20 मार्च 2023 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: सामाजिक न्याय:
अंतरराष्ट्रीय संबंध:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
सामाजिक न्याय:
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज:
विषय: स्वास्थ्य के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने में मौजूद चुनौतियाँ जिनका हम सामना करते हैं।
प्रसंग: इस लेख में भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति पर चर्चा की गई है।
भूमिका:
- स्वास्थ्य का अधिकार प्रत्येक मनुष्य के मौलिक अधिकारों में से एक है। भारत का संविधान जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें बुनियादी मानव अधिकार के रूप में स्वास्थ्य का अधिकार शामिल है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य को मानसिक और सामाजिक कल्याण और शारीरिक फिटनेस से परे खुशी, तथा बीमारी और अक्षमता की अनुपस्थिति के दायरे में स्वास्थ्य की एक निश्चित समग्रता के रूप में परिभाषित किया है।
- हालाँकि, स्वास्थ्य की व्यापक परिभाषा में देखा जाए तो स्वास्थ्य को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य निर्धारकों के समाधान की आवश्यकता होती है, जिसमें चिकित्सा और स्वास्थ्य विभागों से परे अंतरक्षेत्रीय अभिसरण की आवश्यकता होती है।
एक बुनियादी मानव अधिकार के रूप में स्वास्थ्य:
- भारत में स्वास्थ्य सेवा की वास्तविकता आदर्श से बहुत दूर है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2021 के अनुसार, भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर केवल 0.55 डॉक्टर और 0.8 नर्स हैं, जो कि WHO द्वारा अनुशंसित प्रति 1,000 जनसंख्या न्यूनतम 1 डॉक्टर और 2.5 नर्स से काफी कम है।
- इसके अलावा, भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च इसके सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.28% है, जो दुनिया में सबसे कम है।
- संवैधानिक गारंटी के बावजूद, भारत में स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच सार्वभौमिक नहीं है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार, भारत में केवल 51.9% महिलाओं को पूर्ण प्रसव पूर्व देखभाल प्राप्त हुई, और 12-23 महीने की आयु के केवल 61.3% बच्चों को पूर्ण बुनियादी टीकाकरण प्राप्त हुए।
- इसके अलावा, भारत में कुल स्वास्थ्य व्यय का 64% आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय है, जो बड़े स्तर पर स्वास्थ्य व्यय का कारण बन सकता है एवं गरीबी और ऋणग्रस्तता का कारण बन सकता है।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की अल्मा अता घोषणा:
- 1978 में कजाकिस्तान के अल्मा अता में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की अल्मा अता घोषणा, जो सभी नागरिकों के लिए बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल को अनिवार्य करती है, को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या का आंशिक कवरेज हुआ और स्वास्थ्य देखभाल के प्रति सरकार की आंशिक जिम्मेदारी हुई।
- भारत में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM), जिसने एक व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल का संचालन किया, UHC को प्राप्त करने की दिशा में एक समझदारी भरा कदम है।
AB-JAY की सीमाएं:
- जबकि आयुष्मान भारत जन आरोग्य बीमा योजना (AB-JAY) के उद्देश्य अर्थपूर्ण हैं, वहीं विभिन्न हलकों से इसकी आलोचना की गई है।
- प्राथमिक चिंताओं में से एक यह है कि यह एक बीमा-आधारित मॉडल है न कि कर-वित्तपोषित मॉडल, जिसका अर्थ है कि योजना का वित्तीय बोझ सरकार और लाभार्थियों पर पड़ता है।
- यह योजना केवल उन लोगों को बीमा कवर प्रदान करती है जिनकी पहचान गरीबी रेखा से नीचे के रूप में की गई है, जिसका अर्थ है कि आबादी का एक बड़ा वर्ग इस योजना से बाहर है।
