13 मार्च 2023 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: शासन:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: राजव्यवस्था:
सामाजिक न्याय:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
ESG नियमों का विकास:
शासन:
विषय: सरकार की नीतियां और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप।
मुख्य परीक्षा: ESG से संबंधित विवरण, ESG और CSR कानूनों के बीच अंतर, भारत में ESG कानूनों की आवश्यकता और इसके निहितार्थ।
प्रसंग:
- हाल के वर्षों में, दुनिया भर के लोगों ने महसूस किया है कि व्यवसायों को न केवल पारंपरिक आर्थिक मेट्रिक्स के आधार पर बल्कि उनके पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance (ESG)) प्रभावों के संदर्भ में भी मापा जाना चाहिए।
ESG बनाम CSR:
- कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) एक अवधारणा को संदर्भित करता है जो बताती है कि समाज के भीतर काम करने वाली एक आधुनिक कंपनी की समाज के प्रति यह जवाबदेही है कि वह समाज के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय विकास यानी समाज के समग्र कल्याण के लिए योगदान करे।
- भारत में वर्ष 2013 के कंपनी अधिनियम (Companies Act of 2013) में एवं उसमें वर्ष 2014 एवं 2021 में किये गए संशोधनों के माध्यम से पहले से ही एक कुशल CSR नीति अस्तित्व में है।
- ये संशोधन ₹500 करोड़ की निवल संपत्ति या ₹1,000 करोड़ के न्यूनतम कारोबार या एक वित्तीय वर्ष में ₹5 करोड़ का शुद्ध लाभ अर्जित करने वाली कंपनियों के लिए CSR गतिविधियों पर अगले तीन वर्षों में अपने शुद्ध लाभ का न्यूनतम 2% खर्च करना अनिवार्य करते/बनाते हैं।
- CSR गतिविधियों के रूप में अर्हता प्राप्त करने वाली गतिविधियां व्यापक हैं और इसमें ऐतिहासिक स्मारकों की सुरक्षा का समर्थन करने और सुरक्षित पेयजल को बढ़ावा देने के प्रयास शामिल हैं।
- जबकि, पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) विनियमों में यह अनिवार्य है कि कंपनियां पर्यावरण पर उनके प्रभाव, सामाजिक मुद्दों के प्रति प्रतिबद्धता और उनके कॉर्पोरेट प्रशासन की सुदृढ़ता को ध्यान में रखें।
- प्रक्रिया और प्रभाव में CSR नीति की तुलना में ESG नियम अलग हैं।
- उदाहरण: यूके का आधुनिक दासता अधिनियम यूके में कारोबार करने वाली और 36 मिलियन पाउंड से अधिक की वार्षिक बिक्री वाली कंपनियों के लिए यह अनिवार्य करता है कि वे निम्नलिखित के लिए उनके द्वारा किए गए प्रयासों को सार्वजनिक रूप से प्रकट करें:
- अपनी आपूर्ति श्रृंखला में मानव तस्करी, बाल श्रम और ऋण दासता के जोखिमों का मुकाबला करने के लिए किए गए प्रयास।
- आंतरिक जवाबदेही तंत्र का गठन।
- आपूर्तिकर्ता अनुपालन का विश्लेषण और मूल्यांकन।
- ऐसे मुद्दों पर आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधकों को प्रशिक्षण देना।
चित्र स्रोत: The World Economic Forum
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) से संबंधित अधिक जनकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Corporate Social Responsibility (CSR)
भारत में ESG विनियमों की प्रासंगिकता:
- वर्तमान में भारत में पर्यावरण, सामाजिक और शासन के पहलुओं और कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं को नियंत्रित करने वाले विभिन्न श्रम संहिताओं और विनियमों के बारे में कई कानून और निकाय अस्तित्व में हैं।
- महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा उपायों को विस्तारित करने वाले ऐसे कानूनों, विनियमों और निकायों के बावजूद, अन्य देशों में देखे गए ESG विनियमों के समान निगरानी, परिमाणीकरण और प्रकटीकरण पर जोर देने वाले दिशानिर्देशों को स्थापित करने के प्रयासों की आवश्यकता है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India (SEBI)) ने निवेश में वृद्धि और ESG जोखिमों के बारे में जानकारी के लिए निवेशकों की मांग को ध्यान में रखते हुए अपनी वार्षिक व्यावसायिक उत्तरदायित्व और स्थिरता रिपोर्ट (BRSR) को संशोधित किया है।
