विश्व धरोहर दिवस अथवा विश्व विरासत दिवस (World Heritage Day) प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को दुनिया भर में मनाया जाता है। इस दिन को “स्मारकों और स्थलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस” (International Day for Monuments and Sites) के नाम से भी जाना जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के महत्त्व,उनके अस्तित्व के सम्भावित खतरों व उनके संरक्षण के प्रति जागरूकता लाई जा सके।
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विश्व विरासत दिवस क्यों मनाया जाता है?
वर्ष 1982 में इकोमार्क नामक एक संस्था ने ट्यूनिशिया में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया तथा उस सम्मेलन में यह विचार भी व्यक्त किया गया कि विश्व भर में जागरूकता के प्रसार के लिए विश्व विरासत दिवस का आयोजन किया जाना चाहिए। इसके बाद 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव 1982 में “अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद्” (I.C.O.M.O.S) ने लाया | 1983 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को (U.N.E.S.C.O) की महा सभा के सम्मेलन में इसके अनुमोदन के बाद प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस के रूप में मनाने के लिए घोषणा की गई। इससे पहले यूनेस्को की पहल पर विश्व के सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए सन् 1972 में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि भी की गई थी । इन धरोहर स्थलों को 3 श्रेणियों में शामिल किया जाता है :
- सांस्कृतिक धरोहर स्थल- ऐसे स्थल जो ऐतिहासिक , सांस्कृतिक अथवा कलात्मक दृष्टि से महत्त्व रखते हैं ,
- प्राकृतिक धरोहर स्थल- ऐसे स्थल जो पर्यावरण व पारिस्थितिकी के कोण से महत्वपूर्ण हैं , तथा
- मिश्रित धरोहर स्थल- ऐसे स्थल जो दोनों पर्यावरण व पौराणिकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं |
वर्तमान में विश्व भर में कुल 1154 ऐसे विरासत स्थल यूनेस्को द्वारा घोषित किये गये हैं | इनमें 897 स्थल सांस्कृतिक , 218 स्थल प्रकृतिक,जबकि 39 स्थल मिश्रित श्रेणी में रखे गये हैं | 43 स्थल ऐसे हैं जो 2 या 2 से अधिक देशों में विस्तृत हैं (Trans-boundary) | 52 स्थलों को संस्था द्वारा संकटापन्न बताया गया है | भारत में ऐसे विरासत स्थलों की कुल संख्या 40 है जिनमें से 32 स्थल सांस्कृतिक ,7 स्थल प्राकृतिक व 1 स्थल मिश्रित श्रेणी से हैं | इस वर्ष के विश्व विरासत दिवस की थीम ‘विरासत और जलवायु’ है। इस लेख में भारत के सभी विरासत स्थलों की विस्तृत जानकारी दी गई है |
भारत के विश्व विरासत स्थल – सांस्कृतिक स्थल
1.आगरे का किला ,उत्तर प्रदेश (1983 में शामिल) : अकबर के शासनकाल में 1565 से 1573 के दौरान बना यह किला ताजमहल से थोड़ी ही दूर पर,यमुना नदी के तट पर स्थित है | इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थरों से किया गया है। यही कारण है कि पुराने ज़माने में इसे लाल किला भी कहा जाता था | (ध्यातव्य है कि यह किला दिल्ली स्थित लाल किले से भिन्न है जिसका निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था ) | इस किले में जहाँगीर महल और खास महल मौजूद हैं।
2.अजन्ता की गुफाएँ ,महाराष्ट्र (1983 में शामिल) : महाराष्ट्र के शम्भाजी नगर (पूर्व नाम औरंगाबाद ) जिले में स्थित ये गुफाएँ भारत की “रॉक-कट गुफाओं” का सर्वोत्तम उदहारण हैं। इस श्रृंखला में कुल 28 गुफाएँ हैं जो कि बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं | अधिकांश गुफाओं का निर्माण वकाटक काल में हुआ है ,जबकि शेष गुफाएं सातवाहनों के द्वारा निर्मित हैं (200 ई.पू. से 650 ईस्वी के मध्य) | इनमें से 25 गुफाओं को विहार (बौद्ध संतों के आवास) के रूप में, जबकि शेष को चैत्य (पूजा स्थल) के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
3.एलोरा की गुफाएँ,महाराष्ट्र (1983 में शामिल) : महाराष्ट्र के शम्भाजी नगर (पूर्व नाम औरंगाबाद ) जिले में स्थित एलोरा की 34 “रॉक-कट गुफाओं” का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों द्वारा 5वीं से 10वीं सदी के बीच करवाया गया था | ये गुफाएँ एक ऊर्ध्वाधर खड़ी चरणाद्रि पर्वत का एक फ़लक है। इसमें हिन्दू ,बौद्ध और जैन बने हुए हैं। यहाँ 12 बौद्ध गुफाएँ , 17 हिन्दू गुफाएँ और 5 जैन गुफाएँ हैं।
4. ताज महल, आगरा,उत्तर प्रदेश (1983 में शामिल) : भारत के सभी ऐतिहासिक स्मारकों का सिरमौर माना जाने वाला ताजमहल मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया गया था | अन्य मुगल स्थापत्य की तरह यह लाल बलुआ पत्थर से निर्मित न हो कर सफेद संगमरमर का बना है। इसके वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी थे | यह यमुना नदी के तट पर स्थित है। इसका निर्माण वर्ष 1628 से 1648 तक लगभग 20 वर्षों की अवधि में हुआ था। वर्तमान में यह देश- दुनिया के लिए पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और प्रतिवर्ष 20-40 लाख पर्यटकों को आकर्षित करता है | यह विश्व के 8 आश्चर्यों में भी शामिल है | (विश्व के अन्य 7 आश्चर्य हैं :- गीज़ा के पिरामिड, बेबीलोन के झूलते बाग़, अर्टेमिस का मन्दिर, ओलम्पिया में जियस की मू्र्ति, माउसोलस का मकबरा, 630 विशालमूर्ति व ऐलेक्जेन्ड्रिया का रोशनीघर) |