- इसके अतिरिक्त, इस योजना में माध्यमिक और तृतीयक देखभाल पर संकीर्ण ध्यान दिए जाने को लेकर इसकी आलोचना की गई है, समुचित ध्यान नहीं दिए जाने की स्थिति में अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में प्राथमिक देखभाल के महत्व की उपेक्षा होती है।
UHC की नई अवधारणा:
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की अल्मा अता घोषणा द्वारा अधिदेशित प्राथमिक देखभाल पर ध्यान केंद्रित करना, को यह सुनिश्चित करने के लिए पुनः अस्तित्व में लाया जाना चाहिए कि स्वास्थ्य सेवाएं सभी नागरिकों के लिए सुलभ, सस्ती और अच्छी गुणवत्ता वाली हों।
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल का एक कर-वित्तपोषित मॉडल यह सुनिश्चित करेगा कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों।
- इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण का बोझ सरकार और नागरिकों द्वारा साझा किया जाए, साथ ही सरकार सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की जिम्मेदारी ले।
- ऐसा मॉडल प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्राथमिकता देगा, जो अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारियों को रोकने के लिए आवश्यक हैं।
- इसके अतिरिक्त, एक कर-वित्तपोषित मॉडल स्वास्थ्य सेवा वितरण में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा।
- सरकार को स्वास्थ्य निर्धारकों पर ध्यान देने की दिशा में महिला और बाल विकास, खाद्य और पोषण, कृषि और पशुपालन, नागरिक आपूर्ति, ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता, सामाजिक कल्याण, आदिवासी कल्याण, शिक्षा और वानिकी जैसे चिकित्सा और स्वास्थ्य विभागों से परे अंतरक्षेत्रीय अभिसरण पर भी ध्यान देना चाहिए।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
अंतरराष्ट्रीय संबंध:
भारत-चीन सीमा शांति की ओर बढ़ते धीमे कदम:
विषय: भारत और उसके पड़ोस – संबंध ।
मुख्य परीक्षा: भारत-चीन संबंधों के बीच तनाव के मूल कारण
प्रसंग: इस लेख में भारत और चीन के बीच सीमा की स्थिति को सुधारने के विभिन्न प्रयासों पर चर्चा की गई है।
भूमिका:
- भारत और चीन अपनी विवादित 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा पर अमन-चैन बनाए रखने के लिए एक नए समझौते की ओर बढ़ रहे हैं।
- 2020 में गालवान में भारतीय सैनिकों और चीनी PLA के बीच संघर्ष और अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से में सैनिकों के बीच हालिया विवाद ने सीमा विवाद के साथ-साथ जटिल वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को उजागर किया है।
- यांग्त्से में हुए संघर्ष से पता चलता है कि न कि केवल लद्दाख में बल्कि LAC पर नए उपायों की आवश्यकता हो सकती है।
- 2020 की घटनाओं ने उस भरोसे को खत्म कर दिया है जो 1993 और 2020 के बीच सब्र से बना था। चीन-भारत संबंधों में सामान्यता के सामने मौजूद अवरोध अब बहुत अधिक हो गया है।
सीमा पर तनाव कम करने के प्रयास:
- तनाव के बावजूद भारत और चीन के मंत्री और अधिकारियों की नियमित रूप से एक-दूसरे के साथ बैठक होती रही है।
- भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में नई दिल्ली में जी-20 विदेश मंत्रियों की बैठक के मौके पर अपने चीनी समकक्ष किन गैंग से मुलाकात की।
- दोनों पक्षों ने छह में से चार बिंदुओं, अर्थात् गालवान, पैंगोंग त्सो, गोगरा पोस्ट और जियानन पास (PP15) के पास से हटने में कामयाबी हासिल की है।
- लेकिन दो प्रमुख क्षेत्र अनसुलझे हैं, यानी डेमचोक क्षेत्र जिसके तहत लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शामिल हैं, में डेपसांग बुलगे और चारडिंग निंगलुंग जंक्शन ।
- 22 फरवरी, 2023 को बीजिंग में आयोजित चीन-भारत सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (WMCC) की 26वीं बैठक के दौरान शेष क्षेत्रों में डिसइंगेजमेंट के प्रस्तावों पर खुले और रचनात्मक तरीके से चर्चा की गई।