- सेबी ने विकसित वैश्विक मानकों के साथ संरेखित करने के लिए अपने BRSR में उल्लेखनीय संशोधन किए हैं और मात्रात्मक मेट्रिक्स पर जोर दिया है जो कंपनियों को सार्थक रूप से और बेहतर निवेशक निर्णय लेने में मदद करते हैं।
- रिपोर्ट में प्रमुख बदलावों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, लिंग और सामाजिक विविधता से संबंधित प्रकटीकरण करना शामिल हैं।
- इसके अलावा, विभिन्न ESG मुद्दों पर बढ़ते जोर के साथ भारत में ESG के विचारों पर कानून बनाना समय की आवश्यकता बन गया है जैसे:
- वैश्विक जलवायु मंचों में भारत की सक्रिय भूमिका।
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा ₹80 बिलियन के ग्रीन बॉन्ड की नीलामी की घोषणा जैसी विभिन्न नीतियों की शुरुआत।
भारतीय कंपनियों पर ESG विनियमों के संभावित प्रभाव और भावी कदम:
- भारत और दुनिया भर में ESG नियमों का अनिवार्य अनुपालन CSR नियमों की तुलना में कंपनियों के लिए काफी अलग चुनौती पेश करेगा।
- भारतीय कंपनियों के लिए यू.एस., यू.के. और यूरोपीय संघ जैसे देशों के ESG नियमों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण होगा ताकि चीन को लेकर इन देशों की बढ़ती चिंताओं का पूरा फायदा उठाया जा सके और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और बाजारों में सक्रिय भूमिका निभाई जा सके।
- इसके अलावा, वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने अवसरों को अधिकतम करने की इच्छा रखने वाली कंपनियों और व्यावसायिक भागीदारों को ESG आवश्यकताओं को शीघ्रता से अपनाना चाहिए।
- विनियमों को अपनाने के अलावा, ESG विनियमों के अनुपालन के प्रयासों की प्रभाविता को सुनिश्चित करने के लिए समुचित सावधानी भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
दुराचार के रूप में व्यभिचार और न्यायिक चिंतन:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
राजव्यवस्था:
विषय: मौलिक अधिकार।
मुख्य परीक्षा: व्यभिचार का अपराधीकरण।
प्रसंग:
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 2018 के फैसले पर स्पष्टीकरण देते हुए IPC की धारा 497 को रद्द कर दिया।
भूमिका:
- सर्वोच्च न्यायालय ने 31 जनवरी, 2023 को स्पष्ट किया कि व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला उसका 2018 का फैसला व्यभिचारी आचरण के लिए सशस्त्र बलों के सदस्यों के खिलाफ शुरू की गई कोर्ट मार्शल की कार्यवाही पर रोक नहीं लगाता है।
- न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दायर एक आवेदन के उत्तर में आदेश पारित किया।
- व्यभिचार को अपराध के रूप में रद्द करने वाले 2018 के फैसले से सशस्त्र बलों को छूट देने की माँग करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने यह कहते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था कि यह ऐसे कार्यों में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा बन सकता है और इससे सेनाओं के भीतर ‘अस्थिरता’ पैदा हो सकती है।
पृष्ठभूमि:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ, 2018 (Joseph Shine versus Union of India,2018 case) के मामले में व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
- इसने भारतीय दंड संहिता (व्यभिचार पर) की धारा 497 के साथ-साथ आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 198 को इस आधार पर असंवैधानिक ठहराया कि ये प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक जनहित याचिका में आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 198(2) के साथ पठित IPC की धारा 497 के तहत व्यभिचार के अपराध की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
- IPC की धारा 497 व्यभिचार को अपराध मानती है: यह एक ऐसे व्यक्ति पर दोषारोपण करती है जो दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है।
- व्यभिचार के लिए अधिकतम पांच साल की सजा का प्रावधान था। हालांकि महिलाओं को अभियोजन से छूट दी गई थी।
