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Question

Passage

Those who try to keep up with discussions on current affairs in the newspaper and on television may be forgiven if they conclude that caste is India’s destiny. If there is one thing the experts in the media who comment on political matters have in common, it is their preoccupation with caste and the part it plays in electoral politics
Many are now coming to believe that, despite the undeniable demographic, technological and economic changes taking place in the country, the division into castes and communities remains the ineluctable and ineradicable feature of Indian society.
They also believe that to ignore those divisions or to draw attention to other divisions such as those of income, education and occupation is to turn our backs on the ground reality. The more radical among them add that ignoring those realities amounts to an evasion of the political responsibility of redistributing the benefits and burdens of society in a more just and equitable manner.
Does nothing change in India? A great many things have in fact changes in the last 60 years both in our political perceptions and in the social reality. The leaders of the nationalist movement who successfully fought for India’s freedom from colonial rule believed that India may have been a society of castes and communities in the past but would become a nation of citizens with the adoption of a new republican constitution. They were too optimistic. The Constitution did create rights for the citizen, but it did not eradicate caste from the hearts and minds of the citizens it created. For many Indians, and perhaps the majority, the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society.

Q. According to the passage, which of the following are held as belief(s) by the media experts who comment on political matters of the country?
1. The caste-based division remains inescapable and ineradicable.
2. Several demographic, technological and economic changes have taken place in the country.
3. There lays a political responsibility to redistribute benefits and burdens of society in an equitable manner amongst caste divisions.
4. The divisions on the basis of income, education and occupation are not important.
Select the correct answer from the codes given below.

जो लोग वर्तमान घटनाक्रम पर समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से होने वाली चर्चाओं से अवगत रहते हैं या उनसे तारतम्य रखते हैं, वे यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जातिप्रथा ही भारत का भाग्य है तो उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई एक ऐसा विषय है जो संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में समान है तो वह है जातिप्रथा और चुनावी राजनीति में इसकी भूमिका के प्रति उनकी विचारमग्नता या तन्मयता।
कइयों की तो अब ऐसी धारणा बन गई है कि देश में हो रहे अविवादित जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तनों के बाद भी, भारतीय समाज का जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन एक अनिवार्य और अविश्वसनीय लक्षण है।
उनका यह भी विश्वास है कि इस विभाजन की अनदेखी या अन्य विभाजनों जैसे आय, शिक्षा और व्यवसाय की ओर ध्यान आकर्षित करना मूल वास्तिविकता से मुंह मोड़ना होगा। इन्हीं में से कुछ उग्र लोग यह भी जोड़ देते हैं कि इस वास्तविकता की अनदेखी का अर्थ सामाजिक अनुग्रहों और जिम्मेदारियों के न्यायसंगत व समरूप पुनर्वितरण के राजनैतिक उत्तरदायित्व से बचना होगा।
क्या भारत में कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है? वास्तव में, हमारी राजनैतिक बोध एवं सामाजिक वास्तविकताओं में पिछले साठ वर्षों में बहुत परिवर्तन आया है। हमारे राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता, जिन्होंने उपनिवेशवादी शक्तियों से भारत को स्वतंत्र कराने हेतु सफलतापूर्वक संघर्ष किया, उनका यह विश्वास था कि भारत अपने अतीत में भले ही जातियों और समुदायों का समाज रहा हो, परन्तु एक नये लोकतांत्रिक संविधान को अपना कर वह नागरिकों का देश बन जाएगा। वे अति आशावादी थे। संविधान ने देश के नागरिकों के लिए अधिकार अवश्य सृजित किए, परन्तु यह अपने नागरिकों के मस्तिष्क और हृदय से जाति प्रथा को समाप्त नहीं कर पाया। अनेक भारतीयों या शायद अधिकतर भारतीयों के हृदय को अब भी वर्गीकृत समाज की आदत बनी हुई है।

Q. इस परिच्छेद के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सी बातें, धारणाओं के रूप में देश के राजनैतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में बसी हुई हैं?
1. जाति-आधारित विभाजन अपरिहार्य और निवारण रहित है।
2. देश में कई जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तन हुए हैं।
3. यह एक राजनैतिक उत्तरदायित्व है कि समाज के अनुग्रहों और जिम्मेदारियों का जातिगत विभाजनों के बीच न्यायसंगत और समरूप पुनर्वितरण किया जाये।
4. आय, शिक्षा और व्यवसाय के आधार पर किये गये विभाजन महत्वपूर्ण नहीं हैं।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।