- इससे द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य स्थिति बहाल होने के हालात बन सकते हैं।
- कथित तौर पर चर्चाओं में सीमा प्रबंधन में सुधार के मुद्दे को भी उठाया गया है, जिसका अर्थ है कि WMCC के स्थान पर एक ऐसे तंत्र को अपनाना है जिसमें सैन्य और असैन्य अधिकारी दोनों होंगे।
नो-पेट्रोल जोन पर चर्चा:
- एक प्रस्ताव जिस पर चर्चा की गई है, वह है: LAC के अन्य हिस्सों को समान नो-पेट्रोल क्षेत्रों में परिवर्तित करना।
- इससे दो शेष क्षेत्रों देपसांग और चारडिंग नाला में एक पैकेज समझौता हो सकता है।
- नो-पेट्रोल जोन को उन जगहों तक सीमित किया जा सकता है जहां दोनों पक्षों के ओवरलैपिंग वाले दावे हैं।
- 2020 तक, दोनों पक्षों ने इन परस्पर विरोधी दावे वाले जगहों की सीमा तक गश्त किया और एक प्रोटोकॉल था कि अगर दोनों गश्ती दल आमने सामने हैं, तो वे रुकेंगे और दूसरे पक्ष को अपने क्षेत्र में वापस जाने के लिए बैनर दिखाएंगे। इसके बाद, इस मुद्दे को पांच निर्दिष्ट सीमा बैठक बिंदुओं में से एक पर बैठकों के माध्यम से निपटाया गया।
- 2020 में, चीनी पत्रकार-विद्वान कियान फेंग ने सुझाव दिया कि “वास्तविक नियंत्रण क्षेत्र” की अवधारणा को उन कुछ क्षेत्रों में “वास्तविक नियंत्रण रेखा” के स्थान पर अपनाया जा सकता है, जहाँ किसी भी तरह की स्पष्ट भू-आकृति विज्ञान विशेषताएं या आबादी नहीं थी।
- अन्य क्षेत्रों को भी “सीमा क्षेत्र” के रूप में सीमांकित किया जा सकता है, यदि वहाँ जनसंख्या समायोजन की आवश्यकता नहीं हो।
- बिना विस्तृत नक्शे के सीमावर्ती क्षेत्रों का खराब सीमांकन समस्या की जड़ में रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, चीन के सैनिक अपनी इच्छानुसार गोलपोस्ट बदलने में सक्षम रहे हैं, खासकर लद्दाख सीमा के संबंध में।
सारांश:
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भारत-चीन संबंधों पर और जानकारी के लिए यहाँ क्लिक कीजिए: India-China Relations
प्रीलिम्स तथ्य:
1.हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
सामाजिक न्याय:
प्रारंभिक परीक्षा: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से सम्बंधित तथ्यात्मक जानकारी।
प्रसंग:
- एक सांसद ने केंद्र सरकार से अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में शामिल करने का आग्रह किया है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम:
- हिंदू कानून के मिताक्षरा स्कूल को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया हैं।
- यह अधिनियम हिंदुओं के बीच संपत्ति के उत्तराधिकार और विरासत के बटवारे को नियंत्रित या व्यवस्थित करता है।
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2 के अनुसार, इस अधिनियम के प्रावधान किसी भी उस व्यक्ति पर लागू होते हैं जो धर्म से हिंदू है, जिसमें वीरशैव, एक लिंगायत समुदाय, या ब्रह्म, प्रार्थना, या आर्य समाज के अनुयायी शामिल हैं।
- इस अधिनियम की धारा 2(2) के अनुसार,संबंधित अधिनियम के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 366 के तहत परिभाषित किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होंगे, जब तक कि केंद्र सरकार अपने आधिकारिक राजपत्र में अन्यथा निर्देश देने के लिए इसके लिए अधिसूचना नहीं जारी करती हैं।
- हालांकि 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ने केवल पुरुष सदस्यों को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी हैं।
- हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के माध्यम से महिलाओं को सहदायिकी (coparcenary ) अधिकार प्रदान किए गए हैं।
- यह कानून पैतृक संपत्ति और निर्वसीयत उत्तराधिकार पर लागू होता है जहां इस तरह के उत्तराधिकार कानून के अनुसार होते हैं न कि वसीयत के माध्यम से।
