20 जनवरी 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

भारतीय समाज:

  1. महिला अधिकारी जल्द कमान संभालेंगी:

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

शासन:

  1. वाक् स्वतंत्रता और सेंसरशिप:

सामाजिक न्याय:

  1. पॉक्सो अधिनियम की कार्यप्रणाली:
  2. वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2022:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. राष्ट्रीय निर्यात सहकारी समिति नैनो उर्वरकों और डेयरी उत्पादों का व्यापार करेगी:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. एंड्रॉइड मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने NCLAT के आदेश के खिलाफ गूगल की याचिका को खारिज किया:
  2. ‘भारत और यूएई रुपये में गैर-तेल व्यापार पर चर्चा की’:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

महिला अधिकारी जल्द कमान संभालेंगी:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

भारतीय समाज:

विषय: महिलाओं की भूमिका एवं महिला संगठन।

मुख्य परीक्षा: सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका ।

प्रसंग:

  • भारतीय सेना ने कमांड पोस्टिंग के लिए महिला अधिकारियों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जैसे कि कर्नल का पद, जो अब तक पुरुष अधिकारियों का कार्यक्षेत्र रहा है।

विवरण:

  • सरकार द्वारा सेना में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए महिला अधिकारियों को बढ़ावा देने के लिए विशेष नंबर 3 चयन बोर्ड के लिए रिक्तियों की घोषणा की गई थी।
  • 108 रिक्तियों के विरुद्ध 244 महिला अधिकारियों को लेफ्टिनेंट-कर्नल के पद से कर्नल के पद पर पदोन्नति के लिए विचार किया जा रहा है।
  • यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले के अनुरूप है, जिसमें पहले के एक फैसले को बरकरार रखा गया था, एवं इसमें युद्धक भूमिका के अलावा सभी सेनाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग दी गई थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद सेना ने महिला अधिकारियों को पुरुष अधिकारियों के बराबर स्थायी कमीशन (PC) प्रदान किया है।
  • इसके अलावा, पांच महिला अधिकारियों ने हाल ही में पहली बार डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कोर्स (DSSC) और डिफेंस सर्विसेज टेक्निकल स्टाफ कोर्स (DSTSC) परीक्षा पास की है।
  • ये पांच अधिकारी एक साल का कोर्स करेंगी और कमांड भूमिका के लिए विचार करते समय उन्हें पर्याप्त महत्त्व दिया जाएगा।
  • भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:Role of women in the Indian Armed Forces
  • कमांडिंग रोल में महिलाएं से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:RSTV – Big Picture: Women in Commanding Role

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

वाक् स्वतंत्रता और सेंसरशिप:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

विषय: सरकार की नीतियां और विकास के लिए हस्तक्षेप।

मुख्य परीक्षा: लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता।

संदर्भ:

  • आईटी नियमों के तहत प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) द्वारा तथ्यों की जाँच।

भूमिका:

  • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने आईटी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 (IT (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules 2021) के संशोधित संस्करण का एक मसौदा नियम – नियम 3(1)(b)(v) – प्रस्तावित किया है।
  • प्रस्तावित मसौदे के अनुसार, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए उस सामग्री को हटाना अनिवार्य होगा, जिनके तथ्यों के जाँच पत्र सूचना कार्यालय (PIB) की तथ्य-जांच इकाई द्वारा की गई है और जिन्हें झूठा बताया गया है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के संशोधित संस्करण के नियम 3(1)(b)(v) के अनुसार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रयास करने चाहिए कि प्लेटफॉर्म के उपयोगकर्ता ऐसी कोई सामग्री पोस्ट न करें जिसकी पहचान PIB की तथ्य जाँच इकाई या केंद्र सरकार द्वारा तथ्य जाँचने के लिए अधिकृत किसी अन्य एजेंसी द्वारा नकली या गलत के रूप में की गई है।
  • PIB की तथ्य जाँच इकाई ने व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली विभिन्न आधारहीन खबरों को उजागर करने में सक्रिय भूमिका निभाई है।
    • तथ्य जाँच इकाई ने पहले की तरह ही ऑनलाइन प्रकाशनों और समाचार पत्रों द्वारा प्रसारित समाचार रिपोर्टों के जवाब में सरकार की ओर से खंडन भी जारी किया है।

प्रस्तावित मसौदे से संबंधित चिंताएं:

  • आईटी नियमों में प्रस्तावित संशोधन वाक् स्वतंत्रता और सूचना के लिए गहरे निहितर्थों के कारण कई स्तरों पर समस्याग्रस्त है।
    • इसने मध्यस्थों पर प्रावधानों का पालन करने और जुर्माने से बचने का बोझ बढ़ा दिया है।
    • यदि सामग्री की सत्यता की जांच करने के लिए मध्यस्थों की तथ्य खोज इकाई तथ्यों की जांच करती है, तो इससे सच्ची घटनाओं या आलोचनाओं का भी प्रकाशन नहीं हो सकता है।
  • यह प्रस्ताव सरकार को सत्य जांचने के लिए एकमात्र मध्यस्थ बनाता है इसके परिणामस्वरूप प्रेस की सेंसरशिप हो सकती है।
  • समाचार प्रसारित करने वाले प्लेटफार्मों पर अपने “तथ्यों की जाँच करने” को बाध्यकारी बनाकर, सरकार को एक ऐसा उपकरण मिल जाएगा जिससे वह आसानी से अपना विरोध करने वाली आवाज़ों का गला घोंट सकेगी।
  • संशोधन में PIB की तथ्य-जांच इकाई के दुरुपयोग को रोकने, “तथ्य-जांच” के दौरान पारदर्शिता को बढ़ावा देने या इसके दायरे को सीमित करने के लिए किसी भी सुरक्षा उपाय का अभाव है।

डिजिटल मीडिया पर समान प्रतिबंध:

  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 के कई प्रावधानों में एक खंड है,जो कहता है – “जैसा निर्धारित किया जा सकता है” या इसके समकक्ष।
    • गोपनीयता कार्यकर्ताओं ने इसकी आलोचना की है क्योंकि यह अनिवार्य रूप से केंद्र सरकार को इन प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिए बाद में नियम और निर्देश जारी करने की शक्ति देता है।
  • सरकार ने 2019 में समाचार एग्रीगेटर्स को यह सुनिश्चित करना अनिवार्य किया कि उनका प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 26 प्रतिशत से अधिक न हो। डिजिटल मीडिया की परिभाषा को स्पष्ट किए बिना उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा निर्देश जारी किया गया था। इसे एक प्रतिबंधात्मक नीति माना गया जिसने भारतीय मीडिया को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने से रोक दिया।
  • सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास आईटी नियम, 2021 के तहत एक अंतर-विभागीय समिति और निरीक्षण तंत्र के माध्यम से डिजिटल मीडिया फर्मों और डिजिटल समाचार प्लेटफार्मों पर ऑनलाइन “समाचार और समसामयिक मामलों” से संबंधित सामग्री को ब्लॉक या संशोधित करने की शक्तियां हैं।
  • नियमों ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत “भारत की संप्रभुता, अखंडता, रक्षा और राज्य की सुरक्षा के हितों में या एक संज्ञेय अपराध को रोकने” के लिए इंटरनेट सामग्री को अवरुद्ध करने की सरकार की शक्तियों का विस्तार किया।

सारांश:

  • विशेषज्ञों और कई विपक्षी दलों ने आईटी नियमों के तहत प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) द्वारा तथ्यों की जाँच के नए प्रावधान का विरोध किया है क्योंकि इससे सरकार द्वारा वाक् स्वतंत्रता पर मनमानी सेंसरशिप लगाई जा सकती है और इसके कारण लोकतंत्र में राज्य और नागरिकों के बीच का शक्ति असंतुलन बढ़ सकता है।

पॉक्सो (POCSO) अधिनियम की कार्यप्रणाली:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

विषय: कमजोर वर्गों-महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा और बेहतरी के लिए गठित तंत्र, कानून, संस्थाएं और निकाय।

मुख्य परीक्षा: पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के लागू होने के 10 साल बाद की स्थिति।

प्रसंग:

  • इस लेख में पॉक्सो अधिनियम की कार्यप्रणाली का विश्लेषण किया गया है।

विवरण:

  • केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप 2012 में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act) को पुरःस्थापित किया।
  • इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया था या उन्हें पर्याप्त रूप से दंडित नहीं किया गया था।
  • पॉक्सो अधिनियम के लागू होने के दस साल बाद, भारत भर में पॉक्सो मामलों के विश्लेषण करने पर कई क्षेत्रों में इसके कार्यान्वयन में अंतराल पाया गया, जिसमें मामलों की बढ़ती संख्या और बरी होने की उच्च दर शामिल है।

कार्यान्वयन में अंतराल:

  • इस अधिनियम के तहत अपराधों की जांच का एक बड़ा हिस्सा अभी भी दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) द्वारा निर्देशित है।
  • यह अधिनियम यौन शोषण से प्रभावित बच्चे के बयान को एक महिला सब-इंस्पेक्टर द्वारा बच्चे के अपने घर या उनके द्वारा चयन किये गए किसी अन्य स्थान पर दर्ज करने का प्रावधान करता है।
  • हालांकि, पुलिस बल में केवल 10% महिलाएं ही हैं और कई पुलिस स्टेशनों में बमुश्किल महिला स्टाफ तैनात है, इसके कारण इस नियम का पालन करना लगभग असंभव है।
  • इस अधिनियम के तहत ऑडियो-वीडियो माध्यमों का उपयोग करके बयान दर्ज करने का प्रावधान किया गया है, हालांकि इससे संबंधित पायलट परियोजना को अभी भी राज्यों में लागू किया जाना बाकी है।
  • इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की अखंडता को बनाए रखने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे के अभाव में किसी भी ऑडियो-वीडियो पद्धति का उपयोग करके प्राप्त साक्ष्य की स्वीकार्यता हमेशा एक मुद्दा बनी रहेगी।
  • पॉक्सो के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अभियोजिका का बयान दर्ज करना अनिवार्य है। लेकिन न्यायिक दंडाधिकारी को मुकदमे के दौरान न तो जिरह के लिए बुलाया जाता है और न ही अपने बयान से मुकरने वालों को दंडित किया जाता है। ऐसी स्थिति में ऐसे बयानों का कोई महत्व नहीं रह जाता।
  • जैसा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गौर किया गया है कि आज भी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां एक बालिका की यौन शोषण की चिकित्सा जांच के दौरान प्रतिबंधित टू-फिंगर टेस्ट का उपयोग किया जाता है।
  • किशोर अपराधी की आयु का निर्धारण किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम द्वारा निर्देशित होता है; जबकि पॉक्सो अधिनियम के तहत किशोर पीड़ितों के लिए ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
  • चिकित्सा राय के आधार पर आयु का अनुमान आम तौर पर इतना व्यापक होता है कि ज्यादातर मामलों में नाबालिगों को वयस्क साबित कर दिया जाता है।
  • बलात्कार की जांच पूरी करने के लिए अनिवार्य समय (जैसा कि CrPC में, POCSO अधिनियम में समान प्रावधान के बिना) दो महीने निर्धारित किया गया है। हालांकि इसका उद्देश्य इस अपराध की जांच में तेजी लाना है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप यौन शोषण अपराध के जांच की गुणवत्ता खराब हुई है।
  • अभियुक्तों को कम समय में जांच पूरी करने का लाभ मिल जाता है क्योंकि वे पॉक्सो अधिनियम के अनुसार 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल होने के तुरंत बाद अपनी जमानत की मांग कर सकते हैं।
  • पॉक्सो अदालतों को सभी जिलों में नामित नहीं किया गया है। 2022 तक, सरकार की फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट योजना के तहत 28 राज्यों में 408 पॉक्सो कोर्ट स्थापित किए गए हैं।
  • पॉक्सो मामलों को संभालने के लिए विशेष रूप से नियुक्त विशेष लोक अभियोजकों की कमी है, और यहां तक कि जब उन्हें नियुक्त किया जाता है तब भी उन्हें अक्सर गैर-पॉक्सो मामलों के लिए नियोजित किया जाता है।
  • पॉक्सो के तहत 43.44% मुकदमों में दोषी रिहा हो जाते हैं जबकि केवल 40.03% को सजा मिलती है।
  • वर्ष 2020 के अंत तक अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 94.7% थी, जो वर्ष 2019 के अंत तक 88.8% थी।

पॉक्सो अधिनियम की सफलता:

  • पॉक्सो अधिनियम सभी प्रकार के यौन शोषणों (शारीरिक, संपर्क, गैर-संपर्क, मौखिक और इंटरनेट के माध्यम से किए जाने वाले) को शामिल करता है और इसलिए यह बच्चों के यौन शोषण की व्यापक समस्या से निपटने में प्रभावी हो सकता है।
  • पॉक्सो अधिनियम की लिंग-तटस्थता एक प्रमुख घटक है। यह समाज की इस चिंता का समर्थन करता है कि पुरुष बाल यौन शोषण एक गंभीर मुद्दा है जिसे अधिकांशत: नजरअंदाज कर दिया जाता है।
  • चूंकि पॉक्सो अधिनियम के तहत रिपोर्ट न करना एक विशेष अपराध बन गया है, अब न केवल व्यक्तियों द्वारा बल्कि संस्थानों द्वारा किए गए नाबालिगों के यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए पर्याप्त सार्वजनिक जागरूकता है। नतीजतन, बच्चों के खिलाफ अपराधों को गुप्त रखना अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • वर्ष 2017 से 2020 तक दर्ज मामलों में 45 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
  • चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री के भंडारण को नया अपराध बनाया गया है।
  • इसके अलावा भारतीय दंड संहिता में “एक महिला की लज्जा भंग करने” की एक अमूर्त परिभाषा के विपरीत, “यौन उत्पीड़न” के अपराध को पॉक्सो अधिनियम के तहत सटीक शब्दों में (न्यूनतम सजा में वृद्धि के साथ) निर्दिष्ट किया गया है।

सारांश:

  • पॉक्सो अधिनियम लागू होने के 10 साल बाद अब इस बात का आत्मनिरीक्षण करने और समीक्षा करने का समय आ गया है कि पॉक्सो अधिनियम को किस प्रकार लागू किया गया है, और यह किस प्रकार यौन शोषण के पीड़ितों के लिए कितना मददगार रहा है इसके अलावा न्याय सुनिश्चित करने के लिए और क्या किये जाने की आवश्यकता है।

वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2022:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

विषय: शिक्षा के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।

मुख्य परीक्षा:भारत में शिक्षा की स्थिति।

संदर्भ:

  • हाल ही में 2022 की वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर/ASER) चार साल के अंतराल के बाद जारी की गई हैं।

भूमिका:

  • असर (ASER) प्रथम फाउंडेशन के नेतृत्व में एक वार्षिक, नागरिक-नेतृत्व वाला घरेलू सर्वेक्षण है, जिसका उद्देश्य यह समझना है कि क्या ग्रामीण भारत में बच्चे स्कूल में नामांकित हैं और क्या वे सीख रहे हैं।
  • 3-16 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए स्कूल में या पूर्वस्कूली नामांकन के बारे में जानकारी एकत्र की गई और 5-16 आयु वर्ग के बच्चों का उनके पढ़ने, अंकगणित और अंग्रेजी कौशल को समझने के लिए एक-एक करके परीक्षण किया गया।
  • ASER (असर) 2022 में, सीखने के परिणामों की गणना के लिए 616 ग्रामीण जिलों के 19,060 स्कूलों के लगभग 7 लाख उम्मीदवारों का सर्वेक्षण किया गया था।
  • 2018 और 2022 के डेटा की तुलना पिछले एक दशक में लंबे समय तक चलने वाले रुझानों से देखने के लिए की जा सकती है कि कोविड-19 की अवधि ने भारत को कैसे प्रभावित किया।

मुख्य निष्कर्ष:

  1. नामांकन:
  • 2018 में, 6-14 आयु वर्ग के लिए अखिल भारतीय ग्रामीण नामांकन का आंकड़ा 97.2% था। असर (ASER) 2022 के आंकड़ों में, यह अब 98.4% है।
    • वृद्धि के साथ-साथ निजी स्कूलों से हटकर सरकारी स्कूलों में जाना एक महत्वपूर्ण बदलाव है। अखिल भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, सरकारी स्कूलों में नामांकित 11 से 14 वर्ष के सभी बच्चों का प्रतिशत 2018 में 65% से बढ़कर 2022 में 71.7% हो गया है।
    • सरकारी स्कूल में नामांकन में वृद्धि के लिए कई संभावित योगदान कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जैसे – पारिवारिक आय में कमी, सस्ते निजी विद्यालयों का स्थायी रूप से बंद होना, और कई राज्य सरकारों के स्कूल बंद होने पर भी सेवाएं प्रदान करने के प्रयास जैसे मध्याह्न भोजन राशन, दूरस्थ रूप से साझा की जाने वाली शिक्षण-अधिगम सामग्री, वर्कशीट और पाठ्यपुस्तक वितरण।

चित्र स्रोत: एएसईआर 2022

  1. मूलभूत कौशल:
  • असर (ASER) 2022 के अनुसार असर (ASER) 2018 की तुलना में पढ़ने और अंकगणित जैसे बुनियादी कौशल के मामले में भी अधिगम के स्तर में गिरावट आई है।
  • अंकगणित के स्तर में गिरावट पढ़ने की क्षमता में कमी से कम है, बड़े बच्चों की तुलना में निचली कक्षा के बच्चों को अधिक नुकसान होता है।
  • 2022 की शुरुआत में स्कूलों के फिर से खुलने के बाद कुछ राज्यों में ठोस कार्रवाई देखी गई है, जिसमें अधिगम की बहाली के कार्यक्रमों को सभी बोर्डों में डिजाइन और कार्यान्वित किया जा रहा है और विशेष रूप से उच्च प्राथमिक ग्रेड के लिए।

