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विश्व कछुआ दिवस (23 मई)

प्रतिवर्ष  23 मई को विश्व कछुआ दिवस (World Turtle Day) के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य विश्व  में कछुओं की कम होती संख्या के प्रति जागरूकता फैलाना और  उनके आवासों की रक्षा करना, उनके पुनर्वास की व्यवस्था तथा उनका बचाव (rescue) करना   है । यह कार्यक्रम 1990 में स्थापित एक अमेरिकी संस्था American Tortoise Rescue (ATR) द्वारा सन 2000 में  शुरू किया गया था और तब से दुनिया भर में मनाया जा रहा है । 

इस लेख में आप कछुओं के संरक्षण से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जानकारी पा सकेंगे | हिंदी माध्यम में यूपीएससी से जुड़े मार्गदर्शन के लिए अवश्य देखें हमारा हिंदी पेज  आईएएस हिंदी 

नोट : यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे  UPSC Prelims Syllabus in Hindi का अच्छी तरह से अध्ययन कर लें, और इसके बाद ही  अपनी तैयारी की योजना बनाएं ।

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कछुओं के संरक्षण की आवश्यकता क्यों ? 

कछुओं की प्रजाति विश्व की सबसे पुरानी जीवित प्रजातियों में से एक  है । ये लगभग 200 मिलियन वर्ष  पुरानी प्रजाति  है और  चिड़ियों ,सांपों और छिपकलियों से भी पहले धरती पर अस्तित्व में आ चुकी थी। पारितंत्र में कछुओं का अस्तित्व इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ये एक स्वस्थ्य पर्यावरण के संकेतक माने जाते हैं । खाद्द्य श्रृंखला में इनका अहम स्थान है और पौधों व मछलियों की कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनके नियंत्रण के लिए कछुओं का अस्तित्व अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

आज विश्व में कछुओं की 300 से भी अधिक प्रजातियाँ हैं जिनमें से लगभग 130 IUCN के द्वारा  संकटापन्न घोषित की गई  हैं । भारत में कछुओं की 29 प्रजातियां पाई जाती हैं  जिनमें 24 प्रजाति  कच्छप अर्थात स्थलीय कछुए (tortoise) के  एवं 5 प्रजाति  कुर्म अर्थात समुद्री कछुओं (turtle) के  हैं ।  इनमें से अधिकांश कछुए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की विभिन्न अनुसूचियों के अन्तर्गत संरक्षित हैं।

भारत में पाए  जाने वाले समुद्री कछुओं की 5 प्रजातियाँ हैं :- ओलिव रिडले , लेदरबैक, लोगरहेड, हरित कछुए एवं हौक्सबिल । इनमें से प्रथम 3 IUCN के द्वारा असुरक्षित (‘Vulnerable’) घोषित किये गये हैं ।  हरित कछुए को विलुप्तप्राय (‘Endangered’)  जबकि हौक्सबिल को गंभीर रूप से विलुप्तप्राय (‘Critically Endangered’)  की श्रेणी में रखा गया है । यदि इनके संरक्षण का प्रयास  नहीं किया गया तो जल्द ही ये प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएंगी ।

IUCN क्या है ?

IUCN (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) 1948 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो विश्व स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों एवं वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में क्रियाशील है | इसका मुख्यालय ग्लैंड,स्विट्ज़रलैंड में है |

  • भारत में कछुओं  को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाली नौकाओं  से होता है। बड़े आकार के कछुए अक्सर मछली के जाल में फंस जाते हैं और घायल होकर दम तोड़ देते हैं । 
  • कछुओं को  दूसरा खतरा तस्करी से है । कई बार अंधविश्वास के कारण भी इनका व्यापार अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में किया जाता है क्योंकि लोग कछुओं को घर में रखना शुभ मानते हैं  । 
  • प्लास्टिक प्रदूषण ऐसी हालिया समस्या है जो न केवल जलीय जीवों  बल्कि समस्त पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है । खाद्य श्रृंखला के जरीय प्लास्टिक के सूक्ष्म कण जलीय जीवों के शरीर में पहुँच कर उनके विनाश का कारण बनते हैं । 
  • जलीय क्षेत्रों के निरंतर बढ़ते अतिक्रमण और तथाकथित विकास की प्रक्रिया (जैसे बड़े बांधों का निर्माण) ने कछुओं के  आवास का भी  विनाश (habitat loss)  किया है ।
  • रेत खनन एक अन्य समस्या है जो कछुओं के लिए घातक है | कछुए जलीय क्षेत्रों के किनारे रेत में अपने अंडे देते हैं और रेत खनन के कारण कई बार  इन अण्डों का नाश हो जाता है ।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण भी कछुओं की कई प्रजातियाँ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत हैं ।
ओलिव रिडले कछुए :

अक्सर समाचारों में रहने वाले , दुनिया के   सबसे छोटे समुद्री कछुए ओलिव रिडले (Olive Ridley) हर वर्ष नियमित रूप से  उड़ीसा  के समुद्री तट पर अंडे देने आते हैं । केंद्रपाड़ा जिले में स्थित  गहिरमाथा तट  पर ओलिव रिडले का आगमन प्रति वर्ष नवंबर-दिसंबर के बीच होता है तथा अप्रैल-मई तक ये यहाँ प्रजनन करते हैं । 

