4 फरवरी 2023 : समाचार विश्लेषण
A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: राजव्यवस्था:
शासन:
C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E.सम्पादकीय: राजव्यवस्था एवं शासन:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
अर्थव्यवस्था:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G.महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
ग्रामीण पर्यटन:
शासन:
विषय: सरकार की नीतियां और विकास के लिए हस्तक्षेप।
मुख्य परीक्षा: सामुदायिक सशक्तीकरण और गरीबी उन्मूलन के साधन के रूप में ग्रामीण पर्यटन।
प्रसंग:
- भारत जी-20 बैठक में ग्रामीण तथा पुरातात्विक पर्यटन के क्षेत्र में सफलता प्रदर्शित करेगा।
मुख्य विवरण:
- गुजरात के कच्छ के रण में जी-20 की पहली पर्यटन मंत्रिस्तरीय बैठक में ग्रामीण पर्यटन और पुरातात्विक पर्यटन विषय होंगे।
- भारत के विभिन्न हिस्सों से ग्रामीण और पुरातात्विक पर्यटन की सबसे सफल और अभिनव पहलों को उजागर करने की अपेक्षा है।
- बैठक के दौरान मध्य प्रदेश के लाडपुरा खास गांव, नागालैंड के खोनोमा गांव और धोलावीरा जैसे विरासत स्थलों को भारत द्वारा ग्रामीण और पुरातात्विक पर्यटन की सफलता की कहानियों के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा।
- मध्य प्रदेश के लाडपुरा खास गांव को UNWTO द्वारा सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण पर्यटन गांव के रूप में नामित किया गया था।
- इस गांव में, राज्य सरकार ने राज्य के जिम्मेदार पर्यटन मिशन के तहत गांवों में होमस्टे विकसित किए।
- नागालैंड का खोनोमा विलेज इकोटूरिज्म मैनेजमेंट बोर्ड का मॉडल प्रस्तुत करेगा जो ग्रामीण पर्यटन उत्पादों को विकसित करता है और जिम्मेदार यात्रा को बढ़ावा देता है।
- भारत समुदाय आधारित एस्ट्रो टूरिज्म का अभिनव मॉडल भी प्रस्तुत करेगा जिसमें ग्रामीण होमस्टे तथा सामुदायिक स्थान शामिल हैं जो पूरी तरह से ग्रामीणों द्वारा चलाए जाते हैं और यात्रियों को हिमालय में सांस्कृतिक महत्त्व के साथ-साथ ‘स्टारगेज़िंग’ (तारों को देखना) का एक एकीकृत अनुभव प्रदान करते हैं।
- बैठक में कच्छ के रण और उसके आसपास कई ग्रामीण पर्यटन उत्पादों के विकास की सफलता को भी प्रस्तुत किया जाएगा।
पर्यटन कार्य समूह (TWG):
- भारत की G20 अध्यक्षता के हिस्से के रूप में, गुजरात 7 से 9 फरवरी तक कच्छ के रण में पहली पर्यटन कार्य समूह (TWG) बैठक की मेजबानी कर रहा है।
- G20 में, पर्यटन के लिए 5 परस्पर संबंधित प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं। तदनुसार, इन पांच प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर जोर दिया जाएगा, जैसे कि पर्यटन क्षेत्र को हरित बनाना, डिजिटलीकरण की शक्ति का उपयोग करना, युवाओं को कौशल के साथ सशक्त बनाना, पर्यटन MSME/स्टार्टअप को बढ़ावा देना तथा गंतव्यों के रणनीतिक प्रबंधन पर पुनर्विचार करना।
- G20 मंच के माध्यम से प्राथमिकताओं में से एक यह है कि 2030 तक स्थायी पर्यटन पर जोर देने के साथ सतत विकास लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जाएगा, जो पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है तथा स्थानीय उद्यम के लिए अवसर भी सृजित करता है।
- भारत प्रतिनिधियों के समक्ष स्थानीय कलाओं और हस्तशिल्प के लाइव प्रदर्शनों की भी योजना बना रहा है तथा वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट पहल (One District One Product initiative) के तहत प्रतिनिधियों को विदाई उपहार भी देने की योजना बना रहा है।
ग्रामीण पर्यटन:
- ग्रामीण पर्यटन किसी भी प्रकार का पर्यटन है जो ग्रामीण स्थानों पर ग्रामीण जीवन, कला, संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करता है, जिससे स्थानीय समुदाय को आर्थिक और सामाजिक रूप से लाभ होता है।
- कई स्थानीय परंपराएँ जैसे नाटक, कला रूप, नृत्य आदि ग्रामीण क्षेत्रों की सांस्कृतिक संपदा को बढ़ाते हैं, जिससे ये पर्यटकों के लिए आकर्षक बन जाते हैं।
- पर्यटन मंत्रालय ने देश में विकास के लिए ग्रामीण पर्यटन को शीर्ष पर्यटन क्षेत्रों में से एक के रूप में नामित किया है। मंत्रालय ने ग्रामीण पर्यटन के लिए एक मसौदा राष्ट्रीय रणनीति और रूपरेखा तैयार की है, जो पर्यटन के माध्यम से स्थानीय उत्पादों को विकसित करने और बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- यह निम्नलिखित प्रमुख स्तंभों पर केंद्रित है: (a) ग्रामीण पर्यटन के लिए मॉडल नीतियां और सर्वोत्तम प्रथाएं; (b) ग्रामीण पर्यटन के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियां और मंच; (c) ग्रामीण पर्यटन के लिए क्लस्टर विकसित करना; (d) ग्रामीण पर्यटन के लिए विपणन सहयोग; (e) हितधारकों की क्षमता निर्माण; (f) शासन एवं संस्थागत ढांचा।
