18 अक्टूबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

सामाजिक मुद्दे:

  1. हिंदी का थोपा जाना और उससे उत्पन्न असंतोष:

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

  1. वर्तमान समय के हथियार, इसके बढ़ते आयाम:

अर्थव्यवस्था:

  1. भारत के संदर्भ में रिकवरी विश्लेषण:
  2. डॉलर के मजबूत होने से सभी देशों का विदेशी मुद्रा भंडार संकुचित होता है:

राजव्यवस्था:

  1. न्यायिक व्यवस्था में अंकगणित की भूमिका:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार:
  2. एक राष्ट्र, एक उर्वरक योजना:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस चंद्रचूड़:
  2. ‘सार्वजनिक पद धारक निजी नागरिक की भूमिका निभा सकते हैं’:
  3. वर्ष 2005-06 से लगभग 41.5 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

हिंदी का थोपा जाना और उससे उत्पन्न असंतोष:

सामाजिक मुद्दे:

विषय: भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं, भारत की विविधता।

मुख्य परीक्षा: संसदीय राजभाषा समिति द्वारा की गई सिफारिशों और हिंदी को भारत की एकमात्र राजभाषा के रूप में बढ़ावा देने हेतु कदमों का समालोचनात्मक मूल्यांकन।

संदर्भ:

  • संसदीय राजभाषा समिति की हालिया सिफारिशों के मद्देनजर गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने की आलोचना एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • इस भाषाई विवाद की जड़ें संविधान सभा में राजभाषाओं पर बहस से जुडी हुई हैं।
  • संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा के रूप में घोषित किया गया था और भारतीय संविधान ने 1950 में देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया था।
  • इसमें यह भी जोड़ा गया कि अंग्रेजी का एक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाना जारी रहेगा और 15 साल की अवधि के बाद हिंदी के पक्ष में अंग्रेजी का प्रयोग चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाएगा।
  • हालाँकि, इन 15 वर्षों के पूरा होने पर देश भर में कई गैर-हिंदी भाषी राज्यों में गंभीर हिंदी विरोधी विरोध प्रदर्शन किये गए।
  • 15 साल की अवधि के पूरा होने के बाद राजभाषा अधिनियम को पेश किया गया था, जिसके तहत जवाहरलाल नेहरू के इस आश्वासन को बरकरार रखा गया कि अंग्रेजी का इस्तेमाल तब तक किया जाता रहेगा जब तक गैर-हिंदी भाषी लोग इसे समाप्त करने के पक्ष में एकमत नहीं हो जाते हैं।
  • इस अधिनियम के अनुसार, हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग संघ के कुछ आधिकारिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा जैसे संसद की कार्यवाहियों में, केंद्रीय और राज्य अधिनियमों के लिए और उच्च न्यायालयों में कुछ उद्देश्यों के लिए।

“हिंदी थोपे जाने” के खिलाफ तमिलनाडु का आंदोलन:

  • तमिलनाडु राज्य में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन का एक लंबा इतिहास रहा है।
  • अगस्त 1937 में, तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी, सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व वाले शासन ने माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य बनाने का संकल्प लिया था।
  • ई.वी. रामासामी जिन्हें पेरियार के नाम से जाना जाता था, ने हिंदी को अनिवार्य बनाने के इस फैसले के खिलाफ आंदोलन चलाया और यह इस तरह का पहला विरोध-प्रदर्शन था।
  • हालाँकि फरवरी 1940 में सी. राजगोपालाचारी के इस्तीफे के कुछ महीनों बाद, ब्रिटिश सरकार ने हिंदी को वैकल्पिक भाषा बना दिया था।
  • इसके बाद, जनवरी 1965 में हिंदी को संघ सरकार की आधिकारिक भाषा बनाने के मद्देनजर विरोध-प्रदर्शन का दूसरा दौर शुरू हुआ।
  • इसके अतिरिक्त, हाल के दिनों में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के विभिन्न प्रावधानों और राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों पर अंग्रेजी साइनेज (मार्गों के पास लगे बोर्ड) को हिंदी साइनेज से बदलने की रिपोर्टों के कारण एक बार फिर राज्य के राजनीतिक वर्ग ने आंदोलन शुरू कर दिया है।

संसदीय राजभाषा समिति द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशें:

  • रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि संसदीय राजभाषा समिति ने हिंदी भाषी राज्यों और अन्य राज्यों में उच्च शिक्षा के केंद्रीय संस्थानों में शिक्षा के माध्यम के रूप में क्रमशः हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की सिफारिश की है।
  • विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार अंग्रेजी को सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी संस्थानों में शिक्षा के माध्यम के रूप में उपयोग करने की अनुमति केवल तभी दी जाएगी जब यह अत्यंत आवश्यक हो।
  • IITs, IIMs और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) जैसे संस्थानों को तकनीकी संस्थान माना जाता है, जबकि केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय अन्य श्रेणी में आते हैं।
  • इसके अलावा, समिति ने विभिन्न केंद्रीय सेवाओं में भर्ती के लिए आयोजित विभिन्न परीक्षाओं में एक भाषा के रूप में अंग्रेजी के उपयोग को समाप्त करने की भी सिफारिश की है। समिति ने सुझाव दिया है कि उम्मीदवारों के बीच पूर्वाकांक्षित हिंदी ज्ञान सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

