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अर्थ ओवरशूट डे

अर्थ ओवरशूट डे (earth overshoot day) किसी साल की वह तारीख है, जब प्रकृति के द्वारा पूरे साल भर में सृजित होने वाले संसाधानों का पूरा उपभोग कर लिया जाता है । इस प्रकार साल के बाकी दिन हमारी ज़रूरतें पहले से प्रकृति में संरक्षित संसाधनों से पूरी होती हैं । अर्थ ओवरशूट डे के आधार पर हम प्राकृतिक संसाधनों के दोहन  का अनुमान लगा सकते हैं । इसका आकलन ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क (GFN) की तरफ से होता है । ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क एक अंतर्राष्ट्रीय गैर- लाभकारी संगठन है जिसकी स्थापना 2003 में हुई थी । इसका मुख्यालय ऑकलैंड में है । आइये इस लेख में अर्थ ओवरशूट डे से सम्बद्ध महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करते हैं । हिंदी माध्यम में UPSC से जुड़े मार्गदर्शन के लिए अवश्य देखें हमारा हिंदी पेज  IAS हिंदी

नोट : यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे  UPSC Prelims Syllabus in Hindi का अच्छी तरह से अध्ययन कर लें, और इसके बाद ही  अपनी तैयारी की योजना बनाएं ।

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अर्थ ओवरशूट डे का आकलन

हम उर्जा प्राप्त करने के लिए संसाधनों का उपयोग करते हैं । पृथ्वी में संसाधनों को पुन: उत्पन्न करने की क्षमता है, लेकिन हम एक निश्चित समय के भीतर पृथ्वी के संसाधनों का जितना उपयोग करते हैं, वह पृथ्वी की उस क्षमता से अधिक है । अर्थ ओवरशूट डे एक वर्ष की गणना की गई निर्दिष्ट तारीख को संदर्भित करता है । शब्द ‘ओवरशूट’ उस अतिरेक आंकड़े को दर्शाता है जिसके द्वारा मनुष्य की मांग पुनर्जीवित संसाधनों से अधिक हो जाती है । इस अवधारणा पर आर्थिक दृष्टिकोण तब प्रकाश डालता है जिस दिन ग्रह का वार्षिक पुनर्योजी बजट खर्च किया जाता है, जिससे मानवता पर्यावरण घाटे की खर्च की स्थिति में प्रवेश करती है । यह आने वाली पीढ़ियों को कमजोर बनाने के साथ-साथ स्थिरता पर सवाल उठाता है । यहीं सतत विकास की अवधारणा महत्वपूर्ण हो जाती है ।

सतत विकास क्या है?

आइये इसे ऐसे समझते हैं । हम यदि धरती पर उपलब्ध संसाधनों का अचानक अति दोहन शुरू कर दें तो इससे क्या होगा? शीघ्र अवधि के लिए तो आर्थिक विकास की उच्च दर हमें दिखाई देगी लेकिन जल्दी ही संसाधन समाप्त हो जाएँगे और फिर सारी गतिविधियाँ रुक जाएंगी । कहने का अर्थ यह  है कि ऐसा विकास सतत या टिकाऊ (sustainable) नहीं होगा । सतत विकास को इस विचार के रूप में संदर्भित किया जाता है कि मनुष्य को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करके बनाए रखना चाहिए, साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आने वाली पीढ़ियां अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हों । दूसरे शब्दों में, यह समाज को संगठित करने का एक तरीका है जिसके द्वारा यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों की उपलब्धता से समझौता किए बिना लंबे समय तक मौजूद रह सकता है ।

सतत विकास के लिए, सामाजिक और आर्थिक समानता बनाए रखने के साथ-साथ पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण जैसे कारकों का पालन करने की आवश्यकता है । सतत विकास की अवधारणा को पर्यावरणीय रूप से सतत आर्थिक विकास के रूप में भी संदर्भित किया जा सकता है । सतत विकास आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाता है ।

पिछले दशकों में हमने देखा है कि आर्थिक विकास ने पर्यावरण पर बहुत बुरा असर डाला है । ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण वायु गुणवत्ता में गिरावट और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं । इन सभी कारकों ने सतत विकास की आवश्यकता को जन्म दिया ।

