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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 09 May, 2022 UPSC CNA in Hindi

09 मई 2022 : समाचार विश्लेषण

A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था एवं शासन:

  1. जम्मू और कश्मीर परिसीमन रिपोर्ट:

C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E.सम्पादकीय:

राजव्यवस्था एवं शासन:

  1. भारतीय विश्वविद्यालयों में गहराता संकट:
  2. प्रार्थना ध्वनि में कमी:

राजव्यवस्था:

  1. भारत की न्यायपालिका का कमजोर होता विश्वास:

अर्थव्यवस्था:

  1. व्यापार में सरकार:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. राखीगढ़ी के कंकालों के DNA सैंपल जांच के लिए भेजे गए:

G.महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. ‘नागरिकता में देरी के कारण 800 पाकिस्तानी हिंदुओं ने भारत छोड़ा’:
  2. 48% पक्षी प्रजातियों का भविष्य अंधकारमय:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था एवं शासन:

जम्मू और कश्मीर परिसीमन रिपोर्ट:

विषय:संसद और राज्य विधानसभाएं- संरचना, कामकाज, कार्य संचालन, शक्तियां एवं विशेषाधिकार एवं इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

प्रारंभिक परीक्षा: परिसीमन आयोग।

मुख्य परीक्षा: जम्मू और कश्मीर में परिसीमन।

प्रसंग:

  • हाल ही में, जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में चुनावी सीमाओं को नए सिरे से निर्धारित करने के लिए दो वर्ष पूर्व नियुक्त किए गए आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं।

परिसीमन क्या है?

  • भारत के चुनाव आयोग के अनुसार परिसीमन लोकसभा या विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः परिभाषित करने की प्रक्रिया है।
  • यह परिसीमन, किसी परिसीमन आयोग ( Delimitation Commission ) या सीमा आयोग द्वारा किया जाता है।
  • गौरतलब हैं कि किसी भी अदालत के समक्ष स्वतंत्र निकाय के आदेशों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग क्या है?

  • जम्मू और कश्मीर राज्य के विभाजन के बाद बने जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में पुनर्गठित होने के बाद केंद्र ने 2020 में एक परिसीमन आयोग का गठन किया था।
  • इस आयोग को 2011 की जनगणना के आधार पर और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 और परिसीमन अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का काम सौंपा गया था।
  • जम्मू-कश्मीर परिसीमन के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:J&K Delimitation

जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य:

  • विधानसभा सीटों की संख्या में वृद्धि:
    • जम्मू के लिए (संशोधित 43) छह अतिरिक्त विधानसभा सीटें और एक कश्मीर (47 में संशोधित) के लिए निर्धारित की गई हैं।अतः इस केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा सीटों की कुल संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी।
  • SC और ST के लिए सीटों का आरक्षण:
    • इस पैनल ने अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए नौ सीटों का प्रस्ताव रखा है। साथ ही जम्मू क्षेत्र में सात सीटें अनुसूचित जाति (SCs) के लिए आरक्षित की गई हैं।
  • विधानसभा में नामांकन:
    • आयोग ने केंद्र से विधानसभा में कम से कम दो कश्मीरी पंडितों को मनोनीत करने की सिफारिश की है।
    • आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि सरकार पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों को विधानसभा में नामांकन के जरिए प्रतिनिधित्व देने पर विचार करे।
  • नया निर्वाचन क्षेत्र:
    • आयोग ने राजौरी और पुंछ (जम्मू संभाग से) का कश्मीर क्षेत्र के अनंतनाग निर्वाचन क्षेत्र में विलय कर दिया है।
    • नए निर्वाचन क्षेत्र का नाम बदलकर किश्तवाड़-राजौरी कर दिया गया है।
  • निर्वाचन क्षेत्रों का नाम बदलना:
    • आयोग ने कहा है कि उसने क्षेत्र में जनभावना को देखते हुए 13 निर्वाचन क्षेत्रों का नाम बदल दिया है।
  • परिसीमन आयोग के बारे में विस्तार से जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Delimitation Commission

सारांश:

  • जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग का यह अंतिम आदेश राजनीतिक महत्ता रखता है।परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने से विधानसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त होगा-जो कि जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

संपादकीय-द हिन्दू

सम्पादकीय:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था एवं शासन:

भारतीय विश्वविद्यालयों में गहराता संकट:

विषय: सामाजिक क्षेत्र के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे / शिक्षा से संबंधित सेवाएं।

मुख्य परीक्षा : भारतीय विश्वविद्यालयों से जुड़े मुद्दे।

नवीन घटनाक्रम:

  • शिक्षा मंत्रालय उच्च शिक्षा संस्थानों को अपनी प्रवेश क्षमता 25% बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहा है।
  • वित्त मंत्रालय ने नए शिक्षण पदों के सृजन पर रोक लगाने की मांग की है।
  • केंद्रीय स्तर पर वित्त वर्ष 2022-23 में छात्र वित्तीय सहायता में कटौती की गई साथ ही अनुसंधान और नवाचार के लिए होने वाले आवंटन में भी 8% की कमी आई।
  • वर्ष 2012 से उच्च शिक्षा पर खर्च 1.3-1.5% पर स्थिर रहा है।

राष्ट्र निर्माण में विश्वविद्यालयों का योगदान:

