(क) धरती में मिट्टी विद्यमान होती है। उसमें पत्थर और चट्टानें व्याप्त हो तो वह बंजर हो जाती है, जिससे उसमें किसी भी प्रकार की फसल पैदा नहीं हो सकती है। इसी प्रकार मन की भूमि बंधनों और बाधाओं के कारण बंजर हो जाती है अर्थात बंधन और बाधाएँ उसकी सृजन शक्ति को कमजोर बनाते हैं।
(ख) धरती के भीतर पत्थर और कठोरता का समावेश हैं, ऐसे ही मन में ऊबाउपन और खीझ विद्यमान हैं।
(ग) धरती के भीतर यदि पत्थर और चट्टान विद्यमान होगें, तो उसकी पैदावार शक्ति घट जाएगी। इसी तरह यदि मन में शंकाएँ तथा खीझ विद्यमान रहेगी, तो उसकी सृजन शक्ति घट जाएगी।
(घ) धरती में हल चलाकर उसके भीतर व्याप्त चट्टानों और पत्थरों को बाहर निकाला जाता है तथा उसे कृषि योग्य बनाया जाता है, वैसे ही मन में व्याप्त शंकाओं, बाधाओं तथा खीझ को निकालकर उसकी सृजन शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।