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ग्राम सभा और ग्राम पंचायत : एक समग्र अवलोकन

पृष्ठभूमि

  • भारत में पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ सबसे पहले विधिवत तरीके से राजस्थान में किया गया था। देश में सबसे पहले पंचायती राज व्यवस्था का उद्घाटन 2 अक्टूबर, 1959 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले में किया गया था। पंचायती राज व्यवस्था महात्मा गांधी के राजनीतिक विकेंद्रीकरण के दर्शन का एक महत्वपूर्ण घटक था। महात्मा गांधी पंचायती राज व्यवस्था को स्थापित करने के प्रबल समर्थक रहे थे।
  • आजादी के बाद विभिन्न सरकारें पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक स्वरूप देने के संदर्भ में विभिन्न समितियां गठित करती रही थी। अधिकांश समितियों ने पंचायती राज व्यवस्था को संविधानिक दर्जा प्रदान करने की बात कही थी। इसके परिणाम स्वरूप अंततः वर्ष 1992 में भारतीय संसद ने 73 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया था और इसके माध्यम से पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया था।
  • इस 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया था। इसके तहत ग्रामीण स्तर पर ग्राम सभा और ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद के गठन का प्रावधान किया गया था। आज के अपने आलेख में हम ग्राम सभा और ग्राम पंचायत से जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

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ग्राम सभा परिचय

  • ग्राम सभा ग्रामीण स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई है। 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम के अंतर्गत ग्राम सभा को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार ग्राम सभा को एक ऐसे निकाय के रूप में परिभाषित किया गया है, जो ग्रामीण क्षेत्र में 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके समस्त मतदाताओं से मिलकर निर्मित होता है। यह निकाय कभी भी घटित नहीं होता है। इसका अर्थ है कि यह एक स्थाई निकाय होता है।
  • सरल शब्दों में कहें, तो 18 वर्ष से ऊपर के सभी मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते हैं और इन सभी मतदाताओं के समूह को ही ग्राम सभा कहा जाता है। ग्राम सभा के यह सदस्य ही ग्रामीण स्तर पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। यह लोग पंच, सरपंच इत्यादि प्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष चुनाव करते हैं।

ग्राम सभा की विशेषताएँ

  • ग्राम सभा मुख्यतः एक निगरानी निकाय होता है। यह ग्राम पंचायत द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर नज़र रखती है।
  • यह स्थाई निकाय कभी भंग नहीं होता है और समस्त मतदाता इसके आजीवन सदस्य होते हैं।
  • प्रत्येक ग्राम सभा के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा एक ग्राम विकास अधिकारी नियुक्त किया जाता है। यह अधिकारी ग्राम सभा के सदस्यों के प्रति उत्तरदाई होता है।

ग्राम सभा के कार्य

  • ग्राम सभा मुख्य रूप से ग्राम पंचायत द्वारा किए जाने वाले सभी कार्यों की निगरानी करती है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्राम पंचायत द्वारा गांव के विकास के लिए किए जाने वाले कार्यों का पर्यवेक्षण करना होता है।
  • ग्राम सभा के सदस्य ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव भी करते हैं।
  • इसका कार्य ग्रामीण स्तर पर गांव के विकास के लिए चुनी गई सरकारों को विकास परियोजनाओं व कार्यक्रमों संबंधी सुझाव देना होता है।
  • इसका कार्य विकास परियोजनाओं के लिए पात्र अभ्यर्थियों की पहचान करना और उन्हें योजनाओं का लाभ दिलाना होता है।
  • ग्राम सभा ग्राम पंचायत से उसकी आय और व्यय का ब्यौरा मांग सकती है।
  • अनेक अवसरों पर ग्राम सभा विकास परियोजनाओं में श्रमदान करके ग्रामीण विकास को गति प्रदान करती है।
  • ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा ग्राम पंचायत द्वारा किए गए विकास कार्यों की निगरानी करने के लिए एक निगरानी समिति बनाई जाती है। ग्रामसभा उसकी रिपोर्ट पर विचार विमर्श करती है और उससे संबंधित अपनी सिफारिशें देती है।
  • इसके अलावा ग्राम सभा स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवार कल्याण आदि के संबंध में भी ग्राम पंचायत का सहयोग करती है।