  • स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित सेंट्रल हिंदू कॉलेज (दिल्ली) राजनीतिक बहस का केंद्र था।
  • सेंट्रल हिंदू कॉलेज के छात्र और शिक्षक भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए। साथ ही वे 1915 में, रास बिहारी बोस और लाला हरदयाल की रक्षा सेना में भी शामिल हुए।
  • चेन्नई के क्वीन मैरी कॉलेज में भारत छोड़ो आंदोलन के कई विरोधों को प्रलेखित (documented ) किया गया है। इन गतिविधियों में भाग लेने वाले छात्रों को अक्सर हिरासत में ले मरीना बीच रोड की जेल में रखा जाता था।
  • इस कॉलेज के छात्रों ने 1947 में विभाजन के दौरान शरणार्थियों के पुनर्वास में सहायता की।
  • हाल ही में हुए अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

भारतीय विश्वविद्यालयों से जुड़े मुद्दे क्या हैं?

  • विश्वविद्यालय के बुनियादी ढांचे में निवेश में कमी:
    • उच्च शिक्षा वित्त पोषण एजेंसी (Higher Education Financing Agency (HEFA)) का बजट जो संस्थानों को सभी प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर लोन के लिए वित्त मुहैया कराता है, को वित्त वर्ष 21-22 में घटा दिया गया था। इसके अलावा विश्वविद्यालयों को कर्ज लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
    • नकदी के प्रवाह में आई इस रुकावट के कारण डीम्ड/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के वेतन का भुगतान करने में देरी हुई है। इसलिए, अधिकांश विश्वविद्यालय घाटे में चल रहे हैं।
  • इससे विवेकाधीन खर्च में कटौती हुई है क्योंकि कई कॉलेज बुनियादी डेटाबेस और पत्रिकाओं की सदस्यता लेने में असमर्थ हैं।
  • घटता हुआ अनुसंधान अनुदान:
    • वित्त वर्ष 2020-21 में यूजीसी की लघु और प्रमुख शोध परियोजना योजनाओं के तहत अनुदान में गिरावट आई है।
    • भारत में अल्प वित्त पोषण और खराब बुनियादी ढांचे को देखते हुए केवल 2.7% विश्वविद्यालय ही पीएचडी कार्यक्रम उपलब्ध करवाते हैं।
  • बुनियादी ढांचे की कमी:
    • अधिकांश भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सभी कक्षाएं अत्यधिक भीड़भाड़ वाली हैं, खराब वायु-संचार(ventilation ) एवं स्वच्छता और छात्रावास में सुविधाएं संतोषजनक नहीं है।
    • विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार हेतु राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।
  • शैक्षणिक मानकों में गिरावट:
    • शैक्षणिक मानकों और प्रक्रियाओं को बनाए नहीं रखा जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप परीक्षा के पेपर अक्सर लीक हो जाते है,जिसके कारण शैक्षणिक मानकों में गिरावट आ रही हैं।
  • क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग (QS World University Rankings.) में शीर्ष 500 में सिर्फ आठ भारतीय विश्वविद्यालय इसकी सूची में हैं।
  • शैक्षणिक संस्थान अपनी परीक्षाओं की शुचिता (sanctity) की रक्षा करने में विफल रहे हैं। भारत के विश्वविद्यालय ऐतिहासिक रूप से स्वतंत्र अभिव्यक्ति के गढ़ और राष्ट्रवाद के केंद्र रहे हैं।
  • शैक्षणिक परिसरों में स्वतंत्र अभिव्यक्ति:
    • कुछ विश्वविद्यालयों में छात्रों के खिलाफ कैंपस विरोध, उनकी गिरफ्तारी और पुलिस बल के इस्तेमाल ने कॉलेज परिसरों में मुक्त भाषण पर रोक लगा दी है। छात्रों और शिक्षकों को अक्सर “राष्ट्र-विरोधी” करार दिया जाता है।

भावी कदम:

  • संरचनात्मक परिवर्तन की आवश्यकता:राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) ने सामाजिक, नैतिक एवं भावनात्मक क्षमताओं और स्वभाव के साथ-साथ महत्वपूर्ण सोच और समस्या समाधान को बढ़ावा देने की मांग की है।
  • इसे सक्षम करने हेतु विश्वविद्यालयों के लिए अधिक धन, स्वायत्तता और सहनशीलता के साथ एक उत्साहजनक पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता होगी।
  • विविधीकरण निधि:
    • स्नातक से नीचे के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम-आधारित अनुसंधान अनुभवों के लिए अनुसंधान के लिए धन में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है।
    • सरकार को बुनियादी ढांचा अनुदान/ऋण और वित्तीय सहायता के लिए समर्पित फंडिंग स्ट्रीम स्थापित करनी चाहिए।
  • स्टार्ट-अप रॉयल्टी और विज्ञापन जैसे अन्य राजस्व धाराओं का उपयोग करने के लिए विश्वविद्यालयों को भी मुक्त किया जा सकता है।

मानकों में सुधार:

  • अकादमिक मानकों में सुधार के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी, विश्वविद्यालयों को अकादमिक कार्यक्रमों, पदोन्नति, समूह के आकार आदि पर निर्णय लेने की अनुमति होगी।
  • परिसरों में सहिष्णुता: सरकार को परिसरों में विचारों की विविधता के लिए सहिष्णुता को अपनाने की जरूरत है- क्योंकि छात्रों को वहां रचनात्मक अनुभव प्राप्त होते हैं अतः उनके पास खुद को व्यक्तिगत तौर पर परिभाषित करने के लिए जगह होनी चाहिए।

