बम्बई लौट आए और राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में सिडेनहैम कॉलेज में पढ़ाने लगे। सुविज्ञ होने के कारण वह छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। लेकिन लंदन में कानून और अर्थशास्त्र की पढ़ाई दोबारा शुरू करने के लिए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। कोल्हापुर के महाराजा ने उन्हें आर्थिक सहायता दी। 1921 में उन्होंने “प्रोविंशियल डिसेंट्रलाइजेशन ऑॅफ इम्‍पीरियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’’ पर अपनी थीसिस लिखी और लंदन यूनिवर्सिटी से एम.एससी. की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद उन्‍होंने कुछ समय जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी में बिताया। 1923 में, उन्होंने डी.एससी. के लिए अपनी थीसिस- “प्रॉब्‍लम ऑफ रुपी इट्स ऑरिजन एंड सॉल्‍यूशन” प्रस्तुत की। 1923 में उन्हें वकीलों के बार में बुलाया गया।
    • 1924 में इंग्लैंड से लौटने के बाद उन्होंने दलित वर्गों के कल्याण के लिए एक एसोसिएशन की शुरुआत की, जिसमें सर चिमनलाल सीतलवाड़ अध्यक्ष और डॉ. अंबेडकर चेयरमैन थे। एसोसिएशन का तात्कालिक उद्देश्य शिक्षा का प्रसार करना, आर्थिक स्थितियों में सुधार करना और दलित वर्गों की शिकायतों का प्रतिनिधित्व करना था।
    • नए सुधार को ध्यान में रखते हुए दलित वर्गों की समस्याओं को हल करने के लिए 3 अप्रैल, 1927 को बहिष्कृत भारत समाचार पत्र शुरू किया गया।
    • 1928 में, वह गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बम्‍बई में प्रोफेसर बने और 1 जून, 1935 को वह उसी कॉलेज के प्रिंसिपल बन गए और 1938 में इस्तीफा देने तक उसी पद पर बने रहे।
    • 13 अक्टूबर, 1935 को नासिक जिले के येवला में दलित वर्गों का एक प्रांतीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में उन्होंने यह घोषणा करके हिंदुओं को हतप्रभ कर दिया कि “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ, लेकिन मैं हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा” उनके हजारों अनुयायियों ने उनके फैसले का समर्थन किया। 1936 में उन्होंने बॉम्बे प्रेसीडेंसी महार सम्मेलन को संबोधित किया और हिंदू धर्म का परित्याग करने की वकालत की।
    • 15 अगस्त, 1936 को उन्होंने दलित वर्गों के हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया, जिसमें ज्यादातर श्रमिक वर्ग के लोग शामिल थे।
    • 1938 में कांग्रेस ने अस्‍पृश्‍यों के नाम में परिवर्तन करने वाला एक विधेयक पेश किया। डॉ. अंबेडकर ने इसकी आलोचना की। उनका दृष्टिकोण था कि नाम बदलना समस्या का समाधान नहीं है।
    • 1942 में, उन्हें भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में लेबर सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया, 1946 में, वह बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए। उसी समय उन्होंने अपनी पुस्तक “हू वर शूद्र?” प्रकाशित की।
    • आजादी के बाद, 1947 में, उन्हें देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की पहली कैबिनेट में विधि एवं न्याय मंत्री नियुक्त किया गया। लेकिन 1951 में कश्मीर मुद्दे, भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के बारे में प्रधानमंत्री नेहरू की नीति से मतभेद व्यक्त करते हुए उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
    • 1952 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने में उनके द्वारा दिए गए योगदान को मान्यता प्रदान करने के लिए उन्‍हें एल.एल.डी. की उपाधि प्रदान की। 1955 में, उन्होंने थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स नामक पुस्तक प्रकाशित की।
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर को उस्मानिया विश्वविद्यालय ने 12 जनवरी 1953 को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। आख़िरकार 21 साल बाद, उन्होंने 1935 में येवला में की गई अपनी घोषणा “मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा” को सच साबित कर दिया। 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक ऐतिहासिक समारोह में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु हो गई।