- IPC की धारा 497 तब लागू नहीं होती थी जब एक विवाहित पुरुष अविवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाता था।
- CrPC की धारा 198(2) निर्दिष्ट करती है कि केवल पति ही व्यभिचार के अपराध के लिए शिकायत दर्ज कर सकता है।
सशस्त्र बलों के लिए अनुप्रयोग:
- सशस्त्र बलों में इसे लागू करने संबंधी आदेश से असंतुष्ट सरकार ने न्यायालय से यह कहते हुए स्पष्टीकरण की मांग कि संविधान के अनुच्छेद 33 के आधार पर सेना अधिनियम, वायु सेना अधिनियम और नौसेना अधिनियम के संबंधित वर्गों द्वारा किसी भी स्वच्छंद या व्यभिचारी कृत्यों को नियंत्रित करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
- अनुच्छेद 33 (Article 33) के तहत, संसद के पास सशस्त्र बलों के सदस्यों सहित कुछ श्रेणियों के व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित या निरस्त करने की शक्तियां हैं, ताकि उनके कर्तव्यों का उचित निर्वहन और उनके बीच अनुशासन बनाए रखा जा सके।
- सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal) ने हाल ही में जोसेफ शाइन फैसले का हवाला देते हुए अनुचित यौन आचरण के लिए कर्मियों के खिलाफ शुरू की गई कुछ अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
- केंद्र ने स्पष्टीकरण मांगा था कि ऐसे मामले में जहां अधिकारी पर व्यभिचार का आरोप लगाया जाता है, सेना अधिनियम, 1950 की धारा 69 जो सशस्त्र बलों के सदस्यों को नागरिक अपराध करने के लिए दंडित करती है, के तहत कार्रवाई करने वाले अधिकारियों के मार्ग में कोई भी बाधा नहीं आ सकती।
- अदालत ने इस प्रकार स्पष्ट किया कि जोसेफ शाइन के फैसले का सशस्त्र बलों के कानूनों से कोई सरोकार नहीं था और इसलिए यह उनके मार्ग में बाधा नहीं है।
अनुच्छेद 33 से जुड़े मुद्दे:
- अनुच्छेद 33 संभावित रूप से सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों और खुफिया एजेंसियों के सदस्यों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है। यदि इन अधिकारों को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कम किया जाता है, तो इससे शक्ति का दुरुपयोग और नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है।
- अनुच्छेद 33 का प्रावधान सरकार को इन बलों के सदस्यों के मौलिक अधिकारों को सीमित करने का व्यापक अधिकार देता है। हालाँकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि इन शक्तियों का दुरुपयोग या उल्लंघन न हो, पर्यवेक्षण का अभाव है या बहुत कम है।
- अनुच्छेद 33 इन बलों के सदस्यों के साथ अलग व्यवहार की अनुमति देता है, जिसे भेदभाव के रूप में देखा जा सकता है। यह ऐसी स्थिति पैदा कर सकता है जहां इन बलों के सदस्यों के पास सामान्य नागरिकों की तुलना में कम अधिकार होते हैं, जो समानता के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है।
- अनुच्छेद 33 के लागू होने के दायरे पर कोई स्पष्टता नहीं है। स्पष्टता की इस कमी से इस बारे में भ्रम और अनिश्चितता पैदा हो सकती है कि प्रावधान कब और कैसे लागू किया जा सकता है।
सारांश:
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शहरी-ग्रामीण द्विभाजन की पुनर्कल्पना:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
सामाजिक न्याय:
विषय: शहरीकरण।
मुख्य परीक्षा:भारत में ग्रामीण-शहरी सातत्य से जुड़े विभिन्न मुद्दे
प्रसंग:
- इस लेख में भारत में ग्रामीण-शहरी सातत्य पर चर्चा की गई है।
भूमिका:
- भारत में ग्रामीण और शहरी पारंपरिक द्विभाजन देश के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य की एक दीर्घकालीन विशेषता रही है।
- यह द्विभाजन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच एक स्पष्ट अंतर पर आधारित है जिनकी विशेषताएं क्रमशः आमतौर पर कृषि और पारंपरिक प्रथाएं तथा आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और अधिक महानगरीय जीवन शैली हैं।
- हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, यह द्विभाजन तेजी से धुंधला हो गया है, जो ग्रामीण-शहरी सातत्य को जन्म देता है जो भारत के लिए अद्वितीय है।