- पर्यटन मंत्रालय ने ग्रामीण सर्किट को स्वदेश दर्शन योजना के तहत विकास के लिए पंद्रह विषयगत सर्किटों में से एक के रूप में नामित किया है।
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सारांश: भारत के विशाल भीतरी ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरी तथा ग्रामीण केंद्रों के बीच बढ़ती कनेक्टिविटी को देखते हुए ग्रामीण पर्यटन की बहुत संभावना है। G20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप (TWG) की बैठक से वैश्विक स्तर पर भारत की पर्यटन क्षमता के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलने की संभावना है क्योंकि 55 विभिन्न स्थानों पर बैठकों के प्रतिनिधियों को भारतीय संस्कृति और पर्यटन स्थलों से अवगत कराया जाएगा।
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
मरणासन्न रोगियों पर उच्चतम न्यायालय का रूख:
राजव्यवस्था:
विषय: न्यायपालिका।
मुख्य परीक्षा: भारत में इच्छामृत्यु के दिशानिर्देशों में प्रमुख परिवर्तन।
संदर्भ: भारत के उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में जीवित इच्छा अर्थात ‘लिविंग विल’ (Living will) के लिए मौजूदा दिशानिर्देशों में बदलाव करने का निर्णय पारित किया।
भूमिका:
- न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की एक संविधान पीठ ने ‘जीवित इच्छा’ के लिए मौजूदा दिशानिर्देशों में बदलाव करके देश में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की प्रक्रिया को अधिक आसान बनाने के लिए एक आदेश पारित किया, जैसा कि 2018 में कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ और अन्य मामले में दिए गए फ़ैसले में दिया गया था, जिसमें निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी गई थी।
- एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा याचिका दायर किए जाने के बाद मामला न्यायालय में वापस आ गया था, जिसमें कहा गया था कि जीवित इच्छा पर 2018 के दिशानिर्देश “अव्यवहार्य” थे।
2018 का निर्णय:
- भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मरणासन्न रूप से बीमार रोगियों की जीवित इच्छा को मान्यता देते हुए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी, जो स्थायी निष्क्रिय अवस्था में जा सकते थे, तथा इस प्रक्रिया को विनियमित करने वाले दिशानिर्देश जारी किए।
- संविधान पीठ ने कहा कि जब तक संसद इस पर कानून पारित नहीं करती, तब तक दिशानिर्देश लागू रहेंगे। हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ है, और इस विषय पर कानून की अनुपस्थिति ने 2018 के फैसले को इच्छामृत्यु पर निर्देशों का अंतिम निर्णायक सेट बना दिया है।
- ये दिशानिर्देश जीवित इच्छा को कौन निष्पादित करेगा, तथा वह प्रक्रिया जिसके द्वारा मेडिकल बोर्ड द्वारा अनुमोदन प्रदान किया जा सकता है, जैसे सवालों से संबंधित थे। न्यायालय ने 2018 के फैसले में कहा, “हम घोषणा करते हैं कि एक वयस्क व्यक्ति जिसके पास एक सूचित निर्णय लेने की मानसिक क्षमता है, उसे जीवन रक्षक उपकरणों से वापसी सहित चिकित्सा उपचार से इनकार करने का अधिकार है।”
- 2018 के फैसले के निर्देशों को लागू करने में कई बाधाएँ थीं, जैसे,
- एक अग्रिम चिकित्सा निर्देश (AMD) के लिए दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है, और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित भी किया जाना था।
- इसके अलावा, उपचार करने वाले चिकित्सक को कम से कम 20 वर्षों के अनुभव के साथ चिकित्सा के विशिष्ट लेकिन विविध क्षेत्रों के तीन विशेषज्ञ चिकित्सकों का एक बोर्ड गठित करना आवश्यक था, जो यह तय करेगा कि जीवित इच्छा को पूरा करना है या नहीं। यदि मेडिकल बोर्ड ने अनुमति दी, तो इच्छा को जिला कलेक्टर के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजा जाना था।
- कलेक्टर को तब मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी सहित तीन विशेषज्ञ डॉक्टरों का एक और मेडिकल बोर्ड बनाना था।
- केवल यदि यह दूसरा बोर्ड अस्पताल बोर्ड के निष्कर्षों से सहमत होता है तो निर्णय JMFC को भेजा जाएगा, जो तब रोगी से मिलेगा तथा जांच करेगा कि अनुमोदन प्रदान करना है या नहीं।
नए दिशानिर्देश:
- न्यायमूर्ति जोसेफ द्वारा लिखित अपने वर्तमान आदेश में, न्यायालय ने कहा कि इसे एक नोटरी या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में निर्वाहक / रोगी और स्वतंत्र गवाहों द्वारा हस्ताक्षरित करने की आवश्यकता है, जो अपनी संतुष्टि दर्ज करेंगे कि AMD स्वैच्छिक था और बिना किसी जबरदस्ती के निष्पादित किया गया था।
