नीचे प्रेमचंद की कहानी 'सत्याग्रह' का एक अंश दिया गया है। तुम इसे पढ़ोगे तो पाओगे कि विराम चिह्नों के बिना यह अंश अधूरा-सा है। तुम आवश्यकता के अनुसार उचित जगहों पर विराम चिह्न लगाओ-
उसी समय एक खोमचेवाला जाता दिखाई दिया 11 बज चुके थे चारों तरफ़ सन्नाटा छा गया था पंडित जी ने बुलाया खोमचेवाले खोमचेवाला कहिए क्या दूँ भूख लग आई न अन्न-जल छोड़ना साधुओं का काम है हमारा आपका नहीं। मोटेराम! अबे क्या कहता है यहाँ क्या किसी साधु से कम हैं? चाहें तो महीने पड़े रहें और भूख न लगे तुझे तो केवल इसलिए बुलाया है कि ज़रा अपनी कुप्पी मुझे दे देखूँ तो वहा क्या रेंग रहा है मुझे भय होता है
उसी समय एक खोमचेवाला जाता दिखाई दिया। 11 बज चुके थे, चारों तरफ़ सन्नाटा छा गया था। पंडित ने बुलाया- खोमचेवाले! खोमचेवाला- कहिए क्या दूँ? भूख लग आई न। अन्न-जल छोड़ना साधुओं का काम है; हमारा आपका नहीं। मोटेराम! अबे क्या कहता है? यहाँ क्या किसी साधु से कम हैं। चाहें तो महीने पड़े रहे और भूख न लगे। तुझे केवल इसलिए बुलाया है कि जऱा अपनी कुप्पी मुझे दे। देखूँ तो वहाँ क्या रेंग रहा है? मुझे भय होता है।