UPSC वैकल्पिक विषय सूची में कुल 48 विषय शामिल हैं, जिनमें से एक मानव विज्ञान है। IAS Exam के लिए UPSC मानव विज्ञान पाठ्यक्रम विषय को विज्ञान के रूप में समझने और लोगों के सामने आने वाली समस्याओं पर ज्ञान को लागू करने की उम्मीदवारों की क्षमता पर केंद्रित है। इस विषय में शामिल विषय मानव विकास, सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक विकास और विकास से संबंधित हैं।
यूपीएससी के लिए नृविज्ञान पाठ्यक्रम:
यूपीएससी में एंथ्रोपोलॉजी वैकल्पिक चुनने वाले उम्मीदवार पाएंगे कि पाठ्यक्रम विकास और भारतीय संस्कृति से संबंधित मुद्दों और विषयों पर केंद्रित है। शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और समाजशास्त्री आदि के रूप में काम करने वाले उम्मीदवारों के लिए विषय की तैयारी करना आसान हो सकता है।
उन्हें यूपीएससी मानव विज्ञान पाठ्यक्रम को कई बार पढ़ना चाहिए क्योंकि सही तरीके से वैकल्पिक तैयारी से आईएएस उम्मीदवारों के लिए civil services exam में अच्छे अंक प्राप्त करने की संभावना बढ़ जाएगी ।
आईएएस नृविज्ञान पाठ्यक्रम
एंथ्रोपोलॉजी वैकल्पिक विषय में यूपीएससी मेन्स में 2 पेपर (पेपर I और पेपर II) हैं। प्रत्येक पेपर कुल 500 अंकों के साथ 250 अंकों का होता है। कई आईएएस टॉपर्स ने भी UPSC exam में इस विषय को चुना है । आईएएस नृविज्ञान पाठ्यक्रम के नीचे खोजें:
यूपीएससी के लिए नृविज्ञान पाठ्यक्रम (पेपर- I)
- नृविज्ञान का अर्थ, विषय क्षेत्र एवं विकास।
- अन्य विषयों के साथ संबंध: सामाजिक विज्ञान, व्यवहारपकरक विज्ञान, जीव विज्ञान, आयुर्विज्ञान, भू-विषयक विज्ञान एवं मानविकी।
- नृविज्ञान की प्रमुख शाखाएं, उनका क्षेत्र तथा प्रासंगिकता :
- सामाजिक-सांस्कृतिक नृविज्ञान
- जैविक विज्ञान
- पुरातत्व – नृविज्ञान
- भाषा-नृविज्ञान
- मानव विकास तथा मनुष्य का आविर्भाव:
- मानव विकास में जैव एवं सांस्कृतिक कारक
- जैव विकास के सिद्धांत (डार्विन-पूर्व, डार्विन कालीन एवं डार्विनोत्तर)
- विकास का संश्लेषणात्मक सिद्धांत, विकासात्मक जीव विज्ञान की रूबावली एवं संकल्पनाओं की संक्षिप्त रूपरेखा (डॉल का नियम, कोप का नियम, गॉस का नियम, समांतरवाद, अभिसरण, अनुकूली विकिरण एवं मोजेक विकास)
- नर-वानर की विशेषताएं : विकासात्मक प्रवृत्ति एवं नर-वानर वर्गिकी; नर-वानर अनुकूलन; (वृक्षीय एवं स्थलीय) नर-वानर वर्गिकी; नर-वानर व्यवहार, तृतीयक एवं चतुर्थक जीवाश्म नर-वानर; जीवित प्रमुख नर-वानर; मनुष्य एवं वानर की तुलनात्मक शरीर-रचना;नृ संस्थिति के कारण हुए कंकालीय परिवर्तन एवं हल्के निहितार्थ।
- जातिवृत्तीय स्थिति, निम्नलिखित की विशेषताएं एवं भौगोलिक वितरण:
- दक्षिण एवं पूर्व अफ्रीका में अतिनूतन अत्यंत नूतन होमिनिड-आस्ट्रेलोपियेसिन
- होमोइरेक्टस : अफ्रीका (पैरेन्प्रोपस), यूरोप (होमोइरेक्टस हीडेल बर्जैन्सिस), एशिया (होमोइरेक्टस जावनिकस, होमोड्रेक्टस पेकाइनेन्सिस)
- निएन्डरथल मानव-ल्रा- शापेय-ओ-सेंत (क्ल्रासिकी प्रकार), माउंट कारमेस (प्रगामी प्रकार)
- रोडेसियन मानव
- होमो-सेपिएन्स-क्रोमैग्नन ग्रिमाली एवं चांसलीड।
जीवन के जीववैज्ञानिक आधार: कोशिका, DNA संरचना एवं प्रतिकृति, प्रोटीन संश्लेषण जीन, उत्परिवर्तन, क्रोमोसोम एवं कोशिका, विभाजन।
