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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 26 September, 2023 UPSC CNA in Hindi

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

  1. NEP पर संसद पैनल के निष्कर्ष क्या हैं?

सामाजिक न्याय:

  1. पूर्वोत्तर को एक ‘एकल समरूप’ क्षेत्र क्यों नहीं माना जा सकता?

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

  1. नवनिर्मित NRF के पास भारत के विज्ञान, समाज की खाई को पाटने का मौका है:

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

  1. जी20 कूटनीति और बदलती वैश्विक व्यवस्था:

सामाजिक मुद्दे:

  1. जनसांख्यिकीय का एक महत्वपूर्ण पक्ष बच्चे,जो AI विनियमन में अभी तक छूटे हुए है:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. फिलीपींस ने विवादित क्षेत्र में चीन का अवरोध हटाया:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

NEP पर संसद पैनल के निष्कर्ष क्या हैं?

शासन:

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)।

मुख्य परीक्षा: शिक्षा क्षेत्र में सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप, राष्ट्रीय शिक्षा नीति।

प्रसंग:

  • भाजपा सांसद विवेक ठाकुर के नेतृत्व में शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के कार्यान्वयन पर एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित किया गया और सिफारिशें प्रस्तावित की गई।

विवरण:

  • सांसद विवेक ठाकुर की अध्यक्षता में शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने संसद के विशेष सत्र के दौरान “उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy (NEP) 2020) 2020 के कार्यान्वयन” पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • यह रिपोर्ट विभिन्न हितधारकों के साथ बातचीत के आधार पर उच्च शिक्षा में NEP के कार्यान्वयन की प्रगति और मुख्य विशेषताओं की जांच करती है।

राज्य-केंद्रित उच्च शिक्षा:

  • रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 1,043 विश्वविद्यालयों में से 70% राज्य इस अधिनियम के तहत आते हैं, जिनमें से 94% छात्र राज्य या निजी संस्थानों में नामांकित हैं और केवल 6% केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकित हैं।
  • यह उच्च शिक्षा प्रदान करने में राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देता है।

प्रमुख मुद्दों पर चर्चा:

  • समिति ने विषयों के कठोर पृथक्करण, वंचित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा तक सीमित पहुंच, स्थानीय भाषा निर्देश की कमी, अपर्याप्त संकाय, सीमित संस्थागत स्वायत्तता, अनुसंधान पर अपर्याप्त ध्यान, खराब नियामक तंत्र और उप-स्नातक शिक्षा सहित विभिन्न मुद्दों को संबोधित किया हैं।
  • 2030 के लिए एक दृष्टिकोण: प्रत्येक जिले में कम से कम एक बहु-विषयक उच्च शिक्षा संस्थान होना चाहिए, और सकल नामांकन अनुपात 2018 में 26.3% से बढ़कर 2035 तक 50% हो जाना चाहिए।

सिफारशें:

  • केंद्र और राज्य सरकारों से शिक्षा में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDGs) के लिए पर्याप्त धन आवंटित करने का आग्रह किया गया हैं।
  • एसईडीजी के लिए उच्च सकल नामांकन अनुपात के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करने, लिंग संतुलन बढ़ाने, सार्वजनिक और निजी संस्थानों में एसईडीजी को वित्तीय सहायता और छात्रवृत्ति की पेशकश करने को प्रोत्साहित करता है।
  • यह समावेशी प्रवेश प्रक्रियाओं, पाठ्यक्रम और रोजगार-केंद्रित कार्यक्रमों की वकालत करता है।
  • क्षेत्रीय भाषाओं और द्विभाषी प्रारूपों में अधिक डिग्री पाठ्यक्रम विकसित करने की सिफारिश की गई है।
  • शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों के लिए विशिष्ट बुनियादी ढांचे में सुधार और भेदभाव-विरोधी और उत्पीड़न-विरोधी नियमों को सख्ती से लागू करने का सुझाव दिया गया है।

सकारात्मक उदाहरण: जम्मू और कश्मीर

  • 2022 के शैक्षणिक सत्र से अपने सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में NEP लागू करने वाले पहले क्षेत्रों में से एक होने के लिए जम्मू और कश्मीर की सराहना की।
  • यह सकारात्मक परिणामों पर प्रकाश डालता है, जैसे शिक्षण विधियों में आजीवन सीखने के अवसरों की ओर बदलाव।

वित्त पोषण में वृद्धि:

  • इसके तहत निजी क्षेत्र के संगठनों, परोपकारी फाउंडेशनों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ साझेदारी सहित वित्तीय स्रोतों में विविधता लाकर उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEAF) की प्रभावशीलता को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया है।