5.महाबलीपुरम में स्मारक समूह,तमिलनाडु (1984 में शामिल) : तमिलनाडु के इन स्मारक समूहों का निर्माण पल्लव राजाओं द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी के मध्य करवाया गया था । इन मंदिरों का निर्माण प्रस्तर चट्टानों को तराश कर “द्रविड़ शैली” में किया गया है जिनमें ‘अर्जुन की तपस्या’ , ‘गंगा का अवतरण’ ,तट मंदिर ,पञ्च रथ ,एकाश्म मंदिर, सात मंदिरों के अवशेष इत्यादि अत्यंत भव्य हैं । इस शहर को सप्त पैगोडा के रूप में भी जाना जाता है ।
6. कोणार्क सूर्य मंदिर,उड़ीसा (1984 में शामिल) : उड़ीसा के पुरी ज़िले में ,बंगाल की खाड़ी के चन्द्र भागा तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के 3 सबसे प्रसिद्द सूर्य मंदिरों में से एक है। यह मंदिर एक विशाल रथ की आकृति की अद्वितीय शैली में बना है जिसके 24 पहियों को 7 घोड़ों द्वारा खींचते हुए दर्शाया गया है। मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये 24 पहिये या चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो कि दिन के आठ पहरों के द्योतक हैं। अधिकांश घोड़े अब नष्ट हो चुके हैं और 1 ही घोडा अच्छी अवस्था में है | यहाँ खजुराहो के सामान कामुक मुद्राएँ भी उत्कीर्ण हैं जो कामसूत्र से लीं गईं हैं। दीवारों पर मानव, देवता , गंधर्व, किन्नर आदि की अकृतियां उत्कीर्ण हैं | रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कभी इस मंदिर के बारे में कहा था -”यहाँ के पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से बेहतर है |” काले ग्रेनाइट से निर्मित होने के कारण इसे ब्लैक पैगोडा भी कहते हैं | इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के शासक नरसिंह देव प्रथम ने कराया था। कोणार्क शब्द 2 शब्दों -”कोण व अर्क” के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य, जबकि कोण से अभिप्राय है किनारा | स्थानीय लोग इसे “बिरंचि-नारायण कहते थे। मुख्य मन्दिर 3 मंडपों में बना है जिनमे से 2 मण्डप अब नष्ट चुके हैं। इस मन्दिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं: बाल्यावस्था-उदित सूर्य- 8 फीट; युवावस्था-मध्याह्न सूर्य- 9.5 फीट तथा प्रौढ़ावस्था-अपराह्न सूर्य- 3.4 फीट | प्रवेश पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं। मंदिर के दक्षिणी भाग में बने लगभग 10 फूट के 2 घोड़ों को उड़ीसा सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अंगीकार किया है।
(नोट: कोणार्क के अलावा भारत के 2 अन्य प्रसिद्द सूर्य मंदिर गुजरात के मोढेरा में तथा कश्मीर के अनंतनाग में स्थित मार्तंड सूर्य मन्दिर हैं )
7.पुराने गोवा के चर्च और मठ (1986 में शामिल) : गोवा भारत और एशिया में पुर्तगालीयों की राजधानी था और 16वीं शताब्दी से धार्मिक प्रचार का भी अहम केंद्र था। विश्व विरासत सूची में गोवा में धार्मिक स्मारकों को इस लिए शामिल किया गया क्योंकि पश्चिमी कला रूपों के प्रसार विशेष कर – मैनुअल शैली, मैननेरिस्ट और बारोक तथा फ्रांसिस्को जेवियर के मकबरे के “बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस” में उपस्थिति का विशिष्ट मूल्य है |
8.फतेहपुर सीकरी ,उत्तर प्रदेश (1986 में शामिल) : इसकी स्थापना सम्राट अकबर द्वारा 1571-72 में गुजरात विजय अभियान के बाद कराई गई थी । 1585 तक यह मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रही । यहाँ भारत के सबसे बड़े मस्जिदों में से एक ,जामा मस्जिद सहित कई अन्य इस्लामिक स्मारक भी हैं।
9.हम्पी में स्मारकों का समूह,कर्नाटक (1986 में शामिल) : यह गौरवशाली विजयनगर साम्राज्य की अंतिम राजधानी थी।
विजयनगर के शासकों कृष्ण देव राय ,देव राय द्वितीय व अन्य ,द्वारा हम्पी के मंदिर और महल को 14वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य तुंगभद्रा नदी कर तट पर बनवाया गया था। विरूपाक्ष मंदिर ,विट्ठल मंदिर ,कृष्ण बाज़ार इत्यादि इस स्थल के प्रमुख आकर्षण केंद्र हैं |
10. खजुराहो समूह के स्मारक (1986 में शामिल) : मध्य प्रदेश के छतरपुर क्षेत्र में खजुराहो स्मारक समूह हिन्दू और जैन धर्म के स्मारकों का एक समूह है । खहुराहो के ज्यादातर मन्दिर चन्देल राजवंश के समय विशेषकर यशोवर्मन एवं धंग देव चन्देल के द्वारा 950 से 1050 ईस्वी के मध्य बनाए गए थे। । यशोवर्मन की विरासत का उत्कृष्ट नमूना लक्ष्मण मन्दिर है जबकि धंग देव को विश्वनाथ मन्दिर के निर्माण का श्रेय जाता है | ये मंदिर समूह स्थापत्य कला और मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और विशेषकर मैथुन मुद्राओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्द है | नागर शैली में बने यहाँ के मंदिरों की संख्या अब केवल 20 ही रह गई है, जिनमें कंदरिया महादेव का मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है जिसका निर्माण विद्याधर चंदेल ने करवाया था।
