मतदान व्यवहार प्रत्येक देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मतदाताओं का मतदान व्यवहार किसी देश की राजनीतिक दशा व दिशा तय करता है। मतदान व्यवहार विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जो समय, स्थान व परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। मतदान व्यवहार को लेकर विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग मत व्यक्त किए हैं।
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उल्लेखनीय है कि भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की अवधारणा को अपनाया गया है। इसका अर्थ है कि भारत के नागरिकों को मतदान करने के लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि एक निश्चित आयु पूर्ण कर लेने के बाद उन्हें मतदान करने के लिए पात्र माना जाएगा। पहले भारत में मतदान करने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई थी, लेकिन 61 वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से मतदान करने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है। यानी अब 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेने वाला प्रत्येक भारतीय नागरिक मतदान करने के लिए पात्र होता है।
अपने इस आलेख में हम मतदान व्यवहार की परिभाषा, मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक इत्यादि को समझने का प्रयास करेंगे।
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मतदान व्यवहार क्या है?
- मतदान व्यवहार का सामान्य अर्थ मतदाताओं की उस मनःस्थिति से होता है, जिससे प्रभावित होकर कोई मतदाता मतदान करता है। यानी मतदान व्यवहार इस बात को इंगित करता है कि लोगों ने क्या सोचकर मतदान किया है। मतदाताओं का मतदान व्यवहार सार्वजनिक चुनावों के परिणाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मतदान व्यवहार एक राजनीतिक के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक अवधारणा है।
- ओइनम कुलाबिधु के अनुसार – “मतदान व्यवहार मतदाताओं का ऐसा व्यवहार होता है, जो उनकी पसंद, वरीयताओं, विकल्पों, विचारधाराओं, चिंताओं, समझौतों इत्यादि को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करता है। ये कारक समाज व राष्ट्र के विभिन्न मुद्दों से संबंधित होते हैं।”
- दूसरे शब्दों में, मतदान व्यवहार एक ऐसा अध्ययन क्षेत्र है, जिसके तहत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि सार्वजनिक चुनाव में लोग किस प्रकार मतदान करते हैं। यानी मतदान के समय व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा मतदान के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाने वाला मनोभाव, मतदान व्यवहार कहलाता है।
मतदान व्यवहार की विशेषताएं
- मतदान व्यवहार के माध्यम से ‘राजनीतिक समाजीकरण’ (Political Socialization) की प्रक्रिया को समझने में सहायता मिलती है। राजनीतिक समाजीकरण से आशय उस प्रक्रिया से है, जिसके माध्यम से लोगों में राजनीतिक समझ विकसित की जाती है। राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया का मूल उद्देश्य राजनीतिक सिद्धांतों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करना होता है।
- मतदान व्यवहार के माध्यम से इस बात की जांच की जा सकती है कि लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति धारणा कैसी है। इसके माध्यम से समाज के प्रत्येक वर्ग की लोकतंत्र के प्रति सोच को समझने में सहायता मिलती है। यानी यदि कोई व्यक्ति अधिकार या दायित्व बोध महसूस करते हुए मतदान करता है, तो उसे लोकतंत्र के प्रति आस्थावान व्यक्ति समझा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति नोटा के रूप में मतदान करता है, तो इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति अपने मताधिकार का उपयोग तो करना चाहता है, लेकिन वर्तमान में वह किसी भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार या उनके द्वारा उठाए जाने वाले चुनावी मुद्दों को पसंद नहीं करता है।
- मतदान व्यवहार इस बात को भी प्रदर्शित करता है कि चुनावी राजनीति किस सीमा तक पूर्ववर्ती राजनीतिक मुद्दों से संबंध रखती है। यदि गहराई से अवलोकन करें तो स्पष्ट होगा कि प्रत्येक चुनाव में कुछ चुनावी मुद्दे हर बार लगभग समान होते हैं। उदाहरण के लिए, गरीबी, बेरोजगारी, विकास, महंगाई इत्यादि मुद्दों के इर्द-गिर्द प्रत्येक चुनाव घूमता है। इसका अर्थ है कि मतदाता इन मुद्दों से काफी हद तक प्रभावित होकर मतदान करता है, इसीलिए प्रत्येक चुनाव में ये मुद्दे चुनावी राजनीति का हिस्सा होते हैं।
मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक
ऐसे विभिन्न कारक मौजूद हैं, जो भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करते हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कारकों का विवरण निम्नानुसार है-
- जाति : भारत की सामाजिक संरचना जाति व्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित है, इसीलिए भारतीय निर्वाचन प्रणाली में इसका अच्छा खासा प्रभाव होता है। राजनेता के राजनीतिक दल जाति के आधार पर वोट हासिल करने का प्रयास करते हैं। इसी संदर्भ में, रजनी कोठारी ने यह कहा भी कि भारत की राजनीति जातिवादी है और भारत में जातियां राजनीतिकृत हैं।
- धर्म : विभिन्न राजनीतिक दल और राजनेता चुनावी लाभ अर्जित करने के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काते हैं और इनके वशीभूत होकर लोगों का मतदान व्यवहार प्रभावित हो जाता है। इसके परिणाम स्वरूप चुनावी नतीजे भी प्रभावित होते हैं।
- भाषा : उत्तर भारत और दक्षिण भारत की राजनीति में ‘भाषा’ मुख्य चुनावी मुद्दा रहा है। विशेष रूप से, तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी भाषी व गैर हिंदी भाषा का मुद्दा अत्यंत प्रभावी रहता है। भाषा भी लोगों के मतदान व्यवहार को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है।
- क्षेत्रवाद : उत्तर भारत, दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर की राजनीति में क्षेत्रवाद का मुद्दा बहुत अधिक प्रभावी होता है। विभिन्न चुनावों के दौरान अनेक राजनेताओं के संबंध में दूसरे राज्यों के लोग बाहरी होने का आरोप लगाते हैं और इस बात का प्रयास करते हैं कि उस राज्य के लोग किसी अन्य राज्य के व्यक्ति को वोट न दें। यह कारक भी लोगों के मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है।
- मतदाता की आर्थिक स्थिति : ऐसे मतदाता चुनाव में अधिक रूचि लेते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। इसके विपरीत, निर्धन मतदाता, दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी पटरी वाले लोग अपनी दैनिक मजदूरी की कीमत पर मतदान को प्राथमिकता नहीं दे पाते हैं। यदि निर्धन लोग मतदान को प्राथमिकता देंगे, तो इससे उनकी दैनिक मजदूरी पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। अतः मतदाता की आर्थिक स्थिति भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है।
- राजनीतिक स्थिरता की इच्छा : यदि मतदाताओं को इस बात का आभास हो जाए कि अमुक राजनीतिक दल देश में राजनीतिक स्थिरता कायम कर सकता है और इसके अलावा अन्य राजनीतिक दल देश में राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं कर सकते हैं, तो ऐसी स्थिति में, मतदाता सामान्यतः राजनीतिक स्थिरता कायम करने में सक्षम राजनीतिक दल को ही अपना मत देते हैं। यानी यह कारक भी मतदाताओं के मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है।
- धन की भूमिका : चुनावों में किया जाने वाला धन का प्रयोग भी लोगों के मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है। विशेष रूप से, गरीब देशों में राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को धन का लालच दिया जाता है, जिससे प्रभावित होकर मतदाता अपनी मतदान की प्राथमिकता में परिवर्तन कर देते हैं और इससे चुनावी परिणामों में भी परिवर्तन हो जाता है।
- शिक्षा : शिक्षा का स्तर भी मतदाताओं के मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है। सामान्यतः अशिक्षित लोग अपने हितों की परवाह किए बिना राजनेताओं या राजनीतिक दलों के भड़काऊ बयानों के शिकार होकर मतदान करते हैं। इसके विपरीत, शिक्षित लोग अपने हितों के मद्देनजर मतदान करते हैं। इसके अलावा, आजकल मतदाता ऐसे उम्मीदवारों का निर्वाचन करना पसंद करते हैं, जो अपेक्षाकृत बेहतर शैक्षिक पृष्ठभूमि रखते हैं।
अपने इस आलेख के माध्यम से हमने मतदान व्यवहार से संबंधित विभिन्न पहलुओं को समझा और उन कारकों का भी अवलोकन किया, जो मतदाताओं के मतदान व्यवहार को प्रभावित करते हैं। हमने इन कारकों का चयन विशेष रूप से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य के अनुसार किया है। इस आलेख के माध्यम से आपको यह समझने में आसानी होगी कि भारत की राजनीति में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा कौन-से कदम उठाए जाते हैं।
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