06 अक्टूबर 2022 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: अर्थव्यवस्था:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: राजव्यवस्था:
आपदा प्रबंधन:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
अर्थव्यवस्था:
द इम्पॉसिबल ट्रिनिटी
विषय: संसाधन संग्रहण।
मुख्य परीक्षा: समष्टि अर्थशास्त्र की वर्तमान ट्राइलेमा (ऐसी स्थिति जिसमें तीन विकल्पों के बीच एक कठिन चुनाव करना पड़ता है)
संदर्भ:
- द इम्पॉसिबल ट्रिनिटी, या समष्टि अर्थशास्त्र की वर्तमान ट्राइलेमा (ऐसी स्थिति जिसमें तीन विकल्पों के बीच एक कठिन चुनाव करना पड़ता है) हाल ही में सुर्ख़ियों में आ गई है क्योंकि यू.एस. फेडरल रिजर्व बढ़ती कीमतों को कम करने के लिए लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है।
भूमिका:
- ट्राइलेमा (trilemma) की स्थिति एक ऐसे स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें कोई अर्थव्यवस्था एक ही समय पर न तो स्वतंत्र मौद्रिक नीति का पालन कर सकती है, न ही निश्चित विनिमय दर को बनाए रख सकती है और न ही सीमा पार पूंजी के मुक्त प्रवाह की अनुमति दे सकती है।
- अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कोई भी अर्थव्यवस्था एक समय में उपरोक्त तीन नीतिगत विकल्पों में से केवल दो को ही चुन सकती है।
- 1960 के दशक की शुरुआत में, इस अवधारणा को स्वतंत्र रूप से ब्रिटिश अर्थशास्त्री मार्कस फ्लेमिंग और कनाडा के अर्थशास्त्री रॉबर्ट मुंडेल द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
परिदृश्य 01: निश्चित विनिमय दर
- यदि नीति निर्माता अपनी मुद्रा के मूल्य को एक विशिष्ट स्तर पर रखने या संरक्षित करने का निर्णय लेते हैं तो जिस प्रकार की मौद्रिक नीति को लंबे समय में लागू किया जा सकता है, वह संकुचन मौद्रिक नीति होगी क्योंकि यह प्राधिकरण को घरेलू मौद्रिक नीति के संबंध में कोई विशिष्ट रुख अपनाने से प्रतिबंधित कर सकती है।
- उदाहरण के लिए, यदि नीति निर्माता चाहते हैं कि उनकी मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्राओं के मुकाबले बढ़े, तो वे कठोर घरेलू मौद्रिक नीति को अपनाए बिना इस लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते हैं तथा लंबे समय तक मुद्रा के मूल्य को स्थिर बनाए नहीं रख सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही, कठोर घरेलू मौद्रिक नीति घरेलू मांग को कमजोर करती है।
- ऐसा इसलिए है क्योंकि कमजोर मौद्रिक नीति देश की मुद्रा के अवमूल्यन का कारण बनेगी। इसलिए, प्राधिकरण को अपनी मुद्रा के मूल्य और घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग को बनाए रखने के बीच निर्णय लेना होगा, जो कि मौद्रिक नीति से प्रभावित होती है।
परिदृश्य 02: स्वतंत्र मौद्रिक नीति
- यदि नीति निर्माता स्वतंत्र मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का विकल्प चुनते हैं, तो वे अपनी मुद्रा के विदेशी मुद्रा मूल्य को वांछित स्तर पर बनाए रखने में सक्षम नहीं हो सकते हैं क्योंकि मौद्रिक नीति हमेशा विदेशी मुद्राओं के विरुद्ध घरेलू मुद्रा के विनिमय मूल्य को प्रभावित करती है।
- उदाहरण के लिए, यदि विदेशी केंद्रीय बैंक सख्त मौद्रिक नीति अपनाते हैं, तो घरेलू मांग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आसान मौद्रिक नीति स्वाभाविक रूप से विदेशी मुद्राओं के मुकाबले घरेलू मुद्रा के मूल्य को कम कर देगी।
- यदि ऐसा होता है, तो मुद्रा के विदेशी मुद्रा मूल्य को तब तक बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा जब तक कि केंद्रीय बैंक के पास मुद्रा के मूल्य का समर्थन करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार न हो।
- वास्तव में, प्राधिकरण के लिए दीर्घकाल में मुद्रा के विदेशी मुद्रा मूल्य को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है क्योंकि ऐसा करने के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा भंडार शीघ्र ही समाप्त हो सकता है।
परिदृश्य 03: प्रतिबंधित पूंजी प्रवाह:
- कुछ दशक पहले, जब सीमा-पार पूंजी के प्रवाह को विनियमित करने के लिए सख्त पूंजी नियंत्रण उपाय किए जाते थे, तब अर्थव्यवस्थाएं स्वतंत्र मौद्रिक नीति पर आगे बढ़ने का विकल्प चुन सकती थीं और विदेशी मुद्राओं के खिलाफ एक निश्चित विनिमय मूल्य बनाए रखने की उम्मीद कर सकती थीं।
- जब भी मौद्रिक नीति मुद्रा की विनिमय दर पर अवांछनीय प्रभाव डालती है, तो नीति निर्माता घरेलू मुद्रा के विदेशी मुद्रा मूल्य को बनाए रखने के लिए पूंजी के प्रवाह पर नियंत्रण लगा सकते हैं।
- उदाहरण के लिए, यदि कोई देश आसान मौद्रिक नीति अपनाने का फैसला करता है तो यह उसकी मुद्रा के विनिमय मूल्य को कमजोर कर सकता है, ऐसे में वह देश अपनी मुद्रा के मूल्यह्रास को रोकने के लिए पूंजी के प्रवाह पर नियंत्रण लगा सकता है।