11.एलीफेंटा की गुफाएँ,महाराष्ट्र (1987 में शामिल) : एलीफेंटा या घारापुरी की गुफाएं एलीफेंटा द्वीप पर मुम्बई के गेटवे ऑफ इंडिया से लगभग 12 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ 7 गुफाओं का निर्माण 5वीं से 6ठी शताब्दी ईस्वी के मध्य हुआ था। हिन्दू धर्म से सम्बंधित इन गुफाओं में अनेक मूर्तियाँ हैं किंतु उनमे त्रिमूर्ति शिव की लगभग 20 फुट ऊँची मूर्ती विशेष रूप से उल्लेखनीय है |
12.महान जीवंत चोल मंदिर,दक्षिण भारत (1987 में शामिल) : न केवल दक्षिण भारत की मुख्य भूमि बल्कि पड़ोसी द्वीपों तक फैले हुए चोल साम्राज्य के राजाओं द्वारा महान जीवंत चोल मंदिर का निर्माण 11वीं और 12वीं शताब्दी में कराया गया था। चोल साम्राज्य के राजाओं द्वारा निर्मित ये मंदिर वास्तुकला, मूर्ति कला, पेंटिंग और कांस्य ढलाई (Bronze Casting) के बेहतरीन उदहारण हैं। इस स्थल में 3 ऐतिहासिक हैं – तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोण्डचोलपुरम का बृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर । राजेंद्र प्रथम द्वारा निर्मित गंगैकोण्डचोलपुरम मंदिर का निर्माण सन 1035 में पूर्ण हुआ। इसके 53 मीटर के विमान (गर्भगृह शिखर) में रिक्त कोने और ऊपर की ओर घुमावदार भव्य आवृत्ती है जो तंजौर के सीधे और ठोस स्तंभ के विपरीत है। दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर राजराजा-द्वितीय द्वारा निर्मित है, जिसमें 24 मीटर का विमान है और भगवान शिव की पत्थर की मूर्ति विराजमान है।
13.पट्टदकल समूह के स्मारक,कर्नाटक (1987 में शामिल) : कर्नाटक के पट्टदकल में ,बादामी से केवल 22 km दूर स्थित ,चालुक्य शासकों द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी के दौरान बनवाए गए ‘बेसर शैली’ के मंदिर अत्यंत भव्य हैं। ये मंदिर नागर एवं द्रविड़ दोनों मंदिर शैलियों से प्रभावित हैं | यहाँ निर्मित 10 प्रमुख मंदिरों में नौ शिव मंदिर तथा एक जैन मंदिर है, जिसमें ‘विरूपाक्ष मंदिर’ सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह मंदिर रानी लोकमहादेवी द्वारा 740 ई. में ,पल्लवों पर विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था।
14.सांची का बौद्ध स्मारक,मध्य प्रदेश (1989 में शामिल) : मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में तीसरी सदी ई.पू. के आसपास निर्मित अनेक बौद्ध स्मारक हैं जिनमे से अशोक द्वारा निर्मित स्तूप सर्वाधिक प्रसिद्द है | यह भारत में प्रस्तर -निर्मित सभी संरचनाओं में सबसे पुरानी है | इसमें बुद्ध की अस्थियों को सहेज कर रखा गया है | इनमें प्राचीन भारतीय मूर्तिकला के विकास के अगले चरण को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है | यह चरण शैलीगत प्रगति की दृष्टि से उल्लेखनीय है | साँची के स्तूप-1 में ऊपर और नीचे दो प्रदक्षिणा पथ हैं | इसके चार तोरण हैं जो सुंदरता से सजे हुए हैं | इन तोरणों पर बुद्ध के जीवन की घटनाओं और जातक कथाओं के अनेक प्रसंगों को प्रस्तुत किया गया है | प्रतिमाओं के हाव-भाव और शारीरिक मुद्राओं का प्रस्तुतीकरण स्वाभाविक है और शरीर के अंग-प्रत्यंग में कठोरता नहीं दिखाई देती | बुद्ध को प्रतीकों के रूप में प्रस्तुत किया गया है | कुशीनगर की घेराबंदी, बुद्ध का कपिलवस्तु भ्रमण, अशोक द्वारा रामग्राम स्तूप के दर्शन आदि को पर्याप्त विस्तार के साथ प्रस्तुत किया गया है | मथुरा में पाई गई इस काल की प्रतिमाओं में भी ऐसी ही विशेषताएँ पाई जाती हैं |
15. हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली (1993 में शामिल) : इसका निर्माण हुमांयू की विधवा बेगम हमीदा बानो की इच्छानुसार वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न गयासुद्दीन बेक ने अकबर के शासन काल में 1570 में किया था | फ़ारसी वास्तु शैली से प्रभावित यह मकबरा भारत में निर्मित पहला उद्यान-मकबरा था। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस मकबरे की विशेषता चार बाग़ तथा गोल गुम्बद है | इसका ऐतिहासिक महत्त्व यह है कि यह मकबरा ताजमहल सहित कई अन्य इमारतों के लिये प्रेरणा स्रोत बना ।
16. कुतुब मीनार , नई दिल्ली (1993 में शामिल) : इसका निर्माण अफगानिस्तान के जाम की मीनार से प्रेरित हो कर दिल्ली सलतनत के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 में प्रारंभ कराया | किंतु जल्द ही उसकी मृत्यु हो गई | इल्तुतमिश ने इसका निर्माण कार्य जारी रखा और अंततः यह फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में 1368 में पूर्ण हुआ था। इसकी ऊँचाई 72.5 मी. (238 फीट) और आधार का व्यास 14.32 मी. है। लाल बलुआ पत्थर व इंटों से निर्मित इस मीनार पर कुरान की आयतों से खूबसूरत नक्काशी की गई है | इस स्थल के अन्य स्मारक हैं:- अलाइ दरवाज़ा, चन्द्रगुप्त-2 (विक्रमादित्य) का लौह स्तंभ व कुव्वत-उल- इस्लाम मस्जिद ।
17. भारत के पर्वतीय रेलवे : भारत के निम्नलिखित 3 पर्वतीय रेलवे विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल हैं:-
दार्जलिंग पर्वतीय रेलवे, प.बंगाल (1999 में शामिल): “Toy Train” के नाम से विख्यात , सिलीगुड़ी से दार्जलिंग के बीच 88 km लम्बा यह रेल लाइन वर्ष 1881 में शुरू किया गया। 1999 में यूनेस्को विश्व विरासत स्थलों की सूचि में शामिल होने वाला यह भारत का प्रथम पर्वतीय रेलवे था |