ग्राम पंचायत परिचय

  • ‘ग्राम पंचायत’ पंचायती राज व्यवस्था की सबसे छोटी निर्वाचित इकाई होती है। ग्राम पंचायत के सदस्यों का निर्वाचन ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव 5 वर्षों के लिए होता है। पंचायती राज व्यवस्था के लिए चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग की होती है। वास्तव में, प्रत्येक राज्य में ‘राज्य चुनाव आयोग’ का गठन पंचायती राज चुनावों को संपन्न कराने के लिए ही किया गया है।
  • प्रत्येक ग्राम पंचायत का मुखिया एक सरपंच होता है। विभिन्न राज्यों में सरपंच का पद नाम अलग अलग हो सकता है। इसके अलावा, ग्राम पंचायत को विभिन्न वार्ड में विभक्त किया जाता है। वार्ड की संख्या का निर्धारण गांव की जनसंख्या के आधार पर किया जाता है। प्रत्येक वार्ड का प्रतिनिधित्व एक पंच के द्वारा किया जाता है। ग्राम पंचायत स्तर पर समस्त पंचों का मुखिया सरपंच होता है। पंच और सरपंच दोनों का ही चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से किया जाता है। अतः सभी वार्ड पंचों और सरपंच से मिलकर ग्राम पंचायत का गठन होता है।

ग्राम पंचायत की विशेषताएँ

  • ग्राम पंचायत ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित संस्था है। यह ग्राम सभा के प्रति उत्तरदाई होती है।
  • इसके सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। यह संस्था ग्रामीण विकास संबंधी योजनाओं का क्रियान्वयन करती है।
  • यदि किसी कारणवश ग्राम पंचायत 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती है और अगली ग्राम पंचायत के चुनाव होने में 6 माह से अधिक का समय शेष रहता है, तो ऐसी स्थिति में, ग्राम पंचायत के भंग होने की तिथि से 6 माह की अवधि के भीतर संबंधित राज्य निर्वाचन आयोग को उन्हें चुनाव कराना होता है और नवगठित ग्राम पंचायत केवल शेष कार्यकाल के लिए ही अस्तित्व में रहती है। नवगठित ग्राम पंचायत का कार्यकाल 5 वर्षों का नहीं होता है।
  • राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक पंचायत समिति के लिए एक पंचायत सचिव की नियुक्ति की जाती है, जो ग्राम पंचायत के प्रति उत्तरदाई होता है।

ग्राम पंचायत के कार्य

  • ग्राम पंचायत एक कार्यकारी संस्था है। इसका मुख्य कार्य सरकार द्वारा आवंटित किए गए बजट का उपयोग करके ग्रामीण विकास को सुनिश्चित करना होता है।
  • 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से ग्राम पंचायत को 29 विषय सौंपे गए हैं। इसके तहत ग्रामीण सड़कों को पक्का करना, गंदे पानी के निकास की व्यवस्था करना, घरेलू उपयोग और पशुओं के लिए पेयजल की व्यवस्था करना, तालाबों का रखरखाव व सिंचाई के साधनों की व्यवस्था करना आदि शामिल हैं।
  • इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में मेले, हाट, खेलों आदि के लिए सार्वजनिक स्थल की व्यवस्था करना, ग्रामीण चौपाल व गलियों में प्रकाश का प्रबंध करना, जन्म-मृत्यु, विवाह आदि का रिकॉर्ड रखना, सार्वजनिक शौचालय बनवाना, प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देना आदि भी ग्राम पंचायत के प्रमुख कार्य हैं।

अतः कहा जा सकता है कि ग्राम पंचायत और ग्राम सभा में एक अटूट संबंध होता है। ग्राम पंचायत जिन विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन करती है, ग्रामसभा उन परियोजनाओं की निगरानी करती है। इसके अलावा, ग्राम सभा ग्राम पंचायत को विभिन्न विकास परियोजनाओं के विषय में सहयोग व सुझाव भी प्रदान करती है। समेकित रूप में, दोनों संस्थाएं देश के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में अभूतपूर्व भूमिका निभा रही हैं।

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