विषयसूची:
-
परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर परिसीमन आदेश को अंतिम रूप दिया:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय:सरकारी संस्थान एवं इनकी आवश्यकता।
प्रारंभिक परीक्षा: परिसीमन आयोग।
मुख्य परीक्षा: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन एक चुनौतीपूर्ण कार्य था,बावजूद इसके यह कार्य संपन्न किया गया इसके महत्व अवं आवश्यकता पर चर्चा कीजिए ?
प्रसंग:
- न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई (सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश) की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग, जिसके पदेन सदस्य सुशील चंद्रा (मुख्य चुनाव आयुक्त) और के के शर्मा (राज्य चुनाव आयुक्त, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर) हैं, के बीच केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आदेश को अंतिम रूप देने के लिए बैठक हुई।
उद्देश्य:
- पहली बार ST के लिए नौ सीटें आरक्षित।
- सभी पांच संसदीय क्षेत्रों में पहली बार समान संख्या में विधान सभा क्षेत्र होंगे।
- 90 विधान सभा क्षेत्रों में से 43 जम्मू क्षेत्र और 47 सीटें कश्मीर के लिए होंगी ।
- परिसीमन के उद्देश्यों के लिए जम्मू और कश्मीर को एक इकाई माना गया है।
- पटवार मंडल सबसे निचली प्रशासनिक इकाई है, जिसे बांटा नहीं गया है।
- सभी विधानसभा क्षेत्र संबंधित जिले की सीमा के भीतर रहेंगे।
- आयोग ने कश्मीरी प्रवासियों और पीओजेके से विस्थापित व्यक्तियों के लिए विधानसभा में अतिरिक्त सीटों की सिफारिश की है।
विवरण:
- अंतिम परिसीमन आदेश के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित की जाने वाली तिथि से निम्नलिखित लागू हो जायेंगे:
- परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 9(1)(ए) तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 60(2)(बी) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 जम्मू और 47 कश्मीर क्षेत्र के लिए होंगे।
- 9 विधानसभा क्षेत्र ST के लिए आरक्षित किए गए हैं, जिनमें से 6 जम्मू क्षेत्र में और 3 विधानसभा क्षेत्र कश्मीर घाटी में हैं।
- क्षेत्र में पांच संसदीय क्षेत्र हैं।
- परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एक एकल केंद्र शासित प्रदेश के रूप में माना है।
- इसलिए, घाटी में अनंतनाग क्षेत्र और जम्मू क्षेत्र के राजौरी तथा पुंछ को मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया है।
- इस पुनर्गठन के बाद, प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में समान संख्या में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र होंगे।
- प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में 18 विधान सभा क्षेत्र होंगे।
- कुछ विधान सभा क्षेत्रों के नाम भी बदल दिए गए हैं।
- यह स्मरण करने योग्य है कि परिसीमन आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा परिसीमन अधिनियम, 2002 (2002 का 33) की धारा 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के उद्देश्य से किया गया था।
- आयोग द्वारा अपने काम के लिए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर से निर्वाचित लोकसभा के पांच सदस्यों को जोड़ा गया था।
- इन सहायक सदस्यों को लोकसभा के माननीय अध्यक्ष द्वारा नामित किया गया था।
- परिसीमन आयोग को 2011 की जनगणना के आधार पर तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (2019 का 34) के भाग-V एवं परिसीमन अधिनियम, 2002 (2002 का 33) के प्रावधानों के अनुरूप जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का काम सौंपा गया था।
- संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों (अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332) तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 14 की उप-धारा (6) और (7) को ध्यान में रखते हुए, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की विधान सभा में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित की जाने वाली सीटों की संख्या की गणना 2011 की जनगणना के आधार पर की गई है।
- तदनुसार, परिसीमन आयोग ने पहली बार ST के लिए 09 विधान सभा क्षेत्र और SC के लिए 07 विधान सभा क्षेत्र आरक्षित किए हैं।
