13 फरवरी 2023 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: राजव्यवस्था:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
राजव्यवस्था:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
टिपरा मोथा (TIPRA Motha) द्वारा ग्रेटर टिपरालैंड की मांग:
राजव्यवस्था:
विषय: केंद्र-राज्य संबंध, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे/विषय एवं चुनौतियां।
प्रारंभिक परीक्षा: संविधान के अनुच्छेद 2 और 3, त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC)
मुख्य परीक्षा: ग्रेटर टिपरालैंड के निर्माण और उससे संबंधित मुद्दे।
प्रसंग:
- त्रिपुरा में टिपरा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन ( Tipraha Indigenous Progressive Regional Alliance (TIPRA)) मोथा नामक एक नई राजनीतिक पार्टी ने “ग्रेटर टिपरालैंड” के निर्माण की मांग की है।
ग्रेटर टिपरालैंड:
- टिपरा मोथा की प्रमुख मांग “ग्रेटर टिपरालैंड” बनाना है, यानी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 और 3 के तहत त्रिपुरा की 19 स्वदेशी जनजातियों के लिए एक नए राज्य का निर्माण करना है।
- कहा जाता है कि “ग्रेटर टिपरालैंड” के निर्माण की मांग वर्ष 2009 में शुरू हुई थी।
- हालांकि, पहले की मांग तत्कालीन त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) क्षेत्र से त्रिपुरा के जनजातीय समुदायों के लिए एक अलग राज्य के निर्माण की थी, जबकि वर्तमान की मांग TTAADC क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों को शामिल करने की है यानी 36 और नए गांवों को शामिल करने की जहां संबंधित जनजातीय आबादी के लगभग 20% से 36% लोग निवास करते हैं।
- राज्य में कई आदिवासी समुदायों और स्वदेशी राजनीतिक दलों ने अब इस संबंध में टिपरा मोथा से हाथ मिलाया है।
संविधान के अनुच्छेद 2:
- भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद देश में नए राज्यों के प्रवेश या निर्माण से संबंधित है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 के अनुसार संसद एक कानून के माध्यम से नए राज्यों को संघ में ऐसे नियमों और शर्तों पर प्रवेश या स्थापित कर सकती है, जैसा वह उचित समझे।
संविधान का अनुच्छेद 3:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 देश में नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन से संबंधित है।
- इस अनुच्छेद के अनुसार, संसद एक कानून के माध्यम निम्नलिखित कार्य कर सकती है:
- किसी राज्य से उसके किसी क्षेत्र को अलग करके या दो या दो से अधिक राज्यों या राज्यों के कुछ हिस्सों को मिलाकर या किसी राज्य के किसी हिस्से में किसी भी क्षेत्र को मिलाकर एक नया राज्य बना सकती है।
- किसी भी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ा सकती है।
- किसी भी राज्य के क्षेत्र को कम कर सकती है।
- किसी भी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।
- किसी भी राज्य का नाम बदल सकती है।
त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (Tripura Tribal Areas Autonomous District Council (TTAADC) ):
- TTAADC की स्थापना वर्ष 1985 में संविधान की छठी अनुसूची के तहत उल्लिखित प्रावधानों के आधार पर की गई थी।
- TTAADC की स्थापना इस राज्य के स्वदेशी समुदायों के विकास एवं अधिकारों तथा सांस्कृतिक विरासत को सुनिश्चित करने के लिए की गई थी।
- TTAADC को विधायी एवं कार्यकारी दोनों ही प्रकार की शक्तियाँ प्रदान की गई है।
- TTAADC त्रिपुरा के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 66% कवर करता है।
- TTAADC में 30 सदस्य होते हैं जिनमें से 28 निर्वाचित होते हैं और दो सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं।
- संविधान की छठी अनुसूची से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:Sixth Schedule of the Constitution
ग्रेटर टिपरालैंड की मांग की उत्पत्ति के प्रमुख कारण:
- वर्ष 1941 की जनगणना के अनुसार गैर-आदिवासी आबादी के संबंध में त्रिपुरा राज्य में जनजातीय आबादी का अनुपात लगभग 50:50 था।
- हालाँकि, 1951 की जनगणना तक, पूर्वी पाकिस्तान (तत्कालीन बांग्लादेश) से शरणार्थियों की भारी आमद के कारण राज्य में जनजातीय आबादी का अनुपात लगभग 37% तक गिर गया था।
- एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1950 से 1952 के बीच लगभग 1.5 लाख शरणार्थियों ने त्रिपुरा में प्रवेश किया था।
- शरणार्थियों की इस बड़े पैमाने पर आमद से इस राज्य की जनसांख्यिकी में बदलाव आया जिससे अंततः राज्य में आदिवासी और गैर-आदिवासी आबादी के बीच संघर्ष हुआ।
- आदिवासियों और गैर-आदिवासी समूहों के बीच यह संघर्ष 1980 में बढ़ गया और एक सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया।
- इस समय के दौरान एक अलग राज्य की मांग को संप्रभुता और स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए एक आंदोलन के रूप में देखा गया।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
मुख्य परीक्षा: भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग की बदलती गतिशीलता।
प्रसंग:
- द्विपक्षीय अंतरिक्ष सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए जनवरी 2023 में भारत-अमेरिका समूह की बैठक हुई।
भूमिका:
- भारत-अमेरिका सिविल स्पेस ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप (CSJWG) की आठवीं बैठक 30-31 जनवरी को वाशिंगटन DC में हुई थी।
- इसकी सह-अध्यक्षता संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और भारत के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रतिनिधियों ने की।
- अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल में डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट, नासा, डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी, फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन, यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे और नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कॉमर्स के अधिकारी शामिल थे।
- भारतीय प्रतिनिधिमंडल में इसरो, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल थे।
- CSJWG चर्चाओं में पृथ्वी और अंतरिक्ष विज्ञान के साथ-साथ मानव अंतरिक्ष अन्वेषण, वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणाली, अंतरिक्ष उड़ान सुरक्षा और अंतरिक्ष स्थितिजन्य (Situational) जागरूकता, और वाणिज्यिक अंतरिक्ष के लिए नीतियां शामिल हैं।
- प्रतिभागियों ने बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (COPUOS) द्वारा विकसित दिशानिर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं के कार्यान्वयन पर भी विचार किया।
भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग का महत्व:
- संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच अंतरिक्ष में मजबूत द्विपक्षीय सहयोग है,नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) मिशन को 2024 में लॉन्च करने की योजना है। इस मिशन के तहत पानी, जंगल और कृषि जैसे संसाधनों की निगरानी के लिए दो अलग-अलग रडार आवृत्तियों का उपयोग करते हुए व्यवस्थित रूप से पृथ्वी का मानचित्रण करने की उम्मीद है।
- यह मिशन पारिस्थितिकी तंत्र, पृथ्वी की सतह, प्राकृतिक खतरों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और क्रायोस्फीयर से संबंधित महत्वपूर्ण पृथ्वी विज्ञान डेटा प्रदान करेगा।
- दोनों देश मानव अंतरिक्ष अन्वेषण और वाणिज्यिक अंतरिक्ष साझेदारी सहित ‘महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर पहल’ के तहत कई क्षेत्रों में अंतरिक्ष सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमत हुए हैं।