बढ़ती प्रवृत्ति:
- प्रौद्योगिकी और आर्थिक वैश्वीकरण ने संसाधनों और लोगों की गतिशीलता में वृद्धि की है, और अंतर्देशीय और अंतरादेशीय संपर्क में वृद्धि की है।
- परिवहन और संचार प्रणालियों का विस्तार, ऊर्जा तक बेहतर पहुंच, निजी और सार्वजनिक परिवहन में वृद्धि के साथ-साथ दूरदराज के क्षेत्रों में आर्थिक और अन्य नेटवर्कों की पैठ ग्रामीण-शहरी सातत्य को बढ़ावा देती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों के भीतरी इलाके कई शहरी केंद्रों से जुड़े हुए हैं। उत्पादन और उपभोग के स्थलों के बीच वस्तुओं, लोगों, सूचना और वित्त की आवाजाही ने उत्पादन और श्रम बाजारों के बीच संबंधों को मजबूत किया है।
सामाजिक-आर्थिक विकास पर ग्रामीण-शहरी सातत्य का प्रभाव:
- सातत्य ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को शहरी बाजारों, सेवाओं और रोजगार के अवसरों तक पहुंचने के अवसर प्रदान करता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और गरीबी के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है।
- इसके अलावा, ग्रामीण-शहरी सातत्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान और एकीकरण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों के लोग एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं।
- जैसे-जैसे पुल कारक बढ़ते हैं, वैसे-वैसे ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों से आबादी को बाहर निकालने वाले पुश कारक भी तीव्र होते जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में, प्राथमिक और द्वितीयक-तृतीयक क्षेत्रों का एक मिश्रित अर्थव्यवस्था क्षेत्र विकसित हुआ है।
- ग्रामीण-शहरी सातत्य शहरीकरण, पर्यावरणीय क्षरण और सामाजिक असमानता सहित कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का कारण बन सकता है।
- जैसे-जैसे ग्रामीण क्षेत्रों के लोग रोजगार के अवसरों की तलाश में शहरी केंद्रों की ओर पलायन करते हैं, शहरी क्षेत्रों में भीड़भाड़ तेजी से बढ़ती है और उनकी आबादी अधिक हो जाती है। इससे यातायात में जाम, प्रदूषण और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे सहित कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- जैसे-जैसे अधिक से अधिक लोग शहरी क्षेत्रों में जाते हैं, जल, भूमि और ऊर्जा जैसे संसाधनों की मांग बढ़ती जाती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग गैर-टिकाऊ तरीके से होने लगता है। इसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें मिट्टी का क्षरण, वनों की कटाई और जैव विविधता का नुकसान शामिल है।
- अंत में, ग्रामीण-शहरी सातत्य सामाजिक असमानता को जन्म दे सकता है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अक्सर हाशिए पर होते हैं और आर्थिक विकास के लाभों से वंचित होते हैं।
केस स्टडी: केरल
- केरल को तटीय मैदान में ग्रामीण-शहरी सातत्य के लिए जाना जाता है। 14वीं शताब्दी में मोरक्को के यात्री इब्न बतूता ने भी इसका उल्लेख किया था। यही प्रवृत्ति आगे तराई और आसपास मध्य और उच्च भूमियों में भी फैल गई।
- वितरणात्मक न्याय और विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा देने वाली सकारात्मक सार्वजनिक नीति द्वारा समर्थित भौगोलिक कारकों ने ग्रामीण-शहरी संबंधों को बढ़ाया है और केरल के प्रमुख हिस्सों में ग्रामीण-शहरी अंतर को कम किया है।
भावी कदम:
- भारत में ग्रामीण-शहरी सातत्य देश के अद्वितीय सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का प्रतिबिंब है।
- सरकार को शहरी और ग्रामीण प्रशासन दोनों में सुधार के लिए चुनौतियों की पहचान करनी चाहिए और रोजगार, सेवाओं, संस्थागत संसाधनों और पर्यावरण प्रबंधन तक पहुंच बढ़ाने के अवसरों की पहचान करनी चाहिए।
- ग्रामीण-शहरी भागीदारी प्राप्त करने के लिए, एक सिस्टम दृष्टिकोण की सिफारिश की जाती है जहां शहर और उसके आसपास का क्षेत्र मिलकर एक शहरी क्षेत्र का निर्माण करते हैं जिसके लिए एक सामान्य ढांचे के भीतर ग्रामीण और शहरी योजनाओं को एकीकृत करने के लिए एक संभावित योजना तैयार की जाती है।
