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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 10 April, 2023 UPSC CNA in Hindi

10 अप्रैल 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

पर्यावरण:

  1. भारत की बाघों की आबादी 3,000 से अधिक: बाघ जनगणना

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

  1. द्वितीय अंतरिक्ष युग:
  2. बेहतर और स्मार्ट कानून के लिए AI निर्देशन:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. सांख्यिकी में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. पड़ोसियों के साथ भाषा की खाई को पाटेगा भारत:
  2. केंद्र ने कवरेज बढ़ाने के लिए पशुधन बीमा योजना में सुधार की योजना बनाई:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

भारत की बाघों की आबादी 3,000 से अधिक: बाघ जनगणना

पर्यावरण:

विषय: जैव विविधता संरक्षण।

प्रारंभिक परीक्षा: बाघों की गणना से सम्बंधित जानकारी।

मुख्य परीक्षा: नवीनतम बाघ जनगणना रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्ष।

प्रसंग:

  • भारत के प्रधान मंत्री ने नवीनतम बाघ जनगणना डेटा जारी किया हैं।

नवीनतम बाघ जनगणना रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

चित्र स्रोत: The Hindu

  • भारत की बाघ जनगणना के 5वें चक्र से पता चला है कि 2022 तक बाघों की आबादी जंगल में 3,167 है।
  • रिपोर्ट यह भी बताती है कि पिछले चार वर्षों में देश में बाघों की आबादी में लगभग 6.7% की वृद्धि हुई है।
  • बाघ जनगणना 2018 के अनुसार भारत में बाघों की संख्या 2,967 थी।
  • नवीनतम जनगणना रिपोर्ट के आंकड़ों की घोषणा प्रधान मंत्री द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस सम्मेलन और प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर की गई हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस ( International Big Cat Alliance ) का यह सम्मेलन मुख्य रूप से शेर, बाघ, चीता, जगुआर, तेंदुए, हिम तेंदुए और प्यूमा जैसे दुनिया की सात प्रमुख बड़ी बिल्लियों की सुरक्षा पर केंद्रित है।
  • बाघों की इस नवीनतम जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के बाढ़ के मैदानों में बाघों की आबादी में काफी वृद्धि हुई है, इसके बाद बाघों की आबादी में मध्य भारत, उत्तरपूर्वी पहाड़ियों, ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदानों और सुंदरबन का स्थान आता है।
  • हालांकि पश्चिमी घाट क्षेत्र में बाघों की आबादी में कमी आई है।
  • बाघ जनगणना और बाघ जनगणना रिपोर्ट 2018 से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिक पर क्लिक कीजिए:Tiger Census and Tiger Census Report 2018

बाघों की आबादी के सामने मौजूद प्रमुख खतरे:

  • नवीनतम जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, बुनियादी ढाँचे के विकास की बढ़ती माँगों के कारण भारत के सभी पाँच प्रमुख बाघ क्षेत्रों में बाघों की आबादी के संरक्षण और वृद्धि के सामने चुनौतियाँ आ गई हैं।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मध्य भारतीय उच्चभूमि और पूर्वी घाट जैसे क्षेत्रों में वन्यजीवों के आवास कई खतरों का सामना कर रहे हैं,जिसमें आवास अतिक्रमण, बाघों और उनके शिकार का अवैध शिकार, मानव-पशु संघर्ष, गैर-लकड़ी वन उपज की अत्यधिक कटाई, अनियंत्रित मवेशी चराई, मानव-प्रेरित जंगल में लगी आग, रैखिक बुनियादी ढाँचे का विस्तार और बड़े पैमाने पर खनन जैसे कारण शामिल हैं।
  • इसके अलावा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानों जैसे परिदृश्य में टाइगर रिज़र्व के बाहर बाघों की आबादी में वृद्धि के कारण बाघों और मेगाहर्बिवोर्स (Megaherbivore) के बीच संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि हुई है।(मेगाहर्बिवोर्स बड़े स्थलीय शाकाहारी होते हैं जो वजन में 1,000 किलोग्राम (2,200 पौंड) से अधिक हो सकते हैं।)

भावी कदम:

  • न्यून खनन प्रभाव तकनीक और खनन स्थलों के पुनर्वास जैसे न्यूनीकरण उपायों को मध्य भारतीय उच्च भूमि और पूर्वी घाट जैसे क्षेत्रों में प्राथमिकता के रूप में लिया जाना चाहिए, जहां खनन स्थलों की संख्या काफी अधिक है।
  • बाघों और बड़े शाकाहारी जीवों के बीच संघर्ष को कम करने के लिए निवेश करने की आवश्यकता है।
  • वर्ष 1973 से जब प्रोजेक्ट टाइगर पहली बार शुरू किया गया था, उस समय भारत में टाइगर रिज़र्व की संख्या केवल नौ थी (लगभग 18,278 वर्ग किमी), जो बढ़कर 53 (75,796 वर्ग किमी के करीब) हो गई है।
  • हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में बाघों की अधिकांश आबादी कुछ गिने-चुने क्षेत्रों के भीतर केंद्रित है जहाँ बाघों की रहने की या वहन करने की अपनी क्षमता चरम स्थिति तक पहुंच चुकी हैं।
  • यह इन नए क्षेत्रों को बाघों के आवास के रूप में विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, क्योंकि आने वाले वर्षों में बाघों की संख्या में और वृद्धि सुनिश्चित करने में एक बड़ी चुनौती आ सकती है।
  • अफ्रीका से चीतों के स्थानांतरण (translocation of Cheetahs ) के बाद भारत बाघों के स्थानांतरण कार्यक्रमों पर विचार कर रहा है क्योंकि वर्तमान में भारत में दुनिया की कुल बाघ आबादी का लगभग 75% हिस्सा यहाँ निवास करता है।
  • इसके साथ ही भारत कुछ बाघों को भारत से स्थानांतरित करने के लिए कंबोडिया के साथ भी बातचीत कर रहा है क्योंकि कंबोडिया में बाघ विलुप्त हो गए हैं।
  • भारत में बाघ संरक्षण से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:Tiger Conservation in India

सारांश:

  • भारत के बाघ संरक्षण के प्रयासों के कारण बाघों की संख्या वर्ष 2006 के 1,411 से बढ़कर 2022 तक लगभग 3,167 हो गई है, जिसे वैश्विक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि दुनिया के अन्य हिस्सों में बाघों की संख्या घट रही है।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

द्वितीय अंतरिक्ष युग:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

विषय: अंतरिक्ष क्षेत्र में जागरूकता।

मुख्य परीक्षा: नए अंतरिक्ष युग में इसरो के लिए चुनौतियां और अवसर

संदर्भ:

  • इस लेख में द्वितीय अंतरिक्ष युग में भारत के भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा की गई है।

परिचय:

  • अंतरिक्ष युग की शुरुआत 1957 में उपग्रह स्पुतनिक 1 के प्रक्षेपण के साथ हुई, इसके बाद 1961 में यूरी गगारिन की अंतरिक्ष में ऐतिहासिक यात्रा और 1969 में नील आर्मस्ट्रांग की चंद्रमा पर प्रतिष्ठित यात्रा, प्रथम अंतरिक्ष युग के अनुभव को चिह्नित करता है।
  • वर्तमान समय के अंतरिक्ष क्षेत्र और शीत युद्ध के युग के बीच का अंतर स्पष्ट है।
  • 1950 के दशक से 1991 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने 60 से 120 अंतरिक्ष प्रक्षेपणों के वार्षिक औसत के साथ, इन दो देशों ने 93% हिस्से के साथ इस क्षेत्र पर अपना दबदबा कायम किया।
  • वर्तमान में, अंतरिक्ष क्षेत्र में कई और प्रतिभागी हैं, जिनमें से अधिकांश निजी कंपनियां हैं।
  • 2020 के बाद से, दुनिया भर में सभी अंतरिक्ष प्रक्षेपणों का 90% निजी क्षेत्र द्वारा निष्पादित किया जाता हैं और यह उनके लाभ के लिए किया गया है।
    • 2022 में, 180 रॉकेट/अंतरिक्ष प्रक्षेपण हुए, जिनमें से 61 स्पेसएक्स (एक निजी कॉर्पोरेशन) द्वारा किए गए।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा:

  • पिछले कुछ दशकों में, भारत ने अंतरिक्ष अन्वेषण में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिससे यह दुनिया के अग्रणी अंतरिक्ष यात्री देशों के लीग में शामिल हो गया है।
  • उपग्रहों को लॉन्च करने से लेकर चंद्रमा और उससे आगे की खोज करने तक, भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अपनी विनम्र शुरुआत के बाद से एक लंबा सफर तय कर चुका है।
  • प्रारंभ में, भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम उपग्रह प्रक्षेपण यानों के विकास और अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए जमीन आधारित बुनियादी ढांचे के निर्माण पर केंद्रित था।
  • 15,000 से अधिक कर्मचारियों और हाल के वर्षों में ₹12,000 करोड़ – ₹14,000 करोड़ के बीच वार्षिक बजट के साथ इसने एक लंबा सफर तय किया है।

अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें ISRO

सामाजिक लाभ पर जोर:

  • सामाजिक उद्देश्यों के प्रति इसरो की प्रतिबद्धता को इसके शुरुआती वर्षों में देखा जा सकता है जब इसकी स्थापना 1969 में हुई थी। उस समय, भारत एक नया स्वतंत्र देश था जो कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा था।
  • इसरो के संस्थापकों ने इनमें से कुछ चुनौतियों का समाधान करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता को पहचाना और एक अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्धारित किया जो देश की विकास आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
  • पिछले कुछ वर्षों में, इसरो ने कई संचार उपग्रह लॉन्च किए हैं, जिन्होंने देश में संचार क्षेत्र में क्रांति ला दी है। इन उपग्रहों ने दूरस्थ और सेवाओं से वंचित क्षेत्रों में टेलीफोन, टेलीविजन और इंटरनेट सेवाओं के प्रावधान को सक्षम किया है, जिससे डिजिटल विभाजन को पाट दिया गया है।
  • एजेंसी के रिमोट सेंसिंग उपग्रहों ने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, पर्यावरण निगरानी और आपदा प्रबंधन के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान की है।
  • उदाहरण के लिए, इसरो के उपग्रहों ने जंगल की आग, बाढ़ और चक्रवातों का पता लगाने और निगरानी में मदद की है, जिससे प्रभावित समुदायों को समय पर प्रतिक्रिया और सहायता मिली है।
  • एजेंसी ने कई उपग्रह लॉन्च किए हैं जो विशेष रूप से टेलीमेडिसिन, शिक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे अनुप्रयोगों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
    • उदाहरण के लिए, इसरो के GSAT-11 उपग्रह का उपयोग दूर-दराज और कम सुविधा वाले क्षेत्रों में टेलीमेडिसिन सेवाएं प्रदान करने के लिए किया गया है, जबकि इसके EDUSAT उपग्रह ने ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा सेवाओं के प्रावधान की सुविधा प्रदान की है।
  • भारतीय हवाई क्षेत्र पर हवाई यातायात प्रबंधन में सुधार के लिए, क्षेत्र की ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) कवरेज बढ़ाने के लिए उपग्रह-सहायता प्राप्त नेविगेशन का क्षेत्र GAGAN (गगन) के साथ शुरू हुआ। इसे अब एक क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली के रूप में विस्तारित किया गया है जिसे नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन :Navigation with Indian Constellation (NavIC) कहा जाता है।

अंतरिक्ष क्षमता:

  • 2020 में, वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का अनुमान $450 बिलियन था, जो 2025 तक बढ़कर $600 बिलियन हो गया।
  • 2020 में अनुमानित 9.6 बिलियन डॉलर की भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 2025 तक 13 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।
  • हालांकि, सक्षम नीति और विनियामक वातावरण के साथ क्षमता इससे कहीं अधिक है। भारतीय अंतरिक्ष उद्योग 2030 तक 60 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है, जिससे सीधे तौर पर दो लाख से अधिक नौकरियां सृजित हो सकती हैं।
    • ब्रॉडबैंड, OTT और 5G उपग्रह आधारित सेवाओं की मांग में दो अंकों की वार्षिक वृद्धि की संभावना है।
    • अंतिम उपयोगकर्त्ता राजस्व के संदर्भ में, सरकार द्वारा केवल पाँचवाँ भाग ही सृजित किया जाता है। मीडिया और मनोरंजन का भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 26% हिस्सा है, उपभोक्ता और खुदरा सेवाओं का 21% का योगदान है।
    • अंतरिक्ष गतिविधियों के संदर्भ में, डाउनस्ट्रीम गतिविधियाँ जैसे उपग्रह सेवाएँ और संबद्ध ग्राउंड सेगमेंट प्रमुख हैं, जो भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 70% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं; उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण सेवाओं की अपस्ट्रीम गतिविधियां अल्प योगदान करती हैं।

एक सक्षम वातावरण सृजित करना:

  • भारतीय निजी क्षेत्र द्वितीय अंतरिक्ष युग की मांगों की पूर्ति कर रहा है।
  • वर्ष 2018 के $3 मिलियन की तुलना में वर्ष 2021 में $65 मिलियन तक निवेश में वृद्धि के साथ आज 100 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप हैं।
  • आज, इसरो 53 परिचालन उपग्रहों का प्रबंधन करता है – 21 संचार के लिए, 21 पृथ्वी अवलोकन के लिए, आठ नेविगेशन के लिए और शेष वैज्ञानिक प्रायोगिक उपग्रहों के रूप में (चीन द्वारा 541 का संचालन किया जा रहा है)।
  • इसके अलावा इसरो द्वारा चंद्रयान, मंगलयान और गगनयान जैसे मिशन पर कार्य किया जा रहा है।
  • दूसरे अंतरिक्ष युग में सफलता हासिल करने के लिए भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है। यह निवेश भारत के अंतरिक्ष मिशनों को प्रोत्साहित करने के लिए नई तकनीकों तथा नवाचारों के विकास की सुविधा प्रदान करेगा।
  • सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच सहयोग एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद कर सकता है जो अंतरिक्ष क्षेत्र में नवाचार, प्रौद्योगिकी विकास और प्रतिभा अधिग्रहण का समर्थन करता है। यह साझेदारी सरकार और निजी क्षेत्र के बीच की खाई को पाटने में मदद करेगी।
  • भारत को अन्य देशों, अंतरिक्ष एजेंसियों और निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ ज्ञान के आदान-प्रदान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अंतरिक्ष मिशनों में सहयोग की सुविधा के लिए मजबूत अंतरराष्ट्रीय साझेदारी करनी चाहिए।
  • सरकार को स्टार्ट-अप के लिए सहायता प्रदान करके अंतरिक्ष क्षेत्र में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसे कि वित्त पोषण और प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे और सुविधाओं तक पहुंच।