- नवंबर 2022 में, यू.एस. ने चंद्रमा की ओर ओरियन अंतरिक्ष यान को लॉन्च करके और इसे सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर अपना आर्टेमिस कार्यक्रम (Artemis programme) शुरू किया। यह 2024 में भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन (गगनयान/Gaganyaan) के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
- दोनों देशों ने निजी अंतरिक्ष क्षेत्र को आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। साथ में, ये प्रयास अगले दशक में अमेरिकी और भारतीय अंतरिक्ष नीतियों और कार्यक्रमों को आकार देंगे और प्रभावित करेंगे।
- भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक उन्नत राष्ट्र के साथ सहयोग करके प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता प्राप्त कर सकता है।
बाधाएं:
- कुछ संरचनात्मक कारक उस सीमा को सीमित करते हैं जिस तक अमेरिका और भारत अल्पावधि में सहयोग कर सकते हैं। भले ही दोनों देशों का इरादा सहयोग करने का है,लेकिन संरचनात्मक कारक इस दीर्घकालिक सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए राजनयिक प्रोत्साहनों पर हावी हैं।
- विभिन्न हित
- बाह्य अंतरिक्ष में दोनों राष्ट्रों के हित अभी अलग हैं, जो की एक संरचनात्मक कारक है, अतः यह दीर्घकालिक भारत-यू.एस. अंतरिक्ष सहयोग को सीमित करता है।
- हालांकि, यू.एस. और उसके सहयोगी पृथ्वी की निचली कक्षा में क्षमताओं को बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हैं। इसकी दीर्घावधि में चंद्रमा पर अन्वेषण की दृढ़ महत्वाकांक्षा है।
- इस संबंध में, आर्टेमिस कार्यक्रम, आर्टेमिस समझौते और बाइडन प्रशासन की नेशनल सिसलुनर साइंस एंड टेक्नोलॉजी स्ट्रैटेजी पृथ्वी की कक्षाओं से परे अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं के आधार का निर्माण करती है।
- इस बीच, भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में पृथ्वी की कक्षाओं में और उसके नीचे देश की क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- इसरो वर्तमान में प्रत्येक वर्ष 10 से कम प्रक्षेपण करता है। गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम में लंबे समय तक अंतरिक्ष में भारत की मानवीय उपस्थिति को बनाए रखने की उम्मीद की जा रही है।
- भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता अपने उपग्रह और प्रक्षेपण क्षमताओं को पृथ्वी की कक्षाओं में पर्याप्त रूप से बढ़ाना और चीन जैसे अन्य अंतरिक्ष अन्वेषी देशों की बराबरी करना है।
- क्षमताओं में विषमता भारत-यू.एस. अंतरिक्ष सहयोग को सीमित करने वाला दूसरा संरचनात्मक कारक है।
- अमेरिका के पास अंतरिक्ष में पंजीकृत उपग्रहों की संख्या सबसे अधिक है। इसके पास वाणिज्यिक और राष्ट्रीय-सुरक्षा दोनों जरूरतों को पूरा करने वाले प्रक्षेपण वाहनों की एक श्रृंखला भी है।
- उदाहरण के लिए, निजी संस्था स्पेसएक्स, 2022 में रिकॉर्ड 61 प्रक्षेपण करने में कामयाब रही, जो किसी भी अन्य वाणिज्यिक इकाई या देश द्वारा किए गए प्रक्षेपणों की संख्या से कहीं अधिक है।
- अमेरिकी निजी क्षेत्र ने 2030 तक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को कई छोटे स्टेशनों से बदलने की चुनौती को भी स्वीकार कर लिया है।
- पृथ्वी की कक्षा में भारत के सिर्फ 60 से अधिक उपग्रह हैं और भारत सालाना दहाई अंकों में प्रक्षेपण नहीं कर सकता।
- भारत सरकार ने भी अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्र के लिए 2020 में खोला। चूंकि अमेरिका के पास पहले से ही अंतरिक्ष सहयोग के लिए भागीदारों का एक व्यापक नेटवर्क है, इसलिए भारत के साथ सहयोग करने के लिए उसके पास बहुत कम तकनीकी प्रोत्साहन हैं।
- असहमति: भारत-यू.एस. अंतरिक्ष सहयोग को सीमित करने वाला एक अन्य कारक यह है की दोनों देशों के बीच इस बात को लेकर असहमति है कि चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर अंतरिक्ष गतिविधियों को सर्वोत्तम तरीके से कैसे नियंत्रित किया जाए।
भावी कदम:
- शिक्षाविदों, निजी क्षेत्र और राज्य के नेतृत्व वाली संस्थाओं के बीच जुड़ाव को बनाए रखना दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक सहयोग को प्रेरित करेगा।
- निरंतर जुड़ाव NISAR मिशन जैसी अति विशिष्ट परियोजनाओं पर सहयोग का रूप भी ले सकता है।
- राज्य और निजी संस्थाओं के बीच साझेदारी दीर्घकालिक सहयोग के निर्माण में काफी हद तक मदद कर सकती है।
- हाल की बैठक में नासा के वाणिज्यिक लूनर पेलोड सर्विसेज (CLPS) कार्यक्रम के तहत सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी और भारतीय एयरोस्पेस कंपनियों के एक सम्मेलन पर सहमति बनी।
- भारत अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अमेरिकी निजी कंपनियों में प्रशिक्षण के लिए भेज सकता है जो भारत को रूस पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद कर सकता है जबकि इसरो भी अपना अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र बना रहा है।
- सरकार के स्वामित्व वाली न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड के नेतृत्व में अमेरिका में निजी कंपनियों को शामिल करने वाला कन्सॉर्टियम भारत के मानव अंतरिक्ष यान कार्यक्रम में तेजी ला सकता है और अमेरिका को पृथ्वी की कक्षाओं में भारतीय हितों को समायोजित करने का अवसर दे सकता है।
सारांश:
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भारत-अमेरिका संबंधों पर अधिक जानकारी के लिए: India-US relations
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
संवैधानिक नैतिकता:
राजव्यवस्था:
विषय: भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधान।
मुख्य परीक्षा: व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक नैतिकता का महत्व।
प्रसंग:
- दाऊदी बोहरा की प्रथा के खिलाफ याचिका पर एक बड़ी पीठ सुनवाई करेगी।
पृष्ठभूमि:
- बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ द एक्सकम्यूनिकेशन अधिनियम, 1949 ने धार्मिक समुदायों को एक समूह की सदस्यता से व्यक्तियों को निष्कासित करने से रोक दिया है।
- बहिष्कार की प्रथा कुछ समुदायों में प्रचलित थी और अधिनियम की धारा 2 में निहित “समुदाय” शब्द की परिभाषा में दाऊदी बोहरा के धार्मिक संप्रदाय शामिल थे।
- 1962 के सरदार सैयदना ताहेर सैफुद्दीन बनाम द स्टेट ऑफ बॉम्बे मामले में, याचिकाकर्ता, जो दाऊदी बोहरा समुदाय के धार्मिक प्रमुख थे, ने इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों (fundamental rights) का उल्लंघन करता है।
- उन्होंने दावा किया कि उन्होंने न केवल समुदाय की संपत्तियों के ट्रस्टी के रूप में सेवा की, बल्कि उन्हें अपनी पसंद के किसी भी सदस्य को संप्रदाय से बहिष्कृत करने की शक्ति भी प्रदान की गई थी। उनके विश्वास में, यह शक्ति दाऊदी बोहराओं के धार्मिक स्वतंत्रता के सामूहिक अधिकार का अभिन्न अंग थी।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 4:1 के फैसले के माध्यम से कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
- इसने माना कि बहिष्कृत करने की शक्ति समूह की आस्था के लिए इतनी आवश्यक थी कि सामाजिक कल्याण के नाम पर एक कानून को किसी धर्म में उसके अस्तित्व से बाहर सुधार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
- यह फैसला लंबे समय से आलोचना का विषय रहा है।
फैसले पर पुनर्विचार:
- सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने दाउदी बोहरा समुदाय के सदस्यों को बहिष्कृत करने के लिए इस समुदाय के नेताओं के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक श्रृंखला को नौ न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ को भेजा है।
