A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: सामाजिक न्याय:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: शासन:
F. प्रीलिम्स तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
ALS रोगी और उनकी देखभाल करने वाले इस रोग से संबंधित कई मुद्दों से जूझते हैं:
सामाजिक न्याय:
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन आदि जैसे सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS)) से सम्बंधित जानकारी।
मुख्य परीक्षा: ALS निदान में चुनौतियों का विश्लेषण, रोगियों और देखभाल करने वालों पर मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव और वित्तीय सहायता प्रदान करने में सरकारी नीतियों की भूमिका।
प्रसंग:
- एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) नीता पारेख जैसे रोगियों के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करता है, जो पक्षाघात के कारण केवल पलकें झपकाकर संवाद करते हैं। जिसकी वजह से देखभाल करने वालों को भी अत्यधिक शारीरिक और भावनात्मक बोझ उठाना पड़ता है।
विवरण:
- एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है जो स्वैच्छिक कार्यों को नियंत्रित करने वाले मोटर (चालक) न्यूरॉन्स को प्रभावित करती है।
- इन न्यूरॉन्स पर निर्भर मांसपेशियाँ क्षीण हो जाती हैं, जिसकी वजह से वे गति और कार्य में अक्षम हो जाते है।
ALS प्रगति और चुनौतियाँ:
- ALS श्वसन की मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाले मोटर न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है, जिससे सांस लेने पर असर पड़ता है।
- इसका कोई प्रभावी इलाज नहीं; इस रोग के सर्वोत्तम उपचारों में जीवन को बढ़ाने के लिए दवाएं और हस्तक्षेप शामिल होते हैं।
- जीवित रहने का समय औसतन तीन वर्ष है; व्यक्तियों में रोग की प्रगति अलग-अलग होती है।
निदान चुनौतियाँ:
- निश्चित बायोमार्कर की अनुपस्थिति के कारण निदान शुरू होने में औसतन 8 से 15 महीने लगते हैं।
- ALS निदान के लिए शरीर के कम से कम 2 क्षेत्रों में मोटर सेल विफलता का पता लगाना आवश्यक है।
- निदान की जटिलता देखभाल करने वालों और रोगियों के लिए कष्टदायक प्रतीक्षा का कारण बनती है।
देखभाल करने वालों पर प्रभाव:
- देखभाल करने वालों का जीवन काफी हद तक बदल जाता है; वे PALS के लिए प्राथमिक समर्थन बन जाते हैं।
- चुनौतियों में दैनिक देखभाल, भावनात्मक तनाव और बदली हुई दिनचर्या शामिल हैं।
- देवांशी तल्सानिया ने अपनी माँ की पूरे समय देखभाल करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- ALS रोगियों में अवसाद का उच्च प्रसार जीवन की गुणवत्ता और गतिशीलता को प्रभावित करता है।
- PALS स्वतंत्रता खो देते हैं,जिससे सामाजिक अलगाव और अवसाद उत्पन्न होता है।
ढांचागत अक्षमताएँ:
- व्हीलचेयर की पहुंच की कमी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
- इमारतें और सार्वजनिक स्थान अक्सर व्हीलचेयर के अनुकूल नहीं होते हैं।
- वित्तीय माँगें: दवाएँ, नर्स, फिजियोथेरेपी और संशोधनों की लागत काफी अधिक है।
वित्तीय चुनौतियाँ और सरकारी नीति:
- ALS रोगियों और देखभाल करने वालों पर पर्याप्त वित्तीय बोझ डालता है।
- दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति (National Policy for Rare Diseases (NPRD)), 2021, दुर्लभ बीमारियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- वैश्विक महामारी विज्ञान अध्ययन के अनुसार ALS एक ‘दुर्लभ बीमारी’ है, लेकिन इसके वर्गीकरण के मानदंड अलग-अलग हैं।
निष्कर्ष:
- ALS रोगियों के संघर्ष में शारीरिक, भावनात्मक और वित्तीय चुनौतियाँ शामिल हैं।
- देखभाल करने वालों को महत्वपूर्ण जीवनशैली में बदलाव और मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव का सामना करना पड़ता है।
- NPRD जैसी सरकारी नीतियां कुछ राहत प्रदान करती हैं लेकिन ‘दुर्लभ बीमारी’ (‘rare disease‘ ) वर्गीकरण के मानदंडों में स्पष्टता की आवश्यकता है।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम में अंतराल:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
शासन:
विषय: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप और उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम, 2023 का प्रावधान और यह सेवा वितरण में कैसे सुधार करेगा?
संदर्भ:
- डेटा प्रबंधन, सेवा दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम (1969) को जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम, 2023 के माध्यम से संशोधित किया गया है।
भूमिका
- जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 के माध्यम से मौजूदा जन्म और मृत्यु पंजीकरण (RBD) अधिनियम, 1969 में बदलाव किया जा रहा है।
- हाल ही में संसद और भारत के राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित, यह संशोधन मूल कानून की सीमाओं को संबोधित करना चाहता है।
अधिनियम में कमी:
- जन्म और मृत्यु के लिए आधार संख्या:
- संशोधन विधेयक में जन्म पंजीकरण के दौरान माता-पिता की आधार संख्या की आवश्यकता होती है, लेकिन मृत व्यक्तियों के लिए आधार संख्या एकत्र करने पर यह मौन है।
- यह चूक डेटाबेस के व्यापक अद्यतनीकरण और पारदर्शी सार्वजनिक सेवा वितरण में बाधा डालती है।
- केंद्र और राज्य डेटाबेस:
- यद्यपि संशोधन अधिनियम रजिस्ट्रार जनरल और राज्य के मुख्य रजिस्ट्रारों की भूमिकाओं को सुदृढ़ करता है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर के डेटाबेस की आवश्यकता पर प्रश्न उठाया गया है।
- राज्य-स्तरीय डेटाबेस से सीधे अन्य प्रणालियों में डेटा संचारित करने की क्षमता एक भिन्न राष्ट्रीय डेटाबेस को निरर्थक बना सकती है।
मृत्यु प्रमाण पत्र का कारण:
- संशोधन अधिनियम चिकित्सा संस्थानों में होने वाली मौतों के लिए मृत्यु का कारण प्रमाणपत्र अनिवार्य करता है।
- हालाँकि, अनिश्चित निदान, वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों में अंतर और गैर-चिकित्सकीय मौतों के दौरान चिकित्सकों की अनुपलब्धता के कारण चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
अपेक्षित सकारात्मक परिणाम:
- कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण:
- संशोधन अधिनियम में प्रस्तावित केंद्रीय और राज्य-स्तरीय डेटाबेस का उद्देश्य सेवा प्रावधान दक्षता को बढ़ाना है।
- इससे आधार, मतदाता सूची आदि सहित विभिन्न महत्वपूर्ण प्रणालियों को अपडेट करने की सुविधा मिलने की उम्मीद है।
- सुव्यवस्थित जन्म और मृत्यु पंजीकरण:
- केंद्रीय और राज्य-स्तरीय डेटाबेस अतिरेक को कम करते हैं और डेटा प्रबंधन में समन्वय को बढ़ाते हैं।
- सुव्यवस्थित जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की उम्मीद।
- उन्नत डेटा साझाकरण:
- संशोधन अधिनियम आधार, मतदाता सूची आदि जैसी प्रणालियों में अधिक कुशल डेटा प्रवाह को सक्षम बनाता है।
- सार्वजनिक सेवा वितरण और डेटा सटीकता में उल्लेखनीय सुधार करने की क्षमता रखता है।
- त्रासदी में समय पर प्रमाण पत्र:
- प्रस्तावित ‘अनुमानित मृत्यु’ प्रावधान प्राकृतिक आपदाओं या दुर्घटनाओं से प्रभावित परिवारों के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र देने में तेजी ला सकता है।
- लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के कष्ट को कम करने के लिए एक दयालु दृष्टिकोण।
- मान्यता प्राप्त प्रमाण दस्तावेज:
- संशोधन अधिनियम विभिन्न उद्देश्यों के लिए जन्म प्रमाण पत्र को वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार करता है।
- यह प्रावधान, जिसके लिए अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता नहीं है, नियम परिवर्तन या कार्यकारी आदेशों के माध्यम से अधिक कुशल सेवा वितरण की क्षमता को रेखांकित करता है।
सारांश:
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डेटा संरक्षण कानून में शब्द चयन और अधिकारों का कमजोर होना:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
शासन:
विषय: शासन, ई-गवर्नेंस
मुख्य परीक्षा: डेटा संरक्षण अधिनियम के प्रावधान और निजता के अधिकार तथा निगरानी की राज्य सीमा के बीच बहस।
संदर्भ: भारत के डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 में कमजोर सहमति मानक, आवश्यकता से अधिक सुविधा, अधिकारों का क्षरण, और बहुउद्देश्यीय डेटा उपयोग को लेकर चिंताएं हैं।
भूमिका: भारत में लंबे समय से प्रतीक्षित डेटा संरक्षण कानून, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 को अंतिम रूप दे दिया गया है। हालाँकि प्रगति निष्क्रियता से बेहतर है, लेकिन गोपनीयता अधिकारों पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण विश्लेषण की आवश्यकता है। कानून की प्रभावशीलता दो मूलभूत पहलुओं व्यक्तिगत डेटा का सहमति-आधारित और गैर-सहमति-आधारित उपयोग पर निर्भर करती है।
मानक स्थितियाँ और चिंताएँ:
- सहमति पहेली: डेटा सुरक्षा में मुख्य चुनौती सहमति मानक को परिभाषित करना है। क्या व्यक्तियों को वास्तव में इस बात का अधिकार है कि उनके डेटा का उपयोग कैसे किया जाता है? उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत प्रोफाइलिंग के लिए ऑनलाइन व्यवहार की जांच की जा सकती है।
- अधिनियम में प्रावधान: कानून स्पष्ट सकारात्मक कार्यों के माध्यम से सूचित सहमति की आवश्यकता वाले प्रावधानों को प्रस्तुत करता है। हालाँकि, यदि व्यक्तियों ने स्पष्ट रूप से सहमति से इनकार नहीं किया है तो डेटा उपयोग की अनुमति देने वाले एक खंड द्वारा ये प्रावधान कमजोर हो गए हैं। इस वाक्यांश का अर्थ है कि इनकार का संकेत न देना सहमति के समान है, जो अस्पष्टता को बढ़ावा देता है।
- अस्पष्टता और भ्रम: अस्पष्ट भाषा सहमति मानकों की व्याख्या के बारे में चिंता उत्पन्न करती है, जिससे कानूनी भ्रम और व्यावसायिक अनिश्चितता उत्पन्न होती है। कमजोर प्रावधान संभावित रूप से मजबूत प्रावधान पर भारी पड़ सकता है।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Digital Personal Data Protection Bill, 2022
सुविधा और आवश्यकता को संतुलित करना:
- सार्वजनिक कार्यों को संचालित करना: कानून मानता है कि सख्त सहमति पहचान सत्यापन या कल्याण वितरण जैसे कुछ सार्वजनिक कार्यों में बाधा बन सकती है।
- पूर्व मसौदा बनाम नया कानून: पूर्व के मसौदे में यदि केवल विशिष्ट राज्य कार्यों के लिए “आवश्यक” हो सहमति के बिना डेटा के उपयोग पर जोर दिया गया था। नया कानून इस मानदंड को बदल देता है, डेटा प्रोसेसिंग की अनुमति देता है यदि यह कुछ वैध उपयोगों के लिए “है, न कि सख्त आवश्यकता के लिए”।
- गोपनीयता पर प्रभाव: यह सूक्ष्म शब्द परिवर्तन आवश्यक उपयोग के बजाय सुविधा-संचालित डेटा प्रोसेसिंग की अनुमति देकर गोपनीयता सुरक्षा के स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
अधिकारों का क्षरण और नियंत्रण का अभाव:
- अधिसूचना और सुधार का अधिकार: जब सहमति के बिना डेटा का उपयोग किया जाता है, तो व्यक्तियों को जानकारी नहीं होती है और गलत या अनावश्यक डेटा को सुधारने का अधिकार नहीं होता है। गैर-सहमति वाले डेटा को सही करने या मिटाने में असमर्थता सूचनात्मक गोपनीयता सिद्धांतों को कमजोर करती है।
- डेटा का बहुउद्देशीय उपयोग: कानून एक गैर-सहमति उद्देश्य के लिए एकत्र किए गए डेटा को अन्य उद्देश्यों के लिए स्वतंत्र रूप से उपयोग करने की अनुमति देता है। यह भारतीय सर्वोच्च न्यायालय (Indian Supreme Court.) द्वारा स्थापित आवश्यकता और उद्देश्य सीमा जैसे सिद्धांतों का खंडन करता है।
व्यापक चिंताएँ और निष्कर्ष:
- व्यापक चिंताएँ: आलोचक सूचना के अधिकार, स्वतंत्र भाषण, निगरानी सुधार और नियामक संरचना पर कानून के प्रभाव के बारे में चिंताओं को उजागर करते हैं।
- वैधानिकताओं के स्थान पर नीतिगत विकल्प: यद्यपि कुछ लोग मुद्दों को केवल कानूनी विवरण के रूप में देख सकते हैं, लेकिन वे जानबूझकर नीतिगत विकल्पों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो संभावित गोपनीयता अधिकारों को नष्ट कर देते हैं।
- डेटा सुरक्षा को बढ़ाना: यह सुनिश्चित करने के लिए कि डेटा सुरक्षा कानून व्यक्तिगत जानकारी की प्रभावी ढंग से सुरक्षा करता है, इन खामियों और अस्पष्टताओं को दूर करना जरूरी हो जाता है।
सारांश:
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क्या आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को बदलने की आवश्यकता है?
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
शासन:
विषय: शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पहलू
मुख्य परीक्षा: आपराधिक कानून में सुधार की आवश्यकता और हाल ही में पेश किए गए विधेयक का प्रावधान
संदर्भ: आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले प्रस्तावित विधेयक आधुनिकीकरण, अस्पष्टता, पुलिस शक्तियों, लैंगिक मुद्दों पर बहस को आगे बढ़ाते हैं।
आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए विधेयक की प्रस्तुति
- 11 अगस्त, 2023 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारतीय दंड संहिता ( Indian Penal Code (IPC)), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के उद्देश्य से लोकसभा में तीन विधेयक प्रस्तुत किए।
- इन प्रस्तावित परिवर्तनों ने आवश्यकता, मौजूदा कानूनों के संभावित दुरुपयोग और नए विधेयकों के निहितार्थों के बारे में चर्चा को प्रेरित किया है।
परिवर्तन की आवश्यकता: परिवर्तित मूल्यों को प्रतिबिंबित करना
- सामाजिक गतिशीलता में परिवर्तन: मौजूदा कानून – आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम – दशकों से लागू हैं, लेकिन ये विकसित हो रहे सामाजिक मूल्यों और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं के साथ पूरी तरह से मेल नहीं खाते हैं।
- आधुनिकीकरण के प्रयास: प्रस्तावित विधेयक कानूनों को समकालीन वास्तविकताओं के साथ संरेखित करने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय न्याय संहिता विधेयक 175 धाराओं में संशोधन करता है, 8 नई धाराएं पेश करता है, और इन परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने के लिए आईपीसी की 22 धाराओं को निरस्त करता है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Indian Evidence Act
नए विधेयकों में चिंताएँ और अस्पष्टताएँ
- बिना किसी आरोप के हिरासत में रखना: एक विवादास्पद बिंदु नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता ( Code of Criminal Procedure) में बिना किसी आरोप के हिरासत को 60 से 90 दिनों तक बढ़ाना है। इससे सुरक्षा चिंताओं और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन पर सवाल उठता है।
- पुलिस द्वारा विवेक और बल का उपयोग: नई सीआरपीसी पुलिस को विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करती है, जिससे हथकड़ी लगाने, असाधारण परिस्थितियों में सूर्यास्त के बाद महिलाओं की गिरफ्तारी और गिरफ्तारी के दौरान बल का उपयोग करने जैसी कार्रवाइयों की अनुमति मिलती है। यह विवेकाधीन शक्ति संभावित रूप से मुठभेड़ों और हिंसा को वैध बना सकता है।
- हिरासत अवधि: भारतीय न्याय संहिता विधेयक में हिरासत अवधि को 90 दिनों तक बढ़ाने का प्रस्ताव है। उचित प्रक्रिया पर संभावित प्रभाव को देखते हुए, इस तरह के विस्तार की आवश्यकता पर बहस चल रही है।
नए विधेयकों में समानताएं और बदलाव
- कुछ प्रथाओं की निरंतरता: बदलावों के बावजूद, नए विधेयक कुछ मौजूदा प्रथाओं को बरकरार रखते हैं, जैसे हिंसा, बिना किसी आरोप के हिरासत में रखना और अपराधों को परिभाषित करने में संभावित अस्पष्टताएं।
- परिभाषाओं में अस्पष्टता: “देशद्रोह” (sedition) को “विध्वंसक गतिविधियों” से बदलने और “आतंकवादी कृत्यों” की व्यापक परिभाषा इन शब्दों की अस्पष्टता और दुरुपयोग के बारे में चिंता पैदा करती है।
- लिंग और यौन अपराधों के मुद्दे: नवीन कानून महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों को संबोधित करते हैं लेकिन पुरुषों या गैर-बाइनरी व्यक्तियों से जुड़े अपराधों पर स्पष्टता का अभाव है।
मौजूदा पूर्व निर्णय और न्यायशास्त्र पर प्रभाव
- कानूनी पूर्व निर्णय का विघटन: प्रमुख प्रावधानों का निरसन और निरस्तीकरण स्थापित कानूनी पूर्व निर्णय और केस पर प्रभाव के बारे में चिंता पैदा करता है।
- अपराधों की पुनर्परिभाषा: ‘विध्वंसक गतिविधियों’ जैसे नए प्रावधान और संख्यात्मक अनुभाग संदर्भों में परिवर्तन कानूनी दस्तावेज़ीकरण और प्रवर्तन को जटिल बना सकते हैं।
मौजूदा कानूनों का दुरुपयोग: चिंताओं का समाधान
- दुरुपयोग की रोकथाम: यद्यपि मौजूदा कानूनों के कुछ सेक्शन का दुरुपयोग किया गया है, लेकिन पूरे कानून को अप्रासंगिक बनाए बिना दुरुपयोग को संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
- विशिष्ट परिवर्तन: समान लिंग के बीच सहमति से यौन संबंध से संबंधित धारा 377 को हटाना एक महत्वपूर्ण कदम रहा है। हालाँकि, उचित प्रतिस्थापन के बिना प्रावधानों को निरस्त करने को लेकर चिंता बनी हुई है।
- आईपीसी की धारा 377 से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Section 377 of IPC
नए विधेयकों में स्वागत योग्य बदलाव
- आतंकवाद और संगठित अपराधों की परिभाषा: आतंकवाद और संगठित अपराधों को परिभाषित करने के प्रयास को इन मुद्दों के समाधान की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाता है।
- त्वरित सुनवाई: आपराधिक न्याय प्रणाली की दक्षता बढ़ाने के लिए सुनवाई में तेजी लाने के प्रावधान, जैसे मुकदमे की समाप्ति के बाद 30 दिनों के भीतर निर्णय की आवश्यकता और स्थगन को दो तक सीमित करना, स्वागत योग्य है।
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. राष्ट्रपति मुर्मू ने युद्धपोत विंध्यगिरि का शुभारंभ किया:
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोलकाता में गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) में भारतीय नौसेना के अंतिम प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट ( Project 17A frigate ) विंध्यागिरी को लॉन्च किया।
- यह प्रक्षेपण भारत की समुद्री क्षमताओं को बढ़ाता है और स्वदेशी जहाज निर्माण के लिए आत्मनिर्भर भारत के साथ संरेखित होता है।
- प्रोजेक्ट 17A आत्मनिर्भरता और तकनीकी उन्नति का प्रतीक है।