सारांश:

  • 1960 के दशक में अपनी शुरुआत के बाद से भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक लंबा सफर तय कर चुका है। भारतीय निजी क्षेत्र द्वितीय अंतरिक्ष युग की प्रतिक्रिया के साथ एक सक्षम नीति और नियामक वातावरण के साथ, भारत के अंतरिक्ष उद्योग के लिए उच्च क्षमता रखता है। सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच सहयोग से भारत के अंतरिक्ष मिशनों में सफलता हासिल करने में मदद मिल सकती है।

बेहतर और स्मार्ट कानून के लिए AI निर्देशन:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

विषय: प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

मुख्य परीक्षा: बेहतर कानून बनाने की प्रक्रिया के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग।

संदर्भ:

  • इस लेख में बेहतर और स्मार्ट कानून के लिए AI की क्षमता पर चर्चा की गई है।

परिचय:

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एक महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति के रूप में उभरा है जो विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति ला सकता है। हाल के वर्षों में, इसे कानून के क्षेत्र में, विशेष रूप से कानून के प्रारूपण और कार्यान्वयन में तेजी से लागू किया गया है।
  • भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और एक विशाल आबादी वाला देश होने के नाते, कानून में AI के उपयोग से महत्वपूर्ण रूप से लाभान्वित हो सकता है।
  • AI में बेहतर, अधिक कुशल और स्मार्ट कानून बनाने की क्षमता है जो देश के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकता है।
  • कोविड-19 महामारी ने डिजिटल इंडिया पहल और सेवाओं के डिजिटलीकरण पर जोर दिया है। AI की शक्ति का उपयोग करते हुए कानून, नीति-निर्माण और संसदीय गतिविधियों के क्षेत्र में इस गति को बनाए रखने और उपयोग करने की आवश्यकता है।

भारत में वर्तमान विधायी प्रक्रिया में चुनौतियाँ:

  • भारत में विधायी प्रक्रिया में देरी, अक्षमता और पारदर्शिता की कमी सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान विधायी प्रक्रिया समय लेने वाली है और इसमें प्रारूपण, समीक्षा और अनुमोदन सहित कई चरण शामिल हैं।
  • विधायी प्रक्रिया में कई हितधारक शामिल होते हैं, जिनमें कानून निर्माता, नौकरशाह और हितधारक शामिल हैं। इन हितधारकों के बीच समन्वय की कमी से कानून में देरी, अतिरेक और विसंगतियां हो सकती हैं।
  • भारत में वर्तमान विधायी प्रक्रिया में पारदर्शिता एक और चुनौती है। जनता के लिए जानकारी तक सीमित पहुंच के साथ, विधायी प्रक्रिया अक्सर अपारदर्शी होती है। पारदर्शिता की इस कमी से जनता के बीच अविश्वास पैदा हो सकता है और विधायी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सीमित हो सकती है।

कानून बनाने में AI के अनुप्रयोग:

  • कानून बनाने की प्रक्रिया में AI के सबसे महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में से एक कानूनी शोध और विश्लेषण है। बड़ी मात्रा में कानूनी डेटा का विश्लेषण करने के लिए AI-संचालित उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे केस, क़ानून और नियम। इससे सांसदों को कानूनी मिसालों और प्रवृत्तियों की पहचान करने और कानून बनाते समय अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।
  • इससे सांसदों को कानूनी मिसालों और प्रवृत्तियों की पहचान करने और कानून बनाते समय अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। इससे सांसदों को कानून बनाने में मदद मिल सकती है जो अच्छी तरह से सूचित हो और सभी हितधारकों की जरूरतों को पूरा करता हो।
  • AI का उपयोग कानून का मसौदा तैयार करने के लिए भी किया जा सकता है। AI-संचालित उपकरण सांसदों को स्पष्ट, संक्षिप्त और त्रुटियों से मुक्त कानून बनाने में मदद कर सकते हैं। ये उपकरण यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि कानून कानूनी सिद्धांतों का अनुपालन करता है, जैसे उचित प्रक्रिया और समान सुरक्षा।
  • AI उपकरण कानून निर्माताओं को कानून में संभावित संघर्षों और अस्पष्टताओं की पहचान करने और इन मुद्दों को हल करने के लिए संशोधन का सुझाव देने में भी मदद कर सकते हैं।
  • AI का उपयोग कानून की समीक्षा करने और संभावित मुद्दों की पहचान करने के लिए भी किया जा सकता है, जैसे कि परस्पर विरोधी प्रावधान या निरर्थक खंड।
  • कानून बनाने की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी बढ़ाने के लिए भी AI का इस्तेमाल किया जा सकता है। AI-संचालित उपकरण कानून और इसके प्रभावों के बारे में जानकारी तक अधिक पहुंच प्रदान कर सकते हैं। यह कानून के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और सार्वजनिक प्रतिक्रिया और भागीदारी को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है।
  • यह उन कानूनों को चिन्हित करने में भी मदद कर सकता है जो वर्तमान परिस्थितियों में पुराने हो चुके हैं और जिनमें संशोधन की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिए, ‘द एपिडेमिक डिजीज एक्ट, 1897’ अपनी पुरानी नीतियों के कारण अपने चरम के दौरान COVID-19 महामारी की स्थिति को संबोधित करने में विफल रहा।