- न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ इस सवाल का समाधान कर रही थी कि क्या दाऊदी बोहरा समुदाय में बहिष्कार की प्रथा महाराष्ट्र का सामाजिक बहिष्कार से लोगों का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2016 (Maharashtra Protection of People from Social Boycott (Prevention, Prohibition and Redressal) Act of 2016) के लागू होने के बावजूद “संरक्षित प्रथा” के रूप में जारी रह सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि कम से कम दो कारणों से इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
- पहला, मूल निर्णय यह जांच करने में विफल रहा था कि क्या धार्मिक संप्रदायों के अधिकारों को अन्य मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए, विशेष रूप से इसके व्यक्तिगत सदस्यों के अधिकारों के साथ समान संरक्षण और प्रतिष्ठा का व्यवहार किया जाना चाहिए।
- एक व्यक्ति जिसे बहिष्कृत किया गया था, उसे सामुदायिक मस्जिद और कब्रिस्तान का उपयोग करने का अधिकार नहीं होगा, और व्यावहारिक रूप से उसे बहिष्कृत माना जाएगा।
- दूसरा, 1962 के फैसले के बाद से, भारत में कानून उस बिंदु तक विकसित हो गया है जहां बहिष्कार के किसी भी कार्य को संवैधानिक नैतिकता के साथ सुसंगत होना चाहिए।
- पहला, मूल निर्णय यह जांच करने में विफल रहा था कि क्या धार्मिक संप्रदायों के अधिकारों को अन्य मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए, विशेष रूप से इसके व्यक्तिगत सदस्यों के अधिकारों के साथ समान संरक्षण और प्रतिष्ठा का व्यवहार किया जाना चाहिए।
- सरदार सैयदना के मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजते समय, न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया कि नैतिकता को आज “संवैधानिक नैतिकता” (“constitutional morality”) के रूप में समझा जाना चाहिए। संविधान को बनाए रखने वाले आवश्यक सिद्धांत, जैसे कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व, को इसमें शामिल किया जाना चाहिए।
- इसलिए, बहिष्कृत व्यक्ति पर पड़ने वाले प्रभावों और परिणामों का न्यायसंगत संवैधानिक अधिकारों के संदर्भ में विचार करने की आवश्यकता है।
भारत में समूह अधिकार बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता:
- धर्म और समाज के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण, जो विशेष रूप से भारत में अति स्पष्ट है, सांप्रदायिक अधिकार आम तौर पर सामान्य कानूनों और समूह के सदस्यों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता दोनों के साथ टकराते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के, शिरूर मठ मामले में कहा था कि धर्म के केवल वे पहलू जो आस्था के लिए “अनिवार्य” हैं, संवैधानिक संरक्षण के योग्य हैं।
- ‘आवश्यक प्रथाएं’ इस बात पर निर्भर करेंगी कि पंथ को मानने वाले उस धर्म के अभिन्न अंग के रूप में क्या मानते हैं।
- बाद में, अदालत ने, फैसलों की एक श्रृंखला के माध्यम से, धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण अपनाया और यह निर्धारित करने के लिए धार्मिक शास्त्रों की व्याख्या की कि वास्तव में, कौन सी प्रथाएं आस्था के केंद्र में थीं और संवैधानिक संरक्षण के लायक थीं।
- हालांकि, इस दृष्टिकोण ने धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी के पीछे के प्राथमिक तर्क को कमजोर कर दिया: कि धार्मिक समूहों के सदस्यों को अपने लिए यह निर्धारित करने के लिए एक नैतिक स्वायत्तता मिलनी चाहिए कि वे अपने जीवन का नेतृत्व कैसे करें।
- एक कानून जो व्यक्ति की स्वायत्तता पर समूह की स्वायत्तता का समर्थन करता है, समूह के कम शक्तिशाली सदस्यों अर्थात पारंपरिक रूप से कम महत्वपूर्ण सदस्यों जैसे महिलाएं, बच्चे और यौन अल्पसंख्यक द्वारा प्रस्तावित विचारों पर शक्तिशाली लोगों द्वारा प्रस्तावित संघ के दृष्टिकोण को महत्व देता है, उसके हानिकारक प्रभाव होंगे।
- यदि धार्मिक मामलों पर समूहों को दिए गए अधिकार को व्यक्तिगत सदस्यों को प्रदान किए गए अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाती है तो इससे संविधान के मौलिक सिद्धांत कमज़ोर हो जाएँगे।
कौन हैं दाऊदी बोहरा?