- ग्रामीण-शहरी संबंधों का बेहतर ढंग से ख़ाका तैयार किया जाना चाहिए, जिसके लिए बसाहटों के उपग्रह आधारित आकड़ों और इसका जनगणना के आकड़ों के साथ एकीकरण उपयोगी हो सकता है।
प्रीलिम्स तथ्य:
1. स्कूलों में प्रतिदीप्ति सूक्ष्मदर्शी (फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोपी) लाने हेतु वैज्ञानिकों ने तैयार किया ‘ग्लोस्कोप’:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: विकास और उनके अनुप्रयोग और रोजमर्रा की जिंदगी में प्रभाव।
प्रारंभिक परीक्षा: फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोपी और ग्लोस्कोप तकनीक से संबंधित तथ्ययात्मक जानकारी।
प्रसंग:
- शोधकर्ताओं के अनुसार, प्रतिदीप्ति सूक्ष्मदर्शी बहुत महंगे हैं,जो उन्हें विभिन्न संसाधन-छोटी/अविकसित प्रयोगशालाओं में छात्रों के लिए अवहनीय बनाते हैं। हालांकि, छात्र माइक्रोस्कोपी दुनिया का अध्ययन करने के लिए मौलिक विशेषताओं का उपयोग कर सकते हैं।
प्रतिदीप्ति सूक्ष्मदर्शी (Fluorescence microscopes):
- एक सामान्य ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप किसी वस्तु को देखने और यह अध्ययन करने में मदद करता है कि वह दृश्य प्रकाश को कैसे अवशोषित, परावर्तित या प्रकिर्णित करती है।
- जबकि एक प्रतिदीप्ति सूक्ष्मदर्शी में वस्तु को उसकी प्रतिदीप्ति का अध्ययन करके देखा जाता है अर्थात वस्तु अपने द्वारा अवशोषित प्रकाश को कैसे पुनः उत्सर्जित करती है।
- वस्तुओं को एक विशिष्ट तरंग दैर्ध्य के प्रकाश से प्रकाशित किया जाता है और वस्तु के कण प्रकाश को अवशोषित करते हैं और उच्च तरंग दैर्ध्य (अर्थात विभिन्न रंगों) पर इसे फिर से उत्सर्जित करते हैं।
- एक फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोप ऐसे कणों या फ्लोरोफोरस को ट्रैक कर सकता है जब वे प्रतिदीप्ति के कारण चमकते हैं या चमक पैदा करते हैं क्योंकि वे वस्तु के अंदर जाते हैं जिससे वस्तु की विभिन्न विशेषताओं का पता चलता है।
- ऐसे फ्लोरोसेंट सूक्ष्मदर्शी के कई संस्करण हैं जैसे एपिफ्लोरेसेंस और कन्फोकल लेजर-स्कैनिंग माइक्रोस्कोप।
- प्रतिदीप्ति सूक्ष्मदर्शी बहुत महंगे होते हैं जिनकी कीमत करोड़ों तक होती है।
नवीनतम घटनाक्रम – ग्लोस्कोप (Glowscope):
- विनोना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अल्पविकसित प्रतिदीप्ति सूक्ष्मदर्शी विकसित करने का एक तरीका निकाला है जिसे ₹2,500 से ₹4,100 की लागत से विकसित किया जा सकता है।
- शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसे उपकरण हरे और लाल फ्लोरोफोर्स का पता लगा सकते हैं।
- इन अल्पविकसित प्रतिदीप्ति माइक्रोस्कोप के सेट-अप में दो प्लेक्सीग्लास सतहें, एक एलईडी टॉर्च, तीन थिएटर स्टेज-लाइटिंग फिल्टर, एक क्लिप-ऑन मैक्रो लेंस और एक स्मार्टफोन होता है।
- लेंस वाला स्मार्टफोन एक सतह पर रखा जाता है जो ऊंचाई पर लटकी होती है और दूसरी शीट नीचे रखी गई है जिस पर वस्तु को रखा जाता है।
- जिस वस्तु का अवलोकन किया जाना है, उसे रूचि के आधार पर अलग-अलग फ्लोरोफोरस के साथ इंजेक्ट किया जाता है तथा टॉर्च और वस्तु के बीच रखे गए स्टेज-लाइटिंग फिल्टर तथा वस्तु और स्मार्टफोन के बीच रखे अन्य घातक इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि सही आवृत्ति का प्रकाश वस्तु तक पहुंचेगा और एक उपयुक्त आवृत्ति का प्रतिदीप्त प्रकाश कैमरे तक पहुंच जाएगा।
2.राजस्थान का स्वास्थ्य अधिकार विधेयक:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
स्वास्थ्य:
विषय: स्वास्थ्य से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: राजस्थान के स्वास्थ्य अधिकार विधेयक से संबंधित तथ्यात्मक जानकारी।
प्रसंग:
- राजस्थान की सरकार ने सितंबर 2022 में राज्य विधानसभा में स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक 2022 (Right to Healthcare Bill, 2022 ) पेश किया था और हाल के बजट सत्र ने इस विधेयक की एक बड़ी बहस को पुनर्जीवित कर दिया है।