वैश्विक परिदृश्य:

  • दुनिया भर में कई संसदें अब AI-संचालित सहायकों के साथ सक्रिय रूप से प्रयोग कर रही हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिनिधि सभा ने विधेयकों, संशोधनों और मौजूदा कानूनों के बीच अंतर का विश्लेषण करने की प्रक्रिया को स्वचालित करने के लिए एक AI उपकरण की शुरुआत की है।
  • उदाहरण के लिए, नीदरलैंड हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने “स्पीच2राइट” सिस्टम को लागू किया है जो आवाज को टेक्स्ट में परिवर्तित करता है और आवाज को लिखित रिपोर्ट में “अनुवाद” भी करता है।
  • जापान का AI टूल इसकी विधायिका के लिए प्रतिक्रियाओं की तैयारी में सहायता करता है और संसदीय बहसों में प्रासंगिक मुख्य बातों के स्वत: चयन में भी मदद करता है।
  • ब्राज़ील ने Ulysses नामक एक AI सिस्टम विकसित किया है जो पारदर्शिता और नागरिक भागीदारी का समर्थन करता है।

विधान बनाने में AI का उपयोग करने की सिफारिशें:

  • कानून में AI के प्रभावी उपयोग के लिए भारत को अपने कानून को संहिताबद्ध करना चाहिए क्योंकि कानून बनाने, कानून लागू करने और कानून की व्याख्या करने वाले संगठनों के बीच एक बड़ा अंतर है।
  • इंडिया कोड पोर्टल जिसमें सभी केंद्रीय विधान शामिल हैं, पर पूरी तरह से ‘सत्य के एकल स्रोत’ के रूप में भरोसा नहीं किया जा सकता है।
  • अंतराफलक में एक पूरी श्रृंखला होनी चाहिए, मूल अधिनियम से लेकर केंद्र सरकार द्वारा पारित कानून के अधीनस्थ हिस्सों और संशोधन अधिसूचनाओं तक, किसी भी इकाई को 360° दृष्टिकोण प्राप्त करने में सक्षम बनाना।
    • COVID-19 जैसी विशेष स्थितियों में ऐसी आवश्यकता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उदाहरण के लिए, COVID-19 से संबंधित उपायों में, केंद्र सरकार ने 900 से अधिक अधिसूचनाएँ जारी कीं जबकि राज्य सरकारों ने इस विषय पर 6,000 से अधिक अधिसूचनाएँ जारी कीं।
  • सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि AI का उपयोग इस तरह से किया जाए जो लोकतंत्र के मूल्यों और सिद्धांतों के अनुकूल हो। AI के उपयोग को जवाबदेही, पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी के सिद्धांतों से समझौता नहीं करना चाहिए।
  • कानून में AI के प्रभावी उपयोग के लिए हितधारकों के बीच सहयोग भी महत्वपूर्ण है। AI का उपयोग केवल सांसदों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि अन्य हितधारकों, जैसे कि नागरिक समाज संगठनों और जनता को भी शामिल करना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि कानून सभी हितधारकों की जरूरतों और चिंताओं को दर्शाता है।
  • यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि कानून में AI का उपयोग उचित कानूनी ढांचे और नैतिक मानकों के साथ हो। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि AI का उपयोग निष्पक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह है।

सारांश:

  • AI में भारत में विधायी प्रक्रिया में क्रांति लाने की क्षमता है। AI का उपयोग बेहतर, अधिक कुशल और स्मार्ट कानून बना सकता है जो देश के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकता है। AI विधायी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सकता है, कानून की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है और पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी बढ़ा सकता है।

प्रीलिम्स तथ्य:

1.सांख्यिकी में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 (प्रारंभिक परीक्षा) से संबंधित:

समसामयिकी:

विषय: विविध

प्रारंभिक परीक्षा: सांख्यिकी 2023 में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्बंधित तथ्यात्मक जानकारी।

प्रसंग:

  • कैल्यामपुडी राधाकृष्ण राव (सी.आर. राव), जो कि एक भारतीय-अमेरिकी सांख्यिकीविद् हैं,को वर्ष 2023 के लिए सांख्यिकी में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

सांख्यिकी में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार:

  • अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार किसी व्यक्ति या टीम को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और मानव कल्याण को आगे बढ़ाने के लिए सांख्यिकी का उपयोग करके उनकी उपलब्धियों को पहचानने के लिए दिया जाता है।
    • यह पुरस्कार एक एकल कार्य या कार्य के निकाय को मान्यता प्रदान करता है, जो एक शक्तिशाली और मूल विचार का प्रतिनिधित्व करता है या जिसका अन्य विषयों पर या दुनिया पर व्यावहारिक प्रभाव पड़ा हो।
  • यह पुरस्कार द्विवार्षिक रूप से प्रदान किया जाता है अर्थात अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) विश्व सांख्यिकी कांग्रेस में हर दो साल में एक बार यह पुरस्कार प्रदान करता हैं।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार पहली बार वर्ष 2016 में प्रदान किया गया था।
  • इस पुरस्कार का प्रबंधन एक फाउंडेशन द्वारा किया जाता है जिसमें पाँच प्रमुख सांख्यिकीय संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, जैसे कि अमेरिकी सांख्यिकी संघ, गणितीय सांख्यिकी संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय बायोमेट्रिक सोसाइटी, अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकीय संस्थान और रॉयल सांख्यिकीय सोसायटी।
  • इस पुरस्कार का मुख्य लक्ष्य आंकड़ों की गहराई और दायरे की सार्वजनिक समझ को बढ़ाना हैं।
  • इसके अलावा, जब पुरस्कार प्रदान किया जाता है तो प्राप्तकर्ता जीवित होना चाहिए।
  • प्रख्यात सांख्यिकीविद् सीआर राव को सांख्यिकी में 2023 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
  • यह पुरस्कार सी.आर. राव के महान कार्य को मान्यता देता है जिसने सांख्यिकीय सोच में क्रांति ला दी और अभी भी वैज्ञानिक विषयों के व्यापक स्पेक्ट्रम में मानव समझ को प्रभावित करना जारी रखा है।
  • कलकत्ता मैथमैटिकल सोसाइटी के बुलेटिन में प्रकाशित सी आर राव का 1945 का पत्र, तीन मौलिक परिणामों का प्रदर्शन करता हैं, इसने सांख्यिकी के आधुनिक क्षेत्र के लिए मार्ग प्रशस्त किया और विज्ञान में अत्यधिक उपयोग किए जाने वाले सांख्यिकीय उपकरण प्रदान किए।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. पड़ोसियों के साथ भाषा की खाई को पाटेगा भारत:

  • अन्य देशों में अपने सांस्कृतिक पदचिह्न का विस्तार करने के उद्देश्य से, विशेष रूप से अपने निकटतम पड़ोस में, भारत म्यांमार, श्रीलंका, उज्बेकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों में बोली जाने वाली भाषाओं में विशेषज्ञों का एक पूल बनाना चाहता है।
  • इस कदम से लोगों से लोगों के बीच आपसी संपर्क की सुविधा की उम्मीद है।
  • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations (ICCR)) ने “द लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज” नामक एक विशेष परियोजना शुरू की है, जिसमें इनमें से प्रत्येक देश की आधिकारिक भाषाओं में पांच से 10 लोगों को प्रशिक्षित करने की परिकल्पना की गई है।
  • ICCR ने इन परियोजना के लिए अब तक 10 भाषाओं को अंतिम रूप दिया है जिसमें कज़ाख, उज़्बेक, भूटानी, घोटी (तिब्बत), बर्मी, खमेर (कंबोडिया), थाई, सिंहली और बहासा (इंडोनेशिया और मलेशिया) शामिल हैं।
  • भारत में, मुख्य रूप से स्पेनिश, फ्रेंच, जर्मन, चीनी और जापानी जैसी भाषाओं को सीखने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • हालाँकि, भारत और अन्य कुछ देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को देखते हुए, भारत म्यांमार, श्रीलंका, उज्बेकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों की उपेक्षा नहीं कर सकता हैं।
  • भारत अब तक इन देशों की भाषाओं में अनुवादकों, दुभाषियों और शिक्षकों पर निर्भर रहा है जिनके साथ भारत का सांस्कृतिक इतिहास है।
  • ICCR विभिन्न विश्वविद्यालयों जैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद की अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, आदि के साथ परियोजना के भविष्य पर चर्चा कर रहा है।