- “हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम” के बारे में अधिक जानकारी के लिए 14 अगस्त 2020 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण का लेख देखें।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. यू.पी. में परिवार पहचान पत्र के साथ, योजनाओं के वितरण में मौजूद अंतराल को भरने की आशा:
- उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में कल्याणकारी योजनाओं के अंतिम- पड़ाव (मील) के वितरण में सुधार के लिए एक पहल शुरू की है।
- राज्य सरकार ने जनवरी 2023 में 12 अंकों की परिवार पहचान संख्या योजना शुरू की हैं,जिसके तहत 17 सरकारी विभागों से प्रमुख डेटा और सूचनाएँ एकत्रित की जा रही हैं।
- इस योजना के माध्यम से एकत्र किए गए डेटा का मिलान राशन और आधार कार्ड के डेटा से भी किया जा रहा है।
- इस योजना के माध्यम से, सरकार द्वारा सभी लाभार्थी परिवारों को परिवार आईडी प्रदान करने और योजनाओं के वितरण में हो रही लीक को रोकने की परिकल्पना की गई है।
- कर्नाटक की कुटुम्बा परियोजना का उद्देश्य परिवारों को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करना और निवासियों के प्रमुख डेटा के एक डेटाबेस के रूप में कार्य करना है, जिसका उपयोग सरकार की निर्बाध सेवाओं और लाभों का विस्तार करने के लिए किया जा सकता है।
2.बैकग्राउंड रेडियेशन (पृष्ठभूमि विकिरण) केरल में अधिक है, लेकिन उसका कोई जोखिम नहीं हैं: अध्ययन
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अखिल भारतीय अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि केरल के कुछ क्षेत्रों में जैसे चट्टानों, रेत या पहाड़ों सहित प्राकृतिक स्रोतों से उत्सर्जित बैकग्राउंड रेडियेशन (पृष्ठभूमि विकिरण) का स्तर अनुमान से लगभग तीन गुना अधिक है।
- हालाँकि विकिरण की उच्च दर एक उच्च स्वास्थ्य जोखिम में परिवर्तित नहीं होती है।
- विकिरण एक अस्थिर तत्व के विघटित नाभिक के कारण उत्सर्जित होते हैं।
- गामा किरणें अधिक ऊर्जावान प्रकार की विकिरण हैं जो पदार्थ के माध्यम से अबाधित रूप से गुजर सकती हैं।
- गामा विकिरण तब तक हानिरहित होते हैं जब तक कि वे बड़ी सांद्रित मात्रा में मौजूद न हों।
- हालाँकि अभी गामा विकिरण स्तरों की निगरानी और मूल्यांकन किया जाना है,विशेष रूप से परमाणु संयंत्रों के आसपास और साथ ही उन विकिरण की औसत मात्रा जो संयंत्र श्रमिकों के संपर्क में आती है।
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency (IAEA)) ने अधिकतम विकिरण जोखिम स्तर निर्दिष्ट किया है जिसे भारत के परमाणु ऊर्जा संस्थानों द्वारा भी अपनाया गया है।
- विनिर्देशों के अनुसार सार्वजनिक जोखिम स्तर हर साल 1 मिली-सीवर्ट को पार नहीं करना चाहिए और संयंत्र के उन श्रमिकों को प्रति वर्ष 30 मिली-सीवर्ट से अधिक के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
- हाल ही में किए गए अध्ययन से संकेत मिलता है कि भारत में गामा विकिरण की औसत प्राकृतिक पृष्ठभूमि का स्तर 94 nGy/hr (नैनो ग्रे/घंटा) (0.8 मिली सीवर्ट/वर्ष के करीब) था।
- ग्रे/घंटा (Gy/hr) उत्सर्जित विकिरण को संदर्भित करता है जबकि सीवर्ट/वर्ष (sievert/year) जैविक जोखिम को इंगित करता है।
- वर्ष 1986 में किए गए इस तरह के अंतिम अध्ययन ने चावरा, केरल में 3,002 nGy/वर्ष पर उच्चतम विकिरण जोखिम को मापा, जबकि हाल के अध्ययन में पाया गया कि कोल्लम जिले में स्तर 9,562 nGy/hr था।
- कोल्लम जिले में उच्च विकिरण का स्तर मुख्य रूप से मोनाजाइट रेत के कारण होता है जिसमें थोरियम की मात्रा अधिक होती है।
3. कला और संस्कृति के लिए सार्वजनिक कोष आवंटित करना मुश्किल: सरकार
- संस्कृति मंत्रालय के अनुसार बुनियादी ग्रामीण बुनियादी ढांचे जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन में उच्च असमानता भारत जैसे विकासशील देश के लिए कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक धन की एक महत्वपूर्ण राशि आवंटित करना मुश्किल बनाती है।