- AMD, यदि निर्वाहक चुनता है, को डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड का हिस्सा बनाया जा सकता है।
- अस्पताल और कलेक्टर दो मेडिकल बोर्ड बनाने के बजाय अब दोनों बोर्ड अस्पताल द्वारा बनाए जाएंगे।
- डॉक्टरों के लिए 20 साल के अनुभव की अनिवार्यता को कम करके पांच साल कर दिया गया है।
- मजिस्ट्रेट के अनुमोदन की आवश्यकता को मजिस्ट्रेट को सूचना द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। मेडिकल बोर्ड को 48 घंटे के भीतर अपने निर्णय की सूचना देनी चाहिए; पहले के दिशानिर्देशों में कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं थी।
- यदि अस्पताल द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड अनुमति देने से मना करता है, तो अब परिजन उच्च न्यायालय जो एक नई मेडिकल टीम का गठन करेगा, जा सकते हैं।
चित्र स्रोत: Hindustan Times
इच्छामृत्यु और लिविंग विल:
- इच्छामृत्यु (Euthanasia) एक व्यक्ति द्वारा जानबूझकर अपने जीवन को समाप्त करने की प्रथा को संदर्भित करता है, अक्सर एक असाध्य स्थिति, या असहनीय दर्द और पीड़ा से राहत पाने के लिए। इच्छामृत्यु, जिसे केवल एक चिकित्सक द्वारा प्रशासित किया जा सकता है, ‘सक्रिय’ या ‘निष्क्रिय’ हो सकता है।
- एक जीवित इच्छा, या एक अग्रिम निर्देश, एक दस्तावेज है जिसे एक व्यक्ति अग्रिम रूप से निष्पादित कर सकता है, मरणासन्न बीमारी के मामले में चिकित्सा उपचार को रोकने या वापस लेने के बारे में अपनी इच्छा को समझाते हुए तथा उस थिति में जब रिकवरी तथा उपचार की कोई संभावना नहीं होने के साथ लंबे समय तक चिकित्सा उपचार से गुजर रहा हो।
- 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को इस आधार पर वैध कर दिया गया था, कि ‘जीवित इच्छा’ या एक लिखित दस्तावेज एक व्यक्ति के पास ऐसा दस्तावेज होता है जो निर्दिष्ट करता है कि यदि व्यक्ति भविष्य में अपने स्वयं के चिकित्सा निर्णय लेने में असमर्थ है तो क्या कार्रवाई की जानी चाहिए।
- यदि किसी व्यक्ति के पास जीवित इच्छा नहीं है, तो उसके परिवार के सदस्य निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर सकते हैं।
सारांश: हाल के एक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मरणासन्न बीमारी के मामलों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु के नियमों को सरल बनाया, ताकि जीवित इच्छा अग्रिम निर्देश पर 2018 में निर्धारित मौजूदा दिशानिर्देशों को संशोधित करके लालफीताशाही जैसे मेडिकल बोर्ड के फैसले की समय सीमा को कम किया जा सके।
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संपादकीय-द हिन्दू
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
चार्ज शीट संवीक्षा पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय एवं उभरते सवाल:
राजव्यवस्था एवं शासन:
विषय: न्यायिक फैसले और हस्तक्षेप
प्रारंभिक परीक्षा: चार्जशीट
मुख्य परीक्षा: आरटीआई के तहत चार्जशीट को सार्वजनिक दस्तावेज बनाने का महत्व
विवरण:
- भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपनी कुछ सुनवाईयों का सीधा प्रसारण करने के लिए सहमत हो गया है। न्यायिक कार्यवाही में अधिक खुलेपन और पारदर्शिता की मांग कर रहे कार्यकर्ताओं ने इस कदम का गर्मजोशी से स्वागत किया।
- न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक सुलभ बनाने के लिए, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का अनुवाद चार भाषाओं (हिंदी, गुजराती, ओडिया और तमिल) में “अंग्रेजी भाषा के ‘कानूनी अवतार’ के रूप में किया जाएगा। केवल अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्धता से यह 99.9% नागरिकों को समझ में नहीं आता है”।
- हालाँकि, चार्जशीट पर SC का फैसला प्रतिगामी प्रतीत होता है। फैसला सुनाया गया है कि एक आपराधिक मामले में एक अभियुक्त के खिलाफ दायर चार्जशीट सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 या भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अर्थ में एक ‘सार्वजनिक दस्तावेज’ नहीं है। इस प्रकार, अदालत में दाखिल होते ही चार्जशीट को एक सार्वजनिक वेबसाइट पर अपलोड करने की मांग को समर्थन नहीं मिला।
- चार्जशीट अर्थात आरोप पत्र दंड प्रक्रिया संहिता 1973 द्वारा निर्दिष्ट अंतिम रिपोर्ट है।
- यह विचाराधीन अपराध का एक व्यापक लेखा-जोखा है और इसमें अभियोजन पक्ष के गवाहों की सूची और जांच अधिकारी के निष्कर्ष के समर्थन में दस्तावेजों जैसी महत्वपूर्ण जानकारी होती है।
संबद्ध चिंताएं:
- यह तर्क दिया गया है कि यह आपराधिक न्याय प्रशासन में अधिक पारदर्शिता की मांग करने वालों के लिए एक झटका है। संबंधित अपराधों के जांच अधिकारियों और पीड़ितों पर भी इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- यह फैसला यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2016) के पहले के फैसले के विपरीत है।
- इस मामले में निर्देश दिया गया कि किसी भी मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), दर्ज हो जाने के 24 घंटे के भीतर इसे संबंधित जांच एजेंसी की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई जाए।
- हालाँकि, इस फैसले के अनुसार, एक चार्जशीट एक प्राथमिकी से अलग है और इस प्रकार अभियुक्त और पीड़ित के अलावा इसे किसी के साथ साझा नहीं किया जा सकता है।
- आगे यह भी कहा गया कि यद्यपि मुकदमे के दौरान जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी, लेकिन मुकदमा शुरू होने से पहले ही इन दस्तावेजों में निहित विवरणों को अलग करने का कोई भी प्रयास अभियुक्त और पीड़ित के लिए हानिकारक होगा।
- इस बात पर प्रकाश डाला गया कि अंतिम रिपोर्ट का खुला प्रचार दंड प्रक्रिया संहिता की योजना के अंतर्गत नहीं है।
चार्जशीट की पारदर्शिता का महत्व:
- संविधान के शुरुआती दिनों में, गोपनीयता सभी न्यायिक गतिविधियों का प्रमुख पहलू थी। न्यायपालिका को पुनीत माना जाता था, जहां उसकी कोई भी कार्रवाई आलोचना या जांच के लिए खुली नहीं थी।
- हालाँकि, समय बदल गया है तथा न्यायाधीशों, उनके व्यक्तिगत जीवन और उनके न्यायिक निर्णयों पर अक्सर बहस और आलोचना होती है।
- लेखक द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि जनता के साथ चार्जशीट साझा करने की मांग बहुत हद तक सही है। यह आगे कहा गया है कि हालांकि निहित हितों में खामियां मिल सकती हैं और यह अभियोजन पक्ष को कमजोर कर सकता है, लेकिन यह जनता तक एक्सेस से इनकार करने का कारण नहीं होना चाहिए।
- इसके बजाय यह जांच की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करेगा।
- इसके अलावा, किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा महत्वपूर्ण विश्लेषण की संभावना संभावित रूप से एक जांच की सुदृढ़ता को बढ़ाएगी और निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ अभियोग चलाने से रोकेगी।
- एक ट्रायल कोर्ट को चार्जशीट की बाहरी संवीक्षा से अधिक लाभ होगा।
- ट्रायल से पहले जनता के शुभचिंतक सदस्यों द्वारा बेहतर विश्लेषण से न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने वाले कमजोर चार्जशीट की संभावना कम हो जाएगी।
संबंधित लिंक:
सारांश:
यह सुझाव दिया गया है कि सुनवाई शुरू होने से पहले चार्जशीट की सार्वजनिक संवीक्षा के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का आदेश न्यायिक सुधार के लिए एक झटका है और इससे जांच की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। इस प्रकार इस निर्णय की समीक्षा करने की सिफारिश की जाती है, क्योंकि बढ़ी हुई पारदर्शिता जांच एजेंसियों और न्यायपालिका दोनों की दक्षता को और मजबूत कर सकती है।
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
श्रीलंका की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ उत्सव पर विवाद
अंतरराष्ट्रीय संबंध
विषय: भारत का पड़ोस
मुख्य परीक्षा: श्रीलंका में आजादी उत्सव से जुड़ी चिंताएं
प्रसंग: श्रीलंका की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ 4 फरवरी 2023 को मनाई जा रही है।
श्रीलंका में विवाद:
- सरकार अपने 75 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह पर 300 मिलियन श्रीलंकाई रुपये खर्च कर रही है। इसने विवाद खड़ा कर दिया है क्योंकि देश आर्थिक पतन के दौर से गुजर रहा है।
- फरवरी 2023 के अंत से पहले होने वाले राष्ट्रव्यापी स्थानीय सरकार के चुनावों से संबंधित एक और विवाद चल रहा है।
- बड़े स्तर पर चर्चा चल रही है कि जब देश सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है तो चुनाव पर सार्वजनिक धन खर्च करना उचित है या नहीं।
- एक तरफ राष्ट्रपति कार्यालय का दावा है कि राजकोष के पास चुनाव पर खर्च करने के लिए पैसा नहीं है। वहीं यह भी कहा जाता है कि चुनाव तत्काल जनता की जरूरत नहीं है।
- वहीं, विपक्ष सत्ताधारी गठबंधन पर चुनावी अपमान से बचने के बहाने के तौर पर इसका इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहा है।
साथ ही इसे भी पढ़िए: Sri Lankan Economic Crisis 2021- Present
श्रीलंका में स्वतंत्रता समारोह से जुड़ी चिंताएं:
- श्रीलंका में, 1948 की परिघटना (स्वतंत्रता) की आधिकारिक हलकों के बाहर प्रभाव नहीं बन पाई है, क्योंकि:
- श्रीलंका की स्वतंत्रता का विशिष्ट मार्ग।
- सरकारों द्वारा क्या ‘नहीं’ हासिल किया गया है?
- इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि चार मूल कारणों अर्थात् सिंहली राष्ट्रवादी, तमिल राष्ट्रवादी, समाजवादी और अकादमिक के कारण स्वतंत्रता को राष्ट्रीय गौरव की परिघटना के रूप में मनाने के बारे में संशय है।
- सिंहली राष्ट्रवादी:
- वे असंतुष्ट थे क्योंकि औपनिवेशिक शासकों द्वारा श्रीलंका को राजनीतिक संप्रभुता प्रदान नहीं की गई थी।
- उनका तर्क था कि 1947 के सोलबरी संविधान में केवल आंशिक स्वतंत्रता और अपूर्ण संप्रभुता शामिल थी तथा राष्ट्रवादी नेताओं ने इसके लिए संघर्ष नहीं किया।
- सिंहली राष्ट्रवादियों (1952 में) ने मांग की कि संविधान में बौद्ध धर्म के लिए एक विशेष स्थिति के साथ श्रीलंका को एक गणराज्य बनाया जाना चाहिए।
- तमिल राष्ट्रवादी:
- बहुसंख्यक प्रभुत्व से आशंकित, उन्होंने (1948 से पहले) विधायिका में सभी अल्पसंख्यकों के लिए संतुलित प्रतिनिधित्व की मांग की।
- हालांकि, उन्हें स्वतंत्र संविधान में भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ केवल कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया था।
- परिणामस्वरूप, तमिल नेताओं ने क्षेत्रीय स्वायत्तता का समर्थन किया और स्वतंत्रता के बाद के संवैधानिक व्यवस्था की संरचना का आह्वान किया।
- समाजवादी:
- समाजवादियों ने तर्क दिया कि केवल एक समाजवादी गणतंत्र ही सभी श्रीलंकाई लोगों के लिए पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता और संप्रभुता सुनिश्चित करेगा।
- उन्होंने श्रीलंका के ‘समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य’ की स्थापना के लिए 1970-72 में सिंहली राष्ट्रवादी श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के साथ सहयोग किया।
- अकादमिक:
- अकादमिक संशयवाद ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि राजनीतिक स्वतंत्रता की अधूरी प्रकृति स्वतंत्रता के लिए एक उग्रवादी उपनिवेशवाद विरोधी जन आंदोलन की अनुपस्थिति से संबंधित थी।
- यह भी तर्क दिया जाता है कि जिन नेताओं ने श्रीलंका में स्वतंत्रता का समझौता किया, वे कभी भी उपनिवेशवादियों के साथ गंभीर आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों के विच्छेद हेतु प्रतिबद्ध नहीं थे।
- सिंहली राष्ट्रवादी:
- इसके अलावा, 1948 से श्रीलंका में एक और प्रमुख राजनीतिक चर्चा स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक व्यवस्था के समग्र ढांचे की उदार लोकतांत्रिक प्रकृति पर न्यूनतम सहमति थी।
- परिणामस्वरूप, 1972 के पहले रिपब्लिकन संविधान (1948 के बाद पहला बड़ा संरचनात्मक सुधार) ने सिंहली राष्ट्रवादियों और समाजवादियों की मांगों को समायोजित किया, लेकिन तमिल राष्ट्रवादियों की मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया।
हिंसक टकराव:
- श्रीलंका में सामाजिक और राजनीतिक शांति अल्पकालिक थी तथा 1970 के दशक की शुरुआत से इसमें राज्य और नागरिकों के बीच हिंसक टकराव देखा गया है। उदाहरण के लिए,
- आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की मांग करने वाले सिंहली समाज में एक सशस्त्र विद्रोह 1971 में शुरू हुआ।
- 1987 से 1989 तक JVP का दूसरा विद्रोह हुआ था। इसे काफी सख्ती से किनारे कर दिया गया था।
- एक तमिल ‘राष्ट्र’ के लिए स्वायत्तता की मांग करते हुए 1983 में उत्तरी तमिल समाज में उग्रवाद शुरू हुआ। इसने एक लंबे और दीर्घकालीन गृहयुद्ध को जन्म दिया।
- देश में मौजूदा आर्थिक संकट श्रीलंका के राजनीतिक अभिजात वर्ग की निरंतर नीति और शासन की विफलताओं के बारे में नए प्रश्नों को उजागर करता है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि श्रीलंका अब कुपोषित बच्चों की अधिकतम संख्या के साथ दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल है।
निष्कर्ष:
नागरिकों की ओर से अपने शासकों से स्वतंत्रता दिवस समारोह पर लाखों रुपये खर्च करने के उनके अधिकार के बारे में पूछा जाना उचित है, जबकि स्वतंत्रता का अर्थ अभी भी विवादित है।
संबंधित लिंक:
India – Sri Lanka Relations for UPSC: Background, intervention in Civil War and <ore.