सारांश:

  • भारत के शिक्षण संस्थान कई तरह के संकटों से घिरे हुए हैं जैसे कि विश्वविद्यालय स्तर पर वित्तीय संकट, शिक्षकों के लिए अनुसंधान के अवसरों में कमी, खराब बुनियादी ढांचे और छात्रों के लिए सीखने के परिणाम आदि।पर्याप्त बुनियादी ढांचे और विविध वित्त पोषण के साथ, सरकार को लोकतंत्र और नागरिक समाज को मजबूत करने में विश्वविद्यालयों की भूमिका को सुदृढ़ करना चाहिए।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था एवं शासन:

प्रार्थना ध्वनि में कमी:

विषय: विभिन्न क्षेत्रों में सरकार की नीतियां और हस्तक्षेप तथा उनके डिजाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

मुख्य परीक्षा: यूपी सरकार द्वारा राज्य में लाउडस्पीकरों को हटाने के लिए के उठाए गए कदम।

सन्दर्भ:

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य भर से 10,900 से अधिक “अवैध” और “अनधिकृत” लाउडस्पीकरों को हटा दिया है।

पृष्टभूमि:

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए, मोतीलाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में, राज्य सरकार ने विभिन्न पूजा स्थलों से 10,900 से अधिक लाउडस्पीकरों को समान रूप से हटा दिया।
  • रिपोर्टों से पता चलता है कि मस्जिदों और मंदिरों जैसे कई पूजा स्थलों ने अदालत के आदेश का उल्लंघन किया और लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जो बिना किसी कानूनी अनुमति के या निर्धारित डेसिबल स्तर से ऊपर था।
  • राज्य भर में विभिन्न स्थानों के लाउडस्पीकर जिसमे गोरखपुर, वाराणसी, लखनऊ, इलाहाबाद, आगरा, मेरठ, आदि शामिल है ।

मोतीलाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश:

  • दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 का उल्लेख किया था तथा यूपी सरकार से नियमों का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में सवाल किया था कि क्या सभी लाउडस्पीकर धार्मिक और सार्वजनिक स्थानों पर लगाए गए है, क्या राज्य के संबंधित अधिकारियों से आवश्यक अनुमति ली गई हैं और यदि नहीं तो इनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है।
  • कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि पूजा स्थलों से कितने अनधिकृत लाउडस्पीकर हटाए गए।
  • उच्च न्यायालय ने जुलूसों के खिलाफ सरकार द्वारा किए गए उपायों के बारे में भी पूछा, जिसमें विवाह के दौरान तेज संगीत भी शामिल है।

विभिन्न धार्मिक समुदायों द्वारा प्रतिक्रिया

  • सरकार की कार्रवाई को परिपक्व प्रतिक्रिया मिली क्योंकि इसमे विरोध या हड़ताल या सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का कोई खतरा नहीं था।
  • हिंदू धर्मगुरुओं इस पर मौन रहे, जबकि मुस्लिम समुदाय ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी।

अज़ान की शुरुआत

  • अज़ान दिन के निर्धारित समय पर पढ़ी जाने वाली प्रार्थना या इस्लामी आह्वान है।
  • सातवीं शताब्दी में, मक्का से मदीना आने के बाद, पैगंबर को दिन में पांच बार लोगों को मस्जिद में आमंत्रित करने की आवश्यकता महसूस हुई थी।
  • उनके कुछ साथियों ने लोगों को आमंत्रित करने के लिए घंटियों और कुछ ने एक सींग के उपयोग का सुझाव दिया और कुछ ने पहाड़ी की चोटी पर आग जलाने का प्रस्ताव रखा।
  • पैगंबर ने इन विचारों को खारिज कर दिया क्योंकि वे या तो अन्य समुदायों द्वारा अनुसरण किए जा रहे थे या अव्यावहारिक थे।
  • बाद में, पैगंबर ने बिलाल (एक अश्वेत जो गुलामी से मुक्त किया गया था) को अब्दुल्ला इब्न ज़ैद (एक साथी) द्वारा सुझाए गए शब्दों को सीखने और बिना ड्रम या किसी अन्य उपकरण या ध्वनि यंत्र की सहायता के पहाड़ी की चोटी से इसका उच्चारण करने के लिए कहा गया।
    • इस प्रकार पहले ‘अज़ान’ को समतावाद के रूप में दर्शाते हुए एक अश्वेत व्यक्ति द्वारा पढ़ा गया था।
  • ऊंचाई से प्रार्थना करने की अवधारणा के परिणामस्वरूप आने वाली शताब्दियों में मस्जिदों में लंबी मीनारों का निर्माण हुआ है।
    • भारत में मध्यकाल में निर्मित दिल्ली में जामा मस्जिद सहित, अधिकांश मस्जिदों में लंबी मीनारें हैं जिनका उपयोग मुअज्जिन द्वारा अज़ान देने के लिए किया जाता है।

मुस्लिम समुदाय की मिली-जुली प्रतिक्रिया:

  • मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग ‘अज़ान’ (प्रार्थना) के लिए लाउडस्पीकर के उपयोग या शुक्रवार की नमाज़ के लिए सार्वजनिक सड़कों के उपयोग जैसे प्रमुख मुद्दों के खिलाफ मुखर रहा है।
    • कुछ वर्षों से, समुदाय का यह वर्ग आत्मनिरीक्षण की अवस्था में रहा है तथा वे ऐसे कार्यो पर विश्वास कर रहे है जो कानून और धर्म द्वारा सही हैं।
    • उनका मानना है कि देश के कानून का पालन करना उनके लिए बाध्यकारी है तथा किसी की कार्रवाई से दूसरों को असुविधा नहीं होनी चाहिए।
    • इस वर्ग ने लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले को सही माना है।
  • समुदाय का शिक्षित वर्ग जो आस्था की प्रथाओं से भी अवगत हैं, का कहना है कि 1960 और 70 के दशक में संचार के सीमित स्रोत होने के कारण लाउडस्पीकर का उपयोग किया जाता था।
    • हालाँकि, 1970 और 90 के दशक के बीच लाउडस्पीकरों की स्थापना मस्जिदों के लिए एक स्टेटस सिंबल बन गई क्योंकि कई मंदिरों ने भी इसका इस्तेमाल किया।
    • वर्तमान डिजिटल युग में, मोबाइल फोन और इंटरनेट के आगमन के साथ, इन लाउडस्पीकरों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं रह गई है।
  • समुदाय का एक अन्य प्रमुख वर्ग बहुलवादी लोकतंत्र में इन प्रथाओं को जारी रखने में विश्वास करता है और अन्य समुदायों को इसी तरह की प्रार्थनाओं के उदाहरण उद्धृत करता है।

अन्य इस्लामी देशों में अज़ान का उपयोग:

  • पाकिस्तान और बांग्लादेश में, मस्जिदों पर लाउडस्पीकर से ऊँची आवाज मैं अजान पढ़ी जाती है।
  • हालाँकि, सऊदी अरब और मलेशिया में धारा बदल रही हैं क्योंकि इन देशों ने मस्जिदों में लाउडस्पीकर के उपयोग को सीमित कर दिया है।
  • 2010 में मलेशियाई इस्लामी अधिकारियों ने सुबह की नमाज के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था। साथ ही 2015 में धार्मिक कथनों के लिए लाउडस्पीकर के उपयोग को कम करने के दिशा-निर्देश जारी किए थे।
  • 2021 में, सऊदी अरब के इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने आदेश दिया कि लाउडस्पीकरों को उनकी अधिकतम ध्वनि के केवल एक तिहाई पर सेट किया जाना चाहिए। UK ने मस्जिदों से कुरान का पाठ करने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं करने का भी आग्रह किया क्योंकि यह पुस्तक का अनादर है।

सारांश:

  • उच्च न्यायालय के आदेश को स्वीकार करते हुए और बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य के खतरों को देखते हुए, यूपी सरकार ने राज्य भर में अवैध रूप से लगाए गए लाउडस्पीकरों को हटा दिया है। धर्मगुरुओं के इस कदम के विरोध में कमी ने लोगों के रूढ़िवादी रवैये में बदलाव को प्रदर्शित किया है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

भारत की न्यायपालिका का कमजोर होता विश्वास:

विषय: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कामकाज।

मुख्य परीक्षा: न्यायपालिका के कामकाज को प्रभावित करने वाली विभिन्न समस्याओं का मूल्यांकन।

सन्दर्भ:

  • इस लेख में भारत में न्यायपालिका के साथ-साथ न्यायिक भ्रष्टाचार और अन्य प्रमुख समस्याओं को संदर्भित किया गया है।

विवरण:

  • अरस्तू (यूनानी दार्शनिक) मानव जीवन में न्याय के महत्व को यह कहकर सारांशित करते हैं कि ” न्याय वह सद्गुण है जो समाज के आदेश पर केंद्रित है।”
  • लेकिन हाल ही में, न्यायिक भ्रष्टाचार दुनिया भर के कई देशों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
  • न्यायिक भ्रष्टाचार मुख्य रूप से दो तरह से भूमिका निभाता है:
    • रिश्वत (Bribery)
      • न्यायाधीश फैसले में देरी या तेजी लाने, अपील स्वीकार या अस्वीकार करने या किसी मामले को एक निश्चित तरीके से प्रभावित करने के लिए रिश्वत स्वीकार कर सकते हैं।
      • अदालत के अधिकारी भी मुफ्त सेवाओं के लिए रिश्वत की मांग कर सकते हैं।
      • मामलों में तेजी लाने या देरी करने के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूलने वाले वकील।
    • राजनीतिक हस्तक्षेप (Political interference)
      • न्यायपालिका के संचालन में विधायी या कार्यकारी इकाइओं का हस्तक्षेप।
      • न्यायाधीशों पर राजनीतिक हितों में शासन द्वारा दबाव डालना और कठोर राजनीतिक प्रतिशोध का पालन करने से इनकार करने वाले न्यायाधीशों को चेतावनी देना।

मूल और प्रक्रियात्मक न्याय:

  • मूल न्याय (Substantive Justice) इस बात से जुड़ा है कि क्या नियमों, कानूनों और कानूनी सिद्धांतों का पालन परंपराओं के रूप में किया जाता है जो नैतिक रूप से उचित हैं।
    • उदाहरण: नागरिकता (संशोधन) अधिनियम जो हिंदुओं, बौद्धों, सिखों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करता है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए थे, न कि मुसलमान को अर्थात यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हैं और इसलिए यह वास्तविक न्याय का उल्लंघन है।
  • प्रक्रियात्मक न्याय (Procedural Justice) निर्णय प्रक्रियाओं की निष्पक्षता और तटस्थता से जुड़ा है।
    • उदाहरण: न्याय देने में देरी संबंधित लाल बिहारी का मामला, जिसे आधिकारिक तौर पर 1975 में मृत घोषित कर दिया गया था। फिर उन्होंने साबित किया कि वह जीवित थे, विभिन्न कठिनाइयों का सामना कर आखिरकार उन्हें 1994 में जीवित घोषित कर दिया गया।