- (क) प्रागैतिहासिक पुरातत्व विज्ञान के सिद्धांत/कालानुक्रम:सापेक्ष एवं परम काल निर्धारण विधियां।
(ख) सांस्कृतिक विकास-प्रागैतिहासिक संस्कृति की स्थूल रूपरेखा-
- पुरापाषाण
- मध्य पाषाण
- नव पाषाण
- ताम्र पाषाण
- ताम्र-कांस्य युग
- लोक युग
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- संस्कृति का स्वरूप : संस्कृति और सभ्यता की संकल्पना एवं विशेषता; सांस्कृतिक सापेक्षवाद की तुलना में नृजाति केंद्रिकता।
- समाज का स्वरूप : समाज की संकल्पना: समाज एव संस्कृति; सामाजिक संस्थाएं; सामाजिक समूह; एवं सामाजिक स्तरीकरण।
- विवाह : परिभाषा एवं सार्वभौमिकता; विवाह के नियम (अंतर्विवाह, बहिर्विवाह,अनुलोमविवाह, अगम्यगमन निषेध); विवाह के प्रकार (एक विवाह प्रथा, बह विवाह प्रथा, बहुपति प्रथा, समूह विवाह, विवाह के प्रकार्य; विवाह विनियम (अधिमान्य निर्दिष्ट एवं अभिनिषेधक); विवाह भुगतान (वधु धन एवं दहेज)।
- परिवार : परिभाषा एवं सार्वभौमिकता; परिवार, गृहस्थी एवं गृहय समूह; परिवार के प्रकार्य; परिवार के प्रकार (संरचना, रक्त-संबंध, विवाह, आवास एवं उत्तराधिकार के परिप्रेक्ष्य से); नगरीकरण, औद्योगिकीकरण एवं नारी अधिकारवादी आंदोलनों का परिवार पर प्रआव।
- नातेदारी : रक्त संबंध एवं विवाह संबंध : वंशानुक्रम के सिद्धांत एवं प्रकार (एक रेखीय, द्वैध, द्विपक्षीय, उभयरेखीय); वंशानुक्रम समूह के रूप (वंशपरंपरा, गोत्र, फ्रेटरी, मोइटी संबंधी): नातेदारी शब्दावली (वर्णनात्मक एवं वर्गीकारक): वंशानुक्रम, वंशानुक्रमण एवं पूरक वंशानुक्रम; वंशानुक्रम एवं सहबंध।
- आर्थिक संगठन : अर्थ, क्षेत्र एवं आर्थिक नृविज्ञान की प्रासंगिकता; रूपवादी एवं तत्ववादी बहस; उत्पादन, वितरण एवं समुदायों में विनिमय (अन्योन्यता, पुनर्वितरण एवं बाजार), शिकार एवं संग्रहण, मत्सयन, स्विडेनिंग, पशुचारण, उदयानकृषि एवं कृषि पर निर्वाह; भूमंडलीकरण एवं देशी आर्थिक व्यवस्थाएं।
- राजनीतिक संगठन एवं सामाजिक नियंत्रण : टोली, जनजाति, सरदारी, राज एवं राज्य; सत्ता, प्राधिकार एवं वैधता की संकल्पनाएं; सरल समाजों में सामाजिक नियंत्रण, विधि एवं न््याय।
- धर्म : धर्म के अध्ययन में नृवैज़ानिक उपागम (विकासात्मक, मनोवैज्ञानिक एवं प्रकार्यौत्मक); एकेश्वरवाद; पवित्र एवं अपावन; मिथक एवं कर्मकांड; जनजातीय एवं कृषक समाजों में धर्म के रूप (जीववाद, जीवात्मावाद, जड़पूजा, प्रकृति पूजा एवं गणचिहन वाद); धर्म, जादू एवं विज्ञान विशिष्ट जादुई-धार्मिक कार्यकर्ता (पुजारी, शमन, ओझा, ऐद्रजालिक और डाइन)।
- नृवैज्ञानिक सिद्धांत:
- क्लासिकी विकासवाद (टाइलर, मॉगर्न एवं फ्रेजर)
- ऐतिहासिक विशिष्टतावाद (बोआस); विसरणवाद (ब्रिटिश, जर्मन एवं अमरीका)
- प्रकार्यवाद (मैल्लिनोस्की); संरचना-प्रकार्यवाद (रैडक्लिक-ब्राउन)
- संरचनावाद (लेवी स्ट्राश एवं ई लीश)
- संस्कृति एवं व्यक्तित्व (बेनेडिक्ट, मीड, लिंटन, कार्डिनर एवं कोरा-दु-बुवा)
- नव-विकासवाद (चिल्ड, व्हाइट, स्ट्यूवर्ड, शाहलिन्स एवं सर्विस)
- सांस्कृतिक भतिकवाद (हैरिस)
- प्रतीकात्मक एवं अर्थनिरूपी सिद्धांत (टार्नर, श्नाइडर, एवं गीर्ट)।