परियोजना के लिए दो संभावनाएँ इस प्रकार हैं:

    • भारत आकर साथ ही सम्बन्धित भाषा में पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए इन देशों के शिक्षकों के साथ टाई-अप करना।
    • भारतीय छात्रों को उन देशों में जाकर इन भाषाओं का अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति की पेशकश करना।
  • विशेषज्ञों ने इस कदम का स्वागत किया है और उनका मानना है कि ICCR की भाषाओं की सूची का विस्तार किया जाना चाहिए क्योंकि बड़ी संख्या में लोग तुर्की, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मालदीव जैसे देशों से भारत आ रहे हैं।

2. केंद्र ने कवरेज बढ़ाने के लिए पशुधन बीमा योजना में सुधार की योजना बनाई:

  • केंद्र सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की तर्ज पर एक व्यापक पशुधन बीमा योजना तैयार करने पर विचार कर रही है जो मौजूदा पशुधन बीमा योजना का स्थान लेगी।
    • वर्तमान में पशुधन बीमा योजना देश के लगभग 100 जिलों में क्रियाशील है।
    • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसका प्रबंधन संबंधित राज्य पशुधन विकास बोर्ड द्वारा किया जाता है।
  • योजना के शुरुआती प्रस्तावों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के पशुपालकों के लिए प्रीमियम माफ करना शामिल है।
  • वर्तमान में, भारत में, देश के 1% से भी कम मवेशियों का बीमा किया जाता है और औसत वार्षिक प्रीमियम बीमित राशि का 4.5% है।
    • विशेषज्ञों के अनुसार उच्च प्रीमियम दर और किसानों की समग्र आर्थिक स्थिति ऐसी योजनाओं में कम नामांकन के प्रमुख कारण हैं।
    • पशुपालन मंत्रालय ने योजना में किसानों का नामांकन बढ़ाने के लिए प्रीमियम कम करने के लिए विभिन्न बीमा कंपनियों के साथ बैठकें की हैं।
  • किसान संगठन भी लम्पी स्किन रोग महामारी के मद्देनजर व्यापक पशुधन और फसल बीमा की मांग कर रहे हैं, ज्ञात हो कि इस महामारी के कारण दो लाख से अधिक मवेशियों की मौत हो गई हैं।
  • “लम्पी स्किन रोग” के बारे में अधिक जानकारी के लिए 06 अप्रैल 2023 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण लेख देखें।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)

  1. राष्ट्रीय बाघ गणना हर चार साल में एक बार आयोजित की जाती है।
  2. इसे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा राज्य के वन विभागों और भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (WPSI) के सहयोग से आयोजित किया जाता है।
  3. अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस का फोकस दुनिया की सात प्रमुख बिग कैट्स के संरक्षण पर होगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: राष्ट्रीय बाघ गणना हर चार साल में एक बार आयोजित की जाती है।
  • कथन 2 गलत है: बाघ सर्वेक्षण राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा राज्य के वन विभागों और भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से किया जाता है।
  • कथन 3 सही है: इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस मुख्य रूप से शेर, बाघ, चीता, जगुआर, तेंदुआ, हिम तेंदुए और प्यूमा जैसे दुनिया की सात प्रमुख बिग कैट्स की सुरक्षा पर केंद्रित है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘गुड फ्राइडे एग्रीमेंट’ का सर्वाधिक उपयुक्त वर्णन है? (स्तर – सरल)

(a) हिंसा को समाप्त करने और उत्तरी आयरलैंड में शांति स्थापित करने के लिए किया गया एक राजनीतिक समझौता।

(b) इज़राइल और कई अरब देशों के बीच शांति समझौतों की एक शृंखला।

(c) अर्मेनिया, अजरबैजान और रूस द्वारा नागोर्नो-काराबाख के विवादित परिक्षेत्र पर सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक समझौते पर किया गया हस्ताक्षर।

(d) साइप्रस समस्या की समाप्ति हेतु ग्रीस, तुर्की और ब्रिटेन के बीच औपचारिक शांति वार्ता।

उत्तर: a

व्याख्या:

  • गुड फ्राइडे एग्रीमेंट, जिसे बेलफास्ट एग्रीमेंट (Belfast Agreement) के रूप में भी जाना जाता है, 1998 में उत्तरी आयरलैंड में 30 साल के हिंसक संघर्ष को समाप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक राजनीतिक समझौता है, जिसे “द ट्रबल” (the Troubles) के रूप में जाना जाता है।
    • उत्तरी आयरलैंड वर्ष 1921 में बना था और जब शेष आयरलैंड एक स्वतंत्र राज्य बन गया था तब भी वह UK का हिस्सा बना रहा।
    • इसने आबादी में यूनियनिस्ट जो उत्तरी आयरलैंड को UK के एक हिस्से के रूप में ही देखना चाहते थे, और राष्ट्रवादी, जो इसे आयरलैंड गणराज्य का हिस्सा बनाना चाहते थे, के बीच विभाजन पैदा कर दिया।
  • गुड फ्राइडे समझौता समुदायों के बीच सहयोग के विचार पर आधारित है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए: (स्तर – कठिन)

अनुच्छेद राज्यों के लिए विशेष प्रावधान

  1. 371-A नगालैंड
  2. 371-B मणिपुर
  3. 371-F सिक्किम
  4. 371-J कर्नाटक

उपर्युक्त युग्मों में से कितने सही सुमेलित हैं?