चित्र स्रोत: ASER 2022

  1. लड़कियों का अनुपात जो वर्तमान में नामांकित नहीं हैं:
  • 2006 में, 11-14 वर्ष की आयु की लड़कियों के प्रतिशत का अखिल भारतीय आंकड़ा 10.3% था, जो अगले दशक में गिरकर 2018 में 4.1% हो गया। इस अनुपात में गिरावट जारी है। 2022 में, 11-14 साल की लड़कियों का स्कूल में नामांकन नहीं कराने का अखिल भारतीय आंकड़ा 2% है।
    • यह आंकड़ा केवल उत्तर प्रदेश में लगभग 4% है और अन्य सभी राज्यों में कम है।
  • स्कूल में नामांकित लड़कियों के अनुपात में कमी 15-16 आयु वर्ग की बड़ी लड़कियों में और भी तीव्र है।
    • 2008 में, राष्ट्रीय स्तर पर, 15-16 आयु वर्ग की 20% से अधिक लड़कियों को स्कूल में नामांकित नहीं किया गया था। 2022 में 15-16 वर्षीय लड़कियों का नामांकन नहीं होने का अनुपात 7.9% है।
    • केवल 3 राज्यों में इस आयु वर्ग की 10% से अधिक लड़कियां स्कूल से बाहर हैं: मध्य प्रदेश (17%), उत्तर प्रदेश (15%), और छत्तीसगढ़ (11.2%)।
  1. पूर्व-प्राथमिक आयु समूह में नामांकन:
  • प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के किसी न किसी रूप में नामांकित 3-वर्ष के बच्चों का अनुपात 2022 में 78.3% है, जो 2018 के स्तर से 7.1 प्रतिशत अंक अधिक है।
  • 3-5 वर्ष आयु वर्ग के छोटे बच्चों के नामांकन पैटर्न में पर्याप्त बदलाव आया है, जिन्होंने प्री-स्कूल और स्कूली व्यवस्था के अन्य रूपों से ICDS (आंगनवाड़ी) प्रणाली में प्रवेश लिया है।
    • 2018 में 57.1% की तुलना में 2022 में 3 साल के 66.8% बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित किया गया था।
  1. शिक्षक और छात्र उपस्थिति:
  • अखिल भारतीय स्तर पर छात्रों और शिक्षकों की उपस्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है। औसत शिक्षक उपस्थिति 2018 में 85.4% से बढ़कर 2022 में 87.1% हो गई। औसत छात्र उपस्थिति पिछले कई वर्षों से लगभग 72% के इर्दगिर्द है।
  1. ट्यूशन कक्षाएँ:
  • रिपोर्ट में ट्यूशन कक्षाओं में भाग लेने वाले छात्रों में भी वृद्धि दिखाई गई है। 2018 और 2022 के बीच, सभी राज्यों में, ट्यूशन कक्षाओं में भाग लेने वाले बच्चों के अनुपात में वृद्धि हुई है।
    • गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और त्रिपुरा इसके अपवाद हैं।

सीखने में कमी:

  • नई तकनीकों के विकास, ज्ञान के नए क्षेत्रों, और संचालन के नए तरीकों के बावजूद, कई बच्चे हमारी स्कूल प्रणाली में मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक कौशल से पर्याप्त रूप से सुसज्जित हुए बिना आठवीं कक्षा तक पहुंच रहे हैं।
  • उच्च स्तर के कौशल हासिल करने और उन्नत सामग्री ज्ञान विकसित करने के लिए मजबूत मूलभूत कौशल आवश्यक हैं।
  • असर (ASER) के आकड़ों से पता चलता है कि एक “अतिमहत्वाकांक्षी” पाठ्यक्रम और भारतीय स्कूलों की रैखिक आयु-ग्रेड संगठनात्मक संरचना के परिणामस्वरूप अधिकांश बच्चे अपने स्कूली करियर की शुरुआत में ही “पीछे छूट गए” हैं।
  • “बराबरी करने” के लिए स्कूल में तंत्र के अभाव में, बच्चे अकादमिक रूप से और पिछड़ जाते हैं। इसके कारण सीखने के लिए प्रेरणा में और आत्मविश्वास की कमी आती है।
    • साथ ही, जैसे-जैसे बच्चे उच्च कक्षाओं तक पहुँचते हैं, बच्चे के भविष्य के लिए माता-पिता और परिवार की आकांक्षाएँ बढ़ जाती हैं।
  • उच्च नामांकन और पूर्णता दर के कई नकारात्मक प्रभाव हैं, जिनमें तीव्र परीक्षण तनाव, स्कूल छोड़ने के लिए परीक्षाओं (school-leaving examinations) में ग्रेड स्फितिकरण (grade inflation), कॉलेज में प्रवेश करने में कठिनाई और स्कूल-छोड़ने वाले कई लोगों के लिए उपयुक्त व्यवसायों की कमी शामिल है।

