साओ जोआओ महोत्सव गोवा का प्रमुख कैथोलिक पर्व है। हर साल गोवा में 24 जून को साओ जोआओ महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गोवा के युवा कैथोलिक पुरुष, ‘सेंट जॉन द बैपटिस्ट’ को श्रद्धांजलि के रूप में स्थानीय कुओं, नदियों और तालाबों में छलांग लगाते हैं और तैरते हैं।
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साओ जोआओ महोत्सव की पृष्ठभूमि
पूरी दुनिया में 24 जून को साओ जोआओ पर्व मनाया जाता है। यह उत्सव सेंट जॉन द बैपटिस्ट के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यीशु की माता मरियम की सेंट एलिजाबेथ नाम की एक रिश्तेदार थी। सेंट एलिजाबेथ के पुत्र का नाम सेंट जॉन था। बताया जाता है कि एलिजाबेथ के गर्भवति होने के दौरान मैरी एक बार उनसे मिलने आई थी। जब मैरी ने एलिजाबेथ का अभिवादन किया तो मैरी की आवाज सुनकर एलिजाबेथ के पेट में पल रहा बच्चा सेंट जॉन उछल पड़ा था। यह घटना यीशु के जन्म के पर्व क्रिसमस से 9 महीने पहले घटित हुई थी।
गोव में साओ जोआओ पर्व पर्व 24 जून को मनाया जाता है। इस तिथि का महत्व यह है कि यह घोषणा के पर्व (यीशु के जन्म की भविष्यवाणी, 25 मार्च) के तीन महीने बाद आती है। घोषणा के समय, स्वर्गदूत गेब्रियल ने मैरी से कहा कि वह एक पुत्र (यीशु) को जन्म देगी। उस समय एलिजाबेथ 6 महीने की गर्भवती थी।
सेंट जॉन द बैपटिस्ट का जन्म समारोह ईसाई चर्च के सबसे शुरुआती समारोहों में से एक है। रिकॉर्ड बताते हैं कि 506 ईस्वी में पहले से ही इस दिन अवकाश रहता था। जब यूहन्ना बड़ा हुआ, तो उसका वर्णन जंगल में रहने वाले, ऊंट के बालों के कपड़े पहने वाले और टिड्डियां व जंगली शहद खाने वाले के रूप में किया गया। यूहन्ना ने ही मसीहा, यीशु के आने की भविष्यवाणी की थी। जब यीशु 30 साल के हुए थे, तब उन्हें सेंट जॉन द्वारा जॉर्डन नदी में बपतिस्मा दिया गया था।
गोवा में साओ जोआओ
साओ जोआओ का पर्व हर साल गोवा में ऐसे समय में मनाया जाता है जब मानसून आम तौर पर शुरू हो जाता है। इस दौरान ये पूरा क्षेत्र नए पत्ते और फूलों से ढंका होता है, और कुएं व अन्य एक्वीफर्स भी भरे होते हैं। इस मौसम में ऐसा प्रतीत होता है कि गोवा में सेंट जॉन के जन्म का स्मरणोत्सव बारिश के मौसम के त्यौहार के पहलुओं को शामिल करने के लिए ही मनाया जाता है।
इस पर्व के दौरान कुओं व तालाबों में कूदना, मां के गर्भ में बच्चे की छलांग के साथ-साथ जॉर्डन नदी के ‘बपतिस्मा’ का भी प्रतिनिधित्व करता है। सेंट जॉन को श्रद्धांजलि स्वरूप युवा पुरुष कपड़ों के बजाय प्राकृतिक आवरणों का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि सेंट जॉन ने भी फूलों व अन्य आभूषणों और पौधों से बने वस्त्र पहने थे।
पूरे कैथोलिक जगत में संत जोआओ के उत्सव की दावत एक ही दिन मनाई जाती है, लेकिन गोवा एकमात्र ऐसा स्थान है जहां इस पर्व को कुओं में कूदकर मनाया जाता है। इस दिन लोगों के समूहों द्वारा घुमोट, म्हादलम और कंसलम जैसे कुछ वाद्ययंत्रो का उपयोग कर के पारंपरिक धुनों का प्रदर्शन किया जाता है।
साओ जोआओ उत्सव के स्थानीय विशेषज्ञ माने जाने वाले सेसिल पिंटो बताते हैं कि रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय और विदेशी दोनों पर्यटक इस उत्सव को ‘बहुत लोकप्रिय’ मानते हैं। हालांकि पर्यटक गलती से साओ जोआओ पर्व को केवल कुओं में गोता लगाने का त्यौहार मानते है, लेकिन ऐसा नहीं है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग हर साल अनुकूल वर्षा के लिए प्रार्थना भी करते हैं।
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बता दें कि साओ जोआओ उत्सव ‘सदियों पुराना’ हैं, इसलिए इस त्यौहार पर कई समकालीन परंपराएं भी देखने को मिलती है। बर्देज तालुका के सिओलिम गांव में इस त्यौहार पर नावों को सजाया जाता है। वहीं हर साल, अंजुना में चापोरा और झोर के गांवों, असगाओ में बडेम और सिओलिम के लोग संत को सम्मानित करने के लिए परेरा वड्डो, सिओलिम में सैन जोआओ के चैपल में नाव से यात्रा करते थे। इन गांवो में इस समारोह का इतिहास 175 साल से भी अधिक पुराना है।
साओ जोआओ पर्व को बर्देज तालुका में स्थित सालिगाओ गांव में, गीत और नृत्य के एक स्थानीय त्योहार, वांगोड डी सालिगाओ के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर यहां के निवासी अक्सर सभी मेहमानों के लिए पर्याप्त भोजन तैयार करते हैं। वहीं साओ जोआओ पर्व नवविवाहितों और पूर्व वर्ष में पैदा हुए बच्चों के माता-पिता के लिए धन्यवाद प्रदर्शित करने का दिन भी होता है।
कोरोना में साओ जोआओ पर्व
कोरोना वायरस के कारण पिछले 2 सालो से साओ जोआओ महोत्सव नहीं मनाया गया था। लेकिन अब कोरोना का खतरा कम होने के बाद इस साल गोवा के लोगों ने 24 जून को सेंट जॉन द बैपटिस्ट के जन्मदिन पर साओ जोआओ उत्सव पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया। इस दिन गोवा में राज्य भर के जलाशयों में मौज-मस्ती की गई। इस दौरान विभिन्न विषयों पर आधारित चमकिली झांकियों ने इस उत्सव की चमक को और बढ़ा दिया।
साओ जोआओ महोत्सव और गोवा के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
गोवा में कौन सा त्यौहार प्रसिद्ध है?
