लंबे समय से अंग्रेजी शोषण का दंश झेल रही भारतीय जनता की प्रतिक्रिया वर्ष 1920 में आकर फूट पड़ी और इस दौरान गांधी जी के नेतृत्व में लगभग संपूर्ण भारत में एक व्यापक जन आंदोलन उठ खड़ा हुआ। इसमें भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों की हिस्सेदारी रही और इसने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अहिंसक असहयोग की भावना का प्रदर्शन किया। इसी आंदोलन को भारतीय इतिहास में असहयोग आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
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असहयोग आंदोलन के कारण
- पहले विश्व युद्ध के बाद भारत में विभिन्न आर्थिक कठिनाइयां उत्पन्न हो गई थी। इसके परिणाम स्वरूप महंगाई अत्यधिक बढ़ गई थी और भारत की जनता अत्यधिक परेशान थी, लेकिन इस स्थिति को सुधारने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इससे भारतीय जनता अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोशित हो गई।
- अंग्रेजों ने पहले विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए यह वादा किया था कि युद्ध समाप्त होने के बाद भारत में संवैधानिक सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे, लेकिन इस वादे को पूरा नहीं किया गया और इसके स्थान पर रौलेट एक्ट जैसा काला कानून भारतीयों पर थोप दिया गया। इससे भी भारत का एक बड़ा वर्ग अंग्रेजों के विरुद्ध हो गया।
- इसके अलावा, अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रही निहत्थी भीड़ पर अंग्रेजों ने गोली चला कर इस कुख्यात हत्याकांड को अंजाम दिया। इसके विरुद्ध भी संपूर्ण भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध एक तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। इस परिघटना ने भी भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोशित किया। इन समस्त घटनाओं ने समेकित रूप से असहयोग आंदोलन को जन्म दिया।
असहयोग आंदोलन का प्रारंभ
- 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन प्रारंभ हो गया था और दुर्भाग्यवश इसी दिन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु भी हो गई थी।
- सितंबर 1920 में कोलकाता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया था। इसमें असहयोग आंदोलन संबंधी प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। इसके बाद दिसंबर 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन नागपुर में आयोजित हुआ था। इस अधिवेशन के दौरान असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव की पुष्टि कर दी गई थी और आधिकारिक तौर पर असहयोग आंदोलन प्रारंभ हो गया था।
- कांग्रेस ने अपने नागपुर के वार्षिक अधिवेशन में दो प्रमुख निर्णय लिए थे। इनमें से पहला तो था कि ब्रिटिश शासन के भीतर स्वशासन की मांग का परित्याग करना और उसके स्थान पर स्वराज को अपना लक्ष्य घोषित करना। इसके अलावा, दूसरा निर्णय यह था कि कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन के दौरान किए जाने वाले रचनात्मक कार्यों की सूची तैयार की और उन्हीं कार्यों के इर्द-गिर्द असहयोग आंदोलन का संचालन किया जाना था।
असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम
- कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों व महाविद्यालयों की स्थापना की जानी थी तथा सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों का बहिष्कार किया जाना था।
- इसके अलावा, विभिन्न विवादों का निपटान करने के लिए पंचायतों की स्थापना की जानी थी।
- इस दौरान यह भी तय किया गया के हाथों से होने वाली कताई बुनाई को प्रोत्साहन दिया जाएगा और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जाएगा, ताकि स्वदेशी कपड़ों को अधिक से अधिक प्रसारित किया जा सके।
- इस आंदोलन के अंतर्गत अस्पृश्यता का अंत करने की बात कही गई तथा हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया ताकि आंदोलन का जनाधार विस्तृत किया जा सके।
- इसके अंतर्गत यह भी तय किया गया कि विभिन्न सरकारी समारोह का बहिष्कार किया जाएगा तथा सरकारी उपाधियाँ व सरकारी सम्मान को लौटा दिए जाएँगे। इसी के अंतर्गत महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई केसर ए हिंद की उपाधि, जूलू युद्ध पदक और बोअर पदक अंग्रेजों को लौटा दिए थे।
- इस आंदोलन के दौरान यह भी अपेक्षा की गई थी कि सरकार के अंतर्गत अनेक अवैतनिक पदों पर काम करने वाले लोग तथा स्थानीय निकायों निकायों में मनोनीत पदाधिकारी अपने अपने पदों से इस्तीफा दे देंगे और ब्रिटिश सरकार का बहिष्कार करेंगे।
- इस संदर्भ में गांधी जी ने सितंबर 1921 में यह कहा था यदि ये सभी कार्यक्रम सफलतापूर्वक लागू होते हैं, तो 1 वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त हो जाएगा।
असहयोग आंदोलन का प्रसार
- असहयोग आंदोलन का प्रसार लगभग संपूर्ण देश में देखा गया था तथा यह जनता के लगभग सभी वर्गों तक विस्तृत हो सका था। इस आंदोलन के अंतर्गत शिक्षा का सर्वाधिक बहिष्कार बंगाल में किया गया पंजाब में शिक्षा के बहिष्कार संबंधी मसलों का नेतृत्व लाला लाजपत राय द्वारा किया गया था।
- खिलाफत आंदोलन भी असहयोग आंदोलन के साथ-साथ चल रहा था इसका उद्देश्य हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना था इसके अंतर्गत मुसलमानों ने एक आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद को आमंत्रित किया था कि वे जामा मस्जिद में आकर भाषण दें। इसके अलावा, अमृतसर में सिखों ने स्वर्ण मंदिर की चाबियां एक मुस्लिम नेता डॉ. सैफुद्दीन किचलू को सौंप दी थीं।
- इस दौरान वर्ष 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आया था। इसके विरोध में संपूर्ण देश में हड़ताल का आयोजन किया गया था।
- लगभग पूरे भारत में विदेशी शराब की दुकानों पर धरना दिया गया था, ताड़ी का विरोध किया गया था तथा विदेशी कपड़ों की सार्वजनिक रूप से होली जलाई गई थी।
- वर्तमान बिहार के छपरा में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व राहुल सांकृत्यायन द्वारा किया गया था। इसके चलते उन्हें 6 माह की जेल भी हुई थी।
- समेकित रूप में यह आंदोलन पंजाब, बंबई, संयुक्त प्रांत, उड़ीसा, बिहार, बंगाल, मद्रास इत्यादि समस्त क्षेत्रों में संचालित हो रहा था। यानी यह आंदोलन लगभग संपूर्ण भारत को अपने प्रभाव क्षेत्र में लिए हुए था।
चौरी चौरा कांड और असहयोग आंदोलन की वापसी
- 5 फरवरी, 1922 को वर्तमान गोरखपुर चौरी चौरा नामक स्थान पर एक हिंसक भीड़ ने पुलिस चौकी पर हमला कर दिया और उसे आग के हवाले कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप लगभग 20 पुलिसकर्मी मारे गए। इस घटना को इतिहास में चौरी चौरा कांड के नाम से जाना जाता है।
- चूँकि महात्मा गांधी ने अहिंसा के दर्शन के सहारे असहयोग आंदोलन आरंभ किया था, लेकिन चौरी चौरा घटना के कारण व्यापक हिंसा सामने आई। इससे रुष्ट होकर गांधी जी ने 12 फरवरी, 1922 को बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा की और इसके साथ ही असहयोग आंदोलन समाप्त हो गया।
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