नीलगिरि पर्वतीय रेलवे,तमिलनाडु (2005 में शामिल) : 46km लम्बा यह पर्वतीय रेलवे कोइम्बतुर से ऊटी को जोड़ता है | यह भारत का एक मात्र रैक रेलवे है (steep grade railway) | यह लाइन 1891 में शुरू हुई और 1908 में पूरी हुई ।
कालका-शिमला रेलवे , (2008 में शामिल) : हिमाचल प्रदेश के शिमला से कालका को जोड़ने वाला यह एक 96.6 किलोमीटर लंबा, सिंगल ट्रैक वर्किंग रेल लिंक है जो देश का सबसे लम्बा पर्वतीय रेलवे है ।
(नोट : इनके अलावा महाराष्ट्र का माथेरान पर्वतीय रेलवे भी यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों की संभावित सूचि में शामिल है)
18.महाबोधि मंदिर परिसर, बिहार (2002 में शामिल) : यह मन्दिर बिहार के गया जिले में उस स्थान पर स्थित है जहाँ महात्मा बुद्ध को पीपल के वृक्ष के नीचे लम्बी साधना के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ था | इस मंदिर का निर्माण पहली बार सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कराया गया माना जाता है | इसके बाद मन्दिर का कई काल में कई राजाओं द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया और अपने वर्तमान रूप में यह मंदिर अनुमानतः 5वीं या 6वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। यह सबसे प्राचीन बौद्ध मंदिरों में से एक है जो पूरी तरह से ईंटों से निर्मित है।
19. भीमबेटका गुफा , मध्य प्रदेश (2003 में शामिल) : मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले में ‘रातापानी वन्यजीव अभयारण्य’ में स्थित इन प्रागैतिहासिक शैल आवासों की खोज वर्ष 1957 में वि.एस. वाकणकर के द्वारा की गई थी। यहाँ 700 से भी अधिक गुफाओं में से 400 पुरापाषानिक चित्रों द्वारा सु-सज्जित हैं। ऐसी मान्यता है की अपने वनवास के दौरान पांडू पुत्र भीम यहाँ एक पत्थर पर बैठे थे ,इसीलिए इसे भीम-बैठक कहा जाने लगा जो बाद में आगे चलकर भीमबेटका हो गया | इस स्थल से प्राप्त चित्रकला भारत की सबसे पुरानी प्रागैतिहासिक चित्रकला है | इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष आदि अन्य पुरावशेष भी मिले हैं ।
20.चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्त्व उद्यान,गुजरात (2004 में शामिल) : गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित इस उद्यान में प्रागैतिहासिक काल में बनाए गए प्रारंभिक हिंदू राजधानी का एक पहाड़ी किला और 16वीं शताब्दी में निर्मित गुजरात राज्य की राजधानी के अवशेष हैं। इन अवशेषों में 8वीं से 14वीं शताब्दियों के बीच के महल, धार्मिक इमारतें, आवासीय परिसर आदि अवसंरचानाएँ भी शामिल हैं। पावागढ़ पहाड़ी की चोटी पर स्थित कालिकामाता का मंदिर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल है जहाँ बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। यह पहाड़ी लाल–पीले रंग के चट्टानों से बनी है जो भारत की सबसे पुरानी चट्टानों में से एक है। यह स्थल एकमात्र अपरिवर्तित पूर्व-मुगल-इस्लामिक शहर माना जाता है। यह उद्यान गुजरात के सुल्तान महमूद बेगढा द्वारा बनाए गए ऐतिहासिक शहर चंपानेर के पास है।
21.छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस ,महाराष्ट्र (2004 में शामिल) : ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विल्लियम स्टीवंस द्वारा 1887-88 में निर्मित “विक्टोरियन गोथिक” शैली में बनी यह इमारत मुंबई का रेलवे स्टेशन एवं मध्य रेलवे का मुख्यालय है | इसके अतिरिक्त यह ऐतिहासिक एवं कला की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
22. लाल किला परिसर, दिल्ली (2007 में शामिल) : मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा किला-ए-मुबारक ( लाल किला ) का निर्माण 1638 से 1648 के बीच तब करवाया गया जब उसने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की | लाल बलुआ पत्थर से निर्मित होने के कारण इसे लाल किला कहते हैं | किला परिसर में इस्लाम शाह सूरी द्वारा वर्ष 1546 में निर्मित सलीमगढ़ किला भी शामिल है। इसकी दीवारें अत्यंत ही बारीकी से तराशी गईं हैं। ये दीवारें दो मुख्य द्वारों पर खुली हैं ― दिल्ली दरवाज़ा एवं लाहौर दरवाज़ा – जो की इसका मुख्य प्रवेशद्वार है । इसके अन्दर एक बड़ा बाजार भी है – चट्टा चौक । इसके वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी थे जिन्होंने ताजमहल का भी शिल्प तैयार किया था ।
23. जंतर-मंतर, जयपुर,राजस्थान (2010 में शामिल) : यह एक खगोलिय वेधशाला है जिसका निर्माण 1728 के आस-पास खगोलीय स्थितियों के अवलोकन के लिये राजा सवाई जयसिंह -2 ने करवाया था। सटीक अवलोकन के लिये यहाँ 20 मुख्य उपकरणों का एक सेट स्थापित किया गया था। इनमे से प्रमुख यंत्र हैं : बृहत सम्राट यन्त्र (जो कि एक विशाल सूर्य घड़ी है), लघु सम्राट यन्त्र, जयप्रकाश यन्त्र, रामयंत्र, ध्रुवयंत्र, दक्षिणायन्त्र, नाड़ीवलययन्त्र, राशिवलय, दिशायन्त्र, लघुक्रांति यन्त्र, दीर्घक्रांति यन्त्र, राजयंत्र, उन्नतांश यन्त्र, और दिगंश यन्त्र। इनके अलावा यहां महत्वपूर्ण ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय अंकन के लिए क्रांतिवृत यंत्र, यंत्र राज आदि यंत्रों का भी प्रयोग किया जाता रहा था। राजा जयसिंह स्वयं खगोलशास्त्र के एक अच्छे ज्ञाता थे और उन्होंने जयपुर के अलावा दिल्ली ,मथुरा,उज्जैन व बनारस में भी जन्तर-मन्तर का निर्र्माण करवाया था | किंतु आज ज्यादातर संरचनाएं जीर्ण -शीर्ण अवस्था में हैं |
