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विश्व इतिहास में वर्साय की संधि का महत्व

वर्ष 1914 में आरंभ हुआ प्रथम विश्व युद्ध वर्ष 1918 में समाप्त हो गया था। इस युद्ध में मित्र राष्ट्र विजयी हुए थे, जबकि जर्मनी और उसके सहयोगी देश ऑस्ट्रिया, हंगरी, बुल्गारिया और तुर्की पराजित हुए थे।

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प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद वर्ष 1919 में पेरिस में एक शांति सम्मेलन आयोजित किया गया था, जहां पर इन पांचों पराजित देशों के साथ अलग-अलग संधियाँ की गई थीं। इस दौरान मित्र राष्ट्रों की तरफ से तीन नेताओं का सर्वाधिक प्रभाव रहा था। वे थे- अमेरिका के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन, फ्रांस के प्रधानमंत्री जॉर्ज क्लीमेंशू और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लॉयड जॉर्ज।

इस दौरान ऑस्ट्रिया के साथ ‘सोंजर्मे की संधि’, हंगरी के साथ ‘त्रियानो की संधि’, बुल्गारिया के साथ ‘न्यूली की संधि’, तुर्की के साथ ‘सेवर्स की संधि’ और जर्मनी के साथ ‘वर्साय की संधि’ की गई थी।

इन सभी संधियों के परिणाम स्वरूप यूरोप के मानचित्र को पूर्णतया बदल लिया गया था और इन देशों के विभिन्न भू-भाग कई अन्य देशों को हस्तांतरित कर दिए गए थे, कुछ नए स्वतंत्र राष्ट्र निर्मित कर दिए गए थे, ऑटोमन साम्राज्य का पूर्णतया विघटन कर दिया गया था और सबसे बढ़कर, जर्मनी को पूर्ण रूप से छिन्न-भिन्न कर दिया गया था।

इसी दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने 14 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया था, लेकिन इसमें फ्रांस के द्वारा कुछ अन्य अपमानजनक शर्तें भी शामिल करा दी गई थी, जिसके परिणाम स्वरूप जर्मनी के आत्मसम्मान को अत्यधिक ठेस पहुंची थी।

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वर्साय की संधि के प्रमुख प्रावधान

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद फ्रांस के पेरिस में स्थित वर्साय के महल में 28 जून, 1919 को यह अपमानजनक संधि हस्ताक्षरित की गई थी और इसे जर्मनी पर थोप दिया गया था। इस संधि में लगभग 440 धाराएं थी। उस समय लाचार जर्मनी के पास इस अपमानजनक संधि को स्वीकार करने के अलावा अन्य कोई विकल्प मौजूद नहीं था। इस संधि के प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार थे-

1. भौगोलिक प्रावधान :

  • 1870 ईस्वी में जर्मनी ने फ्रांस के एल्सेस और लॉरेन नामक दो प्रांत छीन लिए थे। वर्साय की संधि के माध्यम से ये दोनों ही प्रांत जर्मनी से वापस लेकर फ्रांस को लौटा दिए गए थे।
  • जर्मनी को बेल्जियम, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया जैसे नवनिर्मित राज्यों की स्वतंत्रता और संप्रभुता को मजबूरन मान्यता देनी पड़ी थी।
  • राइन नदी के बाएं तट पर और राइन नदी के दाएं तट से 50 किलोमीटर की दूरी तक जर्मनी का पूर्ण नि:शस्त्रीकरण कर दिया गया था। इसका उद्देश्य यह था कि जर्मनी किसी भी प्रकार की किलेबंदी ना कर सके।
  • नवनिर्मित पोलैंड राज्य की समुद्र तट तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए जर्मनी का ‘डैंजिंग बंदरगाह’ छीन लिया गया था। इसके अलावा, जर्मनी का ‘मेमल बंदरगाह’ लिथुआनिया को दे दिया गया था।
  • इसके तहत यह भी निश्चित किया गया कि अगले 15 वर्षों तक जर्मनी के राइनलैंड प्रदेश में मित्र राष्ट्रों की सेनाएं तैनात रहेंगी। इसके अलावा उत्तरी श्लेसविग का क्षेत्र डेनमार्क को दे दिया गया था।
  • ब्रेस्टलिवोस्टक की संधि के माध्यम से जर्मनी ने रूस का एक बड़ा भाग छीन कर अपने राज्य में शामिल कर लिया था, लेकिन वर्साय की संधि के माध्यम से रूस से छीने गए इस विस्तृत प्रदेश पर लाटविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया नामक अन्य तीन स्वतंत्र राज्यों की स्थापना कर दी गई थी।
  • जर्मनी से उसके विस्तृत उपनिवेशों पर से सारे अधिकार छीन लिए गए थे और राष्ट्र संघ की मैंडेट प्रणाली के आधार पर उन्हें मित्र राष्ट्रों में बांट दिया गया था।
  • चीन के शांतुंग क्षेत्र पर से जर्मनी खेसारी अधिकार छीन लिए गए थे और उन्हें जापान को दे दिया गया था। इसके अलावा, जर्मनी के आधिपत्य से यूपेन, मार्सनेट और मालमेडी नामक क्षेत्र छीन कर बेल्जियम को दे दिए गए थे।