राजस्थान का स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक:
- राजस्थान के स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक और निजी स्वामित्व वाले अस्पतालों, क्लीनिकों और प्रयोगशालाओं दोनों में अनिवार्य मुफ्त और सस्ती चिकित्सा सेवाएं प्रदान करना है।
- विधेयक रोगियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अधिकार प्रदान करता है, इन कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार पर दायित्व डालता है और शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना को अनिवार्य करता है।
- यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो राज्य के निवासी सस्ती सर्जरी के साथ-साथ सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में मुफ्त जांच, दवाओं, निदान, आपातकालीन परिवहन और देखभाल के पात्र होंगे।
- इसके अलावा, इस विधेयक में राज्य के निवासियों के लिए लगभग 20 अधिकारों का उल्लेख किया गया है जिसमें सूचित सहमति का अधिकार, सूचना प्राप्त करने और जाति, वर्ग, आयु, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के बिना उपचार प्राप्त करने का अधिकार शामिल है।
- यह विधेयक सरकार को स्वास्थ्य के लिए एक मानव संसाधन नीति तैयार करने के लिए भी बाध्य करता है, जो सभी क्षेत्रों में सिस्टम के सभी स्तरों पर डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों के समान वितरण को सुनिश्चित करता है।
भारतीय संविधान में स्वास्थ्य का अधिकार:
- भारतीय संविधान में स्वास्थ्य के अधिकार का स्पष्ट तौर पर उल्लेख नहीं किया गया है।
- हालांकि, स्वास्थ्य के अधिकार की अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की गारंटी के अधिकार ( Right to Life and Liberty ) से ली गई है।
- इसके अलावा, अतीत में विभिन्न अदालतों ने संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर, नागरिकों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने और उसे बढ़ावा देने के लिए राज्य के दायित्व पर प्रकाश डाला है,जैसे:
- अनुच्छेद 38 जो लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने की बात करता है।
- अनुच्छेद 47 जो सरकार को आबादी के पोषण और स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाध्य करता है।
3. जलयुक्त शिवार अभियान:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
आपदा प्रबंधन:
विषय: आपदा एवं आपदा प्रबंधन :
प्रारंभिक परीक्षा: जलयुक्त शिवार अभियान (Jalyukta Shivar Abhiyan)।
प्रसंग:
- महाराष्ट्र सरकार जलयुक्त शिवार अभियान के दूसरे चरण की शुरुआत करने पर विचार कर रही है।
जलयुक्त शिवार अभियान:
- महाराष्ट्र सरकार ने वर्ष 2015-16 में “जलयुक्त शिवार अभियान ” नामक एक परियोजना शुरू की थी।
- प्रोजेक्ट “जलयुक्त शिवार अभियान” का उद्देश्य 2019 तक महाराष्ट्र को सूखा मुक्त राज्य बनाना और हर साल 5000 गांवों को पानी की कमी से मुक्त करवाना है।
- जलयुक्त शिवार अभियान में नदियों को गहरा और चौड़ा करना, सीमेंट और मिट्टी के स्टॉप डैम का निर्माण, नालों पर काम करना और खेत के तालाबों की खुदाई करना शामिल है।
- इन स्थानों को मैप करने के लिए महाराष्ट्र रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (MRSAC) द्वारा विकसित एक मोबाइल ऐप का उपयोग किया गया था।
चित्र स्रोत: cgwb.gov.in
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. समलैंगिक संबंध सामाजिक मूल्यों को प्रभावित कर सकते हैं: केंद्र
- सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार ने कहा है कि “देश के प्रमुख हिस्सों में विवाह की संस्था के साथ एक पवित्रता जुड़ी है” तथा एक जैविक पुरुष और महिला के बीच विवाह एक “पवित्र मिलन, एक धर्मविधि और एक संस्कार” है।