“हिंदी थोपे जाने” के आलोचकों द्वारा सुझाए गए विकल्प:

  • तमिलनाडु और केरल राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने संविधान की आठवीं अनुसूची (Eighth Schedule of the Constitution) के तहत उल्लिखित सभी भाषाओं के साथ समान व्यवहार करने की मांग की है।
  • केरल के मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से कहा है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र सभी भाषाओं में तैयार किए जाने चाहिए।
  • तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से सभी भाषाओं को बढ़ावा देने और शिक्षा तथा रोजगार के संबंध में सभी भाषाओं के लोगों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करने के प्रयासों को बढ़ावा देने का आवाह्न किया है।
  • इस विषय के बारे में और अधिक जानकारी के लिए 30 अप्रैल 2022 का विस्तृत समाचार विश्लेषण पढ़ें।

सारांश:

  • राजभाषा अधिनियम का सार यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न समूह अपनी आपत्तियों को सामने रखें और अपनी स्थिति स्पष्ट करें क्योंकि पूर्व में इस यथास्थिति को अस्थिर करने के किसी भी प्रयास का आंदोलन के रूप में गंभीर परिणाम देखा गया है। इसलिए, केंद्र को दिए गए आश्वासनों पर कायम रहना चाहिए और देश की अन्य भाषाओं को भी बढ़ावा देने की दिशा में काम करना चाहिए।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

वर्तमान समय के हथियार, इसके बढ़ते आयाम:

विषय: आईटी और कंप्यूटर के क्षेत्र में जागरूकता।

मुख्य परीक्षा: साइबर स्पेस और साइबर खतरे

संदर्भ: प्रवेश परीक्षा सॉफ्टवेयर हैकिंग मामले में एक रूसी नागरिक की हालिया गिरफ्तारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष में साइबर स्पेस का प्रयोग।

विवरण:

  • 21वीं सदी में साइबर खतरा एक नई चुनौती के रूप में उभर रहा है। यह किसी विशेष क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि नागरिक क्षेत्र इससे सबसे अधिक प्रभावित होता है। इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है और अच्छी तरह से विनियमित विश्व व्यवस्था के संबंध में अक्सर चिंताएं सामने आती हैं।
  • हालांकि, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि साइबर खतरे पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप, दुनिया निम्नलिखित को लेकर अधिक चिंतित प्रतीत होती है:
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सैन्य नवाचार
    • संकट के संभावित संवेदनशील क्षेत्र
    • हाइब्रिड युद्ध
    • हर चीज का शस्त्रीकरण
  • नीति निर्माताओं द्वारा एक ‘प्रोटो-क्रांतिकारी’ दृष्टिकोण साइबर खतरे की मांग है, जिसका स्पष्ट रूप से अभाव है। वर्तमान समय में हथियारों के चुनाव साइबर प्रकृति अनुसार है और इस मोर्चे पर जागरूकता की कमी समस्या का कारण बन सकती है।

साइबरस्पेस और साइबर धमकी:

  • साइबरस्पेस को इंटरकनेक्टेड सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर प्रक्रियाओं, हार्डवेयर, सेवाओं, डेटा और सिस्टम के सुपरसेट के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • यह राष्ट्रीय शक्ति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। साइबर खतरे केवल संघर्षों के एक समूह तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि व्यापक स्तर के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं और असामान्य होते हैं। इस प्रकार साइबर खतरों से निपटने के लिए दूरदर्शी सोच और बहुमुखी प्रतिभा दोनों की आवश्यकता होती है।
  • साइबर कमांड के लिए भारतीय सेना की मांग साइबर खतरे की व्यापक रूप से बदलती प्रकृति की अनदेखी करती है।
  • इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र में विशेषज्ञों का एक समूह साइबरस्पेस के क्षेत्र में राज्यों के जिम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देने पर विचार कर रहा है, लेकिन इस संदर्भ में बहुत अधिक सफलता हासिल नहीं हुई है।
  • ग्रे ज़ोन ऑपरेशन: ग्रे ज़ोन ऑपरेशन संघर्षों की पारंपरिक अवधारणाओं से बाहर है और साइबर युद्ध के संबंध में यह एक आधुनिक युद्ध का मैदान है। ये एक राज्य की कार्यप्रणाली के महत्व को कमजोर करते हैं। नये हाइब्रिड उपयोगों के साथ उभरती प्रौद्योगिकियों का अभिसरण संस्थानों और राष्ट्रों की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की चुनौतियां पेश करता है।
  • ग्रे जोन वारफेयर का उदाहरण: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) की प्रवेश परीक्षाओं के संचालन में शामिल कंप्यूटरों को हैक करने के आरोप में एक रूसी को भारत में गिरफ्तार किया गया था। ज्ञात हो कि इसे दुनिया के सबसे सुरक्षित सॉफ्टवेयर में से एक माना जाता है। यह दर्शाता है कि साइबर अपराधी अपनी ‘ग्रे जोन वारफेयर’ रणनीति को विशेष रूप से बढ़ा रहे हैं।
  • आम जनता को साइबर हमलों की प्रकृति और परिणामों का पता लगाने में अपेक्षाकृत लंबा समय लगता है क्योंकि वे आमतौर पर यादृच्छिक दुर्घटनाओं की तरह दिखते हैं। किसी हमले की समग्र रूपरेखा को समझने के लिए परिष्कृत साइबर फोरेंसिक की आवश्यकता होती है।
  • ग्रे ज़ोन वारफेयर शेष शताब्दी के लिए सबसे प्रभावशाली प्रतिमान बन जाएगा। इस तरह के हमलों के खिलाफ उचित बचाव करना बेहद जरूरी है।
  • प्रवेश परीक्षा सॉफ्टवेयर की सुरक्षा में बाधा से राष्ट्र की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है। अब तक, प्रौद्योगिकी को कदाचार को समाप्त करने के लिए पूर्ण साधन माना जाता था, लेकिन हाल की घटना ने अन्य राष्ट्रीय संपत्तियों और बुनियादी ढांचे पर साइबर हमलों की तीव्रता और पैमाने के मामले में चिंता को बढ़ा दिया है।
  • जब तक सभी तथ्यों का विश्लेषण नहीं कर लिया जाता है, तब तक लक्षित प्रणाली में किस हद तक कमी है, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। रिमोट एक्सेस कार्यप्रणाली और नियमित व्यावसायिक गतिविधि सहित तकनीकी रूप से संचालित आकांक्षाओं के पूरे स्पेक्ट्रम पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव है।
  • साइबर घुसपैठ के खिलाफ कुछ विशिष्ट समाधान उपलब्ध हैं, लेकिन वे प्रमुखता से ज्ञात/उपयोग नहीं किए जाते हैं। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने से पहले अधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाना और इस तरह के समाधान को सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