भारतीय राज्य गोवा में गोवा कार्निवल, (कोंकणी: इंट्रूज़), साओ जोआओ (जॉन द बैपटिस्ट का पर्व), गणेश चतुर्थी (कोंकणी: चावोथ), दिवाली, क्रिसमस (कोंकणी: नटालम), ईस्टर (कोंकणी: नटालम), ईस्टर (कोंकणी: पास्कंचेम उत्सव), संवत्सर पड़वो या संवसर पड़वो, और शिग्मो आदि त्यौहार बेहद लोकप्रिय है। गोवा में हर साल साओ जोआओ पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
गोवा की संस्कृति क्या है?
गोवा की संस्कृति भारतीय और पुर्तगाली संस्कृति का संगम है। लंबे पुर्तगाली शासन ने गोवा की संस्कृति को कई तरीकों से प्रभावित किया है और कई पुर्तगाली परंपराएं आज भी गोवा की संस्कृति में परिलक्षित होती हैं। नृत्य और संगीत गोवा की संस्कृति में गहराई से अंतर्निहित है।
गोवा की भाषा कौन सी है?
गोवा मे कोंकणी व इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की इंडो-आर्यन भाषा बोली जाती है। भारत के मध्य पश्चिमी तट पर लगभग 2.5 मिलियन लोगों द्वारा कोंकणी भाषा बोली जाती है, यह गोवा राज्य की आधिकारिक भाषा है।
गोवा में शिग्मो क्या है?
शिग्मो गोवा में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय पारंपरिक त्योहार है। यह फाल्गुन (मार्च) के महीने में आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर पणजी, मडगांव, मापुसा, वास्को और पोंडा जैसे प्रमुख शहरों में हर साल एक शानदार शिग्मो फ्लोट परेड आयोजित की जाती है।
गोवा का हार्वेस्ट डांस या फसल नृत्य क्या है?
गोवा के आदिवासी समुदायों द्वारा ‘धान की समृद्ध, सुनहरी फसल’ के लिए शिग्मो, या शिग्मोत्सव मनाया जाता है। इस ही गोवा का ’हार्वेस्ट डांस’ या ‘फसल नृत्य’ कहा जाता है।
फेस्टा जूनिना कैसे मनाया जाता है?
कैपिरास या मैटुटोस के नाम से जाने जाने वाले इस त्यौहार को ब्राजील में मुख्य रूप से ग्रामीण किसानों द्वारा मनाया जाता है। इस मौके पर पुरुष सिर पर बड़े भूसे की टोपी पहनकर खेतों में काम करने वाले किसानों की तरह तैयार होते हैं और महिलाएं पिगटेल, झाई, पेंट किए गए दांत और लाल-चेकर वाले कपड़े पहनती हैं। पूरे त्यौहार में सभी लोग चतुर्भुज जैसा घेरा बनाकर नृत्य करते हैं।
जून पार्टी क्या है?
ब्राजील में जून और जुलाई में ‘जून पार्टी’ मनाई जाती है, पुर्तगाली में इसे ‘फेस्टा जूनिना’ कहा जाता है। यह महोत्सल, ‘कार्निवल’ जितना लोकप्रिय नहीं है, लेकिन यह ब्राजीलियाई लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस महोत्सव के दौरान गलियों में पार्टियां चलती देखी जा सकती है। इस त्यौहार के दौरान हर जगह पारंपरिक कपड़े पहने लोग अलाव, संगीत, भोजन और नृत्य करते दिखाई देते हैं।
IAS परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले UPSC सिलेबस को गहराई से समझ लें और उसके अनुसार अपनी तैयारी की योजना बनाएं।
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