- केंद्र ने एक हलफनामे में माना है कि “मानवीय संबंध” के लिए “वैधानिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से” स्वीकृत मानदंड में कोई भी “विचलन” केवल विधायिका के माध्यम से हो सकता है, न कि सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से, यह हलफनामा विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की अनुमति देने के लिए याचिकाओं का परीक्षण करने के न्यायालय के फैसले की प्रतिक्रिया के रूप में आया था।
- विशेष विवाह अधिनियम उन जोड़ों पर लागू होता है जो अंतर-धार्मिक विवाह करना चाहते हैं।
- अधिनियम एक विशेष कानून है जिसे पंजीकरण द्वारा विवाह का एक अनूठा रूप प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया है जिसमें विवाह के पक्षकारों को अपने धर्म का त्याग करने की आवश्यकता नहीं है।
- सरकार ने आगे तर्क दिया कि न्यायालय ने नवतेज़ सिंह जौहर मामले के अपने निर्णय (2018) में केवल समलैंगिक व्यक्तियों के बीच यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है न कि न्यायालय ने इस आचरण को वैध ठहराया है तथा न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए कभी भी समलैंगिक विवाह को जीवन और गरिमा के मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में स्वीकार नहीं किया।
- सरकार के अनुसार, संसद ने विभिन्न विवाह कानून बनाए हैं जो विभिन्न धार्मिक समुदायों के रीति-रिवाजों पर आधारित हैं और इसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप से व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन को पूरी तरह से नुकसान होगा।
- समलैंगिक विवाह” के बारे में अधिक जानकारी के लिए, निम्नलिखित लेख देखें:Sansad TV Perspective: Legalising Same-Sex Marriage
2. इमारतों के लिए नेट-जीरो वेस्ट अनिवार्य होगा:
- सीवेज निपटान प्रणाली में सुधार और आधुनिकीकरण के लिए सरकार के प्रयास के एक हिस्से के रूप में, भारत में सभी आगामी हाउसिंग सोसाइटी और वाणिज्यिक परिसरों को अनिवार्य रूप से शुद्ध शून्य अपशिष्ट सुनिश्चित करना होगा और उनके तरल निर्वहन का उपचार करना होगा।
- रिपोर्टों के अनुसार, भारत में प्रति दिन 72,368 मिलियन लीटर शहरी अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 28% का उपचार किया जाता है, जबकि शेष 72% अनुपचारित अपशिष्ट जल नदियों, झीलों या भूजल में प्रवेश कर सकता है।
- शुद्ध शून्य अपशिष्ट प्राप्त करने का तात्पर्य अपशिष्ट धाराओं को कम करना, उनका पुन: उपयोग करना और उन्हें मूल्यवान संसाधनों में परिवर्तित करने के लिए रिकवर करना है ताकि शून्य ठोस अपशिष्ट को लैंडफिल में भेजा जा सके।
- आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय भवनों में सेप्टिक टैंक डिजाइन को एकीकृत करने, मानक विनिर्देशों का पालन करने, सभी सेप्टिक टैंकों और मैनहोलों की जियो-टैगिंग करने और मशीनीकृत सफाई वाहनों पर जीएसटी कम करने के प्रयास भी करेगा।
- केंद्रीय वित्त मंत्री ने 2023-24 के अपने बजट भाषण में उल्लेख किया है कि सभी शहरों और कस्बों को मैनहोल से मशीन-होल मोड में सीवर और सेप्टिक टैंक के 100% परिवर्तन के लिए सक्षम बनाया जाएगा।
- इन निर्देशों को स्वच्छ भारत, यंत्रीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Mechanised Sanitation Ecosystem (NAMASTE)), और कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन ( Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation (AMRUT)) जैसी पहलों के अभिसरण के रूप में तैयार किया जा रहा है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से किसकी शुरुआत दांडी मार्च से हुई थी? (स्तर – सरल)
- होम रूल आंदोलन
- असहयोग आंदोलन
- सविनय अवज्ञा आंदोलन
- भारत छोड़ो आंदोलन
उत्तर: c
व्याख्या:
- नमक सत्याग्रह या दांडी मार्च भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कर के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन था और ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ एक अहिंसक विरोध था।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में एक ऐतिहासिक आंदोलन था जिसे 1930 में शुरू किया गया था, और इसकी शुरुआत दांडी मार्च से हुई थी।