    • 1954 में काठमांडू, नेपाल में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर को “जगतिक बौद्ध धर्म परिषद” में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा “बोधिसत्व” की उपाधि से सम्मानित किया गया। खास बात यह है कि डॉ. अंबेडकर को जीवित रहते हुए ही बोधिसत्व की उपाधि से सम्मानित किया गया।
    • उन्होंने भारत के स्‍वाधीनता संग्राम और स्वतंत्रता के बाद के सुधारों में भी योगदान दिया। इसके अलावा बाबासाहेब ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्‍थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस केंद्रीय बैंक का गठन बाबासाहेब द्वारा हिल्टन यंग कमीशन को प्रस्तुत की गई अवधारणा के आधार पर किया गया था।
    • डॉ. अंबेडकर के देदीप्यमान जीवन इतिहास से पता चलता है कि वह अध्ययनशील और कर्मठ व्यक्ति थे। सबसे पहले, अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र, राजनीति, कानून, दर्शनशास्त्र और समाजशास्त्र का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया; उन्हें अनेक सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने अपना सारा जीवन पढ़ने और ज्ञान अर्जित करने तथा पुस्तकालयों में नहीं बिताया। उन्होंने आकर्षक वेतन वाले उच्च पदों को ठुकरा दिया, क्योंकि वह दलित वर्ग के अपने भाइयों को कभी नहीं भूले। उन्होंने अपना जीवन समानता, भाईचारे और मानवता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने दलित वर्ग के उत्थान के लिए भरसक प्रयास किये।
    • उनका जीवन इतिहास जान लेने के बाद उनके मुख्य योगदान और उनकी प्रासंगिकता का अध्ययन व विश्लेषण करना आवश्यक और उचित है। एक मत के अनुसार तीन बिंदु आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था एवं भारतीय समाज अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं से जूझ रहा है। डॉ. अंबेडकर के विचार और कार्य इन समस्याओं को सुलझाने में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं।
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि पूरे देश में ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनायी जाती है।
  2. भारत ने क्वांटम विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नेतृत्व करने की इच्छा के साथ विश्व क्वांटम दिवस 2024 मनाया
  • भारत ने क्वांटम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनने की आकांक्षा के साथ 14 अप्रैल 2024 को विश्व क्वांटम दिवस 2024 मनाया।
  • परमाणुओं और उप-परमाणु कणों के अध्ययन से संबंधित क्वांटम मैकेनिक्स अब इस हद तक आगे बढ़ चुकी है कि यह अब इंजीनियरिंग क्षेत्र में प्रवेश कर गई है और नवीन और विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों की ओर अग्रसर है।
  • दुनिया भर के शोधकर्ताओं ने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम में उपयोग की जाने वाली एलईडी, लेजर और बेहद सटीक परमाणु घड़ियों (अल्ट्रा प्रेसाइस एटॉमिक क्लॉक्स) जैसी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए इसके सिद्धांतों का उपयोग किया है।
  • क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम कम्युनिकेशंस और क्वांटम सेंसिंग अनुप्रयोगों के लिए क्वांटम सिस्टम को नियंत्रित करने और बदलाव करने पर अब काफी ध्यान दिया जा रहा है।
  • दुनिया भर के लोगों के बीच क्वांटम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बारे में जागरूकता फैलाने और समझ को बढ़ाने के लिए, हर साल 14 अप्रैल को विश्व क्वांटम दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2022 में एक अंतरराष्ट्रीय पहल के रूप में की गई थी।
  • भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद ने क्वांटम प्रौद्योगिकी के वैश्विक प्रभाव पर जोर देते हुए कहा: “क्वांटम प्रौद्योगिकी नई प्रौद्योगिकी क्षेत्र है, जिस तक दशकों के मौलिक अनुसंधान के बाद पहुंचा गया है। इससे सुपरपोजिशन, जटिलता (उलझाव) और माप के सिद्धांतों का फायदा उठाने की हमारी क्षमता विकसित हुई है। यह दवाइयों से लेकर उन्नत मैटेरियल्स की खोज और सुरक्षित संचार से लेकर बेहद संवेदनशील सेंसर तक के क्षेत्रों में वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अपार संभावनाओं वाले अनुप्रयोगों को आगे बढ़ाने का भरोसा दिलाती है।”
