सिविल सेवा (IAS EXAM) की मुख्य परीक्षा में उम्मीदवारों को यूपीएससी द्वारा सूचीबद्ध कुल 26 विषयों में से किसी एक विषय को वैकल्पिक विषय के तौर पर चुनना पड़ता है | इस लेख में हम आपको वैकल्पिक विषय के तौर पर भू-विज्ञान (Geology) के पाठ्यक्रम की सम्पूर्ण जानकारी देंगे | (भू-विज्ञान के अलावा आप किस विषय को वैकल्पिक विषय के तौर पर चुन सकते हैं इसकी जानकारी के लिए नीचे दी गई तालिका देखें )
पाठक लिंक किए गए लेख में आईएएस हिंदी के बारे में जानकारी पा सकते हैं।
मुख्य परीक्षा के लिए वैकल्पिक विषयों की सूचि
मुख्य परीक्षा के लिए वैकल्पिक विषयों की सूचि |
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(i) कृषि विज्ञान (ii) पशुपालन एवं पशुचिकित्सा विज्ञान (iii) नृविज्ञान (iv) वनस्पति विज्ञान (v) रसायन विज्ञान (vi) सिविल इंजीनियरिंग (vii) वाणिज्य शास्त्र तथा लेखा विधि (viii) अर्थशास्त्र (ix) विद्युत् इंजीनियरिंग (x) भूगोल (xi) भू-विज्ञान (xii) इतिहास (xiii) विधि
(xiv) प्रबंधन (xv) गणित (xvi) यांत्रिक इंजीनियरिंग (xvii) चिकित्सा विज्ञान (xviii) दर्शन शास्त्र (xix) भौतिकी (xx) राजनीति विज्ञान एवं अतर्राष्ट्रीय संबंध | |
(xxi) मनोविज्ञान (xxii) लोक प्रशासन (xxiii) समाज शास्त्र (xxiv) सांख्यिकी (xxv) प्राणी विज्ञान (xxvi) निम्नलिखित भाषाओं में से किसी एक भाषा का साहित्य : असमिया , बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी,कन्नड़, कशमीरी, कोंकणी, मैथिलि , मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया , पंजाबी , संस्कृत, संथाली, सिन्धी , तमिल , तेलुगू, उर्दू व अंग्रेज़ी। |
नीचे दी गई तालिका में दिए गए लिंक से प्रासंगिक लेखों के बारे में पढ़ें:
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यूपीएससी सिविल सेवा की प्रारम्भिक परीक्षा को पास करने के बाद उम्मीदवार मुख्य परीक्षा में शामिल होते हैं जहाँ उन्हें सामान्य अध्ययन के 4 अनिवार्य विषयों के साथ किसी 1 विषय को वैकल्पिक विषय के तौर पर चुनने की अनुमति होती है | वैकल्पिक विषय की परीक्षा 2 पत्रों में ली जाती है | प्रत्येक पत्र 250 अंकों का होता है | नीचे भू-विज्ञान के दोनों पत्रों के पाठ्यक्रम की सम्पूर्ण जानकारी दी गई है | इस परीक्षा से जुड़ी अन्य जानकारियों के लिए देखें हमारा हिंदी पेज IAS परीक्षा पैटर्न
यूपीएससी भू-विज्ञान पाठ्यक्रम – प्रश्न पत्र -1
- सामान्य भू-विज्ञान:
सौरतंत्र, उल्कापिंड, पृथ्वी का उद्भव एवं अंतरंग तथा पृथ्वी की आयु, ज्वालामुखी-कारण, प्रभाव, भारत के भूकंपी क्षेत्र, द्वीपाभ चाप, खाइयां एवं महासागर मध्य कटक; महाद्वीपीय अपोढ; समुद्र अधस्थल विस्तार, प्लेट विवर्तनिकी; समस्थिति ।
- भू-आकृति विज्ञान एवं सुदूर-संवेदन:
भू-आकृति विज्ञान की आधरभूत संकल्पना; अपक्षय एवं मृदानिर्माण; स्थलरूप; ढाल एवं अपवाह; भूआकृतिक चक्र एवं उनकी विवक्षा; आकारिकी एवं इसका संरचनाओं एवं आश्मिकी से संबंध; तटीय भू-आकृति विज्ञान; खनिज पुर्वेक्षण में भू-आकृति विज्ञान के अनुप्रयोग, सिविल इंजीनियरी; जल विज्ञान एवं पर्यावरणीय अध्ययन; भारतीय उपमहाद्वीप का भू-आकृति विज्ञान, वायव फोटो एवं उनकी विवक्षा-गुण एवं सीमाएं; विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम; कक्षा परिभ्रमण उपग्रह एवं संवेदन प्रणालियां; भारतीय दूर संवेदन उपग्रह, उपग्रह दत्त उत्पाद; भू-विज्ञान में दूर संवेदन के अनुप्रयोग; भौगोलिक सूचना प्रणालियां (GIS) एवं विश्वव्यापी अवस्थन प्रणाली (GPS) – इसका अनुप्रयोग ।
