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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 01 November, 2022 UPSC CNA in Hindi

01 नवंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

  1. गरीबों के लिए आरक्षण की अस्पष्टता :

शासन:

  1. IT नियम, 2021 में संशोधन:

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन:

  1. क्रियान्वयन का क्रम, ईडब्ल्यूएस कोटा परिणाम:

शासन:

  1. भारतीय मूल के तमिलों के लिए नागरिकता का मार्ग:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. देशद्रोह कानून:
  2. लुइज़ इनासिओ लूला दा सिल्वा (Luiz Inacio Lula da Silva):
  3. B-52 बमवर्षक:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

गरीबों के लिए आरक्षण की अस्पष्टता :

सामाजिक न्याय:

विषय: कमजोर वर्गों के संरक्षण और बेहतरी के लिए तंत्र एवं कानून।

मुख्य परीक्षा: भारत में आरक्षण का विश्लेषण।

संदर्भ:

  • 27 सितंबर, 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित की अगुवाई वाली एक संविधान पीठ ने संविधान (103 वां) संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से किए गए आर्थिक मानदंडों पर आधारित आरक्षण के खिलाफ कई याचिकाओं पर सुनवाई की थी।

विवरण:

  • एक लंबी सुनवाई के बाद पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने निजी शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के व्यक्तियों को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 103 वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
  • कानूनी सवाल यह है कि क्या EWS कोटा ने संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन किया है।
  • इससे पहले वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को यह भी बताया था कि EWS के लिए 10% कोटा देने वाला संशोधन “सामाजिक समानता” को बढ़ावा देने के लिए लाया गया था,ताकि “उन लोगों को जिन्हें उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर इस लाभ से वंचित रखा गया है,के आधार पर उच्च शिक्षा और रोजगार में समान अवसर प्रदान करके” इसका लाभ मिल सकें।

पृष्ठभूमि:

103वां संविधान संशोधन अधिनियम:

  • केंद्र सरकार द्वारा 103वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा निजी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती के लिए पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान लाया गया।
  • सरकार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की प्रगति के लिए प्रावधान करने की अनुमति देने के लिए इस संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 15 में संशोधित किया गया।
  • गौरतलब हैं कि 103वें संविधान संशोधन अधिनियम में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर निजी गैर-सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों को भी शामिल किया गया हैं।
  • इसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सभी पदों हेतु 10 प्रतिशत तक के आरक्षण की सुविधा के लिए अनुच्छेद 16 में संशोधन किया था।
  • साथ ही इस संशोधन द्वारा ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों’ की परिभाषा तय करने का दायित्व राज्य पर उनकी ‘पारिवारिक आय’ और अन्य आर्थिक संकेतकों के आधार पर निर्धारित करने की छूट दी गई है।

103वें संविधान संशोधन अधिनियम के विरुद्ध तर्क:

  • 103वें संशोधन की वैधता को कानूनी चुनौती वास्तव में संविधान के ‘बुनियादी ढांचे को चुनौती’ से संबंधित है।
  • क्योंकि यह संशोधन समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
  • साथ ही यह संशोधन आरक्षण पर 50% की सीमा का उल्लंघन करता है, और
  • सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा लगातार सुनाये गए फैसलों में यह बार बार कहा गया हैं कि आरक्षण तर्कसंगत होना चाहिए और इसमें समानता के मुख्य अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए एवं कुल आरक्षण के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। हालाँकि, यह ’50 प्रतिशत की यह सीमा’ 103 वें संविधान संशोधन द्वारा प्रभावी रूप से भंग हो गई है।
  • 50% की कोटा सीमा का एक कारण इंद्रा साहनी मामले में बताया गया है,जहां संविधान द्वारा “उचित प्रतिनिधित्व” (appropriate representation) की कल्पना की गई थी, न कि “आनुपातिक प्रतिनिधित्व” (proportionate representation) की।
  • अनुच्छेद 16(4) के तहत, पिछड़े वर्गों ((SC/STs, OBCs) के लिए दिया जाने वाला आरक्षण लाभार्थी समूहों पर निर्भर है, जिनका ‘पर्याप्त प्रतिनिधित्व’ नहीं है, लेकिन इसे EWS के लिए सम्मिलित नए अनुच्छेद 16(6) से हटा दिया गया है।
  • अनुच्छेद 16(6) के माध्यम से संशोधन राज्य के लिए EWS के लिए सार्वजनिक नौकरियों में आरक्षण प्रदान करना आसान बनाता है, जबकि अनुच्छेद 16(4) के तहत ‘पिछड़े वर्गों’ के लिए आरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता के बारे में बताया गया है।

भारत में आरक्षण का संवैधानिक अवलोकन:

  • मद्रास राज्य बनाम श्रीमती चंपकम दोरैराजन (1951) मामला आरक्षण के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का पहला बड़ा फैसला था। इस मामले ने संविधान में पहला संशोधन किया था।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य के तहत रोजगार के मामले में,अनुच्छेद16(4) नागरिकों के पिछड़े वर्गों के पक्ष में आरक्षण प्रदान किया गया है,जबकि अनुच्छेद 15 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया था।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अनुसरण करते हुए संसद ने अनुच्छेद 15 में खंड (4) सम्मिलित करके संशोधन किया था।
  • 1992 के इंद्रा साहनी मामले का सन्दर्भ देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखते हुए,पूरी तरह से आर्थिक मानदंडों के आधार पर 10% सरकारी नौकरियों को आरक्षित करने वाली सरकारी अधिसूचना को रद्द कर इसे असंवैधानिक घोषित किया था।
  • उसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस सिद्धांत को बरकरार रखा कि संयुक्त आरक्षण लाभार्थियों को भारत की आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • सर्वोच्च न्यायालय के कारणों में यह स्थिति शामिल थी कि आय/संपत्ति सरकारी नौकरियों से बहिष्कार का आधार नहीं हो सकती है और यह संविधान में मुख्य रूप से सामाजिक पिछड़ेपन को संबोधित करने से संबंधित है।
  • संसद द्वारा 1995 में 77वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम किया गया जिसके माध्यम से अनुच्छेद 16(4A) को अन्तः स्थापित किया गया।
  • एम. नागराज बनाम भारत संघ 2006 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 16(4A) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि संवैधानिक रूप से वैध होने के लिए ऐसी कोई भी आरक्षण नीति निम्नलिखित तीन संवैधानिक शर्तों को पूरा करेगी:
  • SC और ST समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना चाहिए।
  • सार्वजनिक रोजगार में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • ऐसी आरक्षण नीति प्रशासन की समग्र दक्षता को प्रभावित नहीं करेगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों में यह भी फैसला सुनाया था कि आर्थिक स्थिति आरक्षण के लिए एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती है।
  • कई राज्यों ने आर्थिक आरक्षण को लागू करने की कोशिश की थी, हालांकि बाद में उन्हें न्यायालयों द्वारा रद्द कर दिया गया था।

विश्लेषण:

  • भारत का संविधान ऐतिहासिक अन्याय का निवारण करता है और “समानता” की भावना के साथ उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में उत्पन्न असंतुलन को संतुलित करता है।
  • अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता और सभी के लिए कानून के समान संरक्षण की गारंटी देता है। समानता का सिद्धांत मूल संरचना की एक अनिवार्य विशेषता है।
  • इस ‘समानता संहिता’ (Equality Code’) में हुए किसी भी परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं को एम.नागराज मामले में निर्धारित ‘पहचान’ और ‘आयाम’ के व्यापक रूप से स्वीकृत परीक्षणों से गुजरना चाहिए।
  • इन परीक्षणों को यह सुनिश्चित करने के लिए विकसित किया गया था कि जब भी आरक्षण के संबंध में कोई संशोधन किया जाता है तो कानून में समता और समानता के बीच संतुलन बना रहे।
  • इस प्रकार, समानता संहिता की मौजूदा संरचना में कोई भी परिवर्तन मूल संरचना का उल्लंघन करने के समान होगा।
  • MG बदप्पनवर बनाम कर्नाटक राज्य (2000) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि “समानता संविधान की मूल विशेषता है और समान के साथ असमान के रूप में कोई भी व्यवहार या असमान के साथ समान व्यवहार करना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा”।
  • अतः आर्थिक पिछड़ेपन को निर्धारित करने के लिए आय सीमा कम होनी चाहिए और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए ‘क्रीमी लेयर’ के निर्धारण के समान नहीं होनी चाहिए।
  • आरक्षण गरीबी की समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि आरक्षण सामाजिक और संस्थागत बाधाओं की भरपाई से संबंधित में है।
  • सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के अनुसार, उच्च जातियों के गरीब वर्गों को छात्रवृत्ति और अन्य वित्तीय सहायता प्रदान करने जैसे विभिन्न सकारात्मक उपायों के माध्यम से उनकी आर्थिक स्थिति को ऊँचा उठाया जा सकता है।

सारांश:

  • पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सार्वजनिक रोजगार और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को कोटा का लाभ प्रदान करने वाले 103 वें संविधान संशोधन अधिनियम की वैधता की जांच के लिए बुनियादी ढांचे के उल्लंघन सहित प्रमुख कानूनी मुद्दों पर बहस की है।
  • भारत में आरक्षण पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Reservation in India

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

IT नियम, 2021 में संशोधन:

शासन:

विषय: सरकारी नीतियां एवं उनमें हस्तक्षेप।

मुख्य परीक्षा: सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के लाभ एवं हानि।

संदर्भ:

  • इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) ने हाल ही में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (IT नियम, 2021) में संशोधनों को अधिसूचित किया है।

विवरण:

  • जून 2022 में, मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 ( Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021) में संशोधन का एक मसौदा जारी किया और संबंधित हितधारकों से प्रतिक्रिया मांगी थी।
  • हाल ही में एक संशोधन ने शिकायत अपीलीय समितियों (Grievance Appellate Committees(GAC)) की स्थापना को अधिसूचित किया,जिसका भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा लिए गए कंटेंट मॉडरेशन फैसलों पर नियंत्रण होगा।
  • शिकायत अपीलीय समितियां सोशल मीडिया कंपनियों के अपने प्लेटफॉर्म पर सामग्री को हटाने या मॉडरेट करने के फैसले को चुनौती देने वाले उपयोगकर्ताओं की अपील सुनेंगे।

ये संशोधन किससे प्रेरित हैं?