  • प्रोफेसर सूद ने क्वांटम प्रौद्योगिकी की वैश्विक पहुंच और क्वांटम कंप्यूटर द्वारा संभावित खतरों को खत्म करने की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए कहा, “वैज्ञानिक रूप से उन्नत लगभग सभी देशों में सरकारें और निजी कंपनियां राष्ट्रीय समृद्धि और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानते हुए कंप्यूटिंग, संचार और सेंसिंग क्षमताओं को बढ़ाने के उद्देश्य से इसकी विशाल क्षमता का दोहन करने के लिए इसके विकास और दोहन में भारी निवेश कर रहे हैं। दुनिया को क्वांटम-सुरक्षित बनाने के लिए पारंपरिक कंप्यूटिंग सिस्टम द्वारा उपयोग किए जाने वाले एन्क्रिप्शन एल्गोरिदम का उल्लंघन करने वाले क्वांटम कंप्यूटरों से पैदा होने वाले खतरे का पीक्यूसी और क्यूकेडी द्वारा समाधान निकाले जाने की आवश्यकता है। नए अनुप्रयोगों के विकसित होने के साथ-साथ क्वांटम प्रौद्योगिकी का नैतिक रूप से विकास और लागू किया करना भी महत्वपूर्ण हो जाएगा, और इसके लिए, वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, उद्योगपतियों, नागरिक संगठनों और जनता जैसे हितधारकों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ जुड़ाव जारी रहना चाहिए।”
  • वैश्विक मंच पर क्वांटम प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टता हासिल करने की भारत की योजनाओं को लेकर, प्रोफेसर सूद ने आशावाद और भरोसा व्यक्त किया। साथ ही उन्होंने बताया कि पिछली अनुसंधान एवं विकास पहलों के माध्यम से तैयार और केंद्रित एवं व्यवस्थित तरीके से मजबूत बनाई गई राष्ट्रीय क्षमताओं के दोहन के द्वारा भारत का राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (एनक्यूएम) भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देगा।
  • प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी सलाहकार परिषद (पीएम-एसटीआईएसी) द्वारा परिकल्पित राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (एनक्यूएम) को आठ वर्षों के लिए 6003.65 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ 19 अप्रैल, 2023 को कैबिनेट की मंजूरी मिली थी। मिशन का लक्ष्य वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को शुरू करना, बढ़ावा देना और क्वांटम टेक्नोलॉजी (क्यूटी) में एक जीवंत और नवीन पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है। इससे क्यूटी आधारित आर्थिक विकास में तेजी आएगी, देश में इसके पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही, भारत क्यूटी और अनुप्रयोगों के विकास में अग्रणी देशों में से एक बन जाएगा।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा एनक्यूएम एक हब-स्पोक-स्पाइक मॉडल के माध्यम से सुव्यवस्थित और एक दूसरे से जुड़े प्रयासों की परिकल्पना करता है, जिसमें सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई), कंसोर्टिया परियोजनाएं, व्यक्तिगत वैज्ञानिक-केंद्रित परियोजनाएं आदि शामिल हैं। मिशन को डॉ. अजय चौधरी की अध्यक्षता वाले मिशन गवर्निंग बोर्ड (एमजीबी) द्वारा निर्देशित किया जाता है और भारत सरकार के पीएसए की अध्यक्षता में मिशन टेक्नोलॉजी रिसर्च काउंसिल (एमटीआरसी) द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
  • मिशन का लक्ष्य (i) क्वांटम कंप्यूटिंग, (ii) क्वांटम कम्युनिकेशन, (iii) क्वांटम सेंसिंग एंड मेट्रोलॉजी, और (iv) क्वांटम मैटेरियल्स एंड डिवाइसेस जैसे डोमेन में चार थीमैटिक हब (टी-हब) स्थापित करना है। शैक्षणिक संस्थानों और आरएंडडी प्रयोगशालाओं से योगदान आमंत्रित करते हुए 20 जनवरी, 2024 को टी-हब स्थापित करने के लिए पूर्व-प्रस्ताव (प्री-प्रपोजल) मांगे गए थे।
  • भारत के क्वांटम मिशन को आगे ले जाने में डीएसटी की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताते हुए, डीएसटी में सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने कहा, “भारत क्वांटम प्रौद्योगिकियों में छलांग लगाने के लिए ठोस प्रयास करने वाले कुछ देशों में से एक है और इस क्षेत्र में अग्रणी बनने के लिए आशावादी होने की एक वजह यह भी है, क्योंकि यह क्षेत्र अभी भी विकसित हो रहा है। डीएसटी ने क्वांटम प्रौद्योगिकियों में विश्व स्तरीय अनुसंधान एवं विकास की क्षमता तैयार करने की चुनौती स्वीकार की है। क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम कम्युनिकेशन, क्वांटम सेंसिंग एंड मेट्रोलॉजी और क्वांटम मैटेरियल्स एंड डिवाइसेस में चार हब की स्थापना इसके प्रयासों के केंद्र में है।
  • प्रोफेसर करंदीकर ने यह भी कहा कि एनक्यूएम स्टार्टअप और उद्योग के सहयोग से अकादमिक और आरएंडडी प्रयोगशालाओं का एक संघ (कंसोर्टियम) होगा। इससे देश भर में संबंधित क्षेत्रों की प्रतिभाओं को प्रौद्योगिकी के विकास और तमाम क्षेत्रों में इसे लागू करने के लिए एक साथ काम करने में मदद मिलेगी।
  • एमजीबी के चेयरमैन और एचसीएल टेक्नोलॉजीज के संस्थापक डॉ. अजय चौधरी ने भारत के लिए डिजिटल अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति में क्वांटम प्रौद्योगिकी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा: “इस विश्व क्वांटम दिवस पर, राष्ट्रीय क्वांटम मिशन शुरू करने और क्वांटम क्रांति द्वारा प्रस्तुत अवसरों का लाभ उठाने का देश का फैसला असीमित आशाओं और खुशी का स्रोत है। क्वांटम कंप्यूटिंग से दुनिया भर की डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक क्षमताओं में संभावित बढ़ोतरी और इसके प्रभाव भू-राजनीतिक रणनीतियों के लिहाज से बेहद अहम हैं। राष्ट्रीय क्वांटम मिशन में ₹6,000 करोड़ का बड़ा वित्तीय निवेश निस्संदेह कई क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार की प्रगति को सुविधाजनक बनाएगा, जिससे पूरे देश में वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और स्टार्टअप को लाभ होगा।”
  • डॉ. चौधरी ने बैंकों और इलेक्ट्रिकल ग्रिड जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की सुरक्षा के एक अनिवार्य घटक के रूप में क्वांटम क्रिप्टोग्राफी और एन्क्रिप्शन के महत्व पर भी जोर दिया, जिन्हें सुरक्षा में सुधार के लिए क्वांटम क्रिप्टोग्राफी को लागू करने की आवश्यकता होगी। उन्होंने अपना भरोसा दोहराते हुए कहा कि देश एनक्यूएम द्वारा क्यूटी के क्षेत्र में पूर्व निर्धारित मानकों को प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
  • विश्व क्वांटम दिवस नेटवर्क पर भारत की प्रतिनिधि और क्वांटम इन्फोर्मेशन एंड कंप्यूटिंग लैब, रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर उर्बसी सिन्हा एनक्यूएम पर अपनी टिप्पणी साझा करते हुए कहा: “विश्व क्वांटम दिवस नेटवर्क के लिए एक देश के प्रतिनिधि के रूप में, मैं क्वांटम प्रौद्योगिकियों के विकास से बहुत उत्साहित हूं। देश वर्तमान में राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के माध्यम से मिले प्रोत्साहन को देख रहा है और मिशन के एक भाग के तहत उपरोक्त सभी प्रयासों में प्रमुख योगदान देने के लिए तत्पर है।
  • क्वांटम कम्युनिकेशंस पर अनुसंधान एवं विकास के महत्व पर जोर देते हुए प्रोफेसर सिन्हा ने कहा, “भारत ने सुरक्षित क्वांटम संचार के क्षेत्र में, फाइबर के साथ-साथ मुक्त अंतरिक्ष क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है और पिछले कुछ वर्षों में कई जमीन आधारित उपलब्धियां हासिल की हैं। राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और उससे आगे के माध्यम से, हम लंबी दूरी की क्वांटम संचार में और छलांग लगाने की उम्मीद कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य उपग्रह को एक विश्वसनीय नोड के साथ-साथ फाइबर-आधारित क्यूकेडी नेटवर्क के रूप में उपयोग करके एक देशव्यापी मुक्त अंतरिक्ष क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (क्यूकेडी) नेटवर्क तैयार करना है। हम जटिल वितरण-आधारित क्वांटम संचार के लिए मल्टी-नोड क्वांटम रिपीटर नेटवर्क की दिशा में भी प्रगति करेंगे। समय के साथ, भारत वैश्विक क्वांटम इंटरनेट की खोज में अग्रणी खिलाड़ी बनने की परिकल्पना करता है, जिसमें क्वांटम संचार लिंक के माध्यम से भारत को अन्य देशों से जोड़ना शामिल होगा।”

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