परिच्छेद 2
1798 के आसपास, मिस्र में सीरिया से होकर गुजरते समय, नेपोलियन एवं उसके कुछ अश्वारोही सैनिकों ने एक शांत दोपहर एवं लाल सागर के भाटे का लाभ उठाया और सागर पार कर उसके विपरीत तट पर शुष्क समुद्री तल पर पहुँच गए। वहां उन्होंने 'मूसा के कुँए' कहे जाने वाले कुछ झरनों का दौरा किया। जिज्ञासा संतुष्ट होने पर सैनिकों का वह समूह लाल सागर लौटा और उसे पार कर वापस आने लगा। उस समय तक अंधेरा हो गया था और जब उन्होंने सागर पार करना आरम्भ किया, तब तक ज्वार उठने लगा था। अंधेरे में वापस जाने का मार्ग देखना संभव नहीं हो रहा था। जिस मार्ग से वे पहले आए थे, वह पानी बढ़ जाने के कारण अस्पष्ट हो गया था। इस स्थिति में नेपोलियन ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे उसके चारो ओर बाहर की तरफ अपने चेहरे को रखते हुए चक्र के अरों (तिल्ली) की भाँति घेरा बना लें। उसके बाद प्रत्येक सैनिक घोड़े पर सवार होकर तब तक आगे बढ़ा जब तक उसने स्वयं को तैरने की स्थिति में नहीं पाया, इस बिन्दु पर उन्हें वापस लौटना था और अपने उस निकटतम व्यक्ति का अनुसरण करना था जिसका घोड़ा अभी भी ठोस जमीन पर चल रहा था। शीघ्र ही सभी सैनिक उन घुड़सवारों का अनुसरण कर रहे थे जिनके घोड़े अभी भी समुद्र तल पर आगे बढ़ रहे थे। वे सभी भीग जरूर गए किन्तु लाल सागर से बचकर सकुशल निकल आए।
Q. उपर्युक्त परिच्छेद में निहित सर्वाधिक तार्किक, तर्कसंगत और महत्वपूर्ण संदेश क्या है?