प्रश्न 2. रामसर सम्मेलन के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सी आर्द्रभूमियाँ हैं? (स्तर – मध्यम)
- पीट भूमि
- नख़लिस्तान (ओएसिस)
- धान के खेत
- जलाशय
- लवण कुंड
विकल्प:
- केवल 1, 2 और 3
- केवल 3, 4 और 5
- केवल 1, 4 और 5
- 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: d
व्याख्या:
- रामसर सम्मेलन के अनुच्छेद 1 के अनुसार, आर्द्र्भूमियाँ “दलदल, पंकभूमि, पीट भूमि या पानी के क्षेत्र हैं, चाहे वे प्राकृतिक हों या कृत्रिम, स्थायी हों या अस्थायी, स्थिर हो या प्रवाहित जल, इसमें ताजा पानी, समुद्री जल के क्षेत्रों जिनकी गहराई निम्न ज्वार की स्थिति में छह मीटर से अधिक न हो, सहित खारा या लवणीय जल शामिल हैं।
- आर्द्र्भूमियों में झीलें और नदियाँ, भूमिगत जलभृत, जलमग्न क्षेत्र और दलदल, आर्द्र घास के मैदान, पीट भूमियाँ, ओएसिस, ज्वारनदमुख, डेल्टा और ज्वारीय समभूमि, मैंग्रोव और अन्य तटीय क्षेत्र, प्रवाल भित्तियाँ, और सभी मानव निर्मित स्थल जैसे मछली के तालाब, धन के खेत, जलाशय और लवण कुंड शामिल हैं।
प्रश्न 3. अकादमी पुरस्कार/ऑस्कर के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)
- यह एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाता है।
- इन पुरस्कारों को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उद्योग में कलात्मक प्रतिभा और तकनीकी उत्कृष्टता के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
- ए.आर. रहमान ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: अकादमी पुरस्कार या ऑस्कर पुरस्कार एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (AMPAS) द्वारा प्रतिवर्ष दिए जाते हैं।
- कथन 2 सही है: अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उद्योग में कलात्मक प्रतिभा और तकनीकी उत्कृष्टता के लिए ऑस्कर पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
- कथन 3 गलत है: भानु अथैया कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग के लिए ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय थीं।
- भारत के अन्य विजेताओं की सूची में सत्यजीत रे, ए. आर. रहमान, रेसुल पुकोट्टी और गुलज़ार हैं।
प्रश्न 4. ‘गेहूं के ब्लास्ट रोग’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (स्तर – कठिन)
- गेहूं में ब्लास्ट रोग मैगनापोर्थ ओराइजी नामक कवक के कारण होता है।
- इसे पहली बार 1985 में ब्राजील में खोजा गया था।
विकल्प:
- केवल 1
- केवल 2
- दोनों
- कोई नहीं
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: गेहूं का ब्लास्ट (WB) उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय गेहूं उत्पादन क्षेत्रों में मैगनापोर्थ ओराइजी पैथोटाइप ट्रिटिकम (MoT) के कारण होने वाला एक महत्वपूर्ण कवक रोग है।
- कथन 2 सही है: गेहूं का ब्लास्ट रोग पहली बार 1985 में ब्राजील के पराना राज्य में खोजा गया था।
प्रश्न 5. धातुओं के निम्नलिखित युग्मों में से किसमें क्रमशः सबसे हल्की धातु और सबसे भारी धातु है? PYQ (2008) (स्तर – कठिन)
- लिथियम और पारा
- लिथियम और ऑस्मियम
- एल्युमिनियम और ऑस्मियम
- एल्यूमीनियम और पारा
उत्तर: b
व्याख्या:
- लिथियम का परमाणु भार सबसे कम होता है और इसे सबसे हल्की धातु माना जाता है।
- ऑस्मियम सबसे अधिक घनत्व वाली प्राकृतिक धातु है, इस प्रकार ऑस्मियम सबसे भारी धातु है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. ग्रामीण-शहरी सातत्य ने हाल के वर्षों में व्यापक ध्यान आकर्षित किया है। इस आलोक में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच अंतर्संबंधों को पहचानने और उन्हें संबोधित करने के महत्व पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस-2; शासन)
प्रश्न 2. भारत में पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए किए जा सकने वाले उपायों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस-2; शासन)