- संज़ानात्मक सिद्धांत (टाइलर कांक्सिन)
- नृविज्ञान में उत्तर आधुनिकवाद
- संस्कृति, आषा एवं संचार : आषा का स्वरूप, उद्गम एवं विशेषताएं; वाचिक एवं अवाचिक संप्रेषण; आषा प्रयोग के सामाजिक संदर्भ।
- नृविज्ञान में अनुसंधान पद्धतियां :
- नृविजञान में क्षेत्रकार्य परंपरा
- तकनीक, पद्धति एवं कार्य विधि के बीच विभेद।
- दत्त संग्रहण के उपकरण : प्रेक्षण, साक्षात्कार, अनुसूचियां, प्रश्नावली, केस अध्ययन, वंशावली, मौखिक इतिवृत्त, सूचना के दवितीयक स्रोत, सहभागिता ‘पद्धति।
- दत्त का विश्लेषण , निर्वचन एवं प्रस्तुतीकरण।
- मानव आनुवंशिकी – पद्धति एवं अनुप्रयोग: मनुष्य परिवार अध्ययन में आनुवंशिक सिद्धांतों के अध्ययन की पद्धतियां (वंशावली विश्लेषण, युग्म अध्ययन, पोष्यपुत्र, सह- युग्म पद्धति, कोशिका-जननिक पद्धति, गुणसूत्री एवं केन्द्रक प्रारूप विश्लेषण), जैव रसायनी पद्धतियां, डी.एन.ए प्रौद्योगिकी एवं पुनर्योगज प्रौद्योगिकियां।
- मनुष्य-परिवार अध्ययन में मेंडेलीय आनुवंशिकी, मुनष्य में एकल उत्पादन, बहु उत्पादन , घातक, अवघातक एवं अनेक जीनी वंशागति।
- आनुवंशिक बहुरूपता एवं वरण की संकल्पना, मैंडेलीय जनसंख्या, हार्डी-वीन वर्ग नियम; बारंबारता में कमी लाने वाले कारण एवं परिवर्तन-उत्परिवर्तन, विलयन, प्रवासन, वरण, अंत: प्रजनन एवं आनुवंशिक च्युति, समरक्त एवं असमरक्त समागम, आनुवंशिक भार, समरकक््त एवं भगिनी-बंध विवाहों के आनुवंशिक प्रभाव।
- गुणसूत्र एवं मनुष्य में गुणसूत्री विपथन, क्रियाविधि:
- संख्यात्मक एवं संरचनात्मक विपथन (अव्यवस्थाएं)
- लिंग गुणसूत्री विपथन-क्लाइनफेल्टर (XXY), टर्नर (XO) अधिजाया (XXX) अंतर्लिंग एवं अन्य संल्क्षणात्मक अव्यवस्थाएं।
- अलिंग सूत्री विपथन-डाउन संलक्षण, पातो, एडवर्ड एवं क्रि-दु-शॉ संलक्षण।
- मानव रोगों में आनुवंशिक अध्ययन, आनुवंशिक स्क्रीनिंग, आनुवंशिक उपबोधन, मानव डीएनए प्रोफाइलिंग, जॉन मैपिंग एवं जीनोम अध्ययन।
- प्रजाति एवं प्रजातिवाद, दूरीक एवं अदूरीक लक्षणों की आकारिकीय विभिन्नताओं का जीव वैज्ञानिक आधार, प्रजातीय निकष, आनुवंशिकता एवं पर्यावरण के संबंध में प्रजातीय विशेषक; मनुष्य में प्रजातीय वर्गीकरण, प्रजातीय विभ्ेदन एवं प्रजाति संस्करण का जीव वैज्ञानिक आधार।
- आनुवंशिक चिहनक के रूप में आयु, लिंग एवं जनसंख्या विभेद-एबीओ, आरएच रक्तसमूह, ‘एचएलएएचपी, ट्रेन््सफेरिन, जीएम, रक्त एंजाइम, शरीर क्रियात्मक लक्षण विभिन्न सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक समूहों में एचबी स्तर, शरीर वसा, स्पंद दर, श्वसन प्रकार्य एवं संवेदी प्रत्यक्षण।
- पारिस्थितिक नृविज्ञान की संकल्पनाएं एवं पद्धतियां, जैव-सांस्कृतिक अनुकूलन-जननिक एवं अजननिक कारक, पर्यावरणीय दबावों के प्रति मनुष्य की शरीर क्रियात्मक अनुक्रियाएं : गर्म मरूभूमि, शीत, उच्च तुंगता जलवायु।
- जानपदिक रोग विज्ञानीय नृविज्ञान : स्वास्थ्य एवं रोग, संक्रामक एवं असंक्रामक रोग, पोषक तत्वों की कमी से संबंधित रोग।
- मानव वृद्धि एवं विकास की संकल्पना : वृद्धि की अवस्थाएं-प्रसवपूर्व, प्रसव, शिशु, बचपन, किशोरावस्था, परिपक्वावस्था, जरत्व।
- वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक: जननिक, पर्यावरणीय, जैव रासायनिक, पोषण संबंधी, सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक।
- कालप्रभावन एवं जरत्व, सिद्धांत एवं प्रेक्षण जैविक एवं कालानुक्रमिक दीर्घ आयु, मानवीय शरीर गठन एवं कायप्ररूप, वृद्धि अध्ययन की क्रियाविधियां।
- रजोदर्शन, रजोनिवृत्ति एवं प्रजनन शक्ति की अन्य जैव घटनाओं की प्रासंगिकता, प्रजनन शक्ति के प्रतिरूप एवं विभेद |
- जनांकिकीय सिद्धांत – जैविक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक।
- बहुप्रजता, प्रजनन शक्ति, जन्मदर एवं मृत्युदर को प्रभावित करने वाले जैविक एवं सामाजिक-आर्थिक कारण।
- नृविज्ञान के अनुप्रयोग : खेलों का नृविज्ञान, पोषणात्मक नृविज्ञान, रक्षा एवं अन्य उपकरणों की अभिकल्पना में नृविज्ञान, न््यायाल्यिक नृविज्ञान, व्यक्ति अभिज्ञान एवं पुर्नाचना की पद्धतियां एवं सिद्धांत , अनुप्रयुक्त मानव आनुवंशिकी-पितृत्व निदान, जननिक उपबोधन एवं सुजननिकी, रोगों एवं आयुर्विज्ञान में डीएनए प्रौद्योगिकी, जनन- जीव-विज्ञान में सीरम-आनुवंशिकी तथा कोशिका-आनुवंशिकी।
यूपीएससी के लिए नृविज्ञान पाठ्यक्रम (पेपर- II)
- भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का विकास-प्रागैतिहासिक (पुरापाषाण मध्यपाषाण, नवपाषाण तथा नवपाषाण-ताम्रपाषाण), आदयऐतिहासिक (सिंधु सभ्यता): हड़प्पा-पूर्व, हड़प्पाकालीन एवं पश्च-हड़प्पा संस्कृतियां, भारतीय सभ्यता में जनजातीय संस्कृतियों का योगदान।
- शिवालिक एवं नर्मदा द्रोणी के विशेष संदर्भ के साथ भारत से पुरा-नृवैज्ञानिक साक्ष्य (रामापिथैकस, शिवापिथेकस एवं नर्मदा मानव।
- भारत में नृजाति – पुरातत्व विज्ञान: नृजाति पुरातत्व विज्ञान की संकल्पना; शिकारी, रसदखोजी, मछियारी, पशुचारक एवं कृषक समुदायों एवं कला और शिल्प उत्पादक समुदायों में उत्तरजीवक एवं समांतरक।
- भरत की जनांकिकीय परिच्छेदिकी – भारतीय जनसंख्या एवं उनके वितरण में नृजातीय एवं आषायी तत्व भारतीय जनसंख्या-इसकी संरचना और वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक।
- पारंपरिक भारतीय सामाजिक प्रणाली की संरचना और स्वरूप-वर्णाश्रम, पुरूषार्थ, कर्म ऋण एवं पुनर्जन्म।
- आरत में जाति व्यवस्था-संरचना एवं विशेषताएं, वर्ण एवं जाति, जाति व्यवस्था के उदगम के सिद्धांत, प्रबल जाति, जाति गतिशीलता, जाति व्यवस्था का भविष्य, जजमानी प्रणाली, जनजाति-जाति सातत्यक।
- पवित्र-मनोग्रंथि एवं प्राकृत-मनुष्य-प्रेतात्मा मनोग्रंथि।
- आरतीय समाज पर बौद्ध धर्म, जैन धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म का प्रभाव।
- भारत में नृविज्ञान का आविर्भाव एवं संवृद्धि – 8वीं, 9वीं एवं प्रारंभिक 20 वीं शताब्दी के शास्त्रज़-प्रशासकों के योगदान, जनजातीय एवं जातीय अध्ययनों में भारतीय नृवैज्ञानिकों के योगदान।
- भारतीय ग्राम: भारत में ग्राम अध्ययन का महत्व, सामाजिक प्रणाली के रूप में भारतीय ग्राम बस्ती एवं अंतर्जाति संबंधों के पारंपरिक एवं बदलते प्रतिरूप :