वर्तमान ट्राइलेमा:
- सीमा-पार पूंजी के मुक्त प्रवाह ने कई निवेशकों को दुनिया के बाकी देशों से अपने निवेश को निकालने और बेहतर प्रतिफल के लिए अमेरिका में निवेश करने के लिए प्रेरित किया है। इसके कारण भारतीय रुपया और जापानी येन जैसी कई मुद्राएं भारी दबाव में हैं।
- यू.एस. में बढ़ती ब्याज दरों के जवाब में अपनी मौद्रिक नीति को कठोर करने की जापान की अनिच्छा के कारण 2022 में अब तक जापानी येन का यू.एस. डॉलर के मुकाबले लगभग 25% मूल्यह्रास हो चुका है।
- बैंक ऑफ जापान ने अपनी घरेलू मौद्रिक नीति पर नियंत्रण बनाए रखने को प्राथमिकता देते हुए अपनी मुद्रा का मूल्यह्रास होने दिया है।
- भारतीय रुपये पर भी दबाव बढ़ रहा है, जो अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि के कारण इस साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 10% कमजोर हो चुका है।
- भारतीय रिजर्व बैंक को भी रुपये के मूल्य और अपनी मौद्रिक नीति की स्वतंत्रता को बनाए रखने के बीच किसी एक का चयन करने की दुविधा का सामना करना पड़ सकता है।
- भारतीय रिजर्व बैंक वर्तमान में रुपये के मूल्यह्रास को रोकने के लिए अपनी मौद्रिक नीति के रुख को कठोर करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है क्योंकि यह कीमत वृद्धि पर लगाम लगाने में भी मदद करता है।
- लेकिन अगर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत में मूल्य वृद्धि पर लगाम लगाने के बाद भी यू.एस. अपने नीतिगत रुख को जारी रखता है, तो भारतीय रिजर्व बैंक को रुपये के मूल्यह्रास को रोकने और घरेलू मांग को बनाए रखने के बीच किसी एक का चयन करना पड़ सकता है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
नोबेल पुरस्कार 2022
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास तथा अनुप्रयोग और दैनिक जीवन में प्रभाव।
मुख्य परीक्षा: विज्ञान में हाल की खोज और प्रगति।
संदर्भ:
- हाल ही में रसायन विज्ञान, भौतिकी और जीव विज्ञान के वर्ष 2022 के नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई है।
रसायन विज्ञान के लिए नोबेल:
- कैरोलिन आर. बर्टोज़ी, मोर्टन मेल्डल और के. बैरी शार्पलेस को उन अभिक्रियाओं की खोज के लिए रसायन विज्ञान में 2022 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है, जो अणुओं के एक साथ विखंडन’ में मदद करती हैं और साथ ही कोशिका जीव विज्ञान की भी अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
- बैरी शार्पलेस और मोर्टन मेल्डल ने रसायन विज्ञान के एक क्रियात्मक रूप अर्थात क्लिक केमिस्ट्री (click chemistry) की नींव रखी है, जिसमें आण्विक ब्लॉक शीघ्रता और कुशलता से एक साथ विखंडित होते हैं।
- शार्पलेस उन वैज्ञानिकों के एक विशिष्ट समूह में शामिल हो गए हैं जिन्होंने दो बार नोबेल पुरस्कार जीते हैं। अन्य व्यक्तियों में दो बार भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले जॉन बारडीन, भौतिकी और रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली मैरी क्यूरी, रसायन विज्ञान और शांति का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले लिनुस पॉलिंग और दो बार रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले फ्रेडरिक सेंगर शामिल हैं।
- इन्होंने वर्ष 2000 के आसपास क्लिक केमिस्ट्री की अवधारणा प्रस्तुत की थी।
- क्लिक केमिस्ट्री साधारण और विश्वसनीय रसायन शास्त्र का एक रूप है जिसमें अवांछित उप-उत्पादों के बिना अभिक्रियाएं त्वरित गति से संपन्न होती हैं।
- कुछ ही समय बाद, मेल्डल और शार्पलेस (एक-दूसरे से स्वतंत्र) ने कॉपर उत्प्रेरित एज़ाइड-एल्काइन साइक्लोएडिशन अभिक्रिया को प्रस्तुत किया जिसे क्लिक केमिस्ट्री का मुकुट कहा जाता है।
- एज़ाइड एक कार्बनिक यौगिक है जिसका सूत्र N3 होता है जबकि एल्काइन एक हाइड्रोकार्बन है जिसमें कम से कम एक कार्बन-कार्बन त्रिबंध होता है।
- यह एक कुशल रासायनिक अभिक्रिया है जो अब व्यापक रूप से उपयोग में है। कई अन्य उपयोगों के अलावा, इसका उपयोग दवाओं के विकास में, डीएनए के मानचित्रण और अन्य उपयोगी सामग्री बनाने के लिए किया जाता है।
- कैरोलिन बर्टोज़ी ने क्लिक केमिस्ट्री को एक नए आयाम पर पहुंचाते हुए जीवित जीवों में इसका उपयोग करना शुरू कर दिया है।
- कोशिकाओं की सतह पर महत्वपूर्ण जैव-अणुओं (ग्लाइकान) का मानचित्रण करने के लिए उन्होंने जीवित जीवों के अंदर काम करने वाली क्लिक अभिक्रियाएं विकसित की हैं। ये बायोऑर्थोगोनल अभिक्रियाएं कोशिका के सामान्य रसायन विज्ञान को बाधित किए बिना संपन्न होती हैं।
- इन अभिक्रियाओं का उपयोग अब विश्व स्तर पर कोशिकाओं का पता लगाने और जैविक प्रक्रियाओं को ट्रैक करने के लिए किया जाता है।