- उल्लेखनीय है कि तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के संविधान ने विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान नहीं किया था।
- जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 तथा परिसीमन अधिनियम, 2002 ने सामान्य मानदंड निर्धारित किए थे ।
- आयोग ने जिलों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के आवंटन का प्रस्ताव करते हुए प्रति विधानसभा क्षेत्र में औसत आबादी के +/- 10 प्रतिशत अंतर को ध्यान में रखा है।
- जन भावना को देखते हुए प्रस्तावित निर्वाचन क्षेत्रों के नामों में परिवर्तन को आयोग द्वारा स्वीकार किया गया।
- बदले जाने वाले नामों में शामिल हैं – तांगमर्ग-एसी का नाम बदल कर गुलमर्ग-एसी, ज़ूनीमार-एसी का नाम बदल कर जैदीबल-एसी, सोनवार-एसी का नाम बदल कर लाल चौक-एसी, पैडर-एसी का नाम बदल कर पैडर-नागसेनी-एसी, कठुआ नॉर्थ-एसी का नाम बदल कर जसरोटा-एसी, कठुआ-साउथ एसी का नाम बदल कर कठुआ एसी, खुर-एसी का नाम बदल कर छंब-एसी, महोर-एसी का नाम बदल कर गुलाबगढ़-एसी, दरहाल-एसी का नाम बदल कर बुधल-एसी आदि।
- केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
- केंद्र शासित प्रदेश के भू-सांस्कृतिक परिदृश्य ने अनूठे मुद्दों को प्रस्तुत किया, जैसे भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से अलग जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धी राजनीतिक आकांक्षाएं; जिलों के बीच जनसंख्या घनत्व में भारी अंतर, एक तरफ घाटी-मैदानी जिलों में 3436 प्रति वर्ग किमी, तो मुख्य रूप से पहाड़ी और दुर्गम जिलों में केवल 29 प्रति वर्ग किमी; जहां असाधारण भौगोलिक बाधाओं के कारण अंतर-जिला संपर्क अत्यंत कठिन है, कुछ क्षेत्र सर्दियों के दौरान पर्वतीय दर्रों को अवरुद्ध करने वाली बर्फ के कारण कुछ महीनों तक पूरी तरह से कट जाते हैं; जीवन की अनिश्चितता और सीमावर्ती जिलों में अकारण रुक-रुक कर होने वाली गोलीबारी/गोलाबारी की संभावना वाले अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे गांवों में कनेक्टिविटी और सार्वजनिक सुविधाओं की अपर्याप्त उपलब्धता; आदि।
- ऐसे सभी परिवर्तनों को शामिल करने के बाद, अंतिम आदेश भारत सरकार के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया गया है।
परिसीमन आयोग ने केंद्र सरकार को निम्नलिखित सिफारिशें कीं हैं:
- (1)विधान सभा में कश्मीरी प्रवासियों के समुदाय से कम से कम दो सदस्यों (उनमें से एक महिला होनी चाहिए) का प्रावधान और ऐसे सदस्यों को केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की विधान सभा के मनोनीत सदस्यों की शक्ति के समान शक्ति दी जा सकती है।
- (2) केंद्र सरकार पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर से विस्थापित व्यक्तियों के प्रतिनिधियों के नामांकन के माध्यम से पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर से विस्थापित व्यक्तियों को जम्मू और कश्मीर विधान सभा में कुछ प्रतिनिधित्व देने पर विचार कर सकती है।
- पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य से जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश को संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (2019 का 34) के माध्यम से गठित किया गया था।
- तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन; जम्मू और कश्मीर राज्य के संविधान तथा जम्मू और कश्मीर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1957 द्वारा शासित था।
- पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर में विधानसभा सीटों का अंतिम रूप से परिसीमन 1981 की जनगणना के आधार 1995 में किया गया था।
-
ड्रोन और उसके पुर्जों की उत्पादन प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत आवेदन आमंत्रित
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: देश में व्यापक भागीदारी और व्यापक आधार वाले स्वदेशी ड्रोन विनिर्माण क्षेत्र को प्रोहत्साहन।
प्रारंभिक परीक्षा: उत्पादन युक्त प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना।
मुख्य परीक्षा: पीएलआई योजना के अलावा, केंद्र सरकार ने कई सुधार किये हैं, ताकि 2030 तक भारत को विश्व ड्रोन केंद्र बनाया जा सके,इन सुधारों पर चर्चा कीजिए ?