- दाऊदी बोहरा शिया मुसलमान हैं जिनके नेता को अल-दाई-अल-मुतलक के नाम से जाना जाता है। समुदाय के सदस्यों के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 10 लाख दाऊदी बोहरा फैले हुए हैं।
- 400 से अधिक वर्षों से, समुदाय का नेता भारत में रह रहे हैं, जिसमें वर्तमान और 53 वें नेता, परम पावन डॉ सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन शामिल हैं।
- समुदाय के नेता को सदस्यों द्वारा समुदाय के सदस्यों को बहिष्कृत करने के अधिकार प्राप्त व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस प्रथा को दाऊदी बोहरा आस्था के लिए आवश्यक बताया गया था।
- व्यावहारिक रूप से, बहिष्कार का अर्थ समुदाय से संबंधित एक मस्जिद या समुदाय को समर्पित एक कब्र तक पहुंचने की अनुमति नहीं होना है।
- अतीत में समुदाय के जिन सदस्यों ने बहिष्करण का सामना किया है, उनमें वे लोग शामिल हैं जिन्होंने नेतृत्व के पद के लिए चुनाव लड़ा था।
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
1.एयरो इंडिया-23:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: रक्षा प्रौद्योगिकी।
प्रारंभिक परीक्षा: एयरो इंडिया कार्यक्रम से संबंधित जानकारी।
प्रसंग:
- एयरो इंडिया के 2023 संस्करण में 98 देशों और 809 से अधिक कंपनियों ने भागीदारी की है।
एयरो इंडिया (Aero India):
- एयरो इंडिया 1996 में शुरू किया गया एयरोस्पेस, रक्षा और नागरिक उड्डयन पर एक द्विवार्षिक एयर शो है।
- एयरो इंडिया प्रदर्शनी आमतौर पर येलहंका वायु सेना स्टेशन, बेंगलुरु में आयोजित की जाती है।
- एयरो इंडिया कार्यक्रम का आयोजन रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग के अधीन कार्यरत रक्षा प्रदर्शनी संगठन (Defence Exhibition Organisation (DEO)) द्वारा किया जाता है।
- इस आयोजन को “एशिया का सबसे बड़ा एयर शो” कहा जाता है।
- इस द्विवार्षिक कार्यक्रम में विभिन्न व्यापारिक नेताओं, विदेशी निर्णयकर्ताओं, उद्योग प्रमुखों, पायलटों और तकनीशियनों ने भाग लिया।
- एयरो इंडिया उद्योग के पेशेवरों को बाजार की जानकारी हासिल करने, नए विकास की घोषणा करने और नए उत्पादों का प्रदर्शन करने के लिए एक मंच भी प्रदान करता है।
- एयरो इंडिया-23 एयरो इंडिया का 14वां संस्करण है।
- एयरो इंडिया-2023 का विषय “द रनवे टू ए बिलियन अपॉर्चुनिटीज” है।
- एयरो इंडिया 2023 भारत की विनिर्माण क्षमताओं और आत्मनिर्भर भारत को साकार करने की दिशा में हुई प्रगति को प्रदर्शित करेगा।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- केवल नाम का 4G: भारत में ‘ग्रे स्पॉट्स’ में डेटा रुक-रुककर प्राप्त होता है:
- भारत में सरकार ने न्यूनतम ब्रॉडबैंड स्पीड की परिभाषा को 512 Kbps से संशोधित कर 2 Mbps कर दिया है।
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के अनुसार, सितंबर 2022 से भारत में तीन मुख्य दूरसंचार प्रदाता अपने ग्राहक आधार के लगभग 95% को “ब्रॉडबैंड” ग्राहकों के रूप में वर्गीकृत करते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें न्यूनतम 2 Mbps की इंटरनेट गति का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए।
- इन दो श्रेणियों के अलावा छोटी शहरी बस्तियाँ और कस्बे हैं जो कमजोर कनेक्टिविटी के कारण प्रभावित हैं।
- व्हाईट स्पॉट वे स्थान होते हैं जिनमें सेलुलर कनेक्टिविटी नहीं होती है।
- ग्रे स्पॉट वे क्षेत्र हैं जो आपस में जुड़े होते हैं, लेकिन हो सकता है कि उनकी पहुंच से उपयोगकर्ताओं को बाहर पर्याप्त लाभ न मिले।
- इन कस्बों में उपयोगकर्ता, 4G नेटवर्क टावर होने के बावजूद, मुख्य रूप से टावरों की कमी के कारण प्रयोग करने योग्य इंटरनेट गति प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं, अर्थात ये टावर उपयोगकर्ताओं की अधिक संख्या के कारण उच्च ट्रैफिक को संभाल नहीं पाते हैं।
- ओकला (Ookla) द्वारा दिसंबर 2022 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत में माध्य (Mean) वायरलेस इंटरनेट स्पीड 108.86 Mbps थी, जबकि माध्यिका (Median) गति सिर्फ 25.29 Mbps थी।
- मीन/माध्य स्पीड (Mean Speed): यह एक औसत उपयोगकर्ता को आमतौर पर मिलने वाली इंटरनेट स्पीड को दर्शाता है।
- मिडियन/माध्यिका स्पीड (Median Speed): यह सबसे तेज़ और सबसे धीमे कनेक्शन का मध्य बिंदु है।
- माध्य और माध्यिका के बीच इतना बड़ा अंतर यह दर्शाता है कि इंटरनेट की पहुंच की गुणवत्ता में भारी असमानता है।
- भारत-अमेरिका के मानव रहित हवाई वाहन का उड़ान-परीक्षण किया जाएगा:
- एयरो इंडिया 2023 में भाग ले रहे अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने कहा है कि भारत और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एयर-लॉन्च मानवरहित हवाई वाहन (Air-Launched Unmanned Aerial Vehicle (ALUAV)) के एक प्रोटोटाइप का जल्द ही उड़ान परीक्षण किया जाएगा।
- अमेरिकी सरकार के अधिकारी ने कहा है कि ALUAV की उड़ान परीक्षण 2023 के सितंबर-नवंबर में शुरू होने की उम्मीद है।
- यह उड़ान परीक्षण उत्तरी भारत और अमेरिका की सीमा पर होगा।
- भारत और अमेरिका ने रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल ( Defence Technology and Trade Initiative (DTTI)) के एक भाग के रूप में 2021 में ALUAV के लिए परियोजना व्यवस्था (PA) पर हस्ताक्षर किए थे।
- बेंगलुरु स्थित वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (ADE) और अमेरिकी वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला में एयरोस्पेस सिस्टम्स निदेशालय, भारत और अमेरिका की वायु सेना के साथ परियोजना के निष्पादन में शामिल मुख्य संगठन हैं।
- रिपोर्ट्स के मुताबिक, ALUAV को C130J एयरक्राफ्ट से लॉन्च किया जाएगा।
- FATF का मूल्यांकन निकट आने पर केंद्रीय एजेंसियां ढांचे को मजबूत करने के लिए कमर कस रही हैं:
- आपसी मूल्यांकन के चौथे दौर में भारत के आगामी वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force (FATF)) के आकलन की पृष्ठभूमि के संदर्भ में, देश की विभिन्न सरकारी एजेंसियाँ धन शोधन रोधी और आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण ढांचे को मजबूत करने के लिए अपने कार्यों में तेजी लाई है।
- कोविड-19 महामारी के कारण वित्तीय कार्रवाई कार्य बल ने भारत के पारस्परिक मूल्यांकन को स्थगित कर दिया गया था और अब नवंबर 2023 में इसके ऑनसाइट मूल्यांकन की संभावना है।
- सरकार ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति के विशेष सम्मेलन, नो मनी फॉर टेरर, और यूएनएससी द्वारा वैश्विक आतंकवाद-रोधी व्यवस्था की चुनौतियों पर ब्रीफिंग जैसे विभिन्न सम्मेलनों का आयोजन किया है।
पारस्परिक मूल्यांकन के दायरे में निम्नलिखित पहलू शामिल हैं:
- तकनीकी अनुपालन में, यह आकलन किया जाता है कि क्या आवश्यक कानूनी ढांचा और अन्य संबंधित उपाय लागू हैं और क्या सहायक संस्थागत ढांचा मौजूद है।
- प्रभावशीलता, यह निर्धारित करती है कि क्या सिस्टम परिणामों के परिभाषित सेट को प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – कठिन)
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 50 कार्यपालिका को न्यायपालिका से पृथक करने की बात करता है।
- न्यायमूर्ती एस अब्दुल नज़ीर किसी राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाले सर्वोच्च न्यायालय के पहले सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: भारत के संविधान का अनुच्छेद 50 कार्यपालिका को न्यायपालिका से पृथक करने की बात करता है।
- अनुच्छेद 50 के अनुसार, राज्य अपनी सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए कदम उठाएगा।
- कथन 2 गलत है: न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर से पहले, कम से कम तीन अन्य सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भारत के राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया गया है, जिसमें भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सतशिवम, पूर्व न्यायमूर्ति एम फातिमा बीवी और पूर्व न्यायमूर्ति सैय्यद फजल अली शामिल हैं।
प्रश्न 2. प्रमुख और गौण खनिजों के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?(स्तर – कठिन)
- प्रमुख-गौण वर्गीकरण इन खनिजों की मात्रा/उपलब्धता के आधार पर किया गया है।
- गौण खनिजों से संबंधित नीति और कानून केंद्र सरकार के अधीन खान मंत्रालय द्वारा देखे जाते हैं।
- प्रमुख खनिजों को खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम के तहत परिभाषित किया गया है।
विकल्प:
(a) केवल 1
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: प्रमुख-गौण वर्गीकरण का इन खनिजों की मात्रा/उपलब्धता से कोई लेना-देना नहीं है।
- वर्गीकरण उत्पादन के स्तर, मशीनीकरण के स्तर, निर्यात और आयात आदि के बजाय उनके अंतिम उपयोग पर आधारित है।
- कथन 2 गलत है: गौण खनिजों से संबंधित नीति और कानून बनाने की शक्ति पूरी तरह से राज्य सरकारों को सौंपी गई है।
- हालांकि, प्रमुख खनिजों से संबंधित नीति और कानून भारत सरकार के खान मंत्रालय द्वारा देखे जाते हैं।