- बायोऑर्थोगोनल अभिक्रियाओं का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने कैंसर फार्मास्यूटिकल्स के लक्ष्यीकरण में सुधार किया है, जिनका अब नैदानिक परीक्षणों में परीक्षण किया जा रहा है।
- रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज, स्टॉकहोम, स्वीडन द्वारा प्रदान किया जाता है।
भौतिकी के लिए नोबेल:
- एलेन एसपेक्ट, जॉन फ्रांसिस क्लॉसर और एंटोन ज़िलिंगर ने संयुक्त रूप से भौतिकी में नोबेल पुरस्कार जीता है। उन्हें यह पुरस्कार इनटैंगल्ड फोटॉन (Entangled photons) के साथ प्रयोग करने, बेल असमानताओं (Bell inequalities) के उल्लंघन को स्थापित करने और क्वांटम इन्फॉर्मेशन साइंस में उनके काम के लिए दिया गया है।
- इस प्रयोग की एक प्रमुख बात यह है कि कैसे क्वांटम यांत्रिकी दो या दो से अधिक कणों को इनटैंगल्ड अवस्था में एक साथ मौजूद रहने की अनुमति देती है।
- इनटैंगल्ड जोड़े में से एक कण के साथ घटी घटना यह निर्धारित करती है कि दूसरे कण के साथ क्या होता है, भले ही वे बहुत दूर स्थित हों।
- इनटैंगल्ड क्वांटम अवस्था की मदद से सूचनाओं के भंडारण, हस्तांतरण और प्रसंस्करण के नए तरीकों की खोज की जा सकती है।
- क्वांटम अवस्था और उनके (क्वांटम कणों के) गुणों में हेरफेर तथा प्रबंधन करने में सक्षम होने से हमें अप्रत्याशित क्षमता वाले उपकरणों की खोज करने में मदद मिल सकती है। यह क्वांटम गणना, क्वांटम जानकारी के हस्तांतरण तथा भंडारण और क्वांटम एन्क्रिप्शन के लिए एल्गोरिदम का आधार बन सकता है। यह सुपरकंप्यूटर और एन्क्रिप्टेड संचार पर काम करने का द्वार खोल सकता है।
चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार:
- चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार 2022 को स्वांते पाबो को प्रदान किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार मानव विकास पर किये हए उनके काम के लिए प्रदान किया गया है। पाबो एक स्वीडिश आनुवंशिकीविद् और जर्मनी के लीपज़िग में मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के निदेशक हैं।
- स्वांते पाबो ने एक नई तकनीक का विकास किया था जिसकी मदद से शोधकर्ता आधुनिक मनुष्यों के जीनोम और निएंडरथल तथा डेनिसोवा जैसे अन्य होमिनिन के जीनोम की तुलना कर सकते हैं।
- स्वांते पाबो और उनकी टीम ने पाया कि निएंडरथल से होमो सेपियन्स तक जीन का स्थानांतरण हुआ था। यह दर्शाता है कि सह-अस्तित्व की अवधि के दौरान उनके बच्चे एक थे।
- होमिनिन प्रजातियों के बीच जीन के इस हस्तांतरण का आधुनिक मनुष्यों की प्रतिरक्षा प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। यह भी पाया गया है कि अफ्रीका के बाहर के लोगों में 1-2% निएंडरथल मानवों के जीन होते हैं।
- पाबो के शोध ने एक पूरी तरह से नए वैज्ञानिक विषय (पैलियोजीनोमिक्स- paleogenomics) को भी जन्म दिया है।
- नोबेल पुरस्कारों के हाल के रुझानों से पता चलता है कि आमतौर पर हर पुरस्कार के लिए कई विजेता होते हैं। यह पाबो के शोध की मौलिकता और क्रांतिकारी प्रभावों के लिए एक श्रद्धांजलि है कि जीव विज्ञान में प्रगति के द्वारा निरंतर परिवर्तनशील इस दुनिया में, उन्हें 2016 के बाद पहली बार इस वर्ष चिकित्सा या कार्यिकी विज्ञान के पुरस्कार के एकमात्र विजेता के रूप में चुना गया है।
चित्र स्रोत: Nobelprize.org
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
राजव्यवस्था:
राज्यपाल की तरफ से किया गया बिलंब अनुचित है:
विषय: कार्यकारी की संरचना, संगठन और कामकाज।
प्रारंभिक परीक्षा: राज्यपाल के कार्यालय के बारे में
मुख्य परीक्षा: राज्यपाल की विधायी शक्तियों का महत्व और इससे जुड़ी विभिन्न चुनौतियाँ।
संदर्भ:
- इस लेख में कानून बनाने की प्रक्रिया में राज्यपाल की सहमति के महत्व के बारे में बात की गयी है।
भारत में कानून बनाने की प्रक्रिया में राज्यपाल की सहमति:
- राज्यपाल का कार्यालय राज्य विधायिका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि कानून बनाने की प्रक्रिया उसके हस्ताक्षर या सहमति के बिना पूरी नही होती है।
- यानी किसी राज्य की विधान सभा द्वारा पारित कोई भी विधेयक राज्यपाल की सहमति के बाद ही कानून बनता है।
- चूंकि एक बार पारित विधेयक राज्यपाल की सहमति से ही कानून बन जाता है, राज्यपाल की सहमति कानून बनाने की पूरी प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण कृत्यों में से एक है।
- ऐसा प्रावधान न केवल भारत के संविधान में बल्कि विभिन्न लोकतांत्रिक देशों में भी है।
- संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार, एक बार जब कोई विधेयक विधान सभा में पारित हो जाता है और राज्यपाल के पास पहुंचता है, तो उसे निम्न का अधिकार है:
- उसे सहमति दें या
- सहमति न दें और
- पुनर्विचार के लिए लौटाएं या
- राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को सुरक्षित रखें
- हालाँकि, राज्यपाल की यह शक्ति अक्सर विवादास्पद रही है।
राज्यपाल का कार्यालय और राज्यपाल की विभिन्न शक्तियां के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें –
https://byjus.com/free-ias-prep/governor/
केरल और तमिलनाडु की केस स्टडी:
- हाल ही में तमिलनाडु में, राज्यपाल ने देरी के बाद राष्ट्रपति के विचार के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) से छूट वाला विधेयक सुरक्षित रखा था।
- इसके अलावा, केरल में, एक विवाद तब उभरा जब राज्यपाल ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह राज्य के लोकायुक्त संशोधन विधेयक और केरल विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक को स्वीकृति नहीं देंगे।
राज्यपाल की विधायी शक्ति से जुड़े प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ:
- विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यपालों की ऐसी कार्रवाइयां जो विधेयक की स्वीकृति में अनिश्चितता पैदा करती हैं जो राज्य सरकारों के विधायी कार्यक्रमों को महत्वपूर्ण रूप से बाधित करती हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 200 के प्रावधानों के अनुसार, विधानसभा के पुनर्विचार के लिए एक विधेयक भेजने के बाद, भले ही विधानसभा बिना किसी बदलाव के विधेयक को पारित कर देती है और इसे राज्यपाल को वापस भेज देती है, राज्यपाल उस पर सहमति देने के लिए बाध्य है।
- यह प्रावधान स्पष्ट रूप से विधायी प्रक्रिया में विधायिका की प्रधानता की पुष्टि करता है क्योंकि विधायिका लोगों की इच्छा को दर्शाती है और संवैधानिक रूप से कानून बनाने के लिए दी जाती है और राज्यपाल द्वारा इसे बाधित करने के किसी भी प्रयास को संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन माना जाता है।
- राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करने का विकल्प भी विवादास्पद रहा है। संविधान के प्रावधानों के अनुसार, विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए तभी आरक्षित किया जा सकता है जब राज्यपाल को लगता है कि विधेयक अपनी शक्तियों को कम करके उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डाल देगा।
- संविधान में किसी अन्य प्रकार के विधेयक का उल्लेख नहीं है। हालाँकि, अदालतों ने इस मामले में राज्यपालों को कुछ हद तक विवेकाधिकार प्रदान किया है और इस तरह की विवेकाधीन शक्तियों का अतीत में कई बार दुरुपयोग किया गया है।
- साथ ही, विधेयक पर सहमति को रोकने का विकल्प विवादास्पद रहा है क्योंकि राज्यपाल द्वारा सहमति से इनकार करने का कार्य संविधान की भावना के विरुद्ध माना जाता है क्योंकि राज्यपाल राज्य के लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित नहीं करता है क्योंकि वह सीधे राज्य के लोगों द्वारा नहीं चुना जाता है।
- चूंकि संविधान में उन आधारों का उल्लेख नहीं किया गया है जिन पर राज्यपाल किसी विधेयक पर स्वीकृति रोक सकता है, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि राज्यपाल द्वारा शक्ति का प्रयोग अत्यंत संयम से किया जाना चाहिए और इस तरह के कदमों को परिणामों के बारे में सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श के बाद ही उठाया जाना चाहिए।
- इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 361 के प्रावधानों के अनुसार, अदालतों को अपनी शक्तियों के प्रयोग में किए गए किसी भी कार्य के लिए राज्यपाल या राष्ट्रपति के खिलाफ कार्यवाही करने से रोक दिया गया है। उन्हें अदालती कार्यवाही से पूर्ण छूट है।
- हालाँकि, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि राज्यपाल को अनुमति न देने का कारण बताना होगा क्योंकि राज्यपाल मनमाने तरीके से कार्य नहीं कर सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट की बेंच के अनुसार रामेश्वर प्रसाद और अन्य v/s यूनियन ऑफ इंडिया और Anr. मामला, “अनुच्छेद 361 (1) द्वारा दिया गया संरक्षण , हालांकि, दुर्भावना के आधार पर कार्रवाई की वैधता की जांच करने के लिए न्यायालय की शक्ति में कटौती नहीं करती है” और इनकार करने के असंवैधानिक आधार को समाप्त किया जा सकता है यदि वे दुर्भावनापूर्ण पाए जाते हैं
- इसके अतिरिक्त, संविधान में राज्यपाल के लिए सहमति के प्रश्न को तय करने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। इससे कानून बनाने की प्रक्रिया में काफी देरी हुई है और यह संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
अन्य देशों में अभ्यास:
- यूनाइटेड किंगडम में प्रथा यह है कि किसी विधेयक को कानून में बदलने के लिए शाही सहमति अनिवार्य है और ताज के पास सहमति न देने की शक्ति है।