गहिरमाथा तट ओलिव रिडले कछुओं के लिए न केवल भारत बल्कि  दुनिया भर में  प्रजनन का  सबसे बड़ा स्थान है । यही कारण है कि इसे  एक समुद्री वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया   है। ओलिव रिडले कछुए   IUCN के द्वारा असुरक्षित (‘Vulnerable’) घोषित किये गये हैं ।

 

कछुओं के व्यवहार बारे में कुछ रोचक तथ्य

कछुए एक मजबूत खोल (आवरण) वाले जीव हैं । ये आवरण मूलतः अस्थियों एवं उपस्थियों से बने होते हैं जो शिकारियों से इनकी रक्षा करते हैं । वे लाखों साल पहले विकसित हुए सबसे प्राचीन और आदिम सरीसृप समूहों में से एक हैं । नतीजतन, कछुए व्यावहारिक रूप से धरती पर हर वातावरण में पाए जा सकते हैं । इंटीग्रेटेड टैक्सोनॉमिक इंफॉर्मेशन सिस्टम (ITIS) के अनुसार कछुआ क्रम टेस्टुडाइन (या चेलोनिया) को दो उप -सीमाओं, क्रिप्टोडिरा और प्लुरोडिरा में विभाजित किया गया है, और फिर आगे 13 परिवारों, 75 जेनेरा और 300 से अधिक प्रजातियों में विभाजित किया गया है ।

शब्द “कछुआ,” “कच्छप,” और “टेरापिन” कभी-कभी समानार्थक शब्द के रूप में उपयोग किए जाते हैं। हालांकि, चेलोनियन की किस्में काफी भिन्न होती हैं । अंटार्कटिका को छोड़ कर, कछुए अत्यधिक अनुकूलनीय हैं और हर महाद्वीप पर पाए जा सकते हैं । दक्षिण- पूर्वी उत्तरी अमेरिका और दक्षिण एशिया कछुओं की अधिकांश प्रजातियों के घर हैं । यूरोप में इनकी सिर्फ पांच प्रजातियां हैं । कछुए अपने शिकार की आबादी को नियंत्रित करने में अहम भूमिका अदा करते हैं । उदाहरण के लिए, लेदरबैक्स, पानी में जेलिफ़िश के नियंत्रण में सहायता करते हैं, जबकि हॉक्सबिल स्पंज को खाकर कोरल रीफ़्स की सहायता करते हैं, क्योंकि ये स्पंज उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले होते हैं ।

कछुए के आवास से समुद्र तटों को भी लाभ होता है क्योंकि तटीय वनस्पति को उन पोषक तत्वों से लाभ होता है जो अंडे और ‘हैचलिंग’ के पीछे रह जाते हैं जो जीवित नहीं रहते हैं । इनकी संख्या अच्छी खासी होती है । कई जीव (विशेष रूप से कुछ पक्षी) भोजन के स्रोत के रूप में इन पर ही निर्भर करते हैं । कछुओं के प्रजनन व “घोंसले” बनाने के मौसम के दौरान, कई पक्षी, मछली और स्तनधारी, जैसे कि रैकून आदि इनके उदाहारण हैं ।

कछुए तटीय कस्बों और जनजातीय लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं । कई जनजातियाँ समुद्री कछुओं को अपनी संस्कृतियों का हिस्सा मानती हैं, और कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ लोग पेशे के तौर पर कछुए को पर्यटकों को दिखाने (boating) या ‘गोता लगाने’ (sea diving) पर निर्भर करते हैं । इसके आलावा, समुद्री घास खाने वाले कछुए समुद्री घास के “बेड” (स्तर) के स्वास्थ्य को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं । उपयुक्त समुद्री घास कार्बन का भंडारण करते हुए विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का समर्थन करती है ।

एक स्वस्थ्य पर्यावरण के लिए कछुए महत्वपूर्ण हैं । समुद्री कछुओं को तो “कीस्टोन प्रजाति” माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे अपने इको- सिस्टम का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं और अन्य प्रजातियों को प्रभावित करते हैं । जब एक कीस्टोन प्रजाति को एक निवास स्थान से हटा दिया जाता है, तो प्राकृतिक क्रम बुरी तरह प्रभावित होता है, जिसके अन्य वनस्पतियों और जीवों के लिए कई तरह के परिणाम हो सकते हैं । इसलिए इनका संरक्षण करना चाहिए । 

कछुए थोड़े शर्मीले जीव हैं । यदि अन्य कछुए आस-पास हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन इनसान या किसी अन्य जीव के पास जाते ही वे छुप जाते हैं । भोजन की तलाश में अधिकांश कछुए पूरे दिन सक्रिय रहते हैं । आपको जान कर आश्चर्य होगा कि कुछ कछुए बिजली के मोटरों की तरह आवाज कर सकते हैं, कुछ इंसानों की डकार की तरह, जबकि अन्य कुत्तों की तरह भी भौंक सकते हैं । दक्षिण अमेरिकी लाल पैर वाला कछुआ मुर्गे की तरह चुगता है । इण्डोनेशिया में तो सांप की तरह लम्बी गर्दन वाले कछुए भी पाए जाते हैं ।

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World Turtle Day – UPSC Notes :-Download PDF Here

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