- कथन 3 गलत है: खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (MMDR अधिनियम) के तहत उल्लिखित “प्रमुख खनिजों” की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है।
प्रश्न 3. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – मध्यम)
- इसकी गणना और प्रकाशन हर महीने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार के कार्यालय द्वारा किया जाता है।
- आईआईपी के लिए आधार वर्ष 2015-2016 है।
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में शामिल कुल वस्तुओं में आठ प्रमुख उद्योगों का भारांश 40.27 प्रतिशत है।
- आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक में उच्चतम भारांक वर्तमान में रिफाइनरी उत्पाद उद्योग का है।
विकल्प:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 1, 3 और 4
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: IIP सूचकांक की गणना और प्रकाशन केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (CSO) द्वारा मासिक आधार पर किया जाता है।
- कथन 2 गलत है: IIP के लिए वर्तमान आधार वर्ष 2011 – 12 है।
- कथन 3 सही है: आठ प्रमुख उद्योग जिनमें कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और बिजली शामिल हैं, में IIP सूचकांक में शामिल वस्तुओं के भारांश का 40.27 प्रतिशत शामिल है।
- कथन 4 सही है: आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक में उच्चतम भारांक वर्तमान में रिफाइनरी उत्पाद उद्योग का है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:(स्तर – मध्यम)
- यह सरकार, नियोक्ता और श्रमिक प्रतिनिधियों के साथ एकमात्र त्रिपक्षीय संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है।
- इसका निर्माण 1919 में प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाली वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में किया गया था।
- इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है।
उपर्युक्त कथन सर्वोत्तम वर्णन करते हैं:
(a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
(c) अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
उत्तर: a
व्याख्या:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) सरकार, नियोक्ता और श्रमिक प्रतिनिधियों के साथ एकमात्र त्रिपक्षीय संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है।
- ILO की स्थापना 1919 में प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाली वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में, इस विश्वास को प्रतिबिंबित करने के लिए किया गया था कि सार्वभौमिक और स्थायी शांति तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
- ILO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है।
प्रश्न 5. भारत के संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (PYQ (2007)) (स्तर – मध्यम)
- जारी की गई वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा दो महीने की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगी, जब तक कि उस अवधि की समाप्ति से पहले इसे संसद के दोनों सदनों के संकल्प द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता है।
- राष्ट्रपति, उस अवधि के दौरान, जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को छोड़कर, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतनों और भत्तों में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने वाली उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों (अर्थात, लोकसभा और राज्यसभा) द्वारा इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर अनुमोदित किया जाना चाहिए।
- कथन 2 गलत है: राष्ट्रपति, उस अवधि के दौरान, जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश शामिल हैं, के वेतनों और भत्तों में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. ‘व्यक्तियों के अधिकार धार्मिक समूहों को प्राप्त अधिकारों के मूल सिद्धांतों का निर्माण करते हैं’। सर्वोच्च न्यायालय के प्रासंगिक निर्णयों के साथ कथन का विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (जीएस II – राजव्यवस्था)
प्रश्न 2. ‘भारत-अमेरिकी अंतरिक्ष संबंधों को व्यावहारिकता पर आधारित पुनर्गठित करने और उन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है’। उपरोक्त संदर्भ में, भारत-अमेरिका अंतरिक्ष संबंधों में मुद्दों और भावी कदम चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (जीएस II – अंतर्राष्ट्रीय संबंध)