  • वर्तमान में दुनिया भर की सरकारें सोशल मीडिया मध्यस्थों (social media intermediaries (SMIs)) को विनियमित करने के मुद्दे का सामना कर रही हैं।
  • सरकारों के लिए यह आवश्यक है कि वे इससे सम्बंधित समस्या की बहुसंख्यक प्रकृति, सार्वजनिक विमर्श को आकार देने में SMIs की केंद्रीयता, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार एवं उनके द्वारा नियंत्रित सूचना का परिमाण और उनकी व्यवस्था को प्रभावित करने वाले निरंतर तकनीकी नवाचार एवं नई और उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने नियामक ढांचे को अद्यतन करें।
  • इसके आलोक में भारत ने SMIs पर अपने पिछले पुराने नियमों को IT नियम, 2021 से बदल दिया है,जिसका मुख्य उद्देश्य एक खुला, सुरक्षित और विश्वसनीय इंटरनेट सुनिश्चित करने के लिए SMIs पर दायित्वों को बढ़ाना था।
  • नए नियम सुनिश्चित करते हैं कि SMI द्वारा नेटिज़न्स के हितों और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है।
  • यह GAC के साथ शिकायत निवारण ढांचे को भी मजबूत करता है।

संशोधन से प्रभावित प्रमुख परिवर्तन:

  • हाल के संशोधन उपयोगकर्ताओं को हानिकारक/गैरकानूनी सामग्री अपलोड करने से रोकने के लिए उचित प्रयास के लिए मध्यस्थों पर एक कानूनी दायित्व डालते हैं।
  • नया प्रावधान यह सुनिश्चित करेगा कि मध्यस्थ का दायित्व केवल औपचारिकता नहीं है।
  • मध्यस्थ के नियमों और विनियमों के प्रभावी संचार के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि संचार क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में भी किया जाए।
  • नियम 3(1)(b)(ii) के आधारों को ‘मानहानिकारक’ और ‘अपमानजनक’ शब्दों को हटाकर युक्तिसंगत बनाया गया है।
  • साथ ही इसमें क्या कोई सामग्री मानहानिकारक या अपमानजनक है, इसका निर्धारण न्यायिक समीक्षा के माध्यम से किया जाएगा।
  • नियम 3(1)(b) में कुछ सामग्री श्रेणियों को विशेष रूप से गलत सूचना और विभिन्न धार्मिक/जाति समूहों के बीच हिंसा भड़काने वाली सामग्री से निपटने के लिए फिर से तैयार किया गया है।
  • इन संशोधन में मध्यस्थों को संविधान के तहत उपयोगकर्ताओं को गारंटीकृत अधिकारों का सम्मान करने की आवश्यकता है, जिसमें उचित परिश्रम, गोपनीयता और पारदर्शिता शामिल है।
  • शिकायत अपीलीय समिति (समितियों) की स्थापना की जाएगी ताकि उपयोगकर्ता निष्क्रियता या उपयोगकर्ता शिकायतों पर बिचौलियों द्वारा लिए गए निर्णयों के खिलाफ अपील कर सकें। हालांकि, उपयोगकर्ताओं को हमेशा किसी भी उपाय के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाने का अधिकार होगा।
  • IT नियम, 2021 से पहले लगभग सभी प्लेटफॉर्मों ने उपयोगकर्ता शिकायतों के समाधान के लिए अपने स्वयं के तंत्र और समय-सीमा का पालन किया था।
  • प्रत्येक शिकायत अपील समिति में एक अध्यक्ष और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त दो पूर्णकालिक सदस्य होंगे, जिनमें से एक पदेन सदस्य होगा और दो स्वतंत्र सदस्य होंगे।
  • शिकायत अधिकारी के निर्णय से व्यथित कोई भी व्यक्ति शिकायत अधिकारी से पत्र प्राप्त होने की तारीख से तीस दिनों की अवधि के भीतर शिकायत अपील समिति को अपील कर सकता है।
  • शिकायत अपील समिति ऐसी अपील पर तेजी से कार्रवाई करेगी और अपील की प्राप्ति की तारीख से तीस कैलेंडर दिनों के भीतर अपील को अंतिम रूप से हल करने का प्रयास करेगी।

संशोधन का महत्व:

  • नवीनतम संशोधन सोशल मीडिया फर्मों पर एक निश्चित उचित परिश्रम दायित्व (definite due diligence obligation) डालता है ताकि उनके प्लेटफॉर्म पर कोई भी गैरकानूनी सामग्री या गलत सूचना पोस्ट न हो।
  • कई डिजिटल प्लेटफार्मों पर पिछले एक साल में उपयोगकर्ता द्वारा शिकायतों के प्रति “आकस्मिक” और “सांकेतिक” दृष्टिकोण अपनाने का आरोप लगाया गया है।
  • सरकार को नागरिकों से आपत्तिजनक सामग्री या उपयोगकर्ता खातों के निलंबन के संबंध में शिकायतों पर मध्यस्थों की ओर से कार्रवाई / निष्क्रियता के संबंध में लाखों संदेश प्राप्त हुए थे।
  • संशोधन यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों ( fundamental rights ) का सम्मान करें।
  • यह इंटरनेट को उपयोगकर्ताओं के लिए एक सुरक्षित, भरोसेमंद और जवाबदेह स्थान बनाने के लिए सरकार के प्रयास के अनुरूप है।

हाल के संशोधनों के खिलाफ आलोचना:

  • यह सरकार को इंटरनेट पर अनुमेय भाषण का मध्यस्थ बना देगा और सरकार के खिलाफ किसी भी भाषण को दबाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को प्रोत्साहित करेगा।
  • गैर-सरकारी संगठन इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन ने अपनी चिंता जाहिर की है कि सरकार द्वारा नियुक्त समितियाँ अपीलों की सुनवाई के दौरान “अपारदर्शी और मनमानी तरीके” अपना सकती हैं।
  • यदि उपयोगकर्ता अदालतों और GAC दोनों से समानांतर रूप से संपर्क करते हैं, तो इससे परस्पर विरोधी निर्णय निकलकर आ सकते हैं जो अक्सर एक संस्थान या दूसरे की निष्पक्षता और योग्यता को कम करते हैं।
  • इन संशोधन ने यह दायित्व भी डाला है कि सभी सोशल मीडिया मध्यस्थ रिपोर्टिंग के 72 घंटों के भीतर सभी शिकायतों का समाधान करें।
  • संक्षिप्त समयसीमा उचित जांच के बिना सामग्री को सेंसर करने के संबंध में जल्दबाजी में निर्णय लेने का कारण बन सकती है।
  • कई मीडिया आउटलेट्स ने नए IT नियमों को अदालतों में चुनौती दी है, जिसमें उन्होंने तर्क दिया है कि सम्बंधित दिशानिर्देश सरकार को उनकी सामग्री को सीधे नियंत्रित करने की अनुमति देंगे।
  • गौरतलब हैं कि मई 2022 में, सर्वोच्च न्यायालय ने नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के खिलाफ याचिकाओं पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
  • ये प्रावधान नए आईटी नियमों के तहत आचार संहिता से संबंधित हैं।
  • ऐसे देश में जहां नागरिकों को किसी भी पार्टी द्वारा की गई ज्यादतियों से बचाने के लिए अभी भी कोई डेटा गोपनीयता कानून नहीं है, डिजिटल प्लेटफॉर्म को अधिक जानकारी के आदान-प्रदान के लिए प्रोत्साहित करने से इसका विपरीत असर भी पड़ सकता है।

सारांश:

  • एक खुले, सुरक्षित और भरोसेमंद तथा जवाबदेह इंटरनेट की दिशा में एक प्रमुख प्रयास में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने डिजिटल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से आईटी नियम 2021 में संशोधनों को अधिसूचित किया है।इन्हें उपयोगकर्ता के शिकायतों पर मध्यस्थों की ओर से कार्रवाई/निष्क्रियता के संबंध में शिकायतों की पृष्ठभूमि में अधिसूचित किया गया है।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

सामान्य अध्ययन 2

भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन:

क्रियान्वयन का क्रम, ईडब्ल्यूएस कोटा परिणाम

विषय: सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप।

मुख्य परीक्षा: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से जुड़े सरोकार।

प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण।

विवरण:

  • नव स्वतंत्र भारत की आरक्षण नीति के पीछे मुख्य उद्देश्य आबादी के सबसे हाशिए के वर्गों को उचित अवसर प्रदान करना था। इन समूहों के साथ विशेष जाति या आदिवासी समूहों में जन्म के कारण भेदभाव किया गया था।
  • ये वर्ग आर्थिक रूप से भी वंचित थे, लेकिन उनके पक्ष में प्रतिपूरक भेदभाव करने का यह प्रमुख कारण नहीं था।
  • पिछले कुछ वर्षों में, आरक्षण नीति में और अधिक समूहों को इसके दायरे में शामिल करने के लिए विस्तार किया गया है। इसने सकारात्मक कार्रवाई के पीछे के सामान्य सिद्धांत के साथ-साथ विभिन्न समूहों को इसके लाभार्थियों के रूप में शामिल करने के औचित्य पर बहस को जन्म दिया है।
  • इन विवादों के परिणामस्वरूप आरक्षण नीति के व्यावहारिक क्रियान्वयन का मार्गदर्शन करने वाले जटिल कानूनी मामले सामने आए हैं।

आरक्षण के बारे में अधिक जानकारी के लिए, इस लिंक पर क्लिक करें: Reservation – Bringing Equality in Society

पृष्ठभूमि विवरण:

  • भारत में आरक्षण प्रणाली के दो रूप हैं:
    • लंबवत आरक्षण (वीआर): वीआर को 2019 तक अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जैसे भेदभाव सहने वाले और हाशिए वाले सामाजिक समूहों के लिए परिभाषित किया गया था।
    • क्षैतिज आरक्षण (एचआर): यह क्रॉस-कटिंग श्रेणियों जैसे विकलांग लोगों (पीडब्ल्यूडी), महिलाओं, अधिवासियों, आदि पर लागू होता है।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब वीआर प्रणाली सामाजिक समूह (2019 तक) पर आधारित थी, तब व्यक्ति एक से अधिक वीआर श्रेणियों के लिए पात्र नहीं थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि एक व्यक्ति एक साथ कई जातियों या आदिवासी समूहों से संबंधित नहीं हो सकता।
  • 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 जिसे अक्सर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा वाले अधिनियम के रूप में संदर्भित किया जाता है, जो सामाजिक (जाति या जनजाति) पहचान के संदर्भ में परिभाषित नहीं किए गए वर्गों के लिए वीआर खोलकर आरक्षण के मूल उद्देश्य को मौलिक रूप से बदल देता है।
  • इसके अलावा, ईडब्ल्यूएस की स्थिति क्षणिक है जिसका अर्थ है कि व्यक्ति आरक्षण के सीमा में शामिल भी सकते हैं या बाहर भी हो सकते हैं, जबकि सामाजिक समूह पहचान के स्थायी निर्धारक हैं।
  • परिणामस्वरूप एक व्यक्ति दो वीआर श्रेणियों (उदाहरण के लिए, एससी और ईडब्ल्यूएस) से संबंधित हो सकता है। हालांकि, संशोधन ने उन लोगों को स्पष्ट रूप से बाहर कर दिया जो पहले से ही एक वीआर (एससी, एसटी, या ओबीसी) के लिए ईडब्ल्यूएस आरक्षण दायरे में आने के लिए पात्र हैं। इस बहिष्करण का तात्पर्य है कि एक व्यक्ति केवल एक लंबवत श्रेणी के लिए पात्र हो सकता है।
  • समानता के अधिकार (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में उल्लिखित) के उल्लंघन के आधार पर इस बहिष्कार को अदालत में चुनौती दी गई थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ को एक प्रस्ताव दिया गया था कि संशोधन को रद्द करने के बजाय, इसकी व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए कि यह सामाजिक समूहों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण के दायरे से वंचित न करे।

