भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के बाद ही भारत की औपनिवेशिक सरकार ने देश के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें जेल में बंद कर दिया था। इसी बीच दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था।
ब्रिटिश सरकार एक तरफ भारत की संवैधानिक समस्या का समाधान खोजने में जुटी थी, तो वहीं दूसरी तरफ, दूसरे विश्व युद्ध में किसी भी तरह जीतने का प्रयास कर रही थी। भारत के पूर्वी द्वार पर जापान दस्तक दे रहा था। इसके कारण भी ब्रिटिश सरकार घबराई हुई थी।
इसी परिस्थिति में भारत के लोग ब्रिटिश सरकार का सहयोग करने के मूड में भी नहीं थे। ऐसे में, ब्रिटिश सरकार जल्दी से जल्दी भारत की संवैधानिक समस्या का समाधान करना चाहती थी।
वर्ष 1945 आते आते दूसरा विश्व युद्ध लगभग समाप्त हो गया था, लेकिन भारत पर जापान के संक्रमण का संकट अभी टला नहीं था और युद्ध में जापान अभी भी मजबूत स्थिति में था। इस दौरान ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की सरकार थी, जिसका नेतृत्व विंस्टन चर्चिल द्वारा किया जा रहा था। यह सरकार जल्दी से जल्दी भारत के संवैधानिक प्रश्न को सुलझाना चाहती थी।
इस दौरान लॉर्ड वेवेल भारत के वायसराय थे। लॉर्ड वेवेल ने ही भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार के प्रधान सेनापति की भूमिका भी निभाई थी। विंस्टन चर्चिल की सरकार ने लॉर्ड वेवेल को आदेश दिया कि वे भारत में नेताओं से बातचीत करके भारत की संवैधानिक समस्या के समाधान से संबंधित कोई सहमति बनाने का प्रयास करें।
इसी पृष्ठभूमि में लॉर्ड वेवेल ने जून 1945 में कांग्रेस के सभी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया, जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के आरंभिक चरण में गिरफ्तार कर लिया गया था।
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ब्रिटिश सरकार भारत की संवैधानिक समस्या को सुलझाने के लिए इतनी आतुर क्यों थी?
- वास्तव में, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही थी और अन्य देशों द्वारा ब्रिटेन पर लगातार यह दबाव बनाया जा रहा था कि वे किसी भी हालत में जल्दी से जल्दी भारत का समर्थन प्राप्त करें, लेकिन भारत के नेता संवैधानिक समस्या के ठोस समाधान के अभाव में ब्रिटिश सरकार का सहयोग करने के लिए तैयार नहीं थे। ऐसे में, ब्रिटिश सरकार यह चाहती थी कि दूसरे विश्व युद्ध में भारत का सहयोग प्राप्त करने के लिए जल्दी से जल्दी भारत की संवैधानिक समस्या का समाधान किया जाए।
- इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार भारतीयों की ऊर्जा व सामर्थ्य को इस तरह से उपयोग में लेना चाहती थी, जिससे कि वे अंग्रेजों को लाभान्वित कर सकें और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए लंबे समय से चली आ रही भारतीयों की संवैधानिक समस्या को अंग्रेज एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे।
- सबसे बढ़कर, वर्ष 1945 में ब्रिटेन में आम चुनाव आयोजित होने वाले थे। ऐसे में, विंस्टन चर्चिल के नेतृत्व वाली कंजरवेटिव पार्टी यह दर्शना चाहती थी कि वह गंभीरता पूर्वक भारत की समस्या का समाधान करना चाहती है, ताकि इसके माध्यम से आम चुनाव में लाभ उठाया जा सके और पुनः सत्ता हासिल की जा सके।
वेवेल योजना के निर्माण का प्रयास
- तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने भारतीयों के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि ब्रिटिश सरकार यह चाहती है जब तक नया संविधान निर्मित नहीं हो जाता है, तब तक वायसराय की कार्यकारिणी का पुनर्गठन कर दिया जाएगा।
- इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए लॉर्ड वेवेल ने जून 1945 में शिमला में एक सम्मेलन बुलाया और इस सम्मेलन में भारत के विभिन्न नेताओं को आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन में कांग्रेस, मुस्लिम लीग व अन्य लोगों ने हिस्सा लिया और इसके परिणाम स्वरूप भारत की संवैधानिक समस्या के समाधान के लिए जो योजना बनाई गई, उसे इतिहास में ‘वेवेल योजना’ के नाम से जाना जाता है।
वेवेल योजना के प्रमुख प्रावधान
- इसके तहत यह प्रावधान किया गया कि वायसराय की कार्यकारिणी में वायसराय और कमांडर इन चीफ को छोड़कर अन्य सभी सदस्यों के रूप में भारतीयों की नियुक्ति की जाएगी।
- इसमें कहा गया कि वायसराय की कार्यकारिणी में हिंदुओं और मुसलमानों की संख्या बराबर रखी जाएगी।
- एक अन्य प्रावधान में यह कहा गया कि हालांकि गवर्नर जनरल की निषेधाधिकार शक्ति को समाप्त नहीं किया जाएगा, लेकिन उसका प्रयोग करना भी आवश्यक नहीं समझा जाएगा।
- इसके तहत यह प्रावधान किया गया कि पुनर्गठन के पश्चात् वायसराय की कार्यकारिणी 1935 के भारत शासन अधिनियम के अंतर्गत एक अंतरिम सरकार के रूप में कार्य करेगी।
- इस योजना के तहत यह व्यवस्था की गई कि राजनीतिक दलों की एक संयुक्त बैठक बुलाई जाएगी, ताकि कार्यकारिणी के सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक सर्व सम्मत सूची तैयार की जा सके और यदि इस मुद्दे को लेकर आम सहमति निर्मित नहीं की जा सकी, तो इस कार्य के निष्पादन के लिए अलग-अलग सूचियां भी प्रस्तुत की जा सकेगी।
- इन समस्त बिंदुओं के साथ-साथ इस योजना के अंतर्गत इस बात का भी प्रावधान किया गया कि जब कभी भी ब्रिटेन को युद्ध में निर्णायक विजय प्राप्त हो जाएगी, उसके बाद भारत के लिए नए संविधान के निर्माण संबंधी प्रक्रिया आरंभ कर दी जाएगी।
वेवेल योजना पर मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया
- मुस्लिम लीग इस दौरान इस बात पर बहुत अधिक जोर दे रही थी कि वही मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था है और ब्रिटिश सरकार को इस बात को स्वीकार करना चाहिए। उसकी मांग थी कि कांग्रेस सहित अन्य किसी भी संस्था को वायसराय की कार्यकारिणी में किसी भी मुस्लिम सदस्य को भेजने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। वायसराय की कार्यकारिणी में जितने भी मुस्लिम सदस्य होंगे, उनका चयन सिर्फ मुस्लिम लीग के द्वारा ही किया जाएगा। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के इस मत का तीखा विरोध किया था।
वेवेल योजना पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने यह कहते हुए वेवेल योजना को ठुकरा दिया कि इसके माध्यम से अंग्रेजों द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि कांग्रेस की छवि सिर्फ सवर्ण हिंदू दल की संस्था की बना दी जाए। अंग्रेजों की इस मंशा से कांग्रेस के नेता अत्यधिक रुष्ट थे।
- इसके अलावा, कांग्रेस यह भी चाहती थी कि उसे यह अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए कि वह अपने द्वारा मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों में देश के सभी संप्रदायों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सके। यानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के सभी संप्रदायों के प्रतिनिधियों को अपनी संस्था के माध्यम से वायसराय की कार्यकारिणी में नियुक्त करना चाहती थी। लेकिन मुस्लिम लीग कांग्रेस के इस रुख से सहमत नहीं थी।
अतः स्पष्ट है कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग एक दूसरे के मतों से सहमत नहीं हो पा रही थी, इसीलिए अंततः लॉर्ड वेवेल द्वारा शिमला सम्मेलन को असफलता कह कर समाप्त घोषित कर दिया गया था। इस प्रकार, भारत की संवैधानिक समस्या का समाधान करने से संबंधित अंग्रेजों का एक और प्रयास असफल हो गया था।
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