साइबर हमलों के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें:

https://byjus.com/free-ias-prep/types-cyber-attack/

साइबर स्पेस का भू-राजनीतिक पहलू:

  • रूस-यूक्रेन संकट भू-राजनीतिक संघर्ष में साइबरस्पेस के महत्व पर प्रकाश डालता है। यह कई देशों के लिए एक प्रयोग बन गया है जो सूचना और संचार प्रवाह के विरूपण के माध्यम से कमजोर राष्ट्र को अधिक शक्तिशाली के खिलाफ सहयोग प्रदान करता है। किसी भी युद्ध रणनीति की सफलता या विफलता के लिए सूचना और संचार को आवश्यक माना जाता है।
  • इसने चल रहे संघर्ष में एक नया आयाम (साइबर) जोड़ दिया है। हालांकि संघर्ष के दौरान इसका प्रभाव विशिष्ट नहीं है, लेकिन नुकसान की संभावना बहुत अधिक होती है।
  • कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैंडल और फेसबुक द्वारा व्यक्तिगत डेटा में हेरफेर कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि साइबर क्षेत्र अब सुरक्षित नहीं है।
  • इसके अलावा, वे नैतिक, कानूनी और वास्तविक दुविधाएं पैदा करते हैं। यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया, तो दुनिया को गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा।

संबंधित लिंक:

https://byjus.com/free-ias-prep/upsc-exam-comprehensive-news-analysis-mar15-2021/

सारांश:

  • साइबर खतरे लगभग सभी क्षेत्रों में देशों के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं। यह एक नए युद्ध के मैदान के रूप में उभर रहा है और सभी हितधारकों को इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। दुनिया भर के देशों को साइबर स्पेस को विनियमित करने और भविष्य में अराजकता को रोकने के लिए उचित नियम और कानून बनाने के लिए सहयोग करना चाहिए।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:

भारतीय अर्थव्यवस्था:

भारत के संदर्भ में रिकवरी विश्लेषण:

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

मुख्य परीक्षा: कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक सुधार।

संदर्भ: विश्व बैंक की रिपोर्ट – “करेक्टिंग कोर्स” का विमोचन।

विवरण:

  • विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट “करेक्टिंग कोर्स” में वैश्विक गरीबी पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
    • अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में 90 मिलियन की वृद्धि हुई।
    • इसका तात्पर्य यह है कि 2020 में वैश्विक गरीबी 9.3% तक पहुंच गई, जो 2019 में पहले 8.4% थी।
    • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दो दशकों में ऐसा पहली बार हुआ है जब गरीबी का स्तर बढ़ा है।
    • दुनिया में असमानताएं भी बढ़ी हैं। यह सबसे अमीर और सबसे गरीब देशों में आय पर महसूस किए गए सापेक्ष प्रभावों से स्पष्ट है।
    • इसके अलावा, दुनिया भर में आर्थिक सुधार भी असमान रहा है।
  • रिपोर्ट में महामारी से निपटने में राजकोषीय नीति साधनों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह देखा गया कि गरीब देश इसका प्रभावी ढंग से उपयोग करने में असमर्थ थे, और इस तरह अमीर देशों पर कम प्रभाव की तुलना में महामारी के प्रभाव को इन गरीब देशों में अधिक देखा गया।
  • रिपोर्ट में महामारी के बाद की रिकवरी में सहायता के लिए राजकोषीय नीति के लिए तीन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की गई। वे इस प्रकार हैं:
    • लक्षित सब्सिडी जिनसे गरीबों को फायदा पहुँचता है
    • दीर्घकलिक अवधि में लचीलेपन के लिए सार्वजनिक निवेश
    • राजस्व संग्रहण जो अप्रत्यक्ष करों के बजाय प्रगतिशील प्रत्यक्ष कराधान पर निर्भर करता है
  • इसी तरह, “राजकोषीय नीति और आय असमानता: करों और सामाजिक व्यय की भूमिका” शीर्षक वाले एक पेपर में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि महामारी के बाद की रिकवरी काल में राजकोषीय नीति के कई लाभ हैं।