A
Only 1

केवल 1
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B
Only 1 and 3

केवल 1 और 3
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C
Only 1, 2 and 3

केवल 1, 2 और 3
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D
Only 2, 3 and 4

केवल 2, 3 और 4
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Solution

The correct option is C Only 1, 2 and 3

केवल 1, 2 और 3
Statement 1 is clearly given in, paragraph 2. (ineluctable = inescapable). Statement 2 is also correct. Paragraph 2 says, ‘despite the undeniable demographic…’ shows that these changes have taken place, and even then caste remains significant. Statement 3 can also be directly inferred from paragraph 2.
Statement 4 is out of scope of the passage. These divisions are certainly less important than the caste division, but to conclude as ‘not’ important would be erroneous.

इसका उत्तर अनुच्छेद 2 में दिया गया है।
1. परिच्छेद 2 में स्पष्ट रूप से दिया गया है - अपरिहार्य = अनिवार्य
2. परिच्छेद में कहा गया है कि, “देश में अविवादित जनसांख्यिकी, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तन......जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन एक अनिवार्य और अविश्वसनीय लक्षण है।” इसलिये कथन 2 सही है।
3. अनुच्छेद 2 में प्रत्यक्ष रूप से निष्कर्ष निकलता है।
4. यह विभाजन निश्चित रूप से जाति विभाजन से कम महत्वपूर्ण है, परन्तु यह निष्कर्ष निकालना कि “यह महत्वपूर्ण नहीं है” भ्रमात्मक है। विषय क्षेत्र से बाहर है।

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Q. Passage
Those who try to keep up with discussions on current affairs in the newspaper and on television may be forgiven if they conclude that caste is India’s destiny. If there is one thing the experts in the media who comment on political matters have in common, it is their preoccupation with caste and the part it plays in electoral politics
Many are now coming to believe that, despite the undeniable demographic, technological and economic changes taking place in the country, the division into castes and communities remains the ineluctable and ineradicable feature of Indian society
They also believe that to ignore those divisions or to draw attention to other divisions such as those of income, education and occupation is to turn our backs on the ground reality. The more radical among them add that ignoring those realities amounts to an evasion of the political responsibility of redistributing the benefits and burdens of society in a more just and equitable manner.
Does nothing change in India? A great many things have in fact changes in the last 60 years both in our political perceptions and in the social reality. The leaders of the nationalist movement who successfully fought for India’s freedom from colonial rule believed that India may have been a society of castes and communities in the past but would become a nation of citizens with the adoption of a new republican constitution. They were too optimistic. The Constitution did create rights for the citizen, but it did not eradicate caste from the hearts and minds of the citizens it created. For many Indians, and perhaps the majority, the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society.

Q. According to the passage, which of the following are held as belief(s) by the media experts who comment on political matters of the country?
1. The caste-based division remains inescapable and ineradicable.
2. Several demographic, technological and economic changes have taken place in the country.
3. There lays a political responsibility to redistribute benefits and burdens of society in an equitable manner amongst caste divisions.
4. The divisions on the basis of income, education and occupation are not important.
Select the correct answer from the codes given below.