भारतीय ग्रामों में कृषिक संबंध भारतीय ग्रामों पर भूमंडलीकरण का प्रभाव। - आषायी एवं धार्मिक अल्पसंख्यक एवं उनकी सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक स्थिति। भारतीय समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की देशीय एवं बहिर्जात प्रक्रियाएं: संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण, आधुनिकीकरण छोटी एवं बड़ी परंपराओं का परस्पर प्रभाव, पंचायती राज एवं सामाजिक-परिवर्तन मीडिया एवं सामाजिक परिवर्तन।
- आरत में जनजातीय स्थिति-जैव जननिक परिवर्तिता, जनजातीय जनसंख्या एवं उनके वितरण की भाषायी एवं सामाजिक-आर्थिक विशेषताएं।
- जनजातीय समुदायों की समस््याएं-भूमि संक्रामण, गरीबी, ऋणग्रस्तता, अल्प साक्षरता, अपर्याप्त शैक्षिक सुविधाएं, बेरोजगारी, अल्परोजगारी, स्वास्थ्य तथा पोषण।
- विकास परियोजनाएं एवं जनजातीय स्थानांतरण तथा पुनर्वास समस्याओं पर उनका प्रभाव, वन नीतियों एवं जनजातियों का विकास, जनजातीय जनसंख्या पर नगरीकरण तथा औदयोगिकीकरण का प्रभाव।
- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के पोषण तथा वंचन की समस््याएं। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए सांविधानिक रक्षोपाय।
- सामाजिक परिवर्तन तथा समकालीन जनजाति समाज : जनजातियों तथा कमजोर वर्गों पर आधुनिक लोकतांत्रिक संस्थाओं, विकास कार्यक्रमों एवं कल्याण उपायों का प्रभाव।
- नृजातीयता की संकल्पना नृजातीय दूवन्दव एवं राजनैतिक विकास, जनजातीय समुदायों के बीच अशांति: क्षेत्रीयतावाद एवं स्वायतता की मांग, छदम जनजातिवाद, औपनिवेशिक एवं स्वातंत्रयोत्तर भारत के दौरान जनजातियों के बीच सामाजिक परिवर्तन।
- जनजातीय समाजों पर हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम तथा अन्य धर्मों का प्रभाव।
- जनजाति एवं राष्ट्र राज्य भारत एवं अन्य देशों में जनजातीय समुदायों का तुलनात्मक अध्ययन |
- जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का इतिहास, जनजाति नीतियां, योजनाएं, जनजातीय विकास के कार्यक्रम एवं उनका कार्यान््वयन। आदिम जनजातीय समूहों (पीटीजीएस) की संकल्पना, उनका वित्तरण, उनके विकास के विशेष कार्यक्रम, जनजातीय विकास में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका।
- जनजातीय एवं ग्रामीण विकास में नृविज्ञान की भूमिका।
- क्षेत्रीयतावाद, सांप्रदायिकता, नृजातीय एवं राजनैतिक आंदोलनों को समझने में नृविज्ञान का योगदान।
एंथ्रोपोलॉजी ऑप्शनल को अच्छी तरह से तैयार किया जाना चाहिए, यदि किसी ने इसे यूपीएससी मेन्स के लिए चुना है, तो पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों का अध्ययन करके और यूपीएससी के लिए एंथ्रोपोलॉजी पर प्रासंगिक पुस्तकों के माध्यम से भी जाना चाहिए। IAS उम्मीदवार प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन की तैयारी के साथ एंथ्रोपोलॉजी वैकल्पिक के लिए अपनी तैयारी को एकीकृत कर सकते हैं क्योंकि दोनों विषयों के पाठ्यक्रम में एक ओवरलैप है।
नृविज्ञान पाठ्यक्रम के अलावा, उम्मीदवारों को लिंक किए गए लेख में प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के लिए विस्तृत UPSC Syllabus से भी परिचित होना चाहिए , और तदनुसार अपनी अध्ययन योजना की रणनीति तैयार करनी चाहिए।
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