- संरचनात्मक भू-विज्ञान:
भू-वैज्ञानिक मानचित्र एवं मानचित्र पठन के सिद्धांत, प्रक्षेप आरेख, प्रतिबल एवं विकृति दीर्घवृत तथा प्रत्यास्थ, सुघट्य एवं श्यन पदार्थ के प्रतिबल-विकृति संबंध; विरूपति शैली में विकृति चिह्नक; विरूपण दशाओं के अंतर्गत खनिजों एवं शैलों का व्यवहार; वलन एवं भ्रंश वर्गीकरण एवं यांत्रिकी; वलनों, शल्कनों, संरेखणों, जोड़ों एवं भ्रशों, विषमविन्यासों का संरचनात्मक विश्लेषण; क्रिस्टलन एवं विरूपण के बीच समय संबंध ।
- जीवाश्म विज्ञान:
जाति-परिभाषा एवं नाम पद्धित; गुरू जीवाश्म एवं सूक्ष्म जीवाश्म; जीवाश्म संरक्षण की विधियां; विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवाश्म; सह संबंध, पेट्रोलियम अन्वेषण, पुराजलवायवी एवं पुरासमुद्र- विज्ञानीय अध्ययनों में सूक्ष्म जीवाश्मों का अनुप्रयोग; होमिनिडी एक्विडी एवं प्रोबोसीडिया में विकासात्मक प्रवृति; शिवालिक प्राणिजात; गोडंवाना वनस्पतिजात एवं प्राणिजात एवं इसका महत्व; सूचक जीवाश्म एवं उनका महत्व ।
- भारतीय स्तरिकी:
स्तरिकी अनुक्रमों का वर्गीकरण: अश्मस्तरिक जैवस्तरिक, कालस्तरिक एवं चुम्बकस्तरिक तथा उनका अंतर्संबंध; भारत की कैब्रियनपूर्व शैलों का वितरण एवं वर्गीकरण; प्राणिजात वनस्पतिजात एवं आर्थिक महत्व की दृष्टि से भारत की दृश्यजीवी शैलों के स्तरिक वितरण एवं अश्मविज्ञान का अध्ययन; प्रमुख सीमा समस्याएं-कैंब्रियन/कैंब्रियन पूर्व, पर्मियन/ट्राईऐसिक, केटैशियस/तृतीयक एवं प्लायोसिन/प्लीस्टोसिन; भूवैज्ञानिक अतीत में भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायवी दशाओं, पुराभूगोल एवं अग्नेय सक्रियता का अध्ययन; भारत का स्तरिक ढांचा; हिमालय का उद्भव।
- जल भू-विज्ञान एवं इंजीनियरी भू-विज्ञान :
जल वैज्ञानिक चक्र एवं जल का जननिक वर्गीकरण; अवपृष्ठ जल का संचलन; वृहत ज्वार; सरध्रंता, पराक्राम्यता, द्रवचालित चालकता, परगम्यता एवं संचयन गुणांक, एक्रिफर वर्गीकरण; लवणजल अंतर्बेधन; कूपों के प्रकार, वर्षाजल संग्रहण; शैलों की जलधारी विशेषताएँ ;भू-जल रसायनिकी ,शैलों के इंजीनियरी गुण-धर्म, बांधें, सुरगों, राजमार्गों एवं पुलों के लिए भू-वैज्ञानिक अन्वेषण; निर्माण सामग्री के रूप में शैल; भूस्खलन-कारण,रोकथाम एवं पुनर्वास; भूकंप रोधी संरचनाएं ।
यूपीएससी भू-विज्ञान पाठ्यक्रम – प्रश्न पत्र -2
- खनिज विज्ञान :
प्रणालियों एवं सममिति वर्गों में क्रिस्टलों का वर्गीकरण, क्रिस्टल संरचनात्मक संकेतन की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली, क्रिस्टल सममिति को निरूपित करने के लिए प्रक्षेप आरेख का प्रयोग; किरण क्रिस्टलिकी के तत्व ,शैलकर सिलिकेट खनिज समूहों के भौतिक एवं रासायनिक गुण; सिलिकेट का संरचनात्मक वर्गीकरण; आग्नेय एवं कायांतरित शैलौं के सामान्य खनिज; कार्बोनेट, फास्फेट, सल्पफाइड एवं हेलाइड समूहों के खनिज; मृत्तिका खनिज ,सामान्य शैलकर खनिजों के प्रकाशिक गुणधर्म; खनिजों में बहुवर्णता, विलोप कोण, द्विअपवर्तन (डबल रिफैक्शन ,बाईरेफ्रिजेंस), यमलन एवं परिक्षेपण ।