भारत में न्यायिक भ्रष्टाचार की समस्याएं:

  • मूल और प्रक्रियात्मक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप उच्च न्यायालयों सहित जिला और सत्र न्यायालयों में शामिल अदालतों के निचले स्तर में विश्वास का क्षरण हुआ है।
    • न्यायिक देरी, न्यायिक भ्रष्टाचार और जेलों में विचाराधीन कैदियों का बढ़ता प्रतिशत वास्तविक और प्रक्रियात्मक न्याय की विफलताओं को दर्शाता है।
  • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, 2009 और 2010 के बीच न्यायिक सेवाओं का लाभ उठाने वाले 45% से अधिक लोगों ने न्यायपालिका को रिश्वत दी थी।
    • रिश्वत देने का सबसे आम कारण “प्रक्रिया में तेजी लाना” था।
  • एशियाई मानवाधिकार आयोग (2013) का मानना है कि अदालत में फीस के रूप में खर्च किए गए प्रत्येक ₹2 के लिए कम से कम ₹1,000 रिश्वत के रूप में खर्च किए जाते हैं।
  • फ्रीडम हाउस की “फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2016 रिपोर्ट फॉर इंडिया” और GAN बिजनेस एंटी-करप्शन पोर्टल की रिपोर्ट बताती है कि न्यायपालिका के निचले क्रम में व्यापक भ्रष्टाचार है क्योंकि अनुकूल फैसलों के बदले में रिश्वत दी जाती है।

भारत की न्यायपालिका में अन्य प्रमुख समस्याएं:

  • न्यायिक लम्बित:
    • राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड से प्राप्त जानकारी के अनुसार, अप्रैल 2017 तक, देश की जिला अदालतों में लगभग 2 करोड़ मामले लंबित थे।
    • जिनमें से 9.58% (20 लाख से अधिक मामले) 10 वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं।
    • करीब 16.44% (करीब 40 लाख मामले) पांच से 10 साल से लंबित हैं।
  • कर्मचारियों की कमी की समस्या:
    • दिसंबर 2015 तक, अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों के पदों पर लगभग 4,432 रिक्तियां थीं, जो कुल संख्या का लगभग 22% है।
    • उच्च न्यायालयों में, 2016 में 1,079 पदों में से 458 खाली थे।
    • कर्मचारियों की कमी की एक गंभीर समस्या है जिसने न्याय प्रदान करने की क्षमता को प्रभावित किया है और लंबित मामलों में वृद्धि में योगदान दिया है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप:
  • सत्ता के चरम केंद्रीकरण और लोकतांत्रिक मूल्यों का स्पष्ट उल्लंघन जैसे धार्मिक कलह, अकादमिक स्वतंत्रता पर हमले और सरकार द्वारा जनसंचार माध्यमों के दमन का न्यायपालिका पर प्रभाव पड़ा है।
  • सरकारों द्वारा असंवैधानिक हस्तक्षेप और व्यापक भ्रष्टाचार ने न्यायपालिका की जवाबदेही को कमजोर कर दिया है।
  • विचाराधीन कैदियों के साथ मुद्दे
  • यद्यपि न्यायपालिका में विश्वास सकारात्मक रूप से कुल कैदियों में से तीन से पांच वर्षों के लिए विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी और नकारात्मक रूप से विचाराधीन कैदियों के प्रतिशत से संबंधित है।
  • नकारात्मक प्रभाव सकारात्मक प्रभाव को समाप्त कर देता है क्योंकि न्यायपालिका में विश्वास विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी के साथ थोड़ा बढ़ता है जब तक कि सीमा (0.267) तक नहीं पहुंच जाता है और उस बिंदु से ऊपर न्यायिक विश्वास में गिरावट के के साथ विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी बढ़ जाती है।

सारांश:

  • चूंकि न्यायपालिका में विश्वास की कमी का नकरात्मक परिणाम समाज कल्याण और शासन पर अत्यधिक हो सकता हैं, इसलिए न्यायपालिका से जुड़ी समस्याओं की गहन जांच की आवश्यकता है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

व्यापार में सरकार:

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था और नियोजन, संसाधन, विकास, विकास और रोजगार से संबंधित मुद्दे।।

मुख्य परीक्षा: अन्य देशों की निवेश रणनीतियों का विवरण और यह भारत को कुछ प्रमुख समस्याओं का समाधान करने में कैसे सहायक है।

सन्दर्भ:

  • लेख में चीनी और सिंगापुर सरकार की निवेश कार्रवाइयों की सफलता की कहानी और भारत इससे क्या सीख सकता है, पर चर्चा की गई है।

पृष्टभूमि:

  • सिंगापुर के सरकारी निवेश निगम (GIC) ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इक्विटी में निवेश किया है।
  • GIC का निवेश दुनिया भर में लगभग ₹55 लाख करोड़ का है।
  • GIC के पास अकेले भारत में मार्च 2022 के अंत तक लगभग ₹1.09 लाख करोड़ के शेयर हैं।
  • GIC दुनिया का आठवां सबसे बड़ा वेल्थ मैनेजमेंट फंड है।
  • पिछले 20 वर्षों में निवेश किया गया धन दोगुना हो गया है और सरकार इस राशि का उपयोग अपने जन कल्याणकारी उपायों के लिए करती है।
  • 2022-23 के लिए भारत सरकार का बजट खर्च ₹39.45 लाख करोड़ का है जबकि सिंगापुर सरकार का निवेश इससे कई गुना ज्यादा है।
  • चीन की सरकार भी इसी तरह का निवेश कर रही है।
  • हेफ़ेई की नगर सरकार ने Nio के मुख्य व्यवसाय में 17% हिस्सेदारी हासिल करने के लिए $787 मिलियन का निवेश किया था और बाहर निकलने के बाद, इसने अपने निवेश से 5 गुना से अधिक का लाभ कमाया।
  • 2017 तक, चीनी राज्य के स्वामित्व वाली फर्मों ने विदेशी कंपनियों में 67 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया था जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 27% है।

भारत में रुझान

  • भारत में रुझान प्रदर्शित करते है कि सरकार मुख्य रूप से विनिवेश पर केंद्रित है।
  • भारत सरकार की कुल बाजार होल्डिंग का मूल्य मात्र ₹13 लाख करोड़ है जो चीन और सिंगापुर की तुलना में बहुत कम है।
  • राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों के माध्यम से विदेशी निवेश और होल्डिंग भारत में नगण्य हैं तथा नवरत्न PSUs जो अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें भी बेचा जा रहा है।
    • जबकि चीन में, चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, जिसके पास 600 बिलियन डॉलर की संपत्ति है और सरकार द्वारा जिसका उपयोग अपने वैश्विक हित को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है।
    • जबकि चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, भारत विदेशों में निवेश न करके अधिक आर्थिक प्रभाव पैदा करने के ऐसे अवसरों को खो रहा है।

विनिवेश की समस्या

  • सरकार यह कहकर विनिवेश को सही ठहरा रही है कि “सरकार के पास व्यवसाय करने के लिए कोई व्यवसाय नहीं है” लेकिन बढ़ता सरकारी घाटा वास्तव में भारत की विनिवेश योजनाओं को प्रभावित कर रहा है।
  • इन विनिवेशों के माध्यम से कॉर्पोरेट निवेशकों को भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है और उनके द्वारा शोषण किया जा सकता है।
  • भारत सरकार की अधिकतर भागीदारी पश्चिमी विचारधारा वाली स्वामित्व कंपनियों में है, लेकिन उसे यह ध्यान रखना होगा कि दुनिया के शीर्ष पूँजी धारक सार्वजनिक उपक्रमों की सूची में यू.एस, इज़राइल और यूरोपीय देशों के लोग ही शामिल हैं ना कि भारत से कोई भी।
  • भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम सदियों पुराने नियमों और मानदंडों द्वारा शासित होते हैं और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण समस्याओं का भी सामना करते हैं।

सिंगापुर से सबक

  • राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित के सबक
  • धन का स्रोत भूमि से प्राकृतिक संसाधनों में, औद्योगिक क्षेत्र में और वर्तमान में ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदल गया है।
  • वर्तमान, संपत्तियां मुख्य रूप से वित्तीय बाजारों में हैं क्योंकि वहां अधिक धन सृजित होता है और इसलिए कई अंतरराष्ट्रीय निवेशक और कुछ सरकारें ऐसा कर रही हैं।
  • भारत सरकार सिंगापुर के कदमों का अनुकरण कर सकती है जो विनिवेश की तुलना में अधिक धन जुटाने में मदद करते हैं तथा यहां स्वामित्व राज्य के पास होता है।
  • निवेश के सबक
    • सिंगापुर लंबी अवधि की संपत्तियों में निवेश करता है अर्थात वह जोखिम भरे फैसले नहीं लेता है।
  • वित्त प्रबंधन के सबक
    • एक और सबक जो सिंगापुर से सीखा जा सकता है, वह है सरकारी वित्त का प्रबंधन करना।
    • कराधान भारत का राजस्व का प्रमुख स्रोत है और इसलिए सरकार डीजल / पेट्रोल और अन्य पर कर बढ़ा रही है जो मुख्य रूप से देश में गरीबों को प्रभावित करता हैं।
    • हालांकि, अगर बाजार, धन प्रबंधन और लाभांश का पता लगाया जाता है, तो सरकार ऐसी संपत्ति बना सकती है जिसका उपयोग लोक कल्याण सुनिश्चित करने हेतु किया जा सकता है।

भावी नीति:

  • PSU के माध्यम से भारत सरकार द्वारा अर्जित लाभांश राशि ₹50,000 करोड़ है और भारत सरकारी निवेश से अधिक कमा सकता है।
  • भारत सरकार छोटे और घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश पर विचार कर सकती है लेकिन लाभदायक उपक्रमों को संरक्षित एवं उनमे सुधार करना होगा।
  • वास्तविक जवाबदेहीता के साथ कर्मियों का वेतन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के समान ही होना चाहिए।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में एक उल्लेखनीय प्रतिभा है जो निजी क्षेत्र की प्रतिभाओं के लिए सहयोगी हो सकती है।
    • विभिन्न स्टार्टअप और यूनिकॉर्न की सफलता प्रबंधकीय प्रतिभा को प्रदर्शित करती है जिसका उपयोग राष्ट्रीय हित में किया जा सकता है।

निष्कर्ष

  • 1980 के दशक में दूरसंचार उद्योग की उपलब्धि, आधार व्यवस्था और ONDC प्लेटफॉर्म के निर्माण के उदाहरणों ने यह प्रदर्शित किया है कि कैसे निजी क्षेत्र की प्रतिभाओं का उपयोग जनता की भलाई के लिए किया जा सकता है। भारत को अधिक से अधिक सार्वजनिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए इन प्रतिभाओं का दोहन करना चाहिए।

सारांश:

  • भारत को चीन और सिंगापुर की निवेश रणनीतियों का अनुकरण करना चाहिए जो न केवल धन का सृजन करने बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत के प्रभाव और आर्थिक दबदबे को भी बढ़ाएंगी।

प्रीलिम्स तथ्य:

1. राखीगढ़ी के कंकालों के DNA सैंपल जांच के लिए भेजे गए:

कला और संस्कृति:

विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन से आधुनिक काल तक के कला रूपों, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलुओं को समाहित किया गया हैं।

प्रारंभिक परीक्षा: राखीगढ़ी के बारे में जानकारी।

प्रसंग:

  • राखीगढ़ी में मिले दो मानव कंकालों से एकत्र किए गए डीएनए नमूने वैज्ञानिक जांच के लिए भेजे गए हैं।
  • राखीगढ़ी हरियाणा में हड़प्पा-युग के शहर स्थल का एक क़ब्रिस्तान है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है।
  • पुरातत्वविदों ने 1998 में हिसार के एक निष्क्रिय/गतिविधिहीन गांव राखीगढ़ी की खोज की थी।
  • राखीगढ़ी उन पांच प्रतिष्ठित पुरातात्विक स्थलों में से एक है, जिनका उल्लेख केंद्रीय वित्त मंत्री ने 2020 में अपने बजट भाषण के दौरान किया था।
  • वित्त मंत्री द्वारा उल्लखित अन्य स्थल उत्तर प्रदेश में हस्तिनापुर, असम में शिवसागर, गुजरात में धोलावीरा और तमिलनाडु में आदिचनल्लूर हैं।
  • राखीगढ़ी के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Rakhigarhi

राखीगढ़ी में हाल में की गई खुदाई:

  • राखीगढ़ी में कुछ घरों, गलियों और जल निकासी व्यवस्था की संरचना भी देखने को मिली हैं, और संभवतः यहाँ एक आभूषण बनाने वाली इकाई होने की सम्भावना भी जताई जा रही हैं।
  • इस स्थल से हुई खुदाई में तांबे और सोने के गहने, टेराकोटा के खिलौने के अलावा हजारों मिट्टी के बर्तन और मुहरें मिलीं है, इसमें हड़प्पा काल का एक कब्रिस्तान स्थल भी शामिल है।
  • उत्खनन किये गए इन टीलों में बहु मंजिली घर,गलियां और वे स्थान शामिल हैं जहाँ तांबाँ मिला हैं।
  • ये खोजें एक सुनियोजित हड़प्पा शहर के अस्तित्व की ओर इशारा कर सकती हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. ‘नागरिकता में देरी के कारण 800 पाकिस्तानी हिंदुओं ने भारत छोड़ा’:

  • सीमांत लोक संगठन (एसएलएस) के अनुसार, वर्ष 2021 में लगभग 800 पाकिस्तानी हिंदू पड़ोसी देश वापस लौट गए।
  • वे धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर नागरिकता मांगने के बाद भारत आकर राजस्थान में रह रहे थे।उनमें से कई यह देखने के बाद पाकिस्तान लौट आए कि उनके नागरिकता आवेदन में कोई प्रगति नहीं हुई है।
  • वर्ष 2015 में भारत में नागरिकता नियमों में संशोधन किया गया और छह समुदायों से संबंधित विदेशी प्रवासियों के प्रवास को वैध कर दिया गया, जिन्होंने धर्म के आधार पर उत्पीड़न के कारण दिसंबर 2014 में या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।
  • भारत में शरण लेने वाले व्यक्ति या तो लंबी अवधि के वीजा (LTV) या तीर्थयात्री वीजा पर आते हैं। पांच साल के लिए दिया जाने वाला एलटीवी नागरिकता का अग्रदूत है।

2. 48% पक्षी प्रजातियों का भविष्य अंधकारमय:

  • विश्व के पक्षियों की स्थिति पर पर्यावरण संसाधनों की वार्षिक समीक्षा हाल ही में प्रकाशित की गई थी।
  • इसने पक्षियों की लगभग मौजूदा आधी प्रजातियों के लिए खतरे को प्राकृतिक दुनिया और जलवायु परिवर्तन पर मानव पदचिह्न के विस्तार के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
  • यह भी पता चला है कि मौजूदा पक्षी प्रजातियों में से 48% की जनसंख्या में गिरावट/लगातार कमी हो रही है।
  • प्राकृतिक आवासों का ह्रास एवं इसका नुकसान और साथ ही साथ कई प्रजातियों का अतिदोहन, पक्षियों की जैव विविधता के लिए प्रमुख खतरे हैं।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – मध्यम)

  1. इसका लक्ष्य 2022 तक (आधार वर्ष 2017 के साथ) पार्टिकुलेट मैटर सांद्रता में 40% से 60% की कमी करना है।
  2. इसका उद्देश्य राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के आधार पर देश भर में निर्धारित वार्षिक औसत परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करना है।
  3. लगातार 5 वर्षों से राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने वाले शहरों को वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए शहर की कार्य योजना तैयार करने और लागू करने का निर्देश दिया जाता है।

विकल्प:

  1. केवल 1 और 3

(b)1,2 और 3

(c)केवल 2 और 3

(d)केवल 1

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही नहीं है: यह कार्यक्रम एक प्रदूषण नियंत्रण पहल है, जिसका मुख्य लक्ष्य 2017 को आधार वर्ष मानते हुए वर्ष 2024 तक वातावरण में मोटे और सूक्ष्म कणों की सांद्रता को कम से कम 20-30% तक कम करना है।
  • कथन 2 सही है: इस कार्यक्रम का उद्देश्य राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के आधार पर देश भर में निर्धारित वार्षिक औसत परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करना है।
  • कथन 3 सही है:लगातार 5 वर्षों से राष्ट्रीय मानकों को पार करने वाले शहरों को वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए शहर की कार्य योजना तैयार करने और लागू करने का निर्देश दिया जाता है।

प्रश्न 2. थैलेसीमिया के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)

  1. यह एक रक्त विकार है जिसमें शरीर में सफेद रक्त कोशिकाओं की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है।
  2. यह अस्थि मज्जा ऊतक के जीवाणु संक्रमण के कारण होता है जो सफेद रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करता है।

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन गलत है/हैं?

(a)केवल 1

(b)केवल 2

(c)1 और 2 दोनों

(d)न तो 1 , न ही 2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही नहीं है: यह एक रक्त विकार है जिसमें शरीर हीमोग्लोबिन की अपर्याप्त मात्रा का उत्पादन करता है।
  • कथन 2 सही नहीं है: यह एक आनुवंशिक विकार है जो माता-पिता में से किसी एक द्वारा स्थानांतरित किया जाता है जो इस बीमारी के वाहक है।

प्रश्न 3. भारत के राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल के सदस्यों के वोट मूल्य के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – सरल)

  1. राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य के प्रत्येक वोट का मूल्य निश्चित होता है, जबकि विधान सभा के प्रत्येक सदस्य का वोट मूल्य अलग-अलग राज्यों में भिन्न होता है।
  2. राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एक संसद सदस्य के वोट का मूल्य सभी राज्यों के सभी विधायकों के वोटों के कुल मूल्य को संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित करके निर्धारित किया जाता है।

विकल्प:

(a)केवल 1

(b)केवल 2

(c)1 और 2 दोनों

(d)न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: संसद सदस्य द्वारा प्रत्येक वोट का मूल्य निश्चित होता है, जबकि विधान सभा के प्रत्येक सदस्य का वोट मूल्य अलग-अलग राज्यों में भिन्न होता है।
  • कथन 2 सही है:

प्रश्न 4. सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों के निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा/से और संबंधित वर्तमान राज्य-स्थान सुमेलित हैं? (स्तर – कठिन)

  1. राखीगढ़ी- हरियाणा
  2. बनवाली- पंजाब
  3. कालीबंगा- राजस्थान

विकल्प:

(a)1,2 और 3

(b)2 और 3

(c)1 और 3

(d)1 और 2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • राखीगढ़ी हरियाणा में स्थित है।
  • बनवाली भी हरियाणा में स्थित है।
  • कालीबंगा राजस्थान में स्थित है।
  • प्रमुख सिंधु घाटी सभ्यता स्थलों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Major Indus Valley Civilization sites

प्रश्न 5. स्वतंत्र भारत में भूमि सुधार के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही है?

(a)हदबंदी कानून पारिवारिक जोत पर केन्द्रित था, न कि व्यक्तिगत जोत पर।

(b)भूमि सुधारों का प्रमुख उद्देश्य सभी भूमिहीनों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराना था।

(c)इसके परिणामस्वरूप नकदी फसलों की खेती, कृषि का प्रमुख रूप बन गई।

(d)भूमि सुधारों ने हदबंदी सीमाओं में किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • भूमि सुधारों का प्रमुख उद्देश्य सभी भूमिहीनों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराना था। अतः विकल्प B सही है।
  • हदबंदी कानून का उद्देश्य पारिवारिक जोत के साथ-साथ व्यक्तिगत जोत भी था। अत: विकल्प a सही नहीं है।
  • खेती के व्यावसायीकरण के परिणामस्वरूप नकदी फसलों की खेती मुख्य रूप से खेती के रूप में हुई, न कि भूमि सुधार के रूप में। अत: विकल्प C सही नहीं है।
  • भूमि सुधारों ने वन भूमि, उद्यान और बंजर भूमि की अधिकतम सीमा के संदर्भ में छूट की अनुमति दी। अत: विकल्प D सही नहीं है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न 1. कई राज्यों में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों के अवैध उपयोग पर प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई सही कदम है क्योंकि लाउडस्पीकर का उपयोग मौलिक अधिकार नहीं है, और कोई भी धर्म या संप्रदाय लाउडस्पीकर के उपयोग के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। प्रासंगिक कानूनी मामलों की सहायता से कथन की व्याख्या कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (जीएस2 – राजनीति)

प्रश्न 2. मौलिक और प्रक्रियात्मक न्याय से विचलन की, गहन जांच की आवश्यकता है क्योंकि इसके परिणाम शासन को गंभीर रूप से संकट में डाल सकते हैं। विश्लेषण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (GS2 – राजनीति)

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