24.राजस्थान के पर्वतीय किले (2013 में शामिल) : इस समूह में कुल 6 किले शामिल हैं :-
क)चित्तौड़गढ़ दुर्ग -इस किले का निर्माण मौर्यवंशी राजपूत राजा चित्रांगद मौर्य ने 7वीं सदी में कराया | यह राजस्थान का सबसे विशाल दुर्ग है | इसे राजस्थान का गौरव एवं राजस्थान के सभी दुुर्गों का सिरमौर भी कहते हैं |
ख)कुंभलगढ़ दुर्ग -राजसमन्द जिले में स्थित इस किले का निर्माण महाराणा कुंभा ने 15 वीं सदी में कराया था |
ग)रणथंभोर दुर्ग – सवाई माधोपुर जिले में “रन और थंभ” नाम की पहाडियों के बीच 12 किमी की परिधि में बना यह दुर्ग 3 ओर से पहाडों में प्राकृतिक खाई से घिरा है जो इस किले की सुरक्षा को अभेद्द्य बनाती है। इसका निर्माण राजा वीर सज्जन सिंह नागिल ने कराया था |
घ)जैसलमेर दुर्ग-इसका निर्माण राव जैसल ने 12 वीं सदी में कराया था | दूर से इस किले को देखने पर ऐसा लगता है जैसे रेत के समुद्र में कोई विशाल जहाज लंगर डाले खड़ा हो। थार रेगिस्तान में बना यह दुर्ग “लिविंग फोर्ट” के नाम से प्रसिद्ध है ।
ड.) आमेर /जयपुर का किला -इसका निर्माण कछवाहा राजा मान सिंह प्रथम द्वारा लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से कराया गया था |
च)झालावाड़ का गागरोन किला -झालावाड जिले में स्थित यह किला चारों ओर से पानी से घिरा है और भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी नीव नही है । इस किले का निर्माण राजा बिजल देव ने 12 वीं सदी में करवाया था | यह काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित है। इस जल दुर्ग के नाम से भी जानते हैं |
25. रानी की वाव, गुजरात (2014 में शामिल) : गुजरात में सीढ़ीदार कुओं या तालाबों को वाव या वावड़ी कहते हैं | रानी की वाव का निर्माण गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने वर्ष 1050 में सरस्वती नदी के किनारे करवाया था। यह वाव लगभग 100 फीट गहरा है | वाव की दीवारों और स्तंभों पर राम, वामन अवतार , महिषासुर वध , कल्कि अवतार , आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु की नक्काशियां की गई हैं। इसमें मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का उपयोग किया गया है।
26. ली कार्बूजियर का वास्तुकला कार्य, चंडीगढ़ (2016 में शामिल) : चंडीगढ़ कैपिटल काम्प्लेक्स लगभग 100 एकड़ में फैला वास्तुकला का एक नायाब नमूना है | इसके अंतर्गत स्मारक ,इमारत ,संग्रहालय ,आर्ट गैलरी भवन ,महाविद्यालय ,मुक्त -हस्त स्थापत्य ,उच्च न्यायलय भवन ,विधानसभा भवन इत्यादि आते है | इस वास्तुकला के निर्माता एक प्रसिद्द स्विस-फ़्रांसिसी वास्तुकार ली कार्बूजियर (Le Corbusier) थे। भारत के अलावा भी कार्बूजियर की वास्तुकला 6 अन्य देशों में फैले कुल 17 भी अधिक स्थलों में देखी जा सकती है | इनमें आधुनिक स्थापत्य शैली की अभिव्यक्ति को देखा जाता है।
27.नालंदा भग्नावशेष ,बिहार (2016 में शामिल) : बिहार राज्य की राजधानी पटना से लगभग 90km दक्षिण-पूर्व में स्थित भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक इस विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त शासक कुमार गुप्त ने 440 से 470 ई. के बीच करवाया था | इनकी खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी | अत्यंत सुनियोजित ढंग से बना हुआ यह विश्वविद्यालय एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसकी इंटें आज तक उसी स्वरुप में हैं | परिसर में प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी।
28. ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद,गुजरात (2017 में शामिल) : यूनेस्को की विश्व विरसत सूचि में शामिल होने वाला यह भारत का पहला शहर है (दूसरा जयपुर) | इसकी स्थापना 15वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह सुल्तान अहमद शाह -1 ने साबरमती नदी के तट पर की थी। यह शहर सदियों तक गुजरात राज्य की राजधानी तथा देश का एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक केंद्र रहा । यहाँ की स्थापत्य विरासत में भद्र का दुर्ग, पुराने शहरों की दीवारें और द्वार तथा कई मस्जिदों एवं मकबरों के अलावा हिंदू व जैन मंदिर शामिल हैं। पूरे विश्व में 287 ऐसे शहर हैं जिन्हें यह दर्जा प्राप्त हुआ है | भारतीय उप-महाद्वीप में अहमदाबाद के अतिरिक्त केवल 2 ऐसे शहर हैं | नेपाल का भक्तपुर और श्रीलंका का गल शहर |
29. विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको इंसेबल्स, मुंबई (2018) : दक्षिण मुंबई में स्थित विक्टोरियन गोथिक आर्ट डेको के भवनों को मियामी के बाद दुनिया की सबसे बड़ी भवन श्रंखला में शामिल किया जाता है। बांबे हाईकोर्ट का भवन विक्टोरियन गोथिक शैली का बेहतरीन उदाहरण है। ये भवन में विशाल मैदान के आसपास स्थित हैं इनका निर्माण 19वीं सदी में हुआ था। बांबे हाईकोर्ट के भवन का निर्माण 1871 में आरंभ हुआ और 1878 में पूरा हुआ। इस भवन के वास्तुविद जेए फुलेर थे। ये शैलियाँ भारतीय वास्तु कला के समरूप हैं। विक्टोरियन नव -गोथिक शैलियों में डिज़ाइन की गई इमारतों में बालकनीयां और बरामदे हैं जो भारतीय शैली से प्रेरित हैं । मैदान के पश्चिमी इलाके में स्थित आर्ट डेको भवनों का निर्माण 1930 से 1950 के बीच हुआ है। मुंबई की आर्ट डेको बिल्डिंग में आवासीय भवन, व्यवसायिक दफ्तर, अस्पताल, मूवी थियेटर आदि आते हैं। इसी क्षेत्र में रीगल और इरोस सिनेमा घर हैं। इरोज सिनेमा का भवन आर्ट डेको शैली का बेहतरी उदाहरण है। इस सिनेमाघर में 1,204 लोगों की बैठने की क्षमता है। इस भवन के वास्तुविद शोरबाजी भेदवार थे।
