दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटेन में क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ था। लेबर पार्टी की इस सरकार ने भारत की समस्या के स्थायी समाधान के लिए एक तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय संसदीय समिति का गठन किया था और इसे भारत भेजा था। इस समिति के तीन सदस्यों में व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष सर स्टेफोर्ड क्रिप्स, सैन्य सदस्य ए. वी. अलेक्जेंडर और भारत सचिव लॉर्ड पैथिक लोरेंस शामिल थे। पैथिक लोरेंस को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। भारत आने वाली तीन सदस्यों की इस समिति को ही इतिहास में ‘कैबिनेट मिशन’ के नाम से जाना जाता है। यह मिशन मार्च 1946 में भारत पहुँचा था।
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कैबिनेट मिशन के कार्य
- कैबिनेट मिशन भारत में संविधान निर्माण करने के तरीके पर विचार विमर्श करने के लिए आया था। यह ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधियों और देशी रियासतों के साथ वार्तालाप करके एक ऐसी आम सहमति बनाना चाहता था, जिससे एक निर्विवाद संविधान सभा का गठन किया जा सके।
- यह एक ऐसी कार्यकारिणी परिषद की स्थापना करना चाहता था जिसे भारत के लगभग सभी प्रमुख दलों का समर्थन प्राप्त हो।
- समेकित रूप में कहा जाए तो कैबिनेट मिशन भारत को शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरित करने के उपाय खोजना चाहता था तथा संविधान निर्माण करने की सर्वसम्मति निर्मित करना चाहता था।
शिमला में त्रिदलीय सम्मेलन
- कैबिनेट मिशन में किसी समझौते का प्रयास करने के लिए वर्ष 1946 में शिमला में एक त्रिदलीय सम्मेलन बुलाया। इसमें तीन दल थे- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और ब्रिटिश सरकार। इसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना अबुल कलाम आजाद शामिल हुए थे, जबकि मुस्लिम लीग की तरफ से मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान और नवाब इस्माइल खान शामिल हुए थे। ब्रिटिश सरकार की ओर से भारत के वायसराय और मिशन के तीनों सदस्य शामिल हुए थे।
- यह सम्मेलन 5 मई, 1946 से 11 मई, 1946 तक चला था। मुस्लिम लीग के अड़ियल रवैया के कारण इस सम्मेलन का कोई भी सर्व सम्मत समाधान नहीं निकल सका था। मुस्लिम लीग निरंतर पृथक पाकिस्तान की माँग पर अड़ी रही थी।
- शिमला सम्मेलन में मुस्लिम लीग की अलग पाकिस्तान की माँग को न तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्वीकार किया था और न ही सम्मेलन के ब्रिटिश सदस्यों ने स्वीकार किया था। इस सम्मेलन का कोई सर्व सम्मत समाधान न निकलने के बावजूद इस मिशन ने 16 मई, 1946 को अपने प्रस्तावों की घोषणा की थी।
कैबिनेट मिशन द्वारा घोषित प्रमुख प्रस्ताव
- भारत एक संघ होगा और इसमें ब्रिटिश भारत के प्रांत तथा देशी राज्य, दोनों ही शामिल होंगे। इस संघ के अंतर्गत विदेशी मामले, रक्षा संबंधी मामले और संचार संबंधी मामले केंद्र सरकार के पास होंगे। संघीय विषयों को छोड़कर अन्य सभी विषय तथा अवशिष्ट शक्तियाँ प्रांतों में निहित होंगी।
- इसमें कहा गया कि प्रत्येक प्रांत की अपनी अलग कार्यपालिका और विधायिका होगी तथा उसे अपने संबंध में निर्णय करने का अधिकार होगा। इसके अलावा, केंद्रीय विधायिका में यदि सांप्रदायिक प्रश्नों पर निर्णय करने की बात आएगी, तो उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के सामान्य बहुमत के आधार पर निर्णय किया जाएगा।
- प्रत्येक प्रांत को यह अधिकार होगा कि वह संविधान लागू होने के 10 वर्षों के बाद अपनी विधानसभा में बहुमत के द्वारा प्रस्ताव पारित करके संविधान पर पुनर्विचार करवा सकेगा।