सारांश:
श्रीलंका में स्वतंत्रता दिवस समारोह कई विवादों से घिरा हुआ है, विशेषकर इस समय जब देश सबसे खराब आर्थिक संकटों में से एक का सामना कर रहा है। इस प्रकार यह सुझाव दिया जाता है कि पहले राजनीतिक व्यवस्था को स्थापित किया जाए तथा समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए कल्याण सुनिश्चित किया जाए।
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित
हरित पहल की ओर:
भारतीय अर्थव्यवस्था:
विषय: ऊर्जा- नवीकरणीय ऊर्जा
प्रारंभिक परीक्षा: बजट 2023-24
मुख्य परीक्षा: हरित ऊर्जा में संक्रमण
प्रसंग: बजट 2023-24 में हरित ऊर्जा के प्रस्ताव
विवरण:
- 2023 के बजट में 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन की ओर बढ़ने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर बल दिया गया है।
- दावोस में विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत एक आलेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत के पास अपनी विशाल और बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के कारण वैश्विक जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने का सामर्थ्य है।
- यदि भारत की जनसंख्या चीन से अधिक होने वाली है, तो अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए भारत की ऊर्जा की जरूरत तेजी से बढ़ेगी। इसलिए, हरित ऊर्जा की ओर संक्रमण आवश्यक है।
- इसके अलावा, यह नए उद्योगों को उत्प्रेरित करने, रोजगार सृजित करने और समग्र आर्थिक उत्पादन में वृद्धि करने का अवसर प्रदान करेगा।
- यह सुझाव दिया गया है कि इलेक्ट्रिक वाहन (EV) क्रांति की शुरुआत के साथ, स्वदेशी रूप से निर्मित लिथियम-आयन बैटरी की उपलब्धता एक आवश्यकता बन गई है। गौरतलब है कि बजट 2023-24 में लिथियम-आयन सेल के निर्माण के लिए आवश्यक पूंजीगत वस्तुओं और मशीनरी के आयात पर सीमा शुल्क में छूट देने का प्रस्ताव किया गया है। इससे स्थानीय कंपनियों को EV बैटरी संयंत्र स्थापित करने में मदद मिलेगी।
साथ ही इसे भी पढ़िए: Lithium-ion Batteries – Advantages, Drawbacks, Alternatives
बजट 2023 में मौजूद अन्य प्रस्ताव:
- बजट 2023 में हरित ऊर्जा की ओर संक्रमण का एक अन्य प्रमुख प्रस्ताव एक व्यवहार्यता अंतराल वित्त पोषण तंत्र की स्थापना है।
- इसका उद्देश्य 4000 MWh की क्षमता वाली बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के विकास को सहयोग प्रदान करना है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पावर ग्रिड स्थिरीकरण के लिए बैटरी स्टोरेज सिस्टम महत्वपूर्ण हैं, खासकर इस मोड़ पर, जब भारत सौर और पवन ऊर्जा पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है।
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लद्दाख से 13 GW नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रिड एकीकरण हेतु एक अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली के लिए ₹20700 करोड़ की परियोजना के लिए अलग से ₹8300 करोड़ की व्यवस्था का उल्लेख किया है।
- पारेषण लाइन (ट्रांसमिशन लाइन) से उस क्षेत्र में सौर क्षमता स्थापित करने में आने वाली समस्या का समाधान होगा जो अन्यथा भारत के मुख्य पावर ग्रिड से दूर होने के कारण कठिन था।
संबंधित लिंक:
Indian Renewable Energy Development Agency (IREDA) | UPSC Notes
सारांश:
बजट 2023-24 में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिए विभिन्न परियोजनाओं/योजनाओं का प्रस्ताव किया गया है। यह सही दिशा में एक अच्छा कदम है। इस तरह के और प्रयास किए जाने चाहिए, क्योंकि भारत में ऊर्जा की मांग बढ़ती रहेगी।
प्रीलिम्स तथ्य:
- पीएम-कुसुम:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
सरकार की नीतियां और विकास के लिए हस्तक्षेप:
प्रारंभिक परीक्षा: नवीकरणीय ऊर्जा; सौर ऊर्जा पर नीतियां।
प्रसंग:
- भारत सरकार ने पीएम कुसुम योजना की समय सीमा बढ़ा दी है।
मुख्य विवरण:
- भारत सरकार ने 2022 तक ग्रामीण भारत में 30,000 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लिए नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा पीएम कुसुम योजना की समय सीमा बढ़ा दी है।
- सरकार ने पीएम-कुसुम योजना को मार्च 2026 तक बढ़ा दिया है क्योंकि इसका क्रियान्वयन कोविड-19 महामारी के कारण काफी प्रभावित हुआ था।
- राज्य क्रियान्वयन एजेंसियों ने योजना के तहत परियोजनाओं के निष्पादन के लिए समय सीमा में विस्तार की मांग की थी।
- MNRE राज्यों के साथ साप्ताहिक/पाक्षिक आधार पर नियमित बैठकों के माध्यम से योजना की निगरानी कर रहा है। राज्य कार्यान्वयन एजेंसियां मासिक आधार पर प्रगति रिपोर्ट जमा करती हैं।
- 2019 में शुरू की गई, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) का उद्देश्य 2022 तक 30,800 मेगावाट की सौर क्षमता को जोड़ना है, जिसमें कार्यान्वयन एजेंसियों को सेवा शुल्क सहित 34,422 करोड़ रुपये की कुल केंद्रीय वित्तीय सहायता शामिल है।