- एक संसदीय समिति द्वारा की गई टिप्पणियों से पता चला है कि संस्कृति मंत्रालय के लिए वित्त वर्ष 2023-24 के कुल बजट का आवंटन लगभग 0.075% था,जो चीन, यूके, यूएस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में किए जाने वाले आवंटन से काफी कम है। ये देश कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अपने बजट का लगभग 2%-5% खर्च करते हैं।
- हालांकि, मंत्रालय के अधिकारियों ने आगे कहा है कि इन देशों में कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आवंटित राशि का अधिकांश हिस्सा गैर-सरकारी स्रोतों से प्राप्त किया जाता है।
- वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट के तहत, संस्कृति मंत्रालय को राजस्व के तहत 3,399.65 करोड़ रुपये और प्राथमिकता वाले कार्यक्रमों के लिए पूंजीगत मद के तहत 285.4 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
- मंत्रालय देश में कला और संस्कृति के प्रचार और संरक्षण के लिए गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी को अधिकतम करने के लिए विभिन्न नवीन तरीकों को देख रहा है और विकसित कर रहा है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन से सत्य हैं? (स्तर – मध्यम)
- बाजारों में मुद्रास्फीति को कम करने के लिए सख्त मौद्रिक नीति लागू की जाती है।
- यह केंद्रीय बैंकों द्वारा अल्पकालिक ब्याज दरों में कमी से संबंधित है।
- भारत में नकद आरक्षित अनुपात में वृद्धि सख्त मौद्रिक नीति का एक उदाहरण है।
विकल्प:
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: बढ़ती मुद्रास्फीति को कम करने के लिए आमतौर पर मौद्रिक नीति को सख्त/कड़ा किया जाता है।
- कथन 2 गलत है: सख्त मौद्रिक नीति के मामले में, केंद्रीय बैंक मुद्रा आपूर्ति को कम करने के लिए अल्पकालिक ब्याज दरों में वृद्धि करता है।
- कथन 3 सही है: भारत में, आरबीआई द्वारा नकद आरक्षित अनुपात और रेपो दर में वृद्धि सख्त मौद्रिक नीति का एक उदाहरण है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों के आधार पर देश/समूह की पहचान कीजिए: (स्तर – सरल)
- भारत का इसके साथ 2011 से एक व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता है।
- भारत ने 2023 में इसके साथ “वीर गार्जियन” युद्धाभ्यास का उद्घाटन सत्र आयोजित किया था।
- भारत की इसके साथ स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी और परमाणु समझौता है।
विकल्प:
(a) अमेरीका
(b) जापान
(c) यूरोपीय संघ
(d) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर: b
व्याख्या:
- भारतीय वायु सेना और जापान वायु आत्मरक्षा बल के बीच द्विपक्षीय वायु अभ्यास “वीर गार्जियन” का उद्घाटन संस्करण जनवरी 2023 में जापान में आयोजित किया गया था।
- जापान और भारत ने वर्ष 2011 में एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
- जापान और भारत ने मार्च 2022 में जापानी प्रधान मंत्री की भारत यात्रा के दौरान “भारत-जापान स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी (सीईपी)” की घोषणा की थी।
- ऐतिहासिक “परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग के लिए भारत-जापान समझौता” जुलाई 2017 में लागू हुआ था। नवंबर 2016 में प्रधान मंत्री नरेंद्र की जापान यात्रा के दौरान टोक्यो में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
प्रश्न 3. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के संदर्भ में निम्नलिखित में से कितने कथन सत्य हैं? (स्तर – मध्यम)
- यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य न्यायिक निकाय है।
- भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से एक था।
- यह स्वत: संज्ञान के आधार पर किसी मामले को उठा सकता है।
विकल्प:
(a) केवल एक कथन
(b) केवल दो कथन
(c) सभी तीनों कथन
