30 अप्रैल 2022 को विश्व पशु चिकित्सा दिवस मनाया गया | प्रतिवर्ष अप्रैल महीने के आखिरी शनिवार को यह दिवस मनाया जाता है जिसका उद्देश्य पशु स्वास्थ्य -देखभाल और पशु -क्रूरता को रोकने के लिए कदम उठाने के बारे में लोगों को जागरूक करना है। विश्व पशु चिकित्सा दिवस- 2022 की थीम है ‘पशु चिकित्सा को मजबूत करना’ (Strengthening Veterinary Resilience)।
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विश्व पशु चिकित्सा दिवस का इतिहास :
विश्व पशु चिकित्सा दिवस की पृष्ठभूमि बहुत पुरानी है | 1863 में सर्वप्रथम जर्मनी के एक प्रख्यात चिकित्सक जॉन गैम्जी (John Gamjee) ने यूरोप के प्रमुख पशु चिकित्सकों को एक बैठक के लिए आमंत्रित किया । इस बैठक का नाम “विश्व पशु चिकित्सा सम्मेलन” (इंटरनेशनल वेटरीनरी कांग्रेस) रखा गया। 1906 में इसी विश्व पशु चिकित्सा सम्मेलन के 8वें सत्र में इसके सदस्यों ने एक स्थायी समिति का गठन किया । सम्मेलन के 15वें सत्र (स्टॉकहोम में आयोजित) में स्थायी समिति और अन्य सदस्यों ने संगठन का विस्तार करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया जिसके तहत 1959 में मैड्रिड में आयोजित अगले सत्र में विश्व पशु चिकित्सा संघ की स्थापना की गई। 2001 में इस विश्व पशु चिकित्सा संघ ने ही अप्रैल महीने के अंतिम शनिवार को विश्व पशु चिकित्सा दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया। अत: 2001 से प्रतिवर्ष अप्रैल महीने के आखिरी शनिवार को यह दिवस मनाया जा रहा है |
पशुचिकित्सा की आवश्यकता क्यों ?
आज के परिवेश में पशु स्वास्थ्य के मामलों में निम्नलिखित चुनौतियाँ है जिनके कारण इस क्षेत्र में कार्य किये जाने की आवश्यकता है :-
निवास स्थान संकट (habitat loss) : तेजी से बढ़ते शहरीकरण,विकास और इनके कारण बदलती मानवीय जीवन-शैली ने आज पशुओं के सामने निवास स्थान संकट की गंभीर समस्या उत्पन्न कर दी है | इसके कारण उनका मानव के साथ टकराव भी बढ़ा है क्योंकि प्रकृति में पालतू पशुओं की संख्या कम और वनचरों की संख्या अधिक है | (आजकल सरकार द्वारा और कई बार गैर -सरकारी संस्थाओं द्वारा भी ऐसे पशुओं की चिकित्सा के लिए कई रेस्क्यू सेंटर स्थापित किये गये हैं ) |
जलवायु परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन एक अन्य समस्या है जिसके कारण पशुओं की कई प्रजातियाँ अपनी अनुकूलता में असमर्थ हैं और कई प्रकार की व्याधियों से ग्रसित हो जाती हैं |
दवाइयों /कीट-नाशकों / पीड़कों इत्यादि का अति प्रयोग (overuse) : हम कई बार कृषि या पशुपालन में विभिन्न प्रकार की दवाइयों ,कीट-नाशकों या पीड़कों इत्यादि का प्रयोग करते हैं जो कि जीव-ज्नातुओं के लिए घातक सिद्ध होते हैं | इसका सबसे अच्छा उदाहरण गिद्धों की लुप्त होती संख्या है | एक समय था जब भारत में गिद्धों की अच्छी संख्या हुआ करती थी | किंतु आज ये अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष -रत हैं | इसका कारण यह है कि अधिकांश पशुपालक अपने मवेशियों को एक दर्द -निवारक दवा (painkiller) डैक्लोफेनाक देते हैं जिनका संचयन उनके शरीर में हो जाता है | जब गिद्ध इन जानवरों की लाशों को खाते हैं तब ये दवा उनके गुर्दों में संचयित हो जाती है और उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं | ऐसी स्थिति में उनकी मौत हो जाती है | ऐसे गिद्धों के रेस्क्यू व संरक्षण के लिए हरियाणा के पिन्जोर में एक बचाव केंद्र की स्थापना भी की गई है |
प्राकृतिक कारण : पशुचिकित्सा की आवश्यकता केवल मानव-जनित कारणों से ही नहीं बल्कि प्राकृतिक कारणों से भी है | पालतू पशु भी अक्सर व्याधियों के शिकार होते हैं और उन्हें भी चिकित्सा की आवश्यकता होती है |
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