- आग्नेय एवं कायांतरित शैलिकी :
मैगमा जनन एवं क्रिस्टलन; ऐल्बाइट-ऐनाॅर्थाइट का क्रिस्टलन; डायोप्साइड-ऐनाॅर्थाइट एवं डायोप्साइड-वोलास्टोनाइट-सिलिका प्रणालियां; बाॅवेन का अभिक्रिया सिद्धांत; मैग्मीय विभेदन एवं स्वांगीकरण; आग्नेय शैलों के गठन एवं संरचनाओं का शैलजनननिक महत्व; ग्रेनाइट, साइनाइड, डायोराइट, अल्पसिलिक एवं अत्यल्पसिलिक समूहों, चार्नोकाइट, अनाॅर्थोसाइट एवं क्षारीय शैलों की शैलवर्णना एवं शैल जनन; कार्बोनेटाइट्स, डेकन ज्वालामुखी शैल-क्षेत्र , कायांतरण प्ररूप एवं कारक; कायांतरी कोटियां एवं संस्तर; प्रावस्था नियम; प्रादेशिक एवं संस्पर्श कायांतरण संलक्षणी; ACF एवं AKF आरेख; कायांतरी शैलों का गठन एवं संरचना; बालुकामय, मृण्मय एवं अल्पसिलिक शैलों का कायांतरण; खनिज समुच्चय पश्चगतिक कायांतरण , तत्वांतरण एवं ग्रेनाइटी भवन; भारत का मिग्नेटाइट, कणिकाश्म शैल प्रदेश ।
- अवसादी शैलिकी :
अवसाद एवं अवसादी शैल निर्माण प्रक्रियाएं, प्रसंघनन एवं शिलीभवन, संखंडाश्मी एवं असंखंडाश्मी शैल-उनका वर्गीकरण, शैलवर्णना एवं निक्षेपण वातावरण; अवसादी संलक्षणी एवं जननक्षेत्र; अवसादी संरचनाएं एवं उनका महत्व; भारी खनिज एवं उनका महत्व; भारत की अवसादी द्रोणियां ।
- आर्थिक भू-विज्ञान :
अयस्क, अयस्क खनिज एवं गैंग, अयस्क का औसत प्रतिशत, अयस्क निक्षेपों का वर्गीकरण; खनिज निक्षेपों की निर्माण प्रक्रिया; अयस्क स्थानीकरण के नियंत्रण; अयस्क गठन एवं संरचनाएं; धातु जननिक युग एवं प्रदेश; एल्यूमिनियम, क्रोनियम, ताम्र, स्वर्ण, लोह, लेड, जिंक मैंगनीज, टिटैनियम, युरेनियम एवं थेरियम तथा औद्योगिक खनिजों के महत्वपूर्ण भारतीय निक्षेपों का भू-विज्ञान; भारत में कोयला एवं पेट्रोलियम निपेक्ष; राष्ट्रीय खनिज नीति; खनिज संसाधनों का संरक्षण एवं उपयोग; समुद्री खनिज संसाधन एवं समुद्र नियम ।
- खनन भू-विज्ञान :
पूर्वेक्षण की विधियां- भू-वैज्ञानिक, भू-भौतिक, भू-रासायनिक एवं भू-वानस्पतिक; प्रतिचयन प्रविधियां, अयस्क निचय प्राक्कलन; धतु अयस्कों, औद्योगिक खनिजों, समुद्री खनिज संसाधनों एवं निर्माण प्रस्तरों के अन्वेषण एवं खनन की विधियां, खनिज सज्जीकरण एवं अयस्क प्रसाधन।
- भू-रासायनिकी एवं पर्यावरणीय भू-विज्ञान :
तत्वों का अंतरिक्षी बाहुल्य; ग्रहों एवं उल्कापिंडों का संघटन; पृथ्वी की संरचना एवं संघटन एवं तत्वों का वितरण; लेश तत्व; क्रिस्टल रासायनिकी के तत्व-रासायनिक आबंध ,समन्वय संख्या, समाकृतिकता एवं बहरूपता; प्रांरभिक उष्मागतिकी; प्राकृतिक आपदा – बाढ़, वृहत क्षरण, तटीय संकट, भूकंप एवं ज्वालामुखीय सक्रियता तथा न्यूनीकरण; नगरीकरण, खनन औद्योगिक एवं रेडियोसक्रिय अपरद निपटान, उर्वरक प्रयोग, खनन अपरद एवं फ्लाई ऐश सन्निक्षेपण के पर्यावरणीय प्रभाव; भौम एवं भू-पृष्ठ जल प्रदूषण, समुद्री प्रदूषण; पर्यावरण संरक्षण- भारत में विधयी उपाय; समुद्र तल परिवर्तन-कारण एवं प्रभाव ।
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