मार्च 2022 में भारत के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने भारत की पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट 2022 जारी की। यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन, प्रवासन, स्वास्थ्य एवं खाद्य प्रणालियों पर केंद्रित, ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ और ‘डाउन टू अर्थ’ (पत्रिका) का एक वार्षिक प्रकाशन है जिसमें जैव विविधता, वन और वन्यजीव, ऊर्जा, उद्योग, आवास, प्रदूषण, अपशिष्ट, कृषि एवं ग्रामीण विकास भी शामिल हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE), नई दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी- सार्वजनिक हित संस्था (non-profit organisation) है जिसकी स्थापना 1980 में की गयी थी। यह संगठन भारत में पर्यावरण, खराब नियोजन, जलवायु परिवर्तन और पहले से मौजूद नीतियों के बेहतर कार्यान्वयन आदि से संबन्धित मुद्दों को उठाता है। यह संगठन लोगों में पर्यावरण,विकास और स्वास्थ्य के संबंध में जागरूकता भी पैदा करता है। वर्ष 2018 में इसे शांति, निरस्त्रीकरण और विकास कार्यों के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार (Indira Gandhi Prize) से भी सम्मानित किया जा चुका है । जबकि “डाउन टू अर्थ” दिल्ली से प्रकाशित ,पर्यावरण और विकास की राजनीति पर केंद्रित एक पाक्षिक(fortnightly) पत्रिका है । “विज्ञान और पर्यावरण केंद्र” इस पत्रिका के प्रकशन में मदद करता है। इसकी शुरुआत 1992 में की गई थी। भारतीय पर्यावरणविद् सुनीता नारायण , विज्ञान और पर्यावरण केंद्र की महानिदेशक, वर्तमान में इस पत्रिका की संपादक हैं।
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नीचे इस रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गये हैं जो प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं | इस लेख के अंग्रेजी संस्करण के लिए देखें State of India’s Environment Report-2021
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भारत की पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट 2022 के महत्वपूर्ण बिंदु
रैंकिंग : इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के 192 देशों में से भारत 120वें स्थान पर है | पिछले वर्ष की तुलना में यह 3 पायदान की गिरावट है क्योकि पिछले वर्ष भारत 117वें स्थान पर था | इस वर्ष भारत का स्कोर 100 में से 66 है | उपरोक्त वर्णित मोर्चों पर पाकिस्तान को छोड़कर भारत अन्य सभी दक्षिण एशियाई देशों से पीछे है। दक्षिण एशियाई देशों में भूटान 75वें, श्रीलंका 87वें, नेपाल 96वें और बांग्लादेश 109वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के राज्यों में केरल सबसे ऊपर है, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जबकि झारखण्ड व बिहार के प्रदर्शन को सर्वाधिक निराशाजनक बताया गया है |
अर्थव्यवस्था : आर्थिक मोर्चे पर भारत ने 2022-23 वित्तीय वर्ष तक सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P) को 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुचाने का लक्ष्य रखा था किंतु 2020 में यह केवल 2.48 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को प्राप्त कर सकी है जो की निर्धारित लक्ष्य का केवल 62 प्रतिशत है । अतः इस क्षेत्र में काफी कार्य किये जाने की आवश्यकता है | रिपोर्ट में इस बात को स्विकार किया गया है कि कोरोना वैश्विक महामारी के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करना मुश्किल हो गया है।
रोजगार :कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की श्रम-बल भागीदारी को 2022-23 तक कम से कम 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया है लेकिन 2020 के श्शुरुआत तक यह केवल 17 प्रतिशत ही रहा।
आवास एवं पेयजल : सभी के लिए आवास उपलब्ध कराने के लक्ष्य के तहत प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (P.M.A.Y-Rural) में लगभग 3 करोड़ ; और प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना (P.M.A.Y-Urban) में 1.2 करोड़ आवास बनाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन दोनों योजनाओं में अब तक क्रमशः 46.8 प्रतिशत और 38 प्रतिशत काम ही पूरा हो सका है। इसी प्रकार यदि पेय जल उपलब्धता की बात की जाए तो 2022-23 तक सभी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन अभी तक इस योजना के कार्यान्वयन के लिए जितनी पाइपलाइन देश भर में बिछानी थी उसका केवल 45 फीसदी ही हासिल किया जा सका है।