MEME व्यवस्था से सम्बन्धित चिंताएँ:

  • भारत में मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एग्जिट (MEME) प्रणाली को लागू करने की व्यावहारिकता के बारे में चिंता व्यक्त की गई हैं।
  • जिसमे यह विचार रखा गया है कि MEME छात्र-शिक्षक अनुपात को बाधित कर सकता है और छात्र नामांकन में अनिश्चितता पैदा कर सकता है।

सारांश:

  • इस समिति की रिपोर्ट उच्च शिक्षा में NEP 2020 की प्रगति का आकलन करती है, जिसमे राज्यों की भूमिका पर जोर देती है, साथ ही प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डालती है, और भारत के उच्च शिक्षा परिदृश्य में पहुंच, गुणवत्ता और समावेशिता में सुधार के लिए सिफारिशें पेश करती है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

पूर्वोत्तर को एक ‘एकल समरूप’ क्षेत्र क्यों नहीं माना जा सकता?

सामाजिक न्याय:

विषय: सामाजिक क्षेत्र के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे, केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याण योजनाएं।

मुख्य परीक्षा: विशेष रूप से पूर्वोत्तर में हाशिए पर रहने वाले समुदायों के संदर्भ में सामाजिक क्षेत्रों के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।

प्रसंग:

  • लेख में भारत के विविध और हाशिए पर मौजूद पूर्वोत्तर क्षेत्र पर चर्चा की गई है, जिसमें इसकी विविधता, सामाजिक मुद्दों और प्रवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

विवरण:

  • भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा राज्य शामिल हैं।
  • यह क्षेत्र इंडो-चीनी मंगोलॉयड नस्लीय पृष्ठभूमि वाले विभिन्न जातीय समूहों का घर है।
  • इसकी भाषा, सांस्कृतिक और जातीय विविधता को देखते हुए एक समरूप अवधारणा का विचार समस्याओं से भरा हुआ हैं।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: औपनिवेशिक प्रभाव

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने पूर्वोत्तर को एक इकाई के रूप में शासित किया, जिससे इसके प्रति समझ प्रभावित हुई हैं।
  • उस समय के ऐतिहासिक निर्माण से इस भारतीय राज्य के शासन को चलाने में अभी तक बहुत सारी कठिनाइयां आ रही हैं।

विविध और विषम:

  • पूर्वोत्तर भारत भाषा, संस्कृति और जातीयता के मामले में पूरे देश की तरह ही विविधतापूर्ण है।
  • 2017 में ‘पूर्वोत्तर भारत में पहचान और सीमांतता’ पर एक सेमिनार में विविधता को पहचानने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया था।
  • विभिन्न समूहों की विविधता के तत्वों और उनके अनुभवों, प्रतिस्पर्द्धाओं और संघर्षों को उजागर करने की आवश्यकता है।

पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख मुद्दे:

  • स्वदेशीता: स्वदेशी अधिकार और मान्यता महत्वपूर्ण चिंताएं हैं, जिनका भूमि स्वामित्व और सांस्कृतिक संरक्षण पर प्रभाव पड़ता है।
  • नीति और अर्थव्यवस्था: आर्थिक विकास नीतियों को क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं और चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
  • प्रवासः पूर्वोत्तर के प्रवासियों को भारत के अन्य हिस्सों में हाशिए और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
  • दिल्ली में पूर्वोत्तर प्रवासियों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव इस मुद्दे का एक मुख्य उदाहरण है।
  • देश भर में रहने वाले पूर्वोत्तर नागरिकों की चिंताओं को दूर करने के लिए 2014 में स्थापित बेजबरुआ समिति ने पूर्वोत्तर के लोगों से जुड़ने के साधन के रूप में सोशल मीडिया के उपयोग का प्रस्ताव दिया है।
    • परिणामस्वरूप, एक समर्पित हेल्पलाइन (1093) को मौजूदा आपातकालीन हेल्पलाइन (100) के साथ एकीकृत किया गया है।
  • भूमि अधिकारः भूमि आजीविका का एक महत्वपूर्ण कारक है, और भूमि के स्वामित्व पर विवाद आम हैं।
  • विद्रोहः कुछ राज्यों में चल रहे विद्रोही आंदोलन अस्थिरता में योगदान करते हैं।
  • सैन्यीकरणः सैन्य बलों की उपस्थिति कुछ क्षेत्रों में दैनिक जीवन और सुरक्षा को प्रभावित करती है।
  • राज्य हिंसाः राज्य हिंसा के उदाहरण मानवाधिकारों की चिंताओं को बढ़ाते हैं।
  • AFSPA जैसे कानून: सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (Armed Forces Special Powers Act) का नागरिक स्वतंत्रता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
  • आरक्षण: क्षेत्र में हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए आरक्षण नीतियों पर बहस।
  • भेदभावः पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले बाहरी लोगों के साथ भी भेदभाव होता है।

