विषयसूची:
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पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
प्रारंभिक परीक्षा: पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा:बेहतर अवसंरचना के विकास के लिए सामाजिक क्षेत्र में पीएम गतिशक्ति योजना के प्रभाव के बारे में बताइये।
प्रसंग:
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राष्ट्रीय मास्टर प्लान के शुभारंभ की पहली वर्षगांठ के अवसर पर केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री ने कहा कि पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान में लॉजिस्टिक दक्षता में सुधार करके सालाना 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत करने की क्षमता है।
उद्देश्य:
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बेहतर अवसंरचना के विकास के लिए सामाजिक क्षेत्र में पीएम गतिशक्ति का तेजी से उपयोग किया जा रहा है, जिससे देश के प्रत्येक नागरिक को प्रौद्योगिकी का लाभ मिल रहा है और आम आदमी के लिए जीवन की सुगमता में सुधार हो रहा है।
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पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान बुनियादी ढांचे के विकास में भारत के प्रयासों को ‘गति’ और ‘शक्ति’ दोनों प्रदान करेगा।
विवरण:
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राष्ट्रीय मास्टर प्लान हमारे काम करने के तरीके और हमारे काम के परिणामों को बदल देगा और आर्थिक विकास को गति देगा।
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पीएम गतिशक्ति दूरदराज के क्षेत्रों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर के लोगों को एकीकृत बुनियादी ढांचा योजना बनाने और विकास के अंतर को दूर करने में मदद करके देश में संतुलित, समावेशी, समान विकास सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
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पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री की विकास पहल (पीएम-डिवाइन) योजना को पीएम गतिशक्ति से जोड़ने से संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग करने में मदद मिलेगी।
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प्रधानमंत्री ने 13.10.21 को सभी संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों में अवसंरचना की एकीकृत योजना और समक्रमिक परियोजना कार्यान्वयन के लिए प्रधानमंत्री गति शक्ति का शुभारंभ किया था।
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मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी, लॉजिस्टिक क्षमता में सुधार तथा लोगों और सामानों की निर्बाध आवाजाही हेतु मुख्य समस्याओं को दूर करने के लिए पीएम गतिशक्ति संबंधित मंत्रालयों/विभागों में एकीकृत और समग्र योजना के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण है, जिसमें व्यवधानों को कम करने और कार्यों को समय पर पूरा करने पर ध्यान दिया जाता है।
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यह एक एकीकृत मंच प्रदान करता है, जहां सभी आर्थिक क्षेत्रों और उनके मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचे को वर्णित किया गया है, साथ ही आगे के विकास, मूल्यवर्धन और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए दक्षता लाभ और रास्ते बनाने के लिए परिवहन और रसद के एक व्यापक और एकीकृत मल्टीमॉडल राष्ट्रीय नेटवर्क को बढ़ावा देने के लिए भौतिक संपर्क प्रदान करता है।
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यह उल्लेखनीय है कि पिछले 8 वर्षों में, पूंजीगत व्यय 2014 में 1.75 लाख करोड़ से चार गुना बढ़कर 2022 में 7.5 लाख करोड़ हो गया है।
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पीएम गतिशक्ति के दृष्टिकोण को अपनाते हुए 7.582 किलोमीटर नई सड़कों का विकास, 2500 किलोमीटर नई पेट्रोलियम और गैस पाइपलाइनों और 29,040 किलोमीटर के सर्किट का विकास किया गया है। भारत के रेलवे नेटवर्क द्वारा 200 मिलियन टन माल परिचालित किए जा रहे हैं।
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पीएम राष्ट्रीय मास्टर प्लान के तंत्र के माध्यम से लॉजिस्टिक दक्षता में सुधार के लिए पीएम गतिशक्ति के तहत इस्पात, कोयला, उर्वरक मंत्रालय के साथ-साथ खाद्य और सार्वजनिक वितरण जैसे क्षेत्रों में 197 महत्वपूर्ण परियोजनाओं की पहचान और जांच की गई है।
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लॉजिस्टिक दक्षता में सुधार के लिए अवसंरचना की कमी से जूझ रही परियोजनाओं की पहचान की गई है और उनकी जांच की गई है।
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राष्ट्रीय मास्टर प्लान के साथ एकीकृत पीएमजी पोर्टल के माध्यम से 11 महीनों में 1300 से अधिक अंतर-मंत्रालयी समस्याओं का समाधान किया गया है।
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मंत्री ने लॉजिस्टिक्स ईज अक्रॉस डिफरेंट स्टेट्स (लीड्स) 2022 सर्वेक्षण रिपोर्ट भी लॉन्च की। लीड्स सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लॉजिस्टिक बुनियादी ढांचे, सेवाओं और मानव संसाधनों का आकलन करने के लिए एक स्वदेशी डेटा-संचालित सूचकांक है।
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भारत–अमेरिका वैक्सीन कार्य योजना (इंडो-यूएस वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम):
सामान्य अध्ययन: 2
स्वास्थ्य:
विषय: सामाजिक एवं स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित सेवाओं के विकास एवं प्रबंधन से संबंधित मुद्दे और अन्य देशों के साथ कार्यात्मक सहयोग।
प्रारंभिक परीक्षा: भारत–अमेरिका वैक्सीन कार्य योजना (इंडो-यूएस वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम–वीएपी) से सम्बंधित तथ्य।
प्रसंग:
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जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) राष्ट्रीय एलर्जी और संक्रामक रोग संस्थान (एनआईएआईडी) तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (नेशनल इंस्टीटूट ऑफ़ हेल्थ- एनआईएच), यूएसए के साथ मिलकर जुलाई 1987 से संयुक्त रूप से भारत–अमेरिका वैक्सीन कार्य योजना (इंडो-यूएस वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम – वीएपी) के रूप में जाना जाने वाला एक केंद्रित द्विपक्षीय सहयोग कार्यक्रम लागू कर रहा है।
उद्देश्य:
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संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत गणराज्य के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौते को ध्यान में रखते हुए वर्तमान पांच वर्षीय वीएपी संयुक्त वक्तव्य को अब 2027 तक बढ़ा दिया गया है।
विवरण:
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यह बैठक 11 और 12 अक्टूबर, 2022 को बेथेस्डा, मैरीलैंड स्थित राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान परिसर में आयोजित की गई थी।
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संयुक्त कार्य समूह, भारत–अमेरिका वैक्सीन कार्य योजना की निगरानी करता है तथा इसमें भारत और अमेरिका के विशेषज्ञ और नीति निर्माता शामिल होते हैं जिसकी सह-अध्यक्षता भारतीय पक्ष से जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव द्वारा की जाती है।
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जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव जिसमें डीबीटी के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, भारत–अमेरिका वैक्सीन कार्य योजना के संयुक्त कार्य समूह की 34वीं बैठक तथा अन्य वैज्ञानिक परामर्शों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के दौरे पर हैं।
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आईआईपी ने नई वायुमंडलीय दबाव हाइड्रोजन मुक्त कम कार्बन डिसल्फराइजेशन प्रक्रिया की घोषणा की:
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: बुनियादी अवसरंचना-ऊर्जा।
प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) से सम्बंधित तथ्य।
प्रसंग:
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वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद – भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) ने कच्चे तेल और रिफाइनरी उत्पादों के लिए अपनी नई वायुमंडलीय दबाव हाइड्रोजन मुक्त कम कार्बन डिसल्फराइजेशन प्रक्रिया की घोषणा की।
विवरण:
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कच्चे तेल और कई पेट्रोलियम रिफाइनिंग धाराओं में गंधक (सल्फर) युक्त विषमचक्रीय सुगन्धित यौगिक (हेटेरोसाइक्लिक एरोमैटिक कंपाउंड्स-एससीएचएसी) होते हैं।
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ये वस्तुओं के क्षरण, ईंधन की खराब गुणवत्ता, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों और पर्यावरणीय समस्याओं के लिए उत्तरदायी होते हैं।
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इसलिए पेट्रोल, डीजल, जेट ईंधन, मिट्टी के तेल एवं ईंधन तेल जैसे रिफाइनरी उत्पादों को स्थायी अंतिम उपयोग से पहले गन्धंक (सल्फर) में कमी लाने के लिए आवश्यक शोधनात्मक उपचार की आवश्यकता होती है।
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परंपरागत रूप से इस तरह के परिशोधन एवं उपचार में महंगी उच्च दबाव वाली हाइड्रोजन गैस, उच्च तापमान संचालन और महत्वपूर्ण पूंजी निवेश शामिल होता है।
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इस समस्या का समाधान करने के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) द्वारा एक अनूठी एकल चरण (सिंगल- स्टेप) हाइड्रोजन- मुक्त डिसल्फराइजेशन प्रक्रिया विकसित की गई है।
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विभिन्न स्रोतों से प्राप्त कच्चे तेल और भारत में कई तेल शोधन संयंत्रों (रिफाइनरियों) से निष्कर्षित गंधक (सल्फर) युक्त उत्पादों का परीक्षण किया गया है; साथ ही उपचारित किए जा रहे तेल की विशिष्ट प्रकृति के आधार पर उसमें से विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से गंधक पदार्थ को 90 प्रतिशत तक हटाया जा सकता है।
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सीएसआईआर-आईआईपी की प्रक्रिया द्वारा एससीएचएसी घटकों से उत्पादित रूपांतरित सल्फर यौगिकों को सरल निस्पंदन प्रक्रिया के माध्यम से गंधक – मुक्त अशोधित तेल (डी -सल्फराइज्ड क्रूड) अथवा अन्य रिफाइनरी उत्पादों से आसानी से अलग किया जा सकता है और सड़क निर्माण तथा कोटिंग्स जैसे अनुप्रयोगों में बड़े पैमाने पर इसके प्रयोग की सम्भावना भी बनती है।
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ऐसी सहज एवं सस्ती प्रक्रिया परिवेशी दबावों और कम तापमान पर पेट्रोलियम उत्पादों के बड़ी मात्रा में प्रसंस्करण के लिए संभावित रूप से परिवर्तनकारी कम कार्बन एवं गंधक मुक्त (डिसल्फराइजेशन) समाधान प्रदान करती है।
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इसमें महंगे हाइड्रोजन के उपयोग के बिना, विशेष रूप से समुद्री एवं औद्योगिक ऊष्मायन (हीटिंग) अनुप्रयोगों के लिए, कच्चे तेल और रिफाइनरी उत्पादों के वर्तमान गंधक मुक्त विन्यास (डिसल्फराइजेशन कॉन्फ़िगरेशन) की प्राप्ति की लागत को प्रभावी तरीके से कम करने की क्षमता है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर):
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वर्ष 1960 में स्थापित वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) – भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की उन 37 घटक प्रयोगशालाओं में से एक है जो भारत के माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक स्वायत्त समिति (सोसायटी) भी है।
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सीएसआईआर-आईआईपी जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने, वैश्विक तेल और गैस क्षेत्र के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के साथ ही उसकी उपयोग दक्षता बढ़ाने, क्षमता निर्माण तथा कम कार्बन ऊर्जा संक्रमण के लिए प्रबुद्ध नेतृत्व में ऊर्जा उत्पादक एवं ऊर्जा उपयोगकर्ता उद्योगों की एक विस्तृत श्रृंखला के क्षेत्र में प्रौद्योगिकियों, उत्पादों और सेवाओं का विकास तथा उनकी उपलब्धता प्रदान करता है।
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धान की पराली के पेलेटाइजेशन और टॉरफेक्शन संयंत्रों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु
दिशा-निर्देश जारी:
सामान्य अध्ययन: 3
पर्यावरण:
विषय: वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने हेतु सरकार के हस्तक्षेप।
प्रारंभिक परीक्षा: पेलेटाइजेशन और टॉरफेक्शन संयंत्रों से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: पराली से उत्पन्न वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने में पेलेटाइजेशन और टॉरफेक्शन संयंत्रों का इस्तेमाल कितना प्रासंगिक हैं?
प्रसंग:
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केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए धान की पराली पर आधारित पेलेटाइजेशन और टॉरफेक्शन संयंत्रों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिए एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशानिर्देश जारी किए।
उद्देश्य:
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ये संयंत्र, एक बार स्थापित हो जाने के बाद, अप्रबंधित धान के भूसे के एक बड़े हिस्से का उपयोग करेंगे और फसल अवशेष जलाने एवं इसके परिणामस्वरूप पैदा होने वाली वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने में मदद करेंगे।
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इसमें ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार सृजित करने की क्षमता है।
विवरण:
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सरकार ने पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं और बड़ी मात्रा में धान की पराली का प्रबंधन अब प्राकृतिक रूप से और मानवीय हस्तक्षेप के प्रबंधन विकल्पों के माध्यम से किया जा रहा है।
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वर्ष 2022 के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (जीएनसीटी) दिल्ली सरकार के अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र- (एनसीआर) में स्थापित उद्योगों और तापीय ऊर्जा संयंत्रों को बायोमास आधारित पेलेट्स, टॉरफाइड पेलेट्स/ब्रिकेट्स (धान के भूसे पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ) को कोयले के साथ (5 से 10 प्रतिशत) और पीएनजी या बायोमास ईंधन का उपयोग करने के लिए वैधानिक निर्देश जारी किए गए हैं।
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इनसे बायोमास आधारित पेलेट की मांग में वृद्धि हुई है,हालांकि एग्रीगेटर्स/आपूर्तिकर्ताओं की धीमी/सीमित गति के कारण आपूर्ति कम मात्रा में हो रही है।
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इस प्रकार सीपीसीबी के दिशानिर्देश बायोमास आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण अंतर को समाप्त करेंगे।
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इन दिशानिर्देशों में भारत में बने उपकरणों को स्थापित करने का प्रस्ताव करने वाली इकाइयों को वरीयता दी गई है।
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धान की पराली की सुनिश्चित आपूर्ति तय करने के लिए उन इकाइयों को भी प्राथमिकता दी जाती है, जिनका राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के अंतर्गत आने वाले जिलों में स्थित किसानों के साथ समझौता किया है।
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सर्दियों के दौरान भारत के उत्तरी क्षेत्रों में धान की पराली जलाना, विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक के रूप में उभरा है।
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सीपीसीबी दिशानिर्देशों के अंतर्गत, केवल एनसीटी दिल्ली, पंजाब और हरियाणा राज्यों और राजस्थान व उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों में उत्पन्न धान के भूसे का उपयोग करके पेलेटाइजेशन और टॉरफेक्शन संयंत्रों को स्थापित करने में रुचि रखने वाले व्यक्ति/उद्यमी/कंपनियां पूंजी निवेश पर एकमुश्त अनुदान प्राप्त करने के लिए एक आवेदन जमा कर सकते हैं।
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इन दिशानिर्देशों के अंतर्गत नॉन-टॉरफाइड पेलेट संयंत्र के लिए अधिकतम अनुदान 14 लाख रुपये प्रति टन/घंटा और एक टॉरफाइड पेलेट संयंत्र के लिए अधिकतम अनुदान 28 लाख रुपये प्रति टन /घंटा प्रदान किया जा रहा है, जिसकी कुल सीमा नॉन-टॉरफाइड पेलेट संयंत्र के लिए 70 लाख रुपये और टॉरफाइड पेलेट संयंत्र के लिए 1.4 करोड़ रुपये तय की गई है।
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दिशा-निर्देशों के माध्यम से उपयोग के लिए एक कोष तैयार करने के लिए 50 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं।
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कोष के पूर्ण उपयोग को मानते हुए, हर वर्ष 1 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक धान की पराली पर आधारित पैलेट्स के उत्पादन होने की आशा है।
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अन्य हितधारकों के पूरक प्रयासों के साथ, दिशानिर्देशों से बिजली संयंत्रों और उद्योगों में धान के भूसे के उपयोग को बढ़ाने, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहयोग प्रदान करने व उद्यमिता की भावना को आगे बढ़ाने की आशा है।
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पानीपत में पहला 2G इथेनॉल संयंत्र प्रधानमंत्री ने दो महीने पहले राष्ट्र को समर्पित किया था।
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इस 2G इथेनॉल संयंत्र द्वारा हर वर्ष 2 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान के भूसे का उपयोग करने की आशा है।
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प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- ग्रामीण उद्यमी परियोजना:
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जनजातीय समुदायों के समावेशी तथा सतत विकास के लिए कौशल प्रशिक्षण बढ़ाने के उद्देश्य से ग्रामीण उद्यमी परियोजना शुरू की गई थी।
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इस पहल के तहत, लाभार्थियों को उनकी रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए कुशल और बहु-कुशल बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
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यह कार्यक्रम स्थानीय एवं ग्रामीण दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में रोजगार के अवसर प्रदान करने पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
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यह परियोजना छह राज्यों- महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड और गुजरात में चलाई जा रही है।
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इस पहल को माननीय कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्य मंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर, कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE), एसडीई और आदिवासी सांसदों द्वारा प्रारंभ किया गया था।
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प्रशिक्षुओं को इलेक्ट्रीशियन और सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने वाले तकनीशियन, दो पहिया वाहन की मरम्मत और रखरखाव यांत्रिकी के लिए सूचना प्रौद्योगिकी/आईटीईएस जैसे ई-गवर्नेंस कर्मचारियों तथा ऑर्गेनिक कृषि एवं मशरूम उत्पादक जैसी तमाम भूमिकाओं में प्रशिक्षित किया जा रहा है
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- प्रधानमंत्री ने हिमाचल प्रदेश के चंबा में दो जलविद्युत परियोजनाओं की आधारशिला रखी:
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प्रधानमंत्री ने 13 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के चंबा में दो जलविद्युत परियोजनाओं की आधारशिला रखी और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)-III का शुभारंभ किया।
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प्रधानमंत्री ने 48 मेगावाट की चंजू-III हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजना और 30 मेगावाट की देवथल चंजू हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजना की आधारशिला रखी।
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इन दोनों परियोजनाओं से वार्षिक रूप 270 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होगा और हिमाचल प्रदेश को इन परियोजनाओं से लगभग 110 करोड़ रुपये का वार्षिक राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है।
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प्रधानमंत्री ने राज्य में लगभग 3125 किलोमीटर सड़कों के उन्नयन के लिए हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)-III का भी शुभारंभ किया।
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केंद्र सरकार द्वारा इस चरण के तहत राज्य के 15 सीमावर्ती और दूर-दराज के ब्लॉकों में 440 किलोमीटर सड़कों के उन्नयन के लिए 420 करोड़ से अधिक रुपये स्वीकृत किए गए हैं।
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इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि 2014 तक, आजादी के बाद से 1800 करोड़ की लागत से 7000 किमी की लंबाई वाली ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया था, लेकिन पिछले 8 वर्षों में, 5000 करोड़ वित्तीय परिव्यय के साथ, 12000 किमी सड़कों का निर्माण किया गया है। शुरू की गई योजनाओं से 3000 किमी ग्रामीण सड़कें बनेंगी।
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इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने बल्क ड्रग पार्क की आधारशिला रखी और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) ऊना को राष्ट्र को समर्पित किया।
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इससे पहले प्रधानमंत्री ने अंब अंदौरा, ऊना से नई दिल्ली के लिए नई वंदे भारत एक्सप्रेस का शुभारंभ करते हुए उसे झंडी दिखाकर रवाना किया।
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- पांचवी साउथ एशियन जियोसाइंस कॉन्फ्रेंस ‘जियो इण्डिया 2022’ जयपुर में:
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प्राकृतिक गैस और तेल के बेहतर उत्पादन पर हुए नवीनतम शोधों को साझा करने के लिए तीन दिवसीय पांचवी साउथ एशियन जियोसाइंस कॉन्फ्रेंस जियो इण्डिया 2022 का आयोजन जयपुर में 14 अक्टूबर से आंरभ होगा।
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एसोसिएशन ऑफ पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट (APG) की ओर से आयोजित इस कॉन्फ्रेंस में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका, नॉर्वे और यूरोपीय संघ सहित अन्य देशों के सौ से अधिक विशेषज्ञ मुद्दों पर चर्चा करने और अपने अनुभव साझा करने के लिए भाग लेंगे।
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इस कॉन्फ्रेंस में भारत के अलावा अमेरिका, नॉर्वे, ब्रिटेन समेत अन्य देशों के सौ से अधिक भूविज्ञान और भूभौतिकी विशेषज्ञ शामिल होंग।
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सम्मेलन तेजी से बदलती दुनिया में ऊर्जा संक्रमण के संदर्भ में तेल और गैस की भूमिका पर विचार-मंथन करेगा।
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इसलिए, ‘फॉसिल (जीवाश्म) ईंधन, डीकार्बनाइजेशन और चेंजिंग एनर्जी डायनेमिक्स‘ को सम्मेलन के लिए एक विषय के रूप में चुना गया है।
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इस सम्मेलन में वैश्विक विशेषज्ञों द्वारा भविष्य में भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए हाइड्रोकार्बन के उत्पादन के साथ-साथ शून्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूर्ण चर्चा की जाएगी।
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गौरलतब है कि अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट (AAPG) 129 देशों में 40,000 से अधिक सदस्यों के साथ दुनिया के सबसे बड़े पेशेवर भूवैज्ञानिक समाजों में से एक है।
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AAPG भूविज्ञान के विज्ञान (पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, अन्य सबसरफेस लिक्विड और खनिज संसाधनों से संबंधित) को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है।
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आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से इन सामग्रियों की खोज और उत्पादन की तकनीक को बढ़ावा देने और अपने सदस्यों के पेशेवर कल्याण को आगे बढ़ाने के लिए यह संगठन कार्यरत है।
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एसोसिएशन ऑफ पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट (APG) इंडिया AAPG की भारत शाखा है। यह पेट्रोलियम भूवैज्ञानिकों और इंजीनियरों को चर्चा करने, विचार-विमर्श करने और भू-विज्ञान से संबंधित सार्थक शैक्षिक और वैज्ञानिक कार्यक्रमों या परियोजनाओं का समर्थन करने के तरीकों और साधनों की योजना बनाने के लिए एक मंच पर लाता है।
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यह पेट्रोलियम भूविज्ञान के विज्ञान की प्रगति और आर्थिक तथा पर्यावरणीय रूप से सार्थक तरीके से अन्वेषण और उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
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13 अक्टूबर 2022 : PIB विश्लेषण –Download PDF Here
लिंक किए गए लेख में 12 अक्टूबर 2022 का पीआईबी सारांश और विश्लेषण पढ़ें। सम्बंधित लिंक्स:
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