निष्कर्ष:

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2022 “आलोचनात्मक विचार कौशल” और “स्कूल के माध्यम से लचीले रास्ते” की बात करती है। “सीखने में कमी” को स्वीकार करते हुए, यह समय बच्चों के स्कूली शिक्षा के मूलभूत चरण को पार करने के बाद उनके भविष्य पर पुनर्विचार करने का है।
  • यह देखते हुए कि वर्तमान में नीति और कार्यान्वयन का फोकस प्राथमिक विद्यालय के प्रारंभिक वर्षों पर है, प्रशासन यह समझने पर ध्यान केंद्रित करेगा कि उच्च प्राथमिक कक्षाओं में बड़े बच्चे कैसे आगे बढ़ रहे हैं जिन्हें अधिगम रिकवरी और “बराबरी करने” के लिए समर्थन की आवश्यकता है।

सारांश:

  • असर (ASER) 2022, 4 साल के अंतराल के बाद पहला फील्ड-आधारित ‘बेसिक’ राष्ट्रव्यापी ASER है। यह ऐसे समय में आया है जब बच्चे कोविड महामारी के कारण स्कूल बंद होने की विस्तारित अवधि के बाद स्कूल वापस आ गए हैं। बच्चों की स्कूली शिक्षा और मूलभूत शिक्षा की स्थिति पर साक्ष्य हमें यह समझने में मदद करेंगे कि आगे बढ़ने में बच्चों की सहायता कैसे की जाए।

प्रीलिम्स तथ्य:

1.राष्ट्रीय निर्यात सहकारी समिति नैनो उर्वरकों और डेयरी उत्पादों का व्यापार करेगी:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय निर्यात सहकारी समिति और नैनो उर्वरकों से संबंधित तथ्य।

प्रसंग:

  • राष्ट्रीय निर्यात सहकारी समिति अगले कुछ महीनों में इफको द्वारा उत्पादित नैनो उर्वरकों और अमूल से डेयरी उत्पादों का निर्यात करने की दिशा में काम कर रही है।

राष्ट्रीय निर्यात सहकारी समिति:

  • प्रस्तावित राष्ट्रीय बहु-राज्यीय निर्यात सहकारी समिति की स्थापना बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम (MSCS) अधिनियम, 2002 के तहत की जाएगी।
  • इसके अलावा, इसकी चुकता पूंजी लगभग 2,000 करोड़ रुपये होगी।
  • यह सहकारी समिति वाणिज्य मंत्रालय के तहत निर्यात संवर्धन परिषद से अलग होगी जो एक सूत्रधार की भूमिका निभाएगी है और संभावित बाजारों के बारे में जानकारी प्रदान करने में मदद करेगी।
  • इस समिति के प्रवर्तकों में प्रमुख सहकारी समितियां शामिल होंगी जैसे भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (IFFCO), कृषक भारती सहकारी लिमिटेड (KRIBHCO), भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED), गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (GCMMF) (जिसे अमूल के नाम से जाना जाता है) और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC)।
  • उपरोक्त सभी सहकारी समितियाँ 100-100 करोड़ रुपये का योगदान देंगी।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मल्टी स्टेट सीड सोसाइटी, मल्टी स्टेट ऑर्गेनिक सोसाइटी और मल्टी स्टेट एक्सपोर्ट सोसाइटी की स्थापना की घोषणा की है।
  • वर्तमान में देश में कृषि, बागवानी, मत्स्य पालन, पशुधन, उर्वरक, हस्तशिल्प आदि जैसे अधिकांश क्षेत्रों में सहकारी समितियों की उपस्थिति है।
  • इन विभिन्न क्षेत्रों में सहकारी समितियों का योगदान महत्वपूर्ण है।

