13 जनवरी 2022 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव द्वारा ‘इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021’/भारत: वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report-I.S.F.R) जारी की गई । यह एक द्विवार्षिक रिपोर्ट है जिसे ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ (F.S.I) प्रकाशित करता है। प्रथम बार इस रिपोर्ट को वर्ष 1987 में प्रकाशित किया गया था और तब से हर 2 वर्ष पर यह रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है |
वर्ष 2021 में रिपोर्ट का यह 17वांँ संस्करण है। यह रिपोर्ट भारत के जंगलों में वन आवरण, वृक्ष आवरण, मैंग्रोव क्षेत्र, जानवरों की बढ़ती संख्या, भारत के वनों में कार्बन स्टॉक, जंगलों में लगने वाली आग की निगरानी व्यवस्था, बाघ आरक्षित क्षेत्रों में जंगल का फैलाव, एसएआर डेटा का उपयोग करके जमीन से ऊपर बायोमास के अनुमानों और जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील जगहों (हॉटस्पॉट) के बारे में जानकारी प्रदान करता है। इस वर्ष पहली बार टाइगर रिज़र्व, टाइगर कॉरिडोर और गिर के जंगल ( एशियाई शेर के लिए प्रसिद्द ) के वन-आवरण का भी सर्वेक्षण किया गया है।
Explore The Ultimate Guide to IAS Exam Preparation
Download The E-Book Now!
इसके अलावा इस वर्ष के रिपोर्ट की विशेषता यह है कि इस बार इसमें एक नया अध्याय जोड़ा गया है जिसमें ‘जमीन से ऊपर बायोमास’ का अनुमान लगाया गया है। एफएसआई ने अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी), इसरो, अहमदाबाद के सहयोग से सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) डेटा के एल-बैंड का उपयोग करते हुए अखिल भारतीय स्तर पर जमीन से ऊपर बायोमास (एजीबी) के आकलन के लिए एक विशेष अध्ययन शुरू किया। असम और ओडिशा राज्यों (साथ ही एजीबी मानचित्र) के परिणाम पहले आईएसएफआर 2019 में प्रस्तुत किए गए थे। इस लेख में रिपोर्ट के अहम बिन्दुओं की चर्चा की गई है |
अंग्रेजी माध्यम में इस लेख को पढने के लिए देखें India State of Forest Report 2021
अभ्यर्थी लिंक किए गए लेख से IAS हिंदी की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
भारत वन स्थिति सर्वेक्षण 2021 के मुख्य बिंदु
- 2019 के सर्वेक्षण की तुलना में इस वर्ष भारत का वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग कि.मी. (80.9 मिलियन हेक्टेयर) मापा गया है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.71% है जो वर्ष 2019 के 21.67% से कुछ अधिक है। जबकि इसमें यदि वृक्षों के आवरण को भी जोड़ दिया जाये तो कुल क्षेत्रफल 8,09,537 वर्ग किमी है या 24.62% (केवल वृक्षों का आवरण – 95,748 वर्ग किमी अर्थात देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.91 प्रति शत) |
- हम जानते हैं कि राष्ट्रीय वन नीति ,1988 के अनुसार भौगोलिक क्षेत्र के कम से कम 33% क्षेत्र फल पर वन होने चाहियें | इस दिशा में 17 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने अच्छा प्रदर्शन किया है क्योंकि वहां 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वन आच्छादित है। इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से पांच राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों जैसे लक्षद्वीप, मिजोरम, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 75 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र हैं, जबकि 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात् मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, गोवा, केरल, सिक्किम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव,असम,ओडिशा में वन क्षेत्र 33 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच है।
- वनावरण में सबसे अधिक वृद्धि दर्शाने वाले राज्यों में शीर्ष 5 राज्य इस प्रकार है :
- आंध्र प्रदेश -647 वर्ग की.मी. (2.22%),
- तेलंगाना – 632 वर्ग की.मी. (3.07%),
- ओडिशा – 537 वर्ग की.मी.(1.04%),
- कर्नाटक (155 वर्ग किमी) व
- झारखंड (110 वर्ग किमी) |
- कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में शीर्ष पाँच राज्य :
- मिजोरम (84.53%),
- अरुणाचल प्रदेश (79.33%),
- मेघालय (76%),
- मणिपुर (74.34%) और
