भारत के संविधान में अब तक 105 संशोधन किये जा चुके हैं । पहली बार संविधान संशोधन 1950 में किया गया था । इसके तहत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिये विशेष उपबंध बनाने हेतु राज्यों को शक्तियाँ दी गई थी, कानून की रक्षा के लिये संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था की गई थी, भमि सुधार तथा न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानूनों को नौंवी अनुसूची में स्थान दिया गया था, अनुच्छेद 31 में दो उपखंड 31(क) और 31 (ख) जोड़े गये थे, वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के आधार जोड़े गये थे, और यह व्यवस्था की गई थी कि राज्य ट्रेडिंग और राज्य द्वारा किसी व्यवसाय या व्यापार के राष्ट्रीयकरण को केवल इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता कि यह व्यापार या व्यवसाय के अधिकार का उल्लंघन करता है ।
105 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की सूची तैयार करने के लिए राज्य सरकारों की शक्ति बहाल कर दी । भारतीय संविधान के 105वें संशोधन में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की शक्तियां और जिम्मेदारियां (सभी नीतिगत मुद्दों और सम्मान पर परामर्श) स्वतंत्र राज्य सूचियों पर लागू नहीं होती हैं । इसने संकेत दिया कि राज्यों को राष्ट्रीय आयोग से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है । इस शक्ति को बहाल करने के लिए 105वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया । 105वां संशोधन के तहत अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन किया गया और एक नया खंड 3 जोड़ा गया ।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया
संविधान के भाग -20 के अनुच्छेद-368 में भारत के संसद को संविधान में संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है । इस अनुच्छेद में प्रावधान है कि संसद अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए संविधान के किसी भी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन कर सकती है । इस अनुच्छेद में संशोधन की निम्नांकित प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है :- 1. संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के 2 में से किसी 1 सदन में (अर्थात लोक सभा या राज्य सभा) संशोधन विधेयक पेश कर किया जा सकता है , न कि किसी राज्य विधान मण्डल (अर्थात विधान सभा या विधान परिषद) में । 2. संशोधन विधेयक को किसी मंत्री या किसी भी सांसद द्वारा पेश किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है । 3. विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत (दो-तिहाई अथवा 66%) से पारित कराना अनिवार्य है । 4. प्रत्येक सदन में विधेयक को अलग-अलग पारित कराना अनिवार्य है । दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (joint sitting) का प्रावधान संविधान के संशोधन के सन्दर्भ में नहीं है । 5. यदि विधेयक संविधान की संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर हो तो इसे न्यूनतम 50% राज्यों के विधानमंडलों से भी सामान्य बहुमत (50%) से पारित कराना अनिवार्य है । 6. संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद , एवं जहां आवश्यक हो, राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के बाद, इस संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है । 7. संशोधन विधेयक के मामले में भारत के राष्ट्रपति न तो अपने वीटो पॉवर का प्रयोग कर सकते हैं और न ही इसे संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं। अर्थात, राष्ट्रपति के लिए स्वीकृति देना बाध्यकारी है । |
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