ओवरलैपिंग श्रेणियां और संबंधित चिंताएं:

  • ओवरलैपिंग वीआर श्रेणियों को अनुमति देने से मौजूदा कानूनी ढांचे के तहत अस्पष्टता पैदा होगी, जो इंद्रा साहनी मामले (1992) के निर्णय से निर्मित हुआ है।
    • इंद्रा साहनी के मामले के अनुसार आरक्षित श्रेणी का कोई भी व्यक्ति जो “मेरिट” स्कोर के आधार पर एक खुली (ओपन) श्रेणी की स्थिति का हकदार है, उसे आरक्षित पद के बजाय एक ओपन श्रेणी की स्थिति में शामिल किया जाना चाहिए।
    • इसका अर्थ यह है कि ओपन श्रेणी के पदों को पहले योग्यता के आधार पर आवंटित किया जाना चाहिए और फिर आरक्षित पदों को दूसरे चरण में पात्र व्यक्ति को आवंटित किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया को साहित्य में “ओवर-एंड-अबोव” पसंद नियम के रूप में जाना जाता है।
    • यह “गारंटीकृत न्यूनतम” नियम से अलग है जो लाभार्थी समूहों के सदस्यों को न्यूनतम पदों की गारंटी देता है, भले ही वे आरक्षित या ओपन श्रेणी के पदों के माध्यम से प्रवेश करते हों।
  • यदि वीआर श्रेणियां परस्पर अनन्य हैं, तो यह एक दूसरे के संबंध में लंबवत श्रेणियों को अनुक्रमित करने की प्रक्रिया को अनावश्यक रूप में प्रस्तुत करेगी। दूसरी ओर, यदि व्यक्ति एक साथ दो ऊर्ध्वाधर श्रेणियों से संबंधित हो सकते हैं, तो आरक्षित श्रेणियों का सापेक्ष प्रक्रिया क्रम बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। एक अर्थशास्त्री ने एक शोध पत्र में इस पर प्रकाश डाला था।
  • अनुक्रमण प्रभाव:
    • यदि ईडब्ल्यूएस को पहले अनुक्रमित किया जाता है:
      • यदि ईडब्ल्यूएस पदों को अन्य वीआर श्रेणियों से पहले और ओपन श्रेणी की सीटों के तुरंत बाद भरा जाता है, तो 98% से अधिक आबादी आरक्षण के लिए योग्य होगी। इसके लिए ईडब्ल्यूएस के लिए वर्तमान आय सीमा को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
      • परिणाम ओपन पदों के समान होगा। इस प्रकार ईडब्ल्यूएस आरक्षण निरर्थक हो जाएगा।
    • यदि ईडब्ल्यूएस को अंतिम रूप से अनुक्रमित किया जाता है:
      • यदि अन्य सभी आरक्षणों के आवंटन के बाद ईडब्ल्यूएस पदों को भरा जाता है, तो ईडब्ल्यूएस सीमा से कम आय वाला प्रत्येक व्यक्ति ईडब्ल्यूएस पदों के लिए समान रूप से पात्र होगा।
      • यह प्रक्रिया योग्यता स्कोर के आधार पर सभी योग्य उम्मीदवारों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्रदान करेगी। चूंकि एससी, एसटी और ओबीसी के कुछ उच्च अंक प्राप्त करने वाले व्यक्ति पहले से ही अपने संबंधित कोटा के तहत भर्ती हो गए होंगे, यह अनुक्रमण ईडब्ल्यूएस पदों को अगड़ी जातियों के सदस्यों के लिए अधिक सुलभ बना देगा।

अध्ययन का विश्लेषण:

  • लेख दर्शाता है कि दो प्रक्रियाएं बहुत भिन्न परिणाम दे सकती हैं।
  • यदि उद्देश्य ईडब्ल्यूएस को सभी सामाजिक समूहों पर लागू करना है, तो ईडब्ल्यूएस-प्रथम को इस तथ्य को स्वीकार करते हुए अपनाया जाना चाहिए कि यह प्रक्रिया ईडब्ल्यूएस को ओपन श्रेणी के पदों के समान प्रभावी रूप से प्रस्तुत करेगी।
  • जबकि यदि उद्देश्य संशोधन में न्यूनतम हस्तक्षेप करना है, तो ईडब्ल्यूएस-अंतिम को अपनाया जाना चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि यह ईडब्ल्यूएस आरक्षण को अगड़ी जातियों के पक्ष में और अधिक झुकाएगा।
  • चूंकि इन मार्गों का प्रभाव बहुत अलग है, इसलिए ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पहलू का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए और नीति क्रियान्वयन में एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • यदि ईडब्ल्यूएस श्रेणी की वर्तमान आय सीमा को बदल दिया जाता है, तो सभी सामाजिक समूहों के गरीब व्यक्ति भी पात्र हो सकते हैं। इस मामले में, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के अमीर व्यक्ति केवल सामाजिक समूह-आधारित आरक्षण के लिए पात्र होंगे। हालांकि, यह याद रखना चाहिए कि आय सीमा बदलने से स्थिति और अधिक जटिल हो जाएगी, विशेष रूप से विश्वसनीय आय डेटा के अभाव में। व्यावहारिक रूप से, कई विशेषज्ञों का मानना है कि ईडब्ल्यूएस के लिए आय कट-ऑफ में बदलाव की संभावना नहीं है।
  • न्यायालय को विभिन्न मार्गों को अपनाने के निहितार्थ पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए और आरक्षण नियमों में अस्पष्टताओं को समाप्त करना चाहिए।

