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19 जुलाई 2023 : PIB विश्लेषण

विषयसूची:

  1. स्टील स्लैग रोड तकनीक प्रधानमंत्री के ‘वेस्ट टू वेल्थ’ मिशन के अनुरूप
  2. संस्कृति मंत्रालय और भारतीय नौसेना के बीच “जहाज निर्माण की प्राचीन सिलाई वाली विधि (टंकाई विधि)” को पुनर्जीवित करने हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर
  3. केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री नई दिल्ली में प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS) द्वारा कॉमन सर्विस सेंटर(CSC) की सेवाएं शुरू करने पर एक राष्ट्रीय महासंगोष्ठी का उद्घाटन करेंगे

1. स्टील स्लैग रोड तकनीक प्रधानमंत्री के ‘वेस्ट टू वेल्थ’ मिशन के अनुरूप:

सामान्य अध्ययन: 3

अवसंरचना:

विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

मुख्य परीक्षा: स्टील स्लैग रोड तकनीक

प्रसंग:

  • केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री ने कहा है कि सीएसआईआर-सीआरआरआई की स्टील स्लैग रोड तकनीक प्रधानमंत्री के ‘वेस्ट टू वेल्थ’ मिशन को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

विवरण:

  • भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक राष्ट्र है और देश में ठोस अपशिष्ट के रूप में लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग उत्पन्न होता है, जो वर्ष 2030 तक बढ़कर 60 मिलियन टन हो जायेगा। (एक टन स्टील उत्पादन में लगभग 200 किलोग्राम स्टील स्लैग उत्पन्न होता है)
  • इस्पात अपशिष्ट के कुशल निपटान तरीकों की अनुपलब्धता के कारण ही इस्पात संयंत्र के आसपास स्टील स्लैग के विशाल ढेर लग गए हैं। यही अपशिष्ट जल, वायु और भूमि प्रदूषण का एक प्रमुख कारक बन गए हैं।
  • गुजरात के सूरत में स्टील स्लैग रोड तकनीक से बनी पहली सड़क राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अपनी तकनीकी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध हो गई है। आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील के हजीरा इस्पात संयंत्र से सीआरआरआई के तकनीकी मार्गदर्शन में इस सड़क के निर्माण के दौरान लगभग एक लाख टन स्टील स्लैग अपशिष्ट का उपयोग किया गया है। इसको तैयार करने में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक गिट्टी और रोड़ी का उपयोग नहीं किया गया है।
  • सीमा सड़क संगठन ने भारत-चीन सीमा पर सीआरआरआई और टाटा स्टील के साथ मिलकर अरुणाचल प्रदेश में स्टील स्लैग रोड का निर्माण किया है, जो भारत पारंपरिक सड़कों की तुलना में काफी लंबे समय तक टिकी रहती हैं। इसी प्रकार से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने भी सीआरआरआई द्वारा दिये गए तकनीकी मार्गदर्शन में जेएसडब्ल्यू स्टील के सहयोग से राष्ट्रीय राजमार्ग -66 (मुंबई-गोवा) पर सड़क निर्माण में इस तकनीक का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है।
  • इस्पात मंत्रालय पूरे देश में स्टील स्लैग सड़क निर्माण तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।

स्टील स्लैग सड़क निर्माण तकनीक

  • यह तकनीक भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय तथा देश की चार प्रमुख इस्पात निर्माता कंपनियों आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील, टाटा स्टील और राष्ट्रीय इस्पात निगम के सहयोग से एक शोध परियोजना के तहत केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई है।
  • यह तकनीक इस्पात संयंत्रों के अपशिष्ट स्टील स्लैग के बड़े पैमाने पर सदुपयोग की सुविधा प्रदान करती है और देश में उत्पन्न लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग के प्रभावी निपटान में बहुत उपयोगी साबित हुई है। गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश सहित देश के चार प्रमुख राज्यों में सड़क निर्माण में इस तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है।

2.संस्कृति मंत्रालय और भारतीय नौसेना के बीच “जहाज निर्माण की प्राचीन सिलाई वाली विधि (टंकाई विधि)” को पुनर्जीवित करने हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

सामान्य अध्ययन: 1

कला एवं संस्कृति:

विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे

प्रारंभिक परीक्षा: जहाज निर्माण की प्राचीन सिलाई वाली विधि (टंकाई विधि)”

प्रसंग:

  • जहाज निर्माण की 2000 साल पुरानी तकनीक, जिसे ‘जहाज निर्माण की सिलाई वाली विधि’ के रूप में जाना जाता है, को पुनर्जीवित और उसे संरक्षित करने की दिशा में एक उल्लेखनीय पहल करते हुए, संस्कृति मंत्रालय और भारतीय नौसेना ने एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।

उद्देश्य:

  • इस परियोजना का लक्ष्य भारत में शेष बचे पारंपरिक जहाज निर्माताओं की विशेषज्ञता का लाभ उठाना और उनकी असाधारण शिल्प कौशल को प्रदर्शित करना है।

विवरण:

  • भारतीय नौसेना इस संपूर्ण परियोजना के कार्यान्वयन एवं निष्पादन की निगरानी करेगी। समुद्री सुरक्षा के संरक्षक और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ के रूप में, भारतीय नौसेना की भागीदारी निर्बाध परियोजना प्रबंधन और सुरक्षा एवं सटीकता के उच्चतम मानकों का पालन सुनिश्चित करेगी। उनका अमूल्य अनुभव एवं तकनीकी ज्ञान प्राचीन टंकाई विधि के सफल पुनरुद्धार और सिलाई वाले जहाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • सिलाई वाले जहाज के ऐतिहासिक महत्व और पारंपरिक शिल्प कौशल के संरक्षण की दृष्टि से जहाज का भारत में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक मूल्य है। संपूर्ण इतिहास में, भारत की एक मजबूत समुद्री परंपरा रही है और सिलाई वाले जहाजों के उपयोग ने व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और अन्वेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • कीलों का उपयोग करने के बजाय लकड़ी के तख्तों की एक साथ सिलाई करके बनाए गए इन जहाजों ने लचीलापन और स्थायित्व प्रदान किया, जिससे उनमें उथले और रेत की पट्टियों से होने वाली क्षति की संभावना कम हुई । भले ही यूरोपीय जहाजों के आगमन से जहाज निर्माण की तकनीकों में बदलाव आया, लेकिन भारत के कुछ तटीय क्षेत्रों में, मुख्य रूप से छोटी स्थानीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं के संदर्भ में, जहाजों की सिलाई की यह कला बची हुई है।
  • भावी पीढ़ियों के लिए इस सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को सुनिश्चित करने हेतु इस लुप्त होती कला को पुनर्जीवित व सक्रिय करना महत्वपूर्ण है। सिलाई की इस प्राचीन भारतीय कला का उपयोग करके समुद्र में जाने वाले लकड़ी के सिले हुए पाल के जहाज के निर्माण का प्रस्ताव एक सराहनीय पहल है।
  • पारंपरिक नौवहन तकनीकों का उपयोग करके प्राचीन समुद्री मार्गों पर नौकायन करके, यह परियोजना हिंद महासागर के साथ उस ऐतिहासिक जुड़ाव से संबंधित अंतर्दृष्टि हासिल करना चाहती है, जिसने भारतीय संस्कृति, ज्ञान प्रणालियों, परंपराओं, प्रौद्योगिकियों और विचारों के प्रवाह को सुविधाजनक बनाया है।
  • सिलाई वाले जहाज की इस परियोजना का महत्व इसके निर्माण से कहीं अधिक है। इसका उद्देश्य समुद्री स्मृति को पुनर्जीवित करना और अपने नागरिकों में भारत की समृद्ध समुद्री विरासत के बारे में गर्व की भावना पैदा करना है। इसके अतिरिक्त, इसका उद्देश्य हिंद महासागर के तटीय देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान से जुड़ी स्मृतियों को ताजा करना है।
  • इस परियोजना के संपूर्ण दस्तावेजीकरण और सूचीबद्ध किए जाने से इस बहुमूल्य जानकारी का भविष्य के संदर्भ के लिए संरक्षित किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा। यह परियोजना न केवल नाव-निर्माण के एक अद्वितीय प्रयास का प्रतिनिधित्व करेगी, बल्कि भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन समुद्री यात्रा परंपराओं का प्रमाण भी बनेगी।

3. केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री नई दिल्ली में प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS) द्वारा कॉमन सर्विस सेंटर(CSC) की सेवाएं शुरू करने पर एक राष्ट्रीय महासंगोष्ठी का उद्घाटन करेंगे

सामान्य अध्ययन: 2

राजव्यवस्था एवं शासन:

विषय: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।

प्रारंभिक परीक्षा: प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS)

प्रसंग:

  • केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री नई दिल्ली में प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS) द्वारा कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) की सेवाएं शुरू करने पर एक राष्ट्रीय महासंगोष्ठी का उद्घाटन करेंगे।
  • इस महासंगोष्ठी का आयोजन सहकारिता मंत्रालय का विभाग, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC), CSC के सहयोग से कर रहा है। इस कार्यक्रम में PACS द्वारा CSC की सेवाएं प्रदान किए जाने से सम्बंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाएगी। अब तक कुल 17000 PACS, CSC पोर्टल पर ऑनबोर्ड हो चुके हैं, जिनमें से 6,000 से अधिक PACS, CSC के रूप में सेवाएं देना शुरू कर रहे हैं

विवरण:

  • PACS देश में सहकारिता की रीढ़ हैं और इनके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में CSC सेवाओं की डिलिवरी से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। PACS देश के सहकारिता आंदोलन की मूल इकाई हैं, इसलिए सरकार इनकी व्यवहार्यता में सुधार के निरंतर प्रयास कर रही है। ग्रामीणों को क्रेडिट सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सहकारिता मंत्रालय के पास देशभर में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) का एक बड़ा नेटवर्क है।
  • सरकार देश में पहली बार PACS के कम्प्यूटरीकरण पर काम कर रही है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य PACS की गतिविधियों में पारदर्शिता और इनके वित्तीय अनुशासन में सुधार लाना है। PACS को मजबूत करने के लिए सरकार, राष्ट्रीय सहकारिता विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय सहकारी नीति और सहकारी डेटाबेस बना रही है। PACS को बहुउद्देशीय बनाकर सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। बीज, जैविक खेती के विपणन और किसानों की उपज के निर्यात के लिए बहुराज्यीय सहकारी समितियों का गठन किया गया है।
  • सहकारिता मंत्रालय द्वारा सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किए गए मॉडल बायलॉज़, PACS को डेयरी, मत्स्य पालन, गोदाम, कस्टम हायरिंग केंद्र, उचित मूल्य की दुकानों, एलपीजी/डीजल/पेट्रोल डिस्ट्रीब्यूटरशिप, आदि सहित 25 से अधिक आर्थिक गतिविधियों को शुरू करके अपने व्यवसाय में विविधता लाने में सक्षम बनाएंगे।
  • इसके अलावा, संबंधित मंत्रालयों के परामर्श से, PACS को कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के रूप में कार्य करने, एफपीओ बनाने, एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटरशिप के लिए आवेदन करने, खुदरा पेट्रोल/डीजल पंप आउटलेट खोलने, जन औषधि केंद्र खोलने, उर्वरक वितरण केंद्रों के रूप में काम करने आदि के लिए भी सक्षम बनाया गया है।
  • PACS के जरिए CSC सेवाओं की डिलिवरी इनके सुदृणीकरण की दिशा में नया कदम है, जिससे अब, PACS देश में कॉमन सर्विस सेंटर की तरह सुविधाएं भी दे सकेंगे और इसका लाभ देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों लोगों को मिलेगा।
  • ग्राम स्तरीय सहकारी ऋण समितियां राज्य सहकारी बैंकों (State Cooperative Banks- SCB) की अध्यक्षता वाली त्रिस्तरीय सहकारी ऋण संरचना में अंतिम कड़ी के रूप में काम करती हैं। PACS, विभिन्न कृषि और कृषि गतिविधियों के लिए किसानों को अल्पकालीन एवं मध्यम अवधि के कृषि ऋण प्रदान करते हैं।
  • PACS को CSC द्वारा दी जाने वाली सेवाएं प्रदान करने के लिए एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत पहले चरण में 63,000 PACS को CSC के रूप में काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, और, दूसरे चरण में और तीस हज़ार PACS को प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • सामान्य सेवा केंद्र (CSC), सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है। आज देशभर में 5,20,000 से अधिक CSC आवश्यक सरकारी सेवाओं, समाज कल्याण योजनाओं, वित्तीय सेवाओं, शिक्षा और कौशल विकास पाठ्यक्रमों के अलावा कई बी2सी सेवाओं का भी संचालन करती हैं।
  • CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड, एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) है, जिसे वर्ष 2009 में भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत सामान्य सेवाओं के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए बनाया था।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है.

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