रिपोर्ट में भारत-विशिष्ट निष्कर्ष:

  • 2022 में भी भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्त बनी हुई है।
  • विश्व बैंक की रिपोर्ट में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (CPHS) का इस्तेमाल किया गया क्योंकि 2011 से भारत में आधिकारिक गरीबी डेटा नहीं आया है।
  • रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार, भारत की जीडीपी में वर्ष 2020-21 में 7.5% की गिरावट के कारण भारत में 5.6 करोड़ लोग गरीबी में चले गए हैं।
  • इसके अलावा, 2020 में गरीबी रेखा से नीचे की आबादी 10% थी।
  • सरकार द्वारा की गई पहल:
    • भारत सरकार ने ₹2 लाख करोड़ का वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 1% था। लेकिन, वृद्धिशील खर्च एक छोटे से अंश से परिलक्षित हुआ।
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत मजदूरी में मामूली वृद्धि (₹20 प्रति दिन) एक लंबे समय से लंबित निर्णय था, लेकिन महामारी से निपटने के लिए अपर्याप्त था।
    • भारत का अधिकांश प्रोत्साहन पैकेज निजी उद्यमों के लिए क्रेडिट लाइनों और पुनर्वित्त योजनाओं के रूप में था। आम जनता के हाथों में पैसा डालने और घरेलू खपत को बढ़ावा देने के लक्ष्य को साकार करने के लिए इन्हें अक्षम तरीका माना जाता है।
    • प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) जिससे भारत में 80 करोड़ लोगों को भोजन सहायता प्राप्त हुई, एक अच्छा कदम था। इसे अप्रैल 2020 में शुरू किया गया था और वर्तमान में इसकी अनुमानित लागत लगभग ₹3.90 लाख करोड़ है।
    • भारत में कॉर्पोरेट कर की घटी हुई दर (सितंबर 2019 में घोषित) जारी रही।
      • प्राक्कलन समिति के अनुसार, कॉर्पोरेट कर में 30% से 22% की गिरावट से सरकारी खजाने को दो वित्तीय वर्षों में लगभग ₹1.84 लाख करोड़ का नुकसान हुआ और (CMIE रिपोर्ट के अनुसार) कॉर्पोरेट लाभ में वृद्धि हुई।
  • विश्व असमानता रिपोर्ट में भारत को ‘गरीब और बहुत असमान देश’ बताए जाने के बावजूद, भारत द्वारा संपत्ति कर और विरासत कर को फिर से लागू नहीं किया गया है। इसके अलावा, वस्तु और सेवा कर (GST) के दायरे में आने वाले उत्पादों (ईंधन और खाना पकाने की कीमतों सहित) की एक विस्तृत श्रृंखला पर लगने वाले कर में बार-बार वृद्धि हुई है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अप्रत्यक्ष करों ने आबादी के गरीब तबके पर अधिक बोझ डाला है।

PMGKAY के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें:

https://byjus.com/free-ias-prep/pradhan-mantri-garib-kalyan-ann-yojana/

संबंधित लिंक:

https://byjus.com/free-ias-prep/economic-recovery-post-pandemic/

सारांश:

  • महामारी के बाद आर्थिक सुधार के लिए राजकोषीय नीति उपाय सबसे महत्वपूर्ण साधन साबित होते हैं। भारत ने भी इस तरह के नीतिगत उपाय किए हैं लेकिन ये गरीबी का हिस्सा बढ़ने के कारण कुछ हद तक अपर्याप्त प्रतीत होते हैं। राजकोषीय नीतिगत उपायों में सुधार करना समय की मांग है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

डॉलर के मजबूत होने से सभी देशों का विदेशी मुद्रा भंडार संकुचित होता है

विषय: विकसित देशों की नीतियों का विभिन्न देशों पर प्रभाव।

प्रारंभिक परीक्षा: विदेशी मुद्रा भंडार।

मुख्य परीक्षा: भारतीय अर्थव्यवस्था- विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार।

संदर्भ: अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर का मजबूत होना।

विवरण:

  • रुपये की विनिमय दर कमजोर हो रही है और भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी घट रहा है। रुपया 82 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है और विदेशी मुद्रा भंडार दो साल के निचले स्तर पर है।
  • इसके निम्न कारण हैं:
    • यूक्रेन संकट
    • अमेरिकी फेडरल रिजर्व का आक्रामक मौद्रिक रुख: ब्याज दरों में बढ़ोतरी ने डॉलर को और अधिक मजबूत बना दिया है। नतीजतन, डॉलर में 15% की वृद्धि हुई है और अन्य मुद्राओं का मूल्यह्रास हुआ है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार:
    • इनमें सोना, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ विशेष आहरण अधिकार (SDR) और आरक्षित निधि किश्त की स्थिति शामिल होती है।
    • इसे देश के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इसका उपयोग आर्थिक झटके को अवशोषित करने के लिए किया जाता है। यह बाजार को विश्वास भी प्रदान करते हैं और विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करने की क्षमता का निर्माण करते हैं।
    • यह एक महत्वपूर्ण संकेतक है जो किसी राष्ट्र के आर्थिक स्वास्थ्य और आयात क्षमता को दर्शाता है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, घटते विदेशी मुद्रा भंडार के कारण कई आयात-निर्भर देशों में डॉलर की कमी हो गई है जिसके परिणामस्वरूप इन देशों के लिए गेहूं तथा चावल जैसी वस्तुओं को खरीदना मुश्किल हो रहा है।

विदेशी मुद्रा भंडार के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें:

https://byjus.com/free-ias-prep/forex-reserves/

विभिन्न मुद्राओं पर प्रभाव:

  • डॉलर के मुकाबले यूरो और पौंड जैसी मजबूत मुद्राएं कमजोर हुई हैं।
  • जापानी येन 24 साल के निचले स्तर पर है। इसका मूल्य 145 येन प्रति डॉलर से नीचे आ गया है और एक महीने की अवधि में इसके भंडार में 54 अरब डॉलर की गिरावट आई है।
  • रुपया जैसी कई अन्य मुद्राएं भी अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर हैं।
  • दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने अपनी मुद्राओं के मूलयह्रास को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं। इसके परिणामस्वरुप, जापान, चीन, सिंगापुर और स्विटजरलैंड के विदेशी भंडार में 100 अरब डॉलर से अधिक की कमी आई है। सिंगापुर के विदेशी भंडार में प्रतिशत के लिहाज से सबसे तीव्र गिरावट देखी गई है और चीन के भंडार में सबसे ज्यादा गिरावट आई है।

चित्र 1: 2022 में डॉलर के मुकाबले मुद्रा की कीमत में बदलाव (7 अक्टूबर तक के आंकड़े)

स्रोत: The Hindu

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार:

  • भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार आमतौर पर पूंजी प्रवाह का एक उत्पाद है जिसका अर्थ है विदेशी निवेश, उधार आदि माध्यम से प्राप्त धन। यह चालू खाते पर अधिक निर्भर नहीं है जो कि वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और प्रेषण के माध्यम से अर्जित शुद्ध आय है।
  • नौ महीने की अवधि में भारत के भंडार में 97 अरब डॉलर की गिरावट आई है।
  • यह वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट (37.3 बिलियन डॉलर की गिरावट) और वर्ष 2013 में संकट की अवधि (16.6 बिलियन डॉलर की गिरावट) के दौरान भंडार में आई गिरावट से काफी अधिक है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार में जारी गिरावट चिंता का विषय है।

चित्र 2: 2008, 2013 और 2022 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का माह-वार स्तर

स्रोत: The Hindu

  • मूल्यह्रास: डॉलर के मजबूत होने से यूरो, पाउंड और येन का मूल्यह्रास हुआ है। ये सभी भारत के विदेशी भंडार का हिस्सा हैं और इनके कमजोर होने से भंडार में और कमी आई है। इसे मूल्यह्रास कहते हैं।

सारांश:

  • डॉलर की मजबूती ने दुनिया की अन्य सभी मुद्राओं को कमजोर कर दिया है और कई देशों के विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित किया है। इसका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी महसूस किया जा रहा है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अपनी घटती अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन देने के अनेक उपाय कर रहे हैं।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

न्यायिक व्यवस्था में अंकगणित की भूमिका:

विषय: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य।

प्रारम्भिक परीक्षा: सर्वोच्च न्यायालय बेंच के बारे में तथ्य।

मुख्य परीक्षा: निचली बेंच के फैसलों और संबंधित मुद्दों पर पुनर्विचार।

विवरण:

  • उच्चतम न्यायलय (SC) की एक संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से इस बात से इंकार किया है कि एक बड़ी बेंच द्वारा दिया गया फैसला एक छोटी बेंच के फैसले को दरकिनार कर देगा। यह उन न्यायाधीशों की संख्या जिससे बड़ी पीठ (बेंच) में बहुमत बनेगी, से परे होगा। इस तरह के कानून इस सिद्धांत पर आधारित होते हैं कि अधिक संख्या वाली बेंच के सही निर्णय पर पहुंचने की अधिक संभावना होती है।
  • यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि उच्च न्यायालय का निर्णय निचली अदालत के लिए बाध्यकारी होता है और एक न्यायालय की बड़ी पीठ के निर्णय को उसी न्यायालय की छोटी पीठ के मुकाबले अधिक प्राथमिकता मिलती है।
  • इस प्रकार उपरोक्त कानून भारतीय न्यायपालिका के फैसलों में स्थिरता और सामंजस्य सुनिश्चित करते हैं।

बेंच की शक्ति से संबंधित विवरण:

  • सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष मामलों की सुनवाई और निर्णय दो न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा किया जाता है जिसे डिवीजन बेंच कहा जाता है या तीन न्यायाधीशों की बेंच जिसे पूर्ण बेंच कहा जाता है।
  • यह एक मिसाल है कि समान संख्या वाली पीठ को किसी समतुल्य पीठ के निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करना चाहिए या उसे रद्द नहीं करना चाहिए। हालाँकि, यह बेंच उसकी सटीकता (निर्णय की) पर संदेह कर सकता है। समान पीठों के निर्णयों के बीच संदेह या संघर्ष के मामले में, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के सामने मामला जाता है, जो इस मामले पर पुनर्विचार करने के लिए एक बड़ी पीठ का गठन करते हैं।
  • बड़ी बेंच फैसले के प्रश्न/सटीकता की जांच करती है और उनके द्वारा व्यक्त बहुमत की राय अंतिम फैसला बन जाती है। यह निर्णय निचली पीठों के लिए बाध्यकारी है।
  • हालांकि, मुद्दा यह है कि बहुमत के फैसले को पूरी बेंच का फैसला माना जाता है जिसमें असहमति जताने वाले जज भी शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, पांच-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सर्वसम्मति से शासित कानून की पूर्णता पर संदेह होता है और सात-न्यायाधीशों की पीठ के चार न्यायाधीशों द्वारा इसे खारिज किया जा सकता है।
  • SC ने कहा कि अगर बेंच की शक्ति के बजाय जजों की संख्या को महत्व देना है, तो बड़ी बेंच के हर फैसले पर राय की बहुलता के आधार पर संदेह किया जा सकता है और खारिज किया जा सकता है। यह निर्णयों की निश्चितता और स्थिरता को गिरा देगा।
    • इस मामले में गहराई से विश्लेषण करने वाले एक अध्ययन के अनुसार, इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायलय का अवलोकन तर्कसंगत है।
    • लेकिन यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि मिसाल के सिद्धांत का पालन करने के गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं क्योंकि किसी निर्णय की पूर्णता/सटीकता, कारणों के बजाय संख्याओं से अधिक जुड़ी होगी।
    • इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायलय ने बड़ी बेंच के दृष्टिकोण की बाध्यकारी प्रकृति को यह कहते हुए उचित ठहराया कि यह विचार अधिक न्यायाधीशों द्वारा विचार-विमर्श के बाद आया था।

अन्य देशों की व्यवस्था:

  • इस तरह की विसंगति को आमतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में इस कारण के आधार पर टाला जाता है कि किसी मिसाल (नजीर) पर पुनर्विचार करना डिवीज़न के बजाय पूरे न्यायालय द्वारा विचार-विमर्श किया गया मामला है।
  • ऑस्ट्रेलिया और यू.के. (जो भारत के समान हैं) जैसे देशों में, एक मिसाल पर पुनर्विचार करना एक नाजुक और गंभीर न्यायिक जिम्मेदारी है। एक मिसाल (नजीर) को फिर से तय करने का कार्य अत्यंत दुर्लभ है और सभी ‘उपलब्ध न्यायाधीशों’ द्वारा इसकी जांच की जाएगी।

भावी कदम:

  • सुप्रीम कोर्ट को ‘बड़ी बेंच’ शब्द पर शाब्दिक अर्थ के हिसाब से निचली बेंच की तुलना में केवल अधिक ताकतवर के रूप में विचार नहीं करना चाहिए, अपितु इसके बजाय ब्रेक-ईवन या निचली बेंच की तुलना में अधिक बहुमत के साथ कोरम का लक्ष्य रखना चाहिए। उदाहरण के लिए, पांच-न्यायाधीशों के सर्वसम्मत निर्णय को सात के बजाय नौ-न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजा जाना चाहिए, ताकि किसी भी स्थिति में कम से कम पांच न्यायाधीशों के बहुमत से निर्णय लिया जा सके।

संबंधित लिंक:

https://byjus.com/ias-questions/what-is-a-constitutional-bench/

सारांश:

  • निचली पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने के मामले पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए और न्यायिक निर्णय की पूर्णता (सटीकता) को पीठों के आकार (सदस्यों की संख्या के आधार पर) से ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। भारत इस तरह के नाजुक मामले से निपटने हेतु एक निष्पक्ष और मजबूत तंत्र विकसित करने के लिए दुनिया भर में मौजूद सर्वोत्तम व्यवस्थाओं से भी सीख सकता है।

प्रीलिम्स तथ्य:

1.सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

इतिहास:

विषय: आधुनिक भारतीय इतिहास – महत्वपूर्ण व्यक्तित्व।

प्रारंभिक परीक्षा: सर सैयद अहमद खान और सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्बंधित तथ्य।

संदर्भ:

  • प्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार बारबरा मेटकाफ को सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार ’22 से सम्मानित किया गया है।

सर सैयद अहमद खान और सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार:

  • सर सैयद अहमद खान एक प्रसिद्ध दार्शनिक और शिक्षाविद् थे, जिनका जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में हुआ था।
  • सर सैयद ने मुसलमानों की स्थिति को सुधारने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा के महत्व पर जोर दिया था।
  • उन्होंने अंग्रेजी सीखने की भी वकालत की और वे उस समय समाज में प्रचलित अंधविश्वास और कुरीतियों के भी खिलाफ थे।
  • सर सैयद ने “असबाब-ए-बग़ावत-ए-हिंद” (Asbab-e-Baghawat-e-Hind) (1857 के भारतीय विद्रोह के कारण) नामक एक पुस्तिका लिखी, जिसमें विद्रोह के मुख्य कारणों के रूप में ब्रिटिश अज्ञानता और आक्रामक विस्तार नीतियों के बारे में चर्चा की गई थी।
  • वह ईसाई धर्म के विद्वान भी थे और उन्होंने “कमेंटरी ऑन द होली बाइबिल” (Commentary on the Holy Bible) नामक पुस्तक लिखी।
  • 1875 में सर सैयद अहमद खान ने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (Muhammadan Anglo-Oriental (MAO)) कॉलेज की स्थापना की जो अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University (AMU)) के रूप में प्रसिद्ध है।
  • सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार सर सैयद दिवस (17 अक्टूबर) के अवसर पर हर साल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • सर सैयद अहमद खान और उनके योगदान के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Sir Syed Ahmad Khan and his contributions

2. एक राष्ट्र, एक उर्वरक योजना:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

विषय: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप।

प्रारंभिक परीक्षा: एक राष्ट्र, एक उर्वरक योजना।

संदर्भ:

  • भारत के प्रधानमंत्री ने हाल ही में “एक राष्ट्र, एक उर्वरक” योजना का शुभारंभ किया है।

एक राष्ट्र, एक उर्वरक योजना:

  • वन नेशन, वन फर्टिलाइजर/एक राष्ट्र, एक उर्वरक योजना के तहत जिसे प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना भी कहा जाता है, सभी प्रकार के उर्वरक जैसे DAP, NPK या यूरिया “भारत” ब्रांड नाम के तहत बेचे जाएंगे।
  • इस योजना का उद्देश्य देश भर में उर्वरक ब्रांडों का मानकीकरण करना है, भले ही इसे कोई भी कंपनी बनाती हो।
  • उर्वरकों की “भारत” के रूप में रीब्रांडिंग से किसानों को मदद मिलेगी, इससे प्रमुख उर्वरकों की कीमतें कम होंगी क्योंकि परिवहन लागत को नियंत्रित/विनियमित किया जाएगा।
  • एक राष्ट्र, एक उर्वरक योजना किसानों को उर्वरकों की गुणवत्ता और किसानों के लिए उनकी उपलब्धता के बारे में भ्रम को दूर करने के साथ-साथ किसानों को सस्ते उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित करेगी।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश बने न्यायाधीश चंद्रचूड़:

  • भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ को भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया है।
  • न्यायाधीश चंद्रचूड़ मौजूदा मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित के 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर अपना पद छोड़ने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेंगे।
  • न्यायाधीश चंद्रचूड़ के उल्लेखनीय फैसलों में निजता के अधिकार (right to privacy) को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना, भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को गैर-अपराधीकरण से मुक्त करना और महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति देना शामिल है।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी के लिए 08 अक्टूबर 2022 का विस्तृत समाचार विश्लेषण पढ़ें।

2. ‘सार्वजनिक पद धारक निजी नागरिक की भूमिका निभा सकते हैं’:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि भारत के राष्ट्रपति से लेकर सरकारी मंत्रियों तक के उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों को अपने मानहानि पर मुकदमा चलाने के लिए राज्य मशीनरी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक संवैधानिक पदाधिकारी अपने उच्च पद की पहचान को त्यागने का विकल्प चुन सकता है और कार्यालय में अपने सार्वजनिक कार्यों के बारे में की गई विपरीत टिप्पणियों पर मुकदमा चलाने के लिए एक निजी नागरिक की भूमिका निभा सकता है।
  • इसके अलावा, फैसले में कहा गया कि संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा की गयी टिप्पणियां जैसे “मैं आपको बेनकाब करूंगा”, “मैं आपकी भ्रष्ट प्रथाओं का पर्दाफाश करूंगा” और “मैं उस घोटाले का पर्दाफाश करूंगा जिसमें आप शामिल हैं” आदि मानहानि (Defamation) का कारण नहीं होंगी।

3. वर्ष 2005-06 से लगभग 41.5 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं:

  • वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index (MPI)) के अनुसार, वर्ष 2005-06 से 2019-21 के बीच भारत में 41.5 करोड़ से अधिक लोग गरीबी से बाहर आए हैं, जिनमें से दो-तिहाई पहले 10 वर्षों में और बाकी अगले पांच वर्षों में गरीबी से बाहर आए हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme (UNDP)) और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (Oxford Poverty and Human Development Initiative (OPHI)) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गरीबी की घटनाएं वर्ष 2005-06 में 55.1% से घटकर वर्ष 2019-21 में 16.4% रह गई है।
  • भारत के लिए MPI में सुधार ने दक्षिण एशिया में गरीबी की संख्या में गिरावट/कमी में योगदान दिया है और ऐसा पहली बार हुआ हैं कि दक्षिण एशिया क्षेत्र सबसे अधिक गरीब लोगों वाला क्षेत्र नहीं है।
  • 57.9 करोड़ के साथ उप-सहारा अफ्रीका सबसे अधिक गरीब लोगों वाला क्षेत्र है।
  • देश में गरीबों की संख्या में उल्लेखनीय कमी के बावजूद, भारत अभी भी 22.8 करोड़ के साथ दुनिया में सबसे अधिक गरीब लोगों वाला देश बना हुआ है, इसके बाद 9.6 करोड़ लोगों के साथ नाइजीरिया का स्थान है।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर-मध्यम)

  1. जब सरकार बहुमत खो देती है तो वह अपने विवेक के आधार पर सदन को बुला सकता है या सत्रावसान कर सकता है।
  2. राज्यपाल को हमेशा मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अंतर्गत कार्य करना होता है।
  3. राज्यपाल मुख्यमंत्री की सहायता और सलाह के बिना किसी मंत्री को उसके पद हटा सकता है।

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 3

(d) केवल 2 और 3

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: जब सरकार बहुमत खो देती है तो राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदन को बुला सकता है या सत्रावसान कर सकता है।
  • कथन 2 सही नहीं है: भारत के राष्ट्रपति के विपरीत, राज्य के राज्यपाल को अपने विवेक से कार्य करने की शक्ति प्रदान की गई है। राज्यपाल के लिए विवेकाधिकार की दो श्रेणियां हैं। पहली श्रेणी संवैधानिक विवेकाधिकार और दूसरी श्रेणी परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार है।
  • कथन 3 सही नहीं है: राज्यपाल किसी मंत्री को तब तक बर्खास्त नहीं कर सकता जब तक कि मुख्यमंत्री द्वारा इसकी सिफारिश न की गयी हो।

प्रश्न 2. हाल के दिनों में मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई है, क्योंकि: (स्तर-मध्यम)

  1. भारत एक शुद्ध वस्तु आयातक है।
  2. मानसून के अंत में भारी बारिश के कारण WPI (थोक मूल्य सूचकांक) में वृद्धि हुई है।

निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1

(b) 1 और 2 दोनों

(c) केवल 2

(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत एक “शुद्ध वस्तु आयातक” है, जहाँ एक तिहाई से अधिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आयात किया जा रहा है जिसने मुद्रास्फीति को बढ़ाया है।
  • कथन 2 सही है: इसके अलावा, मानसून के अंत में भारी बारिश ने सब्जी उत्पादन को प्रभावित किया है जिसके परिणामस्वरूप थोक कीमतों में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किन देशों ने पनडुब्बी से बैलिस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण क्षमता का प्रदर्शन किया है? (स्तर-मध्यम)

  1. भारत
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका
  3. फ्रांस
  4. रूस
  5. यूनाइटेड किंगडम
  6. चीन
  7. दक्षिण कोरिया

निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:

(a) 2, 3, 4, 5 और 6

(b) 1, 2, 4, 5, 6 और 7

(c) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

(d) उपर्युक्त सभी

उत्तर: c

व्याख्या:

  • पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) के सफल प्रक्षेपण के साथ, भारत SLBM क्षमता वाले देशों के संघ में शामिल हो गया है।
  • SLBM (Submarine Launched Ballistic Missile) क्षमताओं वाले अन्य देशों में यूएस, रूस, यूके, फ्रांस, चीन और उत्तर कोरिया शामिल हैं।

प्रश्न 4. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नवीनतम “टोकनाइजेशन” के क्या लाभ हैं? (स्तर – मध्यम)

  1. इसे किसी भी हैकर द्वारा पढ़ा नहीं जा सकता है।
  2. व्यापारियों के पारिस्थितिकी तंत्र के बाहर उत्पन्न टोकन बेकार है।
  3. नया तरीका ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है।

निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 3

(b) केवल 1 और 3

(c) केवल 2

(d) उपर्युक्त सभी

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही नहीं है: टोकननाइज़ेशन “टोकन” नामक गैर-संवेदनशील डेटा के लिए संवेदनशील डेटा का आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया है, जिसका उपयोग डेटाबेस या आंतरिक सिस्टम में इसे दायरे में लाए बिना किया जा सकता है।
  • टोकननाइज़ेशन हैकिंग के लिए कम संवेदनशील है लेकिन पूरी तरह से प्रतिरक्षित नहीं है।
  • कथन 2 सही है: किसी विशिष्ट व्यापारी के अनुरोध पर उत्पन्न टोकन एक विशिष्ट कार्ड नंबर के लिए अद्वितीय होता है और केवल उसी विशेष साइट या मोबाइल ऐप पर उपयोग किया जा सकता है। यह टोकन उस व्यापारी के पारिस्थितिकी तंत्र के बाहर बेकार हो जाता है।
  • कथन 3 सही नहीं है: नया तरीका केवल क्रेडिट/डेबिट कार्ड के ऑनलाइन उपयोग के लिए है।
  • ऑफ़लाइन व्यापारियों के लिए, उपयोगकर्ता पहले से मौजूद दिशानिर्देशों के अनुसार POS मशीनों पर कार्ड स्वाइप करना जारी रखेंगे।

प्रश्न 5. किसी देश का भुगतान संतुलन किसका व्यवस्थित अभिलेख है? (PYQ 2013) (स्तर-सरल)

  1. किसी निर्धारित समय के दौरान, सामान्यत एक वर्ष में, किसी देश के समस्त आयात और निर्यात का लेन-देन।
  2. किसी वर्ष में एक देश द्वारा निर्यात की गई वस्तुएं।
  3. एक देश की सरकार और दूसरे देश की सरकार के बीच आर्थिक लेन-देन।
  4. एक देश से दूसरे देश को पूंजी का संचलन।

उत्तर: a

व्याख्या:

  • किसी देश का भुगतान संतुलन (BoP) आम तौर पर किसी निर्धारित समय के दौरान, सामान्यत एक वर्ष में, किसी देश के समस्त आयात और निर्यात लेन-देन का एक व्यवस्थित रिकॉर्ड होता है।
  • अत: विकल्प a सही है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. भारत द्वारा डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को अपनाने के साथ, साइबरस्पेस राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस III- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)

प्रश्न 2. हमारी आजादी के सात दशकों से अधिक समय के बाद भी भारत में भाषा का मुद्दा अनसुलझा क्यों रहा है? संभावित कारणों का उल्लेख कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस II – शासन)