30 मई 2023 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: शिक्षा:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
उच्च शिक्षा में शिक्षकों की कमी:
शिक्षा:
विषय: शिक्षा से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE)।
मुख्य परीक्षा: भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में फैकल्टी की कमी से जुड़े प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ और संभावित उपाय।
प्रसंग:
- इस लेख में भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में फैकल्टी की कमी और संबंधित चुनौतियों के बारे में बात की गई है।
मुख्य विवरण:
- उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को ज्ञान के प्रभावी तरीके से प्रसार करने के लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षकों और शोधकर्ताओं की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि, 1980 के दशक से ही भारतीय उच्च शिक्षा क्षेत्र में फैकल्टी की कमी की समस्या देखी गई है।
- फैकल्टी की कमी का यह मुद्दा हाल के दिनों में स्थायी होता प्रतीत हो रहा है जिसने इससे जुड़ी चुनौतियों को बढ़ा दिया है।
- लेखक के अनुसार, फैकल्टी की कमी के मुद्दे का व्यावहारिक समाधान खोजने में दो प्रमुख बाधाएं हैं।
- वे हैं:
- विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों में मौजूदा फैकल्टी संसाधनों पर विश्वसनीय डेटा का अभाव।
- फैकल्टी की कमी के मुद्दे को केवल एक मात्रात्मक मुद्दे के रूप में मानना।
फैकल्टी की कमी पर विश्वसनीय डेटा का अभाव:
- वर्ष 2009 में, तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस मुद्दे की जाँच करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया, जिसने वर्ष 2011 में “रिपोर्ट ऑफ द टास्क फोर्स ऑन फैकल्टी शॉर्टेज एंड डिजाइन ऑफ परफॉर्मेंस अप्रेजल सिस्टम” नाम की एक रिपोर्ट तैयार की थी।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षण फैकल्टी की मौजूदा कमी कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि यह धारणा तथ्यात्मक डेटा द्वारा समर्थित नहीं है क्योंकि नियमित जानकारी एकत्र करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है।
- टास्क फोर्स की रिपोर्ट में फैकल्टी संसाधन की संख्या और गुणवत्ता से संबधित डेटा को एकत्र करने और उनकी निगरानी करने के लिए एक मानक तंत्र तैयार करने और एकत्र किए गए डेटा को संस्थानों की वेबसाइट पर उपलब्ध कराए जाने की मांग की गई थी।
- रिपोर्ट द्वारा की गई इन टिप्पणियों के लगभग 10 वर्षों के बाद भी बहुत कम बदलाव हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश उच्च शिक्षा अकादमियों या संस्थानों में अव्यवस्थित और अधूरी वेबसाइटें होती हैं जिनमें उनके फैकल्टी के बारे में केवल आंशिक डेटा होता उपलब्ध है।
- जबकि, सरकार अपने वार्षिक अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) के एक हिस्से के रूप में विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में फैकल्टी सदस्यों की संख्या पर जानकारी एकत्र करती है, वहीं यह संस्थानों के लिए एक स्वैच्छिक प्रक्रिया रही है।
- हालाँकि, सटीक डेटा प्रदान करने की जिम्मेदारी संस्था की होती है, और प्रदान किए गए डेटा को किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सत्यापित नहीं किया जाता है।
- कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने अक्सर सहायक फैकल्टी सदस्यों को ‘आभासी’ सदस्यों के रूप में इस्तेमाल किया है यानी ऐसे सहायक या अंशकालिक फैकल्टी सदस्यों को एक अनुकूल शिक्षक-छात्र अनुपात प्रदर्शित करने के लिए नियमित फैकल्टी के रूप में गिना जाता है।
- इन बाधाओं ने देश में मौजूदा फैकल्टी संसाधनों का विश्वसनीय अनुमान प्राप्त करना बहुत कठिन बना दिया है।
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (All India Survey on Higher Education (AISHE)):
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फैकल्टी की कमी को मात्रात्मक मुद्दे के रूप में मानने से जुड़ी चुनौतियाँ:
- लेखक ने टिप्पणी की है कि हितधारकों ने फैकल्टी की कमी की समस्या को एक मात्रात्मक मुद्दा समझने की भूल की है।
- लेखक के अनुसार, फैकल्टी की कमी की प्रकृति और दायरा एक जटिल मुद्दा है चूंकि, लगभग छः संभावित प्रकार की कमियाँ हैं और इसलिए उनमें से प्रत्येक को उपचारात्मक उपायों के एक अलग सेट की आवश्यकता होती है।
