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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 11 November, 2022 UPSC CNA in Hindi

11 November 2022: UPSC Exam Comprehensive News Analysis

11 नवंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:

  1. खेरसॉन से रूस की वापसी:

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

विश्व इतिहास:

  1. विश्व युद्धों में भारत:

शासन:

  1. सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों का प्रसारण:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. CE20 क्रायोजेनिक इंजन:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. मानवाधिकार रक्षकों को देश के कानून का पालन करना चाहिए: भारत ने HRC सत्र में कहा
  2. भारत ने COP-27 में वर्ष 2024 तक एक उच्च लक्ष्य निर्धारण पर पर जोर दिया:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

खेरसॉन से रूस की वापसी:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

विषय: विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियां और राजनीति का प्रभाव।

प्रारंभिक परीक्षा: खेरसॉन क्षेत्र से सम्बंधित तथ्य ।

मुख्य परीक्षा: यूक्रेन में खेरसॉन क्षेत्र से रूस के पीछे हटने के कदम का विश्लेषण।

संदर्भ:

  • हाल ही में, यूक्रेन की रक्षा और खुफिया एजेंसियों ने बताया कि रूसी सैनिक खेरसॉन क्षेत्र से पीछे हट गए हैं।

चित्र स्रोत: द हिंदू

खेरसॉन क्षेत्र एवं उसका महत्व:

  • खेरसॉन भौगोलिक रूप से रूस और यूक्रेन दोनों के लिए एक रणनीतिक स्थान पर स्थित है।
  • खेरसॉन, निप्रो/दनीप्रो नदी (Dnipro River) के उत्तर-पश्चिम में स्थित है और खेरसॉन क्षेत्र काला सागर, डोनेट्स्क (Donetsk) और क्रीमिया के साथ सीमा साझा करता है।
  • वर्ष 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद,मार्च 2022 से रूस द्वारा खेरसॉन पर कब्जा करना रूस के लिए लाभदायक हो गया था, क्योंकि यूक्रेन का मुकाबला करने के लिए रूस क्रीमिया से अपनी सेना को आसानी से खेरसॉन स्थानांतरित कर सकता हैं।
  • खेरसॉन ने रूस को पश्चिम में ओडेसा (Odesa) और काला सागर (Black Sea) बंदरगाहों तक पहुंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दक्षिणी यूक्रेन को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण मार्ग के रूप में कार्य किया।
  • इसी तरह यूक्रेन के लिए कलांचक (Kalanchak) और चाप्लिनका (Chaplynka) जिलों में अपनी आबादी की रक्षा करने और क्रीमिया को वापस पाने के लिए खेरसॉन को फिर से हासिल करना महत्वपूर्ण हो गया है।
  • इसके अलावा खेरसॉन कई सिंचाई चैनलों के साथ एक प्रमुख कृषि क्षेत्र भी है।

रूस द्वारा खेरसॉन का कब्ज़ा:

  • मार्च 2022 की शुरुआत में एक भयंकर लड़ाई के माध्यम से रूस द्वारा खेरसॉन पर कब्जा कर लिया गया था।
  • खेरसॉन की लड़ाई ने रूस को यूक्रेन के दक्षिणी भाग को हथियाने और उस पर कब्जा करने में मदद की जबकि उत्तर में खार्किव और कीव (Kharkiv and Kyiv) की लड़ाई जारी रही।
  • खेरसॉन पर कब्जा करने से रूस को अन्य प्रमुख बंदरगाह शहरों जैसे आज़ोव सागर में मारियुपोल और ओडेसा पर कब्जा करने में मदद मिली और इस तरह उसने इन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बढ़ाया।
  • खेरसॉन क्षेत्र की सिंचाई नहरों का उपयोग रक्षा स्थलों के रूप में किया गया था और यूक्रेन के जवाबी हमलों को रोकने के लिए रक्षा की एक मजबूत रेखा विकसित की गई थी।
  • रूस ने इसके बाद अपने सैनिकों को खेरसॉन में तैनात कर और वहां गोला-बारूद का भंडार जमा कर लिया था।

रूस के खेरसॉन से हटने के कारण:

  • मोबिलाइजेशन/लामबंदी में विफलता:जैसे ही रूस ने तेजी से यूक्रेन के दक्षिणी और उत्तरी शहरों पर कब्जा किया, इसके सैन्य संसाधन जिनमें कार्मिक और हथियार प्रणालियाँ शामिल थीं, तेजी से समाप्त होने लगे।
  • रूस इन चुनौतियों से निपटने के लिए आंशिक लामबंदी रणनीतियों का पालन करने के बावजूद,नए रंगरूटों की विफलता रूस के लिए खेरसॉन क्षेत्र में यूक्रेन के जवाबी हमलों को रोकने के लिए एक अतिरिक्त चुनौती बन गई।
  • खेरसॉन पर शासन करने में असमर्थता: मार्शल लॉ लागू करने के बावजूद, रूस प्रभावी ढंग से खेरसॉन पर शासन करने या प्रशासन करने में विफल रहा,क्योंकि इस क्षेत्र में तैनात त्रिस्तरीय सुरक्षा बल जमीन पर रूस के वास्तविक नियंत्रण को लागू नहीं कर सका।
  • यूक्रेन से बढ़ते जवाबी हमले: युद्ध के शुरू में यूक्रेन को पश्चिमी देशों द्वारा केवल कम दूरी और निम्न श्रेणी के हथियारों की आपूर्ति की गई थी।
  • हालांकि जैसे-जैसे रूस ने अपनी आक्रामकता को बढ़ाना जारी रखा, पश्चिमी देशों ने वहां के कर्मियों के सैन्य प्रशिक्षण के साथ-साथ उन्हें मध्यम से उच्च श्रेणी के हथियार प्रणालियों की आपूर्ति करके यूक्रेन को अपना समर्थन प्रदान किया, जिसमें हॉवित्जर (Howitzers), एचआईएमएआर (HIMARS), वायु रक्षा प्रणाली (air defence systems), युद्धक टैंक (battle tanks) और ड्रोन प्रौद्योगिकियां ( drone technologies) शामिल हैं।
  • पश्चिम से इस बढ़े हुए समर्थन ने यूक्रेन को विभिन्न रूसी-कब्जे वाले क्षेत्रों जैसे कि इज़ियम ( Izyum), उत्तर-पूर्व, खार्किव के दक्षिण-पूर्व, इज़्युम-स्लोविंस्क (Izyum-Slovyansk), कुपियनस्क (Kupiansk) और उत्तर-पश्चिम खेरसॉन (northwest Kherson) को पुनः प्राप्त करने में मदद की है।

रूस के इस कदम का विश्लेषण:

  • रूस की रक्षा प्रणालियों को जुटाने और फिर से संगठित करने की चुनौतियों, हथियारों की कमी और यूक्रेन की सेना की प्रगति को प्रतिबंधित करने में विफलता ने रूस को खेरसॉन से हटने के लिए मजबूर करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
  • रूस की रक्षा प्रणालियों को जुटाने और फिर से संगठित करने की चुनौतियां, हथियारों की कमी और यूक्रेन की सेना की प्रगति को प्रतिबंधित करने में विफलता ने रूस को खेरसॉन से हटने के लिए मजबूर करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
  • जैसा कि यूक्रेन ने पश्चिमी देशों के समर्थन एवं मदद से अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाना जारी रखा एवं अपने तकनीकी कौशल को बढ़ाना जारी रखा इनमे भूमि-आधारित युद्धक टैंकों से हवाई-आधारित भारी युद्धक टैंकों में अपग्रेड करना शामिल था,इन सब कारणों के चलते रूस को अब यूक्रेन में अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को बनाए रखने के लिए परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
  • प्रारंभिक हमले के बाद खेरसॉन से वापसी के समान रूस ने कीव पर हमले करने के बाद पूर्वी यूक्रेन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कीव पर कब्जा करने की अपनी रणनीति को स्थानांतरित कर दिया है।
  • वैसे ही रूस भी खार्किव पर कब्जा करने की अपनी रणनीति से पीछे हट गया,क्योंकि डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों पर नियंत्रण रखना अब उसके लिए एक अधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य बन गया था।
  • हालांकि यूक्रेन की सेना और नेतृत्व ने रूस के इस कदम के बारे में भविष्यवाणी की है कि यह केवल रूसी सेना के पीछे हटने का भ्रम पैदा कर रहा हैं।
  • इसके अलावा यू.एस. और यूरोपीय संघ के नेताओं ने रूस की वापसी को रूसी राष्ट्रपति के लिए एक “कठिन स्थिति” के रूप में संदर्भित किया है और यूक्रेन के लोगो को वहां से निर्वासित करने की क्रूरता की आलोचना की है।