संबंधित लिंक:

Economic Empowerment of Weaker Sections – analysis and schemes for UPSC

सारांश:

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण का क्रियान्वयन जटिलता से भरा है, विशेष रूप से लंबवत आरक्षण श्रेणियों को ओवरलैप करने के मामले में। समय की मांग है कि सभी संभावित मार्गों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करके एक इष्टतम क्रियान्वयन रणनीति को प्रभावी ढंग से तैयार किया जाए।

सामान्य अध्ययन 2

शासन:

भारतीय मूल के तमिलों के लिए नागरिकता का मार्ग:

विषय: समाज के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं; भारत एवं उसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध।

मुख्य परीक्षा: भारतीय मूल के तमिल की राज्यविहीनता।

प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय मूल के तमिलों का शरणार्थी संकट।

संदर्भ:

  • शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग द्वारा एक रिपोर्ट का विमोचन किया गया, जिसका शीर्षक है “श्रीलंकाई शरणार्थियों के लिए व्यापक समाधान रणनीति” है।

विवरण:

  • तकनीकी के आधार पर, लगभग 30,000 भारतीय मूल के तमिलों को, चार दशकों की अवधि में, राज्यविहीन व्यक्तियों के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
  • अक्सर यह मांग की जाती है कि भारत सरकार को भारतीय द्विपक्षीय दायित्वों, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सिद्धांतों और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुसार उन्हें नागरिकता का लाभ देना चाहिए क्योंकि उनका भारत से वंशावली संबंध है।

भारतीय मूल के तमिलों के बारे में पृष्ठभूमि विवरण:

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय मूल के तमिलों को श्रीलंका में गिरमिटिया मजदूरों के रूप में वहां बागानों में काम करने के लिए भेजा।
  • उस समय की ब्रिटिश नीतियों के कारण, वे कानूनी रूप से गैर-दस्तावेजीकृत के साथ-साथ मूल श्रीलंकाई तमिल और सिंहली समुदायों से सामाजिक रूप से अलग-थलग रहे।
  • 1947 के बाद, श्रीलंका में सिंहली राष्ट्रवाद का उदय हुआ जिसने भारतीय मूल के तमिलों की राजनीतिक और नागरिक भागीदारी के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी। उन्हें नागरिकता का अधिकार नहीं मिला और वे ‘राज्यविहीन’ आबादी के रूप में मौजूद थे। 1960 तक उनकी आबादी बढ़कर लगभग 10 लाख हो गई। उन्हें मतदान के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया।
  • द्विपक्षीय सिरिमावो-शास्त्री संधि (1964) और सिरिमावो-गांधी संधि (1974) के माध्यम से लगभग 6 लाख लोगों को उनके प्रत्यावर्तन पर भारतीय नागरिकता देने पर सहमती बनी। भारतीय मूल के तमिलों (जो 1982 तक भारत लौटे) को नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू हुई।
  • लेकिन श्रीलंकाई गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप श्रीलंकाई तमिलों और भारतीय मूल के तमिलों ने भारत में शरण लेने की मांग में भारी वृद्धि की। नतीजतन, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जुलाई 1983 के बाद भारत आने वालों को नागरिकता देने पर रोक लगाने का निर्देश जारी किया।
  • इसके अलावा, केंद्र और तमिलनाडु दोनों सरकारों का ध्यान शरणार्थी कल्याण और पुनर्वास पर चला गया। भारतीय मूल के तमिलों की कानूनी नियति लगभग 40 वर्षों तक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के साथ उलझी रही। दोनों समूहों को ‘शरणार्थी’ का दर्जा दिया गया है। इसका कारण यह बताया गया है कि भारतीय मूल के तमिल जो 1983 के बाद भारत आए थे, वे या तो अनधिकृत चैनलों के माध्यम से या बिना किसी उचित दस्तावेज के भारत पहुंचे। इस प्रकार, उन्हें सीएए 2003 के अनुसार ‘अवैध प्रवासियों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
  • इस वर्गीकरण ने उन्हें राज्यविहीन बना दिया और भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के सभी संभावित कानूनी रास्ते अवरुद्ध कर दिए।

भारत-श्रीलंका संबंधों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: India – Sri Lanka Relations for UPSC: Background, intervention in Civil War and <ore.

राज्यविहीनता पर काबू पाना:

  • भारत के संवैधानिक न्यायालयों ने अभी तक राज्यविहीनता के मुद्दे का समाधान नहीं किया है, लेकिन उच्च न्यायालयों के हाल के दो निर्णयों ने इस मुद्दे को उठाया है:
    • पी. उलगनाथन बनाम भारत सरकार मामला (2019)
      • पी. उलगनाथन बनाम भारत सरकार मामले (2019) में कोट्टापट्टू और मंडपम शिविरों में भारतीय मूल के तमिलों की नागरिकता की स्थिति पर विचार किया गया था।
      • अदालत ने भारतीय मूल के तमिलों और श्रीलंकाई तमिलों के बीच अंतर किया।
      • इसने यह विचार रखा कि भारतीय मूल के तमिलों की राज्यविहीनता की निरंतर अवधि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकार के खिलाफ है।
      • अदालत ने यह भी माना कि केंद्र सरकार के पास नागरिकता प्रदान करने में छूट देने की निहित शक्तियां हैं और सुझाव दिया कि मामले से निपटने के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
    • अबिरामी एस. बनाम भारत संघ 2022
      • इस मामले में न्यायालय ने कहा कि राज्यविहीनता से बचना चाहिए।
      • इसने यह भी सुझाव दिया कि सीएए, 2019 के सिद्धांतों, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए नागरिकता की शर्तों में ढील देता है, का विस्तार श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों तक किया जाना चाहिए।
  • उपरोक्त निर्णयों ने सीएए, 2019 के विस्तार और व्याख्या पर भारत संघ को स्पष्ट न्यायिक मार्गदर्शन प्रदान किया है, जिससे राज्यविहीनता पर काबू पाया जा सके।
  • विधित राज्यविहीनता।
    • भारतीय मूल के तमिलों की राज्यविहीनता का मुद्दा ‘विधित’ है और 1964 और 1974 की संधियों के क्रियान्वयन की विफलता से निर्मित हुआ है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रथागत कानून विधित राज्यविहीनता को मान्यता देता है। इस प्रकार, भारत की ओर से इस मुद्दे का समाधान करना अनिवार्य है।
    • चकमा शरणार्थियों के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय (C.A.P. के C.R. के लिए समिति तथा अन्य बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य 2015) ने निर्देश दिया कि नागरिकता प्रदान करने के संबंध में भारत सरकार द्वारा दिया गया एक वचन राज्यविहीन या शरणार्थी आबादी का एक अधिकार है।
    • जैसा कि भारत ने 1964 और 1974 के समझौतों में बार-बार वचन दिए हैं, इसने भारतीय मूल के तमिलों के बीच एक वैध उम्मीद पैदा की है और उन्हें नागरिकता के योग्य बनाया है।
  • इसी तरह की स्थिति 1994 में संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न हुई थी, जहां अप्रवासन और राष्ट्रीयता तकनीकी सुधार अधिनियम एक विदेशी पिता और नागरिक मां से पैदा हुए सभी बच्चों को पूर्वव्यापी रूप से नागरिकता प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • ब्राजील ने 2007 के अपने संवैधानिक संशोधन संख्या 54 के माध्यम से भी पूर्वव्यापी रूप से जूस सेंगुइनिस के तहत बच्चों को नागरिकता प्रदान की। पहले के एक संशोधन (1994 का संवैधानिक संशोधन संख्या 3) द्वारा इन बच्चों से उनके नागरिकता अधिकार छीन लिए गए थे।
  • इसी तरह, भारत को भी राज्यविहीनता को समाप्त करना चाहिए और सुधारात्मक विधायी कार्रवाई द्वारा भारतीय मूल के तमिलों को नागरिकता प्रदान करनी चाहिए।

संबंधित लिंक:

Civil war in Sri Lanka: Background, Causes and Result

सारांश:

  • भारत सरकार को भारतीय मूल के तमिलों के मामले को संवेदनशीलता से देखना चाहिए और उन्हें भारत की नागरिकता देने पर विचार करना चाहिए। भारत को 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम के साथ 1964 और 1974 के समझौतों को ध्यान में रखना चाहिए जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं को नागरिकता प्रदान करता है।

प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1.देशद्रोह कानून:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में सरकार से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं करने को कहा है,जो देशद्रोह को एक अपराध बनाती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2022 में एक अंतरिम आदेश में धारा 124A के तहत गिरफ्तारी और मुकदमा चलाने पर पूरी तरह रोक लगाने का आदेश दिया था।
  • मई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकार देशद्रोह कानून की फिर से जांच कर रही है।
  • भारत में राजद्रोह कानून के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Sedition Law in India

2. लुइज़ इनासिओ लूला दा सिल्वा (Luiz Inacio Lula da Silva):

  • ब्राजील के वामपंथी नेता लुइज़ इनासियो लूला डी सिल्वा ने राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो को एक रन-ऑफ (एक टाई या अनिर्णायक परिणाम के बाद) चुनाव में हराया हैं।
  • सुप्रीम इलेक्टोरल कोर्ट ने श्री बोल्सोनारो को मिले 49.1% वोट के मुकाबले 50.9% वोटों के साथ श्री लूला को अगला राष्ट्रपति घोषित किया हैं।
  • जायर बोल्सोनारो ने हार स्वीकार नहीं की हैं और आशंका जताई जा रही है कि वह चुनाव लड़ सकते हैं।
  • श्री बोल्सोनारो राष्ट्रपति पद की दौड़ हारने वाले पहले ब्राजीलियाई पदधारी होंगे।

3. B-52 बमवर्षक:

  • चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में एक हवाई अड्डे पर छह परमाणु-सक्षम B -52 बमवर्षक तैनात करने की योजना बना रहा है।
  • रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फ़ोर्स के सुदूर टिंडल बेस पर बमवर्षकों के लिए समर्पित सुविधाएं स्थापित की जाएंगी।
  • सितंबर 2021 में ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने AUKUS (AUKUS) की घोषणा की थी जो एक नया सुरक्षा समझौता है,जो ऑस्ट्रेलिया को 2040 तक परमाणु पनडुब्बियों के बेड़े को तैनात करने में सक्षम बनाता है।
  • B52 बॉम्बर को बोइंग द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है।
  • इसके पंखों का विस्तार 56 मीटर है, यह परमाणु और पारंपरिक हथियार ले जाने में सक्षम है और इसकी युद्धक सीमा 14,000 किलोमीटर से अधिक है।
  • B-52 एक स्ट्रैटोफ़ोर्ट्रेस बेड़ा है,जो शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना में शामिल हुआ था एवं इसके वर्ष 2050 तक सेवा में जारी रहने का अनुमान है,साथ ही यह अमेरिकी रक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक भी है।