30. जयपुर शहर, राजस्थान (2019 में शामिल) : यूनेस्को की विश्व विरासत सूचि में शामिल होने वाला यह भारत का दूसरा शहर है | गुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्द इस शहर की आधारशिला 1727 में राजा सवाई जय सिंह- द्वितीय द्वारा रखी गई थी। इस नगर की योजना में वास्तुकार विद्द्याधर भट्टाचार्य ने प्राचीन हिंदू, मुगल और पाश्चात्य ,तीनों तत्त्वों का प्रयोग किया है। ध्यातव्य है की जयपुर शहर के जन्तर-मन्तर व आमेर किला पहले से ही यूनेस्को विश्व विरासत सूचि में शामिल हैं |
31. रामप्पा रुद्रेश्वर मंदिर, तेलन्गाना (2021 में शामिल) : तेलंगाना के मुलुगू जिले के पालमपेट में स्थित ऐतिहासिक रामप्पा रुद्रेश्वर मंदिर को 2021 में विश्व धरोधर स्थल का दर्जा दिया गया । इस मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल के दौरान कराया गया था। यह मंदिर रेचारला रुद्र ने बनवाया था जो काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति थे। शैव सम्प्रदाय के इस मंदिर के ईष्ट देव रामलिंगेश्वर स्वामी हैं।
32.धोलावीरा,गुजरात (2021 में शामिल): धोलावीरा एक लोकप्रिय प्राचीन स्थल है, जो गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालिका में मासर एवं मानहर नदियों के संगम पर स्थित है। यह सिंधु सभ्यता का एक प्राचीन और विशाल नगर था। धोलावीरा को सिंधु सभ्यता का सबसे सुंदर नगर माना जाता है और यहां जल संग्रहण के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। धोलावीरा को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खोजा था। पद्मश्री पुरस्कार विजेता आरएस बिष्ट की देखरेख में इसकी खोज हुई थी। स्थानीय लोग इसे ‘कोटा दा टिंबा’ कहते हैं। यह गुजरात का चौथा विश्व विरासत स्थल है | मोहनजोदड़ो, गनेरीवाला ,हड़प्पा और राखीगढ़ी के बाद धौलावीरा सिंधु घाटी सभ्यता का पांँचवा सबसे बड़ा नगर था । यहाँ से टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, मोती, सोने और तांबे के गहने, मुहरें, मछलीकृत हुक, जानवरों की मूर्तियाँ, उपकरण, कलश एवं कुछ महत्त्वपूर्ण बर्तन प्राप्त हुए हैं । किंतु इस स्थल की विशेषता है यहाँ से प्राप्त सिंधु लिपि में निर्मित 10 बड़े पत्थरों के शिलालेख जो की शहर के प्रवेश द्वार पर है |हालाँकि इसे पढ़ा नहीं जा सका है किंतु शायद यह दुनिया का सबसे पुराने साइन बोर्ड है।
भारत के विश्व विरासत स्थल – प्राकृतिक स्थल
1.काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान,असम (1985 में शामिल) : ब्रह्मपुत्र नदी घाटी क्षेत्र में लगभग 42,996 हेक्टेयर में फैला काजीरंगा नेशनल पार्क असम राज्य में स्थित है और एक सिंग वाले गेंडों के लिए प्रसिद्ध् है | इसे 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था, 2007 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया और 1985 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूचि में शामिल किया गया । गेंडों के अलावा यहाँ हाथी, रॉयल बंगाल टाइगर और एशियाई जल भैंस भी पाए जाते हैं । एक अध्ययन के अनुसार यहाँ लगभग 2,413 गैंडे , 103 बाघ और लगभग 1,100 हाथी हैं । उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क और कर्नाटक के बांदीपुर नेशनल पार्क के बाद भारत में बाघों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या यहीं पाई जाती है।
2.केवलादेव-घाना राष्ट्रीय उद्यान,राजस्थान (1985 में शामिल) : यह एक विख्यात पक्षी अभ्यारण्य तथा रामसर के अंतर्गत वर्गीकृत एक वेटलैंड भी | पहले यह एक शिकारगाह हुआ करता था जहाँ अँगरेज़ अफसर शिकार करने आते थे । बाद में यहाँ शिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया और वर्ष 1982 में इस क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। यह राष्ट्रीय उद्यान 375 पक्षी प्रजातियों और विभिन्न अन्य प्रकार के जीवों का निवास स्थल है जिनमें साईबेरियाई सारस, घोमरा, उत्तरी शाह चकवा, जलपक्षी, लालसर बत्तख आदि जैसे विलुप्तप्राय जाति के अनेक पक्षी तथा पलैरेटिक प्रवासी जलपक्षी (Palaearctic Migratory Waterfowl), गंभीर रूप से लुप्तप्राय साइबेरियन क्रेन (Siberian Crane) के साथ-साथ विश्व स्तर पर संकटग्रस्त ग्रेटर स्पॉटेड ईगल (Greater Spotted Eagle) और इंपीरियल ईगल (Imperial Eagle) जैसे प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं ।
3.मानस राष्ट्रीय उद्यान/वन्यजीव अभयारण्य,असम (1985 में शमिल) : मानस राष्ट्रीय उद्यान असम में स्थित है जिसे यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के साथ साथ एक हाथी रिजर्व, एक प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व और एक बायोस्फीयर रिजर्व का भी दर्जा प्राप्त है। यह हिमालय की तलहटी में स्थित है और भूटान के रॉयल मानस नेशनल पार्क से सटा हुआ है। यह पार्क अपने लुप्तप्राय और दुर्लभ स्थानिक वन्यजीवों जैसे हर्पिड खरगोश,बंगाल फ्लोरिकन (Bengal Florican) ,स्वाम्प डियर,बाघ ,गेंडों , पिग्मी हॉग और गोल्डन लंगूर के लिए प्रसिद्ध है। यह राष्ट्रीय उद्यान अपनी जंगली भैंसों की आबादी के लिए भी प्रसिद्ध है। इस पार्क का नाम मानस नदी पर रखा गया है । मानस नदी ब्रह्मपुत्र नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरती है।
4.सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान ,प.बंगाल (1987 में शामिल) : सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य तथा बांग्लादेश में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान, बाघ संरक्षित क्षेत्र (Tiger Reserve) एवं बायोस्फ़ीयर रिज़र्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र गरान (Mangrove) के घने जंगलों से घिरा हुआ है और रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। यह विश्व का एकमात्र नदी डेल्टा है जहां बाघ पाए जाते हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या 103 है। यहां पक्षियों, सरीसृपों तथा रीढ़विहीन जीवों (इन्वर्टीब्रेट्स) की कई प्रजातियों के साथ साथ खारे पानी के मगरमच्छ भी मिलते हैं। वर्तमान सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान 1973 में मूल सुंदरवन बाघ रिज़र्व क्षेत्र का कोर क्षेत्र तथा 1977 में वन्य जीव अभयारण्य घोषित हुआ था। यहाँ के गरान जंगलों में सुंदरी के वृक्ष बड़ी संख्या में पाए जाते हैं जिसके कारण इसका नाम सुंदर वन पड़ा |
5.नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (1988, 2005) : नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखण्ड में नन्दा देवी पर्वत के आस-पास विस्तृत है | नंदा देवी भारत की दूसरी एवं विश्व की 23 वीं सबसे ऊँची पर्वत माला है | उपरी ऋषि घाटी, जिसे अक्सर ”भीतरी अभ्यारण्य” के रूप में उल्लिखित किया जाता है, इसे उत्तर में चांगबांग, उत्तर ऋषि और उत्तर नंदा देवी हिमनदी द्वारा तथा नंदादेवी पर्वत के दक्षिण में दक्षिण नंदा देवी और दक्षिणी ऋषि हिमनदियों द्वारा सिंचित किया जाता है। उत्तरी और दक्षिणी ऋषि नदियों के संगम से नीचे की ओर देवी स्थान ऋषिकोट पर्वतमाला को काटते हुए एक चिताकर्षी संकीर्ण नदी घाटी विद्यमान है। त्रिशुली और रमणी हिमनदियां निचली ऋषि घाटी अथवा ”बाहरी अभ्यारण्य” की विशेषताएं हैं, और इसके नीचे ऋषि गंगा संकीर्ण, सीधी खड़ी नीचे की ओर संकरी नदी घाटी में प्रवेश करती है। यह उद्यान अनेक विलुप्त प्राय स्त्नधारियों, विशेषरूप से हिम तेंदुआ, हिमालयी कस्तूरी मृग और भराल का निवास स्थल है। लगभग 630 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ उत्तर-भारत का यह विशालतम अभयारण्य है। जबकि फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान गढ़वाल हिमालय के भीतर चमोली जिले में अवस्थित है। इसमें ऋषि गंगा, धौली गंगा, धौली गंगा की एक पूर्वी सहायक नदी, जो जोशीमठ में अलकनंदा नदी में प्रवाहित होती है, का जल संग्रहण क्षेत्र शामिल है। यह क्षेत्र एक विशाल हिमनदीय घाटी है, जो एक सामानांतर श्रृंखलाओं अर्थात् उत्तर-दक्षिण उन्मुख पर्वतमालाओं द्वारा विभक्त हैं। ये पर्वत किनारा को घेरते हुए ऊपर की ओर बढ़ती हैं, जिसके साथ दुनागिरि, चांगबांग और नंदा देवी पूर्व सहित बेहतर रूप से ज्ञात लगभग एक दर्जन शिखर हैं।
इस घाटी को पिंडर घाटी अथवा पिंडर वैली के नाम से भी जाना जाता है | पिंड का अर्थ होता है हिम | नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। भ्रमण के लिये जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों को सर्वोत्तम माना जाता है। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, जो 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ ने 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब लिखी | तभी से यह बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं।
6.पश्चिमी घाट,द.भारत (2012 में शामिल) : पश्चिमी घाट भारत के दक्षिणी-पश्चिम तट के समानांतर एक 1600 किमी. लंबी पर्वत शृंखला (औसत उंचाई लगभग 1200 मीटर (3900 फीट)) है जिसका विस्तार देश के 6 राज्यों : तमिलनाडु, केरल,कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा व गुजरात राज्यों में है। यह दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के लिये एक अवरोध का कार्य करता है अतः यहाँ भारी वर्षा होती है और इसीलिए यहाँ सदाबहार वर्षावन पाए जाते हैं | यह देश का सबसे प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट है | इस क्षेत्र में फूलों की पांच हजार से ज्यादा प्रजातियां, 139 स्तनपायी प्रजातियां, 508 चिडि़यों की प्रजातियां और 179 उभयचर प्रजातियां पाई जाती हैं। पश्चिमी घाट में कम से कम 84 उभयचर प्रजातियां और 16 चिडि़यों की प्रजातियां और सात स्तनपायी और 1600 फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जो विश्व में और कहीं नहीं हैं। पश्चिमी घाट में सरकार द्वारा घोषित कई संरक्षित क्षेत्र हैं। इनमें दो जैव संरक्षित क्षेत्र और 13 राष्ट्रीय उद्यान हैं। पश्चिमी घाट की सबसे ऊंची चोटी अनैमुड़ी ,केरल (2695 मी.) है |
7. ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान संरक्षण क्षेत्र,हिमाचल प्रदेश (2014 में शामिल) : हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में हिमालय के पहाड़ों के पश्चिमी भाग में स्थित यह पार्क अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यह उच्च अल्पाइन चोटियों, अल्पाइन घास के मैदानों और नदी के साथ स्थित जंगलों के लिये भी जाना जाता है जिसमें 25 से अधिक प्रकार के वन, 800 से भी अधिक वनस्पति प्रजातियाँ औऱ 180 से अधिक पक्षी प्रजातियों का वास है। इनमे मस्क डीयर, ब्राउन बीयर, गोराल, थार, चीता, बरफानी चीता, भराल, सीरो, मोनल, कलिज, कोकलास, चीयर, ट्रागोपान, बरफानी कौआ आदि प्रमुख हैं | यह क्षेत्र कई नदियों सहित उनके जल ग्रहण क्षेत्र के साथ-साथ ग्लेशियर से भी घिरा हुआ है।
भारत के विश्व विरासत स्थल – मिश्रित स्थल
1.कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान,सिक्किम (2016 में शामिल) : सिक्किम के लगभग एक -चौथाई क्षेत्र में विस्तृत इस राष्ट्रीय उद्यान में विश्व की तीसरी सबसे ऊँची चोटी, कंचनजंगा विद्यमान है। इस उद्यान का कुल क्षेत्रफल 1784 वर्ग कि.है जो कि सिक्किम के कुल क्षेत्रफल का 25 % है। यहाँ बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ और विभिन्न झीलें और हिमनद शामिल हैं, जिसमें 26 किलोमीटर लंबी ज़ेमू हिमनद प्रसिद्द है जो की इसके आधार पर स्थित है। यह हिम तेंदुआ, हिमालयी काला भालू, तिब्बती एंटीलोप, जंगली गधा, काकड़, कस्तूरी मृग, फ्लाइंग गिलहरी और लाल पांडा जैसे स्थानिक(endemic) और संकटग्रस्त पशु प्रजातियों के लिये प्राकृतिक आवास है | यहाँ मैगनोलिया, बुरुंश और देवदार के जंगलों की भरमार है |
(नोट : उपरोक्त वर्णित स्थलों के अतिरिक्त कुछ अन्य स्थल भी यूनेस्को की सम्भावित सूचि में शामिल हैं जो भारत सरकार की तरफ से नामित किये गये हैं | इनमें कर्नाटक का होयसल मन्दिर ,मेघालय के जीवित “रूट ब्रिज”, कोंकण क्षेत्र की भू-नक्काशियां ,लेपक्षी के वीरभद्र मंदिर का नंदी इत्यादि हैं | आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थापित लेपाक्षी मंदिर 70 खंभों पर खड़ा है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर का एक खंभा जमीन को छूता नहीं है, बल्कि हवा में झूलता रहता है। यही वजह है कि इस मंदिर को “हैंगिंग टेंपल” के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ निर्मित विशालकाय नंदी की मूर्ति को एक ही ग्रेनाइट के पत्थर को तराश कर बनाया गया है जो कि विश्व में नंदी की सबसे बड़ी मूर्ति है। मूर्ति की लंबाई 27 फीट व ऊंचाई 15 फीट के आसपास है। मेघालय के जीवित “रूट ब्रिज” वहां की सदियों पुरानी परम्परा का हिस्सा हैं जिसमे वृक्षों को जीवंत रूप में ही एक पुल का आकार दे दिया जाता है)
UNESCO क्या है ?
यूनेस्को-संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सहायक संस्था है । इसका कार्य शिक्षा, प्रकृति, समाज, विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सौहार्द की स्थापना करना है। इसका गठन 1945 में संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक सहायक संस्था के रूप में हुआ था तथा इसका मुख्यालय पेरिस ,फ्रांस में है । इसके 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं। इसके कई क्षेत्रीय कार्यालय दुनिया भर में हैं जिनमें ज्यादार क्लस्टर के रूप में है, जिसके अंतर्गत 3-4 देश आते हैं | इसके राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। यूनेस्को के 27 क्लस्टर कार्यालय और 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं। वर्तमान में यूनेस्को के महानिदेशक आंद्रे एंजोले हैं। भारत 1946 से यूनेस्को का सदस्य देश है।
UNESCO द्वारा घोषित कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण दिवस | |
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1.अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस | 24 जनवरी |
2.विश्व मातृभाषा दिवस | 21 फरवरी |
3.अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस | 8 मार्च |
4.अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस | 22 मार्च |
5.अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस | 3 मई |
6.अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस | 22 मई |
7.विश्व पर्यावरण दिवस | 5 जून |
8.अंतर्राष्ट्रीय महासागर दिवस | 8 जून |
9.अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस | 9 अगस्त |
10.अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस | 12 अगस्त |
11.अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस | 15 सितम्बर |
12.अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस | 17 ऑक्टोबर |
13.विश्व AIDS दिवस | 1 दिसम्बर |
14.विश्व मानवाधिकार दिवस | 10 दिसम्बर |
अन्य महत्वपूर्ण लिंक :
UPSC Mains Syllabus in Hindi | UPSC Full Form in Hindi |
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UPSC Prelims Syllabus in Hindi | NCERT Books for UPSC in Hindi |