भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39A समाज के वंचित और कमजोर वर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की वकालत करता है और समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है । संविधान के अनुच्छेद 14 और 22(1) भी राज्य के लिए कानून के समक्ष समानता की गारंटी देना अनिवार्य बनाते हैं । इसी आलोक में 1987 में, “विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम” संसद द्वारा पारित किया गया, जो 9 नवंबर 1995 को लागू हुआ । इस अधिनियम के तहत ‘National Legal Services Authority of India’ का गठन किया गया । इसमें राष्ट्रीय व राज्य स्तर के साथ साथ जिले में विधिक सेवा कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने के लिए प्रत्येक जिले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Service Authority) का गठन किया गया है । जिला विधिक सेवा प्राधिकरण प्रत्येक जिले में जिला न्यायालय परिसर में स्थित है और संबंधित जिले के जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में होता है ।
जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA) के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:
- परामर्श और कानूनी सलाह की प्रकृति में निःशुल्क और सक्षम कानूनी सहायता प्रदान करना,
- न्यायालयों और न्यायाधिकरणों के समक्ष मामलों के संचालन में निःशुल्क कानूनी सेवाएं प्रदान करना,
- सभी प्रकार के लम्बित प्रकरणों के लिए प्रत्येक माह नियमित लोक अदालतों का आयोजन करना और विशेष श्रेणी के मामलों के लिए विशेष लोक अदालतों का आयोजन करना,
- लोक अदालतें शुल्क और विलम्ब को सीमित करती हैं और कानूनी तकनीकीताओं पर काबू पाते हुए त्वरित न्याय सुनिश्चित करती हैं,
- प्रत्येक जिले में स्थायी लोक अदालतों की स्थापना करके सुलह तंत्र के माध्यम से मुकदमेबाजी-पूर्व विवाद समाधान की जिम्मेदारी लेना, जहां सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से संबंधित मामलों को निपटान के लिए लिया जाता है,
- जनता के बीच कानूनी जागरूकता फैलाना, विशेष रूप से कानूनी महत्व के विभिन्न मुद्दों पर सामाजिक विधानों के लाभार्थियों और बड़े पैमाने पर जनता को लक्षित करना,
- जिन विचाराधीन कैदियों के मामले अदालतों में लंबित हैं, उन्हें निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए प्रयास करना,
- देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले महिलाओं और बच्चों के लिए कॉलेजों, जेलों और कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों में कानूनी साक्षरता कक्षाएं आयोजित करना ।
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