राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi) का गठन एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में वर्ष 1997 में केंद्रीय सरकारी अस्पतालों में उपचार कराने वाले गरीब मरीज़ों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से, किया गया था । इसका गठन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किया गया है । इस प्रकार राष्ट्रीय आरोग्य निधि एक केंद्र प्रायोजित योजना है । यह योजना मुख्य रूप से जानलेवा बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों को कवर करती है । इस योजना के तहत पीड़ित व्यक्ति किसी भी अस्पताल या सुपर-स्पेशियलिटी सुविधाएं प्रदान करने वाले संस्थान या किसी अन्य सरकारी अस्पताल में चिकित्सा उपचार का लाभ उठा सकते हैं । पहले इस योजना को “राष्ट्रीय बीमारी सहायता कोष” (National Illness Assistance Fund) के रूप में जाना जाता था ।
यह लेख आई.ए.एस मुख्य परीक्षा में GS पेपर – 2 की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है जिसमें सरकारी नीतियों (government policies) से प्रश्न पूछे जाते हैं ।
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राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना
एक कल्याणकारी राज्य का यह कर्तव्य है कि वह बी.पी.एल (गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले) समूह के लोगों को वित्तीय चिकित्स सहायता प्रदान करे । इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय आरोग्य निधि का गठन किया गया था । इसका उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले मरीजों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है । इस योजना के तहत, यह सहायता ‘एकमुश्त अनुदान’ के रूप में जानलेवा बीमारियों से पीड़ित रोगियों को दी जाती है । यह अनुदान उस विशेष चिकित्सा संस्थान या अस्पताल के संबंधित चिकित्सा अधीक्षक को प्रदान किया जाता है जहां उपचार प्रदान किया जा रहा है । राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना दिशानिर्देशों के अनुसार, भारत के भीतर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपना स्वयं का राज्य बीमारी कोष बनाना आवश्यक है । केंद्र सरकार तब इन राज्य बीमारी कोषों को धन प्रदान करती है । कुल योगदान का 50% राज्य सरकारों या केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा उनके संबंधित फंड के लिए किया जाना है ।
राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत वित्तीय सहायता की शर्तें
राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत वित्तीय सहायता के पात्र होने के लिए लाभार्थियों के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं । ये शर्तें हैं:
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत वित्तीय सहायता के पात्र होने के लिए सबसे पहली शर्त यह है कि यह वित्तीय सहायता पीड़ित व्यक्ति को सीधे नहीं प्रदान की जाती है । यह संबंधित अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को प्रदान की जाती है ।
- दूसरा, वित्तीय सहायता तभी प्राप्त की जा सकती है जब रोगी सरकारी अस्पताल में उपचार के लिए जाता है । यह योजना निजी अस्पतालों पर लागू नहीं होती ।
- राज्य सरकार के कर्मचारी, केंद्र सरकार के कर्मचारी और पीएसयू (सार्वजानिक उपक्रम) कर्मचारी इस योजना का लाभ उठाने के पात्र नहीं हैं ।
- किसी मरीज के किसी विशेष मामले का तकनीकी समिति द्वारा आकलन किए जाने के बाद, रोगी पक्ष राज्य सरकार से 1.5 लाख रुपये तक का फंड तभी प्राप्त कर सकता है, जब स्वास्थ्य निदेशालय स्तर पर गठित एक तकनीकी समिति द्वारा मामले का आकलन किया जाता है । यदि उपचार की अनुमानित लागत इस राशि से अधिक हो जाती है, तो केंद्र से अनुदान प्रस्ताव स्वीकृत करने की आवश्यकता होती है ।
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के एक भाग के रूप में, पूरे देश के सभी प्रमुख राष्ट्रीय अस्पतालों के विभिन्न चिकित्सा अधीक्षकों के पास 10 लाख से 40 लाख रुपय का एक अधिशेष (prepayment) रखा जाता है । प्रत्येक योग्य मामले के लिए, ये अस्पताल संबंधित अस्पताल या चिकित्सा संस्थान के भीतर उपचार प्रदान करने के लिए 5 लाख रुपय तक की मंज़ूरी प्राप्त कर सकते हैं । यदि किसी विशेष मामले की आवश्यकता 5 लाख रुपय की वित्तीय सहायता से अधिक हो जाती है, तो स्वास्थ्य मंत्रालय को इसके बारे में सूचित किया जाना चाहिए ताकि आगे की धनराशि की अनुमति दी जा सके ।
राष्ट्रीय आरोग्य निधि यूपीएससी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1.राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत वित्तीय सहायता का लाभ उठाने के लिए रोगी को किन- किन दस्तावेज़ की आवश्यकता होती है?
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत वित्तीय सहायता का लाभ उठाने के लिए निम्नलिखित दस्तावेज हैं जो रोगी द्वारा प्रस्तुत किए जाने चाहिए:
- उपचार में शामिल डॉक्टर और संबंधित सरकारी अस्पताल या चिकित्सा संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक द्वारा हस्ताक्षरित निर्धारित प्रोफार्मा में आवेदन पत्र,
- रोगी के आय प्रमाण पत्र की प्रति,
- रोगी के राशन कार्ड की प्रति ।
2.बीपीएल स्थिति कैसे स्थापित की जाती है?
- योजना आयोग द्वारा निर्धारित आय सीमा के संदर्भ में बीपीएल स्थिति की स्थापना और निर्णय लिया जाता है । इसके लिए मरीज की आय का मिलान निर्धारित मानकों से किया जाता है ।
3.राष्ट्रीय आरोग्य निधि तकनीकी समिति का समग्र गठन क्या है?
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि तकनीकी समिति में शामिल हैं:
- विशेष महानिदेशक (वरिष्ठतम), डीजीएचएस,
- चिकित्सा अधीक्षक, डॉ आरएमएल अस्पताल, नई दिल्ली,
- आर्थिक सलाहकार,
- एचओडी, कार्डियोलॉजी, एम्स, नई दिल्ली,
- एचओडी, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली,
- एचओडी, हेमेटोलॉजी, एम्स, नई दिल्ली
4.राष्ट्रीय आरोग्य निधि की स्थापना कब की गई थी?
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि, जिसे RAN के नाम से भी जाना जाता है, 13 जनवरी, 1997 को स्थापित एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य राहत कोष है । मूल रूप से, इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण ब्यूरो से 500 मिलियन रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ । RAN की मुख्य प्रेरणा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले उन रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है जो सरकारी अस्पतालों के कुछ विभागों में गंभीर या जानलेवा बीमारियों का सामना कर रहे हैं ।
5.राष्ट्रीय आरोग्य निधि कोष का वित्तपोषण कौन करता है?
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि में पहला योगदान स्वास्थ्य, परिवार और कल्याण विभाग द्वारा प्रदान किया गया था । वित्त पोषण सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संगठनों, व्यक्तियों और कई संगठनों द्वारा भी प्रदान किया जाता है । आर.ए.एन के लिए व्यक्तिगत दान लाभकारी हैं और 1961 के आयकर अधिनियम की धारा 80 जी के तहत आयकर का भुगतान करने से छूट प्राप्त है ।
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