सतत विकास के उद्देश्य-

  1. आर्थिक विकास: एक ऐसी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जो टिकाऊ हो और सही दिशा में बढ़ रही हो ।
  2. पर्यावरण की रक्षा करना: यह उद्देश्य प्रदूषण और कचरे को कम करके, वैश्विक कार्बन पदचिह्न को कम करने की दिशा में काम करके, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और बढ़ाने के लिए मानव द्वारा योगदान पर केंद्रित है ।
  3. सामाजिक समावेशन: यह उद्देश्य भविष्य की पीढ़ियों के लिए आवास की सुविधा प्रदान करने और स्वस्थ, मजबूत और जीवंत वैश्विक समुदायों को बनाने में सहायता करने पर केंद्रित है ।
  4. उपलब्ध संसाधनों का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने की दिशा में काम करना ।
  5. पर्यावरण के क्षरण को रोकना और पर्यावरण की रक्षा पर जोर देना ।
  6. संसाधनों के अतिदोहन को रोकना ।

अर्थ ओवरशूट डे की पृष्ठभूमि : पर्यावरणीय संकट के कारण

जनसंख्या विस्फोट: जनसंख्या की उच्च वृद्धि दर का पर्यावरण पर सबसे ज्यादा भार पड़ता है । यह संसाधनों की मांग को बढ़ाता है, जबकि उनकी आपूर्ति सीमित है । इसका परिणाम संसाधनों के अति प्रयोग होता है जिससे असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । 

आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि: आर्थिक विकास में वृद्धि के परिणामस्वरूप समृद्ध खपत और वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है । यह ऐसे अपशिष्ट उत्पन्न करता है जो पर्यावरण की अवशोषण क्षमता से परे हैं । तीव्र औद्योगीकरण इसका ही एक रूप है । तेजी से औद्योगीकरण ने वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों की कमी को जन्म दिया है । यह जल निकायों में जहरीले पदार्थों और औद्योगिक कचरे की बढ़ती मात्रा के संचय के कारण पानी के दूषित होने का भी कारण बनता है । जहरीले कीटनाशकों, कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के कारण किसानों और श्रमिकों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है । उत्पन्न फसल में रासायनिक तत्व भी होते हैं ।

अर्थ ओवरशूट डे की गणना कैसे की जाती है?

इसका आकलन ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क (GFN) की तरफ से होता है । ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क एक अंतर्राष्ट्रीय गैर- लाभकारी संगठन है जिसकी स्थापना 2003 में हुई थी । इसका मुख्यालय ऑकलैंड में है । अर्थ ओवरशूट डे की गणना के लिए, पारिस्थितिक पदचिह्न द्वारा दुनिया की जैव क्षमता को विभाजित करने की आवश्यकता है । इस विभाजन से प्राप्त परिणाम को 365 से गुणा कर (यदि वर्ष एक लीप वर्ष है, तो इसे 366 से गुणा करें) इसकी प्राप्ति की जाती है । एक वर्ष में विश्व जैव क्षमता उस विशेष वर्ष में पृथ्वी ग्रह द्वारा उत्पन्न प्राकृतिक संसाधनों की कुल मात्रा को संदर्भित करता है । एक वर्ष में विश्व पारिस्थितिक पदचिह्न का तात्पर्य उस विशेष वर्ष में मानव द्वारा उपभोग किए गए प्राकृतिक संसाधनों की कुल मात्रा से है ।

अर्थ ओवरशूट डे 2021 30 जुलाई को था । जबकि 2020 में यह 22 अगस्त को था । इस दिन को उस दिन के रूप में चिन्हित किया गया था जब मनुष्य ने ‘प्रकृतिक -बजट’ को समाप्त कर दिया था । अर्थ ओवरशूट डे 2023 ग्रह पर पारिस्थितिक संतुलन की स्थिरता के मामले में एक बड़ी कमी को चिह्नित करेगा । क्योंकि जानकारों ने बताया है की यह पीछे खिसकता जा रहा है । कभी यह सितम्बर में हुआ करता था ।

