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Question

परिच्छेद 3
न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती ने पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982) वाद के निर्णय में लिखा कि, “कानूनी सहायता प्रदान करने वाले आंदोलन और जनहित याचिका का उद्देश्य मानवता के इन भुला दिए गए उदाहरणों को न्याय प्रदान करना है जो भारतीय जनसमुदाय का निर्माण करते हैं और जो वास्तव में तथा सही अर्थों में 'भारत के लोग हैं जिन्होंने स्वयं को यह विशाल संविधान प्रदान किया है।" "यह सही है कि न्यायालयों में अनेकानेक मामले लम्बित हैं, किन्तु यह समुदाय के और निर्धन तथा कमजोर वर्गों को न्याय उपलब्ध कराने से इनकार करने का कोई कारण नहीं हो सकता है। किसी भी राज्य को अपने नागरिकों से यह कहने का अधिकार नहीं है कि समृद्ध और समर्थ लोगों के अनेकानेक मामले न्यायालयों में लम्बित हैं, इसलिए जब तक न्यायप्रक्रिया का व्यय वहन करने में सक्षम लोगों के मामलों के अत्यधिक बोझ का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक हम निर्धनों को न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायालय आने में सहयोग नहीं करेंगे।”

Q. निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प उपर्युक्त परिच्छेद की केन्द्रीय विषय-वस्तु (थीम) को सर्वाधिक उपयुक्त रूप से प्रस्तुत करता है?

A

न्यायालयों को देश के समृद्ध और निर्धन, दोनों प्रकार के लोगों को अवसर की समानता प्रदान करनी ही चाहिए।
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B

लोकहित याचिकाओं ने सीमान्त और निर्धन जनता को न्याय उपलब्ध कराया है।
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C

न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती समुदाय के निर्धन और कमजोर वर्गों से संबंधित मामलों को शीघ्रता से निपटाने के पक्ष में थे।
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D

जनहित याचिकाओं (पी.आई.एल.) को छोड़कर, न्यायालयों में लम्बित अधिकतर मामले अपेक्षाकृत रूप से समृद्ध लोगों से संबंधित हैं।
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Solution

The correct option is A
न्यायालयों को देश के समृद्ध और निर्धन, दोनों प्रकार के लोगों को अवसर की समानता प्रदान करनी ही चाहिए।
व्याख्या:

विकल्प (a) सही है। परिच्छेद में तर्क प्रस्तुत है कि लंबित मामले समुदाय के निर्धन और कमजोर वर्गों को न्याय उपलब्ध कराने से इनकार करने का कारण नहीं हो सकते हैं। इसलिए, समृद्ध और निर्धन, दोनों प्रकार के लोगों को अवसर की समानता प्रदान करनी ही चाहिए।

विकल्प (b) गलत है। परिच्छेद जनहित याचिकाओं द्वारा निभायी गयी भूमिका के संबंध में नहीं है। बल्कि परिच्छेद इस के संबंध में है कि जनहित याचिकाओं को अनुमति प्रदान की जानी चाहिए या नहीं। इसलिए यह केंद्रीय विषय-वस्तु नहीं हो सकती।

विकल्प (c) गलत है। न्यायमूर्ति भगवती अन्य मामलों के साथ-साथ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई किए जाने के पक्ष में थे। परिच्छेद यह उल्लेख नहीं करता कि जनहित याचिकाओं का शीघ्र निपटारा किया जाना चाहिए। और यह निश्चित रूप से न्यायमूर्ति भगवती के दृष्टिकोण परिच्छेद की केंद्रीय विषय वस्तु नहीं हैं।

विकल्प (d) भी ग़लत है। परिच्छेद तर्क प्रस्तुत करता है कि राज्य निर्धन और सीमांत लोगों को तब तक प्रतीक्षा नहीं करा सकता जब तक कि न्यायप्रक्रिया का व्यय वहन करने में सक्षम लोगों के मामलों का निपटारा नहीं हो जाता। इसलिए केंद्रीय विषय वस्तु यह तर्क है कि निर्धन लोगों के साथ समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए। न्यायालयों में लम्बित अधिकतर मामले अपेक्षाकृत रूप से समृद्ध लोगों से संबंधित होने का तथ्य भी परिच्छेद से निष्कर्षित किया जाना कठिन है और यह भी केन्द्रीय विषय वस्तु नहीं है।

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