2. सैन्य प्रावधान :

  • इस संधि के माध्यम से जर्मनी में अनिवार्य सैनिक सेवा समाप्त कर दी गई थी और यह प्रावधान किया गया था कि अगले 12 वर्षों तक जर्मनी को एक लाख से अधिक थल सेना रखने की अनुमति नहीं होगी।
  • इसके अलावा, जर्मनी पर प्रतिबंध लगा दिया गया कि जर्मनी न तो किसी भी प्रकार की युद्ध सामग्री का निर्माण कर सकता है और ना ही वह किसी भी प्रकार की युद्ध सामग्री का आयात कर सकता है।
  • जर्मनी के उत्तर में स्थित ‘कील नहर’ पहले जर्मनी के नियंत्रण में हुआ करती थी, लेकिन वर्साय की संधि के माध्यम से कील नहर को अंतरराष्ट्रीय नहर घोषित कर दिया गया था। इसका अर्थ है कि अब कील नहर का प्रयोग कोई भी देश कर सकता था।
  • जर्मनी की नौसेना की सैनिकों की अधिकतम संख्या 15,000 निश्चित कर दी गई थी। इसके अलावा, जर्मनी की वायुसेना को पूरी तरह से भंग कर दिया गया था।

3. आर्थिक प्रावधान :

  • प्रथम विश्व युद्ध का संपूर्ण उत्तरदायित्व जर्मनी पर थोप दिया गया था और इसके लिए सिर्फ जर्मनी को ही जिम्मेदार ठहराया गया था। इसीलिए जर्मनी को युद्ध क्षतिपूर्ति देने के लिए बाध्य किया गया और यह प्रावधान किया गया कि जर्मनी मित्र राष्ट्रों को युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 5 अरब डॉलर देगा।
  • अन्य पश्चिमी देशों की तरह जर्मनी के भी अनेक उपनिवेश थे। वर्साय की संधि के माध्यम से जर्मनी के उपनिवेशों में लगी समस्त जर्मन पूंजी को मित्र राष्ट्रों द्वारा ज़ब्त कर लिया गया था।
  • इसके अलावा, जर्मनी को इस बात के लिए भी बाध्य किया गया था कि ‘जर्मनी’ फ्रांस, इटली और बेल्जियम को एक निश्चित मात्रा में कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। उल्लेखनीय है कि जर्मनी का राइन नदी घाटी का क्षेत्र कोयले के भंडार की दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध क्षेत्र है।

4. अन्य प्रावधान :

  • इसके तहत जर्मनी के सम्राट विलियम द्वितीय को युद्ध के लिए दोषी माना गया था और उन पर अभियोग चलाने का निर्णय भी लिया गया था।
  • इसके अलावा, जर्मनी की कई प्रमुख नदियों को अंतरराष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया था।

वर्साय की संधि का विश्लेषण

  • वर्साय की संधि के ऊपर वर्णित किए गए प्रावधानों के आलोक में यह कहा जा सकता है इस संधि के माध्यम से जर्मनी को आर्थिक, सैनिक व राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत कमजोर कर दिया गया था। यह संधि न सिर्फ जर्मन वासियों के लिए अपमानजनक थी, बल्कि उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित करती थी, समय आने पर वे इन परिस्थितियों को बदलें।
  • विद्वानों के मतानुसार, जर्मनी पर आरोपित की गई यह संधि यूरोप की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत नहीं कर सकती थी बल्कि इसमें यूरोप की राजनीतिक समस्या को और अधिक उलझा दिया था इस संधि के परिणाम स्वरूप प्रथम विश्वयुद्ध बेशक समाप्त हो गया था, लेकिन यह संधि एक अल्पकालिक शांति ही स्थापित कर सकी थी। क्योंकि इसी बीच जर्मनी में हिटलर का उदय हुआ और उसने इन सभी अपमानजनक शर्तों को पलटने का प्रयास किया।
  • नाजीवाद हिटलर ने जर्मनी के आत्मसम्मान को वापस लौट आने का संकल्प लिया और उसी के अनुरूप कार्य प्रारंभ कर दिया। अंततः इस संधि के ठीक 20 वर्षों के बाद 1939 ईस्वी में दूसरा विश्व युद्ध आरंभ हो गया था।

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