हाल के वर्षों से संबंधित आंकड़ों ने संसाधनों की खपत के संदर्भ में भारत को एक रोल मॉडल के रूप में उजागर किया है । जबकि विकसित  देश पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों के प्रमुख शोषक रहे हैं । इन देशों की तुलना में भारत स्वयं को बहुत बेहतर स्थिति में पाता है । भारत, दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी के बाद  भी प्रति व्यक्ति खपत दर के मामले में बेहतर स्थिति में है। 

ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क- जीएफएन, के अनुसार, एक काल्पनिक स्थिति में जहां दुनिया का प्रत्येक नागरिक संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक की तरह रहता है, वहां संसाधनों की खपत 5 गुनी अधिक होगी । यह आंकड़ा ऑस्ट्रेलिया के लिए 4.1 और चीन के लिए 2.2 है । इसी सूची में, भारत के लिए यह  आंकड़ा केवल 0.7 है । 

समाधान  

हम जानते हैं कि सतत विकास लक्ष्य (SDG) में एक लक्ष्य जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना भी है । आज इसपर गंभीरता से कार्य किये जाने की आवश्यकता है ।

सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) एवं सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (Millenium Development Goal) क्या हैं ? 

सहस्राब्दी विकास लक्ष्य  संयुक्त राष्ट्र संघ के सन 2000 में आयोजित  सहस्त्राब्दि शिखर सम्मेलन में 2015  तक के लिये निर्धारित 8  वैश्विक विकास लक्ष्य हैं । ये लक्ष्य हैं :

1.भूखमरी तथा गरीबी को समाप्त करना ।

2.सार्वजनिक प्राथमिक शिक्षा ।

3.लिंग समानता तथा महिला सशक्तिकरण ।

4.शिशु-मृत्यु दर घटाना ।

5.मातृत्व स्वास्थ्य को बढ़ावा देना ।

6.HIV/AIDS, मलेरिया तथा अन्य बीमारियों से छुटकारा पाना ।

7.पर्यावरण धारणीयता,तथा 

8.वैश्विक विकास के लिए सम्बन्ध स्थापित करना ।

2015  में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की समाप्ति हो जाने पर  सतत विकास लक्ष्यों ने  उनको प्रतिस्थापित किया है । यह लक्ष्य 15 वर्ष (2015 से 2030) के लिए बनाए गये हैं । इनके अंतर्गत 17 लक्ष्य और 169 विशिष्ट उप-लक्ष्य निर्धारित किये गये  हैं। ये 17 लक्ष्य निम्नवत हैं : 

  1. पूरे विश्व से गरीबी की ( सभी रूपों में ) समाप्ति ।
  2. भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा ।
  3. सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा ।
  4. समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना ।
  5. लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना ।
  6. सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना ।
  7. सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना ।
  8. सभी के लिए निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार, और बेहतर कार्य को बढ़ावा देना ।
  9. लचीले बुनियादी ढांचे, समावेशी और सतत औद्योगीकरण को बढ़ावा ।
  10. अंतर्राष्ट्रीय व  अन्तःराष्ट्रीय असमानता को कम करना ।
  11. सुरक्षित, लचीले और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण ।
  12. स्थायी खपत और उत्पादन पद्धति  को सुनिश्चित करना ।
  13. जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना ।
  14. स्थायी सतत विकास के लिए महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग ।
  15. सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना ।
  16. सतत विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेह बनना ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके ।
  17. सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्ति कार्यान्वयन के साधनों को मजबूत बनाना ।

जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन एक ऐसी समस्या है जो पिछले कई दशकों से निरन्तर हमारे सामने है । वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग), अति-जलवायु स्थितियां , जीव -जंतुओं की लुप्त होती प्रजातियाँ , समुद्री जल सतह में बढ़ोतरी , कार्बन उत्सर्जन इत्यादि  जलवायु परिवर्तन के ही परिणाम हैं । यदि इस समस्या को शीघ्र नियंत्रित नहीं किया गया तो यह सम्पूर्ण विश्व के लिए विनाशकारी होगा । इसके लिए आवश्यकता है एक अंतर्राष्ट्रीय सहमती बना कर इसके हल तलाशने की ।

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