- इसके अंतर्गत भारत में प्रांतों का विभाजन तीन समूहों में किया गया था, ये थे- समूह ‘क’; समूह ‘ख’; और समूह ‘ग’। समूह ‘क’ के अंतर्गत बिहार, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, उड़ीसा, बंबई और मद्रास जैसे हिंदू बहुसंख्यक प्रांत शामिल किए गए थे। समूह ‘ख’ के अंतर्गत पंजाब, सिंध और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत जैसे मुस्लिम बहुल प्रांत शामिल किए गए थे। समूह ‘ग’ के अंतर्गत बंगाल और असम नामक मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांत शामिल थे।
- एक संविधान निर्मात्री सभा के गठन का प्रस्ताव भी कैबिनेट मिशन के अंतर्गत रखा गया था। यह सभा अंशतः अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों के द्वारा और अंशतः मनोनीत सदस्यों के द्वारा निर्मित की जानी थी। इसमें ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि प्रांतीय विधानसभाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किए जाने तथा देशी रियासतों द्वारा अपने प्रतिनिधि मनोनीत किए जाने का प्रावधान किया गया था।
- इसके अंतर्गत यह कहा गया था कि प्रत्येक प्रांत को उसकी जनसंख्या के अनुपात में संविधान सभा में प्रतिनिधि भेजने होंगे। संविधान सभा में प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि भेजा जाएगा। यह निर्धारित किया गया किस संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होंगे जिनमें से 292 सदस्य ब्रिटिश भारतीय प्रांतों से निर्वाचित होंगे, चार सदस्य मुख्य आयुक्तों के प्रांत से आएँगे और शेष 93 सदस्य देशी रियासतों द्वारा मनोनीत किये जाएँगे।
- कैबिनेट मिशन के माध्यम से मुस्लिम लीग की पृथक पाकिस्तान की माँग को अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि इसके माध्यम से सांप्रदायिक अल्पसंख्यकों की समस्या का समाधान करना संभव नहीं था। कैबिनेट मिशन के अनुसार, यदि भारत का विभाजन करके पाकिस्तान बना दिया जाता है, तो भी एक बड़ी गैर मुस्लिम जनसंख्या पाकिस्तान में रह जाएगी और एक बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में रह जाएगी। अतः समस्या जस की तस बनी रहेगी।
कैबिनेट मिशन योजना के परिणाम
- जुलाई 1946 में संविधान सभा के गठन के लिए प्रांतीय विधान मंडलों में निर्वाचन हुआ। परिणाम स्वरूप कांग्रेस को ब्रिटिश भारत के प्रांतों में 296 में से 208 सीटें मिली। कांग्रेस की इस जीत को मुस्लिम लीग सहन नहीं कर सकी।
- इसके बाद वायसराय ने अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव रखा। इसके अंतर्गत निर्धारित किया गया कि अंतरिम सरकार में कुल 14 सदस्य शामिल होंगे। इनमें से 6 सदस्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से, 5 मुस्लिम लीग से और तीन सदस्य अन्य अल्पसंख्यकों की ओर से शामिल होंगे।
- 12 अगस्त, 1946 को वायसराय ने जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। इसके विरोध में मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ की शुरुआत की। इसके आधार पर संपूर्ण भारत में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए और बड़ी संख्या में लोग मारे गए। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 16 अगस्त को ‘भारतीय इतिहास का काला दिवस’ बताया था।
इस प्रकार, कैबिनेट मिशन योजना भी भारत की संवैधानिक समस्या का पूर्ण समाधान करने तथा भारत के सभी वर्गों में संतुलन साधने में सफल नहीं हो सकी थी।
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