'सागर' से कवि का आशय समाज से है तथा 'बूँद' का आशय एक मनुष्य से है। अनगिनत बूँदों के कारण सागर का निर्माण होता है। यहाँ सागर समाज है और बूँद एक मनुष्य है। मनुष्य इस समाज में रहकर अस्तित्व पाता है और समाज उसे अपनी देख-रेख में एक सभ्य मनुष्य बनाता है। दोनों का संबंध परस्पर संयोग से बनाता है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। कवि इनका संबंध सागर और बूँद के रूप में स्पष्ट करके उनकी संबंध की प्रगाढ़ता को दर्शाता है।