कृषि : 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था किंतु किसानों की औसत मासिक आय 6,426 रुपये से बढ़कर 10,218 रुपयेे हो पाई है | रिपोर्ट में यह बताया गया है कि इस बढ़त में ज्यादा योगदान मजदूरी और पशुओं से होने वाली आय का है न की कृषि का । फसलों से होने वाली मासिक आय 2012-13 48 प्रतिशत थी, जो कि 2018-19 में घटकर 37 प्रतिशत हो गई है ।
ई- गवर्नेंस : ई- गवर्नेंस की दिशा में प्रगति के लिए सरकार का एक अन्य लक्ष्य 2022 तक सभी भूमि-सम्बन्धी (Land Records) आंकड़ों का डिजिटलाइजेशन करना है। इस दिशा में मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और सिक्किम इसमें फिसड्डी साबित हुए हैं । रिपोर्ट के अनुसार 14 राज्यों में 2019-20 के बाद से भूमि रिकॉर्ड की प्रमाणिकता एवं गुणवत्ता में गिरावट पाई गई है।
प्रदूषण एवं कचरा प्रबंधन: वायु प्रदुषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से 2022-23 तक देश के शहरों में Suspended Particulate Matter – 2.5 का स्तर 50 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया था | किंतु 2020 में, देश के 23 शहरों में PM- 2.5 का स्तर 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा पाया गया था। रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि इस दौरान कोरोना महामारी के कारण वाहनों आवागमन अत्यंत निम्न था उसके बावजूद इस लक्ष्य को नही प्राप्त किया जा सका | सरकार का एक अन्य लक्ष्य सभी घरों में 100 प्रतिशत स्रोत पृथक्करण हासिल करना था किंतु इस दिशा में भी उपलब्धि दर केवल 78 प्रतिशत है | केरल और पुडुचेरी ने इस लक्ष्य को हासिल किया जबकि पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्य इसमें बहुत पीछे हैं। 2022 के अंत तक देश में मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने का लक्ष्य भी रखा गया था , किंतु इस रिपोर्ट के अनुसर अभी भी देश में हाथ से मैला ढोने वाले 66,692 लोग हैं।
वनाच्छादन : राष्ट्रीय वन नीति 1988 में बनाई गई थी जिसकी परिकल्पना के अनुसार वन-क्षेत्र को देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33.3 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य था । हालांकि 2019 तक, देश का केवल 21.67 प्रतिशत क्षेत्र ही वन से आच्छादित था। यह लक्ष्य से काफी पीछे है | क्षेत्रफल के हिसाब से, मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं। कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में, शीर्ष पांच राज्य मिजोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय 76.00%), मणिपुर (74.34%) और नगालैंड (73.90%) हैं। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय वन नीति 1988, के लक्ष्य को भारत के केवल 17 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ही निजी रूप से प्राप्त कर सके हैं जहाँ कुल भौगोलोक क्षेत्र के 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वन आच्छादित है। इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से पांच राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों जैसे लक्षद्वीप, मिजोरम, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 75 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र हैं, जबकि 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात् मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, गोवा, केरल, सिक्किम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव,असम,ओडिशा में वन क्षेत्र 33 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच है। हालाँकि 2019 के आकलन की तुलना में देश के कुल वन और वृक्षों से भरे क्षेत्र में 2,261 वर्ग किमी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, फिर भी इस दिशा अभी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है |
उर्जा : 2022 तक 175 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया था जिसका अभी तक केवल 56 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका है।
सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) के सन्दर्भ में भारत 66 प्रतिशत अंकों के साथ दुनिया भर के 192 देशों में से 120वें स्थान पर रहा | पिछले वर्ष की तुलना में यह 3 पायदान की गिरावट है क्योकि पिछले वर्ष भारत 117वें स्थान पर था | राज्यवार प्रदर्शन की बात की जाए तो पहले स्थान पर केरल ,दूसरे स्थान पर तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश ,जबकि तीसरे स्थान पर गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड हैं । गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले 6 राज्यों में बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं । इन राज्यों को मेघालय, असम, गुजरात, महाराष्ट्र के साथ भूख और कुपोषण दूर करने वाले राज्यों की सूची में भी सबसे खराब प्रदर्शन वालों की श्रेणी में रखा गया है । जल और स्वच्छता के मामले में, दिल्ली, राजस्थान, असम, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश का प्रदर्शन चिंताजनक है । जबकि स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने में राज्यों का प्रदर्शन औसत से ऊपर है और अधिकांश राज्यों ने लक्ष्य हासिल कर लिया है | जलवायु कार्रवाई के मामले में ओडिशा सबसे ऊपर है, उसके बाद केरल है। झारखंड और बिहार का प्रदर्शन इस दिशा में भी सबसे खराब है।
केंद्रशासित प्रदेशों में चंडीगढ़ पहले स्थान पर दिल्ली, लक्षद्वीप और पुद्दुचेरी दूसरे स्थान पर तथा अंडमान और निकोबार तीसरे स्थान पर हैं। सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में झारखण्ड व बिहार का प्रदर्शन सर्वाधिक निराशाजनक रहा | रिपोर्ट के अनुसार शून्य भूख, अच्छा स्वास्थ्य और भलाई, लैंगिक समानता और सतत शहरों और समुदायों जैसी चुनौतियों के कारण भारत की रैंकिंग में गिरावट आई है |
सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) एवं सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (Millenium Development Goal) क्या हैं ?
सहस्राब्दी विकास लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र संघ के सन 2000 में आयोजित सहस्त्राब्दि शिखर सम्मेलन में 2015 तक के लिये निर्धारित 8 वैश्विक विकास लक्ष्य हैं । ये लक्ष्य हैं : 1.भूखमरी तथा गरीबी को समाप्त करना 2.सार्वजनिक प्राथमिक शिक्षा 3.लिंग समानता तथा महिला शसक्तीकरण 4.शिशु-मृत्यु दर घटाना 5.मातृत्व स्वास्थ्य को बढ़ावा देना 6.HIV/AIDS, मलेरिया तथा अन्य बीमारियों से छुटकारा पाना 7.पर्यावरण धारणीयता,तथा 8.वैश्विक विकास के लिए सम्बन्ध स्थापित करना 2015 में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की समाप्ति हो जाने पर सतत विकास लक्ष्यों ने उनको प्रतिस्थापित किया है । यह लक्ष्य 15 वर्ष (2015 से 2030) के लिए बनाए गये हैं । इनके अंतर्गत 17 लक्ष्य और 169 विशिष्ट उप-लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। ये 17 लक्ष्य निम्नवत हैं : 1. पूरे विश्व से गरीबी की ( सभी रूपों में ) समाप्ति। 2. भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा। 3. सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा। 4. समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना। 5. लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना। 6. सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना। 7. सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना। 8. सभी के लिए निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार, और बेहतर कार्य को बढ़ावा देना। 9. लचीले बुनियादी ढांचे, समावेशी और सतत औद्योगीकरण को बढ़ावा। 10. अंतर्राष्ट्रीय व अन्तःराष्ट्रीय असमानता को कम करना। 11. सुरक्षित, लचीले और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण। 12. स्थायी खपत और उत्पादन पद्धति को सुनिश्चित करना। 13. जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना। 14. स्थायी सतत विकास के लिए महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग। 15. सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना। 16. सतत विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेह बनना ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके। 17. सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्ति कार्यान्वयन के साधनों को मजबूत बनाना | |
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