- राष्ट्रपति ने हिंद महासागर क्षेत्र और इंडो-पैसिफिक को सुरक्षित करने में नौसेना की सक्रिय भूमिका पर प्रकाश डाला।
- लॉन्च के बाद, विंध्यागिरि डिलीवरी और कमीशनिंग से पहले उपकरण परीक्षणों के लिए आउटफिटिंग जेट्टी में सहयोगी जहाजों में शामिल हो गए हैं।
2. WHO प्रमुख ने राष्ट्रों से पारंपरिक चिकित्सा की शक्ति को अनलॉक करने को कहा:
- पारंपरिक चिकित्सा पर वैश्विक शिखर सम्मेलन:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में एकीकरण:
- घेब्रेयसस को उम्मीद है कि “गुजरात घोषणा” राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में पारंपरिक चिकित्सा को शामिल करेगी।
- अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिए पारंपरिक चिकित्सा और विज्ञान के विलय का आह्वान किया गया।
- आयुष मंत्रालय की भूमिका:
- आयुष मंत्रालय द्वारा सह-आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा की शक्ति को उजागर करना है।
- विज्ञान समर्थित पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के महत्व पर जोर देता है।
- स्वास्थ्य संबंधी सतत विकास लक्ष्य:
- स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने संयुक्त राष्ट्र (UN) के स्वास्थ्य संबंधी सतत विकास लक्ष्यों ( Sustainable Development Goals) के लिए जी-20 की सामूहिक क्षमता पर प्रकाश डाला।
- “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” के लोकाचार के तहत एकजुट दुनिया की कल्पना करता है।
- पारंपरिक चिकित्सा के लिए वैश्विक केंद्र:
- WHO का ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (WHO’s Global Centre for Traditional Medicine), जिसका मुख्यालय जामनगर, गुजरात में है, दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा को आगे बढ़ाता है।
- पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में वैश्विक प्रगति को तेज करता है।
- चिकित्सा मूल्य यात्रा:
- मंत्री मंडाविया ने चिकित्सा मूल्य यात्रा के लिए एडवांटेज हेल्थकेयर इंडिया पोर्टल लॉन्च किया।
- चिकित्सा मूल्य यात्रा अधूरी वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं के लिए विशेष संसाधनों और सेवाओं को साझा करने की सुविधा प्रदान करती है।
- घेब्रेयसस ने अद्वितीय और अनुपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल समाधानों की पेशकश के लिए चिकित्सा मूल्य यात्रा का लाभ उठाने का सुझाव दिया है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1.एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- ALS रीढ़ की हड्डी में संवेदी न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है।
- स्वैच्छिक कार्यों को नियंत्रित करने वाले मोटर न्यूरॉन्स ALS से प्रभावित होते हैं।
- प्रगतिशील मोटर न्यूरॉन मृत्यु के कारण मांसपेशी अपक्षय होता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कितने सही हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीनों
(d) कोई नहीं
उत्तर: b
व्याख्या:
- एएलएस मोटर न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है, संवेदी न्यूरॉन्स को नहीं। स्वैच्छिक कार्यों को नियंत्रित करने वाले मोटर न्यूरॉन्स प्रभावित होते हैं, जिससे मांसपेशी शोष (अपक्षय) होता है।
प्रश्न 2.प्रोजेक्ट 17A (Alpha) फ्रिगेट्स के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- प्रोजेक्ट 17A एक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य भारतीय नौसेना के लिए उन्नत पनडुब्बियां विकसित करना है।
- इनका निर्माण मेक इन इंडिया पहल के तहत स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है।
- इनका निर्माण हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कितने सही हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीनों
(d) कोई नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 और 3 गलत हैं; प्रोजेक्ट 17A पनडुब्बियों से नहीं बल्कि फ्रिगेट्स से संबंधित है। इनका निर्माण मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स (एमडीएल) और गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 3. किस भारतीय राज्य ने 2023 में पहले WHO पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक शिखर सम्मेलन की मेजबानी की?
(a) महाराष्ट्र
(b) राजस्थान
(c) गुजरात
(d) कर्नाटक
उत्तर: c
व्याख्या:
- पहले WHO पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक शिखर सम्मेलन की मेजबानी गुजरात राज्य द्वारा की गई थी।
प्रश्न 4. डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन गलत है/हैं?
- यदि व्यक्तियों ने असहमति का “संकेत नहीं दिया है” तो अधिनियम डेटा उपयोग की अनुमति देता है।
- यह किसी भी उद्देश्य के लिए सहमति के बिना डेटा प्रोसेसिंग पर रोक लगाता है।
नीचे दिए गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 2 गलत है क्योंकि अधिनियम कुछ वैध उद्देश्यों के लिए सहमति के बिना डेटा प्रोसेसिंग की अनुमति देता है।
प्रश्न 5. जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- विधेयक का प्राथमिक उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं को बढ़ाने के लिए पंजीकृत जन्म और मृत्यु का एक राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय डेटाबेस बनाना है।
- भारत के रजिस्ट्रार जनरल पंजीकृत जन्म और मृत्यु के राज्य-स्तरीय डेटाबेस को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं।
- यह चिकित्सकों को मृत्यु का कारण प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश देता है।
ऊपर दिए गए कितने कथन गलत हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीनों
(d) कोई नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 2 गलत है; प्रत्येक राज्य में जन्म और मृत्यु के मुख्य रजिस्ट्रार राज्य-स्तरीय डेटाबेस को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) अधिनियम के प्रावधान में समाधान से अधिक संदेह हैं। क्या आप इससे सहमत हैं? कथन का परीक्षण कीजिए। (Provisions of the Births and Deaths Registration (Amendment) Act leave more questions than answers. Do you agree? Examine. ) (250 शब्द, 15 अंक) [जीएस: II- राजव्यवस्था एवं शासन]
प्रश्न 2. भारत सरकार की दुर्लभ बीमारियों की राष्ट्रीय नीति के प्रमुख प्रावधानों पर विस्तार से प्रकाश डालें। क्या नीति को और अधिक समावेशी बनाने के लिए इसमें बदलाव करने की आवश्यकता है? (Elaborate on the key provisions of the National Policy of Rare Diseases of the Government of India. Is there a need to tweak the policy to make it more inclusive?) (250 शब्द, 15 अंक) [जीएस: II- शासन एवं सामाजिक न्याय]
(नोट: मुख्य परीक्षा के अंग्रेजी भाषा के प्रश्नों पर क्लिक कर के आप अपने उत्तर BYJU’S की वेव साइट पर अपलोड कर सकते हैं।)