- फैकल्टी की कमी के ये छः चिन्हित प्रकार आवश्यक रूप से परस्पर अनन्य या विशिष्ट नहीं हैं और वे यह भी दिखाते हैं कि फैकल्टी की कमी की समस्या केवल संख्या के बारे में नहीं है।
छः प्रकार की कमियों की पहचान की गई हैं:
- विषयों, संस्थानों और स्थानों में विसंगतियाँ: यह अक्सर देखा जाता है कि सभी विषयों, संस्थानों और स्थानों में फैकल्टी सदस्यों की संख्या में बड़ी विसंगतियां मौजूद हैं।
- कुछ विषयों या स्थानों में फैकल्टी की अत्यधिक आपूर्ति है, जबकि अन्य में अत्यधिक कमी है।
- इस मुद्दे पर विभिन्न संस्थानों या स्थानों पर कमी को दूर करने के लिए विशिष्ट विषयों में मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन हासिल करने के प्रयासों की आवश्यकता है।
- शिक्षकों को नियुक्त करने में असमर्थता: इस प्रकार की कमी आमतौर पर सार्वजनिक संस्थानों के मामले में देखी जाती है।
- अत्यधिक आवश्यकता के बावजूद, संस्थान अपनी वित्तीय स्थिति के कारण शिक्षकों को नियुक्त करने में असमर्थ हैं।
- छात्रों की संख्या में भारी वृद्धि के बावजूद, अधिकांश सार्वजनिक और राज्य विश्वविद्यालयों के पास वित्त की बहुत कमी है।
- शिक्षकों को नियुक्त करने की अनिच्छा: इस प्रकार की कमी उन निजी संस्थानों में देखी जाती है जिनका प्राथमिक उद्देश्य लाभ कमाना रहा है।
- सार्वजनिक संस्थानों में आरक्षण के प्रबंधन की चुनौती: ओबीसी और एससी-एसटी समूहों के सदस्यों के लिए आरक्षण ने योग्य फैकल्टी के पूल को कम कर दिया है।
- कुछ विशिष्ट संस्थानों में काम करने के लिए फैकल्टी के बीच अनिच्छा: फैकल्टी सदस्यों ने कुछ संस्थानों में उनके प्रतिकूल स्थान और उचित काम करने या रहने की स्थिति की कमी के कारण काम करने की अनिच्छा दिखाई है।
- गुणात्मक मुद्दा: विभिन्न गुणात्मक मुद्दों के कारण वहाँ भी फैकल्टी की कमी उत्पन्न हो सकती है जहां वास्तविक कमी मौजूद नहीं होना चाहिए।
- उदाहरण के लिए, भारतीय विश्वविद्यालयों में पीएचडी कार्यक्रमों के लिए आवेदन करने के लिए केवल कुछ ही उम्मीदवार वास्तव में योग्य हैं।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
तेज, मजबूत:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास।
मुख्य परीक्षा: सुपरकंप्यूटिंग।
प्रारंभिक परीक्षा: सुपरकंप्यूटर।
विवरण:
- भारत के पास 2023 के अंत तक एक उन्नत ‘उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग (high-performance computing (HPC))’ होगा। माना जा रहा है कि यह भारत का सबसे तेज़ सुपर कंप्यूटर होगा।
- इस सिस्टम को फ्रांसीसी निगम- एटोस द्वारा विकसित और स्थापित किया जाएगा।
- वर्ष 2025 तक ₹4500 करोड़ मूल्य के उच्च प्रदर्शन वाले कंप्यूटर खरीदने के लिए भारत सरकार और फ्रांस (2018 में) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- HPC प्रणाली भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे और राष्ट्रीय मध्यम-श्रेणी मौसम पूर्वानुमान केंद्र, नोएडा में स्थापित की जाएगी।
- एटोस मशीनों का उपयोग दैनिक, पाक्षिक और दीर्घकालिक मौसम परिवर्तनों की भविष्यवाणी करने के लिए परिष्कृत मौसम मॉडल के परिचालन में किया जाएगा।
- मौसम की भविष्यवाणी के लिए शक्तिशाली मशीनों की आवश्यकता होती है क्योंकि मौसम की भविष्यवाणी वातावरण और महासागरों की स्थिति का अनुकरण करने की क्षमता पर आधारित होती है।
उच्च-प्रदर्शन कम्प्यूटिंग का महत्व:
- प्रोटीन बायोलॉजी, एयरोस्पेस-मॉडलिंग एप्लिकेशन, एआई-लिंक्ड एप्लिकेशन आदि जैसे कई क्षेत्र कुशल कंप्यूटिंग पर निर्भर हैं।
- HPC के प्रयोग को तकनीकी कौशल का प्रतीक भी माना जाता है।
- यह एक आश्वासन प्रदान करता है कि भारतीय वैज्ञानिक महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए सुपर कंप्यूटर की क्षमता का उपयोग कर सकते हैं।
- यह चक्रवात जैसी मौसम संबंधी आपदाओं के हानिकारक प्रभावों को कम करने में भी मदद करता है। भारत ने अपने अल्पकालिक मौसम पूर्वानुमानों में जबरदस्त सुधार किया है।
सुपर कंप्यूटर
भारत में सुपरकंप्यूटर
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संबंधित लिंक:
National Supercomputing Mission – Connecting Indian Research and Academic Institutions
सारांश:
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रोस्टर व्यवस्था के प्रमुख से लेकर सभी न्यायाधीशों के प्रमुख तक?
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था:
विषय: न्यायपालिका।
मुख्य परीक्षा: मामलों और भारत के मुख्य न्यायाधीश से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: भारत के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियाँ और कार्य।
भूमिका:
- रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय (SC) की खंडपीठ ने अधूरी जांच और वैधानिक समय सीमा से परे कार्यवाही के मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने के विचाराधीन व्यक्ति के अधिकार की पुष्टि की हैं।
- यह माना गया था कि वैधानिक समय सीमा के भीतर जांच पूरी होने पर ही एक अभियुक्त का डिफ़ॉल्ट जमानत मांगने का अधिकार समाप्त होगा।
- हालाँकि, इस निर्णय को मई 2023 की शुरुआत में वापस ले लिया गया था।
विस्तृत जानकारी के लिए यहां पढ़ें: https://byjus.com/free-ias-prep/upsc-exam-comprehensive-news-analysis-may16-2023/#A%20Court%20recall%20that%20impacts%20the%20rights%20of%20the%20accused
अन्य विवरण:
- नतीजतन, अब उपलब्ध एकमात्र सहारा पुनर्विचार याचिका (review petition) है।
- हालांकि, इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पुनर्विचार याचिका का फैसला भी उसी पीठ ने किया है जिसने रितु छाबड़िया मामले के फैसले की धज्जियां उड़ाई हैं।
- एकमात्र तरीका जिसके माध्यम से CJI पूरे मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं, वह है उसी मुद्दे पर एक अन्य समन्वय पीठ का गठन लेकिन इसमें मामला अलग हो। इसके परिणामस्वरूप CJI मामले को एक बड़ी पीठ को भेज देंगे।
- यह तर्क दिया जाता है कि एक पीठ द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के भीतर एक अंतर-न्यायालय अपील जिसमें CJI शामिल नहीं था, में न्यायालय ने प्रभावी रूप से एक ऐसा तंत्र स्थापित किया है जो पूरी तरह से विधायी या संवैधानिक समर्थन से रहित है।
समानों के बीच प्रथम:
- संविधान के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीश अपनी न्यायिक शक्तियों के मामले में समान हैं।
- हालाँकि, CJI के पास कुछ विशेष प्रशासनिक शक्तियाँ हैं जैसे कि पीठ का गठन करना और एक बड़ी पीठ को पुनर्विचार के लिए कार्य और संदर्भ सौंपना। इस प्रकार, CJI ‘समानों में प्रथम’ हैं और उन्हें ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ कहा जाता है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि किसी भी पीठ में CJI को दिया गया मत या शक्ति अन्य साथी न्यायाधीशों के समान ही होती है। यह यू.एस. के विपरीत है जहां सभी न्यायाधीश सामूहिक रूप से शक्ति का प्रयोग करते हैं और न्यायालय की सामूहिक शक्ति को दर्शाते हुए निर्णय देते हैं।
यह भी पढ़ें: Supreme Court Judge – Appointment and Removal – UPSC Indian Polity
संबद्ध चिंताएं:
- यह तर्क दिया जाता है कि रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ मामले का निर्णय एक संदिग्ध प्रक्रिया द्वारा पूर्ववत किया गया था जो संविधान या सर्वोच्च न्यायालय के नियमों का हिस्सा नहीं है।
- ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ प्रणाली के दुरुपयोग के कई मामले दर्ज हैं। उदाहरण के लिए, चार साल पहले सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा गंभीर दुर्बलताओं को उजागर किया गया था।
- हालिया आदेश न्यायिक पक्ष में CJI की शक्तियों को बढ़ा सकता है और सर्वोच्च न्यायालय के भीतर एक अभूतपूर्व अंतर-न्यायालयी अपीलीय तंत्र (समीक्षा याचिका की अवहेलना) बना सकता है।
भावी कदम:
- यह सुझाव दिया जाता है कि पीठों के गठन और मामलों के आवंटन की प्रथा को कम्प्यूटरीकृत किया जाना चाहिए।
- ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ की अवधारणा का उपयोग न्यायालय के सुचारू प्रशासनिक कामकाज के लिए ही किया जाना चाहिए।
- CJI को अपनी शक्ति का विस्तार करने से बचना चाहिए।
संबंधित लिंक:
Issues in news; Master of Roster; Chief Justice of India; Supreme Court
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
1.भारत के GSLV ने NVS-01 नाविक (NavIC) उपग्रह प्रक्षेपित किया:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: अंतरिक्ष के क्षेत्र में जागरूकता।
प्रारंभिक परीक्षा: इसरो, NVS-01 उपग्रह और भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) से संबधित तथ्यात्मक जानकारी।
प्रसंग:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation (ISRO)) ने सफलतापूर्वक NVS-01 नेविगेशन उपग्रह को भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में स्थापित कर दिया है।
NVS-01 नेविगेशन उपग्रह:
- इसरो ने अपने भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) का उपयोग करते हुए NVS-01 मार्गनिर्देशन (नैविगेशन) उपग्रह को GTO में सफलतापूर्वक स्थापित किया।
- नवीनतम मिशन GSLV-F12 का उपयोग करके निष्पादित किया गया था जो भारत के GSLV की 15वीं उड़ान है और स्वदेशी क्रायो चरण वाली 9वीं उड़ान है।
- नवीनतम मिशन स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण के साथ GSLV की छठी परिचालन उड़ान भी थी।
- NVS-01 नैविगेशन उपग्रह नैविगेशन बाइ इंडियन कॉस्टिलेशन (Navigation by Indian Constellation (NavIC)) द्वारा नैविगेशन के लिए पांच दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों की श्रृंखला में पहला है।
- NVS-01 नैविगेशन उपग्रह का वजन लगभग 2,232 किलोग्राम है और यह L1, L5 और S बैंड के लिए नैविगेशन पेलोड ले गया है।
- NVS-01 में पहली बार स्वदेशी परमाणु घड़ी को स्थापित किया गया है।
- NVS-01 नैविगेशन उपग्रह सटीक और वास्तविक समय नैविगेशन प्रदान करके भारत की क्षेत्रीय नैविगेशन प्रणाली को संवर्धित करेगा।
- नाविक (NavIC) के सिग्नल को उपयोगकर्ता की स्थिति को 20 मीटर से बेहतर और 50 नैनोसेकंड से बेहतर समय की सटीकता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- NVS-01 उपग्रह का मिशन जीवनकाल 12 वर्ष से अधिक का है, जो कि नाविक (NavIC) प्रणाली में पहली पीढ़ी के उपग्रहों के 10 वर्ष के जीवनकाल से अधिक है।
- नाविक प्रणाली अपने मिशन जीवन के अंत के करीब परमाणु घड़ियों और उपग्रहों के ख़राब होने से बाधित हुई है। इस प्रकार पुराने उपग्रहों को बदलने और नाविक प्रणाली को पूरी तरह कार्यात्मक और परिचालन योग्य बनाने के प्रयास चल रहे हैं।
- दूसरी पीढ़ी के नाविक उपग्रह स्थलीय, हवाई और समुद्री नैविगेशन, सूक्ष्म कृषि, मोबाइल उपकरणों में स्थान-आधारित सेवाओं और समुद्री मत्स्ययन के लिए उन्नत सुविधाओं से लैस हैं।
2.केंद्रीय सतर्कता आयोग:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
राजव्यवस्था:
विषय: वैधानिक, नियामक और विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय।
प्रारंभिक परीक्षा: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और सदस्यों की नियुक्ति से संबधित तथ्यात्मक जानकारी।
प्रसंग:
- हाल ही में प्रवीण कुमार श्रीवास्तव को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC) के रूप में शपथ दिलाई थी।
केंद्रीय सतर्कता आयोग:
- भारत सरकार ने 1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की पुरःस्थापना की थी।
- इसे मूल रूप से एक कार्यकारी संकल्प के माध्यम से पुरःस्थापित किया गया था।
- भ्रष्टाचार निवारण पर के. संथानम समिति की सिफारिशों के आधार पर आयोग का गठन किया गया था।
- केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना उन संगठनों के सतर्कता प्रशासन पर अधीक्षण करने के उद्देश्य से की गई थी जिनके संबंध में भारत सरकार की कार्यकारी शक्तियां विस्तारित थीं।
- 1998 के अध्यादेश ने CVC को वैधानिक दर्जा प्रदान किया।
- इसने शक्तियों का विस्तार दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के कामकाज पर अधीक्षण और उनके द्वारा संचालित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत कथित अपराधों से संबंधित जांच की प्रगति की समीक्षा करने तक भी किया।
- केंद्रीय सतर्कता अधिनियम वर्ष 2003 में लोकसभा और राज्यसभा दोनों द्वारा सीवीसी विधेयक पारित किए जाने के बाद प्रभावी हुआ।
- CVC का प्रयास सार्वजनिक प्रशासन में भ्रष्ट और अनैतिक प्रथाओं को खत्म करने के उद्देश्य से एक सामान्य और प्रभावी दृष्टिकोण सुनिश्चित करना और प्रशासन में नागरिकों की आकांक्षाओं के प्रति पारदर्शिता, ईमानदारी, निष्पक्षता, जवाबदेही और अनुक्रियाशीलता स्थापित करना है।
- CVC ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर काम करता है।
- प्रभावी सतर्कता को बढ़ावा देने के लिए, CVC ने विभिन्न निवारक, दंडात्मक और सहभागी सतर्कता उपकरणों को अपनाया है।
- CVC, 1998 से, एक तीन सदस्यीय निकाय है जिसमें एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और दो सतर्कता आयुक्त शामिल हैं।
CVC सदस्यों की नियुक्ति:
- भारत के राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा CVC सदस्यों की नियुक्ति करते हैं।
- केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के अनुसार, राष्ट्रपति की नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश के बाद होती है जिसमें शामिल हैं:
- प्रधानमंत्री
- केंद्रीय गृह मंत्री
- लोकसभा में विपक्ष के नेता
- पद की अवधि: चार वर्ष या यदि वे 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेते हैं (जो भी पहले हो)
- सेवानिवृत्त होने के बाद, वे किसी भी केंद्र या राज्य सरकार की एजेंसी में पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होते हैं।
- भारत के पहले मुख्य सतर्कता आयुक्त नित्तूर श्रीनिवास राव थे।
अधिक जानकारी के लिए – Central Vigilance Commission (CVC)
3.कश्मीर की ‘सूफियाना मौसिकी’ और ‘चाकरी’ लोकगीत:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:
कला और संस्कृति:
विषय: कला रूपों के मुख्य पहलू।
प्रारंभिक परीक्षा: सूफियाना मौसिकी और चाकरी लोकगीतों से संबधित तथ्यात्मक जानकारी।
प्रसंग:
- बारामूला में ‘दास्तान-ए-बहार’ कार्यक्रम के दौरान शॉल और कालीन के उस्ताद बुनकरों और प्रमुख लोक गायकों को श्रद्धांजलि देने और गर्मियों की शुरुआत का जश्न मनाने के लिए सूफियाना मौसिकी और चाकरी लोक गीत गाए गए।
अधिक जानकारी के लिए –Pashmina Shawls
विवरण:
- सूफियाना मौसिकी और चाकरी भक्ति लोक गीतों के रूप हैं जिन्होंने सदियों से कश्मीर के कालीन और शाल बुनकरों के लिए केंद्रीय स्थान ग्रहण किया हुआ है।
- सूफ़ियाना मौसिकी और चाकरी गीत कश्मीर के कारीगरों की जनजाति के बीच प्रसिद्ध हैं।
- सूफियाना संगीत में लगभग 180 मुक़ाम या चरण होते हैं। हालाँकि, परंपरा में गिरावट के कारण कई चरण खो गए हैं।
- मुकाम-ए-बहार धीमी स्वर में और सूर्यास्त से ठीक पहले गाया जाता है।
- सूफियाना संगीत को शास्त्रीय दर्जा दिया गया है।
- कारीगरों को लगता है कि सूफियाना मौसिकी और चाकरी गाने उन्हें खुद को कलाकारी में ढलने में मदद करते हैं।
- उनका मानना है कि कालीन और शॉल बुनते समय सावधानीपूर्वक विवरणों पर ध्यान केंद्रित करने और बनाए रखने के लिए यह एक शक्तिशाली उपकरण है।
- यह भी माना जाता है कि सूफियाना संगीत मन को शांति देने में मदद करता है।
- सूफियाना मौसिकी को कश्मीर में प्रमुखता सुल्तान जू साज़नवाज़ के समय में मिली, जो ईरान के एक प्रसिद्ध सूफ़ियाना संगीतकार थे, जो कश्मीर चले गए थे।
- सुल्तान जू साज़नवाज़ को कश्मीर में सूफ़ियाना मौसिकी का अग्रदूत कहा जाता है और जल्द ही उन्हें उस्ताद सुल्तान जू साज़नवाज़ यानी “तारों (स्ट्रिंग) वाला जादूगर” कहा जाने लगा।
- सूफियाना मौसिकी और चाकरी गीतों को गाते समय जिन वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है उनमें हारमोनियम, रुबाब, सारंगी, नॉट, गीगर, तुंबकनार और चिमटा शामिल हैं।
यह भी पढ़ें – Folk Music in India
महत्वपूर्ण तथ्य:
- CAG को WHO के लेखा परीक्षक के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए चुना गया:
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General (CAG) of India), गिरीश चंद्र मुर्मू को वर्ष 2024 से 2027 तक चार साल की अवधि के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation (WHO) ) के बाह्य लेखा परीक्षक के रूप में फिर से चुना गया है।
- भारत के CAG पहले से ही वर्ष 2019 से 2023 तक चार साल के कार्यकाल के लिए WHO में बाह्य लेखा परीक्षक का पद संभाल रहे थे।
- जिनेवा में 76वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में पुन: चुनाव हुआ और भारत के CAG को 156 मतों में से 114 मतों के बहुमत से फिर से निर्वाचित किया गया।
- भारत के CAG को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के बाह्य लेखा परीक्षक (2024-2027) के पद के लिए भी मार्च 2023 में जिनेवा में चुना गया था।
- WHO और ILO के अलावा, भारत के CAG वर्तमान में निम्नलिखित के बाह्य लेखा परीक्षक हैं:
- खाद्य और कृषि संगठन (2020-2025)
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (2022-2027)
- रासायनिक हथियारों के निषेध के लिए संगठन (2021-2023)
- अंतर संसदीय संघ (2020-2022)
- इसके अलावा, भारत के CAG बाह्य लेखा परीक्षकों के संयुक्त राष्ट्र पैनल, सर्वोच्च लेखापरीक्षा संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीय संगठन के शासी बोर्ड और ASOSAI के भी सदस्य हैं।
- CAG INTOSAI ज्ञान साझाकरण समिति, आईटी लेखापरीक्षा पर इसके कार्यकारी समूह और अनुपालन लेखापरीक्षा उप-समिति की अध्यक्षता भी करते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन: भारत आसियान की महिलाओं को प्रशिक्षित करेगा
- भारत-आसियान रक्षा सहयोग के विस्तार के हिस्से के रूप में ‘संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना (UNPK) संचालन में महिलाएं’ पर एक पहल के लिए भारत के रक्षा मंत्री के प्रस्ताव के अनुरूप भारत द्वारा आने वाले दिनों में दक्षिण पूर्व एशिया की महिला कर्मियों के लिए पहल आयोजित करने की संभावना है।
- 29 मार्च 2023 को 75वां संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक दिवस (U.N. Peacekeepers Day) मनाया गया।
- यह दिन 1948 में फिलिस्तीन में पहले संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन अर्थात “संयुक्त राष्ट्र संघर्ष विराम पर्यवेक्षण संगठन” की शुरुआत का प्रतीक है।
- भारत UNPK के लिए सबसे बड़ा सैन्य योगदान करने वाले देशों में से एक है और वर्तमान में 12 मिशनों पर लगभग 5,900 सैनिकों को तैनात किया गया है।
- भारत ने अब तक शांति अभियानों में लगभग 2,75,000 सैनिकों का योगदान दिया है और दुनिया भर में भारतीय सेना के 159 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है।
- ‘UNPK संचालन में महिलाओं के लिए भारत-आसियान पहल’ के तहत निम्न पहलों को शामिल किया गया हैं:
- संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (CUNPK) में आसियान सदस्य-राज्यों की महिला शांति सैनिकों के लिए जरुरत के मुताबिक पाठ्यक्रमों का आयोजन।
- UNPK चुनौतियों के पहलुओं को शामिल करते हुए आसियान की महिला अधिकारियों के लिए “टेबलटॉप अभ्यास”।
- पूर्वोत्तर को पहली वंदे भारत एक्सप्रेस मिली:
- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की पहली वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) को हरी झंडी दिखाई।
- यह वंदे भारत ट्रेन गुवाहाटी (असम) को न्यू जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) से जोड़ेगी और यात्रा की अवधि को 6.5 घंटे से घटाकर 5.5 घंटे करने में मदद करेगी।
- नई गुवाहाटी-न्यू जलपाईगुड़ी वंदे भारत एक्सप्रेस से असम और पश्चिम बंगाल के बीच सदियों पुराने संबंधों के मजबूत होने की उम्मीद है।
- इससे यात्रा में आसानी होगी, छात्रों को लाभ होगा और पर्यटन और व्यवसाय के माध्यम से अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने में भी मदद मिलेगी।
- प्रधानमंत्री ने नए विद्युतीकृत वर्गों के 182 रूट किमी भी राष्ट्र को समर्पित किए जो उच्च गति और कम समय में प्रदूषण मुक्त परिवहन प्रदान करने में मदद करते हैं
- मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय और सिक्किम की राजधानियों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रावधानों पर विचार कीजिए: (स्तर – कठिन)
- लोक सभा में सीटों का आवंटन
- समय के समान बंटवारे का आवंटन
- प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता सूची
- निर्वाचक नामावली की प्रतियों की नि:शुल्क आपूर्ति
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अंतर्गत इनमें से कितने प्रावधान शामिल हैं?
- केवल एक
- केवल दो
- केवल तीन
- सभी चारों
उत्तर: b
व्याख्या:
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं:
- प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से लोकसभा और विधान सभाओं में सीटों का आवंटन।
- चुनाव के लिए मतदाताओं की योग्यता।
- लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन। निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा परिसीमन आयोग द्वारा निर्धारित की जाएगी।
- भारत के राष्ट्रपति चुनाव आयोग से उचित परामर्श के बाद निर्वाचन क्षेत्रों को बदल सकते हैं।
- मतदाता सूची तैयार करना। एक व्यक्ति को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए नामांकित नहीं किया जा सकता है। यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है या भारतीय नागरिक नहीं है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है और मतदान से रोका जा सकता है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 39A “समय के समान बंटवारे के आवंटन” से संबंधित है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 78A “मतदाता सूची की प्रतियों की मुफ्त आपूर्ति” से संबंधित है।
प्रश्न 2. 1923 के आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए? (स्तर – मध्यम)
- यह अधिनियम सरकार के कर्मचारियों और भारत के बाहर भारत के नागरिकों पर लागू होता है
- लाहौर षड़यन्त्र मामले की सुनवाई आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत गठित एक विशेष न्यायाधिकरण द्वारा की गई थी।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की कि आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
उपर्युक्त कथनों में से कितने कथन गलत हैं?
- केवल एक
- केवल दो
- सभी तीनों
- कोई नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: 1923 का आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम भारत का जासूसी विरोधी कानून है।
- आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 पूरे भारत में लागू होता है और शासकीय सेवकों और भारत के बाहर भारत के नागरिकों पर भी लागू होता है।
- कथन 2 गलत है: लाहौर षड़यन्त्र मामले की सुनवाई भारत की रक्षा अधिनियम 1915 के तहत गठित एक विशेष न्यायाधिकरण द्वारा की गई थी।
- कथन 3 सही है: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने जून 2006 की अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि 1923 के आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA) को निरस्त किया जाना चाहिए, और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में एक अध्याय द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें आधिकारिक गोपनीयता से संबंधित प्रावधान शामिल हों।
प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – सरल)
कथन- I :
POCSO अधिनियम बाल यौन शोषण पीड़ितों के लिए उपलब्ध कानूनी ढांचे के लिए एक लिंग-तटस्थ व्यवस्था निर्धारित करता है।
कथन- II :
अधिनियम लिंग के आधार पर बाल यौन शोषण के अपराधियों के बीच अंतर नहीं करता है, और ऐसे उदाहरण हैं जहां अदालतों ने महिलाओं को इस तरह के दुर्व्यवहार के लिए दोषी ठहराया है।
उपर्युक्त कथनों के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?
- कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है
- कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है
- कथन-I सही है लेकिन कथन-II गलत है
- कथन-I गलत है लेकिन कथन-II सही है
उत्तर: a
व्याख्या:
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) वर्ष 2012 में संसद द्वारा यौन शोषण और बच्चों के यौन शोषण की बुराई को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के इरादे से पारित किया गया था।
- अधिनियम का उद्देश्य बच्चों के खिलाफ अपराधों को लैंगिक-तटस्थ बनाना है और बाल यौन शोषण पीड़ितों के लिए उपलब्ध कानूनी ढांचे के लिए लैंगिक-तटस्थ व्यवस्था निर्धारित करना है।
- इस प्रकार, यह अधिनियम लिंग के आधार पर बाल यौन शोषण के अपराधियों के बीच अंतर नहीं करता है, और ऐसे उदाहरण हैं जहां अदालतों ने महिलाओं को इस तरह के दुर्व्यवहार के लिए दोषी ठहराया है।
प्रश्न 4. भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (स्तर – सरल)
- CAG के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसमें उस कार्यालय में सेवारत व्यक्तियों के सभी वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की आकस्मिकता निधि पर भारित होते हैं।
- CAG तीन संपरीक्षा प्रतिवेदन सीधे संसद को प्रस्तुत करता है- विनियोग खातों पर संपरीक्षा प्रतिवेदन, वित्त खातों पर संपरीक्षा प्रतिवेदन और सार्वजनिक उपक्रमों पर संपरीक्षा प्रतिवेदन।
विकल्प:
- केवल 1
- केवल 2
- दोनों
- कोई नहीं
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: संविधान के अनुच्छेद 148 (6) के अनुसार, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसमें उस कार्यालय में सेवारत व्यक्तियों को या उनके संबंध में देय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि पर प्रभारित किया जाएगा।
- कथन 2 गलत है: संघीय खातों से संबंधित भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन अर्थात् विनियोग खातों पर लेखा परीक्षा प्रतिवेदन, वित्त खातों पर लेखा संपरीक्षा प्रतिवेदन, और सार्वजनिक उपक्रमों पर संपरीक्षा प्रतिवेदन, राष्ट्रपति को प्रस्तुत किए जाते हैं।
- राष्ट्रपति उन्हें संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
प्रश्न 5. मृदा का लवणीभवन मृदा में एकत्रित सिंचित जल के वाष्पीकृत होने से पीछे छूटे नमक और खनिजों से उत्पन्न होता है। सिंचित भूमि पर लवणीभवन का क्या प्रभाव पड़ता है? (PYQ 2011) (स्तर – मध्यम)
- यह फसलों के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाता है
- यह कुछ मृदाओं को अपारगम्य बना देता है
- यह भौम जलस्तर को ऊपर ले आता है
- यह मृदा के वायु अवकाशों को जल से भर देता है
उत्तर: b
व्याख्या:
- लवणीभवन तब होता है जब मिट्टी में संचित सिंचाई का पानी वाष्पित हो जाता है, जिससे लवण और खनिज पीछे छूट जाते हैं।
- लवणीभवन सिंचित भूमि की कुछ मृदाओं को अपारगम्य बना देता है।
- अत्यधिक मृदा लवणता के कारण फसलोत्पादन में कमी होती है, फसलों के घेरे नष्ट हो जाते हैं, पादपों का विकास कम होता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. भारत ने सुपर कंप्यूटर की दुनिया में बहुत प्रगति की है,बावजूद इसके यह अभी तक अपने समकक्षों से पीछे है। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) (जीएस-3; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
प्रश्न 2. रोस्टर व्यवस्था के प्रमुख होने के संदर्भ में भारत के मुख्य न्यायाधीश की शक्तियों का परीक्षण कीजिए और इन शक्तियों से संबंधित चिंताओं का परीक्षण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) (जीएस-2; राजव्यवस्था)