प्रसंग:
- नागर विमानन मंत्रालय ने ड्रोन और ड्रोन पुर्जों के उन निर्माताओं के लिये आवेदन की राह खोल दी है, जिन्होंने पूरे वित्त वर्ष (एक अप्रैल, 2021 से 31 मार्च, 2022) की पीएलआई पात्रता सीमा पार कर ली है।
उद्देश्य:
- ड्रोन और ड्रोन पुर्जों की पीएलआई योजना के लिये पात्रता में वार्षिक कारोबार को भी शामिल किया गया है।
विवरण:
- इस सम्बंध में ड्रोन बनाने वाली कंपनियों का वार्षिक कारोबार दो करोड़ रुपये और ड्रोन पुर्जे बनाने वाली कंपनियों का वार्षिक कारोबार 50 लाख रुपये होना चाहिये।
- कारोबार में 40 प्रतिशत से अधिक का मूल्य संवर्धन होना भी जरूरी है।
- ड्रोन और ड्रोन पुर्जों के लिये पीएलआई योजना को 30 सितंबर, 2021 को अधिसूचित किया गया था।
- योजना के तहत तीन वित्तवर्षों के दौरान कुल 120 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया जायेगा, जो वित्तवर्ष 2020-21 में सभी स्वदेशी ड्रोन निर्माताओं के संयुक्त कारोबार का लगभग दोगुना है।
- पीएलआई की दर मूल्य संवर्धन का 20 प्रतिशत है, जो अन्य पीएलआई योजनाओं में सर्वाधिक है।
- पीएलआई योजना के अलावा, केंद्र सरकार ने कई सुधार किये हैं, ताकि 2030 तक भारत को विश्व ड्रोन केंद्र बनाया जा सके।
- इसमें ड्रोन नियम, 2021 को उदार बनाने की अधिसूचना, ड्रोन वायुसीमा मानचित्र 2021 का प्रकाशन शामिल है, जिसके तहत भारतीय वायुसीमा के लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र को हरित ज़ोन के रूप में खोल दिया गया है।
- इसके साथ ही इसमें यूएएस यातायात प्रबंधन (यूटीएम) नीति प्रारूप 2021, ड्रोन प्रमाणीकरण योजना 2022 को भी रखा गया है, जिसके तहत ड्रोन निर्माताओं को आवश्यक प्रमाणपत्र लेने में आसानी होती है।
- सुधारों में विदेशों में निर्मित ड्रोनों के आयात को प्रतिबंधित करने वाली ड्रोन आयात नीति, 2022 तथा ड्रोन संचालन के लिये ड्रोन पायलट लाइसेंस लेने की अनिवार्यता समाप्त करने वाले ड्रोन (संशोधन) नियम, 2022 भी शामिल हैं।
-
नयी राष्ट्रीय युवा नीति के मसौदे पर सुझाव आमंत्रित:
सामान्य अध्ययन: 2,3
समसामायकी:
विषय: विभिन्न क्षेत्रों में विकास हेतु सरकारी नीतियां और उनमे हस्तक्षेप एवं डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: नयी राष्ट्रीय युवा नीति।
मुख्य परीक्षा:
प्रसंग:
- सरकार ने विद्यमान राष्ट्रीय युवा नीति, 2014 के मसौदे की समीक्षा की है और राष्ट्रीय युवा नीति (एनवाईपी) का एक नया मसौदा तैयार किया है जिसे पब्लिक डोमेन में रखा गया है।
विवरण:
- इस राष्ट्रीय युवा नीति के मसौदे में युवा विकास के लिए दस वर्षीय विजन की परिकल्पना की गई है जिसे भारत वर्ष 2030 तक प्राप्त करना चाहता है।
- यह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के साथ जुड़ा हुआ है और इसमें ‘भारत को आगे बढ़ने के लिए युवाओं की क्षमता को अनलाक करने’ का प्रावधान किया गया है।
- इस राष्ट्रीय युवा नीति का उद्येश्य पांच प्राथमिकता क्षेत्रों अर्थात शिक्षा, रोजगार और उद्यमिता; युवा नेतृत्व और विकास; स्वास्थ्य, फिटनेस और खेल तथा सामाजिक न्याय में युवाओं के विकास के लिए व्यापक कार्रवाई करना है।
- प्रत्येक प्राथमिकता वाले क्षेत्र वंचित वर्गों के हितों को ध्यान में रखते हुए सामाजिक समावेशन के सिद्धांत पर आधारित है।
-
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अत्यधिक मौतों का अनुमान लगाया:
सामान्य अध्ययन: 2
अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:
विषय: भारत के हितों पर विभिन्न अंर्तष्ट्रीय संघठनो की नीतियां और राजनीति का प्रभाव।
प्रारंभिक परीक्षा:विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), ‘जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969’ ।
प्रसंग:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में अत्यधिक मौतों का अनुमान लगाया हैं।
उद्देश्य:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जिस गणितीय मॉडल के आधार पर ज्यादा मौतों की संख्या का अनुमान लगाया है, भारत लगातार उस कार्यप्रणाली पर आपत्ति जताता रहा है।
- इस मॉडलिंग अभ्यास की प्रक्रिया, कार्यप्रणाली और परिणाम पर भारत की आपत्ति के बावजूद, डब्ल्यूएचओ ने भारत की चिंताओं को दूर किए बगैर अतिरिक्त मृत्यु दर का अनुमान जारी कर दिया।
विवरण:
- भारत ने डब्ल्यूएचओ को यह भी सूचित किया था कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) द्वारा नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) के माध्यम से प्रकाशित प्रामाणिक डेटा की उपलब्धता को देखते हुए देश के लिए अधिक मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए गणितीय मॉडल का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
- भारत में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण की बेहद मजबूत प्रणाली है और यह दशकों पुराने वैधानिक कानूनी ढांचे यानी ‘जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969’ के तहत संचालित होता है।
- नागरिक पंजीकरण डेटा के साथ-साथ आरजीआई द्वारा सालाना जारी किए जाने वाले नमूना पंजीकरण डेटा का इस्तेमाल घरेलू और वैश्विक दोनों स्तर पर बड़ी संख्या में शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है।
- आरजीआई एक सदी से भी अधिक पुराना वैधानिक संगठन है और इसमें राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य रजिस्ट्रार और देशभर में करीब 3 लाख रजिस्ट्रार/सब-रजिस्ट्रार सहायता करते हैं।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों के आधार पर, राष्ट्रीय रिपोर्ट- नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) पर आधारित भारत की जन्म-मृत्यु सांख्यिकी, आरजीआई द्वारा हर साल प्रकाशित की जाती है।
- वर्ष 2019 के लिए इस तरह की पिछली राष्ट्रीय रिपोर्ट जून 2021 में और 2020 के लिए 3 मई 2022 को प्रकाशित की गई। ये रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में हैं।
- भारत का दृढ़ता से यह मानना है कि किसी सदस्य देश के कानूनी तंत्र के जरिए सामने आए इस तरह के सटीक डेटा का उपयोग डब्ल्यूएचओ द्वारा उपयोग किया जाना चाहिए।
- गैर-आधिकारिक स्रोतों के आधार पर कम विश्वसनीय गणितीय अनुमान पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
- भारत ने देशों को टियर 1 और टियर 2 में वर्गीकृत करने के लिए डब्ल्यूएचओ के मानदंड और धारणा में विसंगतियों की ओर इशारा किया था।
- इसके साथ ही भारत को टियर 2 देशों में रखने (जिसके लिए एक गणितीय मॉडलिंग अनुमान का इस्तेमाल किया गया) की मूल वजह पर भी सवाल उठाया गया था।
- भारत ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया था कि एक प्रभावी और मजबूत वैधानिक प्रणाली के माध्यम से जुटाए गए मौतों के आंकड़े की सटीकता को देखते हुए, भारत को टियर 2 देशों में नहीं रखा जाना चाहिए। डब्ल्यूएचओ ने आज तक भारत के इस तर्क का कोई जवाब नहीं दिया है।
- भारत ने डब्ल्यूएचओ के स्वयं स्वीकार किए गए इस तथ्य पर लगातार सवाल उठाया है कि 17 भारतीय राज्यों के डेटा कुछ वेबसाइटों और मीडिया रिपोर्टों से लिए गए और उन्हें गणितीय मॉडल में इस्तेमाल किया गया था।
- यह भारत के संदर्भ में अत्यधिक मौतों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए डेटा इकट्ठा करने की अनुचित सांख्यिकी और वैज्ञानिक रूप से संदिग्ध कार्यप्रणाली को दर्शाता है।
- डब्ल्यूएचओ के साथ संवाद, जुड़ाव और संचार की प्रक्रिया के दौरान, डब्ल्यूएचओ ने कई मॉडलों का हवाला देते हुए भारत के लिए अलग-अलग अतिरिक्त मौतों का अनुमान लगाया है जो खुद ही इस्तेमाल किए गए मॉडलों की वैधता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
- भारत ने अतिरिक्त मृत्यु दर के अनुमान के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मॉडलों में से एक में वैश्विक स्वास्थ्य अनुमान (जीएचई) 2019 के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई। जीएचई अपने आप में एक अनुमान है।
- इस प्रकार, एक मॉडलिंग दृष्टिकोण ने दूसरे अनुमान के आधार पर मौतों के आंकड़े का अनुमान सामने रखा, जबकि देश में ही मौजूद वास्तविक आंकड़ों को पूरी तरह से नजरअंदाज करना दृढ़ता में कमी को प्रदर्शित करता है।
- भारत में कोविड-19 के लिए टेस्ट संक्रमण दर (डब्ल्यूएचओ द्वारा उपयोग किया गया एक प्रमुख वैरिएबल) पूरे देश में किसी भी समय एकसमान नहीं रही।
- ऐसा मॉडलिंग दृष्टिकोण देश के भीतर स्थान और समय दोनों के संदर्भ में कोविड संक्रमण दर में परिवर्तनशीलता को ध्यान में रखने में विफल रहता है। यह मॉडल विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न नैदानिक विधियों (आरएटी/आरटी-पीसीआर) के परीक्षण की दर और प्रभाव को भी ध्यान में रखने में विफल रहता है।
- अपने विशाल क्षेत्र, विविधता और 1.3 अरब की आबादी के कारण, जिस देश ने जगह और समय दोनों में महामारी की परिवर्तनशील गंभीरता को देखा है, भारत ने लगातार ‘एक तरीका सभी के लिए उपयुक्त’ वाले दृष्टिकोण और मॉडल के उपयोग पर आपत्ति जताई है, जो छोटे देशों पर तो लागू हो सकता है लेकिन भारत पर लागू नहीं हो सकता है।
- एक मॉडल में, भारत में आयु-लिंग वितरण, दूसरे देशों द्वारा रिपोर्ट किए गए अतिरिक्त मृत्यु दर के आयु-लिंग वितरण के आधार पर अनुमान लगा लिया गया जबकि जनसांख्यिकी और आकार के मामले में भारत से कोई तुलना ही नहीं हो सकती है।
- इतना ही नहीं, प्रामाणिक भारतीय स्रोत से उपलब्ध डेटा का इस्तेमाल करने के अनुरोध पर भी विचार नहीं किया गया।
- मॉडल ने तापमान और मृत्यु दर के बीच एक विपरीत संबंध का अनुमान लगाया, जिस पर भारत के बार-बार अनुरोध के बावजूद डब्ल्यूएचओ द्वारा कभी तथ्य सामने नहीं रखा गया।
- साल 2018 और 2019 के लिए सभी कारणों से हुई मौतों के ऐतिहासिक आंकड़े भी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं।
- चूंकि आरजीआई के आंकड़ों में किसी विशेष साल के लिए सभी कारण से हुई मौतें शामिल होती हैं इसलिए कोविड-19 से मौतों के आंकड़ों को उस साल ‘सभी कारण से हुई मौतों’ का एक उप-समूह माना जा सकता है।
- इस प्रकार से, देशभर में एक सटीक प्रक्रिया के माध्यम से इकट्ठा किए और वैधानिक संस्था द्वारा जारी किए गए विश्वसनीय आंकड़े वर्तमान में नीति नियोजन में मदद और विश्लेषण के लिए उपलब्ध हैं। यह एक ज्ञात तथ्य है कि मॉडलिंग से अत्यधिक अनुमान लगाया जा सकता है और कुछ मौकों पर ये अनुमान तर्कशून्यता की सीमा तक पहुंच सकते हैं।
- भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) के कार्यालय के तहत नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) रिपोर्ट-2020 में जारी आंकड़ों को अतिरिक्त मृत्यु दर पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए डब्ल्यूएचओ से साझा किया गया था।
- प्रकाशन के लिए इस डेटा को डब्ल्यूएचओ को देने के बावजूद, डब्ल्यूएचओ ने भारत के उपलब्ध आंकड़ों की अनदेखी की, इसकी वजह उन्हें पता होगी।
- इसके बाद अत्यधिक मौतों के उन अनुमानों को प्रकाशित किया गया जिसकी पद्धति, डेटा के स्रोत और परिणामों पर भारत की ओर से लगातार सवाल उठाए गए हैं।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
आज इससे सम्बंधित कोई समाचार नहीं हैं।
05 मई 2022 : PIB विश्लेषण –Download PDF Here
लिंक किए गए लेख में 04 मई 2022 का पीआईबी सारांश और विश्लेषण पढ़ें।
सम्बंधित लिंक्स:
Comments