जो लोग वर्तमान घटनाक्रम पर समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से होने वाली चर्चाओं से अवगत रहते हैं या उनसे तारतम्य रखते हैं, वे यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जातिप्रथा ही भारत का भाग्य है तो उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई एक ऐसा विषय है जो संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में समान है तो वह है जातिप्रथा और चुनावी राजनीति में इसकी भूमिका के प्रति उनकी विचारमग्नता या तन्मयता।
कइयों की तो अब ऐसी धारणा बन गई है कि देश में हो रहे अविवादित जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तनों के बाद भी, भारतीय समाज का जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन एक अनिवार्य और अविश्वसनीय लक्षण है।
उनका यह भी विश्वास है कि इस विभाजन की अनदेखी या अन्य विभाजनों जैसे आय, शिक्षा और व्यवसाय की ओर ध्यान आकर्षित करना मूल वास्तिविकता से मुंह मोड़ना होगा। इन्हीं में से कुछ उग्र लोग यह भी जोड़ देते हैं कि इस वास्तविकता की अनदेखी का अर्थ सामाजिक अनुग्रहों और जिम्मेदारियों के न्यायसंगत व समरूप पुनर्वितरण के राजनैतिक उत्तरदायित्व से बचना होगा।
क्या भारत में कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है? वास्तव में, हमारी राजनैतिक बोध एवं सामाजिक वास्तविकताओं में पिछले साठ वर्षों में बहुत परिवर्तन आया है। हमारे राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता, जिन्होंने उपनिवेशवादी शक्तियों से भारत को स्वतंत्र कराने हेतु सफलतापूर्वक संघर्ष किया, उनका यह विश्वास था कि भारत अपने अतीत में भले ही जातियों और समुदायों का समाज रहा हो, परन्तु एक नये लोकतांत्रिक संविधान को अपना कर वह नागरिकों का देश बन जाएगा। वे अति आशावादी थे। संविधान ने देश के नागरिकों के लिए अधिकार अवश्य सृजित किए, परन्तु यह अपने नागरिकों के मस्तिष्क और हृदय से जाति प्रथा को समाप्त नहीं कर पाया। अनेक भारतीयों या शायद अधिकतर भारतीयों के हृदय को अब भी वर्गीकृत समाज की आदत बनी हुई है।

Q. इस परिच्छेद के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सी बातें, धारणाओं के रूप में देश के राजनैतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में बसी हुई हैं?
1. जाति-आधारित विभाजन अपरिहार्य और निवारण रहित है
2. देश में कई जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तन हुए हैं।
3. यह एक राजनैतिक उत्तरदायित्व है कि समाज के अनुग्रहों और जिम्मेदारियों का जातिगत विभाजनों के बीच न्यायसंगत और समरूप पुनर्वितरण किया जाये।
4. आय, शिक्षा और व्यवसाय के आधार पर किये गये विभाजन महत्वपूर्ण नहीं हैं।
​​​​​​​नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
Q. Passage
Those who try to keep up with discussions on current affairs in the newspaper and on television may be forgiven if they conclude that caste is India’s destiny. If there is one thing the experts in the media who comment on political matters have in common, it is their preoccupation with caste and the part it plays in electoral politics
Many are now coming to believe that, despite the undeniable demographic, technological and economic changes taking place in the country, the division into castes and communities remains the ineluctable and ineradicable feature of Indian society
They also believe that to ignore those divisions or to draw attention to other divisions such as those of income, education and occupation is to turn our backs on the ground reality. The more radical among them add that ignoring those realities amounts to an evasion of the political responsibility of redistributing the benefits and burdens of society in a more just and equitable manner.
Does nothing change in India? A great many things have in fact changes in the last 60 years both in our political perceptions and in the social reality. The leaders of the nationalist movement who successfully fought for India’s freedom from colonial rule believed that India may have been a society of castes and communities in the past but would become a nation of citizens with the adoption of a new republican constitution. They were too optimistic. The Constitution did create rights for the citizen, but it did not eradicate caste from the hearts and minds of the citizens it created. For many Indians, and perhaps the majority, the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society.

Q. The author writes ‘They were too optimistic’. (para 3). Which of the following is closest in meaning to this line?

जो लोग वर्तमान घटनाक्रम पर समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से होने वाली चर्चाओं से अवगत रहते हैं या उनसे तारतम्य रखते हैं, वे यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जातिप्रथा ही भारत का भाग्य है तो उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई एक ऐसा विषय है जो संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में समान है तो वह है जातिप्रथा और चुनावी राजनीति में इसकी भूमिका के प्रति उनकी विचारमग्नता या तन्मयता।
कइयों की तो अब ऐसी धारणा बन गई है कि देश में हो रहे अविवादित जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तनों के बाद भी, भारतीय समाज का जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन एक अनिवार्य और अविश्वसनीय लक्षण है।
उनका यह भी विश्वास है कि इस विभाजन की अनदेखी या अन्य विभाजनों जैसे आय, शिक्षा और व्यवसाय की ओर ध्यान आकर्षित करना मूल वास्तिविकता से मुंह मोड़ना होगा। इन्हीं में से कुछ उग्र लोग यह भी जोड़ देते हैं कि इस वास्तविकता की अनदेखी का अर्थ सामाजिक अनुग्रहों और जिम्मेदारियों के न्यायसंगत व समरूप पुनर्वितरण के राजनैतिक उत्तरदायित्व से बचना होगा।
क्या भारत में कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है? वास्तव में, हमारी राजनैतिक बोध एवं सामाजिक वास्तविकताओं में पिछले साठ वर्षों में बहुत परिवर्तन आया है। हमारे राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता, जिन्होंने उपनिवेशवादी शक्तियों से भारत को स्वतंत्र कराने हेतु सफलतापूर्वक संघर्ष किया, उनका यह विश्वास था कि भारत अपने अतीत में भले ही जातियों और समुदायों का समाज रहा हो, परन्तु एक नये लोकतांत्रिक संविधान को अपना कर वह नागरिकों का देश बन जाएगा। वे अति आशावादी थे। संविधान ने देश के नागरिकों के लिए अधिकार अवश्य सृजित किए, परन्तु यह अपने नागरिकों के मस्तिष्क और हृदय से जाति प्रथा को समाप्त नहीं कर पाया। अनेक भारतीयों या शायद अधिकतर भारतीयों के हृदय को अब भी वर्गीकृत समाज की आदत बनी हुई है।

Q. लेखक ने लिखा है कि, “वे अति आशावादी थे” (अनुच्छेद 3)। निम्नलिखित में से क्या इस पंक्ति के अर्थ के सबसे निकट है?
Q. Passage
Those who try to keep up with discussions on current affairs in the newspaper and on television may be forgiven if they conclude that caste is India’s destiny. If there is one thing the experts in the media who comment on political matters have in common, it is their preoccupation with caste and the part it plays in electoral politics
Many are now coming to believe that, despite the undeniable demographic, technological and economic changes taking place in the country, the division into castes and communities remains the ineluctable and ineradicable feature of Indian society
They also believe that to ignore those divisions or to draw attention to other divisions such as those of income, education and occupation is to turn our backs on the ground reality. The more radical among them add that ignoring those realities amounts to an evasion of the political responsibility of redistributing the benefits and burdens of society in a more just and equitable manner.
Does nothing change in India? A great many things have in fact changes in the last 60 years both in our political perceptions and in the social reality. The leaders of the nationalist movement who successfully fought for India’s freedom from colonial rule believed that India may have been a society of castes and communities in the past but would become a nation of citizens with the adoption of a new republican constitution. They were too optimistic. The Constitution did create rights for the citizen, but it did not eradicate caste from the hearts and minds of the citizens it created. For many Indians, and perhaps the majority, the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society.

Q. What does the author imply by ‘the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society’ (para 3)?

जो लोग वर्तमान घटनाक्रम पर समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से होने वाली चर्चाओं से अवगत रहते हैं या उनसे तारतम्य रखते हैं, वे यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जातिप्रथा ही भारत का भाग्य है तो उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई एक ऐसा विषय है जो संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में समान है तो वह है जातिप्रथा और चुनावी राजनीति में इसकी भूमिका के प्रति उनकी विचारमग्नता या तन्मयता।
कइयों की तो अब ऐसी धारणा बन गई है कि देश में हो रहे अविवादित जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तनों के बाद भी, भारतीय समाज का जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन एक अनिवार्य और अविश्वसनीय लक्षण है।
उनका यह भी विश्वास है कि इस विभाजन की अनदेखी या अन्य विभाजनों जैसे आय, शिक्षा और व्यवसाय की ओर ध्यान आकर्षित करना मूल वास्तिविकता से मुंह मोड़ना होगा। इन्हीं में से कुछ उग्र लोग यह भी जोड़ देते हैं कि इस वास्तविकता की अनदेखी का अर्थ सामाजिक अनुग्रहों और जिम्मेदारियों के न्यायसंगत व समरूप पुनर्वितरण के राजनैतिक उत्तरदायित्व से बचना होगा।
क्या भारत में कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है? वास्तव में, हमारी राजनैतिक बोध एवं सामाजिक वास्तविकताओं में पिछले साठ वर्षों में बहुत परिवर्तन आया है। हमारे राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता, जिन्होंने उपनिवेशवादी शक्तियों से भारत को स्वतंत्र कराने हेतु सफलतापूर्वक संघर्ष किया, उनका यह विश्वास था कि भारत अपने अतीत में भले ही जातियों और समुदायों का समाज रहा हो, परन्तु एक नये लोकतांत्रिक संविधान को अपना कर वह नागरिकों का देश बन जाएगा। वे अति आशावादी थे। संविधान ने देश के नागरिकों के लिए अधिकार अवश्य सृजित किए, परन्तु यह अपने नागरिकों के मस्तिष्क और हृदय से जाति प्रथा को समाप्त नहीं कर पाया। अनेक भारतीयों या शायद अधिकतर भारतीयों के हृदय को अब भी वर्गीकृत समाज की आदत बनी हुई है।