- पीएम-कुसुम के तीन घटक हैं:
- किसानों द्वारा 10,000 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करना;
- 20 लाख सौर ऊर्जा से चलने वाले कृषि पंपों को स्थापित करना जो ग्रिड से जुड़े नहीं हैं, (ऑफ-ग्रिड) तथा
- पहले से ही ग्रिड से जुड़े 15 लाख कृषि पंपों को सौर ऊर्जा में परिवर्तित करना।
- 31 दिसंबर, 2022 तक, केवल 88.46 मेगावाट सौर क्षमता जोड़ी गई थी; 181,058 सौर पंप स्थापित किए गए थे और 1,174 ग्रिड से जुड़े पंपों में बदलाव किए गए थे।
इस पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए PM KUSUM Scheme
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. तिहाड़ जेल को कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित निगरानी प्रणाली मिलेगी
- तिहाड़ जेल कैदियों पर नजर रखने और अपराध का सामना करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)-संचालित सीसीटीवी कैमरे लगा रहा है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित सीसीटीवी कैमरे “अँधेरे स्थलों” में गतिविधियों का पता लगाने में मदद करेंगे।
- परिसर में एक रियल टाइम शिकायत निवारण प्रणाली और ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क भी होगा।
- शिकायत निवारण प्रणाली वास्तविक समय में कैदियों की समस्याओं का समाधान करने के लिए पुलिस नियंत्रण कक्ष (PCR) की तरह काम करेगी।
- तिहाड़ जेल दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा जेल परिसर है और कुछ सबसे हाई-प्रोफाइल अपराधियों को यहाँ रखा गया है।
- अधिकतम सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल, जिसमें 5,200 कैदियों को रखने की क्षमता है, वर्तमान में इसकी नौ केंद्रीय जेलों में 12,762 कैदी हैं।
- भीड़भाड़ के कारण बंदियों पर नजर रखना कठिन हो गया है।
इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए इन लिंकों पर क्लिक कीजिए Reforms in Criminal Justice System
2.एंटोनोव-32 (AN-32)
- भारतीय वायु सेना (IAF) ने सेवा में AN-32 परिवहन विमान के लिए एक प्रतिस्थापन खोजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
- इसने 18 से 30 टन की वहन क्षमता वाले मध्यम परिवहन विमान (MTA) की खरीद हेतु सूचना के लिए अनुरोध (RFI) जारी किया है।
- An-32 एक जुड़वां इंजन, सामरिक हल्का परिवहन विमान है जिसे भारतीय वायु सेना (IAF) के लिए यूक्रेन के एंटोनोव डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा डिज़ाइन तथा निर्मित किया गया है।
- इसका नाटो रिपोर्टिंग नाम क्लाइन है।
- IAF वर्तमान में 90 से अधिक AN-32 का एक बेड़ा संचालित करता है जो लद्दाख और पूर्वोत्तर सहित देश की सीमाओं पर अग्रिम-तैनात सैनिकों का सहयोग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- यह विमान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्गों पर या तो 7.5 टन कार्गो, 50 यात्रियों, 42 पैराट्रूपर्स, या 24 मरीजों और तीन मेडिकल दल का परिवहन कर सकता है।
चित्र स्रोत: The Print
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. भारत में विधान परिषदों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – सरल)
- 2020 में, आंध्र प्रदेश विधानसभा ने विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया।
- संसद एक विधान परिषद (जहां यह पहले से मौजूद हो) को समाप्त कर सकती है या विशेष बहुमत से इसकी (जहां यह मौजूद नहीं हो) स्थापना कर सकती है , यदि संबंधित राज्य की विधान सभा, एक साधारण बहुमत से, उस आशय का प्रस्ताव पारित करती है।
- विधान परिषद के एक सदस्य (MLC) का कार्यकाल 6 साल का होता है, जिसमें से एक तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिए:
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- उपर्युक्त सभी
उत्तर: c
व्याख्या:
कथन 01 सही है, 2020 में, आंध्र प्रदेश विधानसभा ने संविधान के अनुच्छेद 169 (1) के तहत राज्य विधान परिषद को समाप्त करने की मांग करते हुए एक वैधानिक प्रस्ताव पारित किया।
कथन 02 गलत है, संसद विधि द्वारा (साधारण बहुमत) विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद को समाप्त करने या ऐसी कोई परिषद न होने वाले राज्य में ऐसी परिषद के निर्माण के लिए प्रावधान कर सकती है, यदि राज्य की विधान सभा विधानसभा की कुल सदस्यता के बहुमत से और विधानसभा के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों (विशेष बहुमत) के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित करती है।
कथन 03 सही है, विधान परिषद एक सतत चलने वाला सदन है, अर्थात यह एक स्थायी निकाय है तथा विघटन के अधीन नहीं है। विधान परिषद के एक सदस्य (MLC) का कार्यकाल छह वर्ष का होता है, जिसमें से एक तिहाई सदस्य हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
प्रश्न 2. धोलावीरा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)