- नगालैंड (73.90%) ।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं।
- गरान वनों (मैंग्रोव कवर) में वृद्धि के मामले में शीर्ष तीन राज्य क्रमशः 1.ओडिशा (8 वर्ग किमी), 2.महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी) और 3.कर्नाटक (3 वर्ग किमी) हैं।
- बांस के वनों में भी वृद्धि देखि गई है | वर्ष 2019 में वनों में मौजूद बाँस की संख्या 13,882 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2021 में 53,336 मिलियन हो गई है।
- वनावरण में सबसे अधिक कमी पूर्वोत्तर के पाँच राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड में हुई है।
- बक्सा (पश्चिम बंगाल), अनामलाई (तमिलनाडु) और इंद्रावती रिज़र्व (छत्तीसगढ़) अभ्यारण्य /राष्ट्रीय उद्द्यानो के वन क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है जबकि कवल (तेलंगाना), भद्रा (कर्नाटक) और सुंदरबन रिज़र्व (पश्चिम बंगाल) के वन क्षेत्र में कमी हुई है। अरुणाचल प्रदेश के पक्के टाइगर रिज़र्व में सबसे अधिक लगभग 97% वन आवरण है।
- देश के जंगल में कुल कार्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है और 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन है।
राष्ट्रीय वन नीति -1988 भारत में पहली बार वन नीति ब्रिटिश काल में 1894 में बनाई गई थी | स्वतंत्र भारत की प्रथम राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1952 में घोषित की गई थी | 1988 में इसमें अहम संसोधन किये गये | इस नीति के अनुसार देश के कम से कम 33% क्षेत्रफल को वनाच्छादित रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है | इस नीति के अनुसार भारतीय वनों को निम्नलिखित 3 वर्गों में विभाजित किया गया है : 1.आरक्षित वन (Reserved Forests)- ऐसे वन सरकार की प्रत्यक्ष निगरानी में होते हैं और इनमे पशु चरागाहों के व्यावसायिक उद्देश्य हेतु सार्वजनिक प्रवेश अथवा लकड़ियाँ लेने की अनुमति नहीं होती है। देश के कुल वन क्षेत्र (Total Forest Area) का 53% हिस्सा इस श्रेणी के अंतर्गत आता है। 2.संरक्षित वन (Protected Forests)- ऐसे वन भी हालाँकि सरकार की निगरानी में होते हैं लेकिन स्थानीय लोगों को वन में बिना किसी गंभीर क्षति किये वनोत्पाद के उपयोग करने और मवेशी चराने की अनुमति है। कुल वन क्षेत्र (TFA) का 29% हिस्सा इस श्रेणी के अंतर्गत आता है। 3.असुरक्षित वन (Unprotected Forests)- इन्हें अवर्गीकृत वन भी कहते हैं । इनमे वृक्षों को काटने या मवेशियों को चराने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। कुल वन क्षेत्र (TFA) का 18% हिस्सा इस श्रेणी के अंतर्गत आता है। |
---|
भारत के वन
भारत में पाए जाने वाले वनों को निम्नलिखित 5 वर्गों में बांटा गया है :-
1.उष्णकटिबंधीय सदाबहार एवं अर्ध-सदाबाहर वन : ये वन दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढाल पर, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों पर और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं। ये वन ऐसे उन उष्ण और आर्द्र प्रदेशों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 200 cm से अधिक होती है और औसत वार्षिक तापमान 22° c से अधिक रहता है। ऐसे वन अत्यंत सघन होते हैं, जहाँ जमीन के नजदीक झाड़ियाँ और बेलें होती हैं | इनके ऊपर छोटे कद वाले पेड़ और सबसे ऊपर लंबे पेड़ होते हैं। इन वनों में वृक्षों की लंबाई 200 फिट या उससे भी अधिक हो सकती है । इसका कारण यह है कि अधिक से अधिक धूप पाने के लिए वनस्पतियों में लंबाई की एक होड़- सी लगी रहती है, क्योंकि अनुकूल परिस्थितियों के कारण यह वन काफी सघन होते हैं और नीचे के स्तरों में धूप का पहुंचना मुश्किल होता है | चूँकि, इन वनों में अनेक प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं और वे अपने पत्ते अलग-अलग ऋतुओं में गिराते हैं अतः ये वन वर्ष भर हरे-भरे दिखाई देते हैं। यही कारण है कि इन्हें सदाबहार (evergreen) वन कहते हैं | इसमें पाई जाने वाले मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ रोजवुड, महोगनी, ऐनी और एबनी हैं। इन्हीं क्षेत्रों में, अपेक्षाकृत कम वर्षा वाले भागों में अर्ध-सदाबाहर वन पाए जाते हैं। इनमें मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ साइडर, होलक और कैल हैं।