Q. “हृदय को अब भी वर्गीकृत समाज की आदत बनी हुई है” (अनुच्छेद 3)। इससे लेखक का क्या अभिप्राय है?
Q. Passage

Those who try to keep up with discussions on current affairs in the newspaper and on television may be forgiven if they conclude that caste is India’s destiny. If there is one thing the experts in the media who comment on political matters have in common, it is their preoccupation with caste and the part it plays in electoral politics
Many are now coming to believe that, despite the undeniable demographic, technological and economic changes taking place in the country, the division into castes and communities remains the ineluctable and ineradicable feature of Indian society.
They also believe that to ignore those divisions or to draw attention to other divisions such as those of income, education and occupation is to turn our backs on the ground reality. The more radical among them add that ignoring those realities amounts to an evasion of the political responsibility of redistributing the benefits and burdens of society in a more just and equitable manner.
Does nothing change in India? A great many things have in fact changes in the last 60 years both in our political perceptions and in the social reality. The leaders of the nationalist movement who successfully fought for India’s freedom from colonial rule believed that India may have been a society of castes and communities in the past but would become a nation of citizens with the adoption of a new republican constitution. They were too optimistic. The Constitution did create rights for the citizen, but it did not eradicate caste from the hearts and minds of the citizens it created. For many Indians, and perhaps the majority, the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society.

Q. The author writes ‘They were too optimistic’. (para 3). Which of the following is closest in meaning to this line?

जो लोग वर्तमान घटनाक्रम पर समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से होने वाली चर्चाओं से अवगत रहते हैं या उनसे तारतम्य रखते हैं, वे यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जातिप्रथा ही भारत का भाग्य है तो उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई एक ऐसा विषय है जो संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में समान है तो वह है जातिप्रथा और चुनावी राजनीति में इसकी भूमिका के प्रति उनकी विचारमग्नता या तन्मयता।
कइयों की तो अब ऐसी धारणा बन गई है कि देश में हो रहे अविवादित जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तनों के बाद भी, भारतीय समाज का जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन एक अनिवार्य और अविश्वसनीय लक्षण है।
उनका यह भी विश्वास है कि इस विभाजन की अनदेखी या अन्य विभाजनों जैसे आय, शिक्षा और व्यवसाय की ओर ध्यान आकर्षित करना मूल वास्तिविकता से मुंह मोड़ना होगा। इन्हीं में से कुछ उग्र लोग यह भी जोड़ देते हैं कि इस वास्तविकता की अनदेखी का अर्थ सामाजिक अनुग्रहों और जिम्मेदारियों के न्यायसंगत व समरूप पुनर्वितरण के राजनैतिक उत्तरदायित्व से बचना होगा।
क्या भारत में कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है? वास्तव में, हमारी राजनैतिक बोध एवं सामाजिक वास्तविकताओं में पिछले साठ वर्षों में बहुत परिवर्तन आया है। हमारे राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता, जिन्होंने उपनिवेशवादी शक्तियों से भारत को स्वतंत्र कराने हेतु सफलतापूर्वक संघर्ष किया, उनका यह विश्वास था कि भारत अपने अतीत में भले ही जातियों और समुदायों का समाज रहा हो, परन्तु एक नये लोकतांत्रिक संविधान को अपना कर वह नागरिकों का देश बन जाएगा। वे अति आशावादी थे। संविधान ने देश के नागरिकों के लिए अधिकार अवश्य सृजित किए, परन्तु यह अपने नागरिकों के मस्तिष्क और हृदय से जाति प्रथा को समाप्त नहीं कर पाया। अनेक भारतीयों या शायद अधिकतर भारतीयों के हृदय को अब भी वर्गीकृत समाज की आदत बनी हुई है।