सारांश:

  • खेरसॉन से रूस की वापसी ने रूस-यूक्रेन युद्ध को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है, क्योंकि यह रूस की सैन्य शक्ति में गंभीर अंतराल को उजागर करता है,साथ ही गंभीर हमलों या प्रतिरोध के तहत रूस की पीछे हटने की रणनीति पर प्रकाश डालता है,साथ ही दोनों पक्षों के बड़े राजनीतिक उद्देश्यों को दर्शाता है जो इस बारे में एक विचार प्रदर्शित करता है कि वे युद्ध के साथ कितनी दूर तक जा सकते हैं।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

विश्व युद्धों में भारत:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

विश्व इतिहास:

विषय: विश्व युद्ध

मुख्य परीक्षा: विश्व युद्धों में भारत का महत्वपूर्ण योगदान।

संदर्भ:

  • प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों में 11 नवंबर का दिन एक स्मरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस सशस्त्र बलों के उन सदस्यों को याद करने के लिए मनाया जाता है जो अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए शहीद हो गए थे। स्मरण दिवस को युद्धविराम दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह उस दिन का प्रतीक है जब प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ था।

विश्व युद्धों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका:

  • दस लाख से अधिक भारतीय सैनिकों ने विदेशों में अपनी सेवाएं प्रदान की थीं। इनमें से 62,000 सैनिक शहीद और अन्य 67,000 सैनिक घायल हो गए थे। युद्ध के दौरान कुल मिलाकर कम से कम 74,187 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे।
  • प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सेना ने पश्चिमी मोर्चे पर जर्मन साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
  • महात्मा गांधी सहित राष्ट्रवादी नेताओं के समर्थन से, ब्रिटेन द्वारा जर्मनी पर युद्ध की घोषणा के चार दिन बाद भारतीयों को लामबंद किया गया।
  • भारतीय सैनिकों ने यूरोप, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्रों में वीरता और गौरव के साथ लड़ाई लड़ी।
  • प्रथम विश्व युद्ध में अपने बलिदान के लिए भारतीय सैनिकों ने कुल 11 विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार जीता। खुददाद खान विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार से सम्मानित किये जाने वाले पहले भारतीय बने। वह 129वीं बलूची रेजीमेंट में मशीन गनर थे।
    • विक्टोरिया क्रॉस ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल सैनिकों को प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।
  • भारत द्वारा ब्रिटेन को युद्ध में भाग लेने के लिए उपहार के रूप में 100 मिलियन ब्रिटिश पाउंड (वर्तमान में 838 करोड़ रुपये) की धनराशि प्रदान की गई थी। बदले में डोमिनियन स्टेट का दर्जा और गृह शासन की मांग की गई थी।
  • अंग्रेजों द्वारा भारत से 37 लाख टन की जूट की आपूर्ति सैंडबैग के लिए की गई थी। भारत ने युद्ध के लिए सभी प्रकार की सामग्री की आपूर्ति की, जिसमें कपड़े, हथियार, टैंक, बख्तरबंद कार, बंदूकें आदि शामिल हैं।
  • अंग्रेजों ने भारत से पुरुषों (सैनिक के रूप में) और धन के साथ-साथ ब्रिटिश कराधान नीतियों द्वारा एकत्र किए गए खाद्य पदार्थ, नकदी और गोला-बारूद की बड़ी मात्रा में आपूर्ति की।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के लिए भारत ने अब तक की सबसे बड़ी स्वयंसेवी सेना (2.5 मिलियन की) बनाई थी।
  • इनमें से 87,000 से अधिक का अंतिम संस्कार भारत सहित दुनिया भर में विभिन्न युद्ध कब्रिस्तानों में किया गया है।
  • भारतीय डॉक्टर और नर्सों ने ब्रिटिश सहित कई अन्य देशों में अपनी सेवाएं प्रदान की थीं। वर्ष 1939 में, एल्डविच में इंडिया हाउस में इंडियन कम्फर्ट फंड (ICF) की स्थापना की गई थी, जिसे भारतीय और ब्रिटिश महिलाओं द्वारा संचालित किया जाता था।
    • वर्ष 1939 और 1945 के बीच, इंडियन कम्फर्ट फंड ने सैनिकों और युद्ध के एशियाई कैदियों को 1.7 मिलियन से अधिक खाद्य पैकेट की आपूर्ति की थी। फंड ने गर्म कपड़े और अन्य सामानों की भी आपूर्ति की थी।
  • 31 विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार – कुल वितरित पुरस्कारों का 15% – अविभाजित भारत के सैनिकों को प्रदान किया गया था।
  • भारतीय सैनिकों, गैर-लड़ाकू मजदूरों, सामग्री और धन के बिना, दोनों संघर्षों की दिशा बहुत अलग होती, जैसा कि वर्षों बाद एक साक्षात्कार में, भारतीय सेना के ब्रिटेन के अंतिम कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल औचिनलेक द्वारा स्वीकार किया गया था।

