विषयसूची:
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1. प्रधानमंत्री ने शिलांग में पूर्वोत्तर परिषद की बैठक को संबोधित किया:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय:सरकारी नीतियां और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
प्रारंभिक परीक्षा: पूर्वोत्तर परिषद (NEC),’लुक ईस्ट’ नीति से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: ‘एक्ट ईस्ट’ ‘एक्ट फास्ट फॉर नॉर्थईस्ट’, ‘एक्ट फर्स्ट फॉर नॉर्थईस्ट’ का देश के पूर्वोत्तर भाग पर प्रभाव एवं इसके विकास में महत्व।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री ने 18 दिसंबर को शिलांग में पूर्वोत्तर परिषद (NEC) की बैठक को संबोधित किया।
उद्देश्य:
- यह बैठक पूर्वोत्तर परिषद के स्वर्ण जयंती समारोह का प्रतीक है, जिसका औपचारिक उद्घाटन 1972 में हुआ था।
विवरण:
- प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए हमारा प्रवेश द्वार है और पूरे क्षेत्र के विकास का केंद्र बन सकता है।
- इस क्षेत्र की इस संभावना को साकार करने के लिए भारतीय-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और अगरतला-अखौरा रेल परियोजना जैसी परियोजनाओं पर काम चल रहा है।
- सरकार ‘लुक ईस्ट’ नीति को ‘एक्ट ईस्ट’ में बदलने से आगे निकल गई है, और अब इसकी नीति ‘एक्ट फास्ट फॉर नॉर्थईस्ट’ और ‘एक्ट फर्स्ट फॉर नॉर्थईस्ट’ है।
- इस क्षेत्र में कई शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं, अंतरराज्यीय सीमा समझौते किए गए हैं और उग्रवाद की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र को 8 राज्यों को अष्ट लक्ष्मी के रूप में संदर्भित किया जाता हैं।
- सरकार को इसके विकास के लिए 8 आधार स्तंभों, अर्थात – शांति, बिजली, पर्यटन, 5जी कनेक्टिविटी, संस्कृति, प्राकृतिक खेती, खेल की क्षमता पर काम करना चाहिए।
- नेट जीरो के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर जलविद्युत का पावरहाउस बन सकता है।
- इससे क्षेत्र के राज्यों को अतिरिक्त बिजली मिलेगी, उद्योगों के विस्तार में मदद मिलेगी और बड़ी संख्या में रोजगार सृजित होंगे।
- इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए पिछले 8 वर्षों में, इस क्षेत्र में हवाई अड्डों की संख्या 9 से बढ़कर 16 हो गई है, और उड़ानों की संख्या 2014 से पहले लगभग 900 से बढ़कर लगभग 1900 हो गई है।
- कई पूर्वोत्तर राज्य पहली बार रेलवे मानचित्र पर आए हैं और जलमार्गों के विस्तार के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
- इस क्षेत्र में 2014 के बाद से राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
- पीएम-डिवाइन योजना के शुभारंभ के साथ ही पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को और गति मिली है।
- क्षेत्र की कृषि से जुड़ी संभावना के बारे में चर्चा करते हुए, प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक खेती पर जोर दिया, जिसमें पूर्वोत्तर एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
- कृषि उड़ान के माध्यम से क्षेत्र के किसान अपने उत्पादों को देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भी भेज सकते हैं।
- पूर्वोत्तर राज्यों से खाद्य तेलों पर चल रहे राष्ट्रीय मिशन – ऑयल पाम में भाग लेने का आग्रह किया।
- उन्होंने यह भी बताया कि कैसे ड्रोन किसानों को भौगोलिक चुनौतियों से उबरने और उनकी उपज को बाजार तक पहुंचाने में मदद कर सकते हैं।
पृष्ठ्भूमि:
- पूर्वोत्तर परिषद (NEC) भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए बनी एक आधारभूत संस्था है।
- इसकी स्थापना संसदीय अधिनियम के तहत भारत की केन्द्र सरकार ने सन् 1971 में की थी।
- इसके सदस्य भारत के पूर्वोत्तर के आठ राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैण्ड, सिक्किम और त्रिपुरा हैं और इनके मुख्यमंत्री राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- इसका मुख्यालय शिलांग में स्थित है एवं यह पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (भारत सरकार) के अन्तर्गत आता है।
2. मुंबई में पी15बी क्लास का दूसरा युद्धपोत स्वदेशी स्टील्थ गाइडेड-मिसाइल डिस्ट्रॉयर आईएनएस मोरमुगाओ कमीशन किया गया:
सामान्य अध्ययन: 3
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारत कि उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
प्रारंभिक परीक्षा:आईएनएस मोरमुगाओ से सम्बंधित तथ्य।
प्रसंग:
- रक्षा मंत्री की उपस्थिति में स्टील्थ गाइडेड-मिसाइल डिस्ट्रॉयर पी15बी वर्ग के दूसरे युद्धपोत भारतीय नौसेना जहाज (आईएनएस) मोरमुगाओ (डी67) को 18 दिसम्बर, 2022 को मुंबई में नौसेना डॉकयार्ड में कमीशन किया गया।
उद्देश्य:
- समारोह के दौरान भारतीय नौसेना के संस्थानिक संगठन वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए और मुंबई के मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) द्वारा निर्मित चार ‘विशाखापत्तनम’ श्रेणी के विध्वंसक में से दूसरे का औपचारिक रूप से समावेशन किया गया।
- 75 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ, यह युद्धपोतों के डिजाइन और विकास में भारत की उत्कृष्टता और हमारी बढ़ती स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमताओं का एक बेहतरीन उदाहरण है।
- यह युद्धपोत हमारे देश के साथ-साथ विश्व भर में हमारे मित्र देशों की वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
विवरण:
- रक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में आईएनएस मोरमुगाओ सबसे शक्तिशाली स्वदेश निर्मित युद्धपोतों में से एक है,जो देश की समुद्री क्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगा और राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करेगा।
- आईएनएस मोरमुगाओ विश्व के सबसे तकनीकी रूप से उन्नत मिसाइल वाहकों में से एक है।
स्वदेशी कंटेंट के साथ स्टील्थ फायर पावर और गतिशीलता:
- 7,400 टन के डिस्प्लेसमेंट के साथ लंबाई में 163 मीटर और चौड़ाई में 17 मीटर का आईएनएस मोरमुगाओ परिष्कृत अत्याधुनिक हथियारों और सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल जैसे सेंसर से सुसज्जित है।
- जहाज में एक आधुनिक निगरानी रडार लगा है जो तोपखाना हथियार प्रणालियों को लक्षित डेटा प्रदान करता है।
- इसकी एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमताएं स्वदेशी रूप से विकसित रॉकेट लॉन्चर्स, टॉरपीडो लॉन्चर्स और एएसडब्ल्यू हेलिकॉप्टरों द्वारा प्रदान की जाती हैं।
- पश्चिमी तट पर ऐतिहासिक बंदरगाह शहर गोवा के नाम पर नामित, यह जहाज परमाणु, जैविक और रासायनिक युद्ध स्थितियों में लड़ने के लिए सुसज्जित है।
- यह एक संयुक्त गैस और गैस विन्यास में चार शक्तिशाली गैस टर्बाइनों द्वारा संचालित है, जो 30 समुद्री मील से अधिक की गति प्राप्त करने में सक्षम है।
- जहाज में स्टील्थ विशेषताओं को बढ़ाया गया है जिसके परिणामस्वरूप रडार क्रॉस सेक्शन कम हो गया है। आईएनएस मोरमुगाओ में लगभग 300 कर्मी हैं।
- 75 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी कंटेंट के साथ, उसके सभी प्रमुख हथियार और सेंसर या तो सीधे भारतीय मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) द्वारा डिजाइन और विकास के माध्यम से या रणनीतिक गठजोड़ और प्रतिष्ठित विदेशी ओईएम के साथ प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के माध्यम से भारत में विकसित और निर्मित किए गए हैं।
पी15बी विध्वंसक:
- पी15बी विध्वंसक बेहतर उत्तरजीविता, समुद्री रख-रखाव और गतिशीलता के लिए नई डिजाइन अवधारणाओं को शामिल करता है।
- इसमें बेहतर स्टील्थ भी अर्जित किया गया है, जिससे जहाजों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
- उल्लेखनीय रूप से बढ़े हुए स्वदेशी कंटेंट के साथ, पी15बी विध्वंसक युद्धपोत डिजाइन और निर्माण में आत्मनिर्भरता की पहचान है और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का एक बेहतरीन उदाहरण है।
विजन और लक्ष्य:
- हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लगातार बदलते रहने के साथ, जहाज की सभी डोमेन क्षमता किसी भी मिशन या कार्य को पूरा करने के लिए भारतीय नौसेना की गतिशीलता, पहुंच और लचीलेपन को बढ़ाएगी।
- नौसेना में जहाज का शामिल होना इस क्षेत्र में फर्स्ट रिस्पान्डर और पसंदीदा सुरक्षा भागीदार बने रहने की भारत की बढ़ती क्षमता को भी दर्शाता है।
इतिहास:
- इस जहाज को 17 सितम्बर, 2016 को लॉन्च किया गया था और 19 दिसम्बर, 2021 को गोवा मुक्ति के 60 साल पूरे होने पर समुद्री परीक्षण शुरू किया गया था।
- 18 दिसम्बर को इसकी कमिशनिंग महत्वपूर्ण है क्योंकि 1961 में इसी तिथि को गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त करने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया गया था।
- श्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में पूर्व रक्षा मंत्री दिवंगत मनोहर पर्रिकर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जो गोवा के रहने वाले थे और जिन्होंने 2016 में आईएनएस मोरमुगाओ लॉन्च किया था।
- निवेश फर्म मॉर्गन स्टैनली की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले पांच साल में हम शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होंगे।
- आईएनएस मोरमुगाओ की कमिशनिंग भारत द्वारा पिछले एक दशक में युद्धपोत डिजाइन और निर्माण क्षमता में की गई बड़ी प्रगति का संकेत है।
- युद्धपोत ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ पहल का एक सच्चा उदाहरण है और यह वैश्विक जहाज निर्माण हब में भारत के रूपांतरण में सहायता करने की नौसेना की प्रतिबद्धता सुदृढ़ बनाता है।
- यह युद्धपोत अपनी बहुआयामी लड़ाकू क्षमता के साथ पश्चिमी बेड़े का हिस्सा बनेगा, जो भारतीय नौसेना की सबसे शक्तिशाली शाखा है।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1.वैज्ञानिक प्रकाशनों की वैश्विक श्रेणी में भारत तीसरे स्थान पर पहुँचा:
- भारत वैज्ञानिक प्रकाशनों की वैश्विक श्रेणी में 7वें स्थान छलांग लगा कर से तीसरे स्थान पर पहुँच गया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) के विज्ञान और इंजीनियरिंग संकेतक 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिक प्रकाशनों में विश्व स्तर पर भारत की स्थिति 2010 में 7वें स्थान से सुधर कर 2020 में तीसरे स्थान पर आ गई है।
- भारत के विद्वानों का कार्य 2010 में 60,555 शोध प्रपत्रों (पेपर्स) से बढ़कर 2020 में 1,49,213 शोध प्रपत्र (पेपर) हो गया है।
- भारत अब विज्ञान और इंजीनियरिंग में शोध (पीएचडी) की संख्या के मामले में तीसरे स्थान पर है।
- पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत पेटेंट कार्यालय (आईपीओ) में भारतीय वैज्ञानिकों को दिए गए पेटेंट की संख्या भी 2018-19 के 2511 से बढ़कर 2019-20 में 4003 और 2020-21 में 5629 हो गई है।
- नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो विज्ञान और इंजीनियरिंग के सभी गैर-चिकित्सा क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान और शिक्षा का समर्थन करती है।
- अब यह याद किया जा सकता है कि विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) द्वारा लाए गए वैश्विक नवाचार सूचकांक ( ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स – जीआईआई ) 2022 के अनुसार, भारत की जीआईआई श्रेणी में भी 2014 के 81वें स्थान से 2022 में 40वें स्थान पर पहुँचने का महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को आगामी केंद्रीय बजट 2023-24 में पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक धन मिलने की संभावना है।
- पिछले बजट में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ( डीएसटी ) को 6,002 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को आवंटित कुल 14,217 करोड़ रुपये के कोष का 42 प्रतिशत था।
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान विभाग (डीएसआईआर) को 5,636 करोड़ रुपये (40 प्रतिशत) मिले, जबकि जैव-प्रौद्योगिकी विभाग ( डीबीटी ) को 2,581 करोड़ रुपये (18 प्रतिशत ) मिले।
- सरकार ने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के प्रावधान के अंतर्गत कॉर्पोरेट क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने की अनुमति दी है।
- कॉर्पोरेट्स अपने सीएसआर के एक भाग के रूप में प्रौद्योगिकी व्यवसाय ऊष्मायकों (इन्क्यूबेटर्स) में निवेश कर सकते हैं या अन्य संस्थानों और राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं द्वारा किए गए अनुसंधान प्रयासों में अपना योगदान दे सकते हैं।
- इसके लिए विशिष्ट निवेश प्रोत्साहन की पेशकश की जाती है जैसे स्थान- आधारित कर प्रोत्साहन जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उद्योग स्थापित करने तथा व्यवसाय करने से उत्पन्न लाभ की 100 प्रतिशत कटौती को सक्षम बनाता है।
2.भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन के 7वें संस्करण का समापन:
- जल संरक्षण और नदी कायाकल्प के महत्वपूर्ण पहलुओं पर आयोजित तीन दिवसीय भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन का 7वां संस्करण उपयोगी विचार-विमर्श के बाद 17 दिसंबर, 2022 को संपन्न हुआ।
- इसमें बड़े बेसिनों के संरक्षण के लिए छोटी नदियों के पुनरुद्धार पर विशेष जोर दिया गया।
- इस सम्मेलन के तीसरे और अंतिम दिन जल, पर्यावरण और प्रशासनिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से देश में एक राष्ट्रीय नदी ढांचा बनाने की तत्काल जरूरत पर सहमति व्यक्त की।
- यह ढांचा नदी की स्वच्छता, प्रक्रिया और उत्तरदायित्व की निगरानी के लिए मानदंड निर्धारित करेगा।
- इसके अलावा सभी विशेषज्ञों के इस पर एकसमान विचार थे कि केवल जैव रासायनिक मापदंडों के आधार पर नदी की स्वच्छता की दिशा का पता नहीं लगाया जा सकता है।
- नदी में मौजूद जलीय जीवन की स्थिति नदी के स्वास्थ्य का सूचक हो सकती है।
- इस प्रक्रिया में व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नदी में विकसित विदेशी प्रजातियों की जगह जलीय जीवन की स्वदेशी प्रजातियों को शामिल किया जाना चाहिए।
- एनएमसीजी के महानिदेशक ने भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन के 7वें संस्करण के समापन सत्र की अध्यक्षता की।
- सभी हितधारकों के बीच एक राष्ट्रीय नदी ढांचा तैयार करने की जरूरत पर सहमति बनी हैं।
- साथ ही जल से संबंधित मुद्दों पर आधिकारिक सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक प्रणाली स्थापित करने की काफी अधिक जरूरत महसूस की गई।
- इस सम्मेलन के समापन दिवस पर आयोजित ए3 सत्र ‘नदी निगरानी कार्यक्रमों के निर्माण और कार्यान्वयन’ पर केंद्रित था।
- इस सत्र का उद्देश्य नदियों के उद्धार और संरक्षण कार्यक्रमों में चुनौतियों का निर्धारण करना था।
- वहीं, ई2 सत्र की विषयवस्तु ‘छोटी नदियों के कायाकल्प पर भूमि उपयोग के प्रभाव’ थी।
- इस सत्र में रेखांकित किया गया कि कैसे सबसे छोटी धारा की स्वच्छता का अगले क्रम की धारा पर प्रभाव पड़ता है और यह जलीय जैव विविधता की समृद्ध विविधता लाने के लिए जिम्मेदार है।
- इस सत्र की चर्चा में खराब भूमि उपयोग योजना व विकास के प्रतिकूल प्रभावों से छोटी नदियों को बचाने के लिए नीतियों, हस्तक्षेपों और रणनीतियों के प्रारूपण के महत्व को प्रदर्शित किया गया।
- इसे अलावा A4 सत्र सूचना/डेटा मिलान, उपयोगिता व प्रसार रणनीति और सी5 सत्र भौतिक/हाइब्रिड मॉडल पर आधारित था।
- इस सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय विषय पर आयोजित चर्चा में यूरोपीय संघ, नॉर्वे, जर्मनी और स्लोवेनिया के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों ने सर्वसम्मति से इस बात पर सहमति व्यक्त की कि भौगोलिक विविधता के तहत नदी और बेसिन प्रबंधन भारत को नदी विज्ञान की एक प्राकृतिक प्रयोगशाला बनाता है।
- 7वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन (आईडब्ल्यूआईएस- 2022) की विषयवस्तु ‘5पी’- लोग, नीति, योजना, कार्यक्रम और परियोजना के मानचित्रण व सम्मिलन’ के चुनिंदा पहलुओं पर जोर देने के साथ ‘एक बड़े बेसिन में छोटी नदियों का उद्धार और संरक्षण’ है।
18 December PIB :- Download PDF Here
लिंक किए गए लेख में 17 दिसंबर 2022 का पीआईबी सारांश और विश्लेषण पढ़ें।
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