छवि स्रोत: Eurasian Times

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन से सही हैं? (स्तर-मध्यम)

  1. ब्राजील दक्षिण अमेरिका का सबसे बड़ा देश है।
  2. यह तीन तरफ से जमीन से घिरा हुआ है और पूर्व की ओर प्रशांत महासागर से लगा है।
  3. यह दुनिया का एकमात्र देश है जिससे होकर भूमध्य और मकर रेखा गुजरती हैं।

विकल्प:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 1 और 3

(d) केवल 2 और 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: ब्राजील दक्षिण अमेरिका का सबसे बड़ा देश और दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है।
  • कथन 2 गलत है: ब्राजील तीन तरफ से जमीन से घिरा हुआ है और पूर्व की ओर दक्षिण अटलांटिक महासागर की ओर खुलता है।
  • कथन 3 सही है: ब्राजील दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिससे होकर मकर रेखा और भूमध्य रेखा दोनों गुजरती हैं।

चित्र स्रोत: National Geographic

प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों में से कौन से सही हैं? (स्तर-सरल)

  1. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने थोक खंड के लिए केंद्रीय बैंक समर्थित डिजिटल रुपया लॉन्च किया है।
  2. 2022 के केंद्रीय बजट में, यह घोषणा की गई थी कि RBI जल्द ही अपनी डिजिटल मुद्रा लॉन्च करेगा।

विकल्प :

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) 01 नवंबर, 2022 को थोक खंड के लिए केंद्रीय-बैंक समर्थित डिजिटल रुपये के लिए पायलट लॉन्च कर रहा है। यह भारत का पहला डिजिटल रुपया पायलट प्रोजेक्ट है।
  • कथन 2 सही है: वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि आरबीआई चालू वित्त वर्ष में रुपये के बराबर एक डिजिटल रुपया जारी करेगा।

प्रश्न 3. ‘तियांगोंग’ शब्द, जिसे अक्सर समाचारों में देखा जाता है, का अर्थ है – (स्तर-सरल)

(a) जापानी अंतरिक्ष एजेंसी JAXA का एक एस्टेरॉइड सैंपल-रिटर्न मिशन।

(b) चीन का निम्न-भू कक्षा में बन रहा अंतरिक्ष स्टेशन।

(c) चीन द्वारा विकसित एक विमानवाहक पोत जिसे हाल ही में श्रीलंका में डॉक किया गया था।

(d) चीन और जापान के बीच विवादित पूर्वी चीन सागर में एक द्वीप।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन या “हेवनली पैलेस” (Heavenly Palace) चीन का नया स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन है।
  • देश ने पहले दो अस्थायी परीक्षण अंतरिक्ष स्टेशन लॉन्च किए हैं, जिनका नाम तियांगोंग -1 और तियांगोंग -2 है।
  • सोवियत संघ (अब रूस) और अमेरिका के बाद चीन इतिहास में तीसरा देश है जिसने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने और अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण किया है।

प्रश्न 4. नीचे दिए गए स्वतंत्रता सेनानियों में से किस पर अंग्रेजों द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत आरोप लगाया गया था? (स्तर-कठिन)

  1. बाल गंगाधर तिलक
  2. एनी बेसेंट
  3. शौकत अली और मोहम्मद अली
  4. मौलाना आजाद
  5. महात्मा गांधी

विकल्प:

(a) केवल 1, 3 और 5

(b) केवल 2, 3 और 4

(c) केवल 3, 4 और 5

(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: d

व्याख्या:

  • अंग्रेजों द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 A के तहत आरोपित स्वतंत्रता सेनानियों के नाम इस प्रकार हैं:
  • बाल गंगाधर, तिलक, एनी बेसेंट, शौकत और मोहम्मद अली, मौलाना आजाद और महात्मा गांधी, भगत सिंह और जवाहरलाल नेहरू।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किस विदेशी यात्री ने भारत के हीरों और हीरे की खानों के बारे में विस्तार से चर्चा की? (CSE-PYQ-2018) (स्तर-मध्यम)

(a) फ्रेंकोइस बर्नियर

(b) जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर

(c) जीन डे थेवेनॉट

(d) अब्बे बार्थेल कैरे

उत्तर: b

व्याख्या:

  • जीन-बैप्टिस्ट टैवर्नियर (1605 – 1689) 17वीं सदी के एक फ्रांसीसी रत्न व्यापारी और यात्री थे।
  • वैलेंटाइन बॉल (Valentine Ball) द्वारा लिखित पुस्तक ‘ट्रैवल्स इन इंडिया बाय जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर’ (Travels in India by Jean Baptiste Tavernier’) में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि टैवर्नियर ने भारत में हीरा खनन स्थलों की बहुत स्पष्ट तौर पर पहचान की थी।
  • टैवर्नियर के लेखन से पता चलता है कि वह एक उत्सुक पर्यवेक्षक होने के साथ-साथ एक उल्लेखनीय सांस्कृतिक मानवविज्ञानी भी थे। उन्होंने कहा कि पूरे भारत में जीवनशैली, पहनावे और खान-पान की आदतें व्यापक रूप से भिन्न हैं।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. 103वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ अंतर्निहित मुद्दों पर विस्तार से व्याख्या कीजिए, जिन्होंने इस सुधार को विवादों से जोड़ दिया है। (250 शब्द; 15 अंक) [जीएस2, राजव्यवस्था]

प्रश्न 2.आने वाले वर्षों में मनरेगा की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि योजना को लागू करने के लिए स्थानीय सरकारों को कितनी स्वायत्तता दी जाती है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) [जीएस2, शासन]