- हालाँकि, इस प्रावधान को एक मृत पत्र कहा जाता है क्योंकि व्यवहार और उपयोग में इंग्लैंड में ताज द्वारा प्रयोग की जाने वाली वीटो का कोई महत्व नहीं है।
- इसके अलावा, इस आधार पर शाही सहमति से इनकार करना कि राजशाही विधेयक को अस्वीकार करती है, बहुत विवादास्पद है और इसे असंवैधानिक माना जाता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में, राष्ट्रपति के पास सहमति न देने और को विधेयक वापस करने की शक्तियां हैं। हालाँकि, यदि सदन इसे फिर से दो तिहाई बहुमत के साथ पारित कर देते हैं तो विधेयक कानून बन जाता है।
- कई लोकतांत्रिक देशों में सहमति से इनकार करने और वापस लेने की प्रथाओं का पालन नहीं किया जाता है और कुछ देशों में, यह असंवैधानिक है या संविधान एक उपाय प्रदान करता है ताकि विधायिका द्वारा पारित विधेयक सहमति न मिलने के बाद भी कानून बन सके।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:
आपदा प्रबंधन:
आपदा-प्रवण – शहरी भारत की चिंताजनक कहानी
विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन।
मुख्य परीक्षा:देश में शहरी बाढ़ शमन प्रयासों की कमियां और समाधान।
संदर्भ:
- देश में शहरी बाढ़ के हालिया उदाहरणों के मद्देनजर, लेख शमन प्रयासों से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करता है और विभिन्न समाधान उपायों की सिफारिश करता है।
पृष्ठभूमि:
- बेंगलुरु में बाढ़ की हालिया घटनाओं ने शहर की IT कंपनियों के संचालन को बुरी तरह बाधित कर दिया है।
- इसी तरह, दिल्ली (2013, 2021), मुंबई (2005, 2017), चेन्नई (2015, 2021) और हैदराबाद (2020) में भी ऐसी घटनाएं देखी गईं।
- देश में शहरी बाढ़ की घटनाओं ने संपत्ति और जीवन को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है।
- मुंबई में 2005 और 2015 के बीच ₹14,000 करोड़ से अधिक के नुकसान की सूचना है और यह अनुमान लगाया गया कि चेन्नई को 2015 में ₹15,000 करोड़ के नुकसान का सामना करना पड़ा।
- इसके अलावा, शहरी बाढ़ भी महत्वपूर्ण सामाजिक और मानवीय कारणों से आती है, जो आमतौर पर समाज के गरीब वर्गों को प्रभावित करती है क्योंकि वे पर्यावरण की दृष्टि से कमजोर क्षेत्रों में रहते हैं।
- जैसा कि बेंगलुरु के मामले में देखा गया, शहर के IT उद्योग पर बाढ़ के प्रभाव पर अधिक ध्यान दिया गया जबकि अनौपचारिक बस्तियों के विनाश पर कम ध्यान दिया गया।
शहरी बाढ़ को रोकने और कार्य योजनाओं में खामियां:
- जब भी बाढ़ की ऐसी घटनाएं होती हैं, तो जनता और मीडिया को खुश करने के लिए प्रशासकों द्वारा राजनीति से प्रेरित आरोपों के बाद नदी/नाले की सफाई , अतिक्रमण विरोधी अभियान और तूफानी जल नेटवर्क परियोजनाएं शुरू की जाती हैं।
- हालांकि, इस तरह की कार्रवाइयों को टुकड़ों में समाधान कहा जाता है और ये चुनौतियों से समग्र रूप से निपटने में अक्षम हैं।
- इसके अलावा, देश में शहरी विकास के मास्टर प्लान विकसित करने के प्रति रुचि की कमी है।
- बेंगलुरू में 2015 से अपने विकास को नियंत्रित करने के लिए एक मास्टर प्लान की कमी है और देश में 65% से अधिक शहरी बस्तियों में ऐसे मास्टर प्लान की कमी है।
- दिल्ली के लिए ड्रेनेज मास्टर प्लान 1976 में तैयार किया गया था और 46 वर्षों से अधिक के बाद अब एक नई योजना लागू की जा रही है।
- मास्टर प्लान शुरू करने के लिए राज्य सरकारों की अपर्याप्त क्षमता और बैंडविड्थ के बावजूद, मास्टर प्लान विकसित करने की शक्तियां अभी भी राज्य सरकार के पास हैं।
- यहां तक कि अगर कोई मास्टर प्लान मौजूद है, तो ऐसी योजनाओं में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन शमन के मुद्दों को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
- इसके अलावा, जल निकासी लाइनों और झीलों को बनाए रखने की जिम्मेदारियों को राज्य और शहर के स्तर पर कई एजेंसियों / विभागों के बीच विभाजित किया जाता है।
- इसने जल निकासी लाइनों और झीलों के प्रशासन में विभिन्न चुनौतियों और व्यवधानों को जन्म दिया है।
- शहरी स्थानीय निकायों और शहरी सरकारों की भूमिका सीमित अधिकार वाले हितधारकों तक सीमित हो गई है। इसके बावजूद, कई शहरी प्रशासन विभिन्न बाढ़ शमन योजनाएँ लेकर आए हैं लेकिन इन योजनाओं में मास्टर प्लान की तरह वैधानिक समर्थन का अभाव है।
- मुंबई, अहमदाबाद और नागपुर जैसे शहरों में शहर प्रशासन ने जलवायु कार्य योजनाओं को विकसित करना शुरू कर दिया है। हालाँकि, इन योजनाओं को दंतहीन कहा जाता है क्योंकि इनमें वैधानिक समर्थन की कमी होती है और ये किसी भी नियामक नियंत्रण को निर्धारित करने में विफल होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, इन योजनाओं को मुख्य रूप से विशेषज्ञों और अधिकारियों द्वारा बिना सार्वजनिक भागीदारी के विकसित किया जाता है। यह योजना की विश्वसनीयता को और कम करता है।
- नागरिक परामर्श की कमी ऐसी योजनाओं की विश्वसनीयता को कम करती है।
अनुशंसित समाधान:
- देश के सभी महत्वपूर्ण शहरों के लिए एक व्यापक जलवायु कार्य योजना विकसित करने और इन योजनाओं को शहर के मास्टर प्लान के दायरे में रखकर वैधानिक दर्जा और समर्थन देने की आवश्यकता है।
- योजना को विकसित करने की प्रक्रिया के एक भाग के रूप में सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रियाओं को संस्थागत बनाने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसे उपाय प्रशासनिक और राजनीतिक विरोध से निपटने के लिए योजनाओं के लिए आवश्यक विश्वसनीयता प्रदान करते हैं।
- इसके अलावा, सार्वजनिक परामर्श उन क्षेत्रों के विभिन्न मुद्दों की पहचान करने में भी मदद करते हैं जिन्हें अक्सर मीडिया और निर्णय लेने वाले निकायों द्वारा अनदेखा किया जाता है।
- एक पर्यावरण संरक्षण एजेंसी स्थापित करने की भी आवश्यकता है जिसे जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों से सक्रिय रूप से निपटने के लिए अनिवार्य किया जाए।
- समन्वित प्रयास करने के लिए, इस एजेंसी को विभिन्न शहरों द्वारा गठित एकीकृत परिवहन प्राधिकरण की तर्ज पर एक व्यापक निकाय बनाया जाना चाहिए।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
तटस्थता, परहेज
विषय: भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।
मुख्य परीक्षा: रूस-यूक्रेन युद्ध में नवीनतम घटनाक्रम और भारत की स्थिति।
संदर्भ:
- रूस द्वारा यूक्रेन के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने की पृष्ठभूमि में भारत के प्रधान मंत्री ने टेलीफोन पर यूक्रेन के राष्ट्रपति से बात की।
पृष्ठभूमि:
- रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत और रूस पर निम्नलिखित पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद से, वैश्विक खाद्य, ईंधन और ऊर्जा सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
- हाल ही में, रूस ने जनमत संग्रह करवाया और यूक्रेन के डोनेट्स्क, लुहान्स्क, ज़ापोरिज़्ज़िया और खेरसॉन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, जिसने स्थिति और बिगड़ गई है।
- इस संदर्भ में, भारत ने रूस की आक्रामकता की आलोचना करने वाले सभी मतों से परहेज करना जारी रखा है, लेकिन यूक्रेन के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी जारी रखी है।
बैठक के परिणाम:
- कहा जाता है कि भारतीय प्रधान मंत्री (PM) ने शत्रुता को शीघ्र समाप्त करने का आह्वान किया और बैठक के दौरान बातचीत और कूटनीति के मार्ग को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर डाला।
- प्रधान मंत्री ने यह भी दोहराया कि संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता है और परमाणु सुविधाओं को किसी भी तरह की क्षति सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती है।
- दोनों देशों के नेताओं ने परमाणु सुरक्षा के महत्वपूर्ण महत्व पर चर्चा की, विशेष रूप से ज़ापोरिज्जिया पर। IAEA यूक्रेन और रूस के बीच एक परमाणु सुरक्षा क्षेत्र बनाने के लिए बातचीत करने की कोशिश कर रहा है।
- इसके अलावा, भारत के प्रधान मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने और सभी राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की आवश्यकता पर बल दिया और शांति प्रयासों में योगदान करने के लिए भारत की तत्परता से भी अवगत कराया।
- 2021 में ग्लासगो में अपनी पिछली बैठक के बाद, दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में भी बात की।
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
- आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS)
विषय: विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप।
प्रारंभिक: सरकारी योजनाएं।
संदर्भ:
- केंद्र सरकार ने हाल ही में आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) के तहत एयरलाइनों के लिए क्रेडिट सीमा बढ़ा दी है।
विवरण:
- केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने एयरलाइनों के लिए क्रेडिट सीमा बढ़ा दी है, जिससे वे अपने बकाया ऋण के 100% के बराबर तक राशि (अधिकतम 1,500 करोड़ रुपये) तक उधार लेने हेतु पात्र हो गईं हैं।
- इससे पहले, एयरलाइंस अपने बकाया ऋण के 50% तक (400 करोड़ रुपये तक) उधार लेने हेतु पात्र थीं।
- यह दूसरी बार है जब सरकार ने विमानन क्षेत्र के हित में योजना को उदार बनाया है।
- विदेशी विनिमय दरों में अस्थिरता, ईंधन की ऊंची कीमतों और दुनिया की कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंकाओं को देखते हुए, विमानन क्षेत्र अत्यधिक दबाव में है। क्रेडिट लिमिट में इस बढ़ोतरी से एयरलाइंस को आश्चर्यजनक रूप से बढ़ावा मिलेगा।
योजना के बारे में:
- यह योजना सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के उधारकर्ताओं के लिए कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुए संकट को कम करने के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के एक भाग के रूप में शुरू की गई थी।
- इसे मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया था और इसके तहत गारंटी कवर को 50,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर 5 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था।
आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:
https://byjus.com/current-affairs/eclgs-emergency-credit-line-guarantee-scheme/
- ओपेक प्लस
विषय: अंतर्राष्ट्रीय संबंध।
प्रारंभिक परीक्षा: समाचारों में अंतर्राष्ट्रीय संस्थान।
संदर्भ:
- ओपेक प्लस के सदस्य हाल ही में वर्ष 2020 के कोविड महामारी के बाद से उत्पादन में सबसे बड़ी कटौती करने के लिए सहमत हुए हैं।
विवरण:
- ओपेक प्लस सदस्यों ने विपरीत बाजार परिस्थितियों और संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अन्य देशों द्वारा कटौती का विरोध किए जाने के बावजूद वर्ष 2020 के बाद से उत्पादन में सबसे बड़ी कटौती करने पर सहमति व्यक्त की है।
- ओपेक प्लस संगठन द्वारा 2 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) की कटौती करने से तेल की कीमतों में सुधार हो सकता है जो वैश्विक मंदी, अमेरिकी ब्याज दरों में वृद्धि और डॉलर के मूल्य में वृद्धि के कारण 120 डॉलर से लगभग 90 डॉलर तक गिर गईं है।
- प्रतिदिन दो मिलियन बैरल की कटौती वैश्विक तेल उत्पादन का लगभग 2 प्रतिशत है।
- यह फैसला अन्य कारणों के अलावा रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद, अधिक तेल आपूर्ति करने के अमेरिकी और अन्य देशों के अनुरोध के बावजूद लिया गया है।
- अगस्त 2022 में, ओपेक प्लस संगठन अपना उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने से 3.58 मिलियन बीपीडी दूर रह गया था क्योंकि कई देश पहले से ही अपने मौजूदा कोटे से काफी कम उत्पादन कर रहे थे।
ओपेक प्लस:
- ओपेक प्लस क्रूड उत्पादकों के गठबंधन को संदर्भित करता है, जो वर्ष 2016 से तेल बाजार में आपूर्ति में सुधार कर रहे हैं।
- यह 23 तेल उत्पादक देशों के समूह को संदर्भित करता है जिसमें ओपेक के 13 सदस्य (सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इराक, कुवैत, अल्जीरिया, अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, लीबिया, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य और वेनेजुएला) और 10 अन्य तेल उत्पादक देश (रूस, अजरबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कजाकिस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, दक्षिणी सूडान और सूडान) शामिल हैं।
- ओपेक के सदस्यों में सऊदी अरब सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है।
ओपेक देशों के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए।
https://byjus.com/free-ias-prep/the-organization-of-the-petroleum-exporting-countries-opec/
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. टाइग्रे क्षेत्र के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-मध्यम)
- यह इथियोपिया का सबसे उत्तरी क्षेत्रीय राज्य है।
- यह क्षेत्र इरिट्रिया, सूडान और जिबूती से घिरा हुआ है।
- यह टाइग्रेयन, इरोब और कुनामा लोगों की मातृभूमि है।
उपर्युक्त कथनों में से कितना/कितने सही हैं/हैं?
- केवल एक कथन
- केवल दो कथन
- सभी तीनों कथन
- इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 और 3 सही हैं: टाइग्रे क्षेत्र इथियोपिया के नौ क्षेत्रों में से सबसे उत्तरी क्षेत्र है। यह टाइग्रेयन, इरोब और कुनामा लोगों की मातृभूमि है।
चित्र स्रोत: Aljazeera
- कथन 2 गलत है: यह उत्तर में इरिट्रिया, पश्चिम में सूडान, दक्षिण में अम्हारा क्षेत्र (इथियोपिया) और पूर्व और दक्षिण पूर्व में अफ़ार क्षेत्र (इथियोपिया) से घिरा हुआ है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-कठिन)
- ब्राजील के बाद भारत दुनिया में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने की योजना (SEFASU) और राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति गन्ना उत्पादन को समर्थन देने के लिए सरकार की दो पहले हैं।
- कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) की सिफारिशों के आधार पर गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य की घोषणा करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कितना/कितने सही है/हैं?
- केवल एक कथन
- केवल दो कथन
- सभी तीनों कथन
- इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: भारत मई 2022 में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया था। लगभग 80 प्रतिशत चीनी का उत्पादन महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में होता है।
- कथन 2 सही है: सरकार ने 2014 में चीनी मिलों को अतिरिक्त कार्यशील पूंजी प्रदान करने के लिए बैंक द्वारा ब्याज मुक्त ऋण की परिकल्पना करने वाली चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने की योजना (SEFASU-2014) को अधिसूचित किया था, ताकि पिछले चीनी सीजन के बकाया गन्ना मूल्य और गन्ना किसानों को वर्तमान चीनी सीजन के गन्ना मूल्य का समय पर भुगतान किया जा सके।
- राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति, 2018 खाद्यान्न की अधिशेष मात्रा को इथेनॉल में बदलने की अनुमति देती है। नीति गन्ने के रस, चीनी युक्त सामग्री जैसे चुकंदर, स्वीट सोरगम को कच्चे माल के रूप में उपयोग करने की अनुमति देती है।
- कथन 3 गलत है: उचित और लाभकारी मूल्य का निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर किया जाता है तथा आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा घोषित किया जाता है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।
प्रश्न 3. “काइनेटिक इंपेक्शन” शब्द को इनमें से किस मिशन के संबंध में देखा गया था? (स्तर-कठिन)
- डार्ट मिशन
- जूनो मिशन
- कैसिनी मिशन
- गगनयान मिशन
उत्तर: a
व्याख्या:
- हाल ही में, नासा के दोहरे क्षुद्रग्रह पुनर्निर्देशन परीक्षण (DART), दुनिया का पहला ग्रह रक्षा प्रौद्योगिकी प्रदर्शन, ने गतिज प्रभाव का उपयोग करके अपने क्षुद्रग्रह लक्ष्य को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया है।
- गतिज प्रभाव विधि में एक या एक से अधिक बड़े, उच्च गति वाले अंतरिक्षयान को पृथ्वी के निकट कक्षीय पथ में भेजना शामिल है। यह क्षुद्रग्रह को एक अलग प्रक्षेपवक्र में विक्षेपित कर सकता है और इसे पृथ्वी के कक्षीय पथ से दूर ले जा सकता है।
प्रश्न 4. हाल ही में चर्चा में रहा ह्वासोंग-17 क्या है? (स्तर-कठिन)
- उत्तर कोरिया की इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM)।
- तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के लिए चीन का मानव रहित अंतरिक्ष यान मिशन।
- दक्षिण कोरिया की कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल।
- चीन की युद्धाभ्यास एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल।
उत्तर: a
व्याख्या:
- उत्तर कोरिया ने ह्वासोंग-17 नामक एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) का परीक्षण किया है। यह मिसाइल अब तक विकसित सबसे बड़ी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है।
- ह्वासोंग-17, 22-पहिए वाले ट्रांसपोर्टर इरेक्टर लॉन्चर (TEL) वाहन द्वारा ले जाई जाने वाली दो चरणों वाली, तरल ईंधन चालित रोड-मोबाइल अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है।
प्रश्न 5. कवकमूलीय (माइकोराइजल) जैव प्रौद्योगिकी को निम्नीकृत स्थलों के पुनर्वासन में उपयोग में लाया गया है क्योंकि कवकमूल के द्वारा पौधों में-(स्तर-कठिन)
- सूखे का प्रतिरोध करने एवं अवशोषण क्षेत्र बढ़ाने की क्षमता आ जाती है।
- PH की अतिसीमाओं को सहन करने की क्षमता आ जाती है।
- रोगग्रस्तता से प्रतिरोध की क्षमता आ जाती है।
निम्नलिखत कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
- केवल 1
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: d
व्याख्या:
- माइकोराइजा, कवक और पौधों के बीच एक सहजीवी संबंध का निर्माण करता है।
- इस संबंध के परिणामस्वरूप पौधों और उसकी जड़ों की वृद्धि एवं विकास होता है।
- माइकोराइजा कवक जैव-उर्वरक के रूप में कार्य करता है और मृदा जीव विज्ञान तथा रसायन विज्ञान को बनाए रखने में मदद करता है।
- माइकोराइजल कवक पौधों के पोषक तत्व ग्रहण, जल संबंध, पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना, पौधों की विविधता और पौधों की उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- माइकोराइजा पौधों को जड़ रोगजनकों और जहरीले जीवों से भी बचाता है।
- खनन गतिविधियां मिट्टी के पोषक तत्व, pH, विषाक्तता, थोक घनत्व, जैविक गतिविधि और मिट्टी की नमी को प्रभावित करती हैं। इसलिए इन अवक्रमित खनन स्थलों को पूर्व अवस्था में लाने के लिए माइकोराइजल जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. राज्यपाल के कार्यों के निर्वहन में देरी लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है। प्रासंगिक उदाहरणों के साथ कथन की व्याख्या कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (GS II-राजव्यवस्था)
प्रश्न 2. भारत में शहरी बाढ़ के कारणों पर चर्चा कीजिए और इसके लिए एक मास्टर प्लान तथा एक व्यापक जलवायु कार्रवाई रणनीति की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (GS I -सामाजिक मुद्दे)