2.उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन : ये वन भारत में सर्वाधिक पाए जाने वाले वन हैं। इन्हें मानसून वन भी कहा जाता है। ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 200 cm होती है। चूँकि शुष्क ऋतु में इन वनों के पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं अतः इन्हें पर्णपाती वन का नाम दिया गया है । वर्षा उपलब्धता के आधार पर इन वनों को आर्द्र पर्णपाती (wet deciduous) और शुष्क पर्णपाती (dry deciduous) वनों में विभाजित किया जाता है। आर्द्र पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ वर्षा 100 से 200 cm होती है। ये वन उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालय की तराई , पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों और ओडिशा में हैं। सागवान, साल, शीशम,हुर्रा, महुआ, आँवला, सेमल, कुसुम और चंदन आदि प्रजातियों के वृक्ष इन वनों में पाए जाते हैं। जबकि शुष्क पर्णपाती वन, देश के उन विस्तृत भागों में मिलते हैं, जहाँ वर्षा 70 से 100 cm होती है। उत्तर प्रदेश व बिहार के मैदानी भाग, झारखण्ड आदि इसके उदाहारण हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य पेड़ों में तेंदु,पलास, अमलतास, बेल, खैर और अक्सलवूड (Axlewood) इत्यादि हैं।
3.उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन : उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन उन भागों में पाए जाते हैं, जहाँ वर्षा 50 cm से भी कम होती है। इन वनों में कई प्रकार के घास और झाड़ियाँ शामिल हैं। इसमें दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अर्ध-शुष्क क्षेत्र शामिल हैं। इन वनों में पौधे पानी के वाष्पन को बचाने के लिए लगभग पूरे वर्ष पर्णरहित रहते हैं और कांटेदार या चिकनाई (wax) वाले पत्तों का भी सहारा लेते हैं। इनमें पाई जाने वाली मुख्य प्रजातियाँ बबूल, बेर, खजूर, खैर, नीम, खेजड़ी और पलास इत्यादि हैं।
4.पर्वतीय वन : ये वन मुख्य रूप से पहाड़ों में अधिक ऊंचाई पर स्थित होते हैं। भारत में ऐसे वनों को 2 उप-भागों में रखा गया है : उत्तरी पर्वतीय वन तथा दक्षिणी पर्वतीय वन | उत्तरी पर्वतीय वन का प्रमुख क्षेत्र हिमालय पर्वत माला है | इस क्षेत्र में गिरिपाद पर साल, सागौन, बांस और बेंत जैसे सदाबहार पेड़ उगते हैं | जबकि उंचाई पर चीड़, देवदार, ओक, मेपल,अखरोट , स्प्रूस,रोडोडेंड्रोन और जुनिपर आदि समशीतोष्ण शंकु-वृक्ष उगते हैं। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम इसके उदाहरण हैं। वहीँ दक्षिणी पर्वतीय वन मुख्यतः प्रायद्वीप के तीन भागों में मिलते हैं : पश्चिमी घाट, सतपुड़ा -विंध्याचल और नीलगिरी पर्वत श्रृंखलाएँ। चूँकि, ये श्रृंखलाएँ उष्ण कटिबंध में पड़ती हैं और इनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1500 मीटर ही है, इसलिए यहाँ ऊँचाई वाले क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय और निचले क्षेत्रों में उपोष्ण कटिबंधीय प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में पश्चिमी घाट में इस तरह की वनस्पति विशेषकर पाई जाती है। नीलगिरी, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाए जाने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय वनों को “शोला” के नाम से जाना जाता है। इन वनों में पाए जाने वाले वृक्षों मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना और वैटल का आर्थिक महत्त्व है। ये वन सतपुड़ा और मैकाल श्रेणियों (मध्य भारत) में भी पाए जाते हैं।
5.मैन्ग्रोव (गरान या अनूप वन) : भारत में विभिन्न प्रकार की आर्द्र/अनूप वनस्पति भी पाई जाती है । देश में लगभग 39 लाख हेक्टेयर आर्द्र है जहाँ ऐसी वनस्पति मिलती है । इन्हें मैन्ग्रोव कहते हैं | भारत मे मैंग्रोव वन 6700 वर्ग की.मी. क्षेत्र में फैले हुए हैं जो विश्व के कुल मैंग्रोव का 7% है । ऐसे वन तटीय क्षेत्रों में अपनी जड़ों के द्वारा मृदा को बांधने का कार्य करते हैं और बाढ़, सुनामी इत्यादि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय मृदा के कटाव को रोककर एक अहम भूमिका निभाते हैं |
प्रतियोगिता परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण अन्य रिपोर्टों के हिंदी लेख के लिंक :