- जुलाई 2021 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित धोलावीरा को लेकर माना जाता है कि यह लगभग 3500 ईसा पूर्व (पूर्व-हड़प्पा काल) से लगभग 1800 ईसा पूर्व (उत्तर हड़प्पा काल) तक अस्तित्व में था।
- धोलावीरा स्थल हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, गणेरीवाला, राखीगढ़ी, कालीबंगन, रूपनगर और लोथल सहित आठ प्रमुख हड़प्पा स्थलों में पांचवां सबसे बड़ा है।
- धोलावीरा की अवस्थिति कर्क रेखा पर है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: d
व्याख्या:
- हड़प्पा सभ्यता का दक्षिणी केंद्र, प्राचीन नगर धोलावीरा गुजरात राज्य में खादिर के शुष्क द्वीप पर स्थित है।
- यह 3000-1500 ईसा पूर्व के बीच बसा हुआ था और यह दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे अच्छी संरक्षित शहरी बस्तियों में से एक है, जिसमें गढ़ वाला शहर तथा एक कब्रिस्तान शामिल है।
- इसे 2021 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में दर्ज किया गया था, जिससे यह प्रतिष्ठित सूची में शामिल होने वाला भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का पहला स्थल बन गया।
- राखीगढ़ी भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है जबकि धोलावीरा आठ प्रमुख हड़प्पा स्थलों में पांचवां सबसे बड़ा है।
- धोलावीरा कर्क रेखा (23.5 डिग्री उत्तर) पर अवस्थित है।
प्रश्न 3. कलादान मल्टीमॉडल परियोजना का उद्देश्य म्यांमार के जरिए भारत के किस राज्य से संपर्क सुविधा (कनेक्टिविटी) में सुधार करना है? (स्तर – सरल)
- मिजोरम
- मणिपुर
- नागालैंड
- अरुणाचल प्रदेश
उत्तर: a
व्याख्या:
- कालादान मल्टीमॉडल परियोजना (Kaladan Multimodal project) कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के सितवे बंदरगाह से समुद्र के रास्ते, सितवे से पलेत्वा को कालादान नदी के जरिए, पलेत्वा को भारत की सीमा और म्यांमार को सड़क मार्ग से और आगे सड़क मार्ग से लॉन्गतलाई, मिजोरम तक जोड़ती है।
प्रश्न 4. “यह अधिकतर पश्चिमी लेनदार देशों का एक समूह है जो 1956 की बैठक जिसमें अर्जेंटीना अपने सार्वजनिक लेनदारों से बातचीत करने पर सहमत हुआ था, से अस्तित्व में आया है। इनका उद्देश्य उन देशों के लिए धारणीय ऋण-राहत समाधान खोजना है जो अपने द्विपक्षीय ऋण चुकाने में असमर्थ हैं।” यह कौन सा समूह है? (स्तर – मध्यम)
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)
- पेरिस क्लब
- वैश्विक पर्यावरण सुविधा
- CAF – लैटिन अमेरिका का विकास बैंक
उत्तर: b
व्याख्या:
- पेरिस क्लब अधिकाँश पश्चिमी लेनदार देशों का एक समूह है जिसका गठन 1956 की बैठक में हुआ जिसमें अर्जेंटीना पेरिस में अपने सार्वजनिक लेनदारों से बातचीत के लिए सहमत हुआ था। इसका उद्देश्य उन देशों के लिए धारणीय ऋण-राहत समाधान खोजना है जो अपने द्विपक्षीय ऋण चुकाने में असमर्थ हैं।
- यह स्वयं को एक ऐसे मंच के रूप में वर्णित करता है जहां आधिकारिक लेनदार देनदार देशों द्वारा सामना की जाने वाली भुगतान कठिनाइयों को हल करने के लिए बैठक करते हैं। सभी 22 सदस्य आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) [Organisation for Economic Co-operation and Development (OECD)] नामक समूह के सदस्य हैं।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पर विचार कीजिए : (स्तर – कठिन)
- कलकता यूनिटेरियन कमेटी
- टेबरनेकल ऑफ न्यू डिस्पेंसेशन
- इंडियन रिफ़ार्म असोसिएशन
केशव चन्द्र सेन का संबंध उपर्युक्त में से किसकी स्थापना से है?
- केवल 1 और 3
- केवल 2 और 3
- केवल 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: b
व्याख्या:
- 1881 में, केशब चंद्र सेन ने ब्रह्म समाज के भीतर मतभेद होने के बाद नव विधान (नई व्यवस्था) की स्थापना की, जिसका अर्थ है नया सार्वभौमिक धर्म। वह ब्रह्म विवाह को वैध बनाने और विवाह की न्यूनतम आयु तय करने के लिए भारतीय सुधार संघ का भी हिस्सा थे।
- कलकत्ता यूनिटेरियन कमेटी का गठन राजा राममोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर और विलियम एडम द्वारा किया गया था, इसलिए यह प्रश्न के लिए अप्रासंगिक हो जाता है। इसलिए विकल्प a और d को उत्तर के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- सेन ने भारतीय सुधार संघ (1870) का गठन ब्रिटिश सरकार को 1872 के नेटिव मैरिज एक्ट (सिविल मैरिज एक्ट) को लागू करने को लेकर सहमत करने के लिए किया, ज्ञात हो कि इस एक्ट अर्थात अधिनियम ने ब्रह्म विवाह को वैध बनाया तथा लड़कों एवं लड़कियों के लिए न्यूनतम विवाह योग्य अधिनियम तय करता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. भारत की विकास गाथा में ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। विस्तार से बताइए। (250 शब्द; 15 अंक) (GS III-अर्थव्यवस्था)
प्रश्न 2. हालांकि भारत में न्यायिक कार्यवाहियां तेजी से पारदर्शी हुई हैं, फिर भी सुधार की गुंजाइश है। क्या आप सहमत हैं? समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (GS II-राजव्यवस्था)