Q. लेखक ने लिखा है कि, “वे अति आशावादी थे” (अनुच्छेद 3)। निम्नलिखित में से क्या इस पंक्ति के अर्थ के सबसे निकट है?
Q. Passage

Those who try to keep up with discussions on current affairs in the newspaper and on television may be forgiven if they conclude that caste is India’s destiny. If there is one thing the experts in the media who comment on political matters have in common, it is their preoccupation with caste and the part it plays in electoral politics.
Many are now coming to believe that, despite the undeniable demographic, technological and economic changes taking place in the country, the division into castes and communities remains the ineluctable and ineradicable feature of Indian society.
They also believe that to ignore those divisions or to draw attention to other divisions such as those of income, education and occupation is to turn our backs on the ground reality. The more radical among them add that ignoring those realities amounts to an evasion of the political responsibility of redistributing the benefits and burdens of society in a more just and equitable manner.
Does nothing change in India? A great many things have in fact changes in the last 60 years both in our political perceptions and in the social reality. The leaders of the nationalist movement who successfully fought for India’s freedom from colonial rule believed that India may have been a society of castes and communities in the past but would become a nation of citizens with the adoption of a new republican constitution. They were too optimistic. The Constitution did create rights for the citizen, but it did not eradicate caste from the hearts and minds of the citizens it created. For many Indians, and perhaps the majority, the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society.

Q. What does the author imply by ‘the habits of the heart are still the habits of a hierarchical society’ (para 3)?

जो लोग वर्तमान घटनाक्रम पर समाचार पत्रों और टेलीविजन के माध्यम से होने वाली चर्चाओं से अवगत रहते हैं या उनसे तारतम्य रखते हैं, वे यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जातिप्रथा ही भारत का भाग्य है तो उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई एक ऐसा विषय है जो संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक विषयों पर चर्चा करने वाले विशेषज्ञों में समान है तो वह है जातिप्रथा और चुनावी राजनीति में इसकी भूमिका के प्रति उनकी विचारमग्नता या तन्मयता।
कइयों की तो अब ऐसी धारणा बन गई है कि देश में हो रहे अविवादित जनसांख्यिकीय, तकनीकी और आर्थिक परिवर्तनों के बाद भी, भारतीय समाज का जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन एक अनिवार्य और अविश्वसनीय लक्षण है।
उनका यह भी विश्वास है कि इस विभाजन की अनदेखी या अन्य विभाजनों जैसे आय, शिक्षा और व्यवसाय की ओर ध्यान आकर्षित करना मूल वास्तिविकता से मुंह मोड़ना होगा। इन्हीं में से कुछ उग्र लोग यह भी जोड़ देते हैं कि इस वास्तविकता की अनदेखी का अर्थ सामाजिक अनुग्रहों और जिम्मेदारियों के न्यायसंगत व समरूप पुनर्वितरण के राजनैतिक उत्तरदायित्व से बचना होगा।
क्या भारत में कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है? वास्तव में, हमारी राजनैतिक बोध एवं सामाजिक वास्तविकताओं में पिछले साठ वर्षों में बहुत परिवर्तन आया है। हमारे राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता, जिन्होंने उपनिवेशवादी शक्तियों से भारत को स्वतंत्र कराने हेतु सफलतापूर्वक संघर्ष किया, उनका यह विश्वास था कि भारत अपने अतीत में भले ही जातियों और समुदायों का समाज रहा हो, परन्तु एक नये लोकतांत्रिक संविधान को अपना कर वह नागरिकों का देश बन जाएगा। वे अति आशावादी थे। संविधान ने देश के नागरिकों के लिए अधिकार अवश्य सृजित किए, परन्तु यह अपने नागरिकों के मस्तिष्क और हृदय से जाति प्रथा को समाप्त नहीं कर पाया। अनेक भारतीयों या शायद अधिकतर भारतीयों के हृदय को अब भी वर्गीकृत समाज की आदत बनी हुई है।

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