महिलाओं पर संघर्ष का प्रभाव:

  • मणिपुर, नागालैंड और असम जैसे संघर्ष-प्रवण क्षेत्रों में, जातीय हिंसा ने समुदायों को विस्थापित कर दिया है।
  • विस्थापन या परिवार के पुरुष सदस्यों के बाहर चले जाने के कारण अक्सर महिलाएँ प्राथमिक आजीविका कमाने वाली बन जाती हैं।
  • विस्थापन के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ भी सामने आती हैं, जिनमें कुपोषण, अभिघातजन्य तनाव और संचारी रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
  • संघर्ष के दौरान भूमि विवाद महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा को प्रभावित करते हैं।

हाशिये पर पड़े समूहों के भीतर जटिलताएँ:

  • हाशिए पर पड़े समुदायों के भीतर भी मुद्दों को हल करने में जटिलताएं हैं।
  • उदाहरण के लिए, कुछ नागा आदिवासी निकाय पारंपरिक कानूनों के संरक्षण का हवाला देते हुए महिलाओं के आरक्षण का विरोध करते हैं।
  • खासी जैसे मातृवंशीय समाजों में, शक्ति की गतिशीलता अभी भी पितृसत्तात्मक हो सकती है।

निष्कर्ष:

  • पूर्वोत्तर भारत की विविधता, पहचान और प्रमुख मुद्दों सहित इसकी जटिलताओं को समझना, क्षेत्र में एकता को बढ़ावा देने और हाशिए पर पड़े लोगों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

सारांश:

  • पूर्वोत्तर भारत जो की विविधता से परिपूर्ण एक समृद्ध क्षेत्र हैं,जो की हाशिए और भेदभाव के मुद्दों का सामना करता है। यह लेख ऐतिहासिक जड़ों से लेकर समसामयिक चुनौतियों तक, इसकी जटिलता पर प्रकाश डालता है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

नवनिर्मित NRF के पास भारत के विज्ञान, समाज की खाई को पाटने का मौका है:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

विषय: हाल के घटनाक्रम और रोजमर्रा की जिंदगी में उनके अनुप्रयोग और प्रभाव, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण और नई तकनीक का विकास। सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का उद्देश्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास करना है।

प्रारंभिक परीक्षा: नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) से सम्बन्धित जानकारी।

मुख्य परीक्षा: वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए सरकारी पहल-राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (NRF)।

प्रसंग:

  • इस लेख में भारत के राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) की स्थापना और इसके वित्त पोषण दर्शन के बारे में चल रही बहस की पड़ताल की गई है, जिसमें सामाजिक चुनौतियों के अनुरूप अनुसंधान की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

विवरण:

  • नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) भारत में हाल ही में स्वीकृत अनुसंधान वित्त पोषण एजेंसी है।
  • इसका पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये का बजट है।
  • NRF का लक्ष्य वित्त पोषण प्रदान करके, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके और शिक्षा जगत, उद्योग, समाज और सरकार के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना है।

अनुसंधान वित्त पोषण के औचित्य पर बहस:

  • वैज्ञानिक इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि व्यावहारिक चुनौतियों के अभिनव समाधान के लिए NRF को किस प्रकार के शोधों के लिए वित्त आवंटित करना चाहिए।
  • एक दृष्टिकोण इस बात पर जोर देता है कि अनुसंधान निर्देशात्मक नहीं बल्कि जिज्ञासा से प्रेरित होना चाहिए, क्योंकि खोजें अक्सर अप्रत्याशित रूप से सामने आती हैं।
  • एक अन्य परिप्रेक्ष्य समस्या-समाधान की शुरुआत से ही विद्वानों, उद्योगों और सरकार के बीच सहयोग के महत्व पर जोर देता है।
  • कुछ विशेषज्ञ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) के लिए अनुसंधान दिशाओं को परिभाषित करने में सामाजिक हितधारकों को शामिल करने पर प्रकाश डालते हैं।

‘जिज्ञासा-प्रेरित’ तर्क:

  • वन्नेवर बुश के 1945 के पेपर पर आधारित यह तर्क सुझाव देता है कि नवाचार को जिज्ञासा के बाद “स्वतंत्र बुद्धि के स्वतंत्र खेल” द्वारा संचालित किया जाना चाहिए।
  • यह मानता है कि नया ज्ञान स्वाभाविक रूप से तकनीकी प्रगति और आर्थिक विकास की ओर ले जाता है।
  • इसके उदाहरणों में जीनोम अनुक्रमण और चिकित्सा निदान शामिल हैं।

‘जिज्ञासा-प्रेरित’ धारणा को चुनौती देना:

  • डेनियल सारेविट्ज़ के 2016 के निबंध में तर्क दिया गया है कि अमेरिका में कई प्रमुख आविष्कार जिज्ञासा के बजाय रक्षा विभाग (DOD) की तकनीकी मांगों से प्रेरित थे।
  • रक्षा विभाग निवेश ने कंप्यूटर और कंप्यूटर विज्ञान के विकास को प्रभावित किया, जिससे वर्ल्ड वाइड वेब जैसे नवाचारों को बढ़ावा मिला।
  • यहां तक कि पेनिसिलिन की खोज में भी लक्ष्य-संचालित प्रयास था तथा इसमें औद्योगिक भागीदारी निहित थी।

नए नवाचार मॉडलों का उदय:

  • 1980 के दशक में लोकप्रिय हुआ ‘राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली’ मॉडल, परस्पर जुड़ाव, सीखने और उद्यमिता पर जोर देता है।
  • जापान और दक्षिण कोरिया की आर्थिक वृद्धि का श्रेय ऐसी प्रणालियों को दिया जाता है।
  • तीसरा मॉडल स्थिरता और सामाजिक परिवर्तन पर केंद्रित है, जिसमें नागरिक विज्ञान और हितधारकों की भागीदारी शामिल है।
  • डेनमार्क की पवन ऊर्जा सफलता इस मॉडल का एक उदाहरण है।

भारत की STI नीतियों पर दोबारा गौर करना:

  • ऐतिहासिक रूप से, भारत ने ‘पाइपलाइन मॉडल’ का समर्थन किया है, जिससे जिज्ञासा STI का मार्गदर्शन करती है।
  • NRF इस मॉडल पर पुनर्विचार करने और नए दृष्टिकोण तलाशने का अवसर प्रदान करता है।
  • अब अधिक न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य के लिए सामाजिक चुनौतियों और हितधारकों की भागीदारी से प्रेरित नवाचार पर जोर दिया जा रहा है।

निष्कर्ष:

  • NRF की स्थापना भारत के लिए अपनी STI नीतियों को नया आकार देने और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने वाले नवीन मॉडलों को अपनाने, अधिक टिकाऊ और समावेशी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है।

सारांश:

  • जैसे ही भारत ने पर्याप्त बजट के साथ नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) लॉन्च किया है, इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या शोध को जिज्ञासा-प्रेरित या समस्या-केंद्रित होना चाहिए, जो सहयोगात्मक और प्रभावशाली नवाचार मॉडल की ओर बदलाव को दर्शाता है।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

जी20 कूटनीति और बदलती वैश्विक व्यवस्था:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से जुड़े और/ या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।

प्रारंभिक परीक्षा: भारत में जी20 शिखर सम्मेलन, ब्रिक्स, नाटो, गुटनिरपेक्षता, बाली घोषणा।

मुख्य परीक्षा: बदलती वैश्विक व्यवस्था और भारत पर प्रभाव, वैश्विक राजनीति में दो गुटों का उदय, भारत की सामरिक स्वायत्तता को खतरा।

प्रसंग:

  • जी-20 (G-20) शिखर सम्मेलन ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बदलती गतिशीलता और वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में गुटनिरपेक्षता के लिए घटती जगह पर प्रकाश डाला है।

भारत और जी-20:

  • दिल्ली में जी-20 बैठक में भारत को कूटनीतिक सफलता हासिल हुई हैं।
  • चुनौतियों के बावजूद, नई दिल्ली घोषणा ने लगभग 100 मुद्दों पर सर्वसम्मति की घोषणा की।
  • इसमें आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, सतत विकास और बहुपक्षीय विकास बैंकों सहित विभिन्न विषयों को संबोधित किया गया।
  • डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (Unified Payments Interface) जैसी पहलों पर भी प्रकाश डाला गया।
  • घोषणा में संघर्ष पर समझौते पर जोर दिया गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” के दृष्टिकोण का समर्थन किया गया।
  • यूक्रेन संघर्ष पर भी सहमति तब बनी जब पश्चिम रूस को दोष देने से परहेज करने पर सहमत हुआ और इसकी निंदा करने के बजाय एक प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
  • यह नवंबर 2022 की बाली घोषणा के विपरीत है, जिसमें यूक्रेन में उसके कार्यों के लिए रूस की निंदा की गई थी।
  • रूस और चीन ने बाली घोषणा की कड़ी आलोचना की।
  • जी-20 बैठक के नतीजों ने बड़े वैश्विक समुदाय की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित किया हैं।
  • मेजबान देश के रूप में भारत सफल परिणाम का श्रेय ले सकता है।

क्या बहुपक्षवाद के प्रति चीन की धारणा बदल रही है?

  • चीन ने दिल्ली घोषणा का स्वागत किया है, लेकिन उसे लगता है कि जी-20 का इस्तेमाल भूराजनीतिक और सुरक्षा उपकरण के रूप में किया जा रहा है।
  • इसने राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किए जाने की चिंताओं के कारण भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा योजना के खिलाफ भी चेतावनी दी।
  • अन्य लोगों ने वैश्विक मुद्दों के समाधान में जी-20 की प्रभावशीलता के बारे में संदेह व्यक्त किया है।
  • दुनिया इस समय भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, मुद्रास्फीति, चल रहे संघर्ष और जलवायु परिवर्तन सहित कई संकटों के दौर का सामना कर रही है।
  • भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत को पश्चिम की मान्यता और क्वाड (एक समूह जिसे चीन को नियंत्रित करने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में देखा जाता है) में भारत की सदस्यता के कारण भारत को सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
  • भारत को पश्चिम और चीन के बीच बढ़ते तनाव की चपेट में आने से बचना चाहिए।

दो गुटों का उदय:

  • हाल के वर्षों में जी-20 की भूमिका बदल गई है, जैसे आर्थिक मुद्दों के बजाय वैश्विक राजनीतिक संघर्षों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • दुनिया उभरती अव्यवस्था, दो विरोधी गुटों की वापसी और गुटनिरपेक्ष देशों के लिए सिकुड़ती जगह का सामना कर रही है।
  • विश्लेषकों का सुझाव है कि पश्चिम और चीन-रूस के नेतृत्व में दो विरोधी गुट शक्ति संतुलन को बदलने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
  • अमेरिका “रूसी विस्तारवाद” का मुकाबला करने के लिए नाटो को मजबूत और विस्तारित कर रहा है और गैर-नाटो सहयोगियों को रूस और चीन द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए अधिनायकवाद का मुकाबला करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने के लिए आश्वस्त किया जा रहा है।
  • रूस और चीन अपने रणनीतिक संरेखण को गहरा कर रहे हैं, उत्तर कोरिया जैसे देश इस गुट के साथ रिश्ते मजबूत कर रहे हैं।
  • चीन प्रशांत महासागर में अमेरिकी नौसैनिक शक्ति को चुनौती दे रहा है, जबकि रूस अफ्रीका में अपना विस्तार करना चाहता है।

क्या गुटनिरपेक्षता की गुंजाइश कम हो रही है?

  • वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य देशों के लिए अपनी गुटनिरपेक्ष स्थिति को बनाए रखना कठिन बना रहा है। उदाहरण के लिए, ब्रिक्स (BRICS) (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) जैसे मंचों को तटस्थ रहना चुनौतीपूर्ण लग रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण वाले प्रतिद्वंद्वी खेमे अधिक प्रमुख होते जा रहे हैं और एक गुट के भीतर देशों के बीच सुरक्षा समझौतों ने गुटनिरपेक्षता के लिए जगह सीमित कर दी है।
  • नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन और ग्लोबल साउथ के महत्व का उल्लेख इस वास्तविकता को नहीं बदल सकता है और वैश्विक शक्तियां अभी भी भविष्य को आकार देने में ज्यादा कुछ कहे बिना, अन्य देशों को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मोहरे के रूप में मान सकती हैं।

सारांश:

  • दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन ने पश्चिम और चीन के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव को उजागर किया है, जिससे दुनिया तेजी से दो गुटों में बंट गई है। इससे गुटनिरपेक्षता के लिए जगह कम हो रही है और देशों के लिए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत को गोलीबारी में फंसने से बचने के लिए सावधानी बरतने की जरूरत है।

जनसांख्यिकीय का एक महत्वपूर्ण पक्ष बच्चे,जो AI विनियमन में अभी तक छूटे हुए है:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

सामाजिक मुद्दे:

विषय: इन कमजोर वर्गों की सुरक्षा और बेहतरी के लिए गठित पाठ्यक्रम-तंत्र, कानून, संस्थाएं और निकाय।

प्रारंभिक परीक्षा- कृत्रिम बुद्धिमत्ता/आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), डिजिटल इंडिया एक्ट, यूनिसेफ।

मुख्य परीक्षा: बच्चों पर AI का प्रभाव, AI के वैश्विक विस्तार के लिए नैतिक ढांचा।

विवरण:

  • भारत अक्टूबर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता/आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर पहली बार वैश्विक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए तैयार है।
  • AI द्वारा वर्ष 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था में 500 बिलियन डॉलर का योगदान देने की भी उम्मीद है।
  • इस संदर्भ में, प्रधान मंत्री ने AI के नैतिक विस्तार पर एक वैश्विक ढांचे का आह्वान किया है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में बच्चों के हितों की रक्षा करना:

  • बच्चों की गोपनीयता, सुरक्षा और भलाई पर AI का प्रभाव चिंता पैदा करता है।
  • उचित विनियमन के बिना, AI-आधारित डिजिटल सेवाएं कमजोर युवाओं का शोषण करने के लिए अपारदर्शी एल्गोरिदम और डार्क पैटर्न का इसके परिणामस्वरूप आदर्श शारीरिक दिखावे की तकनीकी-आधारित विकृतियाँ हो सकती हैं, जिससे शरीर की छवि संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, साथ ही गलत सूचना, कट्टरपंथ, साइबरबुलिंग, यौन सौंदर्य आदि जैसे अन्य नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। उपयोग कर सकती हैं।
  • बच्चों और किशोरों को उनकी ऑनलाइन उपस्थिति के अनपेक्षित परिणामों को प्रबंधित करने के लिए उपकरणों से लैस किया जाना चाहिए, जिसमें AI-संचालित गहरी नकली क्षमताएं भी शामिल हैं जिनका उपयोग विकृत यौन सामग्री बनाने और वितरित करने के लिए किया जा सकता है।
  • हाशिए पर रहने वाले समुदायों के खिलाफ पूर्वाग्रहों और भेदभाव को रोकने के लिए AI विनियमन में लिंग, जाति, आदिवासी पहचान, धर्म और भाषाई विरासत सहित अंतर्विभागीय पहचान पर विचार किया जाना चाहिए।
  • बच्चों के लिए भारत का वर्तमान डेटा सुरक्षा ढांचा अपर्याप्त है, जिससे माता-पिता पर अपने बच्चों के हितों की रक्षा करने की बहुत अधिक जिम्मेदारी आ गई है और वे सुरक्षित प्लेटफ़ॉर्म संचालन और डिज़ाइन की सुविधा प्रदान करने में विफल रहे हैं।
  • आगामी डिजिटल इंडिया एक्ट (DIA) को इन मौजूदा दृष्टिकोणों में सुधार करके AI के साथ बातचीत करते समय बच्चों के हितों की बेहतर रक्षा करनी चाहिए।
  • भारत के पास युवा लोगों पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के प्रभाव को कम करने के प्रयासों में अग्रणी होने का अवसर है, क्योंकि कई अत्याधुनिक AI एप्लिकेशन, हालांकि जानबूझकर बच्चों के लिए नहीं बनाए गए हैं, डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उनके लिए आसानी से उपलब्ध हैं।
  • AI के विनियमन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रोत्साहन लत, मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे इन मुद्दों के समाधान के लिए संरेखित हों।

माता-पिता और अभिभावकों की भूमिका:

  • माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों के ऑनलाइन अनुभवों को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे उन्हें ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने और उनके बच्चों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ऐप्स और प्लेटफ़ॉर्म के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए ज़िम्मेदार हैं।
  • हालाँकि, यह दृष्टिकोण माता-पिता पर अनुचित बोझ डालता है, जिनके पास अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता या संसाधनों की कमी हो सकती है।
  • इसके अलावा, यह उस वास्तविकता को पहचानने में विफल रहता है जहां बच्चे अक्सर जटिल डिजिटल इंटरफेस और उपयोगकर्ता अनुभवों को नेविगेट करने में अपने माता-पिता की सहायता करते हैं।

नीति निर्माताओं के लिए यूनिसेफ का मार्गदर्शन:

  • इन चिंताओं को दूर करने के लिए, यूनिसेफ ने AI और बच्चों पर नीति निर्माताओं के लिए दिशानिर्देश विकसित किए हैं।
  • ये दिशानिर्देश एक बाल-केंद्रित दृष्टिकोण बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो कल्याण, समावेशन, निष्पक्षता, गैर-भेदभाव, सुरक्षा, पारदर्शिता, व्याख्यात्मकता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है।
  • दिशानिर्देश एक सक्षम वातावरण की वकालत करते हैं जो AI सिस्टम के विकास को प्रोत्साहित करता है जो बच्चों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करता है,और उनके सर्वोत्तम हितों को बढ़ावा देता है।

आयु-उपयुक्त डिज़ाइन कोड:

  • बाल-अनुकूल AI सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावी रणनीति आयु-उपयुक्त डिजाइन कोड का कार्यान्वयन है।
  • कैलिफ़ोर्निया का आयु-उपयुक्त डिज़ाइन कोड अधिनियम एक उपयोगी मॉडल के रूप में कार्य करता है।
  • कोड के लिए डिजिटल सेवाओं को डिफ़ॉल्ट गोपनीयता सेटिंग्स को कॉन्फ़िगर करने की आवश्यकता होती है जो बच्चों की गोपनीयता को प्राथमिकता देती है, बच्चों को संभावित नुकसान के लिए एल्गोरिदम और डेटा संग्रह विधियों का आकलन करती है, और उपयोगकर्ता-सामना करने वाली जानकारी के लिए स्पष्ट, आयु-उपयुक्त भाषा का उपयोग करती है।
  • इसी तरह, भारत को AI के लिए एक आयु-उपयुक्त डिजाइन कोड विकसित करना चाहिए जो उसके बच्चों की अनूठी जरूरतों को पूरा करता हो।

बच्चों के साथ संवाद को संस्थागत बनाना:

  • नियामक उपायों के अलावा, ऐसे संस्थानों की स्थापना करना आवश्यक है जो बच्चों के साथ नियमित संवाद को बढ़ावा दें।
  • ऑस्ट्रेलिया की ऑनलाइन सुरक्षा युवा सलाहकार परिषद जैसे तंत्र, जिसमें 13 से 24 वर्ष की आयु के सदस्य शामिल हैं, AI सिस्टम के साथ बातचीत करते समय युवाओं को होने वाले खतरों और लाभों के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
  • ऐसे संस्थान विनियमों को उभरती चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से जवाब देने और बच्चों को डिजिटल सेवाओं से मिलने वाले लाभों को संरक्षित करने में सक्षम बनाएंगे।

निष्कर्ष:

  • जैसे-जैसे भारत इंटरनेट पर होने वाले नुकसान को विनियमित करने के लिए एक नया कानून लाने की अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है, यह जरूरी है कि बच्चों के हित सबसे आगे रहें।
  • खुलेपन, विश्वास और जवाबदेही को बढ़ावा देने वाले मानकों, मजबूत संस्थानों और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि AI विकास और तैनाती से बच्चों और समाज दोनों को लाभ होगा।

सारांश:

  • बच्चों की गोपनीयता, सुरक्षा और कल्याण पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के प्रभाव को विनियमित करने के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा समय की मांग है।आगामी डिजिटल इंडिया अधिनियम (SIA) को बच्चों के हितों की रक्षा के लिए मौजूदा दृष्टिकोण में सुधार करना चाहिए। खुलेपन, विश्वास और जवाबदेही को बढ़ावा देने वाले मानकों, मजबूत संस्थानों और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि AI विकास और तैनाती से बच्चों और समाज दोनों को लाभ होगा।

प्रीलिम्स तथ्य:

1. फिलीपींस ने विवादित क्षेत्र में चीन का अवरोध हटाया:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

विषय: अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रारंभिक परीक्षा: स्कारबोरो शोल (Scarborough Shoal)।

  • फिलीपींस के तटरक्षक बल ने दक्षिण चीन सागर में चीन के तटरक्षक बल द्वारा लगाए गए एक तैरते अवरोध को हटा दिया है।
  • जब फिलीपीन के मछली पकड़ने वाले जहाज इस क्षेत्र के पास पहुंचे, तो चीनी तट रक्षक जहाजों ने प्लवों और जालों के सहारे 300 मीटर लंबा अवरोध खड़ा कर दिया था।
  • बैरियर की स्थापना फिलिपिनो मछली पकड़ने वाली नौकाओं को स्कारबोरो शोल में स्थित एक विवादित लैगून तक पहुंचने से रोकने के लिए की गई थी।
  • फिलीपींस के अधिकारी इस बाधा को अंतरराष्ट्रीय कानून और अपने देश की संप्रभुता दोनों के उल्लंघन के रूप में देखते हैं।
  • राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर के आदेश के बाद फिलीपीन तट रक्षक ने एक “विशेष अभियान” में अवरोध को सफलतापूर्वक हटा दिया।
  • फिलीपींस के अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि उनकी कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप हो और उनके क्षेत्रीय अधिकारों की रक्षा हो।
  • चीन शोल और उसके निकटवर्ती जल क्षेत्र पर अपना दावा करता है और कहता है कि फिलीपीनी जहाज ने बिना अनुमति के अतिक्रमण किया है।
  • यह विवाद संसाधन संपन्न दक्षिण चीन सागर में लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय संघर्षों को बढ़ाता है, जिसमें फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई, ताइवान और चीन सहित कई देश शामिल हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

1. भारत में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए NRF के पास पांच वर्षों में ₹50,000 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है।

2. NRF फंड का उपयोग प्राकृतिक विज्ञान, मानविकी, सामाजिक विज्ञान और कला में अनुसंधान के लिए किया जाता है।

3. केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री NRF गवर्निंग बोर्ड के पदेन अध्यक्ष हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कितने गलत है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर: a

व्याख्या:

  • मंत्रालयों में NRFके व्यापक प्रभाव के कारण प्रधान मंत्री बोर्ड के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं, जबकि केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और शिक्षा मंत्री पदेन उपाध्यक्ष होते हैं।

प्रश्न 2. हाल ही में खबरों में रहा ‘स्कारबोरो शोल’ निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में स्थित है?

(a) अटलांटिक महासागर

(b) हिंद महासागर

(c) अरब सागर

(d) दक्षिण चीन सागर

उत्तर: d

व्याख्या:

  • यह दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस, चीन और ताइवान द्वारा दावा किया जाने वाला एक विवादित क्षेत्र है।

प्रश्न 3. बेजबरूआ समिति के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

(a) बेजबरूआ समिति पूर्वोत्तर क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करती है।

(b) बेजबरूआ समिति पूर्वोत्तर राज्यों के लिए आर्थिक नीतियां तैयार करने के लिए जिम्मेदार है।

(c) बेजबरूआ समिति की स्थापना देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों की चिंताओं को दूर करने के लिए की गई थी।

(d) पूर्वोत्तर राज्यों में भ्रष्टाचार की जांच के लिए बेजबरुआ समिति का गठन किया गया था।

उत्तर: c

व्याख्या:

  • देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों की चिंताओं को दूर करने के लिए वर्ष 2014 में बेजबरूआ समिति की स्थापना की गई थी।

प्रश्न 4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

1. स्कूलों के लिए NEP पाठ्यक्रम संरचना और शिक्षण शैली को चार चरणों में वर्गीकृत करता है: मूलभूत, प्रारंभिक, मध्य और माध्यमिक।

2. भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) कानूनी और चिकित्सा शिक्षा के लिए प्रमुख नियामक के रूप में काम करेगा।

3. इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का है, जिसमें पूर्व-प्राथमिक से माध्यमिक तक 100% सकल नामांकन अनुपात (GER) का लक्ष्य रखा गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कितने सही है/हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर: b

व्याख्या

  • कथन 2 गलत है, क्योंकि HECI को चिकित्सा और कानूनी शिक्षा को छोड़कर संपूर्ण उच्च शिक्षा के लिए एक एकल व्यापक छत्र निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा।

प्रश्न 5. बाल अधिकारों पर कन्वेंशन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

1. इसे दुनिया भर में बच्चों के अधिकारों की रक्षा और पूर्ति के लिए वर्ष 1989 में अपनाया गया था।

2. यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो सदस्यों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।

3. भारत बाल अधिकारों पर कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता देश नहीं है।

ऊपर दिए गए कथनों में से कितने सही हैं?

(a) केवल एक

(b) केवल दो

(c) सभी तीनों

(d) कोई नहीं

उत्तर: b

व्याख्या;

  • कथन 3 गलत है, क्योंकि भारत वास्तव में बाल अधिकारों पर कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्ता देश है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. AI परिनियोजन विशेष रूप से बच्चों के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं, लेकिन फिर भी उनके द्वारा उपयोग किए जाते हैं। इस संदर्भ में, प्रभावी AI नियम बनाने में कानून निर्माताओं के सामने आने वाली चुनौतियों का परिक्षण कीजिए। (AI deployments are not designed specifically for children but are nevertheless accessed by them. In this context, examine the challenge faced by lawmakers in forming effective AI regulations.) (250 शब्द, 15 अंक) [जीएस: II- शासन]

प्रश्न 2. भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों की पहचान कीजिए एवं यह भी बताइये की इन चुनौतियों को हल करने में वित्त पोषण कितना मददगार साबित हो सकता है? (Identify the challenges faced by India’s higher education institutes. How far can funding go in solving these challenges?) (250 शब्द, 15 अंक) [जीएस: II- शासन]

(नोट: मुख्य परीक्षा के अंग्रेजी भाषा के प्रश्नों पर क्लिक कर के आप अपने उत्तर BYJU’S की वेव साइट पर अपलोड कर सकते हैं।)