(d) इन कथनों में से कोई भी नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) एक अंतर-सरकारी संगठन और अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण है जिसका मुख्यालय हेग में है।
- ICC रोम संविधि द्वारा शासित है।
- आईसीसी संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा नहीं है।
- कथन 2 गलत है: भारत अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का सदस्य नहीं है।
- कथन 3 सही है: ICC गंभीर और बड़े अपराधों जैसे नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और आक्रामकता के अपराध के आरोप में लोगों की जांच करता है और उन पर मुकदमा चलाता है।
- आईसीसी तीन तरह से जांच शुरू कर सकती है:
- जब किसी देश द्वारा इस अदालत में मामला लाया जाता है।
- जब न्यायालय स्वत: संज्ञान लेता है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) एक मामले को न्यायालय को भेज सकती है।
प्रश्न 4. कॉनवेलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन से कथन सत्य हैं? (स्तर – कठिन)
- इसे कोविड-19 संक्रमण के लिए सबसे अच्छे इलाज के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
- इसमें रोगी में रक्त के केवल प्लाज्मा भाग का आधान (ट्रांसफ्यूजन) शामिल है।
- डोनर (दाता) ऐसा होना चाहिए जिसे पूर्व में संक्रमण हुआ हो और वह स्वस्थ हो चुका हो।
- इसका उपयोग केवल संक्रामक रोगों के उपचार के लिए किया जा सकता है।
विकल्प:
(a) 1 और 3
(b) 2 और 3
(c) 2 और 4
(d) 1, 3 और 4
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: WHO ने कॉनवेलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल के प्रतिकूल/खिलाफ सिफारिश की हैं,क्योंकि इस तरह के उपचारों ने नैदानिक सुधार में वृद्धि नहीं की या मृत्यु दर के जोखिम को कम नहीं किया हैं।
- कथन 2 सही है: कॉनवेलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी के तहत संक्रमण से उबर चुके मरीजों से एकत्र किए गए कॉनवेलेसेंट प्लाज्मा या ब्लड प्लाज्मा का इस्तेमाल विभिन्न संक्रामक रोगों के इलाज के लिए किया जाएगा।
- कथन 3 सही है: प्लाज्मा थेरेपी के तहत, डोनर (दाता) ऐसा होना चाहिए जिसे पूर्व में संक्रमण हुआ हो और वह स्वस्थ हो चुका हो।
- कथन 4 गलत है: अध्ययन में पाया गया है कि कॉनवेलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी हेमेटोलोजिक कैंसर और कुछ अन्य आनुवंशिक रोगों वाले रोगियों में उत्तरजीविता लाभ से जुड़ी है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (PYQ 2020 ) (स्तर – सरल)
- भारत का संविधान अपने “मूल ढाँचे” को संघवाद, पंथनिरपेक्षता, मूल अधिकारों तथा लोकतंत्र के रूप में परिभाषित करता है।
- भारत का संविधान नागरिकों की स्वतंत्रता तथा उन आदर्शों, जिन पर संविधान आधारित है, की सुरक्षा हेतु ‘न्यायिक पुनरवलोकन’ की व्यवस्था करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामला 1973 में, सुप्रीम कोर्ट ने “संविधान की मूल संरचना” का एक नया सिद्धांत निर्धारित किया था।
- भारत के संविधान में कहीं भी “मूल संरचना” (Basic Structure) शब्द का उल्लेख नहीं है।
- कथन 2 गलत है: संविधान में “न्यायिक समीक्षा” के प्रावधान का कोई सीधा संदर्भ नहीं है जो अदालतों को कानूनों को अमान्य करने का अधिकार देता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. “हमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल की अपनी समझ को फिर से संकल्पित करने की आवश्यकता है” टिप्पणी कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) [जीएस-2, स्वास्थ्य]
प्रश्न 2. “हाल ही के NSS रिपोर्ट डेटा से पता चलता है कि सुरक्षित और स्वच्छ पानी और ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच की दिशा में भारत अभी भी कई कदम दूर है” चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) [जीएस-2, सामाजिक न्याय]