इन समितियों द्वारा किया गया सहकारी योगदान इस प्रकार हैं:

  1. उर्वरक उत्पादन में 28.80%
  2. उर्वरक वितरण में 35%
  3. चीनी उत्पादन में 30.60%
  4. दूध के विपणन योग्य अधिशेष की खरीद में 17.50%
  5. वर्तमान में, देश में 29 करोड़ से अधिक सदस्यों के साथ 8.54 लाख पंजीकृत सहकारी समितियाँ हैं।
  • नैनो यूरिया लिक्विड से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:Nano Urea Liquid

महत्वपूर्ण तथ्य:

1.एंड्रॉइड मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने NCLAT के आदेश के खिलाफ गूगल की याचिका को खारिज किया:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)) के आदेश को बरकरार रखा है, जिसने एंड्रॉइड इकोसिस्टम में “प्रभुत्व के दुरुपयोग” के लिए ₹1,337.76 करोड़ का जुर्माना देने के भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India (CCI)) के निर्देश के खिलाफ गूगल को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था।
  • NCLAT द्वारा अंतरिम रोक लगाने से इनकार करने के बाद गूगल सर्वोच्च न्यायालय चली गई थी। गूगल ने CCI के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी।
  • CCI ने गूगल पर लगाए गए जुर्माने की मात्रा गूगल द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19, 2019-2020 और 2020-21 में किए गए औसत कारोबार के 10% के बराबर निर्धारित की थी।
  • इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए 21 अक्टूबर 2022 का UPSC परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण का आलेख देखें।

2. ‘भारत और यूएई रुपये में गैर-तेल व्यापार पर चर्चा की’:

  • संयुक्त अरब अमीरात और भारत ने भारतीय रुपये में गैर-तेल वस्तुओं का व्यापार करने के लिए विचार-विमर्श किया है।
  • संयुक्त अरब अमीरात ने भारत के साथ एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते ( Free Trade Agreement (FTA)) पर हस्ताक्षर किए थे, और चीन के साथ ही भारत, खाड़ी अरब के तेल और गैस उत्पादकों के लिए सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक है, लेकिन खाड़ी देशों की अधिकांश मुद्राएँ विनियम में अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष आंकी जाती हैं।
  • खाड़ी व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अमेरिकी डॉलर में संचालित किया जाता है, लेकिन भारत और चीन जैसे देश विभिन्न कारणों से स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने की मांग कर रहे हैं जिससे लेनदेन लागत कम हो जाती है।
  • दावोस में चल रहे विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की पृष्ठभूमि में भारत के साथ संयुक्त अरब अमीरात के व्यापार समझौते का उद्देश्य अगले पांच वर्षों में द्विपक्षीय गैर-तेल व्यापार को $100 बिलियन तक बढ़ाना है।
  • भारत-यूएई प्रमुख व्यापार समझौते से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: India-UAE major trade pact

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. निम्न में से कौन-से कथन सही हैं? (स्तर – मध्यम)

  1. अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा दक्षिणी गोलार्ध को उत्तरी गोलार्ध से जोड़ने के लिए अफ्रीका से होते हुए रूस तक विकसित किया गया है।
  2. यह एक मल्टी-मॉडल परिवहन मार्ग है।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) भारत और रूस के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए एक गलियारा है।
    • भारत और रूस को जोड़ने वाला पहला व्यापार मार्ग स्वेज नहर के माध्यम से होकर गुजरता था।
    • इसलिए INSTC गलियारे का प्रमुख उद्देश्य लगने वाले समय और लागत को कम करना तथा मुंबई, मास्को, अस्त्रखान (रूस में स्थित), बाकू (अजरबैजान), तेहरान, बंदर अब्बास और बंदर अंजेल (ईरान) जैसे प्रमुख शहरों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाना है।
  • कथन 2 सही है: INSTC व्यापार मार्ग 7200 किलोमीटर लंबा है और माल का परिवहन सड़कों, जहाजों और रेलवे के मल्टी-मोड नेटवर्क के माध्यम से होता है। यह मार्ग ईरान और अजरबैजान के रास्ते भारत और रूस को जोड़ता है।

प्रश्न 2. प्रसाद (PRASHAD) योजना के संबंध में कौन-से कथन सही हैं? (स्तर – मध्यम)

  1. यह योजना पर्यटन मंत्रालय के तत्वावधान में है।
  2. इसका उद्देश्य चिन्हित तीर्थ स्थलों को विकसित करना है।
  3. यह योजना विरासत स्थलों के विकास के लिए पीपीपी और सीएसआर निधियों की अनुमति देती है।

