“दो राष्ट्रों के सिद्धांत” (two nation theory) का वास्तविक जनक सय्यद अहमद खान को माना जाता है । बाद में मो. अली जिन्ना ने सबसे मुखर तौर पर इसकी वकालत की । हालाँकि ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार पहली बार मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग मो. इकबाल ने की थी (1930) ।
क्या है “दो राष्ट्रों का सिद्धांत”?
“दो राष्ट्रों के सिद्धांत” के अनुसार हिन्दू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते थे अतः मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग की गई । यह सांप्रदायिकता का चरम था जिसकी परिणति भारत के विभाजन और सांप्रदायिक दंगे के रूप में हुई ।
ब्रिटिश भारत का विभाजन “माउंटबेटन योजना” के तहत किया गया । 3 जून 1947 को माउंटबेटन द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की गई, उसी दौरान स्वतंत्रता की तिथि- 15 अगस्त 1947, की भी घोषणा की गई। योजना का मुख्य विवरण निम्नवत है –
- पंजाब और बंगाल विधान सभाओं में सिख, हिंदू और मुसलमान मिलकर विभाजन के लिए मतदान करेंगे । यदि किसी भी समूह का साधारण बहुमत विभाजन चाहता है, तो इन प्रांतों का विभाजन किया जाएगा ।
- सिंध और बलूचिस्तान के प्रांतों को यह तय करना था कि किस प्रभुत्व का हिस्सा बनना चाहते हैं ।
- उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत और असम के सिलहट जिले का भविष्य एक जनमत संग्रह द्वारा तय किया जाना था ।
- 15 अगस्त 1947 तक भारत आजाद हो जाएगा ।
- बंगाल की पृथक स्वतंत्रता का परित्याग कर दिया गया ।
- सीमाओं का निर्धारण करने के लिए एक सीमा आयोग का गठन किया जाएगा ।
2 जून को इस योजना को स्वीकार कर लिया गया । माउंटबेटन ने 3 जून को रियासतों को सलाह दी कि वे दोनों राष्ट्रों में से किसी एक में शामिल हो जाएं । इसमें मुस्लिम लीग की पृथक राज्य की मांग को स्वीकार कर लिया गया था । पाकिस्तान के भूमि क्षेत्र को यथासंभव छोटा रखने की स्थिति पर भी विचार किया गया और इसे ध्यान में रखा गया था । भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के पारित होने के साथ, क्रमशः 14 और 15 अगस्त को पाकिस्तान और भारत अलग राष्ट्र बन गए ।
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