युद्ध के बाद का परिदृश्य: जिसे भारत में भुला दिया गया

  • विश्व युद्ध में भारत के योगदान को अपने ही देश में कोई मान्यता नहीं दी गई है।
  • ब्रिटेन में, भारतीय उपमहाद्वीप सहित राष्ट्रमंडल के योगदान को कॉमनवेल्थ मेमोरियल गेट पर याद किया जाता है जो बकिंघम पैलेस तक जाता है।
    • कॉमनवेल्थ मेमोरियल गेट पर उन अभियानों को याद किया जाता हैं जिसके तहत राष्ट्रमंडल सैनिकों ने विशिष्ट सेवाएं प्रदान की थी। यहाँ जॉर्ज और विक्टोरिया क्रॉस के राष्ट्रमंडल प्राप्तकर्ताओं के नामों के उत्कीर्णन के साथ एक शिलालेख भी है।
  • भारत का अधिकांश आधुनिक इतिहास कृतज्ञता और समानता की भावना से इन द्वारों (gate) में समाहित है।
  • भारत ने इन योगदानों को कई कारणों से मान्यता नहीं दी। इसका मुख्य कारण औपनिवेशिक इतिहास का अत्याचार है।
    • वर्ष 1919 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति और भारतीय सैनिकों की मदद से जीत के बाद, ब्रिटेन भारत से किए गए अपने वादे से मुकर गया।
    • ब्रिटेन ने राष्ट्रवादियों को धोखा दिया। स्व-शासन के बजाय, अंग्रेजों ने रॉलेट एक्ट लागू कर दिया। प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया, बिना मुकदमे के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, और बिना वारंट के उन व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया, जिन पर साम्राज्य के खिलाफ राजद्रोह का संदेह था और परिणामस्वरूप अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना घटित हुई।
  • यह मामला तब और भी अधिक जटिल हो गया जब वर्ष 1939 में वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने भारतीय नेताओं से परामर्श किए बिना भारत की ओर से जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।

नायकों को मान्यता:

  • युद्धों में भारत की भागीदारी के बाद भी भारत को आजादी न मिलने का यह मतलब यह नहीं है कि युद्ध के प्रयासों ने ब्रिटेन की रक्षा करके औपनिवेशिक शासन को बढ़ाया।
  • भारत की रक्षा के लिए भारतीय धरती पर लड़ाई लड़ी गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी बलों की सहायता ने भारत के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया था जो बर्मा/म्यांमार तक पहुंच गए थे। हालाँकि, उन्हें उन्हें मार्च और जुलाई 1944 के बीच इम्फाल और कोहिमा की लड़ाई में पराजित कर दिया गया था।
  • जो लोग श्वेत ब्रिटिश सैनिकों के साथ लड़ने के लिए विदेश गए थे, वे इस बोध के साथ वापस लौटे कि वे अपने औपनिवेशिक आकाओं के बराबर थे।
  • हमारा वर्तमान कई लोगों के बलिदान पर निर्मित है, जिनमें फासीवाद से लड़ते हुए शहीद हुए लोग भी शामिल थे। इसलिए, भारत का मूल्यवान योगदान उसकी इतिहास की पुस्तकों में लिखा जाना चाहिए। यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें पहचानें और उनका सम्मान करें।

सारांश:

  • विश्व युद्धों में भारत की ख़ामोशी एक वैश्विक मंच पर फासीवाद से लड़ने के लिए भारतीय योगदान और देश में स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रवादी आंदोलन के बीच असहज संबंध से उत्पन्न होती है। विश्व युद्धों में भारत की सफलता को देश में स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रवादी आंदोलन की कीमत के रूप में देखा जाता है जब ब्रिटेन ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान समर्थन के बदले राष्ट्रवादी उम्मीदों को धोखा देते हुए भारत को अधिक से अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के अपने वादों से मुकर गया था।

सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों का प्रसारण:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

मुख्य परीक्षा: लोकतंत्र में मीडिया द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका।

संदर्भ:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में सार्वजनिक सेवा प्रसारण के लिए नए दिशानिर्देशों को मंजूरी दी है।

पृष्ठभूमि:

  • नए दिशानिर्देशों के तहत अनुमति वाले सभी स्टेशनों को राष्ट्रीय महत्व और सामाजिक प्रासंगिकता के मुद्दों पर प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट के लिए सामग्री प्रसारित करनी होगी।
    • दिशानिर्देश विदेशी चैनलों और खेल चैनलों को छूट प्रदान करते हैं क्योंकि उनके लिए इस तरह की सामग्री को प्रसारित करना संभव नहीं है।
  • यह स्वीकार करते हुए कि एयरवेव्स या आवृत्तियों को सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है और उनका समाज के सर्वोत्तम हित में उपयोग किया जाना चाहिए, दिशानिर्देशों ने आठ विषयों को राष्ट्रीय महत्व और सामाजिक प्रासंगिकता के रूप में सूचीबद्ध किया है।
  • आधे घंटे की सामग्री सरकार द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। टीवी चैनलों को अपनी सामग्री बनाने और प्रसारित करने की स्वतंत्रता दी गई है।
  • ये दिशानिर्देश 2011 से परिचालित मौजूदा दिशानिर्देशों की जगह लेंगे और टीवी चैनलों और संबंधित गतिविधियों की अपलिंकिंग-डाउनलिंकिंग हेतु भारत में पंजीकृत कंपनियों और सीमित देयता भागीदारी (LLP) फर्मों को अनुमति के मुद्दे को आसान बनाएंगे।

लोक सेवा प्रसारण का महत्व:

  • सार्वजनिक सेवा प्रसारण विचारों के ध्रुवीकरण, उग्र बहसों और टेलीविजन पर विचारों के संकीर्ण लक्ष्यीकरण के समय में महत्वपूर्ण है।
    • लोक सेवा प्रसारण विभिन्न दृष्टिकोणों को व्यक्त करने और वर्तमान घटनाओं की एक प्रबुद्ध समझ को बढ़ावा देने की अनुमति देगा।
    • लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए विचारों का मुक्त आदान-प्रदान, सूचनाओं और ज्ञान का मुक्त आदान-प्रदान, वाद-विवाद और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्वपूर्ण है।
  • राष्ट्रीय महत्व के विषयों और सामाजिक रूप से प्रासंगिक मुद्दों को चुना गया है जिसमें शिक्षा और साक्षरता का प्रसार, कृषि और ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण, पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा तथा राष्ट्रीय एकीकरण।
    • ये ऐसे विषय हैं जिन पर बहुत अधिक जागरूकता की आवश्यकता है।
  • FICCI-EY की एक रिपोर्ट के अनुसार, टेलीविजन सब्सक्रिप्शन में 2021 के 178 मिलियन में 2025 तक 42 मिलियन और ग्राहकों के जुड़ने का अनुमान है, प्रत्यक्षतः, असंख्य मुद्दों वाले विविध देश में सार्वजनिक सेवा प्रसारण महत्वपूर्ण है।
  • यह राष्ट्रीय पहचान की भावना को आकार देने में भी एक बड़ा योगदान देता है।

दिशा-निर्देशों से संबंधित मुद्दे:

  • दिशानिर्देश लागू होने के बाद, सूचना और प्रसारण मंत्रालय इस सामग्री के प्रसारण के संबंध में चैनलों की निगरानी करेगा। यदि मंत्रालय के विचार में गैर-अनुपालन पाया जाता है, तो स्पष्टीकरण मांगा जाएगा।
    • यदि कोई चैनल गैर-अनुपालन जारी रखता है, तो समय-समय पर जारी की जाने वाली विशिष्ट सलाह के आधार पर और मामले-दर-मामले आधार पर और कदम उठाए जा सकते हैं।
  • दिशानिर्देश कहते हैं, “केंद्र सरकार, समय-समय पर, राष्ट्रीय हित में सामग्री के प्रसारण के लिए चैनलों को एक सामान्य सलाह जारी कर सकती है, और चैनल को उस का पालन करना होगा”।
  • हालांकि सरकार ने इसे “दायित्व को पूरा करने के लिए अपनी सामग्री को उचित रूप से संशोधित करने” के लिए चैनलों पर छोड़ दिया है, लेकिन इसमें कहा गया है कि आवश्यकता पड़ने पर इसमें हस्तक्षेप करने के इरादे को मुख्यधारा के मीडिया को अपने लाभ के लिए नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
    • नियमों के नाम पर सरकार का दबाव मीडिया की आज़ादी के लिए ख़तरनाक है।
  • कॉरपोरेट और राजनीतिक शक्ति ने प्रिंट और विजुअल दोनों मीडिया के बड़े हिस्से को अभिभूत कर दिया है, जो निहित स्वार्थों को जन्म देता है और स्वतंत्रता को नष्ट कर देता है।
  • मुआवजे के मानदंडों पर और टीवी पर सार्वजनिक सेवा घटक का वित्तपोषण कौन करेगा इस पर भी अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है।
  • कई प्रसारकों के प्रतिनिधियों ने बताया कि उन्होंने एयरवेव्स के उपयोग के लिए भारी शुल्क का भुगतान किया था और कोई भी बाध्यकारी दिशानिर्देश जो उनके व्यावसायिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, उचित नहीं है।

सारांश:

  • नए प्रसारण दिशानिर्देशों ने सभी टीवी चैनलों के लिए “सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों पर एक दिन में न्यूनतम 30 मिनट की अवधि के लिए सार्वजनिक सेवा प्रसारण करना अनिवार्य बना दिया है। तौर-तरीकों के बारे में व्यापक परामर्श के साथ, सार्वजनिक सेवा प्रसारण को प्रासंगिक मुद्दों पर जनता को “सूचित, शिक्षित, मनोरंजन” करने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रीलिम्स तथ्य:

1. CE20 क्रायोजेनिक इंजन:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं तकनीक:

विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण में भारतीयों की उपलब्धियां।

प्रारंभिक परीक्षा: CE20 क्रायोजेनिक इंजन और लॉन्च व्हीकल मार्क -3 (LVM3) से सम्बंधित तथ्य।

संदर्भ:

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने CE20 क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक ताजा परीक्षण किया हैं।

CE20 क्रायोजेनिक इंजन:

  • CE20 क्रायोजेनिक इंजन इसरो द्वारा लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) (जिसे पहले GSLV-Mk3 कहा जाता था) के लिए स्वदेशी रूप से विकसित इंजन है। (Launch Vehicle Mark-3 (LVM3) (previously called as GSLV-Mk3))
  • CE-20 इंजन LVM3 रॉकेट पर सबसे ऊपर वाला (तीसरा और अंतिम) इंजन होगा।
  • CE-20 इंजन के शामिल होने से अतिरिक्त प्रणोदक लोडिंग के साथ LVM3 की पेलोड क्षमता 450 किलोग्राम तक बढ़ जाएगी, क्योंकि इंजन अधिक थ्रस्ट उत्पन्न करने में सक्षम है और अंतरिक्ष में अधिक द्रव्यमान के पेलोड ले जा सकता है।
  • CE-20 इंजन में प्रमुख संशोधनों में 3D-मुद्रित LOX (लिक्विड ऑक्सीजन) और LH2 (लिक्विड हाइड्रोजन) टर्बाइन एग्जॉस्ट केसिंग और थ्रस्ट कंट्रोल वाल्व (TCV) की शुरूआत शामिल है।

प्रक्षेपण यान मार्क-3 (LVM3) या GSLV-Mk3:

  • LVM3 रॉकेट जिसे भारत का सबसे भारी प्रक्षेपण यान माना जाता है।
  • LVM3 रॉकेट को पहले GSLV-Mk3 के नाम से जाना जाता था।
  • LVM3 इसरो द्वारा विकसित तीन चरणों वाला भारी लिफ्ट प्रक्षेपण यान है।

LVM3 में शामिल हैं:

  • दो ठोस स्ट्रैप-ऑन मोटर जो ठोस ईंधन को जलाने में मदद करते हैं।
  • एक कोर-स्टेज तरल बूस्टर जो तरल ईंधन के संयोजन को जलाता है।
  • C25 क्रायोजेनिक ऊपरी चरण जो तरल ऑक्सीजन के साथ तरल हाइड्रोजन को जलाने में मदद करता है।
  • LVM3 रॉकेट को 4 टन वर्ग के उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) और लगभग 8 टन के उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में ले जाने के लिए डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
  • लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) या GSLV-Mk3 के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Launch Vehicle Mark-3 (LVM3) or GSLV-Mk3

महत्वपूर्ण तथ्य:

1.मानवाधिकार रक्षकों को देश के कानून का पालन करना चाहिए: भारत ने HRC सत्र में कहा

  • जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UN Human Rights Council (UN HRC)) में भारत के सॉलिसिटर-जनरल ने कहा है कि भारत लोकतांत्रिक व्यवस्था में मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना करता है, लेकिन ये गतिविधियां देश के कानून के अनुरूप होनी चाहिए।
  • HRC में भारत की सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा के चौथे चक्र में, ग्रीस, जर्मनी, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड और वेटिकन सिटी जैसे देशों ने सरकार से धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और मानवाधिकार रक्षकों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने का आग्रह किया है।
  • जर्मनी, आयरलैंड और दक्षिण कोरिया ने भी विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act) के पारदर्शी कार्यान्वयन के लिए कहा है और भारत में संघ की स्वतंत्रता को अनुचित रूप से प्रतिबंधित नहीं करने के लिए कहा है।
  • इसके अलावा, इटली ने भारत से नागरिक समाज संगठनों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और धर्म की स्वतंत्रता को सक्षम बनाने का आग्रह किया है।

2. भारत ने COP-27 में वर्ष 2024 तक एक उच्च लक्ष्य निर्धारण पर पर जोर दिया:

  • मिस्र के शर्म अल शेख में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन COP-27 (COP-27) में,भारत ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि विकासशील देशों को अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता से परे जलवायु वित्त में वृद्धि की आवश्यकता है इसके साथ विकसित देशों को संसाधनों की गतिशीलता का नेतृत्व करना चाहिए।
  • वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में आयोजित COP-15 में, विकसित/समृद्ध देशों ने संयुक्त रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और विकासशील देशों की मदद करने के लिए वर्ष 2020 तक सालाना 100 अरब डॉलर जुटाने के लिए प्रतिबद्ध किया था।
  • हालाँकि यह कहा जाता है कि विकसित देश इस वित्त को प्रदान करने में विफल रहे हैं, और भारत जैसे विकासशील देश विकसित देशों को एक नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध कर रहे हैं, जिसे जलवायु वित्त पर नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य ( New Collective Quantified Goal on Climate finance (NCQG)) के रूप में भी जाना जाता है।
  • COP27 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जलवायु कार्यों को विकसित देशों से वित्तीय, तकनीकी और क्षमता निर्माण समर्थन की आवश्यकता है।
  • इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC)) के काम पर प्रकाश डालते हुए भारत ने कहा है कि विकसित देश वातावरण में कार्बन स्टॉक के प्रमुख योगदानकर्ता हैं और यह तथ्य और इसका पेरिस समझौता (Paris Agreement ) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन के मूल सिद्धांतों के महत्व को रेखांकित करता है,अर्थात् यह समानता और “सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियां और संबंधित क्षमताएं” दर्शाता हैं।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. भारत के राज्यों में राज्यपाल के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – सरल)

  1. यदि किसी व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है, तो उसके वेतन और भत्तों को संसद द्वारा निर्धारित अनुपात में सम्बंधित राज्यों द्वारा साझा किया जाता है।
  2. राज्यपाल को उनके पद की शपथ भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिलाई जाती है।
  3. राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल को उसके पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान द्वारा निर्धारित नहीं की गई है।

सही कूट का चयन कीजिए:

(a) एक कथन सही है

(b) दो कथन सही हैं

(c) सभी कथन सही हैं

(d) इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही नहीं है: संविधान के अनुच्छेद 158(3)(3A) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो उसे देय वेतन और भत्ते राज्यों द्वारा उस अनुपात में बांटे जाते हैं जो राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किये गए हैं।
  • कथन 2 सही नहीं है: संविधान के अनुच्छेद 159 के अनुसार, राज्यपाल को उनके पद की शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है और उनकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलाते हैं।
  • कथन 3 सही है: राज्यपाल “राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत” पद धारण करता है और संविधान ने राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल को हटाने के लिए कोई आधार निर्धारित नहीं किया है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन सा/से राष्ट्र आसियान और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन दोनों समूहों के सदस्य है/हैं ? (स्तर – मध्यम)

  1. इंडोनेशिया
  2. लाओस
  3. दक्षिण कोरिया
  4. ब्रुनेई

सही कूट का चयन कीजिए:

(a) केवल 1 और 3

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1, 2 और 4

(d) ऊपर के सभी

उत्तर: c

व्याख्या:

  • आसियान के सदस्य: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम।
  • पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के सदस्य: दस आसियान देश, ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया), रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • दक्षिण कोरिया दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान-Association of Southeast Asian Nations (ASEAN) का सदस्य नहीं है, इसलिए विकल्प c सही उत्तर है।

प्रश्न 3. क्रायोजेनिक्स को सबसे सटीक तरह से परिभाषित किया जा सकता है ? (स्तर – सरल)

(a) अत्यंत कम तापमान पर सामग्री के उत्पादन और व्यवहार का अध्ययन।

(b) पृथ्वी की विभिन्न कक्षाओं का अध्ययन।

(c) सूर्य की बाहरी सतह का अध्ययन।

(d) चंद्रमा की सतह का अध्ययन।

उत्तर: a

व्याख्या:

  • क्रायोजेनिक्स भौतिकी की शाखा है जो बहुत कम तापमान के उत्पादन और प्रभावों से संबंधित है।
  • अत: विकल्प a सही उत्तर है।

प्रश्न 4. भारत में “चाय बोर्ड” (Tea Board) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – कठिन)

1. चाय बोर्ड एक सांविधिक निकाय (statutory body) है।

2. यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय से जुड़ी एक नियामक संस्था है।

3. चाय बोर्ड का प्रधान कार्यालय बेंगलुरु में स्थित है।

ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 1

(d) केवल 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: चाय अधिनियम, 1953 की धारा (4) के प्रावधानों के तहत चाय बोर्ड की स्थापना वर्ष 1954 में एक सांविधिक/वैधानिक निकाय (statutory body) के रूप में की गई थी।
  • कथन 2 सही नहीं है: चाय बोर्ड केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तत्वावधान में काम करता है।
  • कथन 3 सही नहीं है: इस बोर्ड का मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है।

प्रश्न 5. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए: PYQ (2019) (स्तर – कठिन)

वन्य प्राणी प्राकृतिक रूप से कहाँ पाए जाते हैं

  1. नीले मीनपक्ष वाली महाशीर कावेरी नदी
  2. इरावदी डॉल्फिन चंबल नदी
  3. मोरचाभ (रस्टी)- चित्तीदार बिल्ली पूर्वी घाट

उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • युग्म 1 सही सुमेलित है: नीले मीनपक्ष वाली महाशीर कावेरी नदी में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है।
  • युग्म 1 सही सुमेलित नहीं है: चंबल नदी में गंगा नदी की डॉल्फ़िन (प्लैटनिस्टा गैंगेटिका-Platanista gangetica) पाई जाती है।
    • हालांकि, इरावदी डॉल्फ़िन (ओर्केला ब्रेविरोस्ट्रिस- Orcaella brevirostris) एक अलग प्रजाति हैं और ओडिशा के चिल्का लैगून और अन्य खारे पानी के मुहानो (estuaries) में देखी/पायी जाती हैं।
  • युग्म 3 सही सुमेलित है: मोरचाभ (रस्टी)- चित्तीदार बिल्ली भारत में देखी जाने वाली बिल्ली की सबसे छोटी प्रजातियों में से एक है और ये बिल्लियाँ पूर्वी घाट के जंगलों में निवास करती हैं।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. विश्व युद्धों के दौरान भारतीय सैनिकों के योगदान का परीक्षण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस1 – विश्व इतिहास)

प्रश्न 2. रूस-यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण खेरसॉन क्षेत्र से रूस के पीछे हटने के कारणों का मूल्यांकन कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (GS2 – अंतर्राष्ट्रीय संबंध)