विकल्प:

  1. 1 और 2
  2. 1 और 3
  3. 2 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014-2015 में “तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्द्धन अभियान पर राष्ट्रीय मिशन” या प्रसाद (PRASAD) योजना शुरू की गई थी।
  • कथन 2 सही है: योजना का मुख्य उद्देश्य धार्मिक पर्यटन अनुभव को समृद्ध करने के लिए एकीकृत तरीके से भारत भर में तीर्थ स्थलों की पहचान करना और विकास पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • कथन 3 सही है: योजना के तहत, केंद्र सरकार 100% धन प्रदान करती है और परियोजना की स्थिरता में सुधार के लिए योजना कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को भी शामिल करना चाहती है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा / से सत्य है / हैं?(स्तर – सरल)

  1. भारतीय सेना अब महिलाओं को अग्रिम पंक्ति की युद्धक भूमिकाओं की अनुमति प्रदान करती है।
  2. भारतीय सेना महिलाओं को स्थायी कमीशन प्रदान करती है।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में पहले के एक फैसले को बरकरार रखा है जिसने महिला अधिकारियों को युद्धक भूमिकाओं के अलावा सभी सेनाओं में स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग प्रदान की गई थी।
  • कथन 2 सही है: सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के बाद, सेना अब महिला अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के बराबर स्थायी कमीशन (PC) प्रदान करती है।

प्रश्न 4. AME योजना के संबंध में कौन-से कथन सत्य हैं?(स्तर – मध्यम)

  1. इसका उद्देश्य भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में ईवी की पहुंच में सुधार करना है।
  2. इसे तीन चरणों में लागू किया गया है।
  3. यह देश में ईवी चार्जिंग स्टेशनों के विकास पर जोर देता है।
  4. चरण 1 चार-पहियों वाले सार्वजनिक परिवहन पर केंद्रित है, जबकि चरण 2 चार-पहियों वाले निजी वाहनों पर केंद्रित है।

विकल्प:

  1. 1 और 3
  2. 2 और 4
  3. 2, 3 और 4
  4. 1, 2, 3 और 4

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME), इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना है।
  • कथन 2 गलत है: फेम (FAME) इंडिया योजना दो चरणों में संचालित होती है:
    • प्रथम चरण (2015 से 2019)
    • दूसरा चरण (2019 से 2022)
  • कथन 3 सही है: यह योजना देश में ईवी चार्जिंग स्टेशनों के विकास पर भी जोर देती है।
    • दूसरे चरण के तहत, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए 1,000 करोड़ रुपये अलग रखे गए थे।
  • कथन 4 सही नहीं है: FAME योजना के पहले चरण के फोकस क्षेत्र थे मांग सृजन, प्रौद्योगिकी मंच, प्रायोगिक परियोजना और चार्जिंग अवसंरचना।
    • फेम इंडिया योजना का दूसरा चरण सार्वजनिक परिवहन और साझा परिवहन के विद्युतीकरण पर जोर देता है।

प्रश्न 5. पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को, जो स्वयं को सीधे पंजीकृत कराए बिना भारतीय स्टॉक बाजार का हिस्सा बनना चाहते हैं, निम्नलिखित में से क्या जारी किया जाता है? (PYQ 2019) (स्तर – मध्यम)

  1. जमा प्रमाण-पत्र
  2. वाणिज्यिक पत्र
  3. वचन-पत्र (प्रॉमिसरी नोट)
  4. सहभागिता पत्र (पार्टिसिपेटरी नोट)

उत्तर: d

व्याख्या:

  • पार्टिसिपेटरी नोट्स को पी-नोट्स या PN के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, जो निवेशकों या हेज फंडों द्वारा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ पंजीकरण किए बिना भारतीय प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए आवश्यक वित्तीय साधन हैं।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. सोशल मीडिया ने अपार अवसर पैदा किए हैं और साथ ही दुरुपयोग के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है। इस संदर्भ में, सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी समाचारों के खतरे से निपटने के लिए भारत सरकार के विनियामक प्रयासों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) (जीएस II – शासन)

प्रश्न 2.पॉक्सो (POCSO) अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन अपराधों से बचाने में एक लंबा रास्ता तय कर चुका है। फिर भी कई कमियां रह गईं हैं। विस्तारपूर्वक परीक्षण कीजिए।(250 शब्द, 15 अंक) (जीएस II – सामाजिक न्याय)