(a) केवल एक युग्म

(b) केवल दो युग्म

(c) केवल तीन युग्म

(d) सभी चारों युग्म

उत्तर: c

व्याख्या:

  • युग्म 1 सही सुमेलित है: अनुच्छेद 371-A में नागालैंड के लिए विशेष प्रावधान किये गए है।
  • युग्म 2 सुमेलित नहीं है: अनुच्छेद 371-B के तहत,राष्ट्रपति को असम विधान सभा की एक समिति के निर्माण का अधिकार प्रदान किया गया है जिसमें राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्य और ऐसे अन्य सदस्य शामिल होते हैं जिन्हें वह निर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • युग्म 3 सही सुमेलित है: 1975 के 36वें संविधान संशोधन अधिनियम ने सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बना दिया हैं। इसमें सिक्किम के संबंध में विशेष प्रावधान वाले एक नए अनुच्छेद 371-F को शामिल किया गया।
  • युग्म 4 सही सुमेलित है: अनुच्छेद 371-J को वर्ष 2012 के 98वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से जोड़ा गया था और यह राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह कर्नाटक के राज्यपाल को कुछ विशेष जिम्मेदारियां सोंपें।

प्रश्न 4. भारत में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – कठिन)

  1. भारत में PVTGs की पहचान सबसे पहले ढेबर आयोग द्वारा की गई थी।
  2. भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में PVTGs की संख्या सर्वाधिक है।
  3. बिरहोर, लोढ़ा और टोटो पश्चिम बंगाल राज्य से संबंधित PVTGs हैं।

विकल्प:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: वर्ष 1973 में, ढेबर आयोग ने आदिम जनजातीय समूहों (Primitive Tribal Groups (PTGs)) को एक अलग श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया, जो जनजातीय समूहों के बीच कम विकसित समूह थे।
    • वर्ष 2006 में, केंद्र सरकार ने इसका नाम बदलकर विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Groups (PVTGs)) कर दिया था।
  • कथन 2 गलत है: भारत के राज्य ओडिशा में पीवीटीजी की संख्या सबसे अधिक है।
  • कथन 3 सही है: पश्चिम बंगाल में, लोढ़ा, बिरहोर और टोटो नामक तीन जनजातियों को PVTGs घोषित किया गया है।

प्रश्न 5. गांधी के निम्नलिखित अनुयायियों में से कौन पेशे से शिक्षक थे? (PYQ (2008)) (स्तर – मध्यम)

(a) ए.एन. सिन्हा

(b) ब्रज किशोर प्रसाद

(c) जेबी कृपलानी

(d) राजेंद्र प्रसाद

उत्तर: c

व्याख्या:

  • पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद, जीवतराम भगवानदास कृपलानी ने दक्षिण अफ्रीका से गांधी की वापसी के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने से पहले एक स्कूली शिक्षक के रूप में काम किया था। वे अंग्रेजी और इतिहास के प्रोफेसर थे।
  • 1920 से 1927 तक, उन्होंने गुजरात विद्यापीठ के प्रिंसिपल के रूप में काम किया जो गांधी द्वारा स्थापित एक शैक्षणिक संस्थान था। वहाँ, उन्होंने “आचार्य” की उपाधि अर्जित की।
  • नवंबर 1946 में, उन्हें कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया और महत्वपूर्ण विभाजन अवधि और सत्ता के हस्तांतरण के दौरान उन्होंने पार्टी का सफलता पूर्वक संचालन किया एवं पार्टी को विशिष्ट स्थिति में ले गए।
  • कृपलानी सदन के पटल पर अविश्वास प्रस्ताव पेश करने वाले पहले व्यक्ति थे। यह 1963 में चीन-भारतीय युद्ध के तुरंत बाद हुआ था।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. द्वितीय अंतरिक्ष युग क्या है? भारत किस प्रकार इस युग की क्षमताओं का उपयोग कर सकता है? (150 शब्द, 10 अंक) [जीएस-3; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी]

प्रश्न 2. AI और मशीन लर्निंग किस प्रकार बेहतर और स्मार्ट कानून का निर्माण कर सकते हैं? (150 शब्द, 10 अंक) [जीएस-3; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी]